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CSF और शीप पॉक्स वैक्सीन

  • 26 Apr 2021
  • 8 min read

चर्चा में क्यों?

ICAR-इंडियन वेटरनरी रिसर्च इंस्टीट्यूट (IVRI) ने ‘क्लासिकल स्वाइन फीवर’ (CSF) और ‘शीप पॉक्स वैक्सीन’ के लिये एक पशु स्वास्थ्य सेवा कंपनी ‘हेस्टर बायोसाइंसेज़’ को प्रौद्योगिकी हस्तांतरित की है।

  • इस प्रौद्योगिकी को राज्य के स्वामित्व वाले ‘एग्रीनोवेट इंडिया’ (AgIn) के माध्यम से स्थानांतरित किया गया, जो ‘भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद’ (ICAR) के तहत कार्य करता है।
    • ‘एग्रीनोवेट इंडिया’ बौद्धिक संपदा अधिकार संरक्षण, व्यवसायीकरण और ‘फोर्जिंग पार्टनरशिप’ (Forging Partnerships) के माध्यम से अनुसंधान एवं विकास परिणामों के विकास और प्रसार को बढ़ावा देता है, यह सार्वजनिक लाभ के लिये देश और इसके बाहर दोनों जगह कार्य करता है।

प्रमुख बिंदु:

‘क्लासिकल स्वाइन फीवर’ (CSF):

  • CSF, जिसे ‘हॉग हैजा’ के नाम से भी जाना जाता है, यह सूअरों से संबंधित एक महत्त्वपूर्ण बीमारी है।
    • यह दुनिया में सूअरों से संबंधित आर्थिक रूप से सर्वाधिक हानिकारक महामारी संक्रामक रोगों में से एक है।
      • यह Flaviviridae फैमिली के जीनस पेस्टीवायरस के कारण होता है, जो कि इस वायरस से निकटता से संबंधित है जो मवेशियों में ‘बोवाइन संक्रमित डायरिया’ और भेड़ों में ‘बॉर्डर डिज़ीज’ का कारण बनता है।
      • इससे मृत्यु दर 100% है।
  • भारत में विकसित वैक्सीन:
    • भारत में इस बीमारी को बड़ी संख्या में खरगोशों को मारकर तैयार किये गए एक ‘लैपिनाइज़्ड सीएसएफ वैक्सीन (वेइब्रिज स्ट्रेन, यूके) द्वारा नियंत्रित किया जाता है।
      • लैपिनाइज़ेशन का अर्थ है कि अपनी विशेषताओं को संशोधित करने के लिये खरगोशों के माध्यम से वायरस या वैक्सीन का ‘सीरियल पैसेज’ तैयार करना।
    • इससे बचने के लिये ICAR-IVRI ने एक ‘सेल कल्चर CSF वैक्सीन (लाइव एटेन्यूटेड या जीवित ऊतक) विकसित की, जिसमें लैपिनाइज़्ड वैक्सीन वायरस का उपयोग एक बाह्य स्ट्रेन के माध्यम से किया गया।
    • नया टीका टीकाकरण के 14 दिन से 18 महीने तक सुरक्षात्मक प्रतिरक्षा को प्रेरित करने के लिये पाया गया है।

शीप पॉक्स:

  • यह भेड़ों से संबंधित एक गंभीर वायरल बीमारी है और इसका वायरस बकरी (कार्पीपॉक्सीवायरस) से निकटता से संबंधित है।
    • इस वायरस का संबंध ‘गांठदार त्वचा रोग’ ( lumpy Skin Disease) के वायरस से भी है।
    • यह रोग प्रायः  बहुत गंभीर एवं घातक होता है, जिसमें व्यापक रूप से त्वचा का विस्फोट होता है।
    • इसका प्रभाव दक्षिण-पूर्वी यूरोप, अफ्रीका और एशिया के कुछ हिस्सों तक सीमित है।
  • भारत में विकसित वैक्सीन:
    • भेड़ों की आबादी में निवारक टीकाकरण के लिये ‘ICAR-IVRI’ द्वारा स्वदेशी स्ट्रेन का उपयोग करते हुए एक दुर्बल वायरस का प्रयोग करके ‘शीप पॉक्स वैक्सीन’ विकसित की गई।
    • विकसित वैक्सीन में स्वदेशी शीप पॉक्स वायरस स्ट्रेन (SPPV Srin 38/00) का उपयोग किया गया है और यह ‘वेरो सेल लाइन’ में वृद्धि के लिये अनुकूलित है जो वैक्सीन उत्पादन को आसानी से मापन-योग्य बनाता है।
    • यह 6 महीने से अधिक उम्र की भेड़ों के लिये शक्तिशाली और इम्युनोजेनिक है। यह टीकाकृत जानवरों की 40 महीने की अवधि तक रक्षा करता है।

सेल कल्चर (Cell Culture):

  • सेल कल्चर वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा कोशिकाओं में नियंत्रित परिस्थितियों, आमतौर पर उनके प्राकृतिक वातावरण के बाहर विशेष रूप से निर्मित परिस्थितियों और तापमान, आर्द्रता, पोषण और संदूषण की स्वतंत्रता की सटीक स्थितियों के तहत वृद्धि की जाती  है।
  • सेल कल्चर सिस्टम में बड़ी मात्रा में दुर्बल वायरल कणों के उत्पादन की क्षमता ने मानव और पशु दोनों से संबंधित वैक्सीन के उत्पादन के आधार के रूप में कार्य किया है।

वेरो सेल:

  • वेरो सेल ‘सेल कल्चर’ में प्रयोग होने वाली कोशिकाओं की एक वंशावली हैं। वेरो सेल को एक अफ्रीकी ग्रीन मंकी के गुर्दे के उपकला कोशिकाओं से प्राप्त किया गया था।
  • वेरो कोशिकाओं का उपयोग कई उद्देश्यों के लिये किया जाता है, जिनमें शामिल हैं,
    • एस्चेरिचिया कोलाई (Escherichia coli) नामक ज़हर को पहले "वेरो टॉक्सिन" नाम दिया गया।
    • वृद्धिशील वायरस की मेज़बान कोशिकाओं के रूप में।
  • वेरो सेल का वंशक्रम सतत् और अगुणित होता है।
    • एक सतत् सेल वंश को विभाजन के कई चक्रों के माध्यम से दोहराया जा सकता है।(अर्थात यह उम्र के साथ विघटित नहीं होता)।
    • असुगुणन असामान्य संख्या में गुणसूत्र होने की एक विशेषता है।

लाइव एटेन्युएटेड वैक्सीन:

  • लाइव एटेन्युएटेड वैक्सीन’ में रोगाणु के दुर्बल रूप का उपयोग किया जाता है।
  • क्योंकि ये टीके प्राकृतिक संक्रमण से इतने मिलते-जुलते हैं कि वे रोकथाम में मदद करते हैं, ये एक मज़बूत और लंबे समय तक चलने वाली प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया का निर्माण करते हैं।
    • अधिकांश लाइव एटेन्युएटेड वैक्सीन की बस एक या दो खुराक एक रोगाणु और इसके कारण होने वाली बीमारी से सुरक्षा प्रदान कर सकती है।
  • इस दृष्टिकोण से ये वैक्सीन आमतौर पर कमज़ोर प्रतिरक्षा प्रणाली वाले लोगों को नहीं दिये जा सकते हैं।
  • लाइव वैक्सीन का उपयोग खसरा, गलसुआ, रूबेला (MMR संयुक्त टीका), रोटावायरस, चेचक से प्रतिरक्षा के लिये किया जाता है।

स्रोत-पीआईबी

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