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  • 04 Nov 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहास

    ‘विश्व के सबसे बड़े जीवंत लोकतंत्र के रूप में भारत का उदय असाधारण है।’ इस तथ्य के आलोक में उन चुनौतियों पर चर्चा करें, जिनका सामना भारत द्वारा एक नव स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में किया गया। (250 शब्द)

    उत्तर

    दृष्टिकोण:

    • भारत के एक नव स्वतंत्र देश से विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में परिवर्तन होने के बाते में बताए।
    • उन बाहरी और आंतरिक दोनों चुनौतियों का उल्लेख करें जिनका सामना नव स्वतंत्र भारत द्वारा किया गया।
    • भारत की उन लोकतांत्रिक विशेषताओं के बारे में उल्लेख कीजिये, जिन्होंने भारत को एक राष्ट्र के रूप में जीवित रहने में मदद की।

    परिचय:

    • 15 अगस्त 1947 को भारत को औपनिवेशिक शासन से मुक्ति मिली तथा देश ने स्वयं को एक नए युग की दहलीज पर खड़ा पाया, जिसमें एक मज़बूत राष्ट्र का निर्माण पहली आवश्यकता थी।
    • जिन परिस्थितियों में भारत को अंग्रेज़ों से स्वतंत्रता मिली उनमें सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक समस्याओं से आज़ादी पाना मुश्किल था, ये कुछ ऐसे कारक रहे इन्होंने भारत की विकास यात्रा को निश्चित रूप से बाधित किया।
    • दूसरे विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद विश्व के सबसे बड़े जीवंत लोकतंत्र के रूप में भारत का उदय होना वास्तव में एक असाधारण घटना रही।
    • भारत की सफलता का एक हिस्सा शासन में लोगों की भागीदारी की ऐतिहासिक परंपरा में निहित रहा है अर्थात् यह कहा जा सकता है कि लोकतांत्रिक परंपरा पूरी तरह बाहर से आत्मसात/आयातित नहीं की गई है।

    संरचना:

    स्वतंत्रता के बाद भारत के समक्ष चुनौतियाँ:

    • आंतरिक चुनौतियाँ:
      • विभाजन और उसके परिणाम: विभाजन को बड़े पैमाने पर सांप्रदायिक हिंसा के रूप में चिह्नित किया गया। विभाजन से न केवल परिसंपत्तियों का विभाजन हुआ, बल्कि कश्मीर समस्या के मूल में शरणार्थी संकट भी उत्पन्न हुआ।
      • वृहद् स्तरीय गरीबी: आज़ादी के समय, भारत की लगभग 80% या लगभग 250 मिलियन आबादी गरीबी की समस्या का समाना कर रही थी। आकाल एवं भूख की भयावह स्थितियों ने भारत को खाद्य सुरक्षा के लिये बाह्य सहायता लेने के लिये विवश किया।
      • निरक्षरता: उस समय भारत की कुल जनसंख्या लगभग 340 मिलियन थी तथा साक्षरता का स्तर मात्र 12% या लगभग 41 मिलियन था।
      • निम्न आर्थिक क्षमता: स्थिर कृषि और क्षीण औद्योगिक आधार।
        • वर्ष 1947 में जब भारत को स्वतंत्रता प्राप्त हुई, भारत के सकल घरेलू उत्पाद में कृषि की भागीदारी 54% थी। जबकि एक सच यह है कि स्वतंत्रता के समय भारत की लगभग 60% जनसंख्या कृषि पर ही निर्भर थी।
        • केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित अर्थव्यवस्था के योजनाबद्ध विकास के चरण में , वार्षिक विकास दर 1950 के दशक से 1980 के दशक तक लगभग 3.5% (विकास की हिंदू दर) पर स्थिर रही, जबकि प्रति व्यक्ति आय वृद्धि औसत 1.3% थी।
      • भाषाई पुनर्गठन: ब्रिटिश भारतीय प्रांतों की सीमाओं का निर्धारण बिना किसी सांस्कृतिक और भाषाई सामंजस्य को ध्यान में रखे बिना बहुत ही अव्यवस्थित तरीके से किया गया था। भाषाई रूप से समान प्रांतों की निरंतर मांग के कारण अलगाववादी प्रवृत्तियों का उदय हुआ।
      • अलगाववादी आंदोलन: 1980 के दशक में पंजाब में खालिस्तान आंदोलन, पूर्वोत्तर में उग्रवाद और मध्य-पूर्वी भारत में नक्सल आंदोलन (1960) के रूप में भारत के समक्ष सबसे बड़ी आंतरिक सुरक्षा चुनौतियाँ उत्पन्न हुई।
      • आपातकाल: वर्ष 1975 का राष्ट्रीय आपातकाल, जिसमें जेपी आंदोलन को सरकार की प्रतिक्रिया के तौर पर भारतीय लोकतंत्र के काले चरण के रूप में देखा जाता है। इसने नागरिकों के मौलिक अधिकारों पर अंकुश लगाया एवं भारतीय लोकतांत्रिक साख की नींव को हिला दिया।
        • वर्ष 1973 से आर्थिक स्थिति में तीव्र गिरावट आई, बढ़ती बेरोज़गारी, प्रचंड मुद्रास्फीति और बुनियादी खाद्य एवं आवश्यक वस्तुओं की कमी के संयोजन ने गंभीर संकट पैदा किया।
    • बाह्य चुनौतियाँ:
      • शीत युद्ध के कारण वैश्विक विश्व व्यवस्था में उत्पन्न तनाव: अधिकांश विकासशील देश दो महाशक्तियों अमेरिका या सोवियत संघ के गुट में शामिल हो रहे थे। भारत द्वारा स्वयं को शीत युद्ध की राजनीति से दूर रहने और अपने आंतरिक विकास पर ध्यान केंद्रित करने के लिये गुटनिरपेक्षता की नीति का पालन किया गया।
      • शत्रुतापूर्ण पड़ोस: भारत को स्वतंत्रता के प्रारंभिक चरणों के दौरान पाकिस्तान (क्रमशः 1965, 1971) और चीन (1962) के साथ परिणामी युद्धों का सामना करना पड़ा। इससे न केवल भारत की वृद्धि बाधित हुई बल्कि क्षेत्रीय अस्थिरता की स्थिति भी उत्पन्न हुई।

    निष्कर्ष:

    • यहाँ इस बात पर ध्यान दिये जाने की आवश्यकता है कि धर्मनिरपेक्षता और संघवाद से संबंधित भारतीय संवैधानिक सिद्धांत भारतीय लोकतंत्र के मूलभूत सिद्धांत हैं। भारतीय लोकतंत्र अपनी प्रकति में एक विशाल सामाजिक-धार्मिक और सांस्कृतिक विविधता वाला एक विषम मॉडल है। यह और बात है कि भारत के लोकतांत्रिक स्वरूप के संदर्भ में पश्चिमी राजनीतिक विश्लेषकों द्वारा भविष्यवाणी की गई थी कि लोकतंत्र का भारतीय मॉडल लंबे समय तक कायम नहीं रह सकेगा।
    • हालाँकि यह भारत के अपने संवैधानिक सिद्धांतों के प्रति मज़बूत प्रतिबद्धता ही थी, जिसके कारण भारत न केवल एक राष्ट्र के रूप में जीवित रहा, बल्कि नए स्वतंत्र देशों के प्रतिनिधि के रूप में उभर कर भी सामने आया।
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