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  • 08 Dec 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    हाल ही में भारत में मंडी प्रणाली के गहन विश्लेषण और इससे जुड़े सुधारों हेतु किसानों द्वारा किये जा रहे विरोध प्रदर्शन का विश्लेषण कीजिये। (250 शब्द)

    उत्तर

    दृष्टिकोण

    • हाल ही में किसानों द्वारा किये जा रहे विरोध और उनकी मुख्य मांँगों के संदर्भ में बताएंँ।
    • भारत में मंडी प्रणाली के प्रतिस्थापन से जुड़े मुद्दों पर चर्चा कीजिये।
    • उन संबंधित सुधारों पर प्रकाश डालिये जिनकी आवश्यकता है।
    • उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय

    • हाल ही में नई दिल्ली और आस-पास के क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर किसानों के विरोध प्रदर्शनों की शुरुआत हुई। सरकार के अनुसार, नए कृषि कानूनों (विशेष रूप से किसान उत्पाद व्यापार और वाणिज्य ( संवर्द्धन और सुविधा) अधिनियम, 2020- एफपीटीसी अधिनियम) का उद्देश्य निजी बाज़ारों की स्थापना कर किसानों को लाभान्वित करना, बिचौलियों का उन्मूलन करना है तथा किसान अपनी बचत को किसी भी खरीदार को बेचने के लिये स्वतंत्र होगे।
    • हालाँकि प्रदर्शनकारी किसान इन दावों को स्वीकार नहीं कर रहे हैं। किसानों का मानना है कि अगर मंडियांँ कमज़ोर होती हैं तथा एमएसपी के प्रति प्रतिबद्धता वाले निजी बाज़ार का विस्तार नहीं होता है, तो न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) प्रणाली का क्रमिक क्षरण होगा।

    प्रारूप

    मंडियों के उदारीकरण के लाभ

    • सभी के लिये समान अवसर उपलब्ध कराना।
    • जोखिम को स्थानांतरित करना।
    • निजी क्षेत्र को आकर्षित करना।
    • बिचौलियों को समाप्त करना।

    मंडी प्रणाली के प्रतिस्थापन से उत्पन्न मुद्दे

    • मंडी के बाहर उत्पादन का बड़ा अनुपात: आधिकारिक आंँकड़ों के अनुसार, मंडी में धान और गेहूंँ की क्रमशः केवल 29% और 44% फसल बेची जाती है, जबकि 49% और 36% या तो स्थानीय निजी व्यापारी को बेची जाती है या फिर निवेशकर्ता को।
      • दूसरे शब्दों में वास्तव में भारतीय मंडियों में फसल का एक बड़े हिस्सॆ को सीधे नहीं बेचा जाता है।
    • मंडियों की अपर्याप्त संख्या: राष्ट्रीय कृषि आयोग (एनसीए) द्वारा सिफारिश की गई कि प्रत्येक भारतीय किसान को एक घंटे में गाड़ी से मंडी तक पहुंँचने में समर्थ होना चाहिये। इस प्रकार एक मंडी के अंतर्गत आने वाला औसत क्षेत्र 80 वर्ग किलोमीटर से कम होना चाहिये।
      • हालांँकि वर्ष 2013 में केवल 6,630 मंडियांँ थीं, जिनका औसत क्षेत्रफल 463 वर्ग किलोमीटर था।
    • सीमांत किसानों का वर्चस्व: लघु और सीमांत किसानों के छोटे विपणन योग्य अधिशेष को देखते हुए मंडियों में फसल ले जाने के लिये उनके द्वारा परिवहन लागत वहन किया जाना किफायती नहीं लगता है।
      • भले ही निजी बाज़ार मंडियों को प्रतिस्थापित कर दे परंतु छोटे और सीमांत किसान अपनी कृषि ऊपज को गाँव में ही व्यापारियों को बेचते रहेंगे।
    • उदारीकृत कृषि बाज़ारों में खराब निजी निवेश: कई राज्यों में कृषि उपज को दूसरे राज्यों की मंडियों में बेचने की स्वतंत्रता पहले से ही मौजूद है।
      • बाज़ारों में खराब निजी निवेश का कारण उत्पाद संग्रह और एकत्रीकरण लेन-देन में उच्च लागत की उपस्थिति है। इसके अलावा बड़ी संख्या में छोटे और सीमांत किसानों के कारण यह लागत और अधिक बढ़ जाती है।
      • यही कारण है कि कई खुदरा शृंखलाएंँ सीधे किसानों से नहीं बल्कि मंडियों से भारी मात्रा में फल और सब्जियांँ खरीदना पसंद करती हैं।
    • उच्च मूल्य प्राप्ति का कोई प्रमाण नहीं: मौजूदा निजी बाज़ारों में भी मंडियों की तुलना में किसानों का अधिक मूल्य प्राप्त होने का कोई प्रमाण नहीं है।
      • वास्तव में यदि लेन-देन की लागत मंडी करों से अधिक है, तो लागत को कम कीमत पर किसानों को हस्तांतरित किया जाता है।

    Reforms That Should Be Undertaken

    किये जाने वाले सुधार

    • मंडी अवसंरचना में मात्रात्मक सुधार: भारत में कृषि विपणन के वर्तमान चरण में मंडियों के घनत्व में वृद्धि, मंडी अवसंरचना में निवेश का विस्तार और अधिक क्षेत्रों तथा फसलों के लिये MSP प्रणाली के प्रसार की आवश्यकता है।
      • इसके लिये मंडी करों में से अधिकांश को बाज़ार के बुनियादी ढांँचे में सुधार के लिये एपीएमसी द्वारा ठीक से पुनर्निवेश किये जाने की आवश्यकता है ।
      • इस संदर्भ में पंजाब मंडी बोर्ड का उदाहरण अनुकरणीय है, जिसके तहत ग्रामीण सड़कों के निर्माण, चिकित्सा और पशु चिकित्सा औषधालय चलाने, पीने के पानी की आपूर्ति, स्वच्छता में सुधार, ग्रामीण विद्युतीकरण का विस्तार और आपदाओं के दौरान किसानों को राहत प्रदान करने के लिये इस राजस्व का उपयोग किया जाता है।
    • मंडी की संरचना में गुणात्मक सुधार: न केवल मंडियों की संख्या बल्कि बेहतर मंडियों की भी आवश्यकता है।
      • एपीएमसी द्वारा नए व्यापारियों के प्रवेश को आसान बनाने, व्यापारी की मिली भगत को कम करने और उन्हें राष्ट्रीय ई-ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म के साथ जोड़ने के लिये आंतरिक सुधारों की आवश्यकता है।
      • व्यापारियों के लिये एकीकृत राष्ट्रीय लाइसेंस की शुरुआत और बाज़ार शुल्क पर एकल बिंदु कर लगाना भी सही दिशा में उठाया गया कदम है।
    • अर्थव्यवस्था के स्तर में सुधार: भारतीय किसानों की कॉर्पोरेट्स के साथ सौदेबाज़ी की शक्ति केवल तभी बदल सकती है जब कृषि अर्थव्यवस्था में पर्याप्त बढ़ोतरी होती है।
      • इसे प्राप्त करने के लिये किसान उत्पादक संगठनों को मज़बूत करने की आवश्यकता है।

    निष्कर्ष:

    इसलिये किसानों के विरोध ने भारत में मंडी प्रणाली के गहन विश्लेषण और इससे जुड़े सुधारों की मांग की है ताकि भारत के अन्नदाता (किसान) के लिये कृषि की व्यवहार्यता सुनिश्चित की जा सके।

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