स्वच्छ और स्वस्थ पर्यावरण का अधिकार | 29 Dec 2025

प्रिलिम्स के लिये: वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM), ग्रेडेड रिस्पॉन्स एक्शन प्लान (GRAP), स्वच्छ और स्वस्थ पर्यावरण का अधिकार, DPSPs, मौलिक कर्त्तव्य, वायु प्रदूषण, मानसून, जैवविविधता हॉटस्पॉट, पश्चिमी घाट, मृदा कार्बनिक कार्बन, ई-कचरा, अनुच्छेद 48A और 51A(g), अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), प्रदूषक भुगतान सिद्धांत, UNFCCC।          

मेन्स के लिये: भारत में विभिन्न पर्यावरणीय संकट और पर्यावरणीय अधिकारों पर सर्वोच्च न्यायालय के विभिन्न निर्णय, भारत में पर्यावरण संरक्षण के लिये की गई प्रमुख पहलें और भारत में इसके संरक्षण को मज़बूत करने हेतु आगे की राह।

स्रोत: TH

चर्चा में क्यों?

लगातार बनी हुई पर्यावरणीय संकट की स्थिति ने पर्यावरण संरक्षण से संबंधित संवैधानिक प्रावधानों तथा स्वच्छ और स्वस्थ पर्यावरण के अधिकार को स्पष्ट रूप से मान्यता देने की आवश्यकता पर बहस को फिर से तेज कर दिया है।

  • वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM) ने हाल ही में ग्रेडेड रिस्पॉन्स एक्शन प्लान (GRAP) में संशोधन किया है, जिसके तहत चरण 3 और 4 के अंतर्गत स्कूलों को बंद करना अनिवार्य कर दिया गया है, साथ ही कार्यालयों के लिये चरणबद्ध समय-निर्धारण भी लागू किया गया है।

सारांश

  • भारत बहुआयामी पर्यावरणीय संकटों का सामना कर रहा है, जो स्वास्थ्य, पारिस्थितिकी और आर्थिक सततता को प्रभावित कर रहे हैं।
  • न्यायिक व्याख्याओं के माध्यम से अनुच्छेद 21 के तहत पर्यावरणीय अधिकारों का विस्तार किया गया है, जिसे राज्य के नीति-निर्देशक सिद्धांतों (DPSPs) और मौलिक कर्त्तव्यों का समर्थन प्राप्त है।
  • पर्यावरण के संरक्षण हेतु स्पष्ट संवैधानिक मान्यता, मज़बूत संस्थागत व्यवस्था तथा समन्वित और प्रौद्योगिकी-संचालित पर्यावरणीय शासन की तत्काल आवश्यकता है।

भारत में व्याप्त पर्यावरणीय संकट क्या हैं?

