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  • 25 Jul 2022 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्था

    दिवस 15: सतत् और समावेशी आर्थिक वृद्धि सतत् विकास के लिये एक पूर्वापेक्षा है। टिप्पणी कीजिये। (150 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • समावेशी विकास को परिभाषित करके परिचय दीजिये।
    • वर्णन कीजिये कि कैसे निरंतर और समावेशी आर्थिक वृद्धि सतत् विकास को प्राप्त करने में मदद कर सकती है।
    • उत्तर को उपयुक्त निष्कर्ष के साथ समाप्त कीजिये।

    आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (OECD) के अनुसार समावेशी विकास आर्थिक विकास है जो पूरे समाज में उचित रूप से वितरित किया जाता है साथ ही सभी के लिये अवसर पैदा करता है।

    समावेशी विकास एक अवधारणा है जो आर्थिक विकास के दौरान समाज के सभी वर्गों के लोगों के जीवन की गुणवत्ता सुधारने और उन्हें अवसरों की समानता उपलब्ध कराती है साथ ही सभी के लिये अवसर पैदा करती है।

    हाल के दशकों में आर्थिक विकास को बढ़ाने हेतु दुनिया भर में बड़ी संख्या में लोगों के लिये धन में पर्याप्त वृद्धि हुई है। लेकिन वैश्विक आर्थिक उत्पादन में भारी बढ़त के बावज़ूद असमानताओं और अस्थिरता के बढ़ने के प्रमाण हैं।

    ऑक्सफैम रिपोर्ट के अनुसार भारत में शीर्ष 1% के पास राष्ट्रीय संपत्ति का 51.53% है, जबकि शेष 99% के पास लगभग 48% है।

    समावेशन और आर्थिक विकास साथ-साथ चलते हैं तथा दोनों एक स्थायी भविष्य के लिये कार्य करते हैं।

    सतत् विकास संयुक्त राष्ट्र का व्यापक प्रतिमान है। सतत् विकास की अवधारणा को वर्ष 1987 की ब्रंटलैंड कमीशन रिपोर्ट द्वारा "विकास के रूप में वर्णित किया गया था जो भविष्य की पीढ़ियों की अपनी ज़रूरतों को पूरा करने की क्षमता से समझौता किये बिना वर्तमान की ज़रूरतों को पूरा करता है।

    समावेशी आर्थिक विकास में स्थायी भविष्य के लिये आर्थिक गतिविधियों में गरीब, कमज़ोर, हाशिए पर आये व्यक्तियों, महिलाओं, युवाओं और समाज के हर तबके के लोगों को शामिल किया जाएगा।

    • महिलाएँ: देश की आबादी में महिलाओं की संख्या 49.5% है तथा कार्यबल और आर्थिक गतिविधियों में उनका समावेश (वर्तमान में केवल 19%) अर्थव्यवस्था के विकास और स्थिरता में बहुत योगदान देगा जिससे सतत् विकास लक्ष्य (SDG) 5 और 10 की पूर्ति होगी।
    • किसान: भारत में लगभग 50% से अधिक आबादी कृषि गतिविधियों पर निर्भर है। मूल्य शृंखला में किसानों की समावेशिता, पर्याप्त कौशल के साथ मूल्यवर्द्धित राष्ट्र के लिये खाद्य सुरक्षा और विशेष रूप से SDG 2 और सामान्य रूप से SDG 1 की उपलब्धि के लिये पूर्वावश्यक है।
    • युवा: ILO के अनुसार युवा आयु वर्ग (15-35 वर्ष) भारत की जनसंख्या का 66% है। यह जनसंख्या भारत में जनसांख्यिकीय लाभांश को इंगित करती है जो वर्ष 2055-56 तक चलेगी। युवाओं को कौशल और रोज़गार प्रदान करके देश की आर्थिक यात्रा में शामिल करने से दीर्घकालिक सतत् आर्थिक विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान होगा। एक कुशल और सक्षम युवा लगभग सभी SDGs हासिल करने का प्रयास कर सकता है।
    • आदिवासी: भारत में जनजाति गरीबी सबसे अधिक हैं। कौशल के साथ मुख्यधारा की अर्थव्यवस्था में उनका समावेशन, सांस्कृतिक और सामाजिक भावना का सम्मान करके उनका विकास भारत के कार्यबल को 5% से अधिक बढ़ा सकता है साथ ही यह सामाजिक और सांस्कृतिक स्थिरता को बढ़ाएगा। आदिवासियों की सतत् जीवन शैली SDG हासिल करने के लिये दुनिया के लिये एक सीखने वाला अध्याय है।
    • लघु व्यवसाय: भारत में 60 मिलियन से अधिक छोटे व्यवसाय हैं। आर्थिक, कानूनी, श्रम मानदंडों में सभी फर्मों के औपचारिककरण से न केवल सभी हितधारकों का कल्याण होगा, बल्कि SDG 8, 9 और 10 की उपलब्धि भी होगी।
    • क्षेत्रीय समावेशिता: भारत में विकास की असमान प्रगति कुछ स्थानों पर एक बड़े औद्योगिक क्षेत्र की ओर ले जाती है, लेकिन अन्य भारत की विकास यात्रा से छूट जाते हैं। समग्र और समावेशी क्षेत्रीय विकास मज़बूत संस्थानों और शांति के साथ भारत को जीवंत एवं समृद्ध बनाएगा। यह भारत को एसडीजी 16 और 17 हासिल करने में मदद करेगा जो भविष्य की समृद्धि के लिये प्रबल होगा।
    • समावेशी आर्थिक विकास में विकास का हिस्सा प्रत्येक व्यक्ति तक पहुँचान चाहिये।

    इसलिये स्थिरता और समावेशी विकास को अलग-अलग हासिल नहीं किया जा सकता यह एक दूसरे के पूरक हैं। इस तरह, आर्थिक समावेशन से वित्तीय, सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक और पर्यावरणीय स्थिरता को बढ़ावा मिलेगा।

    सतत् विकास लक्ष्यों का लक्ष्य 8 विशेष रूप से समावेशी और सतत् आर्थिक विकास को बढ़ावा देना है। हमें नए समावेशी भारत के लिये "सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास" हासिल करने हेतु किसी को वंचित न करते हुए सभी के लिये सतत् आर्थिक विकास सुनिश्चित करने की उम्मीद के साथ अवसरों का विस्तार करने तथा कमज़ोरियों को कम करने की दिशा में मिलकर कार्य करना चाहिये।

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