डेली न्यूज़ (22 Jul, 2021)



भवन क्षेत्र में ऊर्जा दक्षता हेतु नई पहलें

प्रिलिम्स के लिये

ऊर्जा दक्षता ब्यूरो

मेन्स के लिये

ऊर्जा दक्षता में सुधार की आवश्यकता और चुनौतियाँ  

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय ऊर्जा और नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्री ने 'आज़ादी का अमृत महोत्सव' (Azadi Ka Amrut Mahotsav) के हिस्से के रूप में भवन क्षेत्र में ऊर्जा दक्षता की दिशा में सरकार द्वारा की जा रही विभिन्न पहलों की घोषणा की।

  • इन पहलों की शुरुआत "स्थायी आवास के लिये लक्ष्य: ऊर्जा दक्षता निर्माण में नई पहल 2021" (Aiming for Sustainable Habitat: New Initiatives in Building Energy Efficiency 2021) का उद्घाटन करते हुए की गई, जिसे ऊर्जा दक्षता ब्यूरो (Bureau of Energy Efficiency) द्वारा लॉन्च किया गया।

ऊर्जा दक्षता ब्यूरो

  • इस ब्यूरो को विद्युत मंत्रालय के अंतर्गत ऊर्जा संरक्षण अधिनियम, 2001 के प्रावधानों के तहत स्थापित किया गया था।
  • यह भारतीय अर्थव्यवस्था के ऊर्जा आधिक्य को कम करने के प्राथमिक उद्देश्य के साथ विकासशील नीतियों और रणनीतियों में सहायता करता है।
  • यह अपने कार्यों को करने में मौजूदा संसाधनों एवं बुनियादी ढाँचे की पहचान तथा उपयोग करने के लिये नामित उपभोक्ताओं, एजेंसियों व अन्य संगठनों के साथ समन्वय करता है।

प्रमुख बिंदु

शुरू की गई पहलें:

  • ईको निवास संहिता:
    • भारत के ऊर्जा संरक्षण प्रयासों को बढ़ावा देने हेतु आवासीय भवनों (Energy Conservation Building Code for Residential- ECBC-R) के लिये यह एक ऊर्जा संरक्षण भवन कोड है।
    • यह ईको निवास संहिता 2021 के साथ कोड अनुपालन दृष्टिकोण और भवन सेवाओं के लिये न्यूनतम ऊर्जा प्रदर्शन आवश्यकताओं एवं सत्यापन ढाँचें को निर्दिष्ट करता है।
  • हैंडबुक फॉर लर्निंग:
    • वेब आधारित एक मंच “द हैंडबुक ऑफ रेप्लिकेबल डिज़ाइन फॉर एनर्जी एफिसिएंट रेज़िडेन्शियल बिल्डिंग्स” उपलब्ध होगा जिसका उपयोग भारत में कम ऊर्जा खपत वाले भवनों के निर्माण में एक उपयोगी और अपनाई जा सकने योग्य सूचनाओं एवं जानकारियों के स्रोत के रूप में किया जा सकेगा।
  •  निर्माण सामग्री की ऑनलाइन डॉयरेक्टरी:
    • ऊर्जा दक्षता वाले भवन निर्माण हेतु भवन निर्माण सामग्री के लिये मानकीकरण की प्रक्रिया को पूर्ण करने के उद्देश्य से भवन निर्माण सामग्री की एक ऑनलाइन डॉयरेक्टरी तैयार की जाएगी।
  • निर्माण पुरस्कार:
    • निर्माण पुरस्कार (NEERMAN यानी नेशनल एनर्जी एफिसिएन्सी रोडमैप फॉर मूवमेंट टूवर्ड्स एफोर्डेबल एंड नेचुरल हैबीटेट) की घोषणा की जाएगी जिसका उद्देश्य BEE की ऊर्जा बचत भवन संहिता के अनुरूप तैयार असाधारण रूप से ऊर्जा बचत भवन प्रारूपों को प्रोत्साहित करना है।
  • ऑनलाइन स्टार रेटिंग टूल:
    • यह पेशेवरों को अपने घरों में ऊर्जा दक्षता के सबसे उन्नत विकल्पों को अपनाने के लिये निर्णय करने में मदद करेगा।
    • व्यक्तिगत उपयोग वाले भवनों में ऊर्जा दक्षता और ऊर्जा बचत को बेहतर करने के लिये ऊर्जा दक्षता वाले घरों की रेटिंग हेतु ऑनलाइन स्टार रेटिंग टूल तैयार किया जा चुका है। 
  • प्रशिक्षण:
    • ऊर्जा संरक्षण भवन संहिता (ECBC) 2017 और इको निवास संहिता (ENS) 2021 के अंतर्गत 15000 वास्तुकारों, अभियंताओं एवं सरकारी अधिकारियों को प्रशिक्षित किया जाएगा।

महत्त्व:

  • निर्माण क्षेत्र, उद्योग के बाद विद्युत का दूसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता है, लेकिन वर्ष 2030 तक इसके सबसे बड़े ऊर्जा खपत वाले क्षेत्र बनने की उम्मीद है।
  • ऐसी पहलों से देश भर में आवासीय भवनों में ऊर्जा दक्षता के स्तर को बढ़ाने में मदद मिलेगी, जो सतत् आवास की ओर अग्रसर करेगा।
    • भारत को अधिक ऊर्जा कुशल बनाने के लिये यह पहल एक लंबा सफर तय करेगी।

भारत में ऊर्जा दक्षता

ऊर्जा दक्षता:

  • ऊर्जा दक्षता का अर्थ है किसी कार्य को करने के लिये कम ऊर्जा का उपयोग करना अर्थात् ऊर्जा की बर्बादी को समाप्त करना।
  • ऊर्जा दक्षता कई तरह के लाभ प्रदान करती है जैसे- ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन को कम करना, ऊर्जा आयात की मांग को कम करना और घरेलू तथा अर्थव्यवस्था-व्यापी स्तर पर लागत को कम करना।

ट्रांज़ीसन: 

  • भारत का ऊर्जा क्षेत्र सरकार की हाल की विकासात्मक महत्त्वाकांक्षाओं के साथ परिवर्तन के लिये तैयार है, उदाहरण के लिये वर्ष 2022 तक अक्षय ऊर्जा की स्थापित क्षमता 175 गीगावाट, सभी के लिये 24X7 बिजली, वर्ष 2022 तक सभी के लिये आवास, 100 स्मार्ट सिटी मिशन, ई-मोबिलिटी को बढ़ावा देना, रेलवे क्षेत्र का विद्युतीकरण, घरों का 100% विद्युतीकरण, कृषि पंप सेटों का सौरीकरण और स्वच्छ भोजन पकाने की स्थितियों को बढ़ावा देना।

ऊर्जा दक्षता की संभावना: 

  • वर्ल्ड एनर्जी आउटलुक (WEO 2010) के अनुसार, ऊर्जा दक्षता में लगभग 51% की अधिकतम ग्रीनहाउस गैस (GHG) के न्यूनीकरण की क्षमता है, इसके बाद नवीकरणीय (32%), जैव ईंधन (1%), परमाणु (8%), कार्बन कैप्चर और स्टोरेज (8%) है। 
  • भारत महत्त्वाकांक्षी ऊर्जा दक्षता नीतियों (IEA-भारत 2020) के कार्यान्वयन के साथ वर्ष 2040 तक बिजली उत्पादन हेतु 300 गीगावाट के नए निर्माण से बच सकता है।

सकारात्मक: 

  • ऊर्जा दक्षता उपायों के सफल कार्यान्वयन ने 2017-18 के दौरान देश की कुल बिजली खपत में 7.14% की बिजली बचत और 108.28 मिलियन टन CO2 के उत्सर्जन में कमी लाने में योगदान दिया।

ऊर्जा संरक्षण और ऊर्जा दक्षता को बढ़ावा देने संबंधी अन्य पहलें:

  •  प्रदर्शन, उपलब्धि और व्यापार (PAT): 
  • मानक और लेबलिंग:
    • यह योजना वर्ष 2006 में लॉन्च की गई थी और वर्तमान में रूम एयर कंडीशनर (फिक्स्ड/वेरिएबल स्पीड), सीलिंग फैन, रंगीन टेलीविज़न, कंप्यूटर, डायरेक्ट कूल रेफ्रिजरेटर, वितरण ट्रांसफार्मर, घरेलू गैस स्टोव, औद्योगिक मोटर, एलईडी लैंप तथा कृषि पम्पसेट जैसे उपकरणों पर लागू होती है।
  • ऊर्जा संरक्षण भवन कोड (ECBC):
    • इसे वर्ष 2007 में नए वाणिज्यिक भवनों के लिये विकसित किया गया था।
    • यह 100kW (किलोवाट) के कनेक्टेड लोड या 120 KVA (किलोवोल्ट-एम्पीयर) और उससे अधिक की अनुबंध मांग वाले नए वाणिज्यिक भवनों के लिये न्यूनतम ऊर्जा मानक निर्धारित करता है।
  • मांग पक्ष प्रबंधन (DSM):
    • इसका आशय विद्युत मीटर की मांग या ग्राहक-पक्ष पर प्रभाव डालने के उद्देश्य से उपायों के चयन, नियोजन और कार्यान्वयन से है।

स्रोत: पी.आई.बी.


