डेली न्यूज़ (26 Oct, 2021)



सऊदी अरब का शुद्ध शून्य लक्ष्य

प्रिलिम्स के लिये:

उत्सर्जन का शुद्ध शून्य लक्ष्य

मेन्स के लिये:

उत्सर्जन का शुद्ध शून्य लक्ष्य से संबंधित मुद्दे 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में दुनिया के सबसे बड़े तेल उत्पादकों में से एक सऊदी अरब ने घोषणा की है कि वह वर्ष 2060 तक "शुद्ध शून्य" ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का स्तर प्राप्त कर लेगा।

  • यह घोषणा राज्य के पहले सऊदी ग्रीन इनिशिएटिव (एसजीआई) फोरम में हुई। SGI का उद्देश्य वनस्पति आवरण को बढ़ाना, कार्बन उत्सर्जन को कम करना, प्रदूषण और भूमि क्षरण का मुकाबला करना तथा समुद्री जीवन को संरक्षित करना है।

Saudi-Arabia

प्रमुख बिंदु 

  • सऊदी अरब का लक्ष्य:
    • वैश्विक तेल बाज़ारों की सुरक्षा और स्थिरता को मज़बूत करने में अग्रणी भूमिका को बनाए रखते हुए उसका लक्ष्य अपने सर्कुलर कार्बन अर्थव्यवस्था कार्यक्रम के तहत वर्ष 2060 तक शून्य-शुद्ध उत्सर्जन तक पहुँचना है।
      • यह दृष्टिकोण वास्तव में जीवाश्म ईंधन पर वैश्विक निर्भरता को कम करने हेतु  कार्बन कैप्चर और भंडारण प्रौद्योगिकियों पर केंद्रित है।
    • यह वर्ष 2030 तक 2020 के स्तर से मीथेन के उत्सर्जन को 30% तक कम करने की वैश्विक पहल में शामिल होगा, जिसे संयुक्त राज्य और यूरोपीय संघ (ईयू) ग्लोबल मीथेन प्लेज घोषणा के माध्यम से संचालित कर रहे हैं।
  • शुद्ध शून्य लक्ष्य:
    • परिचय:
      • शुद्ध शून्य का अर्थ कार्बन तटस्थता भी है, इसका तात्पर्य किसी देश के उत्सर्जन की भरपाई वातावरण से ग्रीनहाउस गैसों के अवशोषण और उन्हें हटाने से होती है।
      • इसका मतलब यह नहीं है कि कोई देश अपने उत्सर्जन को शून्य पर लाएगा। ऐसे परिदृश्य को सकल-शून्य कहा जाएगा, जिसका अर्थ एक ऐसी स्थिति से है जहाँ उत्सर्जन पूर्णतः शून्य हो। आमतौर इस तरह की स्थिति प्राप्त करना मुश्किल होता है।
    • चिंताएँ:
      • ऑक्सफैम इंटरनेशनल की एक हालिया रिपोर्ट (टाइटनिंग द नेट) के अनुसार, शुद्ध-शून्य कार्बन लक्ष्य की घोषणा कार्बन उत्सर्जन में कटौती की प्राथमिकता के कारण एक खतरनाक भटकाव की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। 
      • 100 से अधिक देशों ने शुद्ध-शून्य उत्सर्जन या तटस्थता लक्ष्य निर्धारित किया है या उस पर विचार कर रहे हैं।
  • भारतीय परिदृश्य:
    • भारत अब चीन, संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोपीय संघ के बाद चौथा सबसे बड़ा उत्सर्जक है तथा आईपीसीसी की छठी आकलन रिपोर्ट के अनुसार, यह सबसे गंभीर रूप से प्रभावित देशों में से है।
    • भारत ने वर्ष 2016 के पेरिस समझौते के तहत वर्ष 2030 तक अपने सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की उत्सर्जन तीव्रता को 33-35% तक कम करने और 175 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता विकसित करने की प्रतिबद्धता व्यक्त की है।
    • भारत बहुप्रतीक्षित शुद्ध-शून्य योजना का पालन करने की बजाय हरित ऊर्जा की ओर संक्रमण के लिये तात्कालिक लक्ष्यों पर ध्यान केंद्रित करेगा।
    • भारत समान परंतु विभेदित उत्तरदायित्त्व के सिद्धांत में विश्वास करता है, जिसके अनुसार विकसित देशों को अपने उत्सर्जन में भारी कमी लाने के लिये पहला कदम उठाना चाहिये। इसके अलावा उन्हें अपने पिछले उत्सर्जन के कारण हुए पर्यावरणीय क्षति का भुगतान करके गरीब देशों को मुआवज़ा देना चाहिये।
    • हाल ही में थिंक टैंक काउंसिल फॉर एनर्जी एन्वायरनमेंट एंड वाटर प्रोजेक्ट्स द्वारा किये गए एक अध्ययन के अनुसार, भारत को वर्ष 2070 तक शुद्ध शून्य लक्ष्य हासिल करने के लिये, विशेष रूप से बिजली उत्पादन हेतु कोयले के उपयोग को वर्ष 2040 तक चरम स्तर तक पहुँचाना होगा और इसके बाद कोयले के उपयोग में वर्ष 2040 से 2060 के बीच 99% की गिरावट लानी होगी। 
  • सर्कुलर कार्बन अर्थव्यवस्था:
    • सर्कुलर कार्बन अर्थव्यवस्था उत्सर्जन के प्रबंधन और उसे कम करने के लिये एक ढाँचा है। यह एक क्लोज़्ड लूप सिस्टम है जिसमें 4R शामिल हैं: रिड्यूस, रियूज़, रिसाइकल और रिमूव।

