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Sambhav-2023

  • 21 Dec 2022 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहास

    दिवस- 37

    प्रश्न.1 छठी शताब्दी ईसा पूर्व के पूर्वार्द्ध में ईरानी आक्रमण के बाद के भारत-ईरान संबंधों पर चर्चा कीजिये। (150 शब्द)

    प्रश्न.2 सिकंदर के अभियान से संबंधित अभिलेख हमें भारत के ऐतिहासिक कालक्रम और ऐतिहासिक तथ्यों के संबंध में जानकारी प्रदान करते हैं। भारत पर सिकंदर के आक्रमण के वृत्तांत की चर्चा कीजिये। इसके क्या प्रभाव पड़े थे? (150 शब्द)

    उत्तर

    उत्तर 1:

    दृष्टिकोण:

    • प्राचीन भारत में हुए ईरानी आक्रमण का परिचय दीजिये।
    • ईरानी आक्रमण के बाद के भारत-ईरान संबंधों पर चर्चा कीजिये।
    • उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    ईरानियों ने छठी शताब्दी ईसा पूर्व में भारत पर आक्रमण किया था और इस समय राजा डेरियस प्रथम ईरान का शासक था। इन्होंने हिंदुकुश दर्रा के माध्यम से आक्रमण किया और 516 ईसा पूर्व में भारत के उत्तर-पश्चिमी सीमांत प्रांत, सिंध और पंजाब के क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया था। सिकंदर के भारत पर आक्रमण करने तक, ये क्षेत्र ईरानी साम्राज्य के अधीन रहे।

    मुख्य भाग:

    • उत्तर-पूर्व भारत में छोटी रियासतें और गणराज्य धीरे-धीरे मगध साम्राज्य में विलय हो रहे थे जबकि उत्तर-पश्चिम भारत में कंबोज, गंधार जैसी कई छोटी रियासतें आपस में संघर्षरत थीं। यह क्षेत्र समृद्ध, उपजाऊ और अधिक आबादी वाला भी था और यहाँ हिंदूकुश के दर्रों के माध्यम से आसानी से प्रवेश किया जा सकता था।
    • ईरान के हखामनी शासक, डेरियस ने 516 ईसा पूर्व में उत्तर-पश्चिम भारत में प्रवेश किया और पंजाब, सिंध के पश्चिम और सिंध क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया और इसे ईरान के बीसवें प्रांत या क्षत्रप के रूप में स्थापित किया।
    • भारतीय क्षत्रपों में सिंध, उत्तर-पश्चिम सीमांत प्रांत और पंजाब का वह हिस्सा शामिल था जो सिंधु के पश्चिम में स्थित था। ऐसा प्रतीत होता है कि सिकंदर के आक्रमण तक भारत ईरानी साम्राज्य का हिस्सा बना रहा।

    संपर्क के परिणाम:

    • राजनीतिक: इससे इन क्षेत्रों में भारत की कमजोरी प्रतिबिंबित हुई जिससे यहाँ सिकंदर की विजय का मार्ग प्रशस्त हुआ।
      • भारतीय प्रांतों में फारसियों द्वारा शुरू की गई क्षत्रप प्रणाली ने बाद के राजवंशों विशेषकर शक और कुषाणों के लिये मॉडल के रूप में कार्य किया।
    • व्यापार: भारत के व्यापारियों की पहुँच विशाल फारसी साम्राज्य में दूर-दराज के स्थानों तक हुई।
      • भारत-ईरानी संपर्क लगभग 200 वर्षों तक रहा। इससे भारत-ईरानी व्यापार और वाणिज्य को बढ़ावा मिला।
      • उत्तर-पश्चिम सीमांत क्षेत्र में मिले ईरानी सिक्के भारत और ईरान के व्यापार को प्रतिबिंबित करते हैं।
    • विदेशियों का भारतीय भूमि पर बसना: ग्रीक, फारसी, तुर्की आदि जैसे विदेशी लोग, भारत के उत्तर-पश्चिमी भागों में बस गए और समय बीतने के साथ वे पूरी तरह से भारतीय संस्कृति का हिस्सा बन गए।
    • कला और संस्कृति पर प्रभाव: अशोक ने ईरानी रीति-रिवाजों का पालन करते हुए उन्हें पत्थर के स्तंभों पर अंकित करके इन आदर्शों का प्रचार किया। इनसे भारतीयों ने पॉलिश करने की कला भी सीखी।
      • इसके सांस्कृतिक परिणाम अधिक महत्त्वपूर्ण थे। ईरानी विद्वान भारत में लेखन का एक नया रूप लेकर आए जिसे खरोष्ठी लिपि के रूप में जाना जाने लगा।
        • उत्तर-पश्चिम भारत में ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी के अशोक के कुछ शिलालेख इस लिपि में लिखे गए थे। यह लिपि तीसरी शताब्दी ई. तक देश में प्रयुक्त होती रही।
      • मौर्य मूर्तिकला पर ईरानी प्रभाव स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।
        • अशोक के समय के स्मारक, विशेष रूप से घंटी के आकार का शीर्ष, कुछ हद तक ईरानी मॉडल से प्रेरित है।
        • अशोक के आदेशों की प्रस्तावना के साथ-साथ उनमें प्रयुक्त कुछ शब्दों में भी ईरानी प्रभाव का पता लगाया जा सकता है।
          • उदाहरण के लिये ईरानी शब्द डिपी के लिये अशोक के समय में लिपि शब्द का प्रयोग किया।

    निष्कर्ष:

    भारत पर ईरानी आक्रमण के कुछ दीर्घकालिक प्रभाव पड़े। इसके अलावा ऐसा प्रतीत होता है कि ईरानियों के माध्यम से ही यूनानियों को भारत की अपार संपत्ति के बारे में जानकारी मिली जिसके परिणामस्वरूप भारत पर सिकंदर के आक्रमण का मार्ग प्रशस्त हुआ।


    उत्तर 2:

    दृष्टिकोण:

    • भारत पर सिकंदर के आक्रमण का परिचय दीजिये।
    • बताइए की सिकंदर के अभियान से हमें भारत के ऐतिहासिक कालक्रम के बारे किस प्रकार पता चलता है। भारत पर सिकंदर के आक्रमण से पड़ने वाले प्रभावों की भी चर्चा कीजिये।
    • उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    चौथी शताब्दी ई.पू. में यूनानियों और ईरानियों ने विश्व में सर्वोच्चता स्थापित करने के लिये युद्ध किये। मकदूनिया के सिकंदर के नेतृत्व में यूनानियों ने अंततः ईरानी साम्राज्य को नष्ट कर दिया। सिकंदर ने एशिया माइनर और इराक पर विजय प्राप्त करने के साथ ईरान पर भी विजय प्राप्त की और भारत की ओर कूच किया। हेरोडोटस (जिन्हें इतिहास का पिता कहा जाता है) और अन्य यूनानी लेखकों ने भारत को एक समृद्ध भूमि के रूप में चित्रित किया था,जिससे सिकंदर भारत पर आक्रमण करने के लिये प्रेरित हुआ।

    मुख्य भाग:

    भारत का ऐतिहासिक कालक्रम:

    • ईरान की विजय के पश्चात सिकंदर ने काबुल होते हुए 326 ईसा पूर्व में खैबर दर्रे के माध्यम से भारत की ओर कूच किया।
    • सिकंदर ने 326 ईसा पूर्व में भारतीय सम्राट पोरस के खिलाफ हाईडेस्पीज का युद्ध किया ।
      • उसने पोरस के साथ गठबंधन किया और उसे अपने राज्य का क्षत्रप नियुक्त किया।
    • यूनानी इतिहासकार एरियन के अनुसार उस समय "युद्ध कला में भारतीय, समकालीन अन्य राष्ट्रों से कहीं बेहतर थे।"
    • मेगस्थनीज और अन्य ग्रीक लेखकों ने समकालीन भारतीय समाज के बारे में बहुत कुछ लिखा है। इस संबंध में उनके विवरण मूल्यवान साबित हुए हैं।
    • उस समय नंद वंश के शासन वाले मगध साम्राज्य के पास सिकंदर की सेना से कहीं अधिक सेना थी। अपने अभियान से पीछे हटने के लिये मजबूर होने के कारण, पूर्वी भारत को जीतने का सिकंदर का सपना अधूरा रह गया।
    • समुद्र के भूगोल में सिकंदर की काफी रूचि थी। उसने अपने एक बेड़े को तट का पता लगाने और सिंधु के मुहाने से लेकर यूफ्रेट्स तक के बंदरगाहों की खोज करने के लिये भेजा था।
      • सिकंदर के इतिहासकारों के लेखों से बहुमूल्य भौगोलिक विवरण प्राप्त होते हैं। सिकंदर के अभियान से संबंधित अभिलेख बाद की घटनाओं के लिये भारतीय कालक्रम का आधार प्रदान करते हैं।
    • सिकंदर के इतिहासकारों के लेखों से हमें सामाजिक और आर्थिक परिस्थितियों के बारे में भी महत्त्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती हैं।
      • इन लेखों से हमें सती प्रथा, बहुविवाह और उत्तर-पश्चिम भारत में बैलों की अच्छी नस्ल के बारे में जानकारी मिलती है। बढ़ईगीरी की कला भारत में सबसे समृद्ध शिल्प कला थी।

    सिकंदर के आक्रमण के प्रभाव:

    • आर्थिक और राजनीतिक जुड़ाव: सिकंदर के आक्रमण से प्राचीन यूरोप और भारत संपर्क में आए जिससे विभिन्न क्षेत्रों में भारत और ग्रीस के बीच सीधे संपर्क स्थापित हुआ।
      • सिकंदर के अभियान से भूमि और समुद्र के चार अलग-अलग मार्गों के खुलने के साथ व्यापार के लिये मौजूदा सुविधाओं में वृद्धि हुई।
    • नगरों और सभ्यता का विकास: सिकंदर के आक्रमण से उत्तर-पश्चिम क्षेत्र में और अधिक यूनानी बस्तियों की स्थापना हुई। उनमें से सबसे महत्त्वपूर्ण शहर झेलम क्षेत्र में बऊकेफला और सिंध में अलेक्जेंड्रिया थे।
      • हालाँकि इन क्षेत्रों को मौर्य वंश के शासकों ने जीत लिया था, फिर भी यहाँ पर यूनानियों ने चंद्रगुप्त मौर्य और अशोक दोनों के अधीन रहना जारी रखा।
    • मौर्य वंश के विस्तार में सहायक: उत्तर-पश्चिम भारत के छोटे राज्यों को नष्ट करके सिकंदर के आक्रमण ने उस क्षेत्र में मौर्य साम्राज्य के विस्तार का मार्ग प्रशस्त किया।
    • सिकंदर की सैन्य शक्ति में कार्य करते हुए चंद्रगुप्त मौर्य ने कुछ ऐसी जानकारियाँ हासिल की, जिससे उसे नंद वंश की शक्ति को नष्ट करने में सहायता मिली थी।
    • कला और संस्कृति: भारतीयों ने यूनानियों से सुंदर मूर्तियाँ और सिक्के बनाने की कला सीखी।
      • गांधार कला शैली, ग्रीक कला का प्रत्यक्ष परिणाम है।
      • भारतीयों ने यूनानी खगोलशास्त्रियों से भी बहुत कुछ सीखा।
      • दूसरी ओर दर्शन से प्रभावित होकर कई यूनानियों ने हिंदू धर्म को अपना लिया।

    निष्कर्ष:

    सिकंदर के आक्रमण से भारत के सामाजिक-राजनीतिक और आर्थिक आयामों पर गहरा प्रभाव पड़ा। इससे भारतीय जीवन शैली में नए लोगों के शामिल होने से भारत में विभिन्न जातियों और सामाजिक प्रथाओं का उदय हुआ।

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