भारत में जल क्षेत्र के लिये भू-स्थानिक प्रौद्योगिकियाँ

प्रिलिम्स के लिये:

भारत में जल क्षेत्र के लिये भू-स्थानिक प्रौद्योगिकियाँ और संचालित प्रमुख जल परियोजनाएंँ

मेन्स के लिये:

जल संकट संबंधी मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में एसोसिएशन ऑफ जियोस्पेशियल इंडस्ट्रीज़ ने "भारत में जल क्षेत्र के लिये भू-स्थानिक प्रौद्योगिकियों की क्षमता" (Potential of Geospatial Technologies for the Water Sector in India) शीर्षक से एक रिपोर्ट जारी की है। रिपोर्ट में जल क्षेत्र में उपलब्ध अवसरों का उल्लेख किया गया है जो भू-स्थानिक प्रौद्योगिकियों के उपयोग से लाभान्वित कर सकते हैं।

  • प्रत्येक वर्ष जैसे-जैसे भारत में जल संकट की गंभीरता बढ़ रही है, केंद्र और राज्य सरकार की एजेंसियांँ जल संकट से निपटने के लिये तरह-तरह के संसाधनों का इस्तेमाल कर रही हैं। उनमें से एक भू-स्थानिक प्रौद्योगिकियों को अपनाना भी है।

प्रमुख बिंदु:

भारत में जल क्षेत्र का अवलोकन:

  • मांग-आपूर्ति असंतुलन: भारत में विश्व की आबादी का लगभग 17% हिस्सा है, लेकिन विश्व के ताज़े जल के भंडार का केवल 4% है और भारत वर्तमान में एक गंभीर जल चुनौती का सामना कर रहा है।
    • इसके अलावा भारत के जलाशयों की कुल क्षमता 250 बिलियन क्यूबिक मीटर (bcm) है, जबकि सतह पर इसकी कुल जल धारण क्षमता लगभग 320 bcm है।
  • जल संग्रहण की कम दर: भारत को प्रत्येक वर्ष वर्षा या अन्य स्रोतों जैसे- ग्लेशियरों के माध्यम से 3,000 bcm जल प्राप्त होता है; इसमें से केवल 8% का ही संग्रहण किया जाता है।
  • भूजल का अति-निष्कर्षण और अति-निर्भरता: भारत में प्रतिवर्ष 458 bcm की दर से भूजल का निष्कर्षण होता है, जबकि यह पृथ्वी से लगभग 650 bcm जल का निष्कर्षण करता है।
    • भारत के 89% जल संसाधनों का उपयोग कृषि के लिये किया जाता है, जिसमें से 65% की आपूर्ति भूजल निष्कर्षण से की जाती है।
    • इस प्रकार भारत की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक भूजल संरक्षण है।
  • जल संकट: नीति आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्तमान में भारत के 12 प्रमुख नदी घाटियों में लगभग 820 मिलियन लोग अत्यधिक जल संकट का सामना कर रहे हैं।
  • गुणात्मक मुद्दा: जल उपलब्धता की कमी का मुद्दा जल की गुणवत्ता से जुड़ा मुद्दा है।
    • भारत के 600 ज़िलों में से एक-तिहाई में भूजल मुख्य रूप से फ्लोराइड और आर्सेनिक के माध्यम से दूषित है।
    • इसके अलावा भारत की पर्यावरण रिपोर्ट, 2019 के अनुसार, 2011-2018 के बीच सकल प्रदूषणकारी उद्योगों की संख्या में 136 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।

Water-Sector

जल संरक्षण की आवश्यकता:

  • जनसंख्या घनत्व और कृषि के लिये जल की आवश्यकता को देखते हुए भारत भूजल पर बहुत अधिक निर्भर है और जहाँ तक ​​जल संकट का संबंध है, यह सबसे बुरी तरह प्रभावित देशों में से एक है।
  • व्यक्तिगत, औद्योगिक और कृषि उपयोग के लिये सभी को स्वच्छ पानी की उपलब्धता न केवल यह सुनिश्चित करेगी कि भारत 5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने के अपने दृष्टिकोण तक पहुँचे बल्कि यह इसे संयुक्त राष्ट्र के सतत् विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने में भी सक्षम बनाएगा।

भू-स्थानिक प्रौद्योगिकियों के बारे में:

  • भू-स्थानिक प्रौद्योगिकियों का उपयोग पृथ्वी और मानव समाज के भौगोलिक मानचित्रण एवं विश्लेषण में योगदान करने वाले आधुनिक उपकरणों की श्रेणी का वर्णन करने के लिये किया जाता है।
  • 'भू-स्थानिक' शब्द एक एकल तकनीक को नहीं, बल्कि उन प्रौद्योगिकियों के संग्रह को संदर्भित करता है जो भौगोलिक जानकारी एकत्र करने, उनका विश्लेषण, संग्रहण, प्रबंधन, वितरण, एकीकरण और प्रस्तुत करने में मदद करते हैं।
  • मोटे तौर पर इसमें निम्नलिखित प्रौद्योगिकियाँ शामिल हैं:
    • रिमोट सेंसिंग
    • जीआईएस (भौगोलिक सूचना प्रणाली)
    • GNSS (ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम)
    • सर्वेक्षण
    • 3डी मॉडलिंग
  • लाभ: भू-स्थानिक प्रौद्योगिकी बेहतर माप, प्रबंधन और परिसंपत्तियों के रखरखाव, संसाधनों की निगरानी एवं यहाँ तक ​​कि पूर्वानुमान तथा नियोजित हस्तक्षेप के लिये निर्देशात्मक विश्लेषण प्रदान करने में सक्षम बनाती है।

जल क्षेत्र हेतु भू-स्थानिक प्रौद्योगिकी:

Aspects-of-water-sector

भारत में संचालित प्रमुख जल परियोजनाएंँ:

डिजिटल ट्विन

  • यह भौतिक दुनिया की एक आभासी प्रतिकृति है। इसकी गतिशीलता और प्रक्रियाएँ हमें वास्तविक जीवन स्थितियों का अनुकरण करने तथा इसके प्रभाव का विश्लेषण करने की अनुमति देती हैं।
  • डिजिटल ट्विन तीन भागों से बने होते हैं:
    • भौतिक दुनिया में भौतिक संस्थाओं।
    • आभासी दुनिया में आभासी मॉडल।
    • जुड़ा हुआ डेटा जो दो विश्व को जोड़ता है।
  • डिजिटल ट्विन्स न केवल भौतिक संपत्तियों (पाइप, पंप, वाल्व, टैंक आदि) के डिजिटल भाग को एकीकृत करते हैं, बल्कि मौसम संबंधी रिकॉर्ड जैसे ऐतिहासिक डेटा सेट को भी शामिल करते हैं, जो उन्हें कई विश्लेषणों के लिये उपयोग करने की अनुमति देता है।

आगे की राह

  • दीर्घकालिक भू-स्थानिक दृष्टि: विभिन्न कार्यक्रमों में भू-स्थानिक प्रौद्योगिकी कार्यान्वयन से अधिकतम लाभ प्राप्त करने के लिये उपयोगकर्त्ता विभागों को भू-स्थानिक कार्यान्वयन के परिणामों हेतु दीर्घकालिक दृष्टि से अपनाने की आवश्यकता है।
  • एकीकृत भू-स्थानिक मंच: विभिन्न संगठनों द्वारा उपयोग किये जाने वाले डेटा और प्रौद्योगिकी को जोड़ने हेतु एक एकीकृत सहयोगी मंच को स्थानीय तथा राष्ट्रीय स्तर पर सूचना तक निर्बाध पहुँच हेतु विकसित करने एवं निर्णय लेने में सक्षम बनाने की आवश्यकता है।
  • डेटा और सिस्टम एकीकरण: जनसांख्यिकी, सामाजिक-सांस्कृतिक, आर्थिक और अन्य मापदंडों सहित विभिन्न डेटासेट को जल से संबंधित स्थानिक एवं गैर-स्थानिक डेटा के साथ एकीकृत करने की आवश्यकता है, जैसे- मिट्टी की नमी, वार्षिक वर्षा, नदियाँ, जलभृत, भूजल स्तर, जल की गुणवत्ता आदि।
  • जल उपयोग दक्षता में सुधार: भारत में कृषि क्षेत्र जल संसाधनों का सबसे बड़ा उपयोगकर्त्ता है।
    • यह 80-85% जल संसाधनों का उपयोग करता है, जबकि जल ​के उपयोग की केवल 30-35% दक्षता है।
    • जल उपयोग दक्षता बढ़ाने के लिये भू-स्थानिक प्रौद्योगिकियों का उपयोग किया जा सकता है, ताकि इसे कम-से-कम 50% तक बढ़ाया जा सके।
  • सर्वोत्तम उपायों को साझा करना: राज्य सरकारों के साथ या जल क्षेत्र से संबंधित कार्यक्रमों के अंतर्गत स्थापित क्षेत्रों में सर्वाधिक अच्छे कार्य हुए है।
    • इस संदर्भ में अत्यधिक ज्ञान/जानकारी उपलब्ध है, जो हितधारकों को लाभ उठाने में मदद कर सकती है तथा इससे कार्य का दोहराव भी नहीं होगा।
    • जल शक्ति मंत्रालय द्वारा ज्ञान (Knowledge) पोर्टल के रूप में इस तरह के ज्ञान आधारित संरचना का एक केंद्रीय भंडार बनाए रखा जा सकता है जिसमें केस स्टडी, सर्वोत्तम उपाय, उपकरण, डेटा स्रोतों पर जानकारी आदि शामिल हैं।

स्रोत : पी.आई.बी.


