इंदौर शाखा: IAS और MPPSC फाउंडेशन बैच-शुरुआत क्रमशः 6 मई और 13 मई   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

Mains Marathon

  • 29 Jul 2022 सामान्य अध्ययन पेपर 3 आपदा प्रबंधन

    दिवस 19: बार-बार बाढ़ आने के लिये उत्तरदायी कारकों तथा जीवन और अर्थव्यवस्था पर इसके प्रभावों की चर्चा कीजिये। एनडीएमए (2008) के दिशा-निर्देशों के आलोक में ऐसी घटनाओं के दौरान जोखिम को कम करने की तैयारी हेतु निर्मित तंत्र का वर्णन कीजिये। (250 शब्द)

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण

    • बाढ़ और बाढ़ के प्रकारों को संक्षेप में परिभाषित कीजिये और हाल ही में आई बाढ़ की कुछ घटनाओं का उल्लेख कीजिये।
    • बार-बार बाढ़ आने के लिये उत्तरदायी कारकों और जीवन तथा अर्थव्यवस्था पर इसके प्रभावों को लिखिये।
    • एनडीएमए के दिशा-निर्देशों के संदर्भ में जोखिम को कम करने की तैयारी के लिये महत्वपूर्ण तंत्रों का उल्लेख कीजिये।
    • उपयुक्त निष्कर्ष लिखिये।

    बाढ़ (Flood) जल का अतिप्रवाह है जो आमतौर पर शुष्क रहते स्थल क्षेत्र को जलमग्न कर देती है। ‘बहते पानी’ (Flowing Water) के अर्थ में ज्वार के प्रवाह के लिये भी ‘बाढ़’ शब्द का प्रयोग किया जा सकता है।

    नदियों का जल उफान के समय जल वाहिकाओं को तोड़ता हुआ मानव बस्तियों और आस-पास की ज़मीन पर पहुँच जाता है और बाढ़ की स्थिति पैदा कर देता है। बाढ़ आमतौर पर अचानक नहीं आती, यह कुछ विशेष क्षेत्रों और वर्षा ऋतु में ही आती है। बाढ़ तब आती है जब नदी जल-वाहिकाओं में इनकी क्षमता से अधिक जल बहाव होता है और जल, बाढ़ के रूप में मैदान के निचले हिस्सों में भर जाता है।

    Flood-Zone

    बाढ़ के कारण

    सामान्यतः भारी वर्षा के बाद जब प्राकृतिक जल संग्रहण स्रोतों/मार्गों (Natural Water Bodies/Routes) की जल धारण करने की क्षमता का संपूर्ण दोहन हो जाता है, तो पानी उन स्रोतों से निकलकर आस-पास की सूखी भूमि को डूबा देता है। लेकिन बाढ़ हमेशा भारी बारिश के कारण नहीं आती है, बल्कि यह प्राकृतिक और मानव निर्मित दोनों ही कारणों का परिणाम है, जिन्हें हम कुछ इस प्रकार से वर्णित कर सकते हैं-

    • मौसम संबंधी तत्त्व: दरअसल, तीन से चार माह की अवधि में ही देश में भारी बारिश के परिणामस्वरूप नदियों में जल का प्रवाह बढ़ जाता है जो विनाशकारी बाढ़ का कारण बनता है। एक दिन में लगभग 15 सेंटीमीटर या उससे अधिक वर्षा होती है, तो नदियों का जलस्तर खतरनाक ढंग से बढ़ना शुरू हो जाता है।
    • बादल फटना: भारी वर्षा और पहाड़ियों या नदियों के आस-पास बादलों के फटने से भी नदियाँ जल से भर जाती हैं।
    • गाद का संचय: हिमालय से निकलने वाली नदियाँ अपने साथ बड़ी मात्रा में गाद और रेत लाती हैं। वर्षों से इनकी सफाई न होने कारण नदियों का मार्ग अवरुद्ध हो जाता है, जिससे आस-पास के क्षेत्रों में पानी फ़ैल जाता है।
    • मानव निर्मित अवरोध: तटबंधों, नहरों और रेलवे से संबंधित निर्माण के कारण नदियों के जल-प्रवाह क्षमता में कमी आती है, फलस्वरूप बाढ़ की समस्या और भी गंभीर हो जाती है। वर्ष 2013 में उत्तराखंड में आई भयंकर बाढ़ को मानव निर्मित कारकों का परिणाम माना जाता है।
    • वनों की कटाई: पेड़ पहाड़ों पर मिट्टी के कटाव को रोकने और बारिश के पानी के लिये प्राकृतिक अवरोध पैदा करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

    बाढ़ का प्रभाव:

    बाढ़ से पिछले 65 वर्षों (1952-2018) में 109,412 लोग मारे गए। 258 मिलियन हेक्टेयर से अधिक फसलों को नुकसान पहुँचा और 81,187,187 घर बर्बाद हो गए। फसलों, घरों और अन्य संपत्ति के नुकसान के कारण कुल आर्थिक नुकसान 4.69 ट्रिलियन रुपए हो गया। भारत को 2018 की बाढ़ में 95,736 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था।

