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  • 18 Jul 2022 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    दिवस 8: "संघवाद अब केंद्र-राज्य संबंधों के बीच दोषारोपण का बिंदु नहीं, बल्कि टीम इंडिया की एक नई साझेदारी की परिभाषा है। चर्चा कीजिये।

    उत्तर

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • भारत में संघवाद के बारे में एक संक्षिप्त परिचय दीजिये।
    • भारत में संघवाद से जुड़े मुद्दों पर चर्चा कीजिये।
    • वर्णन कीजिये कि सहकारी संघवाद स्वस्थ केंद्र राज्य संबंधों को कैसे बढ़ावा दे रहा है।
    • उपयुक्त निष्कर्ष लिखिये।

    संघवाद शासन की कई संघटक इकाइयों के बीच साझा संप्रभुता और क्षेत्रीयता में विश्वास करता है। भारत में संघवाद भारत की विभिन्न भाषायी, धार्मिक और जातीय पहचानों को समायोजित करने का एक उपकरण है।संघवाद संविधान के मूल ढाँचे के स्तंभों में से एक है।एसआर बोम्मई बनाम भारत संघ (वर्ष 1994) में सुप्रीम कोर्ट ने संघवाद को संविधान की मूल संरचना का एक हिस्सा बताया। हालाँकि मज़बूत एकात्मक संरचना और विशेष रूप से जिस तरह से यह वर्षों से विकसित हुई है, उसके कारण कई संवैधानिक विशेषज्ञ भारतीय संघवाद का वर्णन 'संघवाद के बिना संघ', 'असमान राज्यों का संघ' या 'प्रकृति में अर्द्ध-संघीय' के रूप में करते हैं।

    भारत में संघवाद से संबद्ध मुद्दे

    • संघवाद और विकास : देश के विकास में तेज़ी लाने के लिये भारत सरकार ने कई योजनाएँ और दृष्टिकोण प्रस्तावित किये हैं जो संघीय सिद्धांत को कमज़ोर कर सकते हैं।
      • उदाहरण के लिये 'एक राष्ट्र, एक बाज़ार'; 'एक राष्ट्र, एक राशन कार्ड'; 'एक राष्ट्र, एक ग्रिड' जैसे विकासात्मक आख्यान।
    • राज्यों को कमज़ोर करना: वर्ष 2019 में जम्मू-कश्मीर को एक पूर्ण राज्य से केंद्रशासित प्रदेश में परिवर्तित करना या हाल ही में दिल्ली के एनसीटी (संशोधन) अधिनियम, 2021 की अधिसूचना केंद्र सरकार की केंद्रीकरण प्रवृत्तियों को दर्शाती है।
      • इसी तरह केंद्र सरकार ने महामारी से निपटने के लिये शक्तियों को केंद्रीकृत करते हुए महामारी रोग अधिनियम और आपदा प्रबंधन अधिनियम लागू किया था।
      • हालाँकि केंद्र द्वारा दिये गए इस विधायी जनादेश हेतु केंद्र को राज्य से परामर्श करना चाहिये किंतु केंद्र द्वारा राज्यों को बाध्यकारी कोविड-19 दिशा-निर्देश जारी किये गए हैं।
    • अंतर-राज्यीय विचलन/असमानता: अमीर (दक्षिणी और पश्चिमी) और गरीब राज्यों (उत्तरी एवं पूर्वी) के बीच बढ़ता अंतर अंतर-राज्यीय संबंधों में तनाव का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत बना हुआ है जो राज्यों के बीच सामूहिक कार्रवाई के लिये एक वास्तविक बाधा बन सकता है।
      • इसने एक ऐसा संदर्भ तैयार किया है जहाँ राज्यों के बीच सामूहिक कार्रवाई करनी कठिन हो जाती है क्योंकि भारत के गरीब क्षेत्र अर्थव्यवस्था में बहुत कम योगदान करते हैं लेकिन उन्हें अपनी आर्थिक कमज़ोरियों को दूर करने के लिये अधिक वित्तीय संसाधनों की आवश्यकता होती है।
    • साइलेंट फिस्कल क्राइसिस: भारत की समिष्टि-राजकोषीय स्थिति की वास्तविकताएँ राज्य की वित्त संबंधी नाजुकता को बढ़ा रही हैं।
      • कमज़ोर राजकोषीय प्रबंधन ने केंद्र सरकार को उस कगार पर ला खड़ा किया है जिसे अर्थशास्त्री रथिन रॉय ने मौन राजकोषीय संकट कहा है।
      • इस संदर्भ में संघ की प्रतिक्रिया सेस बढ़ाकर राज्यों के राजस्व कम करने की रही है।

