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Sambhav-2023

  • 04 Mar 2023 सामान्य अध्ययन पेपर 3 पर्यावरण

    दिवस- 100

    प्रश्न.1 जैव विविधता अभिसमय (Convention on Biological Diversity) पर चर्चा कीजिये। भारत सरकार ने अपनी जैव विविधता विरासत को चोरी और अवैध व्यापार से बचाने के लिए क्या उपाय किये हैं? (250 शब्द)

    प्रश्न.2 LiFE के बारे में बताते हुए भारत तथा विश्व स्तर पर सतत् विकास प्राप्त करने के क्रम में इसकी क्षमता की चर्चा कीजिये। (150 शब्द)

    उत्तर

    उत्तर: 1

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • जैव विविधता अभिसमय के बारे में संक्षिप्त परिचय दीजिये।
    • जैव विविधता की रक्षा के लिये भारत सरकार द्वारा किये गए उपायों पर चर्चा कीजिये।
    • समग्र और उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    जैव विविधता अभिसमय एक अंतर्राष्ट्रीय संधि है जिसे वर्ष 1992 में रियो डी जनेरियो में आयोजित पर्यावरण और विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCED) के दौरान अपनाया गया था। CBD का उद्देश्य विश्व की जैव विविधता का संरक्षण करना, इसके सतत् उपयोग को बढ़ावा देना, आनुवंशिक संसाधनों के उपयोग से होने वाले लाभों का उचित और समान बंटवारा करना और प्रजातियों के अस्तित्व के लिये आवश्यक पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण को सुनिश्चित करना है।

    मुख्य भाग:

    CBD के तीन मुख्य उद्देश्य हैं:

    • जैव विविधता का संरक्षण करना: इसका उद्देश्य पारिस्थितिकी तंत्र, प्रजातियों और आनुवंशिक विविधता सहित जैव विविधता का संरक्षण करना है। इस उद्देश्य में संकटग्रस्त प्रजातियों और उनके आवासों की पहचान एवं संरक्षण करना, संरक्षित क्षेत्रों की स्थापना करना तथा स्थायी भूमि एवं संसाधन प्रबंधन प्रथाओं को बढ़ावा देना शामिल है।
    • जैविक संसाधनों का सतत् उपयोग करना: इसमें मानव कल्याण और आर्थिक विकास के लिये जैविक संसाधनों के सतत् उपयोग पर बल दिया गया है। इस उद्देश्य में संरक्षण सिद्धांतों के अनुरूप स्थायी कृषि, वानिकी और मत्स्य पालन के साथ-साथ जैव प्रौद्योगिकी के विकास और आनुवंशिक संसाधनों के अन्य अनुप्रयोगों को बढ़ावा देना शामिल है।
    • प्राप्त होने वाले लाभों का उचित और न्यायसंगत बंटवारा किया जाना: यह आनुवंशिक संसाधनों के उपयोग से होने वाले लाभों के उचित और समान रूप से साझा करने पर केंद्रित है। इस उद्देश्य में पहुँच और लाभ-साझाकरण तंत्र की स्थापना शामिल है जिससे यह सुनिश्चित होता है कि आनुवंशिक संसाधन वाले देशों और समुदायों को इनके उपयोग से होने वाले लाभों का उचित हिस्सा प्राप्त हो।

    भारत सरकार ने अपनी जैव विविधता विरासत को चोरी और अवैध व्यापार से बचाने के लिये कई उपाय किये हैं जैसे:

    • जैव विविधता अधिनियम, 2002: यह अधिनियम जैव विविधता के संरक्षण, इसके घटकों के सतत् उपयोग और जैविक संसाधनों के उपयोग से उत्पन्न होने वाले लाभों के उचित और न्यायसंगत बंटवारे का प्रावधान करता है। यह जैविक संसाधनों तक पहुँच को विनियमित करने और उनके उपयोग से उत्पन्न होने वाले लाभों के उचित और न्यायसंगत बंटवारे को सुनिश्चित करने के लिये राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण और राज्य जैव विविधता बोर्डों की स्थापना का भी प्रावधान करता है।
    • वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972: यह अधिनियम जंगली जानवरों और पौधों के संरक्षण का प्रावधान करता है। यह वन्यजीवों के अवैध शिकार और व्यापार पर प्रतिबंध लगाता है।
    • वन संरक्षण अधिनियम, 1980: यह अधिनियम वनों के संरक्षण के साथ गैर-वन उद्देश्यों के लिये वन भूमि में किये जाने वाले परिवर्तन को नियंत्रित करने का प्रावधान करता है।
    • बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR) रिजीम: भारत में मजबूत IPR तंत्र है जिसमें पेटेंट, ट्रेडमार्क और कॉपीराइट शामिल हैं। सरकार ने IPR तंत्र के तहत स्थानीय समुदायों के पारंपरिक ज्ञान और जैव विविधता संसाधनों के संरक्षण हेतु प्रयास किये हैं।
    • पारंपरिक ज्ञान डिजिटल लाइब्रेरी: भारत सरकार ने जैव विविधता से संबंधित पारंपरिक ज्ञान को दूसरों द्वारा पेटेंट किये जाने से बचाने के लिये एक पारंपरिक ज्ञान डिजिटल लाइब्रेरी (TKDL) बनाई है। TKDL में आयुर्वेद, योग और अन्य भारतीय चिकित्सा पद्धतियों से संबंधित पारंपरिक ज्ञान की जानकारी शामिल है।
    • जैव विविधता विरासत स्थल: भारत सरकार ने जैव विविधता विरासत स्थलों (BHS) के रूप में कई ऐसे स्थलों की पहचान की है जो पारिस्थितिकी और जैव विविधता महत्त्व के क्षेत्र हैं। ये स्थल जैव विविधता अधिनियम, 2002 के तहत संरक्षित हैं और इनका स्थानीय समितियों द्वारा प्रबंधन किया जाता है।
    • हिमालयी अध्ययन पर राष्ट्रीय मिशन: भारत सरकार ने हिमालयी क्षेत्र की जैव विविधता और पारिस्थितिकी अध्ययन करने एवं इसके संरक्षण के लिये स्थायी रणनीति विकसित करने हेतु हिमालयी अध्ययन पर राष्ट्रीय मिशन शुरू किया है।