रिड्यूस 

ऊर्जा दक्षता और जलवायु परिवर्तन के न्यूनीकरण की दिशा में कार्य करना, नवीकरणीय ऊर्जा, जलविद्युत, परमाणु और बायोएनर्जी जैसे कम कार्बन ऊर्जा स्रोतों के प्रतिस्थापन के माध्यम से जीवाश्म ईंधन में कमी करना।

रियूज़

CO2 कैप्चर के लिये नवीन तकनीकों का उपयोग करने का अर्थ है कि ईंधन, बायोएनर्जी, रसायन, निर्माण सामग्री, खाद्य और पेय जैसे उपयोगी उत्पादों के रूप में पुन: उपयोग करना।

रिसाइकल

इसके अंतर्गत CO2 रासायनिक रूप से नए उत्पादों में परिवर्तित हो जाता है जैसे कि पुनर्चक्रित उर्वरक या सीमेंट, या ऊर्जा के अन्य रूप जैसे सिंथेटिक ईंधन।

रिमूव

कार्बन डाइऑक्साइड कैप्चर के लिये प्रौद्योगिकी का उपयोग बड़े पैमाने पर उत्सर्जन में कमी लाने का एक महत्त्वपूर्ण तरीका है, जबकि वनस्पतियों को लगाकर प्रकाश संश्लेषण को बढ़ाना भी कमी में योगदान देता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


आयुष्मान भारत हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर मिशन

प्रिलिम्स के लिये :

आयुष्मान भारत स्वास्थ्य अवसंरचना मिशन

मेन्स के लिये:

आयुष्मान भारत स्वास्थ्य अवसंरचना मिशन के उद्देश्य और महत्व 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में प्रधानमंत्री ने आयुष्मान भारत स्वास्थ्य अवसंरचना मिशन का शुभारंभ किया।

प्रमुख बिंदु

  • परिचय:
    • यह देश भर में स्वास्थ्य सेवा के बुनियादी ढाँचे  को मज़बूत करने के लिये सबसे बड़ी अखिल भारतीय योजनाओं में से एक है।
    • यह 10 'उच्च फोकस' वाले राज्यों में 17,788 ग्रामीण स्वास्थ्य और कल्याण केंद्रों को सहायता प्रदान करेगा और देश भर में 11,024 शहरी स्वास्थ्य एवं कल्याण केंद्र स्थापित करेगा।
    • इसके माध्यम से देश के पाँच लाख से अधिक आबादी वाले सभी ज़िलों में एक्सक्लूसिव क्रिटिकल केयर हॉस्पिटल ब्लॉक के माध्यम से क्रिटिकल केयर सेवाएँ उपलब्ध होंगी, जबकि शेष ज़िलों को रेफरल सेवाओं के माध्यम से कवर किया जाएगा।
    • इस योजना के अंतर्गत एक स्वास्थ्य पहल  के लिये एक राष्ट्रीय संस्थान, वायरोलॉजी हेतु चार नए राष्ट्रीय संस्थान,दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्र में डब्ल्यूएचओ (विश्व स्वास्थ्य संगठन) का एक क्षेत्रीय अनुसंधान मंच, नौ जैव सुरक्षा स्तर- III प्रयोगशालाएँ और रोग नियंत्रण के लिये पाँच नए क्षेत्रीय राष्ट्रीय केंद्र स्थापित किये जाएंगे।
  • उद्देश्य:
    • शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में एक मज़बूत सार्वजनिक स्वास्थ्य बुनियादी ढाँचा  सुनिश्चित करना, जो सार्वजनिक स्वास्थ्य के अंतर्गत आपातकालीन स्थितियों या बीमारी के प्रकोप से निपटने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
    • ब्लॉक,ज़िला, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर निगरानी प्रयोगशालाओं के नेटवर्क के माध्यम से एक आईटी-सक्षम रोग निगरानी प्रणाली स्थापित करना।
      • सभी सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रयोगशालाओं को एकीकृत स्वास्थ्य सूचना पोर्टल के माध्यम से जोड़ा जाएगा, जिसका विस्तार सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में किया जाएगा।
  • महत्त्व:
    • भारत को लंबे समय से एक व्यापक स्वास्थ्य प्रणाली की आवश्यकता है। वर्ष 2019 में लोकनीति-CSDS (Lokniti-CSDS) द्वारा किये गए एक अध्ययन ['दक्षिण एशिया में लोकतंत्र की स्थिति (SDSA)-राउंड 3'] में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि कैसे हाशिये पर रहने वालों को  सार्वजनिक स्वास्थ्य देखभाल तक पहुँच के नाम पर भ्रमित किया जा रहा है।
      • अध्ययन में पाया गया कि 70% स्थानों पर सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाएँ हैं। हालाँकि शहरी क्षेत्रों (87%) की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों (65%) में उपलब्धता कम थी।
    • स्वच्छ भारत मिशन, जल जीवन मिशन, उज्ज्वला, पोषण अभियान, मिशन इंद्रधनुष जैसी योजनाओं ने करोड़ों लोगों को बीमारी से बचाया है। आयुष्मान भारत योजना के तहत 2 करोड़ से अधिक गरीबों को निःशुल्क इलाज मिला और आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन के माध्यम से स्वास्थ्य संबंधी कई समस्याओं का समाधान किया जा रहा है।
  • अन्य संबंधित पहलें:

स्रोत: द हिंदू


नशीली दवाओं की लत और भारत

प्रिलिम्स के लिये: 

गोल्डन ट्रायंगल, गोल्डन क्रिसेंट, नार्को-समन्वय केंद्र, मादक पदार्थों के नियंत्रण के लिये राष्ट्रीय कोष

मेन्स के लिये: 

भारत में नशीली दवाओं की लत से संबंधित समस्या और सरकार द्वारा इस संबंध में किये गए प्रयास

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय ने सिफारिश की है कि 'मादक पदार्थों के नियंत्रण के लिये राष्ट्रीय कोष' का उपयोग केवल पुलिसिंग गतिविधियों के बजाय नशामुक्ति कार्यक्रमों के संचालन हेतु किया जाना चाहिये।

  • ‘नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस’ (NDPS) अधिनियम, 1985 में परिभाषित दवाओं की अल्प मात्रा को अपराध मुक्त करने का प्रस्ताव भी वित्त मंत्रालय के राजस्व विभाग को भेजा गया था।
    • इसे मंज़ूरी मिलने के पश्चात् व्यक्तिगत उपयोग के लिये अल्प मात्रा में नशीली दवाओं के साथ पकड़े गए व्यक्तियों पर मुकदमा चलाने और जेल भेजने के बजाय उन्हें पुनर्वास के लिये निर्देशित किया जाएगा।

प्रमुख बिंदु

  • मादक पदार्थों के नियंत्रण के लिये राष्ट्रीय कोष
    • यह कोष ‘नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस’ (NDPS) अधिनियम, 1985 के प्रावधान के अनुसार बनाया गया था, जिसमें 23 करोड़ रुपए की राशि शामिल है।
    • NDPS अधिनियम के तहत ज़ब्त की गई किसी भी संपत्ति की बिक्री से प्राप्त आय, किसी व्यक्ति और संस्था द्वारा किये गए अनुदान तथा फंड के निवेश से होने वाली आय, फंड में शामिल की जाएगी।
    • अधिनियम के मुताबिक, इस फंड का उपयोग नशीले पदार्थों की अवैध तस्करी, नशा पीड़ित लोगों के पुनर्वास और नशीली दवाओं के दुरुपयोग को रोकने के लिये किया जाएगा।

