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Sambhav-2023

  • 11 Feb 2023 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भूगोल

    दिवस- 82

    प्रश्न.1 विश्व के उन प्रमुख क्षेत्रों की चर्चा कीजिए जो पशुपालन के लिए जाने जाते हैं। भारत में पशुपालन के सामने आने वाली चुनौतियों का मूल्यांकन कीजिये और उन्हें दूर करने के उपाय सुझाइये। (250 शब्द)

    प्रश्न.2 ओवरफिशिंग दुनिया भर के महासागरों और प्रमुख अपतटीय मछली पकड़ने के क्षेत्रों को प्रभावित करती है। चर्चा कीजिये कि अत्यधिक ओवरफिशिंग के मुद्दे को हल करने में जलीय कृषि कैसे योगदान दे सकती है। (150 शब्द)

    उत्तर

    उत्तर 1:

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • पशुपालन का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
    • विश्व में पशुपालन के लिये प्रसिद्ध क्षेत्रों की चर्चा कीजिये और भारत में पशुपालन के समक्ष आने वाली चुनौतियों का उल्लेख कीजिये।
    • भारत में पशुपालन के समक्ष आने वाली चुनौतियों को दूर करने के लिये संभावित उपायों का उल्लेख कीजिये।
    • समग्र और उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    • पशुपालन का तात्पर्य भोजन, फाइबर और अन्य उत्पादों के उत्पादन के उद्देश्य से विभिन्न पशुओं जैसे भैंस, भेड़, बकरी, मुर्गी और सुअर को पालना और उनकी देखभाल करना है।
    • पशुपालन में प्रजनन, भोजन, स्वास्थ्य देखभाल और विपणन सहित कई गतिविधियाँ शामिल होती हैं जिसके लिये विशेष ज्ञान और कौशल की आवश्यकता होती है।
    • समय के साथ प्रौद्योगिकी और पशु पोषण में प्रगति से पशुपालन की दक्षता और लाभप्रदता में सुधार हुआ है जिससे यह कई देशों की अर्थव्यवस्थाओं का एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्र बन गया है।

    मुख्य भाग:

    • पशुपालन, विश्व के कई क्षेत्रों में व्यापक रूप से प्रचलित है। पशुपालन के लिये जाने जाने वाले कुछ प्रमुख क्षेत्रों में निम्नलिखित शामिल हैं:
      • यूरोप: विशेष रूप से यूरोपीय संघ के देशों में पशुपालन का एक लंबा इतिहास रहा है और ये अपने डेयरी उत्पादों और बीफ वाले मवेशियों के लिये जाने जाते हैं।
      • उत्तरी अमेरिका: संयुक्त राज्य अमेरिका और कनाडा विश्व में मांस, डेयरी और अंडा उत्पादों के सबसे बड़े उत्पादकों में शामिल हैं।
      • दक्षिण अमेरिका: ब्राजील, अर्जेंटीना और उरुग्वे जैसे देश अपने मवेशियों और भेड़ों के बड़े झुंडों के लिये जाने जाते हैं, जिन्हें मांस और ऊन के लिये पाला जाता है।
      • एशिया: चीन, भारत और इंडोनेशिया जैसे देशों में मवेशियों, भैंसों, भेड़ों और बकरियों को प्रमुखता से पाला जाता है।
      • ओशियानिया: ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड कुछ पशु उत्पादों के प्रमुख उत्पादक हैं जिनमें ऊन, गोमांस और डेयरी उत्पाद शामिल हैं।
    • ये क्षेत्र अनुकूल जलवायु परिस्थितियों, चारा और चारागाह की उपलब्धता, अनुकूल सरकारी नीतियों एवं सांस्कृतिक प्रथाओं जैसे कारकों के कारण पशुपालन के लिये जाने जाते हैं।
    • भारत में पशुपालन के समक्ष विभिन्न चुनौतियाँ हैं जैसे:
      • बुनियादी ढाँचे का अभाव: भारत में पशु स्वास्थ्य देखभाल, आवास और पोषण के लिये सीमित सुविधाएँ उपलब्ध हैं, जिसके परिणामस्वरूप कम उत्पादकता और उच्च मृत्यु दर देखने को मिलती है।
      • पशुधन की खराब आनुवंशिक गुणवत्ता: भारत में दूध और मांस उत्पादन की कम क्षमता वाले मवेशियों और भैंसों की देशी नस्लों की अधिक संख्या है।
      • अपर्याप्त पशु चिकित्सा सेवाएँ: विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में प्रशिक्षित पशु चिकित्सकों की कमी होने के परिणामस्वरूप पशु स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
      • जलवायु परिवर्तन: भारत जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति संवेदनशील है जिसमें सूखा, बाढ़ और गर्मी की अधिकता शामिल है। इसका पशुधन के स्वास्थ्य और उत्पादकता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
      • बाज़ार तक उचित पहुँच का अभाव: कई किसानों को अपने उत्पादों के लिये बाज़ारों तक पहुँचने में कठिनाई का सामना करना पड़ता है, जिसके परिणामस्वरूप कम कीमत मिलने से इनकी आय सीमित होती है।चारागाहों की कमी: चारागाहों की कमी, पशुपालन के लिये एक बड़ी चुनौती है क्योंकि इससे पशुओं का स्वास्थ्य और उनकी उत्पादकता प्रभावित होती है। इससे पशुओं में कुपोषण के साथ इनका वजन कम हो सकता है, जिसके परिणामस्वरूप मांस और दूध का उत्पादन कम हो सकता है।
    • इन चुनौतियों से निपटने के लिये निम्नलिखित उपाय किये जा सकते हैं:
      • बुनियादी ढाँचे के विकास में निवेश करना: उत्पादकता में सुधार और पशुओं की मृत्यु दर को कम करने के लिये सरकार पशु स्वास्थ्य देखभाल, आवास और पोषण हेतु आधुनिक सुविधाओं के विकास में निवेश कर सकती है।
      • क्रॉसब्रीडिंग को बढ़ावा देना: उच्च उत्पादकता वाली नस्लों के साथ देशी नस्लों की क्रॉसब्रीडिंग करने से पशुधन की आनुवंशिक गुणवत्ता में सुधार हो सकता है जिससे दूध और मांस उत्पादन में वृद्धि हो सकती है।
      • पशु चिकित्सा सेवाओं का विस्तार करना: सरकार विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक पशु चिकित्सकों को प्रशिक्षण देने के साथ पशु चिकित्सा सेवाओं में सुधार के लिये निवेश कर सकती है।
      • जलवायु-अनुकूल प्रथाओं को अपनाना: पशुओं को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से बचाने के लिये किसानों को जलवायु-अनुकूल प्रथाओं जैसे सूखा प्रतिरोधी चारा और जल प्रबंधन रणनीतियों को अपनाने हेतु प्रोत्साहित किया जा सकता है।
      • बाज़ार पहुँच में सुधार करना: सरकार कुशल आपूर्ति श्रृंखला विकसित करके, परिचालन लागत कम करके और पशु उत्पादों के लिये उचित मूल्य प्रदान करने के माध्यम से किसानों के लिये बेहतर बाज़ार पहुँच की सुविधा प्रदान कर सकती है।
      • चारागाह भूमि में सुधार करना: चारागाह भूमि में सुधार हेतु किसान चारागाह क्षेत्र की देखभाल कर सकते हैं, इन क्षेत्रों से आक्रामक प्रजातियों को हटा सकते हैं तथा अपने पशुधन में विविधता लाने के साथ जल प्रबंधन में सुधार कर सकते हैं। यह चारागाह भूमि की उत्पादकता और स्थिरता में सुधार करने के साथ चारागाहों पर दबाव कम करने तथा पशुओं के स्वास्थ्य और कल्याण को सुनिश्चित करने में सहायक हो सकता है।

    निष्कर्ष

    पशुपालन न केवल भारत में बल्कि अन्य विकसित और विकासशील देशों में आजीविका का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है। भारत सरकार ने पशुपालन को प्रोत्साहित करने हेतु राष्ट्रीय गोकुल मिशन, राष्ट्रीय डेयरी विकास कार्यक्रम, राष्ट्रीय पशु रोग नियंत्रण कार्यक्रम जैसी विभिन्न पहलों को शुरू किया है। फिर भी इस क्षेत्र को अभी भी कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। भारत में पशुपालन में सुधार हेतु बुनियादी ढाँचे का विकास करना, क्रॉसब्रीडिंग को बढ़ावा देना, पशु चिकित्सा सेवाओं का विस्तार करना, जलवायु-अनुकूल प्रथाओं को अपनाना और बाज़ार पहुँच में सुधार करना आदि पर ध्यान देना महत्त्वपूर्ण है।


    उत्तर 2:

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • ओवरफिशिंग के बारे में संक्षिप्त परिचय दीजिये।
    • उल्लेख कीजिये कि ओवरफिशिंग से विश्व के अपतटीय मत्स्यन क्षेत्र कैसे प्रभावित होते हैं।
    • चर्चा कीजिये कि जलीय कृषि (एक्वाकल्चर) से किस प्रकार ओवरफिशिंग के मुद्दों का समाधान हो सकता है।
    • प्रभावी निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    ओवरफिशिंग का तात्पर्य समुद्र से अधिक मछली पकड़ना है जिससे मछलियों की संख्या में गिरावट आती है। ऐसा तब होता है जब मछली पकड़ने की गतिविधियाँ निर्धारित सीमा से अधिक हो जाती हैं। इसका समुद्र के पारिस्थितिकी तंत्र के साथ मछली पकड़ने वाले समुदायों की आजीविका पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है।

    मुख्य भाग:

    • ओवरफिशिंग से महासागरों के साथ प्रमुख अपतटीय मत्स्यन क्षेत्र निम्नलिखित तरीकों से प्रभावित होते हैं जैसे:
      • मछलियों की संख्या में कमी आना: ओवरफिशिंग से प्रमुख मछली प्रजातियों की कमी होने से समुद्र की समग्र जैव विविधता का नुकसान होता है।
      • खाद्य श्रृंखला में परिवर्तन होना: ओवरफिशिंग से खाद्य श्रृंखला में भी परिवर्तन हो सकता है, क्योंकि कुछ प्रजातियों के समाप्त होने से समुद्र के खाद्य जाल में बदलाव हो सकता है जिससे अन्य प्रजातियों के साथ महासागर के पारिस्थितिकी तंत्र पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
      • महासागर के स्वास्थ्य को नुकसान होना: ओवरफिशिंग से समुद्र की रासायनिक और भौतिक विशेषताओं में परिवर्तन होने से अन्य प्रजातियों के लिये जीवित रहना अधिक कठिन हो सकता है।
      • मछली पकड़ने वाले समुदायों की आजीविका प्रभावित होना: ओवरफिशिंग से मछली पकड़ने वाले समुदायों की आजीविका भी प्रभावित हो सकती है क्योंकि मछली की घटती संख्या के परिणामस्वरूप इसके लिये प्रतिस्पर्धा में वृद्धि हो सकती है।
      • आर्थिक प्रभाव: ओवरफिशिंग के महत्त्वपूर्ण आर्थिक प्रभाव भी हो सकते हैं क्योंकि मछलियों की घटती संख्या के परिणामस्वरूप मत्स्यन उद्योगों के लिये राजस्व कम हो सकता है और मछली पकड़ने वाले समुदायों की आजीविका नकारात्मक रूप से प्रभावित हो सकती है।
    • इसलिये महासागरों के स्वास्थ्य और मछली पकड़ने वाले समुदायों की आजीविका की रक्षा के लिये, ओवरफिशिंग को कम करने के साथ यह सुनिश्चित करना महत्त्वपूर्ण है कि मत्स्यन को सतत् बनाया जाए।
    • ओवरफिशिंग के मुद्दों को हल करने में एक्वाकल्चर का योगदान:
      • एक्वाकल्चर एक वृद्धिशील उद्योग है जो ओवरफिशिंग के मुद्दे को हल करने में योगदान दे सकता है।
      • ओवरफिशिंग एक प्रमुख वैश्विक चिंता का विषय है क्योंकि इससे मछली की संख्या में कमी आने के साथ विश्व के महासागरों के समग्र स्वास्थ्य को नुकसान पहुँच सकता है।
      • एक्वाकल्चर के तहत नियंत्रित वातावरण (जैसे कि टैंक या तालाबों) में मत्स्य पालन होने से मत्स्यन के पारंपरिक तरीकों का एक स्थायी विकल्प मिलता है।
      • एक्वाकल्चर से ओवरफिशिंग के मुद्दे का समाधान हो सकता है क्योंकि इससे प्राकृतिक रूप से मिलने वाली मछलियों पर निर्भरता कम होगी।
      • एक्वाकल्चर से अन्य देशों से मछलियों के आयात की आवश्यकता कम होने के साथ स्थानीय समुदायों के लिये इसका अधिक विश्वसनीय स्रोत मिल सकता है।
      • एक्वाकल्चर, मत्स्य पालन का अधिक कुशल और टिकाऊ तरीका है।
      • इससे समुद्री पारिस्थितिक तंत्र के स्वास्थ्य को संरक्षित करने के साथ इसकी दीर्घकालिक स्थिरता सुनिश्चित करने में मदद मिल सकती है।
      • इसके अलावा एक्वाकल्चर से अनुसंधान और नवाचार के अवसर मिलने से ओवरफिशिंग के मुद्दे का समाधान हो सकता है।
      • विभिन्न एक्वाकल्चर विधियों और तकनीकों का प्रयोग करके वैज्ञानिक और उद्योग विशेषज्ञ इस बात पर मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्राप्त कर सकते हैं कि मत्स्यन को और अधिक टिकाऊ कैसे बनाया जाए, जिससे विश्व के महासागरों पर मत्स्यन के नकारात्मक प्रभावों को कम किया जा सके।

    निष्कर्ष:

    एक्वाकल्चर एक महत्त्वपूर्ण उद्योग है जिसमें ओवरफिशिंग के मुद्दे का समाधान करने की क्षमता है। मत्स्यन का एक स्थायी स्रोत प्रदान करके, पर्यावरण पर मत्स्यन के प्रभाव को कम करके और अनुसंधान एवं नवाचार के अवसर प्रदान करने के माध्यम से एक्वाकल्चर द्वारा विश्व के महासागरों और मछलियों की दीर्घकालिक स्थिरता सुनिश्चित करने में मदद मिल सकती है। मछलियों की बढ़ती मांग के आलोक में इस क्षेत्र में एक्वाकल्चर की महत्त्वपूर्ण भूमिका होगी।

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