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Sambhav-2023

  • 16 Dec 2022 सामान्य अध्ययन पेपर 1 संस्कृति

    दिवस- 33

    प्रश्न.1 भारत और अन्य संस्कृतियों के बीच संपर्क होने से विश्व में भारतीय धर्मों के प्रसार के परिणामस्वरूप विश्व पर भारतीय विचारों और आचरण का व्यापक प्रभाव पड़ा है। चर्चा कीजिये। (250 शब्द)

    प्रश्न.2 भारत के प्राचीन इतिहास के स्रोत के रुप में अरबी और चीनी यात्रियों के योगदान की चर्चा कीजिये। (250 शब्द)

    उत्तर

    उत्तर :

    दृष्टिकोण:

    • बताइए कि भारत ने भले ही किसी देश पर आक्रमण नहीं किया हो लेकिन भारत की संस्कृति और धर्म वैश्विक स्तर पर प्रसारित हुए हैं।
    • विदेशों तक भारतीय संस्कृति कैसे पहुँची, को बताते हुए इस संस्कृति और धर्म की उपस्थिति पर चर्चा कीजिये।
    • उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    विदेशों में भारतीय संस्कृति का व्यापक प्रभाव है, हालांकि इसने अपने अतीत में कभी किसी देश पर आक्रमण नहीं किया है। कई छोटी संस्कृतियाँ विकसित हुईं लेकिन वे छोटे क्षेत्रों तक ही सीमित रहीं। भारतीय संस्कृति को प्रथम विश्व संस्कृति के रूप में जाना जा सकता है।

    मुख्य भाग:

    सिंधु घाटी सभ्यता से ही विभिन्न यात्रियों, व्यापारियों, मिशनरियों और शाही राजनयिक मिशन आदि के माध्यम से भारत, बाहरी विश्व के संपर्क में है। जैसे:

    • रोमा (बंजारे) ईरान और इराक के रास्ते तुर्की और अन्य दूर-दराज के स्थानों पर गए। वे यूरोप भी गए जहाँ वे जिप्सी या खानाबदोश के रुप में पहचाने जाने लगे।
    • व्यापारिक गतिविधियाँ वियतनाम, इटली और चीन के साथ शुरू हुईं। व्यापार की खोज में इन लोगों ने हमारी समृद्ध संस्कृति की विरासत को इन देशों तक पहुँचाया।
    • अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रसार के लिये अपने बेटे और बेटी को श्रीलंका भेजा।
    • पहली शताब्दी ईसा पूर्व में भारतीय व्यापारियों ने सोने की तलाश में इंडोनेशिया और कंबोडिया जैसे देशों की यात्रा की।
    • कलिंग वंश ने श्रीलंका के साथ व्यापारिक संबंध स्थापित किये। विभिन्न विदेशी यात्रियों की भारत यात्रा और भिक्षुओं और मिशनरियों की विदेश यात्राओं के कारण संस्कृतियों का आदान प्रदान हुआ।

    भारत और अन्य संस्कृतियों के बीच संपर्क ने विश्व में भारतीय धर्मों के प्रसार का नेतृत्व किया है, जिसके परिणामस्वरूप प्राचीन काल में दक्षिण पूर्व और पूर्वी एशिया पर भारतीय विचार और आचरण का व्यापक प्रभाव पड़ा है और हाल के वर्षों में, भारतीय धर्मों का यूरोप और उत्तरी अमेरिका में भी प्रसार हुआ है।

    विदेशों में हिंदू धर्म:

    • थाईलैंड में तीसरी और चौथी शताब्दी ईस्वी में ब्राह्मण छवियों और हिंदू मंदिरों का निर्माण शुरू हो गया था। थाईलैंड से प्राप्त पुरानी छवियाँ भगवान विष्णु से मिलती-जुलती हैं।
    • वियतनाम में चाम लोगों ने बड़ी संख्या में हिंदू मंदिरों का निर्माण किया। चाम लोग शिव, गणेश, सरस्वती, लक्ष्मी, पार्वती और लोकेश्वर की पूजा करते थे।
    • कंबोडिया में, चंपा (अन्नम) और कंबोज (कंबोडिया) के प्रसिद्ध राज्यों पर भारतीय मूल के हिंदू राजाओं का शासन था।
    • मलेशिया में केदाह और वेलेजली प्रांत में शिव की उपासना के साक्ष्य मिले हैं।
    • यहाँ से त्रिशूल वाली नारी मूर्तियाँ भी मिली हैं। ग्रेनाइट पत्थर से बने नंदी का सिर, दुर्गा की छवि, गणेश और शिवलिंग की छवि भी खुदाई में मिली हैं।
    • हाल ही में शांति और सद्भाव के प्रतीक के रूप में भारतीय डायस्पोरा और भारतीय संस्कृति के प्रभाव से प्रेरित होकर जेबेल अली गाँव (UAE) में भारतीय और अरबी वास्तुकला के मिश्रण वाले एक भव्य नए हिंदू मंदिर का उद्घाटन किया गया है, जिससे सहिष्णुता, शांति और सद्भाव का एक शक्तिशाली संदेश गया है।

