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  • 18 Jul 2022 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    दिवस 8: "समान नागरिक संहिता (UCC) को लागू करने के कई लाभों के बावजूद, इसके कुछ नकारात्मक पहलू भी हैं। विश्लेषण कीजिये । (250 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • समान नागरिक संहिता (UCC) का वर्णन करके अपना उत्तर प्रारंभ कीजिये।
    • UCC के कार्यान्वयन के लाभों का उल्लेख कीजिये।
    • UCC के कार्यान्वयन में चुनौतियों और इसके नकारात्मक पहलुओं पर चर्चा कीजिये।
    • आगे की राह बताते हुए उत्तर समाप्त कीजिये।

    समान नागरिक संहिता पूरे देश के लिये एक समान कानून के साथ ही सभी धार्मिक समुदायों के लिये विवाह, तलाक, विरासत, गोद लेने आदि कानूनों में भी एकरूपता प्रदान करने का प्रावधान करती है।

    संविधान के अनुच्छेद 44 में वर्णित है कि राज्य भारत के पूरे क्षेत्र में नागरिकों के लिये एक समान नागरिक संहिता सुनिश्चित करने का प्रयास करेगा।

    भारत में समान नागरिक संहिता की स्थिति

    वर्तमान में अधिकांश भारतीय कानून, सिविल मामलों में एक समान नागरिक संहिता का पालन करते हैं, जैसे- भारतीय अनुबंध अधिनियम, नागरिक प्रक्रिया संहिता, माल बिक्री अधिनियम, संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम, भागीदारी अधिनियम, साक्ष्य अधिनियम आदि।

    हालाँकि राज्यों ने कई कानूनों में कई संशोधन किये हैं परंतु धर्मनिरपेक्षता संबंधी कानूनों में अभी भी विविधता है।

    व्यक्तिगत कानूनों पर समान नागरिक संहिता के निहितार्थ

    समाज के संवेदनशील वर्ग को संरक्षण: समान नागरिक संहिता का उद्देश्य महिलाओं और धार्मिक अल्पसंख्यकों सहित संवेदनशील वर्गों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करना है, जबकि एकरूपता से देश में राष्ट्रवादी भावना को भी बल मिलेगा।

    कानूनों का सरलीकरण: समान संहिता विवाह, विरासत और उत्तराधिकार समेत विभिन्न मुद्दों से संबंधित जटिल कानूनों को सरल बनाएगी। परिणामस्वरूप समान नागरिक कानून सभी नागरिकों पर लागू होंगे, चाहे वे किसी भी धर्म में विश्वास रखते हों।

    धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत को बल: भारतीय संविधान की प्रस्तावना में ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द सन्निहित है और एक धर्मनिरपेक्ष गणराज्य को धार्मिक प्रथाओं के आधार पर विभेदित नियमों के बजाय सभी नागरिकों के लिये एक समान कानून बनाना चाहिये।

    लैंगिक न्याय: यदि समान नागरिक संहिता को लागू किया जाता है, तो वर्तमान में मौजूद सभी व्यक्तिगत कानून समाप्त हो जाएंगे, जिससे उन कानूनों में मौजूद लैंगिक पक्षपात की समस्या से भी निपटा जा सकेगा।

    चुनौतियाँ

    केंद्र सरकार के पारिवारिक कानूनों में मौजूद अपवाद: स्वतंत्रता के बाद से संसद द्वारा अधिनियमित सभी केंद्रीय पारिवारिक कानूनों में प्रारंभिक खंड में यह घोषणा की गई है कि वे ‘जम्मू-कश्मीर राज्य को छोड़कर पूरे भारत में लागू होंगे।’

    इन सभी अधिनियमों में 1968 में एक दूसरा अपवाद जोड़ा गया था, जिसके मुताबिक ‘अधिनियम में शामिल कोई भी प्रावधान केंद्रशासित प्रदेश पुद्दुचेरी पर लागू होगा।’

    एक तीसरे अपवाद के मुताबिक, इन अधिनियमों में से कोई भी गोवा और दमन एवं दीव में लागू नहीं होगा।

    नगालैंड और मिज़ोरम से संबंधित एक चौथा अपवाद, संविधान के अनुच्छेद 371A और 371G में शामिल किया गया है, जिसके मुताबिक कोई भी संसदीय कानून इन राज्यों के प्रथागत कानूनों और धर्म-आधारित प्रणाली का स्थान नहीं लेगा।

    सांप्रदायिक राजनीति: कई विश्लेषकों का मत है कि समान नागरिक संहिता की मांग केवल सांप्रदायिक राजनीति के संदर्भ में की जाती है।

    समाज का एक बड़ा वर्ग सामाजिक सुधार की आड़ में इसे बहुसंख्यकवाद के रूप में देखता है।

    संवैधानिक बाधा: भारतीय संविधान का अनुच्छेद 25, जो किसी भी धर्म को मानने और प्रचार की स्वतंत्रता को संरक्षित करता है, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 में निहित समानता की अवधारणा के विरुद्ध है।

    आगे की राह

    परस्पर विश्वास निर्माण के लिये सरकार और समाज को कड़ी मेहनत करनी होगी, किंतु इससे भी महत्त्वपूर्ण यह है कि धार्मिक रूढ़िवादियों के बजाय इसे लोकहित के रूप में स्थापित किया जाए।

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