भारतीय राजव्यवस्था
धर्मांतरण विरोधी विधेयक का मसौदा: हरियाणा
- 09 Feb 2022
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प्रिलिम्स के लिये:धर्मांतरण विरोधी कानून, धर्म की स्वतंत्रता पर संवैधानिक प्रावधान, संविधान का अनुच्छेद 21। मेन्स के लिये:हरियाणा धर्मांतरण रोकथाम विधेयक, 2022 और संबंधित मुद्दे, इससे संबंधित सर्वोच्च न्यायालय के फैसले। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में हरियाणा सरकार ने गैरकानूनी धर्मांतरण रोकथाम विधेयक, 2022 का मसौदा जारी किया।
- इस विधेयक का उद्देश्य धार्मिक रूपांतरणों को रोकना है। यह विधेयक गलत बयानी, ज़बरदस्ती, धोखाधड़ी, लालच या शादी के माध्यम से एक धर्म से दूसरे धर्म में धर्मांतरण पर रोक लगाता है।
- कर्नाटक, अरुणाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, मध्य प्रदेश, ओडिशा, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड जैसे अन्य राज्यों ने भी धर्म परिवर्तन को प्रतिबंधित करने वाले कानून पारित किये हैं।
धर्मांतरण विरोधी कानूनों की आवश्यकता:
- धर्मांतरण का अधिकार नहीं: संविधान प्रत्येक व्यक्ति को अपने धर्म को मानने, अभ्यास करने और प्रचार करने का मौलिक अधिकार प्रदान करता है।
- अंतःकरण और धर्म की स्वतंत्रता के व्यक्तिगत अधिकार का विस्तार धर्मांतरण के सामूहिक अधिकार के अर्थ में नहीं किया जा सकता।
- क्योंकि धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार धर्मांतरण करने वाले और परिवर्तित होने की मांग करने वाले व्यक्ति के लिये समान रूप से है।
- कपटपूर्ण विवाह: हाल के दिनों में ऐसे कई उदाहरण सामने आए हैं, जिसमें लोग अपने धर्म को छुपाकर या गलत तरीके से दूसरे धर्म के व्यक्तियों के साथ शादी करते हैं तथा शादी के बाद ऐसे दूसरे व्यक्ति को अपने धर्म में परिवर्तित करने के लिये मजबूर करते हैं।
- सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणियाँ: हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने भी ऐसे मामलों का न्यायिक संज्ञान लिया।
- न्यायालय के अनुसार, इस तरह की घटनाएँ न केवल धर्मांतरित व्यक्तियों की धर्म की स्वतंत्रता का उल्लंघन करती हैं, बल्कि हमारे समाज के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने के भी खिलाफ हैं।
मसौदा विधेयक के प्रावधान:
- विधेयक में नाबालिगों, महिलाओं, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के धर्मांतरण के संबंध में अधिक सज़ा का प्रावधान है।
- यह आरोपित पर ही इस बात को सिद्ध करने की ज़िम्मेदारी डालता है कि धर्मांतरण गलत बयानी, बल प्रयोग, धमकी, अनुचित प्रभाव, जबरदस्ती, प्रलोभन या किसी कपटपूर्ण तरीके से शादी के उद्देश्य से नहीं हुआ था।
- एक धर्म से दूसरे धर्म में परिवर्तित होने वाले प्रत्येक व्यक्ति को निर्धारित प्राधिकारी के समक्ष एक घोषणा पत्र प्रस्तुत करना होगा कि रूपांतरण किसी कपटपूर्ण तरीके से नहीं किया गया।
- इसके अलावा यह उन विवाहों को शून्य और अवैध घोषित करने का प्रावधान करता है, जो धर्म को छुपाकर किये गए हों।
भारत में धर्मांतरण विरोधी कानूनों की स्थिति:
- संवैधानिक प्रावधान: अनुच्छेद-25 के तहत भारतीय संविधान धर्म को मानने, प्रचार करने और अभ्यास करने की स्वतंत्रता की गारंटी देता है तथा सभी धर्म के वर्गों को अपने धर्म के मामलों का प्रबंधन करने की अनुमति देता है, हालाँकि यह सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य के अधीन है।
- कोई भी व्यक्ति अपने धार्मिक विश्वासों को ज़बरन लागू नहीं करेगा और इस प्रकार व्यक्ति को उसकी इच्छा के विरुद्ध किसी भी धर्म का पालन करने के लिये मजबूर नहीं किया जाना चाहिये।
- मौजूदा कानून: धार्मिक रूपांतरणों को प्रतिबंधित या विनियमित करने वाला कोई केंद्रीय कानून नहीं है।