आकाश मिसाइल और MPATGM: DRDO

प्रिलिम्स के लिये 

आकाश मिसाइल, मैन पोर्टेबल एंटी टैंक गाइडेड मिसाइल, रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन

मेन्स के लिये

रक्षा प्रोद्योगिकी के स्वदेशीकरण में DRDO की भूमिका

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ‘रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन’ (DRDO) ने नई पीढ़ी की ‘आकाश मिसाइल’ (Akash-NG) और ‘मैन पोर्टेबल एंटी टैंक गाइडेड मिसाइल’ (MPATGM) का सफलतापूर्वक परीक्षण किया है।

  • जून 2021 में ‘रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन’ द्वारा नई पीढ़ी की परमाणु सक्षम बैलिस्टिक मिसाइल ‘अग्नि-पी’ (प्राइम) का सफलतापूर्वक परीक्षण किया गया था।
  • फरवरी 2021 में भारत ने स्वदेशी रूप से विकसित एंटी टैंक गाइडेड मिसाइल सिस्टम 'हेलिना' और 'ध्रुवस्त्र' का भी सफलतापूर्वक परीक्षण किया था।

रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO)

  • यह भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय का अनुसंधान एवं विकास विंग है, जिसका लक्ष्य भारत को अत्याधुनिक रक्षा प्रौद्योगिकियों के साथ सशक्त बनाना है।
  • इसकी स्थापना वर्ष 1958 में रक्षा विज्ञान संगठन (Defence Science Organisation- DSO) के साथ भारतीय सेना के तकनीकी विकास प्रतिष्ठान (Technical Development Establishment- TDEs) तथा तकनीकी विकास और उत्पादन निदेशालय (Directorate of Technical Development & Production- DTDP) के संयोजन के बाद की गई थी।

प्रमुख बिंदु

नई पीढ़ी की ‘आकाश मिसाइल’ (Akash-NG):

Akash-NG

  • परिचय
    • यह सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल है। यह आकाश मिसाइल का एक नवीनतम  संस्करण है जो लगभग 60 किलोमीटर की दूरी पर स्थित लक्ष्य पर हमला कर सकती है और 2.5 मैक तक की गति से उड़ान भर सकती है।
    • एक बार तैनात होने के पश्चात् नई पीढ़ी की ‘आकाश मिसाइल’ हथियार प्रणाली भारतीय वायु सेना की वायु रक्षा क्षमता के लिये एक महत्त्वपूर्ण गुणक साबित होगी।
  • विकास और उत्पादन:
    • इस मिसाइल प्रणाली को हैदराबाद स्थित ‘रक्षा अनुसंधान एवं विकास प्रयोगशाला’ (DRDL) द्वारा अन्य DRDO प्रयोगशालाओं के सहयोग से विकसित किया गया है।
    • इसका निर्माण ‘भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड’ (BEL) और ‘भारत डायनेमिक्स लिमिटेड’ (BDL) द्वारा किया जा रहा है।
  • आकाश मिसाइल:
    • आकाश भारत की पहली स्वदेश निर्मित मध्यम श्रेणी की सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल है जो कई दिशाओं, कई लक्ष्यों को निशाना बना सकती है।
      • इस मिसाइल को मोबाइल प्लेटफाॅर्मों के माध्यम से युद्धक टैंकों या ट्रकों से लॉन्च किया जा सकता है। इसमें लगभग 90% तक लक्ष्य को भेदने की सटीकता की संभावना है।
      • इस मिसाइल का संचालन स्वदेशी रूप से विकसित रडार 'राजेंद्र' द्वारा किया जाता है।
      • यह मिसाइल ठोस ईंधन तकनीक और उच्च तकनीकी रडार प्रणाली के कारण अमेरिकी पैट्रियट मिसाइलों (US’ Patriot Missiles) की तुलना में सस्ती और अधिक सटीक है।
      • यह मिसाइल ध्वनि की गति से 2.5 गुना तीव्र गति से लक्ष्य को भेद सकती है तथा निम्न, मध्यम और उच्च ऊँचाई पर लक्ष्यों का पता लगाकर उन्हें नष्ट कर सकती है।
    • आकाश मिसाइल प्रणाली को भारत के 30 वर्षीय एकीकृत निर्देशित-मिसाइल विकास कार्यक्रम (Integrated Guided-Missile Development Programme- IGMDP) के हिस्से के रूप में डिज़ाइन और विकसित किया गया है।

मैन पोर्टेबल एंटी टैंक गाइडेड मिसाइल:

Missile

  • यह एक स्वदेश निर्मित एंटी टैंक गाइडेड मिसाइल है।
    • एंटी टैंक गाइडेड मिसाइल एक मध्यम या लंबी दूरी की मिसाइल है जिसका प्राथमिक उद्देश्य टैंक और अन्य बख्तरबंद वाहनों को नष्ट करना है।
  • यह कम वज़न वाली दागो और भूल जाओ (Fire and Forget) प्रणाली पर काम करने वाली मिसाइल है।
  • इसे 15 किग्रा. से कम वज़न के साथ 2.5 किमी. की अधिकतम रेंज में लॉन्च किया गया है।
  • इसके सफल परीक्षण ने सरकार के आत्मनिर्भर भारत अभियान को बढ़ावा दिया और भारतीय सेना को मज़बूती प्रदान की।

एकीकृत निर्देशित मिसाइल विकास कार्यक्रम (IGMDP)

  • इसकी स्थापना का विचार प्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम द्वारा दिया गया था। इसका उद्देश्य मिसाइल प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता हासिल करना था। इसे भारत सरकार द्वारा वर्ष 1983 में अनुमोदित किया गया था और मार्च 2012 में पूरा किया गया था।
  • इस कार्यक्रम के तहत विकसित 5 मिसाइलें (P-A-T-N-A) हैं:
    • पृथ्वी: सतह-से-सतह पर मार करने में सक्षम कम दूरी वाली बैलिस्टिक मिसाइल।
    • अग्नि: सतह-से-सतह पर मार करने में सक्षम मध्यम दूरी वाली बैलिस्टिक मिसाइल, यानी अग्नि (1,2,3,4,5)।
    • त्रिशूल: सतह-से-आकाश में मार करने में सक्षम कम दूरी वाली मिसाइल।
    • नाग: तीसरी पीढ़ी की टैंक भेदी मिसाइल।
    • आकाश: सतह-से-आकाश में मार करने में सक्षम मध्यम दूरी वाली मिसाइल।

स्रोत: पी.आई.बी.


आईबीबीआई विनियम 2016 में संशोधन

प्रिलिम्स के लिये

दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता,  2016; भारतीय दिवाला और शोधन अक्षमता बोर्ड

मेन्स के लिये 

दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता का उद्देश्य, इसका महत्त्व और विशेषताएँ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय दिवाला और शोधन अक्षमता बोर्ड (The Insolvency and Bankruptcy Board of India-IBBI) ने भारतीय दिवाला और शोधन अक्षमता बोर्ड (कॉरपोरेट्स के लिये दिवालियापन समाधान प्रक्रिया) विनियम, 2016 में संशोधन किया है।

  • संशोधनों का उद्देश्य कॉरपोरेट्स के लिये दिवालियापन समाधान प्रक्रिया में अनुशासन, पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ाना है।
  • मार्च 2021 में इनसॉल्वेंसी लॉ कमेटी (ILC) की एक उपसमिति द्वारादिवाला एवं शोधन अक्षमता कोड’ (Insolvency and Bankruptcy Code- IBC), 2016 के मूल ढाँचे के भीतर प्री-पैक ढाँचे (Pre-Pack Framework) की सिफारिश की गई है।

प्रमुख बिंदु 

पूर्व नाम और पता का खुलासा:

  •  इस संशोधन के तहत कॉरपोरेट्स के लिये दिवालियापन समाधान प्रक्रिया (CIRP) का संचालन करने वाले दिवाला पेशेवर (IP) के लिये यह आवश्‍यक होगा कि वह कॉर्पोरेट देनदार (CD) के वर्तमान नाम एवं पंजीकृत कार्यालय के पते के साथ दिवालिया प्रक्रिया शुरू होने से दो वर्ष पूर्व तक की अवधि में उसके नाम अथवा पंजीकृत कार्यालय के पते में हुए बदलावों का खुलासा करे और सभी संचार एवं रिकॉर्ड में उसका उल्‍लेख  करे ।
    • CIRP में कंपनी को पुनर्जीवित करने के लिये आवश्यक कदम शामिल हैं जैसे- ऑपरेशन के लिये नए फंड जुटाना, कंपनी को बेचने हेतु एक नए खरीदार की तलाश करना आदि।
    • सीडी, कॉर्पोरेट संगठन के किसी भी व्यक्ति को कर्ज दे सकता है।
  • कॉरपोरेट देनदार (CD) दिवालिया प्रक्रिया शुरू होने से पहले अपना नाम अथवा पंजीकृत कार्यालय का पता बदल सकता है। ऐसे मामलों में हितधारकों को नए नाम या पंजीकृत कार्यालय के पते के साथ तालमेल बिठाने में कठिनाई हो सकती है। परिणामस्वरूप वे CIRP में भाग लेने में विफल हो सकते हैं। 

पेशेवरों की नियुक्ति:

  • संशोधन में प्रावधान है कि अंतरिम समाधान पेशेवर (IRP) या समाधान पेशेवर (RP) पंजीकृत मूल्यांकनकर्त्ताओं के अलावा किसी पेशेवर को नियुक्त कर सकता है, यदि उसकी राय में ऐसे पेशेवर की सेवाओं की आवश्यकता है और CD के पास ऐसी सेवाएँ उपलब्ध नहीं हैं। 
  • ऐसी नियुक्तियाँ एक उद्देश्यपूर्ण और पारदर्शी प्रक्रिया का पालन करते हुए निष्पक्ष आधार पर की जाएंगी।