Iran

  • भारत में नशीली दवाओं की लत:
    • भारत के युवाओं के बीच नशे की लत तेज़ी से फैल रही है।
      • भारत विश्व के दो सबसे बड़े अफीम उत्पादक क्षेत्रों (एक तरफ ‘गोल्डन ट्रायंगल’ और दूसरी तरफ ‘गोल्डन क्रिसेंट’) के बीच स्थित है।
      • ‘गोल्डन ट्रायंगल’ क्षेत्र में थाईलैंड, म्याँमार, वियतनाम और लाओस शामिल हैं।
      • ‘गोल्डन क्रिसेंट’ क्षेत्र में पाकिस्तान, अफगानिस्तान और ईरान शामिल हैं।
      • वर्ल्ड ड्रग रिपोर्ट 2021 के अनुसार, भारत (विश्व में जेनेरिक दवाओं का सबसे बड़ा निर्माता) में प्रिस्क्रिप्शन वाली दवाओं और उनके अवयवों को मनोरंजक उपयोग के साधनों में तेज़ी से परिवर्तित किया जा रहा है।
      • भारत वर्ष 2011-2020 में विश्लेषण किये गए 19 प्रमुख डार्कनेट (काला बाज़ारी) बाज़ारों में बेची जाने वाली दवाओं के शिपमेंट से भी जुड़ा हुआ है।
    • राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की ‘क्राइम इन इंडिया- 2020’ रिपोर्ट के अनुसार, NDPS अधिनियम के तहत कुल 59,806 मामले दर्ज किये गए थे।
    • सामाजिक न्याय मंत्रालय और अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) की 2019 में मादक द्रव्यों के सेवन की मात्रा पर जारी रिपोर्ट के अनुसार, 
      • भारत में 3.1 करोड़ भांग उपयोगकर्त्ता हैं (जिनमें से 25 लाख आश्रित उपयोगकर्त्ता थे)।
      • भारत में 2.3 करोड़ ओपिओइड उपयोगकर्त्ता हैं (जिनमें से 28 लाख आश्रित उपयोगकर्त्ता थे)।
  • अन्य संबंधित पहलें:
    • नार्को-समन्वय केंद्र: नार्को-समन्वय केंद्र (NCORD) का गठन नवंबर 2016 में किया गया था और "नारकोटिक्स नियंत्रण के लिये राज्यों को वित्तीय सहायता" योजना को पुनर्जीवित किया गया था।
    • जब्ती सूचना प्रबंधन प्रणाली: नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो को एक नया सॉफ्टवेयर यानी जब्ती सूचना प्रबंधन प्रणाली (SIMS) विकसित करने के लिये धन उपलब्ध कराया गया है जो नशीली दवाओं के अपराध और अपराधियों का एक पूरा ऑनलाइन डेटाबेस तैयार करेगा।
    • नेशनल ड्रग एब्यूज़ सर्वे: सरकार एम्स के नेशनल ड्रग डिपेंडेंस ट्रीटमेंट सेंटर की मदद से सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के माध्यम से भारत में नशीली दवाओं के दुरुपयोग के रुझानों को मापने हेतु राष्ट्रीय नशीली दवाओं के दुरुपयोग संबंधी सर्वेक्षण भी कर रही है।
      • प्रोजेक्ट सनराइज़: इसे स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा 2016 में भारत में उत्तर-पूर्वी राज्यों में बढ़ते एचआईवी प्रसार से निपटने के लिये शुरू किया गया था, खासकर ड्रग्स का इंजेक्शन लगाने वाले लोगों के बीच।
    • NDPS अधिनियम: यह व्यक्ति को किसी भी मादक दवा या मनोदैहिक पदार्थ के उत्पादन, रखने, बेचने, खरीदने, परिवहन, भंडारण और/या उपभोग करने से रोकता है।
      • NDPS अधिनियम में अब तक तीन बार संशोधन किया गया है - 1988, 2001 और 2014 में।
      • यह अधिनियम पूरे भारत के साथ-साथ भारत के बाहर के सभी भारतीय नागरिकों और भारत में पंजीकृत जहाज़ो एवं विमानों पर कार्यरत सभी व्यक्तियों पर भी लागू होता है।
    • नशा मुक्त भारत: सरकार ने 'नशा मुक्त भारत' या ड्रग मुक्त भारत अभियान शुरू करने की भी घोषणा की है जो सामुदायिक आउटरीच कार्यक्रमों पर केंद्रित है।
  • नशीली दवाओं के खतरे का मुकाबला करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय संधियाँ और सम्मेलन:

आगे की राह 

  • नशीली दवाओं के सेवन से जुड़े कलंक को समाप्त करने के लिये समाज को यह समझने की ज़रूरत है कि नशा करने वाले अपराधी नहीं बल्कि पीड़ित होते हैं।
  • कुछ दवाएँ जिनमें 50% से अधिक अल्कोहल और ओपिओइड शामिल होता है, को सामान्य दवाओं के अंतर्गत शामिल किये जाने की आवश्यकता है। देश में नशीली दवाओं की समस्या पर अंकुश लगाने के लिये पुलिस अधिकारियों और आबकारी विभाग को सख्त कार्रवाई की आवश्यकता है।
  • बिहार में शराबबंदी जैसा राजनीतिक फैसला इसका दूसरा समाधान हो सकता है. जब लोग आत्म-नियंत्रण नहीं कर पाते हैं, तो राज्य को राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतों (अनुच्छेद 47) के तहत कदम उठाना पड़ता है।
  • शिक्षा पाठ्यक्रम में मादक पदार्थों की लत, इसके प्रभाव और नशामुक्ति पर भी अध्याय शामिल होने चाहिये। उचित परामर्श एक अन्य विकल्प है।

