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डेली न्यूज़

भारतीय विरासत और संस्कृति

हुमायूँ का मकबरा: मुगल वास्तुकला

  • 17 Jun 2021
  • 6 min read

प्रिलिम्स के लिये: 

हुमायूँ का मकबरा, ASI

मेन्स के लिये: 

मुगलकालीन वास्तुकला की विशेताएँ और उदाहरण

चर्चा में क्यों?

भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (Archaeological Survey of India-ASI) ने अधिसूचित किया कि हुमायूँ के मकबरे सहित देश भर के सभी केंद्रीय रूप से संरक्षित स्मारक, स्थल और संग्रहालय 16 जून, 2021 से आगंतुकों के लिये खोल दिये हैं।

  • दिल्ली स्थित हुमायूँ का मकबरा महान मुगल वास्तुकला का बेहतरीन नमूना है।
  • संस्कृति मंत्रालय के तहत कार्यरत ASI, पुरातातात्त्विक अनुसंधान और राष्ट्र की सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण के लिये प्रमुख संगठन है।

प्रमुख बिंदु:

हुमायूँ का मकबरा:

Humayun-Tomb

  • संदर्भ:
    • इस मकबरे का निर्माण वर्ष 1570 में हुआ था। यह मकबरा विशेष सांस्कृतिक महत्त्व का है क्योंकि यह भारतीय उपमहाद्वीप का पहला उद्यान-मकबरा था।
      • इसकी अनोखी सुंदरता को अनेक प्रमुख वास्‍तुकलात्‍मक नवाचारों से प्रेरित कहा जा सकता है, जो एक अतुलनीय ताजमहल के निर्माण में प्रवर्तित हुआ।
    • इसका निर्माण हुमायूँ के पुत्र महान सम्राट अकबर के संरक्षण में किया गया था।
    • इसे 'मुगलों का शयनागार' भी कहा जाता है क्योंकि इसके कक्षों में 150 से अधिक मुगल परिवार के सदस्य दबे हुए हैं।
    • हुमायूँ का मकबरा चारबाग (कुरान के स्वर्ग की चार नदियों के साथ चार चतुर्भुज उद्यान) का एक उदाहरण है, जिसमें चैनल शामिल हैं।
    • संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) ने वर्ष 1993 में इसे विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता दी।

मुगल वास्तुकला:

  • संदर्भ:
    • यह एक इमारत शैली है जो 16वीं सदी के मध्य से 17वीं सदी के अंत तक मुगल सम्राटों के संरक्षण में उत्तरी और मध्य भारत में फली-फूली।
    • मुगल काल ने उत्तरी भारत में इस्लामी वास्तुकला के एक महत्त्वपूर्ण पुनरुद्धार को चिह्नित किया। मुगल बादशाहों के संरक्षण में फारसी, भारतीय और विभिन्न प्रांतीय शैलियों को गुणवत्ता और शोधन कार्यों के लिये संरक्षण दिया गया था।
    • यह विशेष रूप से उत्तर भारत में इतना व्यापक हो गई कि इसे इंडो-सरसेनिक शैली के औपनिवेशिक वास्तुकला में भी देखा जा सकता है।
  • महत्त्वपूर्ण विशेषताएँ:
    • मिश्रित वास्तुकला: यह भारतीय, फारसी और तुर्की स्थापत्य शैली का मिश्रण था।
    • विविधता: विभिन्न प्रकार की इमारतें, जैसे- राजसी द्वार (प्रवेश द्वार), किले, मकबरे, महल, मस्जिद, सराय आदि इसकी विविधता थी।
    • भवन निर्माण सामग्री: इस शैली में अधिकतर लाल बलुआ पत्थर और सफेद संगमरमर का प्रयोग किया जाता था।
    • विशेषता: इस शैली में विशिष्ट विशेषताएँ हैं जैसे- मकबरे की चारबाग शैली, स्पष्ट बल्बनुमा गुंबद, कोनों पर पतले बुर्ज, चौड़े प्रवेश द्वार, सुंदर सुलेख, अरबी और स्तंभों तथा दीवारों पर ज्यामितीय पैटर्न एवं स्तंभों पर समर्थित महल हॉल आदि थी।
      • मेहराब, छतरी और विभिन्न प्रकार के गुंबद भारत-इस्लामी वास्तुकला में बेहद लोकप्रिय हो गए तथा मुगलों के शासन के तहत इसे और विकसित किया गया।
  • उदाहरण:
    • ताजमहल:
      • शाहजहाँ ने अपनी पत्नी मुमताज़ महल की याद में वर्ष 1632-1653 के बीच इसका निर्माण कराया था।
      • यूनेस्को ने वर्ष 1983 में ताजमहल को विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता दी। यह आगरा में स्थित है।
    • लाल किला:
      • वर्ष 1618 में शाहजहाँ ने इसका निर्माण तब कराया जब उसने राजधानी को आगरा से दिल्ली स्थानांतरित करने का फैसला किया। यह मुगल शासकों का निवास स्थान था।
      • यूनेस्को ने इसे वर्ष 2007 में विश्व धरोहर स्थल के रूप में नामित किया था।
    • जामा मस्जिद:
      • इसका निर्माण दिल्ली में शाहजहाँ द्वारा किया गया था। इसका निर्माण कार्य वर्ष 1656 में पूरा हुआ था।
    • बादशाही मस्जिद:
      • इसका निर्माण औरंगज़ेब के शासनकाल के दौरान हुआ। वर्ष 1673 मेंइसके पूरा होने के समय यह विश्व की सबसे बड़ी मस्जिद थी। यह पाकिस्तान के पंजाब प्रांत की राजधानी लाहौर में स्थित है।

स्रोत: द हिंदू

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