लेन-देन से बचना:

  • RP यह पता लगाने के लिये बाध्य है कि क्या CD लेन-देन के अधीन है, अर्थात् तरजीही लेन-देन, कम मूल्य वाले लेन-देन, ज़बरन क्रेडिट लेन-देन, धोखाधड़ी व्यापार, गलत व्यापार से उचित राहत की मांग करने वाले न्यायनिर्णायक प्राधिकरण के पास आवेदन दायर कर सकते हैं।

महत्त्व:

  • यह हितधारकों को अपने पुराने मूल्य को वापस पाने की अनुमति देगा और हितधारकों को इस तरह के लेन-देन करने से हतोत्साहित करेगा।

दिवाला: यह एक ऐसी स्थिति है जब व्यक्ति या कंपनियाँ अपना बकाया कर्ज़ चुकाने में असमर्थ होती हैं।

दिवालियापन: यह एक ऐसी स्थिति है जिसमें सक्षम क्षेत्राधिकार वाली अदालत ने किसी व्यक्ति या संस्था को दिवालिया घोषित कर दिया है, इस समस्या को हल करने और लेनदारों के अधिकारों की रक्षा के लिये उचित आदेश पारित कर दिया जाता है। यह कर्ज चुकाने में असमर्थता की कानूनी घोषणा है।

दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता 

अधिनियमन:

  • IBC को वर्ष 2016 में अधिनियमित किया गया था।
  • इसका उद्देश्य विफल व्यवसायों की समाधान प्रक्रिया को सुव्यवस्थित और तेज़ करना है।

उद्देश्य:

  • इसके अलावा दिवाला समाधान के लिये सभी वर्गों के देनदारों और लेनदारों हेतु एक साझा मंच बनाने के लिये मौजूदा विधायी ढाँचे के प्रावधानों को समेकित करना।
  • यह निर्धारित करता है कि एक तनावग्रस्त कंपनी की समाधान प्रक्रिया को अधिकतम 270 दिनों में पूरा करना होगा।

दिवाला समाधान की सुविधा के लिये संस्थान:

  • दिवाला पेशेवर:
    • ये पेशेवर समाधान प्रक्रिया का प्रबंधन करते हैं, देनदार की संपत्ति के प्रबंधन और लेनदारों को निर्णय लेने में सहायता करने के लिये जानकारी प्रदान करते हैं।
  • दिवाला व्यावसायिक एजेंसियाँ :
    • ये एजेंसियाँ दिवाला पेशेवरों को प्रमाणित करने और उनके प्रदर्शन के लिये आचार संहिता लागू करने हेतु परीक्षा आयोजित करती हैं।
  • सूचना उपयोगिताएँ:
    • लेनदारों को देनदार द्वारा दिये गए ऋण की वित्तीय जानकारी की रिपोर्ट करनी होगी। इस तरह की जानकारी में ऋण, देनदारियों और चूक के रिकॉर्ड शामिल होंगे।
  • निर्णायक प्राधिकारी:
    • कंपनियों के लिये समाधान प्रक्रिया की कार्यवाही राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण (NCLT) द्वारा और व्यक्तिगत समाधान प्रक्रिया की कार्यवाही ऋण वसूली न्यायाधिकरण (DRT) द्वारा की जाती है।
    • अधिकारियों के कर्तव्यों में समाधान प्रक्रिया शुरू करने, दिवाला पेशेवर नियुक्त करने और लेनदारों के अंतिम निर्णय को मंज़ूरी देना शामिल होगा।
  • दिवाला एवं दिवालियापन बोर्ड:
    • यह बोर्ड संहिता के कार्यान्वयन के लिये ज़िम्मेदार प्रमुख स्तंभ है।
    • यह संहिता के अंतर्गत स्थापित दिवाला पेशेवरों, दिवाला पेशेवर एजेंसियों और सूचना उपयोगिताओं को नियंत्रित करता है।
    • इस बोर्ड में भारतीय रिज़र्व बैंक और वित्त, कॉर्पोरेट मामलों एवं कानून मंत्रालयों के प्रतिनिधि शामिल हैं।

दिवाला समाधान प्रक्रिया

  • इसे फर्म के किसी भी हितधारक (देनदार/लेनदार/कर्मचारी) द्वारा शुरू किया जा सकता है। यदि न्यायनिर्णायक प्राधिकारी स्वीकार करता है, तो एक आईपी नियुक्त किया जाता है।
  • फर्म के प्रबंधन और बोर्ड की शक्ति लेनदारों की समिति (Committee of Creditor) को हस्तांतरित कर दी जाती है। वह आईपी के माध्यम से कार्य करती है।
  • आईपी को यह तय करना होता है कि कंपनी को पुनर्जीवित (दिवालियापन समाधान)  करना है या समाप्त (परिसमापन) करना है।
  • यदि वे यदि पुनर्जीवित करने का निर्णय लेते हैं, तो उन्हें फर्म को खरीदने के लिये किसी को तैयार करना होगा।
  • लेनदारों को भी कर्ज़ में भारी कमी को स्वीकार करना होगा। कटौती को हेयरकट (Haircut) के रूप में जाना जाता है।
  • वे फर्म को खरीदने के लिये इच्छुक पार्टियों से खुली बोलियाँ लगाने हेतु कहते हैं।
  • वे सबसे अच्छी समाधान योजना वाली पार्टी चुनते हैं, जो कि फर्म के प्रबंधन को संभालने के लिये अधिकांश लेनदारों (सीओसी में 75%) द्वारा स्वीकार्य हो।

स्रोत: पी. आई. बी.


नई विंटेज वाहन नीति

प्रिलिम्स के लिये:

विंटेज वाहन

मेन्स के लिये:

नई विंटेज वाहन नीति और इसका महत्त्व

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय (MORTH) ने केंद्रीय मोटर वाहन नियम, 1989 में संशोधन किया है।

  • इसमें 50 वर्षो से अधिक पुराने विंटेज वाहनों के लिये कुछ विशेष प्रावधान हैं।

प्रमुख बिंदु:

विंटेज वाहनों की परिभाषा:

  • सभी दो और चार पहिया वाहन जो 50 वर्ष तथा उससे अधिक पुराने हैं एवं वर्तमान में अपने मूल रूप में हैं व जिनमें कोई महत्त्वपूर्ण बदलाव नहीं हुआ है, उन्हें विंटेज मोटर वाहन के रूप में परिभाषित किया जाएगा।

विनियमन:

  • इन्हें नियमित और व्यावसायिक उद्देश्यों के लिये संचालित नहीं किया जाएगा तथा उन्हें एक विशेष पंजीकरण प्राप्त करना होगा।
  • इसके अलावा वाहन मालिक अपनी पुरानी कारों का किसी भी तरह से उपयोग कर सकते हैं जैसे कि प्रदर्शनी के रूप में या सवारी वाहन के लिये।
  • नए पंजीकरण नियमों के अनुसार जो वाहन पहले से पंजीकृत हैं, वे अपना मूल पंजीकरण चिह्न (Registration Mark) बरकरार रख सकते हैं, साथ ही नए पंजीकरण एक अद्वितीय विंटेज (VA) शृंखला के तहत होंगे।
    • पंजीकरण की जानकारी MORTH के परिवहन पोर्टल पर उपलब्ध होगी।
    • पंजीकरण प्रमाणपत्र 10 वर्षों के लिये वैध होगा, उसके बाद उसका नवीनीकरण कराना होगा।
  • विंटेज के रूप में पंजीकृत वाहनों की बिक्री और खरीद की अनुमति है; इसके लिये खरीदार तथा विक्रेता को अपने संबंधित राज्य परिवहन प्राधिकरणों को सूचित करना होगा।
  • पुराने वाहनों को स्क्रैपेज पॉलिसी से बाहर रखा गया है। अगर कोई वाहन 15 वर्ष से अधिक पुराना है तो 50 वर्ष की अवधि तक हर पाँच वर्ष में फिटनेस टेस्ट पास करके इसके उपयोग को जारी रखा जा सकता है।

महत्त्व:

  • विंटेज वाहन के लिये विभिन्न राज्यों में पंजीकरण की प्रक्रिया को विनियमित करने हेतु वर्तमान में कोई नियम नहीं है।
  • नए नियम किसी भी नवीन पंजीकरण के लिये बाधा रहित प्रक्रिया प्रदान करेंगे।
  • इसका उद्देश्य भारत में पुराने वाहनों की विरासत को संरक्षित और बढ़ावा देना है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


दक्षिण एशियाई पहल

प्रिलिम्स के लिये:

कोविड -19, सार्क देश

मेन्स के लिये: 

चीन के नेतृत्व वाली दक्षिण एशियाई पहल का भारत के लिये महत्त्व

चर्चा में क्यों?