    • जान-माल की हानि: बाढ़ के तात्कालिक प्रभावों में मानव जीवन की हानि, संपत्ति को नुकसान, फसलों का विनाश, पशुधन का नुकसान, बुनियादी सुविधाओं का काम न करना और जलजनित बीमारियों के कारण स्वास्थ्य की स्थिति में गिरावट शामिल है।
    • आजीविका का नुकसान: चूँकि बिजली संयंत्रों, सड़कों और पुलों जैसे संचार लिंक और बुनियादी ढाँचे बाधित होते है, आर्थिक गतिविधियाँ रुक जाती हैं, जिसके परिणामस्वरूप अव्यवस्था और एक अवधि के लिये सामान्य जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है।
    • कम खरीद और उत्पादन शक्ति: बुनियादी ढाँचे को नुकसान भी दीर्घकालिक प्रभावों का कारण बनता है, जैसे कि स्वच्छ पानी और बिजली की आपूर्ति, परिवहन, संचार, शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल के व्यवधान।
    • बड़े पैमाने पर प्रवासन: लगातार बाढ़, जिसके परिणामस्वरूप आजीविका, उत्पादन का नुकसान होता है, बड़े पैमाने पर प्रवास या जनसंख्या विस्थापन को ट्रिगर कर सकता है। विकसित शहरी क्षेत्रों में प्रवासन शहरों में भीड़ -भाड़ में योगदान देता है।
    • मनोवैज्ञानिक प्रभाव: बाढ़ पीड़ितों और उनके परिवारों पर विशाल मनोवैज्ञानिक-सामाजिक प्रभाव उन्हें लंबे समय तक आघात पहुँचा सकते हैं। प्रियजनों का नुकसान गहरा प्रभाव पैदा कर सकता है, खासकर बच्चों पर। किसी के घर से विस्थापन, संपत्ति का नुकसान, आजीविका का नुकसान, बाढ़ के बाद और अस्थायी आश्रयों में सुरक्षा के स्तर में कमी आदि तनाव का कारण बन सकता है।
    • आर्थिक विकास और विकास में बाधा: राहत और वसूली की उच्च लागत बुनियादी ढाँचे और अन्य विकास गतिविधियों में निवेश पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती है और कुछ मामलों में क्षेत्र की कमज़ोर अर्थव्यवस्था को पंगु बना सकती है। किसी क्षेत्र में बार-बार आने वाली बाढ़ सरकार और निजी क्षेत्र द्वारा समान रूप से दीर्घकालिक निवेश को हतोत्साहित कर सकती है।
    • राजनीतिक निहितार्थ: प्रमुख बाढ़ की घटनाओं के दौरान अप्रभावी बाढ़ प्रतिक्रिया और राहत कार्य नियमित रूप से सार्वजनिक असंतोष या अधिकारियों या राज्य और राष्ट्रीय सरकारों में विश्वास की हानि का कारण बनते हैं।

    इस तरह की घटनाओं के दौरान जोखिम को कम करने के लिये एनडीएमए के दिशानिर्देश:

    संरचनात्मक उपाय:

    • तटबंध / तट, बाढ़ की दीवारें: नदी में तटबंध प्रणाली नदी को अपने मौजूदा क्षेत्र तक सीमित करती है और इसे बहने से रोकती है।
    • बांध, जलाशय और अन्य जल संग्रहण: झीलें, निचले गड्ढों, टैंकों, बांधों और जलाशयों में बाढ़ के पानी का सही अनुपात होता है और संग्रहित पानी बाद में बाढ़ के कम होने पर छोड़ा जा सकता है।
    • चैनल सुधार: इसकी निर्वहन क्षमता में सुधार करके बाढ़ के निर्वहन को उसके मौजूदा उच्च बाढ़ स्तर से कम स्तर पर ले जाने के लिये एक चैनल बनाया जा सकता है।
    • जल निकासी में सुधार: प्राकृतिक या मानव निर्मित जल निकासी चैनलों की अपर्याप्तता के कारण सतही जल निकासी की प्रचुरता से कई क्षेत्रों में बाढ़ आ जाती है। ऐसे मामलों में नए चैनलों का निर्माण और/या मौजूदा चैनलों की क्षमता में सुधार बाढ़ नियंत्रण का एक प्रभावी साधन है।
    • जलग्रहण क्षेत्र उपचार/वनरोपण: वाटरशेड प्रबंधन उपाय जैसे कि चेक डैम, डिटेंशन बेसिन आदि जैसे संरचनात्मक कार्यों के साथ वनीकरण और मिट्टी के आवरण का संरक्षण बाढ़ को कम करने और अपवाह को नियंत्रित करने के लिये एक प्रभावी उपाय के रूप में कार्य करता है।

    गैर-संरचनात्मक उपाय:

    • फ्लड प्लेन ज़ोनिंग
    • फ्लड प्रूफिंग
    • बाढ़ की भविष्यवाणी और चेतावनी

    चूँकि बाढ़ हर साल जीवन और संपत्ति को बड़ी क्षति पहुँचाती है, इसलिये समय आ गया है कि केंद्र और राज्य सरकारें एक दीर्घकालिक योजना तैयार करें जो बाढ़ को नियंत्रित करने के लिये तटबंधों के निर्माण के अतिरिक्त हो। इसके अलावा, एक एकीकृत बेसिन प्रबंधन योजना की आवश्यकता है जो सभी नदी-बेसिन साझा करने वाले देशों के साथ-साथ भारतीय राज्यों को भी जोड़े।

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2