  • गंभीर वायु प्रदूषण: भारत में गंभीर वायु प्रदूषण, विशेष रूप से दिल्ली जैसे उत्तरी शहरों में, लगातार कण पदार्थ की सीमा से अधिक रहता है और 2021 में वैश्विक स्तर पर वायु प्रदूषण से संबंधित 81 लाख मृत्यु में से 21 लाख मृत्यु का कारण बना। विश्व वायु गुणवत्ता रिपोर्ट 2024 के अनुसार, विश्व के 20 सबसे प्रदूषित शहरों में से 13 भारत में हैं।
    • इसके स्वास्थ्य प्रभावों में श्वसन संक्रमण, फेफड़ों से संबंधित बीमारियाँ, अस्थमा से लेकर हृदय और पाचन संबंधी समस्याएँ शामिल हैं।
  • जल संकट: जल जीवन मिशन (JJM) जैसी पहलों के बावजूद, जल संकट बढ़ता जा रहा है, प्रति व्यक्ति उपलब्धता वर्ष 2001 में 1,816 घन मीटर से घटकर वर्ष 2011 में 1,545 घन मीटर हो गई है, जो वर्ष 2050 तक इसके 1,219 घन मीटर तक कम होने का अनुमान है।
    • केंद्रीय भूजल बोर्ड के आकलन से पता चलता है कि पश्चिम बंगाल, बिहार और उत्तर प्रदेश में नाइट्रेट, फ्लोराइड और आर्सेनिक का स्तर बढ़ा हुआ है।
    • प्रमुख शहरों में भूजल की कमी, हिमालयी ग्लेशियरों का पीछे हटना, नदी प्रदूषण और अनियमित मानसून के कारण यह संकट और भी गंभीर हो जाता है, जिसके परिणामस्वरूप बार-बार बाढ़ और सूखे की स्थिति उत्पन्न होती है। 
  • जैवविविधता और पर्यावास का नुकसान: अवसंरचना, कृषि और खनन के कारण होने वाली वनों की कटाई से पर्यावास का विखंडन, मृदा अपरदन और कार्बन अवशोषण में कमी आती है। भारत के जैवविविधता के प्रमुख क्षेत्र जैसे पश्चिमी घाट, गंभीर खतरे का सामना कर रहे हैं , IPCC के अनुमानों के अनुसार जलवायु परिवर्तन के कारण वर्ष 2050 तक जैवविविधता में 33% तक की कमी हो सकती है।
  • भूमि क्षरण और मृदा स्वास्थ्य में गिरावट: भारत संयुक्त राष्ट्र मरुस्थलीकरण निवारण सम्मेलन (UNCCD) का पक्षकार होने के बावजूद, अत्यधिक कृषि और रासायनिक उर्वरकों के अत्यधिक उपयोग के कारण मृदा अपरदन, लवणीकरण और उर्वरता में कमी व्यापक रूप से व्याप्त है। 
    • वर्ष 2018–19 में लगभग 83.69 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र मरुस्थलीकरण से प्रभावित था, जो वर्ष 2003–2005 के 81.48 मिलियन हेक्टेयर और वर्ष 2011–13 के 82.64 मिलियन हेक्टेयर की तुलना में अधिक है।
    • गहन कृषि वाले क्षेत्रों में मृदा का कार्बनिक कार्बन स्तर अपने ऐतिहासिक लगभग 1% से घटकर मात्र 0.3% रह गया है।
  • अपशिष्ट प्रबंधन संकट: भारत में प्रतिवर्ष लगभग 62 मिलियन टन अपशिष्ट उत्पन्न होता है, जिसमें 7.9 मीट्रिक टन खतरनाक अपशिष्ट, 5.6 मीट्रिक टन प्लास्टिक, 1.5 मीट्रिक टन ई-अपशिष्ट और 0.17 मीट्रिक टन जैव-चिकित्सा अपशिष्ट शामिल हैं। 95% संग्रहण दर के बावजूद, इस अपशिष्ट का अधिकांश भाग जला दिया जाता है या उसका उचित प्रबंधन नहीं किया जाता है, जिससे लैंडफिल भर जाते हैं और विषाक्त रिसाव के कारण मिट्टी व जल प्रदूषित होते हैं।

ग्रेडेड रिस्पॉन्स एक्शन प्लान (GRAP)