हाल ही में बांग्लादेश ने भारत को कोविड-19 टीकों और गरीबी उन्मूलन हेतु चीन के नेतृत्व वाली दक्षिण एशियाई पहल (China-led South Asian Initiative) में शामिल होने के लिये आमंत्रित किया है।

  • इसमें चीन-दक्षिण एशियाई देशों के आपातकालीन आपूर्ति रिज़र्व (China-South Asian Countries Emergency Supplies Reserve) और चीन में एक गरीबी उन्मूलन एवं सहकारी विकास केंद्र (Poverty Alleviation and Cooperative Development Centre) की स्थापना शामिल है।

प्रमुख बिंदु: 

चीन-दक्षिण एशियाई पहल के बारे में:

  • सदस्य: चीन, अफगानिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका।
    • भारत, भूटान और मालदीव अन्य सार्क देश हैं जो इस पहल का हिस्सा नहीं हैं।
  • चीन का दृष्टिकोण: चीन के दक्षिण एशियाई देशों के साथ विभिन्न प्रकार के रणनीतिक, समुद्री, राजनीतिक और वैचारिक हित हैं, अत: वह भारत को प्रतिसंतुलित करने के लिये  प्रत्येक देश के साथ अपने जुड़ाव को समान स्तर पर बढ़ा रहा है।
  • भारत का रुख: लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA)  की आक्रामकता के कारण उत्पन्न तनाव को देखते हुए भारत का मानना है कि सीमा गतिरोध के समाधान के बिना अन्य द्विपक्षीय संबंध आगे नहीं बढ़ सकते हैं।

संबद्ध मुद्दे: यह पहल चीन की दक्षिण एशिया में भारत की भूमिका को कम करने की रणनीति प्रतीत होती है। यह निम्नलिखित तर्कों में परिलक्षित होती है:

  • माइनस-इंडिया इनिशिएटिव: सभी सार्क (SAARC) सदस्य देशों (भारत, भूटान और मालदीव को छोड़कर) के संयोजन के आधार पर कुछ विशेषज्ञों ने यह निष्कर्ष निकाला कि यह "माइनस इंडिया" (Minus-India) पहल (अर्थात् ऐसी पहल जिसमें भारत शामिल नहीं है) थी।
  • दक्षिण एशिया में भारत की भूमिका को कमज़ोर करना: यह पहल चीन के दक्षिण एशिया में पैठ बनाने के प्रयासों में से एक है।
    • इस क्षेत्रीय समूह पर चीनी दबाव ऐसे समय में देखा गया है जब भारत सार्क की जगह अपना ध्यान बिम्सटेक (BIMSTEC) पर केंद्रित कर रहा है।
  • काउंटरिंग क्वाड: चीन के नेतृत्व वाले ब्लॉक की योजना अमेरिका के नेतृत्व वाले क्वाड (जिसमें भारत एक सक्रिय सदस्य है) का मुकाबला करने के लिये उत्तरी हिमालयी क्वाड (Himalayan Quad) बनाने की हो सकती है।

दक्षिण एशिया के लिये भारत की पहल:

  • वर्ष 2021 की शुरुआत में भारत ने अपनी 'पड़ोसी पहले' नीति से प्रेरित और इस क्षेत्र के 'सुरक्षा प्रदाता' के रूप में भूमिका के तहत अपने तत्काल पड़ोसियों (वैक्सीन कूटनीति) को प्राथमिकता के आधार पर कोविड-19 टीके प्रदान करना शुरू कर दिया।
    • भारत इनमें से कुछ देशों में स्वास्थ्य कार्यकर्त्ताओं के प्रशिक्षण को प्रशासित करने के लिये बुनियादी ढाँचे की स्थापना में भी मदद कर रहा है।
  • हाल ही में भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया ने औपचारिक रूप से सप्लाई चेन रेज़ीलिएंस इनीशिएटिव शुरू किया है।
    • इसका उद्देश्य कोविड-19 महामारी के बीच भारत-प्रशांत क्षेत्र में आपूर्ति शृंखलाओं के फिर से शुरू होने की संभावना के बीच चीन पर निर्भरता को कम करना है।
  • हालाँकि भारत वर्षों से श्रीलंका, नेपाल और मालदीव जैसे देशों में चीनी निवेश की गति को कम करने के लिये संघर्ष कर रहा है, जहाँ चीन अपने बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के हिस्से के रूप में बंदरगाहों, सड़कों और बिजली स्टेशनों का निर्माण कर रहा है।

आगे की राह  

  • सीमा आयोग की स्थापना: भारतीय बाह्य सीमाओं का सीमांकन का कार्य अभी पूर्ण नहीं हुआ है। सीमा विवादों के समाधान से स्थिर क्षेत्रीय एकीकरण का मार्ग प्रशस्त होगा।
    • इस प्रकार भारत को सीमा आयोग की स्थापना करके सीमा-विवादों के समाधान के लिये प्रयास करना चाहिये।
  • विदेश नीति के लक्ष्यों का सीमांकन : भारत की क्षेत्रीय आर्थिक और विदेश नीति को एकीकृत करना एक बड़ी चुनौती है।
    • इसलिये भारत को लघु आर्थिक हितों के लिये पड़ोसियों के साथ द्विपक्षीय संबंधों से समझौते का विरोध करना चाहिये।
  • क्षेत्रीय कनेक्टिविटी में सुधार: क्षेत्रीय कनेक्टिविटी को अधिक मज़बूती के साथ आगे बढ़ाया जाना चाहिये, जबकि सुरक्षा चिंताओं का समाधान लागत प्रभावी, कुशल और विश्वसनीय तकनीकी उपायों के माध्यम से किया जाना चाहिये जो दुनिया के अन्य हिस्सों में उपयोग किये जा रहे हैं।
  • गुजराल के सिद्धांत को लागू करना: भारत की पड़ोस नीति गुजराल सिद्धांत पर आधारित होनी चाहिये।
    • इससे यह सुनिश्चित होगा कि भारत के स्थिति और मज़बूती को पड़ोसियों के साथ उसके संबंधों की गुणवत्ता से अलग नहीं किया जा सकता है तथा इसके माध्यम से क्षेत्रीय विकास भी हो सकता है।

स्रोत : द हिंदू


बर्ड फ्लू: एवियन इन्फ्लुएंज़ा

प्रिलिम्स के लिये:

H5N1 एवियन इन्फ्लूएंज़ा,  H10N3 बर्ड फ्लू

मेन्स के लिये:

H5N1 एवियन इन्फ्लूएंज़ा के संक्रमण का कारण एवं भारत में इसकी स्थिति

चर्चा में क्यों?

इस वर्ष हाल ही में भारत में बर्ड फ्लू के कारण पहली मानव मृत्यु दर्ज की गई। यह H5N1 एवियन इन्फ्लूएंज़ा वायरस के कारण हुई।

  • इससे पहले चीन ने H10N3 बर्ड फ्लू के पहले मानव संक्रमण की सूचना दी थी।

प्रमुख बिंदु:

  • यह दुनिया भर में जंगली पक्षियों में प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले एवियन इन्फ्लूएंज़ा (AI) टाइप A वायरस के कारण होने वाली बीमारी है।
    • AI वायरस को उनकी रोगजनकता के आधार पर ‘लो पैथोजेनिक AI’ (LPAI)) और हाई पैथोजेनिक AI (HPAI) वायरस के रूप में वर्गीकृत किया जाता है। H5N1 स्ट्रेन HPAI वायरस के अंतर्गत आते हैं।
  • यह वायरस मुर्गियों, बत्तखों, टर्की सहित घरेलू मुर्गियों को संक्रमित कर सकता है और थाईलैंड के चिड़ियाघरों में सूअरों, बिल्लियों यहाँ तक ​​कि बाघों में H5N1 संक्रमण की खबरें मिली हैं।

प्रभाव:

  • विशेष रूप से पोल्ट्री उद्योग के लिये इसके विनाशकारी परिणाम हो सकते हैं।
  • किसान अपने पशु समूहों में उच्च स्तर की मृत्यु दर का अनुभव कर सकते हैं, जिनकी दर अक्सर लगभग 50% होती है।

मनुष्यों में संक्रमण:

  • वायरस के संचरण का सबसे आम मार्ग संक्रमित पक्षियों के साथ सीधा संपर्क है, यह या तो मृत या जीवित या संक्रमित पोल्ट्री के पास दूषित सतहों या हवा के संपर्क में आने से फैलता है।
  • 40 वर्ष से कम उम्र के वयस्कों और बच्चों को इससे सबसे अधिक प्रभावित देखा गया तथा इसमें 10-19 वर्ष के बच्चों में मृत्यु दर अधिक देखी गई है।

मनुष्यों में लक्षण:

  • इसमें हल्के से गंभीर इन्फ्लूएंज़ा के लक्षण जैसे- बुखार, खाँसी, गले में खराश, मांसपेशियों में दर्द, पेट दर्द, दस्त, उल्टी लोगों में गंभीर साँस की बीमारी (जैसे- साँस लेने में कठिनाई, निमोनिया, तीव्र श्वसन की समस्या, वायरल निमोनिया) तथा परिवर्तित मानसिक स्थिति, दौरे आदि देखे जा सकते हैं।

रोकथाम और उन्मूलन:

  • रोग के प्रकोप से बचाव हेतु सख्त जैव सुरक्षा उपाय और स्वच्छता आवश्यक है।
  • यदि जानवरों में संक्रमण का पता चलता है, तो संक्रमित और संपर्क में आए जानवरों को मारने की नीति का उपयोग आमतौर पर रोग को तीव्रता से नियंत्रित करने तथा रोग के  उन्मूलन  हेतु  किया जाता है।
  • WHO की वैश्विक प्रयोगशाला प्रणाली, वैश्विक इन्फ्लूएंजा निगरानी और प्रतिक्रिया प्रणाली (GISRS), इन्फ्लूएंज़ा वायरस के प्रसार के उपभेदों की पहचान और निगरानी करती है तथा विभिन्न देशों में मानव स्वास्थ्य एवं उपलब्ध उपचार या नियंत्रण उपायों हेतु देशों को  जोखिम आधारित सलाह प्रदान करती है।

भारत में बर्ड फ्लू की स्थिति:

  • दिसंबर 2020 से जनवरी 2021 के बीच भारत के विभिन्न राज्यों में बर्ड फ्लू के ताज़ा मामले सामने आए हैं, जिससे पूरे देश में अफरातफरी मच गई है।
  • इससे पहले वर्ष 2019 में भारत को ‘एवियन इन्फ्लूएंज़ा’ (H5N1) से मुक्त घोषित किया गया था, इस संबंध में ‘विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन’ (OIE) को भी अधिसूचित किया जा चुका है।
    • विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन, दुनिया भर में पशु स्वास्थ्य में सुधार हेतु उत्तरदायी एक अंतर-सरकारी संगठन है। इसका मुख्यालय पेरिस, फ्रांँस में है।

इन्फ्लूएंज़ा वायरस के प्रकार 

  • इन्फ्लूएंज़ा वायरस चार प्रकार के होते हैं: इन्फ्लूएंज़ा A, B, C और D
    • इन्फ्लूएंज़ा A और B दो प्रकार के इन्फ्लूएंज़ा हैं जो लगभग प्रत्येक वर्ष मौसमी संक्रमण जनित महामारी का कारण बनते हैं।
    •  इन्फ्लूएंज़ा विषाणु C सामान्यतः मनुष्यों में होता है लेकिन यह विषाणु कुत्तों एवं सूअरों को भी प्रभावित करता है। 
    • इन्फ्लूएंज़ा D मुख्य रूप से मवेशियों में पाया जाता है। इस विषाणु के अब तक मनुष्यों में संक्रमण या बीमारी उत्पन्न करने के कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं है।

एवियन इन्फ्लूएंज़ा टाइप A वायरस

  • इन्फ्लूएंज़ा A वायरस को दो प्रकार के प्रोटीन HA (Hemagglutinin) और NA (Neuraminidase) के आधार पर 18HA और 11NA उप-प्रकारों में वर्गीकृत किया जाता है। 
  • इन दो प्रोटीनों के कई संयोजन संभव हैं जैसे, H5N1, H7N2, H9N6, H17N10, H18N11 आदि।
  • इन्फ्लूएंज़ा A के सभी ज्ञात उप-प्रकार H17N10 और H18N11 उप-प्रकारों को छोड़कर अन्य सभी वायरस पक्षियों को संक्रमित कर सकते हैं, जो केवल चमगादड़ों में पाए गए हैं।

आगे की राह

  • संभावित रोगों के परिवर्तन/आगमन की प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली के रूप में कार्य करने के लिये हमारे पर्यावरण में जंगली पक्षी और पशु रोग की माॅनीटरिंग की आवश्यकता है।
  • कम रोगजनक वायरस के लिये पोल्ट्री और घरेलू जलपक्षी की जाँच हेतु एक गहन अध्ययन की आवश्यकता है।
  • अध्ययन में यह भी पाया गया है कि H5N1 का प्रकोप झीलों, नदियों और तटीय आर्द्रभूमि के निकटतम स्थानों पर अधिक था। घरेलू पोल्ट्री व जंगली जलपक्षियों द्वारा सतही जल के मिश्रित उपयोग को अवरुद्ध करके एवियन इन्फ्लूएंज़ा वायरस के चक्रण को बाधित किया जा सकता है।
  • स्थानीय, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व के कई जलपक्षी स्थलों की निगरानी पर ज़ोर दिया जाना चाहिये।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


नशीली दवाओं के खतरे से लड़ने के लिये समझौते

प्रिलिम्स के लिये:

वर्ल्ड ड्रग रिपोर्ट 2021

मेन्स के लिये:

भारत और अवैध दवा व्यापार

चर्चा में क्यों?

भारत ने 26 द्विपक्षीय समझौतों, 15 समझौता ज्ञापनों और विभिन्न देशों के साथ सुरक्षा सहयोग को लेकर  दो समझौतों पर हस्ताक्षर किये हैं, ताकि रासायनिक पूर्ववर्तियों (Chemical Precursors) के अलावा मादक पदार्थों, दवाओं और मनोदैहिक पदार्थों की अवैध तस्करी का मुकाबला किया जा सके।

प्रमुख बिंदु

भारत में नशीली दवाओं का खतरा:

Golden-Crescent

  • भारत के युवाओं में नशे की लत तेज़ी से बढ़ रही है।
  • भारत विश्व के दो सबसे बड़े अफीम उत्पादक क्षेत्रों (एक तरफ स्वर्णिम त्रिभुज क्षेत्र और दूसरी तरफ स्वर्णिम अर्धचंद्र क्षेत्र) के बीच स्थित है।
    • स्वर्ण त्रिभुज क्षेत्र में थाईलैंड, म्याँमार, वियतनाम और लाओस शामिल हैं।
    • स्वर्णिम अर्धचंद्र क्षेत्र में पाकिस्तान, अफगानिस्तान और ईरान शामिल हैं।
  • वर्ल्ड ड्रग रिपोर्ट 2021 के अनुसार, भारत (विश्व में जेनेरिक दवाओं का सबसे बड़ा निर्माता) में प्रिस्क्रिप्शन दवाओं और उनके अवयवों को मनोरंजक उपयोग के साधनों में तेज़ी से परिवर्तित किया जा रहा है।
  • अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) द्वारा वर्ष 2019 में जारी 'भारत में पदार्थ के उपयोग का परिमाण रिपोर्ट' के अनुसार:
    • सर्वेक्षण के समय (वर्ष 2018 में आयोजित) लगभग 5 करोड़ भारतीयों ने भाँग और ओपिओइड (Opioids) का उपयोग करने की सूचना दी थी।
    • अनुमान है कि लगभग 8.5 लाख लोग ड्रग्स का इंजेक्शन लगाते हैं।
    • रिपोर्ट के अनुसार, अनुमानित कुल मामलों में से आधे से अधिक पंजाब, असम, दिल्ली, हरियाणा, मणिपुर, मिज़ोरम, सिक्किम और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों से हैं।
    • अनुमान के अनुसार, लगभग 60 लाख लोगों को अपनी ओपिओइड उपयोग की समस्याओं के लिये सहायता की आवश्यकता होगी।

उठाए गए विभिन्न कदम:

  • विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ समन्वय:
    • नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (Narcotics Control Bureau) ने अंतर्राष्ट्रीय मादक पदार्थों की तस्करी से निपटने के लिये सूचना और खुफिया जानकारी साझा करने हेतु विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ समन्वय किया है।
    • इनमें सार्क (SAARC), ब्रिक्स (BRICS), कोलंबो योजना (Colombo Plan), आसियान (ASEAN), बिम्सटेक (BIMSTEC), ड्रग्स एंड क्राइम पर संयुक्त राष्ट्र कार्यालय (United Nations Office on Drugs and Crime) और अंतर्राष्ट्रीय नारकोटिक्स कंट्रोल बोर्ड (International Narcotics Control Board) शामिल थे।
  • विभिन्न केंद्रीय और राज्य एजेंसियों के बीच समन्वय:
    • प्रभावी दवा कानून प्रवर्तन हेतु वर्ष 2016 में गृह मंत्रालय द्वारा नार्को समन्वय केंद्र (Narco Coordination Centre- NCORD) तंत्र स्थापित किया गया था।
      • इस एनसीओआरडी प्रणाली को बेहतर समन्वय के लिये जुलाई 2019 में ज़िला स्तर तक चार स्तरीय योजना में पुनर्गठित किया गया था।
    • बड़ी बरामदगी से जुड़े मामलों की जाँच की निगरानी के लिये जुलाई 2019 में एनसीबी के महानिदेशक के अध्यक्षता में एक संयुक्त समन्वय समिति का गठन किया गया था।
  • ज़ब्ती सूचना प्रबंधन प्रणाली पोर्टल:
    • अखिल भारतीय ड्रग ज़ब्ती डेटा के डिजिटलीकरण के लिये गृह मंत्रालय ने वर्ष 2019 में नारकोटिक्स ड्रग्स एंड साइकोट्रॉपिक सब्सटेंस एक्ट (Narcotics Drugs and Psychotropic Substances Act) के जनादेश के अंतर्गत सभी ड्रग कानून प्रवर्तन एजेंसियों हेतु ज़ब्ती सूचना प्रबंधन प्रणाली (Seizure Information Management System- SIMS) नामक एक ई-पोर्टल लॉन्च किया।
  • नशीली दवाओं के दुरुपयोग के नियंत्रण के लिये राष्ट्रीय कोष:
    • इसका गठन नशीले पदार्थों के अवैध व्यापार से निपटने, नशा करने वालों के पुनर्वास और नशीली दवाओं के दुरुपयोग के खिलाफ जनता को शिक्षित करने आदि के संबंध में किये गए खर्च को पूरा करने हेतु किया गया था।
  • राष्ट्रीय ड्रग दुरुपयोग सर्वेक्षण:
    • सरकार एम्स के नेशनल ड्रग डिपेंडेंस ट्रीटमेंट सेंटर (National Drug Dependence Treatment Centre) की मदद से और सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के माध्यम से भारत में मादक पदार्थों के दुरुपयोग का अध्ययन करने हेतु एक राष्ट्रीय ड्रग सर्वेक्षण (National Drug Abuse Survey) भी कर रही है।
  • प्रोजेक्ट सनराइज़:
    • स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा वर्ष 2016 में उत्तर-पूर्वी राज्यों में बढ़ते एचआईवी के प्रसार से निपटने के लिये विशेष रूप से ड्रग्स इंजेक्शन का प्रयोग करने वाले लोगों में इसके प्रयोग को रोकने हेतु 'प्रोजेक्ट सनराइज़' (Project Sunrise) शुरू किया गया था।
  • नार्कोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रॉपिक सब्सटेंस एक्ट, (NDPS) 1985: 
    • यह किसी भी व्यक्ति द्वारा मादक पदार्थ या साइकोट्रॉपिक पदार्थ के उत्पादन, बिक्री, क्रय, परिवहन, भंडारण, और/या उपभोग को प्रतिबंधित करता है।
    • इस अधिनियम में अब तक तीन बार- वर्ष 1988, वर्ष 2001 और वर्ष 2014 में संशोधन किया जा चुका है।
    • यह अधिनियम पूरे भारत में लागू होता है और साथ ही यह भारत के बाहर निवास करने वाले सभी भारतीय नागरिकों एवं भारत में पंजीकृत जहाज़ों तथा विमानों पर मौजूद सभी व्यक्तियों पर भी भी लागू होता है।
  • नशा मुक्त भारत अभियान:
    • यह सामुदायिक आउटरीच कार्यक्रमों पर केंद्रित है।

