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डेली न्यूज़

भूगोल

प्राचीन नदी सरस्वती

  • 21 Dec 2019
  • 5 min read

प्रीलिम्स के लिये

घघ्घर नदी की भौगोलिक स्थिति

मेन्स के लिये

सरस्वती नदी के साक्ष्य घघ्घर के रूप में

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भौतिक शोध प्रयोगशाला (Physical Research Laboratory- PRL) तथा आई.आई.टी. बॉम्बे (Indian Institute of Technology Bombay) के शोधार्थियों ने राजस्थान में बहने वाली मानसूनी नदी के अपवाह क्षेत्र में पौराणिक नदी सरस्वती के प्रमाण खोजने का प्रयास किया।

Saraswati-river

मुख्य बिंदु:

  • हड़प्पा सभ्यता के लगभग 1000 से अधिक पुरातात्त्विक केंद्र आधुनिक घघ्घर नदी के सूखे हुए किनारों पर पाए गए हैं।
  • वर्तमान में घघ्घर एक मौसमी नदी है जिसके जल का मुख्य स्रोत मानसूनी वर्षा है।
  • यह नदी हिमाचल प्रदेश में हिमालय की शिवालिक श्रेणी से निकलती है और राजस्थान तथा पाकिस्तान के सीमावर्ती इलाकों में बहते हुए थार के मरुस्थल में सूख जाती है।
  • यहाँ प्रश्न उठता है कि हड़प्पा सभ्यता के निवासी किसी बारहमासी नदी (Perennial River) के किनारे रहते थे या किसी मौसमी नदी के किनारे? या प्राचीन घघ्घर (Paleo Ghaggar) का स्वरूप कैसा था?
  • ऋग्वेद में प्राचीन सरस्वती नदी का उल्लेख मिलता है जिसके किनारे इसकी रचना हुई थी। ऋग्वेद में इस नदी को विशाल तथा सदानीरा कहा गया है।

शोध के परिणाम:

  • शोधार्थियों द्वारा आधुनिक घघ्घर नदी की सतह से 3-10 मीटर की गहराई में स्थित रेत के नमूने का विश्लेषण किया गया। इससे यह निष्कर्ष निकाला गया कि प्राचीन-काल में यह नदी हिमालय में स्थित ग्लेशियर से निकलती थी।
  • नदी की तलछट में पाई गई सफेद तथा ग्रे रंग की दानेदार रेत में माइका अधिकांश मात्रा में मौजूद था।
  • घघ्घर नदी के किनारों पर 300 किलोमीटर की लंबाई में किये गए सर्वेक्षण में यह रेत दोनों किनारों पर पाई गई। इससे प्राचीन-काल में इस स्थान पर एक विशाल नदी के मौजूद होने के संकेत मिलते हैं।
  • टीम ने खुदाई से प्राप्त रेत के स्रोतों की जाँच करने के लिये स्ट्रॉन्टियम-निओडाईमियम समस्थानिक अनुपात (Strontium-Neodymium Isotopic Ratio) का प्रयोग किया एवं रेत में प्राप्त माइका (Mica) की उम्र ज्ञात करने के लिये आर्गन-आर्गन डेटिंग (Argon-Argon Dating) विधि का प्रयोग किया।
  • उपरोक्त दोनों विधियों से प्राप्त रेत कणों की उम्र से ज्ञात होता है कि इनकी उम्र उच्च हिमालयी क्षेत्र में बसे चट्टानों के समान है।
  • इसके अलावा नदी के मार्ग में स्थित निक्षेपों (Deposits) के उम्र का पता लगाने के लिये रेडियोकार्बन डेटिंग (Radiocarbon Dating) तथा निक्षेपों से प्राप्त घोंघे के बाहरी आवरण की उम्र ज्ञात करने के लिये ऑप्टिकल डेटिंग (Optical Dating) विधि का प्रयोग किया गया।
  • निष्कर्षतः इस शोध के माध्यम से कहा गया कि घघ्घर नदी प्राचीन काल में उच्च हिमालयी क्षेत्र से प्रवाहित होती थी एवं कोई नदी जो कि इतनी ऊँचाई से बहती हो उसमें जल का प्रवाह वर्ष भर बना रहता है।
  • शोध के निष्कर्ष में यह भी कहा गया कि घघ्घर नदी पूर्व में दो भिन्न-भिन्न कालखंडों में सदानीरा स्वरूप में रही है। पहला- 80,000-20,000 वर्ष तक तथा दूसरा 9,000-4,500 वर्ष तक।
  • इस शोध में यह भी दावा किया गया कि घघ्घर नदी से प्राप्त प्रमाणों को देखते हुए यह माना जा सकता है कि 9,000-4,500 वर्ष पूर्व इसे ही सरस्वती नदी कहा गया है तथा संभवतः हड़प्पाकालीन बस्तियाँ इसके किनारों पर बसी हों।

स्रोत: द हिंदू

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