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भारतीय अर्थव्यवस्था

डिबेंचर रिडेम्पशन रिज़र्व

  • 21 Aug 2019
  • 3 min read

चर्चा में क्यों?

सरकार ने गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों, हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों और सूचीबद्ध फर्मों द्वारा डिबेंचर जारी करने के लिये डिबेंचर रिडेम्पशन रिज़र्व (Debenture Redemption Reserve- DRR) के नियमों में परिवर्तन किया है।

प्रमुख बिंदु:

  • कंपनी कानूनों के तहत धन जुटाने वाली संस्थाओं को डिबेंचर रिडेम्पशन रिज़र्व का निर्माण करना होता है।
  • कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय ने सूचीबद्ध कंपनियों, गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों और हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों की 25% DRR आवश्यकता को हटा दिया है।
  • ये नियम सरकारी संस्थानों के साथ निजी संस्थानों पर भी लागू होगें।
  • गैर-सूचीबद्ध कंपनियों के मामले में DRR आवश्यकता को बकाया डिबेंचर के 25% से घटाकर 10% कर दिया गया है।
  • सरकार इस प्रकार के प्रावधानों के माध्यम से कंपनियों द्वारा जुटाई जा रही पूंजी की लागत को कम करने का प्रयास कर रही है।

डिबेंचर रिडेम्पशन रिज़र्व

(Debenture Redemption Reserve- DRR):

  • डिबेंचर जारी करने वाले निगम को कंपनी के डिफॉल्ट होने की संभावना से निवेशकों को बचाने हेतु DRR को बनाए रखना पड़ता है।
  • यह प्रावधान भारतीय कंपनी अधिनियम 1956 में एक संशोधन के माध्यम से वर्ष 2000 से शुरू किया गया था।
  • यह प्रावधान निवेशकों को सुरक्षा प्रदान करता है, क्योंकि डिबेंचर किसी परिसंपत्ति या संपार्श्विक द्वारा समर्थित नहीं होते हैं।
  • वर्तमान में यदि कोई कंपनी 10 मिलियन डॉलर के डिबेंचर जारी करती है तो उसे उन डिबेंचर की परिपक्वता अवधि तक कुल जारी डिबेंचर यानी 10 मिलियन डॉलर के 25% का DRR बनाए रखना होता था।
  • यदि कंपनी इस प्रकार का रिज़र्व नहीं बनाए रख पाती है तो उसे डिबेंचर धारकों को 2% की पेनाल्टी देनी होती थी।
  • इस प्रकार के प्रावधान की वजह से कंपनी की लागत बढ़ जाती थी, साथ ही इससे भारत में व्यापार करने की सुगमता भी प्रभावित हो रही थी।
  • इस प्रकार की नीतियों के माध्यम से सरकार का मुख्य उद्देश्य ईज़ ऑफ़ डूइंग बिज़नेस रैंकिंग में बेहतर प्रदर्शन करना है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस & द हिंदू

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