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  • 11 Nov 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 2 सामाजिक न्याय

    ‘स्वास्थ्य बीमा आज विश्व में राष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाओं के संचालन का मुख्य तत्व है।’ भारत में बीमा क्षेत्र से जुड़ी चुनौतियों पर चर्चा करते हुए इसके समाधान बताएँ। (250 शब्द)

    उत्तर

    दृष्टिकोण:

    • परिचय में दिये गए कथन का विस्तार से वर्णन करते हुए उन अंतर्निहित मुद्दों को स्पष्ट कीजिये जो भारत में बीमा क्षेत्र को प्रभावित करते हैं।
    • उपयुक्त उदाहरण और डेटा के साथ भारत के बीमा क्षेत्र में चुनौतियों पर चर्चा करें।
    • भारत में बीमा क्षेत्र से जुड़ी चुनौतियों को दूर करने के लिये आगे का रास्ता सुझाएं।
    • एक उपयुक्त निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    • आज वैश्विक राष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाओं के संचालन में बीमा एक मुख्य तत्त्व है जो लोगों के स्वास्थ्य और संपत्ति की रक्षा करता है एवं लागत प्रभावी तरीके से व्यावसायिक गतिविधियों को संचालित करने के लिये प्रोत्साहित करता है।
    • हालाँकि भारतीय बीमा क्षेत्र हाल के वर्षों में निरंतर बढ़ रहा है, बावजूद इसके वैश्विक बीमा बाजार में इसकी हिस्सेदारी काफी कम है।
    • ऐसे कई अंतर्निहित मुद्दे हैं जो भारत में बीमा क्षेत्र को प्रभावित करते हैं जैसे- इस क्षेत्र में बीमा कंपनियों का निम्न प्रवेश एवं कम घनत्व दर, बीमा उत्पादों में अपर्याप्त निवेश तथा सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों की बीमा क्षेत्र में अधिक प्रभावी एवं खराब वित्तीय स्थिति।

    प्रारूप:

    भारतीय बीमा क्षेत्र में चुनौतियांँ:

    • बीमा गैप की व्यापकता: वित्तीय वर्ष 2017-18 में बीमा क्षेत्र में सकल घरेलू उत्पाद (सकल घरेलू उत्पाद के कुल प्रीमियम का अनुपात) और घनत्व (जनसंख्या का कुल प्रीमियम का अनुपात) क्रमशः 3.18% और 73 अमेरिकी डॉलर राह । जो वैश्विक स्तर की तुलना में काफी कम है।
      • बीमा क्षेत्र में प्रवेश और कम घनत्व दर भारत में आबादी के बड़े वर्ग की अशिक्षित प्रकृति और बीमा अंतराल की उपस्थिति को प्रकट करता है।
    • निजी क्षेत्र का प्रभुत्व: बीमा क्षेत्र का प्रतिस्पर्धी पर्तिस्पद्धी बाज़ार एक विशेष राज्य के एकाधिकार के साथ संक्रमण के दौर में है हाँलाकि सार्वजनिक क्षेत्र के बीमाकर्त्ता संख्या में कम होने के बावजूद भी बीमा बाज़ार के अधिक हिस्सा या क्षेत्र को कवर करते हैं।
    • नए गैर-जीवन बीमा/सामान्य बीमा: भारत के बीमा क्षेत्र में जीवन बीमा की हिस्सेदारी लगभग 74.7% है, जबकि सामान्य या गैर-जीवन बीमा की हिस्सेदारी मात्र 25.3% है।
      • गैर-जीवन बीमा क्षेत्र में मोटर, स्वास्थ्य, और फसल बीमा क्षेत्र की हिस्सेदारी बढ़ रही है। भारत के गैर-जीवन बीमा क्षेत्र में बीमा कंँपनियों का प्रवेश 1% से भी कम है।
      • इसके अलावा, विशेष प्रकार के बीमा उत्पादों जैसे कि आपदा और साइबर सुरक्षा आदि से संबंधित उत्पादों की मांग तेज़ी से बढ़ रही है जो विकास के प्रारंभिक चरण में है।
    • ग्रामीण-शहरी विभाजन: भारत में बीमा कंँपनियों का बाज़ार में कम प्रवेश और घनत्व में कमी जैसी स्थितियाँ विद्यमान है। हालांँकि, बीमाकर्त्ताओं की ग्रामीण क्षेत्र में भागीदारी काफी कम है।जीवन बीमाकर्त्ताओं, विशेष रूप से निजी क्षेत्र की कंपनियांँ शहरी क्षेत्रों में स्वयं को विस्तारित कर रही हैं।
    • बीमाकर्त्ताओं के पास पूंजी का अभाव: भारत में बीमाकर्त्ताओं के पास पर्याप्त पूंजी के अभाव के साथ वित्तीय अस्थिरता की स्थिति विद्यमान है विशेष रूप से सार्वजनिक क्षेत्र के बीमाकर्ताओं के संबंध।
      • बैंकों तथा गैर-बैंकिंग वित्तीय कंँपनियों में वित्तीय संकट के कारण बीमा क्षेत्र में निवेश कम हो गया है।