स्रोत: द हिंदू


गिफ्ट सिटी में बीमा व्यवसायों के लिये उदार व्यवस्था: IFSCA

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय बीमा नियामक और विकास प्राधिकरण, अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र प्राधिकरण, भारतीय रिज़र्व बैंक, भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड, पेंशन निधि नियामक और विकास प्राधिकरण 

मेन्स के लिये:

गिफ्ट सिटी में बीमा व्यवसाय संबंधी प्रस्ताव और इनके लाभ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र प्राधिकरण (IFSCA) ने गुजरात इंटरनेशनल फाइनेंस टेक-सिटी (Gujarat International Finance Tec City- GIFT City) में विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय और भारतीय बीमा व्यवसायों के गठन की सुविधा के लिये एक नई उदार नियामक व्यवस्था की घोषणा की।

प्रमुख बिंदु

  • परिचय:
    • संस्थाएँ जो बीमा व्यवसाय स्थापित कर सकती हैं:
      • गैर-बीमा संस्थाएँ भी IFSC में सार्वजनिक कंपनियों को शामिल कर सकती हैं और बीमा या पुनर्बीमा व्यवसाय कर सकती हैं।
        • बीमा वित्तीय नुकसान से सुरक्षा का एक साधन है। यह जोखिम प्रबंधन का एक रूप है, जिसका उपयोग मुख्यतः आकस्मिक या अनिश्चित नुकसान के जोखिम से बचाव हेतु किया जाता है।
        • पुनर्बीमा (Reinsurance) द्वारा बीमाकर्त्ता बीमा दावे के परिणामस्वरूप किसी बड़े दायित्व के भुगतान को कम करने के लिये किसी प्रकार के समझौते द्वारा अपने जोखिम पोर्टफोलियो के कुछ हिस्सों को अन्य पक्षों को हस्तांतरित करते हैं।
      • इसी तरह भारतीय बीमा कंपनियाँ बीमा मध्यस्थ कार्यालय (Insurance Intermediaries Offices) के रूप में बीमा या पुनर्बीमा व्यवसाय करने के लिये सहायक कंपनियाँ स्थापित कर सकती हैं।
      • विदेशी मध्यवर्ती संस्थाओं (Foreign Intermediaries) को भी भारतीय बीमा नियामक और विकास प्राधिकरण (Insurance Regulatory and Development Authority of India- IRDAI) द्वारा पंजीकृत मध्यस्थों जैसे- बीमा दलालों और कॉर्पोरेट एजेंटों के साथ IIO स्थापित करने की अनुमति दी जाएगी।
    • चुकता पूंजी आवश्यकता (Paid Up Capital Requirement):
      • एक शाखा के रूप में किसी कंपनी को पूंजी जुटाने की आवश्यकता नहीं होती है और सहायक कंपनियों के संबंध में नई बीमा या पुनर्बीमा कंपनियों को बीमा हेतु 100 करोड़ रुपए और पुनर्बीमा के लिये 200 करोड़ रुपए की चुकता पूंजी (बीमा अधिनियम, 1938 के अनुसार) की आवश्यकता होगी।
      • नए नियम निर्दिष्ट करते हैं कि बीमा मध्यस्थ कार्यालय को शाखा स्थापित करने वाले विदेशी बीमाकर्त्ता या विदेशी पुनर्बीमाकर्त्ता को किसी स्थानीय/घरेलू पूंजी की आवश्यकता नहीं होगी। 1.5 मिलियन अमेरिकी डॉलर की नियत पूंजी को गृह क्षेत्राधिकार में बनाए रखा जा सकता है।
      • इसके अलावा IFSC में बीमा मध्यस्थ कार्यालय के लिये कोई स्थानीय\घरेलू शोधन क्षमता (किसी के ऋण का भुगतान करने की क्षमता) की आवश्यकता नहीं है।
        • नियत पूंजी शोधन क्षमता मार्जिन को गृह क्षेत्राधिकार में बनाए रखना होगा।
        • सॉल्वेंसी कैपिटल की आवश्यकता वह कुल राशि है जो बीमा और पुनर्बीमा कंपनियों को रखने की आवश्यकता होती है।
  • महत्त्व:
    • नए नियमों में वैश्विक बीमा कंपनियों और पुनर्बीमाकर्त्ताओं के लिये अवसरों को खोलने की क्षमता है।
      • नियामक ढाँचा बहुत अनुकूल है और कंपनियों की आकांक्षाओं और अपेक्षाओं को पूरा करता है।
    • नई सुविधाओं से भारत को सिंगापुर, दुबई और हॉन्गकॉन्ग जैसे उन अपतटीय वित्तीय केंद्रों के साथ प्रतिस्पर्द्धा करते हुए देश में एक वैश्विक पुनर्बीमा केंद्र विकसित करने में मदद मिलेगी, जो वर्तमान में एशिया में बीमा व्यवसाय पर हावी हैं।

अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र प्राधिकरण

  • स्थापना:
    • इसकी स्थापना अप्रैल 2020 में अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र प्राधिकरण अधिनियम, 2019 के तहत की गई थी।
      • इसका मुख्यालय गांधीनगर (गुजरात) की गिफ्ट सिटी (GIFT City) में स्थित है। 
  • कार्य
    • इसके अंतर्गत IFSC में ऐसी सभी वित्तीय सेवाओं, उत्पादों और संस्थाओं को विनियमित किया जाएगा, जिन्हें वित्तीय क्षेत्र के नियामकों द्वारा IFSCs के लिये पहले ही अनुमति दी जा चुकी है। प्राधिकरण ऐसे अन्य वित्तीय उत्पादों, सेवाओं को भी विनियमित करेगा जो समय-समय पर केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित किये जा सकते हैं। यह केंद्र सरकार को ऐसे अन्य वित्तीय उत्पादों, वित्तीय सेवाओं और वित्तीय संस्थानों की भी सिफारिश कर सकता है जिन्हें IFSC में अनुमति दी जा सकती है।
  • शक्तियाँ:
  • प्राधिकरण की प्रक्रियाएँ:
    • प्राधिकरण द्वारा अपनाई जाने वाली अन्य प्रक्रियाएँ वित्तीय उत्पादों, सेवाओं या संस्थानों पर लागू भारत की संसद के संबंधित अधिनियमों के प्रावधानों के अनुसार शासित होंगी।
  • केंद्र सरकार द्वारा अनुदान:
    • केंद्र सरकार को इस संबंध में संसद द्वारा कानून के उचित विनियोजन के बाद प्राधिकरण को इस तरह के धन को अनुदान के रूप में देना होगा क्योंकि केंद्र सरकार प्राधिकरण के प्रयोजनों के लिये इसके उपयोग को समझती है।
  • विदेशी मुद्रा में लेन-देन:
    • IFSCs के ज़रिये विदेशी मुद्रा में वित्तीय सेवाओं का लेन-देन प्राधिकरण द्वारा केंद्र सरकार के परामर्श से किया जाएगा।

अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र

  • IFSC वित्तीय सेवाओं और लेन-देन में सक्षम बनाता है जो वर्तमान में भारतीय कॉर्पोरेट संस्थाओं और विदेशी शाखाओं/वित्तीय संस्थानों की सहायक कंपनियों (जैसे- बैंक, बीमा कंपनियाँ आदि) द्वारा भारत में अपतटीय वित्तीय केंद्रों में किये जाते हैं।
    • यह एक व्यापार और नियामक वातावरण प्रदान करता है जो लंदन तथा सिंगापुर जैसे विश्व के अन्य प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय केंद्रों के समान है।
  • IFSC का उद्देश्य भारतीय कॉरपोरेट्स को वैश्विक वित्तीय बाज़ारों तक आसान पहुँच प्रदान करना तथा भारत में वित्तीय बाज़ारों के विकास को पूरक और बढ़ावा देना है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


जलवायु परिवर्तन का अर्थशास्त्र

प्रिलिम्स के लिये 

COP26, पेरिस समझौता, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष

मेन्स के लिये 

जलवायु परिवर्तन के आर्थिक प्रभाव

चर्चा में क्यों?

‘COP26’ जलवायु वार्ता ग्लासगो (स्कॉटलैंड) में होने जा रही है। दुनिया भर में होने वाली जलवायु परिवर्तन की घटनाओं की भयावह स्थिति को देखते हुए यह आगामी जलवायु समझौता वार्ता वर्ष 2015 के पेरिस समझौते में निर्धारित 1.5-2 डिग्री सेल्सियस की ऊपरी सीमा पर ग्लोबल वार्मिंग को सीमित करने के लिये महत्त्वपूर्ण है।

  • इस संदर्भ में दुनिया भर में आजीविका पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव और वैश्विक वित्तीय प्रणाली की स्थिरता का विश्लेषण करना आवश्यक है।