- हालाँकि वर्ष 1954 के बाद से कई मौकों पर धार्मिक रूपांतरणों को विनियमित करने हेतु संसद में निजी विधेयक पेश किये गए।
- इसके अलावा वर्ष 2015 में केंद्रीय कानून मंत्रालय ने कहा था कि संसद के पास धर्मांतरण विरोधी कानून पारित करने की विधायी शक्ति नहीं है।
- वर्षों से कई राज्यों ने बल, धोखाधड़ी या प्रलोभन द्वारा किये गए धार्मिक रूपांतरणों को प्रतिबंधित करने हेतु 'धार्मिक स्वतंत्रता' संबंधी कानून बनाए हैं।
धर्मांतरण विरोधी कानूनों से संबद्ध मुद्दे:
- अनिश्चित और अस्पष्ट शब्दावली: गलत बयानी, बल, धोखाधड़ी, प्रलोभन जैसी अनिश्चित और अस्पष्ट शब्दावली इसके दुरुपयोग हेतु एक गंभीर अवसर प्रस्तुत करती है।
- यह काफी अधिक अस्पष्ट और व्यापक शब्दावली है, जो धार्मिक स्वतंत्रता के संरक्षण से परे भी कई विषयों को कवर करती है।
- अल्पसंख्यकों का विरोध: एक अन्य मुद्दा यह है कि वर्तमान धर्मांतरण विरोधी कानून धार्मिक स्वतंत्रता प्राप्त करने हेतु धर्मांतरण के निषेध पर अधिक ध्यान केंद्रित करते हैं।
- हालाँकि धर्मांतरण निषेधात्मक कानून द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली व्यापक भाषा का इस्तेमाल अधिकारियों द्वारा अल्पसंख्यकों पर अत्याचार और भेदभाव करने के लिये किया जा सकता है।
- धर्मनिरपेक्षता विरोधी: ये कानून भारत के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने और हमारे समाज के आंतरिक मूल्यों व कानूनी व्यवस्था की अंतर्राष्ट्रीय धारणा के लिये खतरा पैदा कर सकते हैं।
विवाह और धर्मांतरण पर सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय:
- वर्ष 2017 का हादिया मामला:
- हादिया मामले में निर्णय देते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि ‘अपनी पसंद के कपड़े पहनने, भोजन करने, विचार या विचारधाराओं और प्रेम तथा जीवनसाथी के चुनाव का मामला किसी व्यक्ति की पहचान के केंद्रीय पहलुओं में से एक है।
- ऐसे मामलों में न तो राज्य और न ही कानून किसी व्यक्ति को जीवन साथी के चुनाव के बारे में कोई आदेश दे सकते हैं एवं न ही वे ऐसे मामलों में निर्णय लेने के लिये किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता को सीमित कर सकते हैं।
- अपनी पसंद के साथी के साथ विवाह करने का अधिकार अनुच्छेद-21 का अभिन्न अंग है।
- के.एस. पुट्टस्वामी या 'गोपनीयता' निर्णय 2017:
- किसी व्यक्ति की स्वायत्तता से आशय जीवन के महत्त्वपूर्ण मामलों में उसकी निर्णय लेने की क्षमता से है।
- अन्य मामले:
- सर्वोच्च न्यायालय ने अपने विभिन्न निर्णयों में माना है कि जीवन साथी चुनने के वयस्क के पूर्ण अधिकार पर आस्था, राज्य और अदालतों का कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है।
- सर्वोच्च न्यायालय ने अपने विभिन्न निर्णयों में स्वीकार किया है कि जीवन साथी के चयन के मामले में एक वयस्क नागरिक के अधिकार पर राज्य और न्यायालयों का कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है।
- भारत एक ‘स्वतंत्र और गणतांत्रिक राष्ट्र’ है तथा एक वयस्क के प्रेम एवं विवाह के अधिकार में राज्य का हस्तक्षेप व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है।
- विवाह जैसे मामले किसी व्यक्ति की निजता के अंतर्गत आते हैं, जो कि उल्लंघन योग्य नहीं हैं, साथ ही विवाह या उसके बाहर जीवन साथी के चुनाव का निर्णय व्यक्ति के ‘व्यक्तित्व और पहचान’ का हिस्सा है।
- किसी व्यक्ति के जीवन साथी चुनने का पूर्ण अधिकार कम-से-कम धर्म/आस्था से प्रभावित नहीं होता है।
आगे की राह
- ऐसे कानूनों को लागू करने के लिये सरकार को यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि वे किसी व्यक्ति के मौलिक अधिकारों को सीमित न करते हों और न ही इनसे राष्ट्रीय एकता को क्षति पहुँचती हो; ऐसे कानूनों के मामले में स्वतंत्रता एवं दुर्भावनापूर्ण धर्मांतरण के मध्य संतुलन बनाना बहुत ही आवश्यक है।