    आगे की राह:

    • ग्रामीण क्षेत्र केंद्रित दृष्टिकोण: भारत में बीमा कंपनियों को ग्रामीण क्षेत्र के लिये दीर्घकालिक प्रतिबद्धता दिखानी होगी तथा ग्रामीण लोगों के लिये उन उत्पादों को डिजाइन करना होगा जो उनके लिये उपयुक्त हों।
      • इस संदर्भ में, प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना, प्रधानमंत्री बीमा योजना, प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना और प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना जैसी सरकारी बीमा योजनाएँ इस दिशा में उचित एवं उल्लेखनीय हैं।
    • जागरूकता कार्यक्रम: बीमा की अवधारणा और इसके महत्त्व को लेकर लोगों के मध्य जागरूकता को बढ़ावा देने एवं वित्तीय साक्षरता को ओर अधिक मज़बूत करने की आवश्यकता है।
    • तकनीकी हस्तक्षेप: एक अन्य क्षेत्र जिसमें विनियामक जांँच की आवश्यकता है वह है, बीमा क्षेत्र में प्रौद्योगिकी का अनुप्रयोग।उदाहरणत: ‘इंसर्ट टेक’ (InsurTech) जिसे क्लेम प्रोसेस/दावा प्रक्रिया को अधिक सरल तरीके से और समझने लायक बनाया गया है।
    • नियामक की बढ़ी भूमिका: नियामक को तीन अन्य पहलुओं पर सतर्कता बरतने की ज़रूरत है:
      • यह सुनिश्चित करना कि बीमा क्षेत्र के तहत कम आय वाले लोगों की आबादी के उस हिस्से को नज़रंदाज नहीं किया जाना चाहिये जो संख्या में अधिक हैं तथा जिन्हें बीमा सुरक्षा की सबसे अधिक आवश्यकता है।
      • इस बात पर बल दिया जाना चाहिये कि बीमा कंपनियाँ बिचौलियों को दरकिनार करते हुए बीमा उत्पादों की सीधी खरीद के लिये एक सरल ऑनलाइन प्रक्रिया की सुविधा प्रदान करती हों।
      • यह सुनिश्चित करना कि बीमा कंँपनियाँ बीमा करते समय ओवरचार्ज न करें या छिपी हुई लागत को शामिल न करें।

    निष्कर्ष:

    बीमा क्षेत्र में जनसांख्यिकी कारक, जागरूकता का बढ़ता स्तर और वित्तीय साक्षरता के साथ विकास को प्रोत्साहित करने की अपार संभावनाएँ विद्यमान हैं। एक विस्तारित नियामक व्यवस्था जो बीमा कवरेज को बढ़ाने पर केंद्रित हो वर्तमान परिदृश्य एवं समय की ज़रूरत है।

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