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डेली न्यूज़

भारतीय इतिहास

दारा शिकोह

  • 22 Feb 2020
  • 7 min read

प्रीलिम्स के लिये:

दारा शिकोह की प्रमुख रचनाएँ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में संस्कृति मंत्रालय ने मुगल राजकुमार दारा शिकोह (1615-59) की कब्र का पता लगाने के लिये भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (Archaeological Survey of India-ASI) का सात सदस्यीय पैनल गठित किया। ऐसा माना जाता है कि दारा शिकोह (Dara Shikoh) को दिल्ली में हुमायूँ के मकबरे के परिसर में कहीं दफनाया गया था, जो मुगल वंश की लगभग 140 कब्रों में से एक है।

  • इसके लिये पैनल को तीन महीने का समय दिया गया है। आवश्यकता पड़ने पर इस समय को तीन महीने के लिये और बढ़ाया भी जा सकता है। इस विषय में सटीक जानकारी प्राप्त करने के लिये पैनल उस समय के वास्तुशिल्प साक्ष्यों, लिखित इतिहास और अन्य जानकारी, जिसे सबूत के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है, का उपयोग करेगा।

दारा शिकोह का परिचय

Dara-Sikoh

दारा शिकोह मुगल सम्राट शाहजहाँ का सबसे बड़ा पुत्र (जीवनकाल 1615 ई॰ से 1659 ई॰ तक) था। शाहजहाँ उसे अपना राजपद देना चाहता था लेकिन उत्तराधिकार के संघर्ष में दाराशिकोह के भाई औरंगज़ेब ने उसकी हत्या कर दी। दारा शिकोह ने अपने समय के श्रेष्ठ संस्कृत पंडितों, ज्ञानियों और सूफी संतों की सत्संगति में वेदांत तथा इस्लाम के दर्शन का गहन अध्ययन किया साथ ही फारसी एवं संस्कृत में इन दोनों दर्शनों की समान विचारधारा को लेकर विपुल साहित्य लिखा।

दारा शिकोह की विरासत (Dara Shikoh’s legacy)

  • औरंगज़ेब के खिलाफ उत्तराधिकार के युद्ध में दारा शिकोह मारा गया। इतिहास में दारा शिकोह को एक "उदार मुस्लिम" के रूप में वर्णित किया जाता है, जिसने हिंदू और इस्लामी परंपराओं के बीच समानताएँ खोजने का प्रयास किया।
  • कुछ विशेषज्ञों दारा शिकोह को "उस समय के सबसे महान मुक्त विचारकों में से एक" के रूप में वर्णित करते है।
  • फारसी में उसके ग्रंथ हैं- सारीनतुल् औलिया, सकीनतुल् औलिया, हसनातुल् आरफीन (सूफी संतों की जीवनियाँ), तरीकतुल् हकीकत, रिसाल-ए-हकनुमा, आलमे नासूत, आलमे मलकूत (सूफी दर्शन के प्रतिपादक ग्रंथ), सिर्र-ए-अकबर (उपनिषदों का अनुवाद)। उसने श्रीमद्भगवद्गीता और योगवासिष्ठ का भी फारसी भाषा में अनुवाद किया। ‘मज्म-उल्-बहरैन्’ फारसी में उसकी अमर कृति है, जिसमें उसने इस्लाम और वेदांत की अवधारणाओं में मूलभूत समानताएँ बताई हैं। दाराशिकोह ने ‘समुद्रसंगम’ (मज़्म-उल-बहरैन) नाम से संस्कृत में भी रचना की। दारा शिकोह ने 52 उपनिषदों का अनुवाद ‘सिर्र-ए-अकबर’ नाम से किया।

दारा शिकोह और औरंगज़ेब

(Dara Shikoh & Aurangzeb)

  • कुछ इतिहासकारों का मानना है कि यदि औरंगज़ेब के बजाय मुगल सिंहासन पर दारा शिकोह का राज होता तो धार्मिक संघर्ष में मारे गए हज़ारों लोगों की जान बच सकती थी। अविक चंदा की किताब 'दारा शिकोह, द मैन हू वुड बी किंग' में कहा गया है कि ‘दारा शिकोह का व्यक्तित्व बहुत बहुमुखी था। वह एक विचारक, विद्वान, सूफी और कला की गहरी समझ रखने वाला शख्स था। लेकिन इसके साथ साथ वह एक उदासीन प्रशासक और युद्ध के मैदान में अप्रभावी भी था। जहाँ एक ओर शाहजहाँ ने दारा शिकोह को सैन्य मुहिमों से दूर रखा वहीं औरंगज़ेब को 16 वर्ष की आयु में एक बड़ी सैन्य मुहिम की कमान सौंप दी।

दारा शिकोह के अवशेष

  • शाहजहाँनामा के अनुसार, औरंगज़ेब द्वारा पराजित होने के बाद दारा शिकोह को जंजीरों में बाँधकर दिल्ली लाया गया। उसका सिर काट कर आगरा किले में शाहजहाँ के पास भेज दिया गया, जबकि उसके धड़ को हुमायूँ के मकबरे के परिसर में दफनाया गया।
  • हालाँकि इस विषय में कोई जानकारी नहीं है कि वास्तव में दारा शिकोह को कहाँ दफनाया गया था। अभी तक केवल यही पता है कि हुमायूँ के मकबरे के परिसर में एक छोटी सी कब्र है, जिसे दारा की कब्र बताया जाता है। यह हुमायूँ के मकबरे के पश्चिमी हिस्से में है। इस इलाके में रहने वाले लोग पीढ़ी-दर-पीढ़ी यही बात सुनते आ रहे हैं और पुरातत्त्व विभाग के कुछ वरिष्ठ अधिकारी भी ऐसा ही मानते हैं, लेकिन इसके अलावा इस विषय में कोई और साक्ष्य नहीं है।
  • इतिहासकारों के अनुसार, वर्ष 1857 तक मुगल परिवार के सभी सदस्यों को इसी परिसर में दफनाया गया था, यूरोपीय इतिहासकारों के साथ-साथ फारसी भी इसी बात की ओर इशारा करते हैं कि दारा शिकोह को वास्तव में हुमायूँ के मकबरे में ही दफनाया गया था।

ASI की समस्या तथा आगे की राह

  • ASI की सबसे बड़ी समस्या यह है कि इस परिसर में मौजूद कब्रों पर कोई नाम उल्लेखित नहीं है। पैनल के एक सदस्य के अनुसार, "मुहम्मद सालेह कम्बोह द्वारा संकलित शाहजहाँनामा ने दारा शिकोह के अंतिम दिनों के विषय में कम से कम दो पृष्ठों में यह बताया है कि किस प्रकार उसकी निर्मम हत्या की गई और फिर उसे परिसर में कहीं दफना दिया गया।” हालाँकि इस विषय में प्रमाणिक साक्ष्य किस प्रकार प्राप्त होंगे इसके विषय में अभी संशय बना हुआ है। निश्चित रूप से पैनल इस संदर्भ में आवश्यक शोध, अनुसंधान और अध्ययन करेगा ताकि किसी प्रमाणिक परिणाम तक पहुँचा जा सकें।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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