    निष्कर्ष:

    जैव विविधता अभिसमय द्वारा जैव विविधता संरक्षण और इसके सतत् उपयोग को बढ़ावा देने में भूमिका निभाई गई है लेकिन विश्व में अभी भी विभिन्न कारणों से जैव विविधता के समक्ष संकट बना हुआ है। इसलिये विश्व में जैव विविधता के संरक्षण और इसके स्थायी उपयोग हेतु सभी स्तरों पर कार्रवाई करने और सहयोग बढ़ाने की आवश्यकता है। भारत में समृद्ध जैव विविधता विरासत को अवैध शोषण से बचाने और इसके सतत् प्रबंधन को सुनिश्चित करने के लिये हितधारकों के बीच निरंतर प्रयास और सहयोग को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है।


    उत्तर: 2

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • LiFE के बारे में संक्षिप्त परिचय दीजिये।
    • भारत तथा विश्व स्तर पर सतत् विकास प्राप्त करने के क्रम में इसकी क्षमता की चर्चा कीजिये।
    • समग्र और उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    LiFE या लैंडस्केप एंड लाइवलीहुड्स फ्रेमवर्क,अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) द्वारा विकसित एक सतत् विकास दृष्टिकोण है जो स्थानीय समुदायों की जरूरतों और आकांक्षाओं के साथ संरक्षण लक्ष्यों को संतुलित करने पर केंद्रित है। इसके अनुसार सफल संरक्षण प्रयासों के तहत स्थानीय समुदायों की जरूरतों और आजीविका पर विचार करना चाहिये।

    मुख्य भाग:

    • LiFE दृष्टिकोण को सरकार, नागरिक समाज और निजी क्षेत्र के भागीदारों सहित सभी हितधारकों के साथ जुड़कर सतत् विकास को बढ़ावा देने के लिये डिज़ाइन किया गया है। इस ढाँचे में कई प्रमुख घटक शामिल हैं जैसे:
      • स्थलाकृति का मानचित्रण और विश्लेषण करना: इसके तहत किसी स्थलाकृति की पारिस्थितिकी, सामाजिक और आर्थिक विशेषताओं की पहचान की जाती है जिसमें जैव विविधता, पारिस्थितिकी तंत्र सेवाएँ और स्थानीय समुदायों की आजीविका शामिल है।
      • प्राथमिकताओं और उद्देश्यों को निर्धारित करना: यह स्थलाकृति के विश्लेषण के आधार पर संरक्षण और विकास उद्देश्यों की पहचान करने के साथ हितधारकों के मिलकर कार्य करने पर केंद्रित है जिससे संरक्षण लक्ष्यों के साथ स्थानीय समुदायों की जरूरतों को संतुलित किया जा सकेगा।
      • रणनीतियों का विकास और कार्यान्वयन करना: इसके तहत लक्षित उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिये रणनीतियों का विकास और कार्यान्वयन करना शामिल है। इन रणनीतियों में स्थानीय समुदायों के लिये वैकल्पिक आजीविका विकसित करना, स्थायी कृषि और वानिकी प्रथाओं को बढ़ावा देना तथा शासन एवं हितधारकों के बीच समन्वय में सुधार करना शामिल हो सकता है।
      • निगरानी के साथ प्रगति का मूल्यांकन करना: रणनीतियों की प्रभावशीलता का पता लगाने और वांछित परिणामों को सुनिश्चित करने के लिये नियमित निगरानी एवं मूल्यांकन किया जाना महत्त्वपूर्ण है। इससे हितधारकों को आवश्यकतानुसार अपनी रणनीतियों को समायोजित करने और सफलताओं एवं असफलताओं से सीखने में मदद मिलती है।

    LiFE दृष्टिकोण को वनों,आर्द्रभूमि और तटीय क्षेत्रों सहित कई प्रकार की स्थलाकृतियों पर लागू किया जा सकता है। उदाहरण के लिये सुंदरबन मैंग्रोव वन में LiFE दृष्टिकोण का उपयोग झींगा पालन को प्रोत्साहन देने के लिये किया जा सकता है जिससे संरक्षण लक्ष्यों के साथ स्थानीय समुदायों की जरूरतों के बीच संतुलन स्थापित हो सकेगा। इसी तरह से पश्चिमी घाट क्षेत्र में LiFE दृष्टिकोण का उपयोग सतत् कृषि और वानिकी प्रथाओं को बढ़ावा देने के लिये किया जा सकता है जो स्थानीय लोगों को आजीविका प्रदान करने के साथ इस क्षेत्र की जैव विविधता को बनाए रखने में प्रभावी है।

    निष्कर्ष:

    LiFE दृष्टिकोण संरक्षण और विकास हेतु एक व्यापक दृष्टिकोण पर आधारित होने के कारण भारत और विश्व में सतत् विकास प्राप्त करने के क्रम में व्यापक संभावनाएँ प्रदान करता है। सभी हितधारकों जैसे स्थानीय समुदायों, सरकारों और निजी क्षेत्र की भागीदारी के माध्यम से, LiFE दृष्टिकोण द्वारा सतत् विकास को सुनिश्चित किया जा सकता है जो लोगों और पर्यावरण की आवश्यकताओं को पूर्ण करने पर केंद्रित है।

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