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  • 09 Dec 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 2 सामाजिक न्याय

    भारत में कार्यस्थल पर महिलाओं की सुरक्षा से संबंधित मुद्दों के सामाजिक-आर्थिक निहितार्थ हैं। सरकार द्वारा शुरू की गई उन कुछ बड़ी कानूनी पहलों पर चर्चा कीजिये जो महिलाओं के लिये सुरक्षित कामकाज की स्थिति पैदा कर सकती हैं। (250 शब्द)

    उत्तर

    दृष्टिकोण

    • कार्यस्थल पर महिलाओं की सुरक्षा के महत्त्व को रेखांकित कीजिये।
    • कार्यस्थल पर महिलाओं को उचित माहौल प्रदान करने से संबंधित प्रमुख मुद्दों पर चर्चा कीजिये।
    • सरकार की कुछ प्रमुख पहलों पर चर्चा कीजिये।
    • उपयुक्त निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय

    • कार्यस्थल पर महिलाओं की सुरक्षा सामाजिक और आर्थिक दोनों प्रकार से महत्त्वपूर्ण है। महिलाओं का उत्पीड़न न्याय और मानवीय गरिमा का सिर्फ एक टकराव ही नहीं है बल्कि यह महिलाओं के साथ-साथ देश को आर्थिक रूप से भी नुकसान पहुँचाता है। कार्यस्थल पर उत्पीड़न हिंसा के अन्य रूपों की तरह गंभीर स्वास्थ्य, मानव, आर्थिक और सामाजिक लागत को शामिल करता है जो एक राष्ट्र के समग्र विकास सूचकांकों को प्रभावित करता है।

    प्रारूप

    भारत में कार्यस्थल पर महिलाओं की सुरक्षा से संबंधित मुद्दे

    • फिक्की की एक रिपोर्ट के अनुसार, पिछले तीन दशकों में कार्यस्थल पर अधिक विविधतापूर्ण वातावरण निर्मित हुआ है। भारत के कुल कार्यबल में 24.4 प्रतिशत प्रतिनिधित्व करने वाली महिलाओं की व्यक्तिगत सुरक्षा उनके शारीरिक, बौद्धिक, भावनात्मक, आर्थिक और आध्यात्मिक कल्याण पर केंद्रित है।
    • भारत में महिलाएंँ अपने जीवन के सभी चरणों में भेदभाव का सामना करती हैं जैसे- जन्म से पहले (शिशु), एक शिशु (कुपोषण, हत्या) के रूप में, एक बच्चे के रूप में (शिक्षा, घरेलू काम, बलात्कार, बाल विवाह), विवाह के बाद (दहेज, आर्थिक निर्भरता, सुरक्षा) और एक विधवा के रूप में (बहिष्कार, विरासत) आदि।
    • संयुक्त राष्ट्र मानव विकास रिपोर्ट (2016) लैंगिक असमानता सूचकांक के अनुसार, भारत 159 देशों में से 125वें स्थान पर है। जेंडर गैप इंडेक्स (वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम) 2017 में भारत की स्थिति 144 देशों में 108 वें स्थान पर है।
    • वर्ष 2016 में देश में सज़ा की कुल दर 46.2% थी, सरकारी आंँकड़ों के अनुसार, महिलाओं के खिलाफ अपराधों के मामलों में यह दर लगभग 20% थी।

    सरकारी पहल: कानूनी और संस्थागत ढांँचा

    • समानता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का सिद्धांत भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 में निहित है, अत: एक सुरक्षित कार्यस्थल एक महिला का कानूनी अधिकार है।
    • कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 सुप्रीम कोर्ट द्वारा वर्ष 1997 में जारी विशाखा दिशा-निर्देशों के आधार पर बनाया गया है। अधिनियम यह सुनिश्चित करता है कि विशेष रूप से महिलाओं को सभी कार्यस्थलों पर यौन उत्पीड़न से बचाया जाए, चाहे वह सार्वजनिक या निजी हों।
    • यह कानून अधिदिष्ट करता है कि 10 से अधिक कर्मचारियों वाली प्रत्येक कंपनी के पास यौन उत्पीड़न के खिलाफ एक नीति, एक बाहरी सदस्य के साथ एक प्रशिक्षित आंतरिक शिकायत समिति और यौन उत्पीड़न क्या है और संगठन के भीतर कैसे मदद लेनी चाहिये इस संदर्भ में कर्मचारियों को अनिवार्य रूप से प्रशिक्षत किया जाना चाहिये।
    • राष्ट्रीय महिला आयोग महिलाओं के लिये संवैधानिक और कानूनी सुरक्षा उपायों की समीक्षा करने और उपचारात्मक विधायी उपायों की सिफारिश करने के लिये वैधानिक निकाय है। यह बड़ी संख्या में महिलाओं से संबंधित शिकायतें प्राप्त करता है तथा कई मामलों में शीघ्र न्याय प्रदान करने के लिये मुकदमा दायर करता है।

    आगे की राह

    • भारतीय समाज में मुख्य रूप से लैंगिक चिंतन की आवश्यकता है। पितृसत्तात्मक समाज में शिक्षा और संवेदना की उतनी ही आवश्यकता है जितनी कि कानूनों और उनके प्रवर्तन की।
    • भारत में महिलाओं को आर्थिक स्वतंत्रता, प्रजनन पर नियंत्रण, पारिवारिक मामलों में एक मज़बूत आवाज़ और विधायिकाओं में आनुपातिक प्रतिनिधित्व की आवश्यकता है। सरकार को संसद और विधानसभाओं में महिलाओं को आरक्षण देने पर विचार करना चाहिये।
    • महिलाओं के खिलाफ हिंसक घटनाओं में सज़ा की दर को देखते हुए कहा जा सकता है कि अपराधियों ने महिलाओं की सुरक्षा से संबंधित कानूनों का उल्लंघन किया है। अत: न्याय वितरण प्रणाली की प्रभावशीलता के लिये सामाजिक वातावरण और धारणा में सुधार किये जाने की आवश्यकता है।
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