  • परिचय: GRAP दिल्ली-NCR में वायु प्रदूषण को नियंत्रित और कम करने के लिये बनाया गया एक पूर्व-निवारक और आपातकालीन ढाँचा है।
    • GRAP को दिल्ली के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में वायु गुणवत्ता संबंधी मुद्दों को संबोधित करने के लिये एमसी मेहता बनाम यूनियन ऑफ इंडिया मामले 1986 में सर्वोच्च न्यायालय (SC) के दिनांक 2 दिसंबर, 2016 के आदेश के अनुपालन में तैयार किया गया है।
    • इसे वर्ष 2017 में अधिसूचित किया गया था और इसे वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM) द्वारा पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) और संबंधित राज्य सरकारों के समन्वय से लागू किया जाता है।
  • GRAP के चरण: यह प्रदूषण प्रतिक्रिया उपायों को AQI स्तरों के आधार पर चार चरणों में वर्गीकृत करता है।
    • चरण I – खराब (AQI 201–300): बुनियादी प्रदूषण नियंत्रण उपाय जैसे सड़क की धूल का प्रबंधन और वाहन PUC (प्रदूषण नियंत्रण के अंतर्गत) मानदंडों को लागू करना।
    • चरण II – अत्यंत खराब (AQI 301–400): प्रदूषण के हॉटस्पॉट में डीजल जनरेटर के उपयोग को सीमित करने और संचालन को नियंत्रित करने जैसे सख्त उपाय।
    • चरण III – गंभीर (AQI 401–450): विशिष्ट वाहनों, निर्माण गतिविधियों पर प्रतिबंध लगाता है और दूरस्थ शिक्षा उपायों की अनुमति देता है।
    • चरण IV – गंभीर+ (AQI > 450): भारी वाहनों के प्रवेश पर प्रतिबंध, स्कूलों को बंद करना और गैर-आवश्यक उद्योगों को बंद करने जैसे उपाय सुनिश्चित करता है।

वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM)

  • परिचय: CAQM एक वैधानिक निकाय है जिसकी स्थापना NCR और आसपास के क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग अधिनियम, 2021 के तहत NCR और आसपास के राज्यों - पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में वायु प्रदूषण नियंत्रण उपायों के समन्वय और कार्यान्वयन के लिये की गई है।
  • नेतृत्व और पात्रता: आयोग का नेतृत्व एक पूर्णकालिक अध्यक्ष द्वारा किया जाता है, जिसके पास पर्यावरण संरक्षण और प्रदूषण नियंत्रण में कम-से-कम 15 वर्षों का अनुभव या प्रशासनिक क्षेत्र में 25 वर्षों का अनुभव हो।
  • जवाबदेही और भूमिका: CAQM सीधे संसद के प्रति जवाबदेह है तथा NCR क्षेत्र में वायु गुणवत्ता प्रबंधन के लिये सर्वोच्च प्राधिकरण के रूप में कार्य करता है।

भारत में पर्यावरण न्यायशास्त्र का विकास किस प्रकार हुआ है?

