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  • 26 Jul 2022 सामान्य अध्ययन पेपर 3 पर्यावरण

    दिवस 16: उपर्युक्त उदाहरणों के साथ नदी जोड़ो परियोजनाओं के नकारात्मक प्रभावों पर चर्चा कीजिये। (150 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण

    • नदी जोड़ो परियोजनाओं (RIP) और इसके महत्त्व को उज़ागर कीजिये।
    • उदाहरण के साथ आरआईपी के नकारात्मक प्रभावों पर चर्चा कीजिये।
    • आगे की राह का सुझाव देते हुए उपयुक्त रूप से अपने उत्तर को समाप्त कीजिये।

    नेशनल रिवर लिंकिंग प्रोजेक्ट (NRLP) जिसे औपचारिक रूप से ’नेशनल पर्सपेक्टिव प्लान’ के रूप में जाना जाता है, का उद्देश्य अंतर-बेसिन जल हस्तांतरण परियोजनाओं के माध्यम से जल 'अधिशेष' बेसिन, जहाँ जल की मात्रा अधिक है, से जल की कमी वाले 'बेसिन' में जल का हस्तांतरण करना है, ताकि सूखे आदि की समस्या से निपटा जा सके।

    NPP को अगस्त 1980 में जल-अधिशेष बेसिन से जल की कमी वाले बेसिन में जल को स्थानांतरित करने हेतु तैयार किया गया था। राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना के तहत राष्ट्रीय जल विकास एजेंसी (National Water Development Agency- NWDA) द्वारा सुसंगत या औचित्यपूर्ण रिपोर्ट ( feasibility reports- FRs) तैयार करने हेतु 30 नदी-जोड़ो परियोजनाओं (प्रायद्वीपीय क्षेत्र में 16 और हिमालयी क्षेत्र में 14) की पहचान की है।

    पानी के बँटवारे पर राज्यों (सर्वसम्मति) के बीच समझौते पर पहुँचने के बाद नदी जोड़ो परियोजना कार्यान्वयन चरण में पहुँच जाएगी।

    नदियों को आपस में जोड़ने से संबंधित कुछ उदाहरण:

    • केन-बेतवा लिंक: इस परियोजना में यमुना की दोनों सहायक नदियाँ केन नदी से बेतवा नदी में पानी स्थानांतरित करने की परिकल्पना की गई है। नदियों को आपस में जोड़ने के लिये राष्ट्रीय परिपे्रक्ष्य योजना के तहत यह पहली परियोजना है।
    • महानदी (मणिभद्र) - गोदावरी (दौलेश्वरम) लिंक
    • गोदावरी (इंचमपल्ली) - कृष्णा (नागार्जुनसागर) लिंक
    • कृष्णा (अलमट्टी) - पेन्नार लिंक
    • पेन्नार (सोमसिला) - कावेरी (ग्रैंड एनीकट) लिंक
    • पर-तापी-नर्मदा लिंक
    • दमनगंगा - पिंजल लिंक

    नदी को जोड़ने की परियोजनाओं का महत्त्व

    • क्षेत्रीय असंतुलन को कम करना: भारत मानसून की वर्षा पर निर्भर है जो अनियमित होने के साथ-साथ क्षेत्रीय स्तर पर असंतुलित भी है। नदियों को आपस में जोड़ने से अतिरिक्त वर्षा और समुद्र में नदी के जल प्रवाह की मात्रा में कमी आएगी।
    • कृषि की सिंचाई: इंटरलिंकिंग द्वारा अतिरिक्त जल को न्यून वर्षा वाले क्षेत्रों में स्थानांतरित करके न्यून वर्षा आधारित भारतीय कृषि क्षेत्रों में सिंचाई संबंधित समस्याओं का समाधान किया जा सकता है।
    • जल संकट को कम करना: यह सूखे और बाढ़ के प्रभाव को कुछ हद तक कम करने में मदद कर सकता है
    • अन्य लाभ: इससे जल-विद्युत उत्पादन, वर्ष भर नौवहन, रोज़गार सृजन जैसे लाभों के साथ ही सूखे जंगल और भूमि क्षेत्रों में पारिस्थितिक गिरावट की भरपाई की जा सकेगी।

    नदी को जोड़ने की परियोजनाओं के नकारात्मक प्रभाव:

    पारिस्थितिक और पर्यावरणीय मुद्दे:

    • दावा किये गए लाभों तथा पर्यावरण एवं पारिस्थितिक प्रभाव से संभावित खतरों के बीच अंतराल हैं।
    • बाढ़ नियंत्रण और सूखा संरक्षण की व्यवहार्यता सवालों के घेरे में है क्योंकि लगभग सभी नदियों में आवश्यकता के अनुसार बहुत कम पानी होता है और भारत की मानसून प्रकृति के कारण लगभग सभी नदियाँ एक ही प्रकृति की होती है।
    • इस बारे में अनिश्चितता है कि कितना पानी स्थानांतरित किया जाएगा और कब, क्या इससे इन परियोजनाओं के कमांड क्षेत्रों में जल जमाव, लवणता/क्षारीयता और परिणामी मरुस्थलीकरण को कम किया जा सकता है।
    • नदियाँ हर (लगभग) 100 वर्षों में अपना मार्ग बदल सकती हैं, इसलिये हो सकता है कि 100 वर्षों के बाद अदि जोड़ो परियोजन उपयोगी न हो।
    • नदियों को आपस में जोड़ने से वनों की कटाई भी हो सकती जिससे पारिस्थितिक असंतुलन हो सकता है (उदाहरण के लिये, पन्ना बायोस्फीयर रिज़र्व का जलमग्न होना)।
    • नदी से पानी को स्थानांतरित करने से मूल नदी में कम पानी के कारण और प्राप्त करने वाली नदी में त्वरित क्षरण के कारण विविधता का नुकसान हो सकता है।

    सामाजिक-आर्थिक मुद्दे:

    • बड़े पैमाने पर भंडारण क्षमता की आवश्यकता कमज़ोर (आदिवासियों, ग्रामीणों, आदि), खराब नदी और भूजल की गुणवत्ता तथा उपजाऊ भूमि और वन जलमग्न के विस्थापन का कारण बन सकेगी।
    • भारत ने अभी तक लगभग पुनर्वास नहीं किया है। 50% लोग पिछली जल भंडारण सुविधाओं के कारण विस्थापित हुये है।
    • यह विस्थापन के कारण लाखों लोग गरीबी का सामना करेंगे तथा इससे सरकार पर गरीब हितैषी योजना का वित्तीय बोझ बढ़ेगा।

    अंतर्राष्ट्रीय मुद्दे:

    • भारत की बड़ी नदियों की एक अच्छी संख्या ट्रांस-नेशनल है। बेहतर संबंधों के लिये पड़ोसी देशों का सहयोग एक पूर्वापेक्षा है तथा भारत पहले से ही जल बँटवारे की चुनौतियाँ का सामना कर रहा है। उदा. फरक्का बैराज़ पर भारत-बांग्लादेश, ब्रह्मपुत्र पर भारत-चीन और सिंधु प्रणाली पर भारत-पाक।
    • भारत में ट्रांस-नेशनल प्रकृति की डाउनस्ट्रीम नदियों पर बड़े पैमाने पर जल भंडारण सुविधाओं का उपयोग युद्ध और शत्रुता की स्थिति में भारत के हित के खिलाफ किया जा सकता है। उदाहरण के लिये चीन और जल बम सिद्धांत।

    तकनीकी विकास:

    • सौर ऊर्जा परियोजनाओं द्वारा बिजली उत्पादन की लागत कुछ वर्षों में 1.0 रुपए प्रति किलोवाट से कम होगी
    • सस्ती, स्वच्छ और बारहमासी/नवीकरणीय बिजली की उपलब्धता, लागत पर अर्थव्यवस्थाओं के लिये विशुद्ध रूप से गुरुत्वाकर्षण लिंक के बजाय नदी लिंक परियोजनाओं में अधिक पानी उठाने/पंपिंग और सुरंगों का पक्ष में होगी साथ ही निर्माण समय को कम करेगी और मौजूदा जलाशयों/कम भंडारण के इष्टतम उपयोग से भूमि जलमग्न को कम करेगी।
    • भारत ने अभी तक शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों में अपनी जल रिसाव की समस्या का प्रबंधन नहीं किया है, सुरंग और पाइप के माध्यम से नदी और नहर को जोड़ने से रिसाव संबंधी स्थितियाँ को और भी खराब हो सकती है।

    राजनीतिक विचार:

    • अंतर्राज्यीय सरकारों और केंद्र सरकार के दलों के परस्पर विरोधी विचारों से आम सहमति तक पहुँचना मुश्किल हो जाएगा, जो कि किसी भी नदी को जोड़ने की परियोजना के लिये एक शर्त है।

    पानी की बढ़ती मांग को कम करने और बाढ़ तथा सूखे के प्रभाव को कम करने के लिये हमें बड़ी परियोजनाओं के बजाय स्थानीय ज़रूरतों को पूरा करने हेतु छोटे-छोटे विकेन्द्रीकृत जल संरक्षण कार्यक्रम पर ध्यान देना होगा।

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