    सहकारी संघवाद की दिशा में कदम:

    • अंतर-राज्य मंच: एक अंतर-राज्य मंच जो राज्यों को राजकोषीय संघवाद के मामलों पर नियमित बातचीत के लिये एक साथ लाता है, विश्वास और एक आम एजेंडा बनाने के लिये शुरुआती बिंदु हो सकता है।
      • इस संदर्भ में अंतर्राज्यीय परिषद को पुनर्जीवित किया जा सकता है।
      • उदारीकरण के बाद से आर्थिक विकास प्रक्षेप वक्र बढ़ते स्थानिक विचलन की विशेषता है।
    • एफआरबीएम मानदंडों में ढील: राज्यों द्वारा बाज़ार उधारी के संबंध में एफआरबीएम अधिनियम द्वारा लगाई गई सीमाओं में ढील सही दिशा में एक कदम होगा।
      • हालाँकि केंद्र सरकार द्वारा संप्रभु गारंटी के माध्यम से इन उधारों का समर्थन किया जा सकता है।
      • इसके अलावा केंद्र सरकार राज्यों को धन मुहैया करा सकती है ताकि वे राज्य स्तर पर संकट से निपटने के लिये आवश्यक कार्रवाई कर सकें।
    • राजनीतिक इच्छाशक्ति: संघवाद को कायम रखने के लिये राजनीतिक परिपक्वता और संघीय सिद्धांत के प्रति प्रतिबद्धता की आवश्यकता होती है। संघवाद की मज़बूती के लिये राजनेताओं को राष्ट्रवाद को लेकर बयानबाजी पर काबू पाने की आवश्यकता होगी जो संघवाद को राष्ट्रवाद और विकास के खिलाफ खड़ा करती है।
    • केंद्र पर कम बोझ: केंद्र और राज्यों के बीच बेहतर संबंधों से केंद्र का बोझ कम होगा। सरकार की एक संघीय प्रणाली केंद्र सरकार और राज्यों के बीच अधिकार को विभाजित करती है, जो कुशल प्रशासन की सुविधा प्रदान करती है। इसके अतिरिक्त, राज्य इससे जुड़ी समस्याओं को नियंत्रित करने के लिये बेहतर तरीके से तैयार होंगे।
    • समाज के विभिन्न वर्गों को शामिल करना: भारत जैसे राष्ट्र में, जहाँ क्षेत्रीय मतभेद हैं, संघीय सरकार और राज्यों के बीच शक्तियों का अलगाव काफी लाभदायक है। नतीजतन, केंद्र के लिये प्रत्येक राज्य में अपनी ज़रूरतों के आधार पर अलग-अलग मुद्दे पर विचार करना संभव नहीं होगा। इस मामले में, राज्य एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं क्योंकि वे स्थिति का प्रबंधन कर सकते हैं और आबादी की मांगों के अनुसार क्षेत्र पर शासन कर सकते हैं, जिसके परिणामस्वरूप अंततः मुख्यधारा के समाज में लोगों के अतिरिक्त समूहों को शामिल किया जाएगा।

    निष्कर्ष:

    भारत एक संघीय देश है, फिर भी यहाँ कई क्षेत्रीय मतभेद भी हैं।संघीय लचीलेपन की उपस्थिति या कमी लोकतंत्र को आकार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। केंद्र सरकार को कानून बनाने की प्रक्रिया के एक अंग के रूप में राज्यों के साथ प्रभावी परामर्श की सुविधा हेतु संसाधनों का निवेश करना चाहिये। एक ऐसी प्रणाली स्थापित करना महत्त्वपूर्ण है, जहाँ नागरिकों और राज्यों को भागीदार के रूप में देखा जाता है, न कि अधीनस्थों के रूप में।

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