  • मेनका गांधी बनाम भारत संघ (1978): सर्वोच्च न्यायालय ने अपनी राय दी कि स्वच्छ पर्यावरण को अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अर्थ में शामिल किया जाएगा।
  • रूरल लिटिगेशन एंड एंटाइटलमेंट केंद्र बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (1985): सर्वोच्च न्यायालय ने पहली बार संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत स्वस्थ पर्यावरण में जीवन के अधिकार को मान्यता दी।
  • एमसी मेहता बनाम भारत संघ (1986): सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि प्रदूषण मुक्त वातावरण में रहने का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के मौलिक अधिकार का हिस्सा है।
  • सुभाष कुमार बनाम बिहार राज्य (1991): सर्वोच्च न्यायालय ने अनुच्छेद 48A और 51A(g) को अनुच्छेद 21 के साथ जोड़ते हुए कहा कि राज्य का दायित्व है कि वह पर्यावरण की रक्षा और सुधार करे, ताकि प्रत्येक नागरिक प्रदूषण-मुक्त वायु और जल का उपभोग कर सके, जो सार्थक जीवन के लिये आवश्यक है।
    • अनुच्छेद 48A: राज्य का दायित्व है कि वह पर्यावरण का संरक्षण और सुधार करे तथा वनों और वन्यजीवों की सुरक्षा के लिये प्रयास करे।
    • अनुच्छेद 51A(g): नागरिकों का दायित्व है कि वे प्राकृतिक पर्यावरण का संरक्षण और सुधार करें, जिसमें वन, झीलें, नदियाँ, वन्यजीव शामिल हैं तथा जीवित प्राणियों के प्रति दया रखें।
  • एमसी मेहता बनाम कमल नाथ (1996): सर्वोच्च न्यायालय ने सार्वजनिक न्यास सिद्धांत को एक सामाजिक अनुबंध के रूप में परिभाषित किया, जिसमें राज्य लोगों के स्वामित्व वाले प्राकृतिक संसाधनों के न्यासी के रूप में कार्य करता है तथा उसे उनका प्रबंधन केवल सार्वजनिक लाभ के लिये करना चाहिये, न कि निजी लाभ के लिये।
  • एम.के. रणजीतसिंह बनाम भारत संघ (2024): अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार) और अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) के तहत जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों के खिलाफ अधिकार को मान्यता दी गई।
  • वेल्लोर सिटिज़न्स वेलफेयर फ़ोरम बनाम भारत संघ (1996): सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले में एहतियाती सिद्धांत (Precautionary Principle) और प्रदूषक भुगतान सिद्धांत (Polluter Pays Principle) की व्याख्या की।
    • एहतियाती सिद्धांत के अनुसार राज्य का दायित्व है कि वह गंभीर पर्यावरणीय खतरों के विरुद्ध पूर्व-निवारक कार्रवाई करे, जिससे विकास और पारिस्थितिकी के बीच किसी एक को चुनने के बजाय सतत विकास को बढ़ावा मिले।
    • प्रदूषक भुगतान सिद्धांत के तहत प्रदूषण फैलाने वालों को अपने प्रदूषण के प्रबंधन की वित्तीय जिम्मेदारी वहन करनी होती है, जैसे किसी कारखाने द्वारा अपने विषैले उप-उत्पादों का सुरक्षित निपटान करना।

भारत में लिये गए प्रमुख पर्यावरण संरक्षण पहल

भारत में स्थायी पर्यावरणीय संकटों को हल करने में क्या चुनौतियाँ हैं?

  • शासन और क्रियान्वयन अंतराल: भारत में पर्यावरण संबंधी कठोर कानून, जैसे पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986, कमज़ोर प्रवर्तन की समस्या से जूझते हैं। उद्योग प्राय: वैध संचालन अनुमति के बिना कार्य करते हैं और उन्हें न्यूनतम दंडात्मक कार्रवाई का सामना करना पड़ता है।
  • विकासात्मक दबाव: वन क्षेत्रों में बने महत्त्वपूर्ण अवसंरचना परियोजनाएँ, जैसे राजमार्ग, प्राय: तेज़ी से मंजूरी के साथ आगे बढ़ती हैं, जिससे वन्यजीव गलियारों का विखंडन होता है। इसी तरह, गरीबी अस्थायी आय के लिये अवैध संसाधन उपयोग, जैसे अवैध रेत खनन को बढ़ावा देती है, जो गंभीर पारिस्थितिक क्षति के बावजूद महत्त्वपूर्ण आय का स्रोत बनी रहती है।
  • पारिस्थितिक एवं तकनीकी जटिलताएँ: सीमा-पार संकट, जैसे इंडो-गंगेटिक वायु प्रदूषण, में जटिल बहु-राज्य समन्वय की आवश्यकता होती है। वहीं, अत्यधिक मौसम की घटनाओं में वृद्धि, जैसे चक्रवात बिपरजॉय, तटीय कटाव को और बढ़ा देती है, जिससे स्थानीय अनुकूलन प्रभावित होता है।
  • राजनीतिक और व्यवहारगत बाधाएँ: लघु अवधि का विकास और जनवाद पर आधारित सब्सिडी संरक्षण को हतोत्साहित करती हैं और संसाधनों के अत्यधिक दोहन को बढ़ावा देती हैं। इसके अतिरिक्त, अपशिष्ट पृथक्करण जैसी सतत प्रथाओं को जनता की कम स्वीकृति मिलने के कारण शहरी अपशिष्ट प्रबंधन प्रभावित होता है।

भारत में पर्यावरण संरक्षण को सुदृढ़ करने हेतु और कौन-से उपाय आवश्यक हैं?

  • कानूनी एवं संवैधानिक ढाँचे को सुदृढ़ करना: संविधान में संशोधन कर स्वच्छ और स्वस्थ पर्यावरण के अधिकार को एक स्वतंत्र मौलिक अधिकार के रूप में स्थापित किया जाएँ, जिससे राज्य पर एक अपरिहार्य दायित्व आरोपित हो। सावधानी सिद्धांत, प्रदूषक भुगतान सिद्धांत, सार्वजनिक न्यास सिद्धांत तथा अंतरपीढ़ीगत समानता को विधिक रूप से संहिताबद्ध कर देशव्यापी प्रवर्तन सुनिश्चित किया जाएँ।
  • क्रियान्वयन एवं शासन को सशक्त बनाना: विभिन्न मंत्रालयों—पर्यावरण, कृषि, परिवहन, शहरी विकास और ऊर्जा के बीच समन्वय के लिये एक राष्ट्रीय पर्यावरण प्राधिकरण की स्थापना की जाएँ, ताकि प्रयासों का एकीकरण हो सके। वास्तविक समय (रियल-टाइम) प्रदूषण आँकड़ों के प्रकटीकरण को अनिवार्य किया जाएँ तथा AI और उपग्रह चित्रण (जैसे ISRO का ENVIS) का उपयोग कर वनों की कटाई, अवैध अपशिष्ट निपटान तथा नदी प्रदूषण की स्वचालित निगरानी सुनिश्चित की जाएँ।
  • प्रणालीगत परिवर्तन एवं व्यवहारगत बदलाव: पर्यावरणीय परिणाम-आधारित बजटिंग लागू की जाएँ, जिसमें वायु गुणवत्ता और वन आवरण जैसे पारिस्थितिक लक्ष्यों से वित्तीय संसाधनों को जोड़ा जाएँ। अनिवार्य हरित पट्टियों और नेट-ज़ीरो भवन संहिताओं के साथ जलवायु-केंद्रित शहरी नियोजन को सख्ती से लागू किया जाएँ।
  • आर्थिक एवं वित्तीय तंत्र: उच्च उत्सर्जन वाले क्षेत्रों पर कार्बन कर लागू किया जाएँ तथा जीवाश्म ईंधन सब्सिडी को नवीकरणीय ऊर्जा की ओर पुनर्निर्देशित किया जाएँ और सॉवरेन ग्रीन बॉण्ड का विस्तार किया जाएँ। यह अनिवार्य किया जाएँ कि CSR व्यय का 50% पर्यावरणीय परियोजनाओं पर खर्च हो, जिसकी निगरानी एक सार्वजनिक CSR–पर्यावरण डैशबोर्ड के माध्यम से की जाएँ तथा प्रभावी क्रियान्वयन के लिये CSR–NGO साझेदारियों को प्रोत्साहित किया जाएँ।
  • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: विकसित देशों से स्वच्छ प्रौद्योगिकी, नवीकरणीय ऊर्जा और प्रदूषण नियंत्रण उपकरणों के लिये अनुकूल प्रौद्योगिकी हस्तांतरण समझौतों को आगे बढ़ाया जाएँ। UNFCCC के अंतर्गत विकसित देशों द्वारा किये गए प्रतिवर्ष 300 बिलियन अमेरिकी डॉलर के जलवायु वित्तीय प्रतिबद्धता को सक्रिय रूप से सुनिश्चित किया जाएँ।

