भारत-जॉर्डन संबंध
प्रिलिम्स के लिये: UPI, डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर, इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC), भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा (IMEC), UNGA, PARAM शावक, MSME।
मेन्स के लिये: भारत-जॉर्डन संबंधों के मुख्य तथ्य और भारत के लिये जॉर्डन का महत्त्व, भारत-जॉर्डन संबंधों में चुनौतियाँ और संबंधों को मज़बूत करने हेतु आवश्यक उपाय।
चर्चा में क्यों?
भारत के प्रधानमंत्री ने जॉर्डन का दौरा किया और जॉर्डन के राजा अब्दुल्ला द्वितीय के साथ विस्तृत चर्चाएँ कीं। यह जॉर्डन की उनकी पहली पूर्ण द्विपक्षीय यात्रा है तथा इससे पहले वे फरवरी 2018 में फिलिस्तीन जाते समय जॉर्डन आए थे।
सारांश
- भारत के प्रधानमंत्री की वर्ष 2025 की ऐतिहासिक जॉर्डन यात्रा, जो दोनों देशों के बीच कूटनीतिक संबंधों की 75वीं वर्षगाॅंठ के अवसर पर हुई, का उद्देश्य एक स्थिर द्विपक्षीय संबंध को भविष्य-उन्मुख रणनीतिक साझेदारी में परिवर्तित करना था।
- इस यात्रा में 5 बिलियन अमेरिकी डॉलर के व्यापार लक्ष्य और डिजिटल भुगतान एकीकरण जैसे महत्त्वाकांक्षी उद्देश्यों को निर्धारित किया गया, साथ ही भारत की पश्चिम एशिया नीति में जॉर्डन की भूमिका का पूर्ण उपयोग करने में सीमित आर्थिक आधार तथा भू-राजनैतिक संवेदनशीलताओं जैसी चुनौतियों को भी स्वीकार किया गया।
यात्रा के मुख्य परिणाम क्या हैं?
- भारत और जॉर्डन के बीच 5 समझौता ज्ञापन (MoUs) पर हस्ताक्षर:
- नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में तकनीकी सहयोग पर समझौता ज्ञापन
- जल संसाधन प्रबंधन एवं विकास के क्षेत्र में सहयोग पर समझौता ज्ञापन
- पेट्रा (जॉर्डन का प्राचीन शहर) और एलोरा के बीच ट्विनिंग समझौता
- वर्ष 2025-2029 के लिये सांस्कृतिक आदान-प्रदान कार्यक्रम का नवीनीकरण
- डिजिटल रूपांतरण के लिये जनसंख्या स्तर पर कार्यान्वित सफल डिजिटल समाधानों को साझा करने के क्षेत्र में सहयोग पर आशय पत्र (Letter of Intent)।
- महत्त्वाकांक्षी व्यापार लक्ष्य: दोनों देश अगले 5 वर्षों में द्विपक्षीय व्यापार को 5 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक बढ़ाने का लक्ष्य रखते हैं। भारत, जॉर्डन का तीसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साथी है।
- क्षेत्रीय और वैश्विक सहयोग: अभिकर्त्ताओं ने आतंकवाद की कड़ी निंदा की और क्षेत्रीय शांति तथा स्थिरता सुनिश्चित करने पर साझा दृष्टिकोण व्यक्त किया।
भारत की पश्चिम एशिया नीति में जॉर्डन का रणनीतिक महत्त्व क्या है?
- भू-राजनीतिक सेतु: जॉर्डन एक प्रमुख पश्चिम समर्थक, आधुनिक और संवैधानिक अरब राजतंत्र है, जिसने इज़राइल के साथ शांति संधि की है।
- यह भारत के लिये एक महत्त्वपूर्ण कूटनीतिक सेतु का कार्य करता है, जो इज़राइल, अरब देशों और ईरान के साथ संबंधों में संतुलन बनाए रखने में सहायता करता है, बिना किसी सांप्रदायिक विभाजन में फँसे।
- जॉर्डन में बड़ी शरणार्थी आबादी है, जिनमें मुख्य रूप से सीरियाई शामिल हैं और उसकी निरंतर मानवीय भूमिका उसे क्षेत्रीय स्थिरता का एक मज़बूत स्तंभ बनाती है।
- आतंकवाद के खिलाफ सहयोग: अकाबा प्रोसेस 2015, वर्ष 2018 का रक्षा MoU और विशेष ऑपरेशन बल प्रदर्शनी एवं सम्मेलन (SOFEX) में भागीदारी जैसे मंचों में सहभागिता, सैन्य-से-सैन्य तथा आतंकवाद-विरोधी संबंधों को गहरा करने को दर्शाती है।
- मुख्य कूटनीतिक समर्थन: इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) में जॉर्डन का प्रभाव भारत के बहुपक्षीय हितों के लिये महत्त्वपूर्ण समर्थन प्रदान करता है और कश्मीर पर नकारात्मक प्रचार का मुकाबला करने में सहायता करता है, क्योंकि जॉर्डन आमतौर पर संतुलित रुख अपनाता है।
- क्षेत्रीय स्थिरता में जॉर्डन की भूमिका: जॉर्डन की येरुशलम की संरक्षण भूमिका इसे क्षेत्रीय तनाव कम करने के प्रयासों में केंद्रीय बनाती है, जो भारत के क्षेत्रीय स्थिरता के हितों और उसके प्रवासियों एवं व्यापार मार्गों की सुरक्षा के साथ संरेखित है।
- कोरिडोर लॉजिस्टिक्स: जॉर्डन को भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा (IMEC) में एक महत्त्वपूर्ण कड़ी के रूप में स्थापित किया गया है, जो भारत के व्यापार कनेक्टिविटी और ऊर्जा संक्रमण लक्ष्यों को सशक्त बनाता है।
- यह संकट के बाद इराक और लेवेंट में पुनर्निर्माण तथा लॉजिस्टिक्स के लिये संभावित प्रवेश द्वार के रूप में भी कार्य करता है।
- लाल सागर संकट के दौरान, खाड़ी के बंदरगाहों से सऊदी अरब और जॉर्डन के रास्ते इज़राइल तक भूमिगत माल ढुलाई मार्गों का उपयोग किया गया, जिससे समुद्री मार्गों के बाधित बिंदुओं को पार किया जा सके। यह क्षेत्रीय लॉजिस्टिक्स में जॉर्डन के बढ़ते महत्त्व को उजागर करता है।
जॉर्डन
- स्थान और सीमाएँ: मध्य पूर्व में रणनीतिक रूप से स्थित, सीरिया, इराक, सऊदी अरब, इज़राइल और वेस्ट बैंक से सटी हुई।
- भौतिक विशेषताएँ: जॉर्डन का अधिकांश भूभाग रेगिस्तान (80% से अधिक) से ढका है, साथ ही उर्वर जॉर्डन नदी घाटी और पथरीले उच्च पठार भी हैं।
- जनसंख्या: अधिकांश अरबी, जिसमें एक बड़ी फिलिस्तीनी शरणार्थी आबादी (लगभग एक तिहाई) शामिल है। अधिकांश मुस्लिम हैं और इसमें एक ईसाई अल्पसंख्या भी है। देश अत्यधिक शहरीकृत है (75% लोग शहरों में रहते हैं)।
- समुद्री पहुँच: अकाबा बंदरगाह के माध्यम से लाल सागर तक पहुँच।
- आधुनिक गठन: ब्रिटिश शासन के तहत ट्रांसजॉर्डन के रूप में स्थापित (1920) और वर्ष 1946 में स्वतंत्रता प्राप्त की, हशेमाइट राजवंश के राजा अब्दुल्ला I के नेतृत्व में।
- अरब-इज़राइल संघर्ष: वर्ष 1948 और 1967 में इज़राइल के खिलाफ युद्ध लड़े, जिससे वेस्ट बैंक और येरुशलम का पूर्वी हिस्सा खो गया और बड़ी संख्या में फिलिस्तीनी शरणार्थी आए।
- शांति और स्थिरता: वर्ष 1988 में वेस्ट बैंक पर दावे को त्यागा और वर्ष 1994 में इज़राइल के साथ ऐतिहासिक शांति संधि (वाड़ी अरबा शांति संधि, 1994) पर हस्ताक्षर किये।
भारत–जॉर्डन द्विपक्षीय संबंधों के प्रमुख स्तंभ क्या हैं?