    विदेश में बौद्ध धर्म:

    • विक्रमशिला विश्वविद्यालय के प्रमुख आचार्य अतिश, 11वीं शताब्दी में तिब्बत गए और तिब्बत में बौद्ध धर्म को एक मजबूत आधार दिया।
      • एक तिब्बती मंत्री थोन्मी सम्भोत नालंदा में एक छात्र थे। वापस जाने के बाद उन्होंने तिब्बत में बौद्ध धर्म का प्रचार किया। इससे बड़ी संख्या में तिब्बतियों ने बौद्ध धर्म ग्रहण किया। यहाँ तक कि यहाँ का राजा भी बौद्ध बन गया और बौद्ध धर्म को राज्य धर्म घोषित कर दिया था।
    • सम्राट अशोक ने भारत के बाहर बौद्ध धर्म के प्रचार के लिये काफी प्रयास किये। उन्होंने बुद्ध के संदेश के प्रसार हेतु अपने बेटे महेंद्र और बेटी संघमित्रा को श्रीलंका भेजा था। लगभग 200 वर्षों तक, श्रीलंका के लोगों ने महेंद्र द्वारा प्रेषित बौद्ध धर्मग्रंथों की शिक्षाओं को संरक्षित रखा।
      • दीपवंश और महावंश को श्रीलंकाई बौद्ध ग्रंथों के रुप में माना जाता है।
    • कई चीनी और भारतीय विद्वान बौद्ध धर्म के दर्शन का प्रचार करने के लिये प्राचीन रेशम मार्गों से यात्रा करते थे।
    • बौद्ध धर्म चीन से होते हुए कोरिया पहुँचा। सुन्डो पहले बौद्ध भिक्षु थे जिन्होंने 352 ईस्वी में बुद्ध की छवि और उनके सूत्रों के साथ कोरिया में प्रवेश किया था। उसके बाद 384 ईस्वी में आचार्य मल्लानंद वहाँ पहुँचे।
    • जापान में बौद्ध धर्म को राज्य धर्म का दर्जा दिया गया और हजारों जापानी बौद्ध भिक्षु बन गए।

    विदेश में जैन धर्म:

    • दशकों पहले कई जैन व्यवसायी परिवार पूर्वी अफ्रीका में जाकर बस गए थे। भारत की स्वतंत्रता के बाद, ईदी अमीन के शासन में पूर्वी अफ्रीका के युगांडा से सभी दक्षिण एशियाई लोगों के निष्कासन के दौरान कुछ जैन जाकर ग्रेट ब्रिटेन में बस गए।
    • कोबे (जापान) में जैन लोगों की हीरे के व्यापार में काफी भागीदारी है। वर्ष 1965 में नागरिक अप्रवासन कानून में बदलाव के बाद जैनियों ने उत्तरी अमेरिका में प्रवास करना शुरू किया।

    विदेशों में भारतीय संस्कृति के अन्य पहलू:

    • विश्व में पापुआ न्यू गिनी (839) के बाद भारत (780 भाषाएँ) में सबसे अधिक भाषाएँ हैं। संस्कृत जो भारत से उत्पन्न हुई है, सभी यूरोपीय भाषाओं की जननी है।
    • हजारों संस्कृत पुस्तकों का चीनी भाषा में अनुवाद किया गया है। जापान में संस्कृत को पवित्र भाषा के रूप में स्वीकार किया गया। जापानी विद्वानों में आज भी संस्कृत सीखने की रूचि रहती है।
    • बंगाली भाषा, बांग्लादेश की आधिकारिक भाषा भी है।
    • तमिल भाषा श्रीलंका और सिंगापुर की आधिकारिक भाषा भी है। म्यांमार में लोगों ने अपनी खुद की पालि भाषा विकसित की और पालि के अपने संस्करण में बौद्ध और हिंदू धर्मग्रंथों का अनुवाद किया।
    • तिब्बत में थोन्मी सम्भोत ने संस्कृत व्याकरण लिखा, जो पाणिनि द्वारा लिखे गए व्याकरण पर आधारित बताया जाता है। साथ ही 9600 संस्कृत पुस्तकों का तिब्बती में अनुवाद किया गया।
    • श्रीलंका में, पालि उनकी साहित्यिक भाषा बन गई। थाईलैंड में, थाई साम्राज्यों को द्वारवती, श्रीविजय, सुखोदय और अयुथिया जैसे संस्कृत नाम दिये गए थे।