निष्कर्ष

बार-बार उत्पन्न होने वाले पर्यावरणीय संकट और निरंतर न्यायिक सक्रियता भारत की संरक्षण व्यवस्था में एक गंभीर क्रियान्वयन अंतराल को उजागर करते हैं। स्वच्छ पर्यावरण के संवैधानिक अधिकार की स्थापना, साथ ही एकीकृत शासन, आँकड़ा-आधारित प्रवर्तन और वित्तीय पुनर्संरेखण, प्रतिक्रियात्मक उपायों से आगे बढ़कर प्रणालीगत पारिस्थितिक सततता की ओर संक्रमण के लिये आवश्यक हैं।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. पर्यावरण संरक्षण को शामिल करते हुए अनुच्छेद 21 के दायरे के विस्तार में सर्वोच्च न्यायालय की भूमिका का समालोचनात्मक परीक्षण कीजिये।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

1. पर्यावरण संरक्षण से अनुच्छेद 21 को कैसे जोड़ा गया है?
सर्वोच्च न्यायालय ने अनुच्छेद 21 की व्याख्या इस प्रकार की है कि इसमें प्रदूषण-मुक्त वायु, स्वच्छ जल और स्वस्थ पर्यावरण का अधिकार शामिल है।

2. ‘प्रदूषक भुगतान सिद्धांत’ (Polluter Pays Principle) का क्या अर्थ है?
इस सिद्धांत के अनुसार प्रदूषण फैलाने वाले को प्रदूषण नियंत्रण और पर्यावरणीय क्षति की भरपाई की लागत स्वयं वहन करनी होती है।

3. क्या जलवायु परिवर्तन को संवैधानिक मुद्दे के रूप में मान्यता दी गई है?
हाँ। एम.के. रंजीतसिंह बनाम भारत संघ (2024) मामले में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को अनुच्छेद 21 और अनुच्छेद 14 के अंतर्गत मान्यता दी गई है।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)

प्रिलिम्स 

प्रश्न 1. निम्नलिखित में से कौन-से भौगोलिक क्षेत्र में जैवविविधता के लिये संकट हो सकते हैं? (2012)

  1. वैश्विक तापन
  2.  आवास का विखंडन
  3.  विदेशी जाति का संक्रमण
  4.  शाकाहार को प्रोत्साहन 

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग करते हुए सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1, 2 और 3
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 4
(d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: (a)


प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन से कारक/कारण बेंजीन प्रदूषण उत्पन्न करते हैं? (2020)

  1. स्वचालित वाहन द्वारा निष्कासित पदार्थ 
  2.  तंबाकू का धुआँ
  3.  लकड़ी जलना
  4.  रोगन किये गए लकड़ी के फर्नीचर का उपयोग
  5.  पॉलीयुरेथेन से बने उत्पादों का उपयोग करना

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(A) केवल 1, 2 और 3                 
(B) केवल 2 और 4
(C) केवल 1, 3 और 4
(D) 1, 2, 3, 4 और 5

उत्तर: (a)


मेन्स 

प्रश्न. भारत में घटते भूजल के लिये उत्तरदायी कारकों का परीक्षण कीजिये। भूजल में ऐसी क्षीणता को कम करने के लिये सरकार ने क्या कदम उठाए हैं? (2025)

प्रश्न. भारत में नदी के जल का औद्योगिक प्रदूषण एक महत्त्वपूर्ण पर्यावरणीय मुद्दा है। इस समस्या से निपटने के लिये विभिन्नि शमन उपायों और इस संबंध में सरकारी पहल की भी चर्चा कीजिये। (2024)

प्रश्न. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यू.एच.ओ.) द्वारा हाल ही में जारी किये गए संशोधित वैश्विक वायु गुणवत्ता दिशानिर्देशों (ए.क्यू.जी.) के मुख्य बिन्दुओं का वर्णन कीजिये। विगत 2005 के अद्यतन से, ये किस प्रकार भिन्न हैं ? इन संशोधित मानकों को प्राप्त करने के लिये, भारत के राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम में किन परिवर्तनों की आवश्यकता है ? (2021)

प्रश्न. भारत सरकार द्वारा आरम्भ किये गए राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एन० सी० ए० पी०) की प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं? (2020)