प्रमुख बिंदु

  • जलवायु परिवर्तन लागत: यद्यपि इसके परिणाम को लेकर असहमति है, किंतु लगभग सभी अर्थशास्त्री वैश्विक उत्पादन पर ग्लोबल वार्मिंग के संभावित प्रभाव के बारे में निश्चित हैं।
  • सर्वाधिक संवेदनशील क्षेत्र: यह सर्वसम्मति से स्वीकार किया जाता है कि विकासशील देश जलवायु परिवर्तन से सबसे अधिक प्रभावित होंगे।
    • वर्तमान में दुनिया के अधिकांश गरीब उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों या निचले इलाकों में रहते हैं, जो सूखे या बढ़ते समुद्र के स्तर जैसी जलवायु परिवर्तन की घटनाओं से प्रभावित हैं।
    • इसके अलावा इन देशों के पास इस तरह के नुकसान को कम करने के लिये संसाधनों की भी कमी है।
  • सूक्ष्म स्तर पर प्रभाव: बीते वर्ष विश्व बैंक ने बताया था कि वर्ष 2030 तक जलवायु परिवर्तन से 132 मिलियन से अधिक लोग अत्यधिक गरीबी में चले जाएंगे।
    • इसके प्रमुख कारकों में कृषि आय में कमी; बाहरी श्रम उत्पादकता में कमी; खाद्य कीमतों में वृद्धि और चरम मौसम से आर्थिक नुकसान आदि शामिल हैं।
  • 'शुद्ध शून्य उत्सर्जन' परिदृश्य का विश्लेषण: 'शुद्ध शून्य उत्सर्जन' का तात्पर्य ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन और वातावरण से निष्कासित ग्रीनहाउस गैस के बीच एक समग्र संतुलन की स्थिति प्राप्त करना है।
    • हालाँकि 'शुद्ध शून्य उत्सर्जन' के कारण कई आर्थिक परिणाम हो सकते हैं।
    • थिंक टैंक ‘कार्बन ट्रैकर’ की एक रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि तेल और गैस क्षेत्र द्वारा सामान्य रूप से किये गए 1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक का निवेश वास्तव में कम कार्बन के दृष्टिकोण से व्यवहार्य नहीं होगा।
    • इसके अलावा अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने सभी प्रकार की जीवाश्म ईंधन सब्सिडी को समाप्त करने का आह्वान किया है, जो कि प्रतिवर्ष तकरीबन 5 ट्रिलियन डॉलर है।
    • इससे व्यापक पैमाने पर बेरोज़गारी का संकट पैदा हो सकता है।
  • कार्बन प्राइस से नीचे: टैक्स या परमिट योजनाएँ उत्सर्जन से होने वाले नुकसान की भरपाई करके पर्यावरण अनुकूलता को प्रोत्साहित करती हैं।
    • हालाँकि अभी तक वैश्विक कार्बन उत्सर्जन का केवल पाँचवाँ हिस्सा ही ऐसे कार्यक्रमों द्वारा कवर किया जाता है, औसतन कार्बन प्राइस निर्धारण मात्र 3 अमेरिकी डॉलर प्रति टन है।
    • यह 75 डॉलर प्रति टन से काफी नीचे है, आईएमएफ का कहना है कि ग्लोबल वार्मिंग को 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने की ज़रूरत है।
  • मुद्रास्फीति का जोखिम: जीवाश्म ईंधन की प्रदूषणकारी लागत बढ़ने से कुछ क्षेत्रों की कीमतों में वृद्धि की संभावना है।
  • ग्रीन डिकॉप्लिंग की विफलता: सतत् विकास का तात्पर्य है उत्सर्जन वृद्धि किये बिना आर्थिक गतिविधियाँ प्रोत्साहित करना।
    • हालाँकि यह अब तक वास्तविक रूप में सामने नहीं आया है।
    • वर्तमान में आर्थिक विकास की उच्च दर हासिल की जाती है, लेकिन इसके साथ उत्सर्जन वृद्धि भी देखी जा रही है।
  • अपर्याप्त हरित वित्त: वैश्विक स्तर पर अमीर देशों, जिन्होंने अपनी औद्योगिक क्रांतियों के बाद से भारी मात्रा में उत्सर्जन किया है, ने विकासशील देशों को 100 बिलियन अमेरीकी डाॅलर के वार्षिक हस्तांतरण के माध्यम से संक्रमण में मदद करने का वादा किया, यह अभी तक पूरा नहीं हुआ है।

आगे की राह 

  • शुद्ध शून्य उत्सर्जन के आर्थिक जोखिम को कवर करना: वैश्विक वित्तीय प्रणाली को जलवायु परिवर्तन के भौतिक जोखिमों और शुद्ध शून्य में संक्रमण के दौरान होने वाली अस्थिरता से संधारणीय विकास को साकार करना चाहिये।
    • सतत् विकास के साथ आर्थिक विकास को संतुलित करने के लिये केंद्रीय बैंकों और राष्ट्रीय कोषागारों को एक संयुक्त रणनीति बनानी चाहिये।
    • ऊर्जा, सड़क, स्वास्थ्य और शिक्षा के साथ-साथ सरकार के बजट में जलवायु शमन के लिये नीतियों को स्पष्ट रूप से शामिल करना एक महत्वपूर्ण कदम होना चाहिये।
  • हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था पर स्विच करना: हरित हाइड्रोजन द्वारा बिजली उत्पादन को 1.5 डिग्री सेल्सियस के नीचे रखने के लिये 'शुद्ध-शून्य' उत्सर्जन के लक्ष्य को प्राप्त करना एक व्यवहार्य समाधान होगा।
    • यह पारंपरिक जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता को कम करने की दिशा में भी एक प्रयास  होगा।
  • जलवायु वित्त जुटाना: जलवायु वित्त जुटाने के लिये एक प्रमुख अभियान शुरू करने की भी आवश्यकता है और ऊर्जा दक्षता, जैव ईंधन के उपयोग, कार्बन संग्रहण, कार्बन प्राइस निर्धारण पर ध्यान दिया जाना चाहिये।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