    निष्कर्ष:

    संस्कृति और धर्म जीवन के ऐसे आयाम हैं जिसे लोगों ने अपनी सुविधा और स्थान के साथ प्रचलित स्थानीय कारकों के आधार पर अपनाया है। यद्यपि भारत के विभिन्न धर्म और भाषाएँ विदेशों में प्रसारित हुई हैं लेकिन स्थानीय कारकों से भी यह बड़े पैमाने पर प्रभावित हैं।


    उत्तर 2:

    परिचय:

    भारतीय विश्वविद्यालय सांस्कृतिक अंतःक्रिया के सबसे महत्वपूर्ण केंद्र थे। भारत में आने वाले और जाने वाले यात्रियों ने सांस्कृतिक संपर्क में भूमिका निभाई। विभिन्न भारतीय यात्री जैसे शांतरक्षित (जिन्होंने तिब्बत में बौद्ध धर्म का प्रचार किया) और भारत में विदेशी यात्री जैसे ह्वेन- त्सांग (एक चीनी बौद्ध यात्री जिसने नालंदा में दो साल तक अध्ययन किया) ने इसमें योगदान दिया।

    भारत के प्राचीन इतिहास का पता लगाने में अरबी और चीनी यात्रियों का योगदान अतुलनीय है।

    मुख्य भाग:

    प्राचीन और मध्यकाल में भारत आने वाले प्रमुख विदेशी यात्री और उनका योगदान:

    ग्रीस के यात्री:

    • मेगस्थनीज (ग्रीस; 302-298 ईसा पूर्व) सीरिया के सेल्यूकस निकेटर का राजदूत था और उसने चंद्रगुप्त मौर्य के दरबार का दौरा किया था। उसने इंडिका नामक पुस्तक लिखी जिसमें चंद्रगुप्त मौर्य के शासनकाल की चर्चा की गई है।
    • डायमेकस (300-273 ईसा पूर्व): इसने भारत पर व्यापक रूप से लिखा है और भौगोलिक संदर्भ में इसके लेखन को देखा जाता है। वह बिंदुसार के समकालीन था।

    चीनी यात्री:

    • फाह्यान चीन (405-411 ई.): यह भारत आने वाला पहला चीनी तीर्थयात्री था। उसने एक यात्रा वृत्तांत "बौद्ध साम्राज्यों का अभिलेख" संकलित किया। उसने चंद्रगुप्त द्वितीय के शासनकाल के दौरान भारत का दौरा किया।
    • ह्वेनत्सांग (630-645 ईस्वी): इसने अपनी पुस्तक सी-यू-की या 'रिकॉर्ड्स ऑफ वेस्टर्न वर्ल्ड' में अपने अनुभव लिखे। वह हर्षवर्धन के समकालीन था।

    अरब के यात्री:

    • अल-मसूदी (957 ई.): उसने अपनी पुस्तक मुरुज-उल-ज़ेहाब में भारत के बारे में विस्तार से बताया है।
    • अल-बरूनी (1024-1030 ई.): वह गजनी के महमूद के साथ भारत आया। इसकी पुस्तक 'तहकीक-ए-हिंद' भारत के धर्म, इतिहास, भूगोल, विज्ञान और गणित सहित भारतीय जीवन के विभिन्न पहलुओं से संबंधित है। उसने किताब-उल-हिंद भी लिखी थी।
    • इब्नबतूता (मोरक्को; 1333-1347 ई.): उसने 'रेहला' नामक पुस्तक लिखी। यह किताब मुहम्मद-बिन तुगलक के वंश और उसके समय की आर्थिक, सामाजिक और भौगोलिक स्थिति से संबंधित है।
    • अब्दुर रज़्ज़ाक (1443-1444 ई.): वह तिमुरिद राजवंश के शाहरूख का राजदूत था, जो कालीकट में जमोरिन के दरबार में आया। उसने अपनी पुस्तक में विजयनगर साम्राज्य के देवराय द्वितीय के शासन के बारे में विवरण दिया है।

    निष्कर्ष:

    प्राचीन काल से ही भारत का विविधतापूर्ण समाज और समृद्ध इतिहास रहा है। भारत में विदेशी यात्रियों के आने और यहाँ से विदेशों में यात्रियों की आवाजाही से न केवल भारतीय ज्ञान और संस्कृति को व्यापक पहचान मिली बल्कि एक समग्र संस्कृति भी विकसित हुई जो विभिन्न समाजों में प्रचलित है।

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