मादक पदार्थों के खतरे पर नियंत्रण हेतु अंतर्राष्ट्रीय संधियाँ और सम्मेलन:

  • भारत मादक पदार्थों के खतरे से निपटने हेतु निम्नलिखित अंतर्राष्ट्रीय संधियों और अभिसमयों का हस्ताक्षरकर्त्ता है:
    • नारकोटिक ड्रग्स पर संयुक्त राष्ट्र (यूएन) कन्वेंशन (1961)।
    • साइकोट्रोपिक पदार्थों पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (1971)।
    • नारकोटिक ड्रग्स और साइकोट्रॉपिक पदार्थों के अवैध यातायात के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (1988)।
    • ट्रांसनेशनल क्राइम के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (UNTOC) 2000.

आगे की राह

  • सीमा पार तस्करी पर अंकुश लगाकर, NDPS अधिनियम के तहत कठोर दंड या नशीली दवाओं के प्रवर्तन में सुधार कर आपूर्ति को रोकने के लिये कदम उठाए जाने चाहिये तथा भारत को मांग पक्ष को ध्यान में रखकर समस्या का समाधान करना चाहिये।
  • व्यसन को चरित्र दोष के रूप में नहीं बल्कि एक बीमारी के रूप में देखा जाना चाहिये। साथ ही  नशीली दवाओं के सेवन से जुड़े कलंक (Stigma) को समाप्त करने की ज़रूरत है। समाज को यह समझने की भी ज़रूरत है कि नशा करने वाले अपराधी नहीं बल्कि पीड़ित होते हैं।
  • कुछ दवाएँ जिनमें 50% से अधिक अल्कोहल और ओपिओइड होता है, को शामिल करने की आवश्यकता है। देश में नशीली दवाओं की समस्या पर अंकुश लगाने के लिये पुलिस अधिकारियों व आबकारी एवं नारकोटिक्स विभाग (Excise and Narcotics Department) की ओर से सख्त कार्रवाई की आवश्यकता है।
  • शिक्षा पाठ्यक्रम में मादक पदार्थों की लत, इसके प्रभाव और नशामुक्ति पर भी अध्याय शामिल होने चाहिये। उचित परामर्श एक अन्य विकल्प हो सकता है।

स्रोत: द हिंदू


प्रदूषित नदी विस्तार

प्रिलिम्स के लिये:

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, राष्ट्रीय हरित अधिकरण, बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड

मेन्स के लिये:

जल प्रदूषण का निवारण एवं संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?   

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Central Pollution Control Board- CPCB) ने वर्ष 2018 में भारत में 351 प्रदूषित नदियों की पहचान की थी।

  • सीपीसीबी के अध्ययन से पता चलता है कि अनुपचारित अपशिष्ट जल का निर्वहन नदी प्रदूषण के मुख्य कारणों में से एक है।
  • पानी की गुणवत्ता के आकलन में पाया गया कि 31 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों की नदियों के पानी की गुणवत्ता मानदंडों को पूरा नहीं कर रही थी।

प्रमुख बिंदु

सीपीसीबी के निष्कर्ष:

  • प्रदूषित नदियों का फैलाव: लगभग 60% प्रदूषित नदियों के हिस्से आठ राज्यों (महाराष्ट्र, असम, मध्य प्रदेश, केरल, गुजरात, ओडिशा, पश्चिम बंगाल और कर्नाटक) में मौजूद हैं।
    • देश में सबसे अधिक प्रदूषित नदियों के भाग महाराष्ट्र में हैं। 
  • असंगत सीवेज उपचार: राष्ट्रीय हरित अधिकरण (National Green Tribunal) ने वर्ष 2019 में निर्देश दिया कि 31 मार्च, 2020 से पहले सीवेज का 100% उपचार सुनिश्चित करने की आवश्यकता है।
    • हालाँकि इन राज्यों में सीवेज उपचार क्षमता एकसमान नहीं है।
    • सीपीसीबी की सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स की राष्ट्रीय सूची के अनुसार, वर्ष 2021 में प्रतिदिन लगभग 72,368 ML/D (मिलियन लीटर प्रतिदिन) सीवेज उत्पन्न हुआ, जिसकी तुलना में सीवेज उपचार क्षमता केवल 26,869 ML/D थी।
  • बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड में वृद्धि: सीवेज की इस बड़ी मात्रा को अनुपचारित/आंशिक रूप से उपचारित रूप में सीधे नदियों में छोड़ दिया जाता है जो बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड को बढ़ाकर नदियों को प्रदूषित कर देता है।

बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड (BOD):

  • बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड सूक्ष्मजीवों द्वारा एरोबिक प्रतिक्रिया (ऑक्सीजन की उपस्थिति में) के तहत ऑक्सीजन की वह मात्रा है जो जल में कार्बनिक पदार्थों (अपशिष्ट या प्रदूषक) के जैव रासायनिक अपघटन के लिये आवश्यक होती है।
  • किसी विशिष्ट जल निकाय (सीवेज और पानी के प्रदूषित निकाय) में जितना अधिक कार्बनिक पदार्थ होता है , उसमें उतनी ही अधिक BOD पाई जाती है।
  • अधिक BOD के कारण मछलियों जैसे उच्च जीवों के लिये उपलब्ध घुलित ऑक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है।
  • इसलिये BOD एक जल निकाय के जैविक प्रदूषण का एक विश्वसनीय माप है।
  • जल संसाधन में छोड़े जाने से पूर्व अपशिष्ट जल के उपचार के मुख्य कारणों में से एक इसका BOD कम करना है यानी ऑक्सीजन की आवश्यकता को कम करना तथा उन स्थानों से इसकी विस्तारित या मांग की मात्रा को कम करना जहाँ इसे प्रवाहित किया जाता है, जैसे- अपवाह तंत्र, झीलों, नदियों या नदियों के मुहानों में।  

विघटित ऑक्सीजन

  • यह जल में घुलित ऑक्सीजन (Dissolved Oxygen) की वह मात्रा है जो जलीय जीवों के श्वसन या जीवित रहने के लिये आवश्यक होती है। घुलित ऑक्सीजन के स्तर में वृद्धि के साथ पानी की गुणवत्ता बढ़ जाती है।
  • किसी नदी में घुलित ऑक्सीजन का स्तर 5 मिलीग्राम/लीटर या उससे अधिक होता है तो वह नहाने/स्नान योग्य होगा ।

प्रदूषित नदियों के अन्य कारण:

  • शहरीकरण: हाल के दशकों के दौरान भारत में तेज़ी से शहरीकरण ने कई पर्यावरणीय समस्याओं को जन्म दिया है, जैसे कि जल आपूर्ति, अपशिष्ट जल उत्पादन और इसका संग्रह, उपचार और निपटान।
    • नदियों के किनारे बसे कई कस्बों और शहरों ने गंदे पानी, सीवरेज आदि की समस्या पर उचित ध्यान नहीं दिया है।​
  • उद्योग: नदियों में सीवेज और औद्योगिक अपशिष्टों के अप्रतिबंधित प्रवाह ने उनकी शुद्धता पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है। ये सभी औद्योगिक अपशिष्ट उन जीवों के जीवन के लिये विषाक्त हैं जो इस पानी का उपभोग करते हैं।
  • कृषि अपवाह और अनुचित कृषि प्रथाएँ: मानसून की शुरुआत में या जब भी भारी वर्षा होती है उस दौरान खेतों में प्रयुक्त उर्वरक और कीटनाशक जल के साथ प्रवाहित होकर निकटतम जल-निकायों तक पहुँच जाते हैं।
  • नदियों के प्रवाह की मात्रा: उपचारित या अनुपचारित अपशिष्ट जल को नदी में छोड़े जाने के परिणामस्वरूप नदी के जल की गुणवत्ता नदी में जल के प्रवाह की मात्रा पर निर्भर करती है।
  • धार्मिक और सामाजिक प्रथाएँ: धार्मिक आस्था और सामाजिक प्रथाएँ भी नदियों, विशेष रूप से गंगा के प्रदूषण को बढ़ाती हैं।
    • शवों का अंतिम संस्कार नदी किनारे किया जाता है। आंशिक रूप से जले हुए शवों को भी नदी में बहा दिया जाता है।
    • धार्मिक त्योहारों के दौरान नदी में सामूहिक स्नान पर्यावरण के लिये एक और हानिकारक प्रथा है।

जल प्रदूषण से निपटने हेतु सरकार द्वारा किये गए प्रयास:

  • हाल ही में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) ने जल शक्ति मंत्रालय को प्रदूषण पर अंकुश लगाने के लिये उठाए गए कदमों की प्रभावी निगरानी और देश भर में सभी प्रदूषित नदियों के कायाकल्प हेतु एक उपयुक्त ‘राष्ट्रीय नदी कायाकल्प तंत्र’ तैयार करने का निर्देश दिया है।
  • राष्ट्रीय जल नीति (2012): इसका उद्देश्य मौजूदा स्थिति का संज्ञान लेना, कानूनों एवं संस्थानों की प्रणाली के निर्माण हेतु रूपरेखा प्रस्तावित करना और एक एकीकृत राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य के साथ कार्ययोजना का निर्माण करना है।
    • यह नीति मानव अस्तित्व के साथ-साथ आर्थिक विकास संबंधी गतिविधियों के लिये जल के महत्त्व पर प्रकाश डालती है।
    • यह इष्टतम, किफायती, सतत् और न्यायसंगत साधनों के माध्यम से जल संसाधनों के संरक्षण हेतु रूपरेखा का सुझाव देती है।
  • राष्ट्रीय जल मिशन (2010): यह मिशन एकीकृत जल संसाधन प्रबंधन सुनिश्चित करता है, ताकि जल संरक्षण, जल के कम अपव्यय और समान वितरण के साथ बेहतर नीतियों का निर्माण हो सके।
  • राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (NMCG): यह गंगा नदी में पर्यावरण प्रदूषण की रोकथाम, नियंत्रण और उपशमन के उपाय के लिये राष्ट्रीय, राज्य और ज़िला स्तर पर एक पाँच-स्तरीय संरचना की परिकल्पना करता है।
    • इसका उद्देश्य पानी के निरंतर पर्याप्त प्रवाह को सुनिश्चित करना है, ताकि गंगा नदी को फिर से जीवंत किया जा सके।
  • नमामि गंगे परियोजना: यह गंगा नदी को व्यापक रूप से स्वच्छ और संरक्षित करने के प्रयासों को एकीकृत करती है।

आगे की राह

  • नदी के न्यूनतम प्रवाह को बनाए रखना: नदी की स्वस्थता (जलीय पारिस्थितिकी तंत्र) को बनाए रखने और बहाल करने के लिये उसके न्यूनतम प्रवाह को बनाए रखना काफी आवश्यक है।
    • उपचारित सीवेज के निर्वहन के लिये भी नदी का न्यूनतम प्रवाह महत्त्वपूर्ण होता है।
  • व्यापक अपशिष्ट प्रबंधन नीति: देश को एक व्यापक कचरा प्रबंधन नीति की आवश्यकता है, जो विकेंद्रिकृत कचरा निपटान प्रथाओं की आवश्यकता पर ज़ोर देती हो, क्योंकि इससे निजी भागीदारों को भी हिस्सा लेने हेतु प्रोत्साहित किया जा सकेगा।
  • बायोरेमेडिएशन: यह महत्त्वपूर्ण है कि बायोरेमेडिएशन (अर्थात दूषित मिट्टी और पानी को साफ करने के लिये रोगाणुओं का उपयोग) उन क्षेत्रों के लिये अनिवार्य कर दिया जाए जहाँ इसका प्रयोग संभव है।
  • व्यवहार परिवर्तन: कचरा प्रबंधन क्षेत्र में व्यापक परिवर्तन लाने और आवश्यक व्यवहार परिवर्तन को प्रेरित करने के लिये नागरिकों की भागीदारी व जुड़ाव सुनिश्चित करना काफी महत्त्वपूर्ण है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


OBC वर्ग के तहत उप-वर्गीकरण से जुड़े आयोग के कार्यकाल में विस्तार

प्रिलिम्स के लिये: 

रोहिणी आयोग, अनुच्छेद 340, राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग, अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) आरक्षण

मेन्स के लिये:

अन्य पिछड़ा वर्ग के भीतर उप-वर्गीकरण से जुड़े मुद्दे

चर्चा में क्यों?

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के भीतर उप-वर्गीकरण से जुड़े मुद्दों पर गौर करने के लये गठित आयोग के कार्यकाल को 31 जनवरी, 2022 तक विस्तारित करने को मंज़ूरी दे दी है।

  • यह आयोग का ग्यारहवाँ विस्तार है, जिसे शुरुआत में मार्च 2018 में अपनी रिपोर्ट जमा करनी थी।

प्रमुख बिंदु

विस्तार के बारे में:

  • यह आयोग को विभिन्न हितधारकों के साथ परामर्श के बाद अन्य पिछड़ा वर्ग के उप-वर्गीकरण से जुड़े मुद्दों पर एक व्यापक रिपोर्ट प्रस्तुत करने में सक्षम बनाएगा।
  • इसके उद्देश्यों में OBC समूह के भीतर उप-वर्गीकरण के लिये एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण के माध्यम से एक प्रक्रिया, मानदंड, नियम और पैरामीटर तैयार करना तथा OBC की केंद्रीय सूची में संबंधित जातियों या समुदायों या उप-जातियों या समानार्थक शब्दों की पहचान करना एवं उन्हें उनके संबंधित उप-श्रेणियों में वर्गीकृत करना शामिल है।

आयोग:

  • 2 अक्तूबर, 2017 को राष्ट्रपति के अनुमोदन के उपरांत संविधान के अनुच्छेद 340 के तहत गठित इस आयोग को रोहिणी आयोग (Rohini Commission) भी कहा जाता है।
  • इसका गठन केंद्रीय OBC सूची में 5000-विषम जातियों को उप-वर्गीकृत करने के कार्य को पूरा करने के लिये किया गया था ताकि केंद्र सरकार की नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में अवसरों का अधिक समान वितरण सुनिश्चित किया जा सके।
  • वर्ष 2015 में, राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (National Commission for Backward Classes- NCBC) ने सिफारिश की थी कि OBC को अत्यंत पिछड़े वर्गों, अधिक पिछड़े वर्गों और पिछड़े वर्गों के रूप में वर्गीकृत किया जाना चाहिये।
    • NCBC को सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों के संबंध में शिकायतों तथा कल्याणकारी उपायों की जाँच करने का अधिकार है।

अब तक किया गया कार्य:

  • आयोग ने अब तक राज्य सरकारों, राज्य पिछड़ा वर्ग आयोगों, सामुदायिक संघों आदि के प्रतिनिधियों से मुलाकात की है। इसके अलावा आयोग ने उच्च शिक्षण संस्थानों और केंद्रीय विभागों, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों तथा वित्तीय संस्थानों में भर्ती होने वाले OBC छात्रों के जाति-वार डेटा प्राप्त कर उसका विश्लेषण किया है।
  • इस वर्ष की शुरुआत में आयोग ने OBC को चार उप-श्रेणियों में विभाजित करने का प्रस्ताव रखा, जिनकी संख्या 1, 2, 3 और 4 थी और 27% आरक्षण को क्रमशः 2%, 6%, 9% और 10% में विभाजित किया गया था।
  • इसके अलावा आयोग ने सभी OBC रिकॉर्ड के पूर्ण डिजिटलीकरण और OBC प्रमाण पत्र जारी करने की एक मानकीकृत प्रणाली की भी सिफारिश की है।

संभावित परिणाम

  • आयोग की सिफारिशों से OBC की मौजूदा सूची में उन समुदायों को लाभ मिल सकता है, जो अब तक केंद्र सरकार के पदों पर नियुक्ति और केंद्र सरकार के शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश के लिये OBC आरक्षण योजना का कोई बड़ा लाभ प्राप्त करने में सक्षम नहीं हैं।

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 340

  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 340 के अनुसार, भारतीय राष्ट्रपति सामाजिक और शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों की दशाओं की जाँच करने के लिये तथा उनकी दशा में सुधार करने से संबंधित सिफारिश प्रदान के लिये एक आदेश के माध्यम से आयोग की नियुक्ति कर सकते हैं।
  • इस प्रकार नियुक्त आयोग राष्ट्रपति को निर्दिष्ट मामलों की जाँच करेगा और राष्ट्रपति को एक रिपोर्ट पेश करेगा जिसमें उनके द्वारा पाए गए तथ्यों को निर्धारित किया जाएगा और ऐसी सिफारिशें की जाएंगी जो वे उचित समझें।
  • राष्ट्रपति इस प्रकार प्रस्तुत की गई रिपोर्ट की एक प्रति संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष रखने के लिये एक ज्ञापन के साथ उस पर की गई कार्रवाई को स्पष्ट करेगा।

अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) आरक्षण

  • वर्ष 1953 में स्थापित कालेलकर आयोग, राष्ट्रीय स्तर पर अनुसूचित जातियों (SCs) और अनुसूचित जनजातियों (STs) के अलावा अन्य पिछड़े वर्गों की पहचान करने वाला प्रथम आयोग था।
  • मंडल आयोग की रिपोर्ट, 1980 में OBC जनसंख्या 52% होने का अनुमान लगाया गया था और 1,257 समुदायों को पिछड़े के रूप में वर्गीकृत किया गया था।
    • इसने OBC को शामिल करने के लिये मौजूदा कोटा, जो केवल SC/ST के लिये था, को 22.5% से बढ़ाकर 49.5% करने की सिफारिश की।
  • केंद्र सरकार ने OBC [अनुच्छेद 16 (4)] के लिये यूनियन सिविल पदों और सेवाओं में 27% सीटें आरक्षित कीं। कोटा बाद में केंद्र सरकार के शैक्षणिक संस्थानों [अनुच्छेद 15 (4)] में लागू किया गया ।
    • वर्ष 2008 मे सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को OBC के बीच क्रीमी लेयर (उन्नत वर्ग) को बाहर करने का निर्देश दिया।
  • 102वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2018 ने राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (NCBC) को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया, जो पहले सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के तहत एक वैधानिक निकाय था।

स्रोत: पी.आई.बी