- कूटनीतिक सहभागिता: भारत और जॉर्डन के बीच कूटनीतिक संबंधों की स्थापना वर्ष 1950 में हुई थी। ये संबंध नियमित उच्चस्तरीय बैठकों और शिखर सम्मेलनों (जैसे- UNGA) के माध्यम से सुदृढ़ होते रहे हैं। वर्ष 2025 में पहलगाम हमले के बाद आतंकवाद के खिलाफ परस्पर समर्थन और क्षेत्रीय स्थिरता को लेकर साझा चिंताएँ भी इन संबंधों को मज़बूती प्रदान करती हैं।
- व्यापार और आर्थिक एकीकरण: भारत, जॉर्डन का तीसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। वित्त वर्ष 2023–24 में दोनों देशों के बीच 2.875 बिलियन अमेरिकी डॉलर का द्विपक्षीय व्यापार हुआ।
- जॉर्डन इंडिया फर्टिलाइजर कंपनी (JIFCO) जैसी संयुक्त उद्यम परियोजनाएँ जॉर्डन को भारत की कृषि सुरक्षा के लिये फॉस्फेट और पोटाश को महत्त्वपूर्ण आपूर्तिकर्त्ता बनाती हैं।
- जॉर्डन में 15 से अधिक NRI-स्वामित्व वाले वस्त्र उद्यम (लगभग 500 मिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश) व्यापार समझौतों का लाभ उठाकर पश्चिमी बाज़ारों तक पहुँच बना रहे हैं।
- रक्षा एवं सुरक्षा सहयोग: भारत और जॉर्डन ने वर्ष 2018 में रक्षा सहयोग पर एक समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किये।
- विज्ञान और प्रौद्योगिकी साझेदारी: अल-हुसैन तकनीकी विश्वविद्यालय में भारत-जॉर्डन सूचना प्रौद्योगिकी उत्कृष्टता केंद्र में सुपरकंप्यूटर परम शावक (PARAM Shavak) स्थापित है, जिसका उद्देश्य 3,000 जॉर्डनियाई IT पेशेवरों को प्रशिक्षण देना है। भारतीय मास्टर ट्रेनर जॉर्डनियों को साइबर सुरक्षा, AI और बिग डेटा एनालिटिक्स में कौशल उन्नयन प्रदान करते हैं।
- जनसंवाद और सामाजिक संबंध: जॉर्डन में लगभग 17,500 भारतीय महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों जैसे स्वास्थ्य सेवा, IT और शिक्षा में कार्यरत हैं। मज़बूत सांस्कृतिक संबंध जॉर्डन में बॉलीवुड में जेराश जैसे सांस्कृतिक कार्यक्रमों के माध्यम से बनाए रखे जाते हैं।
- व्यक्तिगत कूटनीति: जॉर्डन के क्राउन प्रिंस अल हुसैन बिन अब्दुल्ला II ने भारतीय प्रधानमंत्री को व्यक्तिगत रूप से जॉर्डन म्यूज़ियम में ले जाकर भारत और जॉर्डन के मधुर संबंधों का परिचय दिया।
भारत और जॉर्डन के बीच साझेदारी को सीमित करने वाली चुनौतियाँ क्या हैं?
- संरचनात्मक व्यापार असंतुलन: व्यापार मुख्य रूप से कुछ ही वस्तुओं तक सीमित है, जिसमें भारत फॉस्फेट और पोटाश का आयात करता है और अनाज एवं पेट्रोलियम उत्पादों का निर्यात करता है, जिससे मूल्य अस्थिरताओं के प्रति संवेदनशील बनते हैं। उच्च-मूल्य और उन्नत तकनीक के आदान-प्रदान अभी बहुत कम हैं।
- जॉर्डन की अर्थव्यवस्था अभी भी महत्त्वपूर्ण चुनौतियों का सामना कर रही है, जिसमें लगभग 21% बेरोज़गारी और 2024 तक सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के लगभग 90% तक पहुँचता सार्वजनिक ऋण शामिल है। ये दबाव वित्तीय लचीलापन सीमित करते हैं, जिससे निकट भविष्य में व्यापक व्यापार विस्तार करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
- पश्चिम एशिया में भू-राजनैतिक संवेदनशीलताएँ: जॉर्डन की विदेश नीति फिलिस्तीनी मुद्दे और इज़राइल-संबंधी घटनाओं से काफी प्रभावित है, जिससे क्षेत्रीय संकटों के दौरान इसके बाहरी संरेखण बहुत संवेदनशील हो जाते हैं और पश्चिम एशिया में तनाव बढ़ने पर स्थिर तथा दीर्घकालिक सहयोग जटिल हो जाता है।
- संवहन में अंतराल: केवल एक अम्मान–मुंबई फ्लाइट से लोगों और व्यापार के बीच सीमित संबंध स्पष्ट होते हैं, विशेषकर भारत के खाड़ी देशों के साथ मज़बूत कनेक्शनों की तुलना में। यह कमज़ोर कनेक्टिविटी और जॉर्डन की आर्थिक चुनौतियाँ मिलकर व्यापार, निवेश और पर्यटन में वृद्धि को सीमित करती हैं।
भारत और जॉर्डन ज़्यादा मज़बूत द्विपक्षीय संबंध कैसे बना सकते हैं?
- आर्थिक संबंधों में विविधता लाना: भारत और जॉर्डन को वस्तु-केंद्रित व्यापार से हटकर मूल्य शृंखला एकीकरण की ओर बढ़ना चाहिये। इसके लिये एक मंत्रीस्तरीय रणनीतिक आर्थिक एवं प्रौद्योगिकी संवाद स्थापित किया जाना चाहिये, जो निवेश, लघु और मध्यम उद्यम (MSMEs), स्टार्टअप्स और आपूर्ति शृंखलाओं पर केंद्रित हो।
- सहयोग में भारत की डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना (DPI) विशेषज्ञता साझा करना भी शामिल हो सकता है, ताकि स्वास्थ्य और ई-गवर्नेंस में भुगतान इंटरऑपरेबिलिटी और स्केलेबल डिजिटल समाधान सुनिश्चित किये जा सकें।
- हरित और जल-सुरक्षित साझेदारी का निर्माण: जॉर्डन में जल-संकट और ऊर्जा संक्रमण जैसी मौलिक चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए, भारत सौर और ग्रीन हाइड्रोजन तकनीकों में सहयोग कर सकता है। सहयोग जल पुनर्चक्रण, समुद्री जल से मीठा पानी बनाने, स्मार्ट सिंचाई और जलवायु-प्रतिरोधी कृषि तक भी विस्तारित किया जा सकता है।
- क्षेत्रीय स्थिरीकरण हेतु प्रवेश द्वार: भारत जॉर्डन के साथ मिलकर पुनर्निर्माण आपूर्ति शृंखलाएँ स्थापित कर सकता है, इसे मानवतावादी सहायता, कौशल विकास और स्वास्थ्य मिशनों के लिये आधार के रूप में उपयोग कर सकता है तथा बहुपक्षीय विकास पहलों में सहयोग कर सकता है।
- सांस्कृतिक संबंधों को मज़बूत करना: सांस्कृतिक सामग्री, फिल्म उत्सव और पुरातात्त्विक सहयोग (जैसे पेत्रा–एल्लोरा ट्विनिंग) का संयुक्त उत्पादन करना। जॉर्डन को बॉलीवुड तथा भारतीय OTT प्लेटफॉर्म्स के लिये फिल्म शूटिंग स्थल के रूप में बढ़ावा देना।
- संवहन को बढ़ाना: पर्यटन और व्यापार को बढ़ावा देने हेतु सीधे उड़ानों (अम्मान–दिल्ली/चेन्नई) को प्रोत्साहित करना। व्यवसायों तथा अकादमिक संस्थानों को जोड़ने के लिये ई-कॉमर्स, तकनीकी स्टार्टअप एवं वर्चुअल सहयोग के संबंध एक समर्पित डिजिटल प्लेटफॉर्म विकसित करना।
निष्कर्ष
भारत के प्रधानमंत्री का ऐतिहासिक दौरा 75 वर्षीय स्थिर साझेदारी को एक महत्त्वाकांक्षी रणनीतिक गठबंधन में बदल देता है। व्यापार में विविधता, डिजिटल एकीकरण और गहन सुरक्षा सहयोग को लक्षित करके, भारत तथा जॉर्डन कूटनीतिक सद्भावना को ठोस एवं भविष्य-उन्मुख परिणामों में परिवर्तित करने के लिये तैयार हैं।
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दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. भारत की पश्चिम एशिया नीति में जॉर्डन का रणनीतिक महत्त्व क्या है और रक्षा एवं सुरक्षा में सहयोग को आपसी लाभ के लिये कैसे बढ़ाया जा सकता है? |
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
1. भारत की पश्चिम एशिया नीति में जॉर्डन का रणनीतिक महत्त्व क्या है?
जॉर्डन एक महत्त्वपूर्ण भू-राजनीतिक सेतु के रूप में कार्य करता है, जिससे भारत को इज़राइल, अरब देशों और ईरान के साथ संबंध संतुलित करने में मदद मिलती है। अक्साबा प्रक्रिया में इसकी भूमिका तथा IMEC के लिये संभावित लॉजिस्टिक हब के रूप में इसका महत्त्व और बढ़ जाता है।
2. जॉर्डन भारत की कृषि सुरक्षा में कैसे योगदान देता है?
JIFCO जैसी संयुक्त उद्यम परियोजनाओं के माध्यम से जॉर्डन फॉस्फेट और पोटाश की आपूर्ति करता है, जो भारत की उर्वरक आवश्यकताओं के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं।
3. भारत और जॉर्डन विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में कैसे सहयोग करते हैं?
अम्मान स्थित भारत-जॉर्डन सूचना प्रौद्योगिकी उत्कृष्टता केंद्र (IJCOEIT) के माध्यम से, जो भारतीय विशेषज्ञता का उपयोग करके 3,000 जॉर्डनियाई IT पेशेवरों को AI, साइबर सुरक्षा और बिग डेटा एनालिटिक्स में प्रशिक्षण देने का लक्ष्य रखता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्न (PYQ)
प्रिलिम्स
प्रश्न 1. दक्षिण-पश्चिमी एशिया का निम्नलिखित में से कौन-सा एक देश भूमध्यसागर तक फैला नहीं है? (2015)
(a) सीरिया
(b) जॉर्डन
(c) लेबनान
(d) इज़रायल
उत्तर: (b)
प्रश्न 2. कभी-कभी समाचारों में उल्लिखित पद ‘टू-स्टेट सॉल्यूशन’ किसकी गतिविधियों के संदर्भ में आता है ? (2018)
(a) चीन
(b) इज़रायल
(c) इराक
(d) यमन
उत्तर: (b)
मेन्स
प्रश्न. “भारत के इज़रायल के साथ संबंधों ने हाल में एक ऐसी गहराई एवं विविधता प्राप्त कर ली है, जिसकी पुनर्वापसी नहीं की जा सकती है।” विवेचना कीजिये। (2018)
भारत में कॉरपोरेट बॉण्ड बाज़ार को मज़बूत करना
चर्चा में क्यों?
नीति आयोग ने ‘भारत में कॉरपोरेट बॉण्ड बाज़ार को मज़बूत करने’ पर रिपोर्ट जारी की है, जिसमें यह रेखांकित किया गया है कि अधिक दक्ष कॉरपोरेट बॉण्ड बाज़ार, बाज़ार तक पहुँच के विस्तार, तरलता में सुधार तथा निवेशकों की भागीदारी को बढ़ाने के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
सारांश
- भारत का कॉर्पोरेट बॉण्ड बाज़ार विस्तारित हुआ है लेकिन नियामक अतिव्यापन, प्रतिबंधात्मक निवेश जनादेश, दिवालियापन में देरी और कमज़ोर जोखिम-प्रबंधन बुनियादी ढाँचे के कारण उथला और अतरल बना हुआ है।
- नीति आयोग ने वर्ष 2030 तक ₹100–120 ट्रिलियन के बाज़ार के निर्माण के लिये नियामक सरलीकरण, उत्पाद नवाचार और प्रौद्योगिकी एकीकरण की 6-वर्षीय रोडमैप की सिफारिश की है।
भारत के कॉर्पोरेट बॉण्ड बाज़ार की वर्तमान स्थिति क्या है?
- पर्याप्त वृद्धि, किंतु अप्रयुक्त क्षमता: बाज़ार वित्तीय वर्ष 2015 में 17.5 ट्रिलियन रुपए से बढ़कर वित्तीय वर्ष 2025 में 53.6 ट्रिलियन रुपए हो गया है, जो लगभग 12% चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) से बढ़ रहा है।
- हालाँकि, सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के 15-16% पर यह दक्षिण कोरिया (79%) और मलेशिया (54%) जैसे समकक्षों की तुलना में उथला बना हुआ है।
- केंद्रित और संस्थागत: बॉण्ड के माध्यम से धन जुटाना अब बैंक ऋण के बराबर है, लेकिन बाज़ार पर निजी प्लेसमेंट (जारीकरण का 98%) और शीर्ष-रेटेड (AAA/AA) उधारकर्त्ताओं का वर्चस्व है।
- सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSME), खुदरा निवेशकों (<2%), और विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों की भागीदारी न्यूनतम है।
- तरलता की चुनौतियाँ: माध्यमिक बाज़ार अतरल है, जिसमें वार्षिक टर्नओवर अनुपात (0.3) कम है, जो बीमा और पेंशन निधियों जैसे संस्थागत निवेशकों की ‘खरीदो और रखो’ रणनीति के कारण है।
- भविष्य की संभावना: निरंतर सुधारों और नवाचारों के साथ, भारत का कॉर्पोरेट बॉण्ड बाज़ार वर्ष 2030 तक 100–120 ट्रिलियन रुपये से अधिक हो सकता है, जो वित्तीय स्थिरता और विकास का एक स्तंभ बन सकता है।
भारत के लिये कॉर्पोरेट बॉण्ड बाज़ार क्यों आवश्यक है?
- विकसित भारत 2047 की आवश्यकता: भारत का 30 ट्रिलियन अमरीकी डॉलर की अर्थव्यवस्था और 18,000 अमरीकी डॉलर प्रति व्यक्ति आय वाला महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य, बड़े पैमाने पर दीर्घकालिक, कम लागत वाली पूंजी जुटाने में सक्षम एक मज़बूत वित्तीय प्रणाली की मांग करता है।
- वित्तीय ढाँचा संतुलन: वित्तपोषण मार्गों के विस्तार और एक प्रतिस्पर्द्धी, तरल बाज़ार स्थान के निर्माण के माध्यम से उधार लागत कम करके, जहाँ विविध जारीकर्त्ता निवेशकों के एक विस्तृत पूल से सीधे दीर्घकालिक पूंजी तक पहुँच सकते हैं, एक संतुलित, लचीला वित्तीय ढाँचा प्राप्त करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- पूंजी निर्माण इंजन: संस्थागत और घरेलू बचत को उत्पादक क्षेत्रों में निर्देशित करता है और क्रेडिट डेरिवेटिव्स तथा प्रतिभूतिकरण जैसे जोखिम प्रबंधन उपकरणों के विकास को सुविधाजनक बनाता है।
- बैंकिंग क्षेत्र के जोखिम को कम करना: विविध वित्तपोषण स्रोत बैंकों पर निर्भरता कम करते हैं, जिससे वे प्राथमिकता वाले क्षेत्रों और सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों (MSME) पर ध्यान केंद्रित करते हुए अनर्जक परिसंपत्ति (NPA) संचय और ऋण संकेंद्रण जोखिम को कम कर सकते हैं।
- मौद्रिक नीति के प्रसारण को सुदृढ़ करना: एक गहरा कॉर्पोरेट बॉण्ड बाज़ार ब्याज दर में बदलाव को एक अच्छी तरह से परिभाषित यील्ड कर्व के माध्यम से तेज़ी से और अधिक पारदर्शिता से पास होकर मौद्रिक नीति के प्रसारण को सुदृढ़ करता है।
- यह अर्थव्यवस्था में क्रेडिट जोखिम के मूल्यांकन के लिये विश्वसनीय बेंचमार्क यील्ड कर्व भी प्रदान करता है।
कॉर्पोरेट बॉन्ड बाज़ार को विकसित करने में मुख्य चुनौतियाँ निम्नलिखित हैं:
- नियामक जटिलता और ओवरलैप: कई नियामक संस्थाएँ (SEBI, RBI, कंपनी मामलों का मंत्रालय) होने के कारण अनुपालन बिखरा हुआ होता है, जिससे लागत बढ़ती है और नई वित्तीय साधनों के लिये देरी होती है।
- कठोर निवेश मापदंड: संस्थागत निवेशकों (बीमा कंपनियाँ, पेंशन फंड) को नियमों के कारण अक्सर केवल उच्च रेटिंग वाले (AA और उससे ऊपर) बॉन्ड में ही निवेश करने की अनुमति होती है, जिससे निम्न रेटिंग वाले कॉर्पोरेट्स को धन की कमी होती है।
- डेबेंचर ट्रस्टी की सीमित प्रवर्तन क्षमता और बॉण्डहोल्डर सुरक्षा में अंतराल निवेशकों के विश्वास को कमज़ोर करता है, खासकर कम रेटिंग वाले बॉण्ड में।
- कमज़ोर दिवालियापन पुनर्प्राप्ति और ढाँचा: दिवाला एवं शोधन अक्षमता संहिता (IBC) के बावजूद, निपटान प्रक्रियाओं में देरी होती है (औसतन 713 दिन बनाम 330 दिन की निर्धारित अवधि) और पुनर्प्राप्ति दरें घट रही हैं, जिससे निवेशक विश्वास प्रभावित होता है।
- उच्च लागत और कर असुविधाएँ: उच्च जारीकरण/लिस्टिंग लागत, ब्याज पर जटिल TDS नियम और शेयरों की तुलना में कम अनुकूल पूंजीगत लाभ कर उपचार बॉण्ड को कम आकर्षक बनाते हैं।
- अविकसित पारिस्थितिकी तंत्र: जोखिम कम करने वाले उपकरणों (जैसे क्रेडिट डिफ़ॉल्ट स्वैप), सिक्योरिटीज़ लेंडिंग के सीमित बाज़ार और असंगठित डेटा ढाँचा विकास में बाधा डालते हैं। इससे मूल्य पारदर्शिता घटती है, जो जोखिम के सही आकलन और व्यापार गतिविधियों को प्रभावित करती है।
कॉर्पोरेट बॉण्ड बाज़ार को मज़बूत करने के लिये उठाए गए सुधार
- RBI: ट्राइ-पार्टी रेपो, पारिश्रमिक क्रेडिट संवर्धन (PCE), रिटेल डायरेक्ट प्लेटफॉर्म और विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (FPI) के लिये वॉलंटरी रिटेंशन रूट (VRR) शुरू किये गए।
- सरकार: दिवाला एवं शोधन अक्षमता संहिता (IBC) लागू किया, कॉर्पोरेट ऋण बाज़ार विकास निधि (CDMDF) को सुरक्षा जाल के रूप में शुरू किया और AMRUT 2.0 के तहत म्यूनिसिपल बॉण्ड के लिये प्रोत्साहन प्रदान किये।
- संसदीय सिफारिशें: लोकसभा की चयन समिति ने राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण (NCLAT) को दिवालियापन अपीलों का निर्णय लेने के लिये 3 महीने की समय सीमा तय करने का प्रस्ताव रखा है।
- इसने IBC में सर्विस प्रोवाइडर की परिभाषा में रजिस्टर्ड वैल्यू शामिल करने और रजिस्टर्ड वैल्यूअर की स्पष्ट परिभाषा जोड़ने का सुझाव दिया।
- इसके अलावा इसने कॉर्पोरेट दिवालियापन निपटान प्रक्रिया (CIRP) के दौरान कॉर्पोरेट डेब्टर के लिये कई निपटान योजनाओं की अनुमति देने का प्रस्ताव रखा।
- सेबी की पहल:
नीति आयोग के अनुसार कॉर्पोरेट बॉण्ड बाज़ार को गहरा करने हेतु प्रस्तावित रोडमैप क्या है?
NITI आयोग ने 3-चरणीय, 6-वर्षीय सुधार रणनीति प्रस्तावित की है, जो प्रारंभिक चरणों में नियामक सरलीकरण और बाज़ार अवसंरचना को मज़बूत करने को प्राथमिकता देती है, इसके बाद गहरी संस्थागत सुधार और वैश्विक एकीकरण की ओर बढ़ती है, जिससे सिस्टमिक जोखिमों को न्यूनतम किया जा सके।
- चरण I (1-2 वर्ष, नींव मज़बूत करना): SEBI, RBI, MCA में नियमों को सरल बनाना। डिजिटल प्लेटफॉर्म और निवेशक शिक्षा के माध्यम से रिटेल पहुँच बढ़ाना।
- इन्सॉल्वेंसी टाइमलाइन में सुधार करना और डिबेंचर ट्रस्टी की भूमिकाओं को मज़बूत करना।
- छोटे और मध्यम उद्यमों (SMEs) के लिये AI-आधारित क्रेडिट स्कोरिंग का पायलट शुरू करना और स्वेच्छा से मार्केट-मेकिंग को प्रोत्साहित करना।
- चरण II (2-4 वर्ष, विस्तार और नवाचार): कवरड बॉण्ड (उच्च गुणवत्ता वाले संपार्श्विक जैसे सार्वजनिक क्षेत्र के ऋण द्वारा समर्थित), लक्षित सब्सिडी बॉण्ड तथा फ्रैक्शनल बॉण्ड फंड जैसे नए एवं नवाचारी उत्पाद लाना।
- SME बॉण्ड और निम्न-रेटेड ऋण के लिये समर्पित प्लेटफॉर्म विकसित किये जाएँ।
- अधिक विविधीकरण की अनुमति देने के लिये बीमा कंपनियों और पेंशन फंडों के निवेश प्रावधानों की समीक्षा की जाए।
- चरण III (4–6 वर्ष, एकीकरण एवं परिपक्वता): एक एकीकृत बॉण्ड बाज़ार नियामक या उच्चस्तरीय वैधानिक कार्यबल की स्थापना की जाए।
निष्कर्ष
भारत के कॉरपोरेट बॉण्ड बाज़ार में विस्तार तो हुआ है, परंतु इसकी गहराई और एकरूपता अब भी अपर्याप्त है, जिससे दीर्घकालिक पूंजी जुटाने की इसकी क्षमता सीमित रहती है। विकसित भारत 2047 के लक्ष्य को साकार करने हेतु इसे 100–120 ट्रिलियन रुपये के वित्तपोषण स्तंभ के रूप में स्थापित करने के लिये नियामकीय ढाँचे, निवेशक आधार के विविधीकरण, दिवालियापन प्रक्रिया की दक्षता और बाज़ार अवसंरचना में समन्वित सुधार अनिवार्य हैं।
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दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. भारत के कॉरपोरेट बॉण्ड बाज़ार की गहराई बढ़ाने में बाधा डालने वाली संरचनात्मक और नियामकीय चुनौतियों का समालोचनात्मक विश्लेषण कीजिये। अब तक कौन-से उपाय किये गए हैं तथा इसे सुदृढ़ बनाने हेतु और किन सुधारों की आवश्यकता है? |
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
1. भारत के कॉरपोरेट बॉण्ड बाज़ार का आकार कितना है?
वित्त वर्ष 2024-2025 में इसका आकार लगभग ₹53.6 ट्रिलियन है, जो GDP का लगभग 15–16% है। यह उल्लेखनीय वृद्धि को दर्शाता है, लेकिन वैश्विक समकक्षों की तुलना में इसकी गहराई अभी भी कम है।
2. द्वितीयक बाज़ार में तरलता (Liquidity) कम क्यों है?
बीमा और पेंशन फंड जैसे खरीदकर रखने वाले (Buy-and-Hold) संस्थागत निवेशकों का प्रभुत्व होने के कारण टर्नओवर अनुपात केवल 0.3 रह गया है।
3. वर्ष 2030 तक भारत के कॉरपोरेट बॉण्ड बाज़ार का संभावित आकार क्या हो सकता है?
निरंतर सुधारों के साथ, इस बाज़ार का आकार ₹100–120 ट्रिलियन से अधिक होने की क्षमता रखता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)
प्रिलिम्स
प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)
- पूंजी पर्याप्तता अनुपात (सी.ए.आर.) वह राशि है जिसे बैंकों को अपनी निधियों के रूप में रखना होता है जिससे यदि खाता-धारकों द्वारा देयताओं का भुगतान नहीं करने से कोई हानि होती है तो उसका प्रतिकार कर सकें।
- सी.ए.आर. का निर्धारण प्रत्येक बैंक द्वारा अलग-अलग किया जाता है।
उपर्युत्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1और न ही 2
उत्तर: (a)
प्रश्न. समाचारों में प्रायः आने वाला 'बासल III (Basel III) समझौता' या सरल शब्दों में 'बासल III' (2015)
(a) जैव विविधता के संरक्षण और धारणीय (सस्टेनेबल) उपयोग के लिये राष्ट्रीय कार्यनीतियाँ विकसित करने का प्रयास करता है
(b) बैंकिंग क्षेत्रों के वित्तीय और आर्थिक दबावों का सामना करने के सामर्थ्य को उन्नत करने तथा जोखिम प्रबंधन को उन्नत करने का प्रयास करता है
(c) ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने का प्रयास करता है किंतु विकसित देशों पर अपेक्षाकृत भारी बोझ रखता है
(d) विकसित देशों से निर्धन देशों को प्रौद्योगिकी के अंतरण का प्रयास करता है ताकि वे प्रशीतन में प्रयुक्त होने वाले क्लोरोफ्लुओरोकार्बन के स्थान पर हानिरहित रसायनों का प्रयोग कर सकें
उत्तर: (b)
मेन्स
प्रश्न. क्या आप इस मत से सहमत हैं कि सकल घरेलू उत्पाद (जी० डी० पी०) की स्थायी संवृद्धि तथा निम्न मुद्रास्फीति के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था अच्छी स्थिति में है? अपने तर्कों के समर्थन में कारण दीजिये। (2019)
सबका बीमा, सबकी रक्षा विधेयक, 2025
प्रिलिम्स के लिये: बीमा, भारतीय बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण (IRDAI), प्रत्यक्ष विदेशी निवेश, प्रधानमंत्री जन धन योजना, अटल पेंशन योजना, सुरक्षा बीमा योजना
मेन्स के लिये: बीमा क्षेत्र का उदारीकरण और वित्तीय समावेशन पर इसका प्रभाव, भारत के वित्तीय क्षेत्र को मज़बूत करने में FDI की भूमिका।
चर्चा में क्यों?
लोकसभा ने सबका बीमा, सबकी रक्षा (बीमा कानूनों का संशोधन) विधेयक, 2025 पारित कर दिया है, जिसमें बीमा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) की सीमा को 74% से बढ़ाकर 100% करने का प्रस्ताव है।
- इस कदम को बीमा कवरेज को सुदृढ़ करने तथा ‘वर्ष 2047 तक सभी के लिये बीमा’ के लक्ष्य को आगे बढ़ाने के लिये एक प्रमुख सुधार के रूप में देखा जा रहा है।
सारांश
- सबका बीमा, सबकी रक्षा विधेयक, 2025 बीमा क्षेत्र में 100% प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) की अनुमति देता है, IRDAI की नियामकीय शक्तियों को सुदृढ़ करता है, पुनर्बीमा को उदार बनाता है और ‘वर्ष 2047 तक सभी के लिये बीमा’ की परिकल्पना के तहत बीमा पैठ को सुदृढ़ करने का लक्ष्य रखता है।
- जहाँ यह सुधार भारत के बढ़ते बीमा बाज़ार में वैश्विक पूंजी, प्रौद्योगिकी एवं नवाचार को आकर्षित कर सकता है, वहीं विदेशी प्रभुत्व, ग्रामीण क्षेत्रों की उपेक्षा तथा निवेशक हितों और पॉलिसीधारकों के संरक्षण के बीच संतुलन बनाए रखने जैसी चिंताएँ भी बनी हुई हैं।
सबका बीमा, सबकी रक्षा (बीमा कानूनों में संशोधन) विधेयक, 2025 के प्रमुख प्रावधान क्या हैं?
- बीमा क्षेत्र में 100% FDI: यह विधेयक बीमा कंपनियों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) की सीमा को 74% से बढ़ाकर 100% करता है, जिससे पूर्ण विदेशी स्वामित्व संभव होगा और दीर्घकालिक पूंजी, उन्नत प्रौद्योगिकी तथा वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं को आकर्षित किया जा सकेगा।
- बीमा कानूनों में संशोधन: इसमें बीमा अधिनियम, 1938, LIC अधिनियम, 1956 तथा बीमा नियामक एवं विकास प्राधिकरण (IRDA) अधिनियम, 1999 में संशोधन किये गए हैं, ताकि क्षेत्रीय सुधारों और नियामकीय सुदृढ़ीकरण को प्रतिबिंबित किया जा सके।
- पुनर्बीमा का उदारीकरण: विदेशी पुनर्बीमा शाखाओं के लिये नेट ओन्ड फंड (NOF) की आवश्यकता को ₹5,000 करोड़ से घटाकर ₹1,000 करोड़ किया गया है। इसका उद्देश्य पुनर्बीमा बाज़ार को सुदृढ़ करना और भारत को क्षेत्रीय केंद्र (हब) के रूप में विकसित करना है।
- नेट ओन फंड्स (NOF) उस न्यूनतम पूंजी को कहते हैं जिसे किसी पुनर्बीमा इकाई को वित्तीय सुरक्षा कुशन के रूप में बनाए रखना होता है, ताकि दिवालियापन सुनिश्चित रहे और दावों के भुगतान की ज़िम्मेदारियों को पूरा किया जा सके।
- पॉलिसीधारकों की शिक्षा और सुरक्षा कोष: इसे बीमा जागरूकता बढ़ाने और उपभोक्ता हितों की सुरक्षा के लिये स्थापित किया जाएगा। साथ ही पॉलिसीधारकों का डेटा डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण (DPDP) अधिनियम, 2023 के अनुरूप संग्रहित और सुरक्षित किया जाना अनिवार्य होगा।
- IRDAI के लिये सशक्त अधिकार: इस विधेयक के तहत IRDAI की प्रवर्तन क्षमता में महत्त्वपूर्ण वृद्धि की गई है, जिससे यह उल्लंघनों की जाँच, अवैध कमीशन और रिबेट को रोकने तथा बीमाकर्त्ताओं एवं बिचौलियों द्वारा सख्त अनुपालन सुनिश्चित करने में सक्षम होगा।
- IRDAI के अध्यक्ष रिकॉर्ड छिपाए जाने या छेड़छाड़ होने की स्थिति में तलाशी, निरीक्षण और ज़ब्ती का आदेश दे सकते हैं।
- IRDAI अधिकारियों को बीमाकर्त्ताओं द्वारा प्रस्तुत रिटर्न, विवरण और प्रकटीकरण की जाँच करने के लिये तैनात किया जा सकता है, जिससे पारदर्शिता तथा नियामक सतर्कता में सुधार होगा।
- LIC के लिये अधिक स्वायत्तता: LIC को नई क्षेत्रीय कार्यालय खोलने के लिये पूर्व अनुमोदन के बिना संचालन स्वतंत्रता दी गई है, जिससे तीव्र विस्तार और बेहतर क्षेत्रीय प्रबंधन संभव हो सके।
- सुगम अनुपालन व्यवस्था: प्रक्रियात्मक एवं अनुपालन संबंधी आवश्यकताओं को सरल बनाया गया है, ताकि व्यवसाय करने में आसानी बढ़े और साथ ही उपभोक्ता संरक्षण भी सुनिश्चित रहे।
सबका बीमा, सबकी रक्षा (बीमा कानूनों में संशोधन) विधेयक, 2025 की सीमाएँ
- आलोचकों का तर्क है कि 100% विदेशी स्वामित्व की अनुमति देना नागरिकों की दीर्घकालिक बचतों को विदेशी निगमों के हाथों में सौंप देता है, जिससे घरेलू वित्तीय सुरक्षा पर राष्ट्रीय नियंत्रण की चिंताएँ उत्पन्न होती हैं।
- यह चिंता व्यक्त की जा रही है कि विदेशी बीमाकर्त्ता लाभ प्रत्यावर्तन और शहरी बाज़ारों को प्राथमिकता दे सकते हैं, जिससे ग्रामीण और सामाजिक क्षेत्र की आवश्यकताओं की उपेक्षा हो सकती है।
- आलोचकों ने एक विश्वास-घाटे की ओर भी इंगित किया है, क्योंकि बीमा राज्य-समर्थित संस्थानों में जनता के विश्वास पर अत्यधिक निर्भर करता है।
- साथ ही इस सुधार को सामाजिक जोखिम संरक्षण में राज्य की भूमिका के पुनर्गठन के रूप में देखा जा रहा है, जिसमें प्रत्यक्ष राज्य प्रावधान के बजाय साझा ज़िम्मेदारी पर अधिक बल दिया गया है।
भारत में बीमा पैठ को बढ़ावा देने हेतु प्रमुख सरकारी पहलें
- प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (PM-JAY): विश्व की सबसे बड़ी स्वास्थ्य बीमा योजना, यह कमज़ोर परिवारों को द्वितीयक और तृतीयक देखभाल के लिये प्रति परिवार प्रतिवर्ष 5 लाख रुपए का स्वास्थ्य बीमा कवर प्रदान करती है।
- प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना (PMJJBY): यह एक जीवन बीमा योजना है जो किसी भी कारण से मृत्यु के लिये कवरेज प्रदान करती है। योजना में शामिल होने की पात्र आयु 18 से 50 वर्ष है।
- प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना (PMSBY): एक दुर्घटना बीमा योजना जो दुर्घटना के कारण मृत्यु या विकलांगता के लिये आकस्मिक मृत्यु और विकलांगता कवर प्रदान करती है।
- जन धन-आधार-मोबाइल (JAM) ट्रिनिटी: आसान पंजीकरण, प्रीमियम भुगतान और प्रत्यक्ष लाभ अंतरण को सक्षम बनाता है, जिससे बीमा पहुँच का विस्तार होता है।
भारतीय बीमा क्षेत्र की स्थिति क्या है?
- बाज़ार आकार और वैश्विक स्थिति: भारत वर्तमान में वैश्विक स्तर पर 10वाँ सबसे बड़ा बीमा बाज़ार और उभरते बाज़ारों में दूसरा सबसे बड़ा बाज़ार है, जिसकी बाज़ार हिस्सेदारी लगभग 1.9% है।
- स्विस रे के अनुसार, भारत के वर्ष 2032 तक प्रमुख विकसित अर्थव्यवस्थाओं को पीछे छोड़ते हुए 6वाँ सबसे बड़ा बीमा बाज़ार बनने की संभावना है।
- पैठ और घनत्व: भारत में बीमा पैठ वित्तीय वर्ष 2016 में 3.4% से बढ़कर वित्तीय वर्ष 2023 में 4.0% हुआ है, जो एक बढ़ती गति में है।
- सामान्य बीमा घनत्व (प्रति व्यक्ति प्रीमियम) वर्ष 2019 के 9 अमरीकी डॉलर से बढ़कर वित्तीय वर्ष 2023 में 25 अमरीकी डॉलर हो गया।
- बीमाकर्त्ताओं की संख्या वर्ष 2014–15 के 53 से बढ़कर वर्ष 2024–25 में 74 हो गई, जो गहन बाज़ार भागीदारी को दर्शाती है।
- कुल बीमा प्रीमियम इसी अवधि में लगभग तीन गुना बढ़कर 4.15 लाख करोड़ रुपये से 11.93 लाख करोड़ रुपये हो गया।
- जीवन बीमा खंड: भारत वैश्विक स्तर पर 5वाँ सबसे बड़ा जीवन बीमा बाज़ार है, जो प्रतिवर्ष 32-34% की दर से बढ़ रहा है।
- LIC लगभग 60% बाज़ार हिस्सेदारी के साथ सबसे बड़ा खिलाड़ी बना हुआ है, लेकिन निजी बीमाकर्त्ता लगातार अपने कदम मज़बूत कर रहे हैं।
- अजीवन (सामान्य) बीमा खंड: भारत वर्तमान में एशिया में चौथा सबसे बड़ा सामान्य बीमा बाज़ार और वैश्विक स्तर पर 14वाँ सबसे बड़ा बाज़ार है।
भारत के बीमा क्षेत्र में प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?
- कम बीमा पैठ: भारत में सामान्य बीमा पैठ सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का 1% पर अपेक्षाकृत कम बना हुआ है, जबकि वर्ष 2023 में वैश्विक औसत 4.2% था।
- सीमित ग्रामीण और अनौपचारिक कवरेज: शहरी और वेतनभोगी वर्ग कवरेज पर हावी है, जबकि ग्रामीण क्षेत्र, सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (MSME), गिग वर्कर्स और असंगठित श्रमिक काफी हद तक अबीमित रहते हैं।
- उत्पाद असंगति: बीमा उत्पाद अक्सर जटिल होते हैं और निम्न-आय वाले परिवारों तथा छोटे व्यवसायों की आवश्यकताओं के अनुरूप खराब ढंग से तैयार किये गए होते हैं।
- कई उत्पाद सामान्य बने रहते हैं और जलवायु घटनाओं, साइबर जोखिमों तथा महामारी-संबंधी हानियों के अनुकूल नहीं होते हैं।
- गलत बिक्री और विश्वास-घाटा: उत्पाद जटिलता, अस्पष्ट शर्तें, दावा निपटान में देरी, मध्यस्थों द्वारा गलत बिक्री और जटिल पॉलिसी शर्तें उपभोक्ता विश्वास को कमज़ोर करती हैं और उच्च शिकायत मात्रा इसका कारण बनती हैं।
- सीमित जागरूकता: जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा अभी भी बीमा को जोखिम-प्रबंधन उपकरण के बजाय व्यय के रूप में देखा जाता है।
भारत के बीमा क्षेत्र को सुदृढ़ करने हेतु किन उपायों की आवश्यकता है?
- प्रौद्योगिकी और डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना का उपयोग: वास्तविक-समय अनुपालन निगरानी और जोखिम आकलन के लिये रेगटेक (RegTech) और सुपटेक (SupTech) उपकरण अपनाने को प्रोत्साहित करना।
- बीमा को इंडिया स्टैक (आधार, ई-KYC, डिज़ीलॉकर, UPI) के साथ एकीकृत करना ताकि तेज़ ऑनबोर्डिंग, प्रीमियम संग्रह और क्लेम निपटान संभव हो।
- धोखाधड़ी का पता लगाने, अंडरराइटिंग, और व्यक्तिगत उत्पादों के लिये AI और डेटा एनालिटिक्स का उपयोग करना।
- उत्पाद नवाचार और जोखिम कवरेज को बढ़ावा देना: साइबर सुरक्षा, जलवायु आपदाएँ, स्वास्थ्य महामारी तथा आपूर्ति शृंखला में व्यवधान जैसे उभरते जोखिमों के लिये बीमा उत्पादों को प्रोत्साहित करना।
- उपयोग-आधारित और ऑन-डिमांड बीमा को प्रोत्साहित करना, खासकर मोटर और स्वास्थ्य क्षेत्रों में।
- बीमा विकास को भारत के वित्तीय समावेशन, जलवायु लचीलापन और अवसंरचना वित्तपोषण के लक्ष्यों के साथ संरेखित करना।
- बीमा पहुँच और समावेशन को गहरा करना: PMJJBY, PMSBY, PMFBY और आयुष्मान भारत जैसी सामाजिक बीमा योजनाओं का विस्तार करना ताकि अनौपचारिक श्रमिक, गिग अर्थव्यवस्था के सहभागी तथा MSMEs को शामिल किया जा सके।
- किसानों, तटीय समुदायों और जलवायु-संवेदनशील क्षेत्रों के लिये माइक्रो-इंश्योरेंस और पैरामीट्रिक बीमा को बढ़ावा देना।
- स्व-सहायता समूह (SHGs), सहकारी समितियाँ (PACS), सेंट्रल सर्विस सेंटर (CSCs), और डाकघर को अंतिम स्तर पर बीमा वितरण के लिये उपयोग करना।
- नीति अनिवार्यता: भारत जैसे ही बीमा क्षेत्र में विदेशी भागीदारी की अनुमति देता है, इंश्योरेंस संशोधन विधेयक को कड़े नियमन और सतर्क निगरानी के साथ लागू करना चाहिये ताकि पॉलिसीधारकों की सुरक्षा तथा बाज़ार की स्थिरता सुनिश्चित हो सके।
निष्कर्ष
बीमा में 100% FDI की अनुमति भारत के वित्तीय क्षेत्र सुधारों में एक साहसिक और परिपक्व कदम है। यह पूंजी तथा विशेषज्ञता की आपूर्ति संबंधी चुनौती को संबोधित करता है। इस सुधार की सफलता कड़े नियमन एवं निवेशकों के हितों को भारतीय पॉलिसीधारकों की सुरक्षा के साथ संतुलित करने की क्षमता पर निर्भर करेगी।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
1. सबका बीमा, सबकी सुरक्षा (बीमा कानूनों में संशोधन) विधेयक, 2025 क्या है?
यह मुख्य बीमा कानूनों में संशोधन करता है ताकि 100% FDI की अनुमति, IRDAI के अधिकारों को सशक्त बनाना, रीइंश्योरेंस को उदार बनाना और उपभोक्ता सुरक्षा में सुधार संभव हो सके।
2. भारत के इंश्योरेंस सेक्टर के लिये 100% FDI का प्रावधान क्यों महत्त्वपूर्ण है?
यह पूर्ण विदेशी स्वामित्व की अनुमति देता है, जिससे दीर्घकालिक पूंजी, वैश्विक श्रेष्ठ प्रथाएँ और उन्नत जोखिम प्रबंधन विशेषज्ञता आकर्षित होती हैं।
3. यह विधेयक IRDAI को कैसे मज़बूत करता है?
यह IRDAI को संवर्द्धित प्रवर्तन अधिकार प्रदान करता है, जिसमें निरीक्षण, जाँच और अवैध कमीशन व उल्लंघनों के खिलाफ कार्रवाई शामिल है।
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दृष्टि मेन्स प्रश्न प्रश्न. “बीमा में FDI को 100% तक बढ़ाना आपूर्ति-संबंधी बाधाओं को संबोधित करता है, लेकिन मांग-संबंधी अवरोधों को नहीं।” भारत के बीमा क्षेत्र के संदर्भ में विश्लेषण कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)
प्रिलिम्स
प्रश्न. भारत में व्यक्तियों के लिये साइबर बीमा के तहत धन की हानि और अन्य लाभों के भुगतान के अलावा, निम्नलिखित में से कौन से लाभ आमतौर पर कवर किये जाते हैं? (2020)
- किसी के कंप्यूटर तक पहुँच को बाधित करने वाले मैलवेयर के मामले में कंप्यूटर सिस्टम की बहाली की लागत।
- एक नए कंप्यूटर की लागत अगर ऐसा साबित हो जाता है कि कुछ असामाजिक तत्त्वों ने जानबूझकर इसे नुकसान पहुँचाया है।
- साइबर जबरन वसूली के मामले में नुकसान को कम करने के लिये एक विशेष सलाहकार को काम पर रखने की लागत।
- यदि कोई तीसरा पक्ष मुकदमा दायर करता है तो न्यायालय में बचाव की लागत
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:
(A) केवल 1, 2 और 4
(B) केवल 1, 3 और 4
(C) केवल 2 और 3
(D) 1, 2, 3 और 4
उत्तर: (B)
प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020)
- आधार मेटाडेटा को तीन महीने से अधिक समय तक संग्रहीत नहीं किया जा सकता है।
- आधार के डेटा को साझा करने के लिये राज्य निजी निगमों के साथ कोई अनुबंध नहीं कर सकता है।
- बीमा उत्पाद प्राप्त करने के लिये आधार अनिवार्य है।
- भारत की संचित निधि से लाभ प्राप्त करने के लिये आधार अनिवार्य है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(a) केवल 1 और 4
(b) केवल 2 और 4
(c) केवल 3
(d) केवल 1, 2 और 3
उत्तर: (b)
मेन्स
प्रश्न. सार्विक स्वास्थ्य संरक्षण प्रदान करने में सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली की अपनी परिसीमाएँ हैं। क्या आपके विचार में खाई को पाटने में निजी क्षेत्रक सहायक हो सकता है? आप अन्य कौन-से व्यवहार्य विकल्प सुझाएंगे? (2015)
प्रश्न: वित्तीय संस्थाओं व बीमा कंपनियों द्वारा की गई उत्पाद विविधता के फलस्वरूप उत्पादों व सेवाओं में उत्पन्न परस्पर व्यापन ने SEBI और IRDA नामक दो नियामक अभिकरणों के विलय के प्रकरण को प्रबल बनाया है। औचित्य सिद्ध कीजिये। (2013)



