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चावल के पौधों में पोटेशियम की कमी में सुधार हेतु प्रयास

  • 30 Oct 2020
  • 7 min read

प्रीलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय पादप जीनोम अनुसंधान संस्थान, जीन ओवरएक्प्रेशन

मेन्स के लिये:

चावल के पौधों में पोटेशियम की कमी में सुधार

चर्चा में क्यों?

एक नए अध्ययन में सुझाव दिया गया है कि एक विशिष्ट पादप हार्मोन ‘जस्मोनेटे’ (Jasmonate-JA) के माध्यम से चावल के पौधों में पोटेशियम की कमी को दूर किया जा सकता है और साथ ही चावल की उत्पादकता भी बढ़ाई जा सकती है।  

प्रमुख बिंदु: 

  • जस्मोनेटे (Jasmonate-JA) नामक पादप हॉर्मोन जो पौधे की प्रतिरक्षा के लिये कीटों, परोपजीवी एवं अन्य रोगजनकों जैसे जैविक कारकों से संबंधित होता है।
  • इस अध्ययन में कहा गया है कि ओसजाज़9 (OsJAZ9) नामक एक जीन के ओवरएक्प्रेशन (Overexpression of a Gene) ने चावल के पौधों को पोटेशियम की कमी के प्रति अधिक सहनशील बनाने में मदद की। 

जीन ओवरएक्प्रेशन (Gene Overexpression):

  • ‘जीन ओवरएक्प्रेशन’ एक ऐसी प्रक्रिया है जो प्रचुर मात्रा में ‘टारगेट प्रोटीन एक्प्रेशन’ (Target Protein Expression) की ओर ले जाती है। यह प्रक्रिया उस कोशिका में हो सकती है जहाँ जीन मूल रूप से या अन्य एक्प्रेशन प्रणालियों में स्थित होता है।
  • जीन ओवरएक्प्रेशन के दो सामान्य उद्देश्य हैं:
    • इससे बड़ी संख्या में टारगेट जीन उत्पादों को प्राप्त किया जा सकता है जिनका उपयोग अनुसंधान या उत्पादन में किया जा सकता है जैसे- प्रोटीन की 3D संरचना का अध्ययन और किण्वन तकनीक द्वारा इंसुलिन तैयार करना।
    • जीन अतिउत्पादन के माध्यम से टारगेट जीन उत्पादों के जैविक कार्य का अध्ययन किया जा सकता है।
  • वैज्ञानिकों ने देखा कि पोटेशियम की कमी होने पर चावल के पौधों में जेए-इले (JA-ILe) [हार्मोन का एक जैव-सक्रिय रूप] के संचय में वृद्धि हुई। इसके बाद जेए-इले (JA-ILe) ने ‘पोटेशियम ट्रांसपोर्टरों’ (Potassium Transporters) को सक्रिय किया।

जेए-इले (JA-ILe):

  • JA-ILe एक प्लांट हार्मोन है जो जैस्मोनिक एसिड (Jasmonic Acid) और अमीनो एसिड आइसोल्यूसिन (Amino Acid Isoleucine) के संयुग्मन से बनता है।
  • JA-ILe पौधों की वृद्धि एवं विकास के कई पहलुओं में योगदान देता है और तनाव की स्थिति के तहत इसका स्तर बढ़ता है जिससे प्रतिरक्षा यौगिकों का उत्पादन होता है तथा  विकास बाधित होता है।
  • भारत में 1960 के दशक की हरित क्रांति को एक अन्य पादप हार्मोन द्वारा संचालित किया गया था जिसे गिबरेलिन्स (Gibberellins- GA) कहा जाता है।   
  • नए अध्ययन से पता चलता है कि भविष्य में होने वाले अनुसंधानों को जस्मोनेटे (Jasmonate- JA) हार्मोन की ओर उन्मुख किया जा सकता है जो पोषक तत्त्वों एवं कीटों से सुरक्षा प्राप्त करने में मदद कर सकता है।

पौधों के लिये ‘पोटेशियम’ की महत्ता:

  • ‘पोटेशियम’ पौधों के लिये सबसे महत्त्वपूर्ण ‘मैक्रोन्यूट्रिएंट्स’ (Macronutrients) में से एक है। 
  • पौधों को अन्य तत्त्वों के अलावा ‘पोटेशियम आयन’ (Potassium Ion) की एक उच्च एवं अपेक्षाकृत स्थिर संकेंद्रण की आवश्यकता होती है जो श्वसन एवं प्रकाश संश्लेषण में शामिल कई एंज़ाइमों को सक्रिय करता है।
  • पोटेशियम ऊर्जा उत्पादन और कोशिका विस्तार जैसी महत्त्वपूर्ण सेलुलर प्रक्रियाओं (Cellular Processes) में भी शामिल होता है।
    • हालाँकि मृदा में सबसे प्रचुर मात्रा में मौजूद होने के बावजूद पौधों के लिये इसकी उपलब्धता सीमित है। ऐसा इसलिये है क्योंकि मृदा में अधिकांश पोटेशियम (लगभग 98%) बाध्य रूपों में मौजूद हैं और मृदा विलयन में इसका निस्तारण पादप जड़ों द्वारा इसके अधिग्रहण की दर से काफी धीमा है।
  • मृदा विलयन या विनिमेय रूप में पोटेशियम की उपलब्धता मृदा अम्लता, सोडियम एवं अमोनियम आयनों जैसे अन्य मोनोवलेंट कैटायन (Monovalent Cations) की उपस्थिति और मृदा के कणों के प्रकार जैसे कई कारकों पर निर्भर करती है।

पादपों में पोटेशियम की कमी का प्रभाव: 

  • पादपों में पोटेशियम की कमी जड़ों एवं अंकुरों की वृद्धि को रोककर पौधों को प्रभावित करती है। 
  • अध्ययनों से पता चला है कि जिन पौधों में पोटेशियम की कमी होती है वे नमक, सूखा, ठंड लगना और अन्य अजैविक व जैविक तनावों के लिये अतिसंवेदनशील होते हैं।

निष्कर्ष:

  • कृषि वैज्ञानिक मानते हैं कि ‘भविष्य की कृषि को इनपुट-गहन (Input-Intensive) के बजाय इनपुट-कुशल (Input-Efficient) होना चाहिये’। 
  • अतः यह नवीनतम अध्ययन चावल की फसल में उर्वरक उपयोग दक्षता में सुधार के लिये आणविक/ आनुवंशिक संसाधनों को जोड़ता है जो सतत् कृषि (Sustainable Agriculture) का लक्ष्य प्राप्त करने के लिये अहम है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ

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