राष्ट्रीय संचालन समिति: निपुण भारत मिशन

प्रिलिम्स के लिये:

निपुण भारत मिशन

मेन्स के लिये:

राष्ट्रीय शिक्षा नीति और शिक्षा में सुधार से संबंधित मुद्दे 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में निपुण भारत मिशन के कार्यान्वयन के लिये एक राष्ट्रीय संचालन समिति (NSC) का गठन किया गया है।

  • निपुण (राष्ट्रीय समझ और संख्यात्मकता के साथ पढ़ने में प्रवीणता के लिये राष्ट्रीय पहल) भारत योजना इस साल की शुरुआत में राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के हिस्से के रूप में शुरू की गई थी।

प्रमुख बिंदु 

  • NSC की भूमिका और उत्तरदायित्व:
    • मूलभूत साक्षरता और संख्यात्मकता पर राष्ट्रीय मिशन की प्रगति की निगरानी करना और नीतिगत मुद्दों पर मार्गदर्शन प्रदान करना।
    • 2026-27 में राष्ट्रीय स्तर पर हासिल किये जाने वाले लक्ष्य पर पहुँचना।
    • दिशा-निर्देशों के रूप में वार्षिक प्रगति के मापन के लिये उपकरणों का प्रसार करना।
    • राष्ट्रीय कार्य योजना (राज्य की कार्य योजनाओं के आधार पर) तैयार करना और अनुमोदन करना।
    • कार्यक्रम संबंधी और वित्तीय मानदंडों की समय-समय पर समीक्षा करना ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे हासिल किये जाने वाले लक्ष्यों के साथ संतुलन स्थापित कर रहे हैं।
  • निपुण भारत मिशन:
    • उद्देश्य:
      • आधारभूत साक्षरता और संख्यात्मकता के सार्वभौमिक अधिग्रहण को सुनिश्चित करने के लिये एक सक्षम वातावरण बनाया जाए ताकि 2026-27 तक प्रत्येक बच्चा ग्रेड 3 तक पढ़ने, लिखने और अंकगणित में वांछित सीखने की क्षमता प्राप्त कर सके।
    • फोकस क्षेत्र:
      • यह स्कूली शिक्षा के मूलभूत वर्षों में बच्चों तक पहुँच प्रदान करने और उन्हें बनाए रखने पर ध्यान केंद्रित करेगा; शिक्षक क्षमता निर्माण; उच्च गुणवत्ता एवं विविध छात्र व शिक्षण संसाधनों/शिक्षण सामग्री का विकास और सीखने के परिणामों को प्राप्त करने में प्रत्येक बच्चे की प्रगति पर नज़र रखना।
    • कार्यान्वयन:
      • NIPUN भारत को स्कूली शिक्षा और साक्षरता विभाग, शिक्षा मंत्रालय द्वारा लागू किया जाएगा।
      • समग्र शिक्षा की केंद्र प्रायोजित योजना के अंतर्गत सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में राष्ट्रीय-राज्य-ज़िला-ब्लॉक-स्कूल स्तर पर एक पाँच स्तरीय कार्यान्वयन तंत्र स्थापित किया जाएगा।
        • 'समग्र शिक्षा' कार्यक्रम तीन मौजूदा योजनाओं: सर्व शिक्षा अभियान (एसएसए), राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान (आरएमएसए) और शिक्षक शिक्षा (टीई) को मिलाकर शुरू किया गया था।
        • इस योजना का उद्देश्य स्कूली शिक्षा को प्री-स्कूल से बारहवीं कक्षा तक समग्र रूप से व्यवहार में लाना है।
      • NISHTHA (नेशनल इनिशिएटिव फॉर स्कूल हेड्स एंड टीचर्स होलिस्टिक एडवांसमेंट) के तहत फाउंडेशनल लिटरेसी एंड न्यूमेरसी (FLN) के लिये एक विशेष पैकेज NCERT द्वारा विकसित किया जा रहा है।
        • NISHTHA "एकीकृत शिक्षक प्रशिक्षण के माध्यम से स्कूली शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार" हेतु एक क्षमता निर्माण कार्यक्रम है।
      • पूर्व-प्राथमिक या बालवाटिका कक्षाओं के माध्यम से क्रम में चरण-वार लक्ष्य निर्धारित किये जा रहे हैं।
  • अन्य संबंधित पहलें:

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस