अरावली पहाड़ियों का संरक्षण
प्रिलिम्स के लिये: अरावली पहाड़ियाँ, भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद, अरावली ग्रीन वॉल पहल
मेन्स के लिये: पर्यावरण शासन और न्यायपालिका की भूमिका, खनन विनियमन बनाम पारिस्थितिक संरक्षण, जैव विविधता संरक्षण
चर्चा में क्यों?
नवंबर 2025 में भारत के सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने अरावली पहाड़ियों की एक समान परिभाषा अपनाई, जिसके अनुसार स्थानीय भू-स्तर से 100 मीटर या उससे अधिक ऊँचाई वाले क्षेत्रों को पहाड़ी माना गया। इस निर्णय से यह आशंका जताई गई कि इससे अरावली पर्वतमाला को मिलने वाला कानूनी संरक्षण कमज़ोर हो सकता है और इसके बड़े हिस्से खनन तथा निर्माण गतिविधियों के लिये संवेदनशील हो सकते हैं।
- इस निर्णय के बाद जन-आंदोलन, राजनीतिक प्रतिक्रियाएँ और #SaveAravalli अभियान शुरू हुए।
सारांश
- वर्ष 2025 में सर्वोच्च न्यायालय ने अरावली पहाड़ियों की एक समान परिभाषा अपनाई, नए खनन पट्टों पर रोक लगाई और सतत खनन योजना को अनिवार्य किया।
- सरकार का कहना है कि यह ढाँचा संरक्षण को मज़बूत करता है, मुख्य क्षेत्रों में खनन पर प्रतिबंध लगाता है और अवैध खनन पर अंकुश लगाने पर केंद्रित है।
- आलोचकों का मानना है कि 100 मीटर का नियम बड़े क्षेत्रों को बाहर कर सकता है, जिससे भूजल, जैव विविधता और मरुस्थलीकरण नियंत्रण पर खतरा बढ़ सकता है तथा यह परिदृश्य-स्तरीय पुनर्स्थापन की आवश्यकता को रेखांकित करता है।
अरावली की नई परिभाषा पर भारत के सर्वोच्च न्यायालय का क्या निर्णय है?
- परिचय: सर्वोच्च न्यायालय ने खनन को विनियमित करने और पारिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा के उद्देश्य से पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEF&CC) के अंतर्गत गठित एक समिति द्वारा प्रस्तावित अरावली पहाड़ियों एवं पर्वतमालाओं की एक समान, वैज्ञानिक परिभाषा को स्वीकार किया।
- सर्वोच्च न्यायालय ने संरक्षित क्षेत्रों, पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्रों, टाइगर रिज़र्व और आर्द्रभूमियों जैसे मुख्य/अस्पर्शनीय क्षेत्रों में खनन पर प्रतिबंध लगा दिया। हालाँकि, परमाणु खनिजों (प्रथम अनुसूची का भाग-B), महत्त्वपूर्ण एवं रणनीतिक खनिजों (भाग-D) तथा खान एवं खनन (विकास एवं विनियमन) अधिनियम, 1957 की सातवीं अनुसूची में सूचीबद्ध खनिजों के लिये सीमित अपवाद की अनुमति दी गई है।
- अरावली पहाड़ियाँ: किसी भी ऐसे स्थलरूप के रूप में परिभाषित की गई हैं जो आसपास के स्थानीय भू-भाग से 100 मीटर या उससे अधिक ऊँचाई तक उठता हो।
- स्थानीय उच्चावच का निर्धारण उस स्थलरूप को घेरने वाली सबसे निचली समोच्च रेखा (Contour line) के आधार पर किया जाता है।
- संरक्षण पूरे पहाड़ी तंत्र तक विस्तारित होगा, जिसमें सहायक ढालें और संबंधित स्थलरूप शामिल हैं, चाहे उनकी ऊँचाई कुछ भी हो।
- अरावली पर्वतमालाएँ: दो या दो से अधिक ऐसी पहाड़ियों के समूह के रूप में परिभाषित की गई हैं, जो एक-दूसरे से 500 मीटर के भीतर स्थित हों। इन पहाड़ियों के बीच का पूरा मध्यवर्ती क्षेत्र, जिसमें ढालें और छोटी पहाड़ियाँ भी शामिल हैं, पर्वतमाला का हिस्सा माना जाएगा।
- इस परिभाषा का उद्देश्य अरावली परिदृश्य में खनन जैसी गतिविधियों के नियमन हेतु स्पष्टता और वस्तुनिष्ठता प्रदान करना था।
- SC के निर्देश: न्यायालय ने यह भी निर्देश दिया कि इस परिभाषा के अंतर्गत आने वाले क्षेत्रों में नए खनन पट्टों के जारी करने पर अस्थायी रोक लगाई जाए, जब तक कि भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद (ICFRE) द्वारा सतत खनन प्रबंधन योजना (MPSM) तैयार नहीं कर ली जाती।
- इस योजना में खनन-निषिद्ध क्षेत्र, कड़े रूप से विनियमित खनन क्षेत्र, संवेदनशील आवास एवं वन्यजीव गलियारों की पहचान करना, संचयी पारिस्थितिक प्रभावों एवं वहन क्षमता का आकलन करना तथा पुनर्स्थापन और पुनर्वास उपायों का निर्धारण अनिवार्य होगा।
- न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि पूर्ण या समग्र प्रतिबंध कई बार अवैध खनन को प्रोत्साहित कर देते हैं। इसी कारण उसने एक संतुलित और विवेकपूर्ण नीति अपनाई, जिसके तहत मौजूदा वैध खनन गतिविधियों को कड़े नियामक प्रावधानों के अंतर्गत सीमित रूप से जारी रखने, नए खनन कार्यों पर रोक लगाने तथा पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों को स्थायी संरक्षण प्रदान करने पर बल दिया गया।
अरावली मुद्दे पर सरकार का रुख
- केंद्र सरकार ने स्पष्ट किया कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अनुमोदित ढाँचा अरावली के संरक्षण को कमज़ोर नहीं करता और न ही बड़े पैमाने पर खनन की अनुमति देता है।
- सतत खनन प्रबंधन योजना को अंतिम रूप दिये जाने तक किसी भी नए खनन पट्टे को मंज़ूरी नहीं दी जाएगी।
- सरकार ने अवैध खनन को मुख्य खतरा बताया है और ड्रोन व निगरानी तकनीकों के उपयोग सहित कड़े निगरानी एवं प्रवर्तन उपायों के समर्थन की बात कही है।
अरावली पर्वतमाला के संरक्षण और पुनर्स्थापन हेतु पूर्व हस्तक्षेप
- MoEF की सीमाएँ (1990 के दशक): पर्यावरण मंत्रालय ने अरावली पर्वतमाला में खनन को केवल स्वीकृत परियोजनाओं तक सीमित करने हेतु प्रतिबंध लगाए।
- हालाँकि, राज्यों द्वारा कमज़ोर प्रवर्तन के कारण खनन नियमों का बड़े पैमाने पर उल्लंघन हुआ।
- अरावली पहाड़ियों की परिभाषा: पहले केवल राजस्थान में अरावली क्षेत्र में खनन को विनियमित करने हेतु औपचारिक रूप से अधिसूचित परिभाषा मौजूद थी। यह वर्ष 2002 की राज्य समिति की रिपोर्ट पर आधारित थी, जिसमें रिचर्ड मर्फी के स्थलरूप वर्गीकरण का उपयोग किया गया था। इसके अनुसार, स्थानीय भू-उच्चावच से 100 मीटर ऊँचाई तक उठने वाले स्थलरूपों को पहाड़ी माना गया और पहाड़ियों तथा उनकी सहायक ढालों पर खनन को प्रतिबंधित किया गया था।
- खनन पर सर्वोच्च न्यायालय का प्रतिबंध (2009): हरियाणा के फरीदाबाद, गुरुग्राम और मेवात ज़िलों में खनन पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया गया।
- वर्ष 2024 में न्यायालय ने अरावली पर्वतमाला के पूरे क्षेत्र में नए खनन पट्टों के आवंटन और उनके नवीनीकरण पर रोक लगा दी तथा केंद्रीय सशक्त समिति (CEC) को विस्तृत जाँच करने का निर्देश दिया।
- CEC की सिफारिशें (2024): इसने सभी राज्यों में फैली अरावली पर्वतमाला का पूर्ण वैज्ञानिक मानचित्रण करने की सिफारिश की।
- खनन गतिविधियों के लिये व्यापक पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA) कराने का सुझाव दिया।
- मानचित्रण और प्रभाव आकलन पूर्ण होने तक किसी भी नए खनन पट्टे के आवंटन या नवीनीकरण की अनुमति न देने की सिफारिश की।
- अरावली ग्रीन वॉल पहल: अफ्रीका की ग्रेट ग्रीन वॉल से प्रेरित, अरावली ग्रीन वॉल पहल एक परिदृश्य-स्तरीय पारिस्थितिक पुनर्स्थापन कार्यक्रम है, जिसका नेतृत्व पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEF&CC) द्वारा किया जा रहा है। इसका उद्देश्य भूमि क्षरण को रोकना, पारिस्थितिक अनुकूलन मज़बूत करना तथा अरावली पर्वतमाला में मरुस्थलीकरण को रोकना है।
- इस पहल के तहत अरावली पर्वतमाला के साथ 1,400 किमी लंबी और 5 किमी चौड़ी हरित पट्टी विकसित करने का प्रस्ताव है, जो गुजरात, राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली तक विस्तृत होगी। इसमें अरावली का मुख्य क्षेत्र तथा उसके आसपास के बफर ज़ोन भी शामिल होंगे।
- इस पहल का लक्ष्य वर्ष 2027 तक पारिस्थितिक अंतरालों को भरकर और प्राकृतिक वनस्पति को पुनर्जीवित करके अरावली पहाड़ियों में 1.1 मिलियन हेक्टेयर से अधिक क्षतिग्रस्त भूमि का पुनर्स्थापन करना है।
- यह ग्रीन वॉल रेत और धूल भरी ऑंधियों को कम करने, वायु गुणवत्ता में सुधार लाने तथा विशेष रूप से दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में सूक्ष्म-जलवायवीय तनाव को कम करने में सहायक होने की अपेक्षा है।
अरावली पर्वतों की नई परिभाषा के संबंध में आलोचनाएँ क्या हैं?
- अधिकांश परिदृश्य का बहिष्कार: भारतीय वन सर्वेक्षण (FSI) के एक आंतरिक मूल्यांकन से पता चलता है कि 100 मीटर की ऊँचाई की सीमा नई परिभाषा से अरावली प्रणाली के 90% से अधिक हिस्से को बाहर कर देती है।
- यह विशेष रूप से दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र के लिये गंभीर पारिस्थितिक, पर्यावरणीय और शासन संबंधी चिंताएँ उत्पन्न करता है, क्योंकि अरावली शृंखला प्राकृतिक धूल तथा प्रदूषण अवशोषक के रूप में कार्य करती है, वायु गुणवत्ता नियंत्रण, भूजल पुनर्भरण एवं जलवायु विनियमन का समर्थन करती है।
- खनन के विस्तार का खतरा: नई परिभाषा के बाहर आने वाले क्षेत्र खनन, निर्माण और शहरी विस्तार के लिये संवेदनशील हो सकते हैं, जिससे दशकों से किये गए संरक्षण प्रयासों पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है।
- पारिस्थितिक निरंतरता की अनदेखी: अरावली एक निरंतर पारिस्थितिक प्रणाली के रूप में कार्य करती है, लेकिन यह परिभाषा शिखर-केंद्रित मानी जा रही है, जो तलहटी, घाटियों और जुड़ने वाली चोटियों की पारिस्थितिक भूमिका को नज़रअंदाज़ करती है।
- भूजल पुनर्भरण का जोखिम: निचले पहाड़ और ढलान वर्षा जल के रिसाव तथा भूमिगत जल स्त्रोत के पुनर्भरण के लिये महत्त्वपूर्ण हैं तथा इनका हनन राजस्थान, हरियाणा, गुजरात एवं दिल्ली-एनसीआर में जलस्तर घटा सकता है।
- मरुस्थलीकरण में तेज़ी: अरावली बाधा कमज़ोर होने से थार रेगिस्तान पूर्व की ओर बढ़ सकता है, जिससे धूल भरी ऑंधियाँ, भूमि क्षरण और शुष्कता बढ़ सकती है तथा यह भारत के मरुस्थलीकरण से निपटने हेतु संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन की प्रतिबद्धताओं को कमज़ोर कर सकता है।
- क्रियान्वयन और प्रवर्तन की चुनौतियाँ: व्यापक मानचित्रण और कड़ाई से निगरानी के बिना, नई परिभाषा नियामक अंतर उत्पन्न कर सकती है, जिससे अवैध खनन को रोकना कठिन हो जाएगा।
अरावली शृंखला के प्रमुख तथ्य क्या हैं?
- भूवैज्ञानिक उत्पत्ति और विकास: अरावली शृंखला विश्व की सबसे पुरानी पर्वत प्रणालियों में से एक और भारत की सबसे पुरानी पर्वत शृंखला है, जो लगभग 2,000 मिलियन वर्ष पूर्व प्री-कैम्ब्रियन युग में अस्तित्व में आई थी।
- यह अरावली–दिल्ली ओरोजेनी के दौरान टेक्टोनिक प्लेटों के टकराव के कारण बनी थी। वर्तमान अरावली एक बहुत बड़े प्रागैतिहासिक पर्वत प्रणाली के अत्यधिक क्षतिग्रस्त अवशेष हैं, जिन्हें मौसम और अपरदन के कारण लाखों वर्षों में कम कर दिया गया है।
- माउंट आबू पर गुरु शिखर चोटी अरावली शृंखला की सबसे ऊँची चोटी है (1,722 मीटर)।
- भौगोलिक विस्तार: यह गुजरात से दिल्ली तक (राजस्थान और हरियाणा होते हुए) 800 किमी से अधिक फैली हुई है।
- जलवायु और पारिस्थितिक महत्त्व: अरावली थार रेगिस्तान के उत्तर-पश्चिमी भारत में फैलाव के खिलाफ एक प्राकृतिक बाधा के रूप में कार्य करती है।
- निर्वनीकरण और भूमि क्षरण ने कई अंतराल उत्पन्न किये हैं। जिससे रेगिस्तानी रेत उपजाऊ मैदानों की ओर बहती है और वायु प्रदूषण तथा धूल भरी ऑंधियों की समस्या बढ़ती है।
- जल प्रणाली में योगदान: अर्द्ध-शुष्क क्षेत्र में स्थित, जहाँ वार्षिक वर्षा 500–700 मिमी होती है, अरावली शृंखला प्रमुख जलग्रहण क्षेत्र के रूप में कार्य करती है और बंगाल की खाड़ी तथा अरब सागर के जल निकासी क्षेत्रों को अलग करती है।
- जैव विविधता और वन्यजीव महत्त्व: अरावली परिदृश्य शुष्क पर्णपाती वन, घास के मैदान और आर्द्रभूमि का समर्थन करता है, जिसमें सहारा, प्रायद्वीपीय तथा ओरिएंटल जैव विविधता का अनोखा मिश्रण पाया जाता है।
- यहाँ 22 वन्यजीव अभयारण्यों और तीन बाघ अभयारण्य हैं तथा यह बाघ, तेंदुआ, भारतीय भेड़िया, स्लॉथ बियर तथा ग्रेट इंडियन बस्टर्ड जैसी संकटग्रस्त प्रजातियों के लिये आवास प्रदान करता है।
- कृषि, आजीविका और पशुपालन: अरावली क्षेत्र में कृषि वर्षा-निर्भर और जीविकोपार्जन-आधारित है, जिसमें बाज़रा, मक्का, गेहूँ, सरसों तथा दलहन उगाई जाती हैं। वहीं बड़े पैमाने पर पशुपालन और वन संसाधनों पर निर्भरता ग्रामीण आजीविकाओं के लिये पारिस्थितिक तंत्र के स्वास्थ्य को अत्यंत महत्त्वपूर्ण बनाती है।
- आर्थिक और खनिज महत्त्व: अरावली क्षेत्र खनिजों में समृद्ध है, जिसमें 70 से अधिक वाणिज्यिक रूप से मूल्यवान खनिज शामिल हैं, जैसे जिंक, सीसा, चाँदी, टंगस्टन, संगमरमर और ग्रेनाइट।
- खनन एक प्रमुख आर्थिक गतिविधि के रूप में उभरा है, विशेषकर राजस्थान में, जो इस शृंखला का लगभग 80% हिस्सा रखता है।
- औद्योगिक विकास और शहरी दबाव: अपनी रणनीतिक स्थिति के कारण अरावली बेल्ट में गुरुग्राम, फरीदाबाद, जयपुर, अलवर और अजमेर जैसे प्रमुख औद्योगिक तथा शहरी केंद्र स्थित हैं।
- यह IT और वस्त्र उद्योग से लेकर ऑटोमोबाइल, रसायन और इस्पात उद्योग तक का समर्थन करता है।
- सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्त्व: अरावली शृंखला में यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल जैसे चित्तौड़गढ़ और कुंभलगढ़ किले स्थित हैं।
- यह पुष्कर, अजमेर शरीफ, माउंट आबू और रानकपुर जैसे प्रमुख धार्मिक केंद्रों का भी क्षेत्र है, जो इसे हिंदू, इस्लामी एवं जैन परंपराओं के लिये पवित्र बनाते हैं तथा इसकी सभ्यतागत महत्ता को मज़बूत करते हैं।
- क्षरण और पर्यावरणीय गिरावट: दशकों के दौरान, अरावली शृंखला ने गंभीर निर्वनीकरण, खनन, शहरीकरण और चराई के दबाव का सामना किया है।
- कई पहाड़ पूरी तरह से नष्ट हो गए हैं, वन आवरण में तीव्र गिरावट आई है तथा वर्षा की अवधि काफी कम हो गई है।
- इन परिवर्तनों ने मृदा क्षरण, भूमिगत जल स्त्रोतों को नुकसान, मरुस्थलीय अंतराल का विस्तार और वायु प्रदूषण की स्थिति को खराब कर दिया है, जो विशेष रूप से दिल्ली-एनसीआर को प्रभावित करता है।

अरावली पर्वतमाला की सुरक्षा को मज़बूत करने के लिये कौन-से उपाय आवश्यक हैं?
- वैज्ञानिक पहचान और मानचित्रण: आधिकारिक आँकड़ों का उपयोग करते हुए पहाड़ियों, पर्वत शृंखलाओं, ढलानों, घाटियों, पुनर्भरण क्षेत्रों और वन्यजीव गलियारों का व्यापक, मानकीकृत मानचित्रण करना।
- खनन गतिविधियों पर श्रेणीबद्ध और जोखिम-आधारित नियंत्रण लागू करना, साथ ही निषेध, विनियमन और निगरानी के लिये स्पष्ट मानदंड भी लागू करना।
- अवैध खनन की रोकथाम: संस्थागत समन्वय और प्रौद्योगिकी आधारित उपकरणों के माध्यम से निगरानी, पर्यवेक्षण और प्रवर्तन तंत्र को मज़बूत करना।
- अवैध खनन और रेत माफियाओं पर अंकुश लगाने के लिये ड्रोन, सैटेलाइट इमेज़री, CCTV, ई-चालान और ज़िला टास्क फोर्स का उपयोग करना।
- पारिस्थितिकी तंत्र का पुनर्स्थापन और प्रबंधन: पारिस्थितिक उपयुक्तता और दीर्घकालिक स्थिरता के आधार पर निम्नीकृत वनों, घास के मैदानों और खनन क्षेत्रों के पुनर्स्थापन को बढ़ावा देना।
- टांका, झालारा, तालाब-बंदी जैसी स्वदेशी प्रणालियाँ अरावली गाँवों में जल प्रबंधन को मज़बूत करती हैं।
- पवन अपरदन और रेत के बहाव पर नियंत्रण: कैलिगोनम और अकेशिया जैसी प्रजातियों का उपयोग करके सतही वनस्पति ने रेत के टीलों को स्थिर किया और पवन अपरदन को कम किया।
- यह अरावली दर्रों में धूल भरी ऑंधी और मरुस्थलीकरण को नियंत्रित करने में मदद करता है।
- पुनर्स्थापन और वैश्विक प्रतिबद्धताएँ: नई दिल्ली घोषणा (UNCCD COP-14) इस बात पर प्रकाश डालती है कि मरुस्थलीकरण आजीविका और विकास को कमज़ोर करता है तथा सतत भूमि प्रबंधन पर जोर देता है।
- अरावली पारिस्थितिकी तंत्र को बहाल करना जल विनियमन, जैवविविधता, जलवायु अनुकूलन की रक्षा करने और पेरिस समझौते, बॉन चैलेंज और भूमि क्षरण तटस्थता के तहत भारत की प्रतिबद्धताओं को पूरा करने के साथ-साथ स्थानीय आजीविका की सुरक्षा के लिये महत्त्वपूर्ण है।
निष्कर्ष:
अरावली पर्वतमाला केवल एक भू-वैज्ञानिक संरचना नहीं, बल्कि उत्तर-पश्चिमी भारत के लिये एक जीवन-समर्थन तंत्र है। इसका क्षरण जलवायु स्थिरता और आजीविकाओं के लिये गंभीर खतरा उत्पन्न करता है। इसलिये अरावली का संरक्षण और पुनर्स्थापन पारिस्थितिक, आर्थिक तथा सभ्यतागत अनिवार्यता है, जिसके लिये परिदृश्य-स्तरीय संरक्षण और समुदाय-आधारित पुनर्स्थापन आवश्यक है।
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दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. भारत अरावली जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में खनन गतिविधियों और पारिस्थितिक संरक्षण के बीच संतुलन किस प्रकार स्थापित कर सकता है? |
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
1. भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2025 में अरावली पहाड़ियों के संबंध में क्या निर्णय लिया?
न्यायालय ने अरावली पहाड़ियों और पर्वतमालाओं की एक समान, वैज्ञानिक परिभाषा को मंज़ूरी दी, नए खनन पट्टों पर रोक लगा दी और सतत खनन के लिये एक प्रबंधन योजना (MPSM) तैयार करने का आदेश दिया।
2. सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अनुमोदित ढाँचे के तहत अरावली पहाड़ियों को किस प्रकार परिभाषित किया गया है?
अरावली पहाड़ियों को स्थानीय भू-भाग से 100 मीटर या उससे अधिक ऊँचाई वाली भू-आकृतियों के रूप में परिभाषित किया गया है तथा इस पहाड़ी प्रणाली को, जिसमें सहायक ढलान और संलग्न भू-आकृतियाँ शामिल हैं, पूरी तरह से संरक्षण प्राप्त है।
3. नई परिभाषा के अनुसार अरावली पर्वतमाला किसे माना जाएगा?
एक दूसरे से 500 मीटर की दूरी के भीतर स्थित दो या दो से अधिक अरावली पहाड़ियों को एक ही पर्वतमाला माना जाएगा और इनके बीच का पूरा क्षेत्र संरक्षण के दायरे में आएगा।
4. अरावली ग्रीन वॉल पहल क्या है?
यह पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEF&CC) के नेतृत्व में चलाया जाने वाला एक भूदृश्य पुनर्स्थापन कार्यक्रम है, जो गुजरात, राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली में स्थित अरावली पर्वतमाला और इसके बफर क्षेत्रों को कवर करता है। इसका उद्देश्य मरुस्थलीकरण और भूमि क्षरण से निपटना है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)
मेन्स:
प्रश्न. अवैध खनन के क्या परिणाम होते हैं ? कोयला खनन क्षेत्र के लिये पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के 'हाँ' या 'नहीं' की अवधारणा की विवेचना कीजिये। [200 शब्द] 2013
प्रश्न. "भारत में आधुनिक कानून की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पर्यावरणीय समस्याओं का संविधानीकरण है।" सुसंगत वाद विधियों की सहायता से इस कथन की विवेचना कीजिये। 2022
भारत–बांग्लादेश संबंधों का नवीनीकरण
प्रिलिम्स के लिये: संसदीय स्थायी समिति, लालमोनिरहाट एयरफील्ड, 1996 की गंगाजल संधि, पद्मा (गंगा), जमुना (ब्रह्मपुत्र), मेघना, सुंदरबन, मैंग्रोव वन, सेंट मार्टिन द्वीप, अखौरा-अगरतला रेल लिंक, भारत-बांग्लादेश मैत्री पाइपलाइन।
मेन्स के लिये: भारत–बांग्लादेश संबंधों के प्रमुख पहलू, बांग्लादेश में हालिया बदलाव और उसका भारत पर प्रभाव, द्विपक्षीय संबंधों को पुनर्जीवित करने तथा वर्तमान चुनौतियों का समाधान करने के लिये आवश्यक कदम
चर्चा में क्यों?
संसदीय स्थायी समिति, जो विदेश मामलों पर काम करती है, ‘भारत–बांग्लादेश संबंधों का भविष्य’ नामक रिपोर्ट में यह उल्लेख किया गया है कि बांग्लादेश में हालिया घटनाएँ भारत के लिये 1971 के मुक्ति युद्ध के बाद से सबसे
सारांश
- बांग्लादेश में राजनीतिक बदलाव भारत के लिये 1971 के बाद से सबसे बड़ी क्षेत्रीय चुनौती प्रस्तुत करता है, जो व्यापार, कनेक्टिविटी, ऊर्जा और रक्षा में गहरे स्थायी द्विपक्षीय सहयोग की परीक्षा ले रहा है।
- संबंधों को पुनर्जीवित करने के लिये भारत को सभी हितधारकों के साथ संवाद स्थापित करना, संवेदनशील मुद्दों का पारदर्शी प्रबंधन करना और रणनीतिक प्रभाव सुनिश्चित करने हेतु प्रतिस्पर्द्धात्मक साझेदारी प्रदान करना आवश्यक है।
भारत के लिये रणनीतिक चुनौतियाँ प्रस्तुत करने वाले बांग्लादेश में हालिया घटनाक्रम क्या है?
- मूलभूत राजनीतिक पुनर्संरेखण: अगस्त 2024 में शेख हसीना के नेतृत्व वाली प्रो-भारत अवामी लीग सरकार के पतन ने बांग्लादेश में लंबे समय तक चली राजनीतिक स्थिरता का अंत कर दिया।
- इस बीच बांग्लादेश में नई राजनीतिक शक्तियों का उदय हुआ है, जैसे कि राष्ट्रीय नागरिक पार्टी (NCP), जिसकी स्थापना उन छात्र कार्यकर्त्ताओं ने की जो अवामी लीग विरोधी प्रदर्शन में सक्रिय थीं और जमात-ए-इस्लामी की वापसी हुई है, जो एक रूढ़िवादी इस्लामी राजनीतिक पार्टी है जिसे आमतौर पर भारत विरोधी विचारों वाली पार्टी माना जाता है।
- बाहरी प्रभाव की तीव्रता: बांग्लादेश का चीन के साथ गहरा रणनीतिक जुड़ाव (जैसे भारत के चिकन नेक के पास लालमोनिरहाट एयरफील्ड का उन्नयन) और पाकिस्तान के साथ बढ़ते संबंध (जैसे पाकिस्तान नौसेना का फ्रिगेट PNS सैफ का बांग्लादेश दौरा) भारत के परंपरागत प्रभाव को कमज़ोर कर सकते हैं।
- भारत विरोधी विरोध प्रदर्शन और सांप्रदायिक हिंसा: बांग्लादेशी युवा नेता शरीफ उस्मान हादी की हत्या से हिंसक अशांति फैल गई, जिसके दौरान चट्टोग्राम में भारत के असिस्टेंट हाई कमीशन में तोड़फोड़ की गई, जिससे पता चलता है कि बांग्लादेश की अंदरूनी उथल-पुथल राजनयिक संबंधों को कैसे प्रभावित कर सकती है।
- भारत की मानवीय प्रतिक्रिया: भारत द्वारा पदच्युत प्रधानमंत्री शेख हसीना को आश्रय देने का मानवीय निर्णय द्विपक्षीय संबंधों में तनाव का कारण बन गया है। बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने उन पर भारत की जमीन से अशांति फैलाने का आरोप लगाया और निर्वासन की मांग की, जबकि भारत का कहना है कि वह उन्हें कोई राजनीतिक मंच नहीं दे रहा है।
- मुख्य द्विपक्षीय मामले लंबित: महत्त्वपूर्ण गंगा जल संधि 1996 का नवीनीकरण दिसंबर 2026 में होना है, लेकिन बांग्लादेश के साथ औपचारिक बातचीत अभी तक शुरू नहीं हुई, जिससे रणनीतिक शून्यता और संभावित विवाद का जोखिम बन गया है।
- सामाजिक दृष्टिकोण में बदलाव: एक नई पीढ़ी, जो वर्ष 1971 के स्वतंत्रता संग्राम की इतिहास से कम जुड़ी है, ऐसे राष्ट्रवाद को बढ़ावा दे रही है जो अक्सर भारत के प्रति संदेहपूर्ण है। यह पुनरुत्थित इस्लामी समूहों और सक्रिय युवा राष्ट्रवाद का संगम, आंतरिक अस्थिरता पैदा करता है, जिसका भारत की सुरक्षा पर सीधा प्रभाव पड़ सकता है।
- उदाहरण के तौर पर बांग्लादेश की NCP के नेता हसनत अब्दुल्लाह ने भारत के 7 पूर्वोत्तर राज्यों को मुख्यभूमि से अलग करने की चेतावनी दी और भारतीय अलगाववादी समूहों को संरक्षण प्रदान करने का प्रस्ताव रखा।
बांग्लादेश में हो रहे इन घटनाक्रमों का भारत पर क्या असर पड़ेगा?
- भू-राजनीतिक और सुरक्षा प्रभाव: प्रो-भारत नेता शेख हसीना के पतन ने रणनीतिक निश्चितता और सुरक्षा सहयोग को समाप्त कर दिया है, जबकि सिलीगुड़ी कॉरिडोर के पास लालमोनिरहाट एयरफील्ड का चीन द्वारा उन्नयन और पाकिस्तान की बढ़ती सक्रियता दो-फ्रंट युद्ध के खतरे को बढ़ा रही है।
- आंतरिक सुरक्षा: बढ़ती अस्थिरता से अवैध प्रवासन और घुसपैठ का जोखिम बढ़ता है, जबकि सांप्रदायिक हिंसा तथा कट्टरपंथी समूहों का उभार सीमापार सांप्रदायिक ध्रुवीकरण एवं उग्रवाद के प्रसार का खतरा उत्पन्न करता है।
- कूटनीतिक प्रभाव: शेख हसीना को आश्रय देना प्रत्यर्पण से जुड़ी दुविधा और हस्तक्षेप के आरोपों को जन्म देता है, जबकि भारत-विरोधी प्रदर्शन सद्भावना को कमज़ोर करते हुए गंगा जल संधि जैसी अहम वार्ताओं को जटिल बना रहे हैं।
- आर्थिक प्रभाव: राजनीतिक अस्थिरता और भारत-विरोधी रुझान कनेक्टिविटी परियोजनाओं को जोखिम में डाल रहे हैं, जिससे भारत की नेबरहुड फर्स्ट और एक्ट ईस्ट नीति कमजोर हो सकती है।
- विमर्श/धारणा: धारणा के स्तर पर भारत को एक साम्राज्यवादी शक्ति के रूप में देखा जा रहा है, जिसने एक सत्तावादी शासन को सहारा दिया, जिससे भारत की छवि को नुकसान पहुँचा है।
बांग्लादेश
- परिचय: बांग्लादेश दक्षिण एशिया में स्थित एक देश है, जिसकी पश्चिम, उत्तर और उत्तर-पूर्व में भारत के साथ लंबी स्थलीय सीमाएँ हैं तथा दक्षिण-पूर्व में म्याँमार से इसकी सीमा लगती है। इसके दक्षिण में बंगाल की खाड़ी के साथ समुद्री तट भी है।
- नदी प्रणाली: बांग्लादेश मुख्य रूप से एक विशाल, निम्न-स्थित डेल्टा क्षेत्र है, जो पद्मा (गंगा), जमुना (ब्रह्मपुत्र) और मेघना नदियों द्वारा निर्मित हुआ है।
- पद्मा, जमुना और मेघना नदियों तथा उनकी सहायक नदियों से बने उपजाऊ बाढ़ के मैदान देश की लगभग 80 प्रतिशत भूमि में फैले हुए हैं।
- जैव विविधता: सुंदरबन—विश्व का सबसे बड़ा ज्वारीय मैंग्रोव वन—एक महत्त्वपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र है और यहाँ लुप्तप्राय बंगाल टाइगर निवास करता है।
- सेंट मार्टिन द्वीप देश का एकमात्र प्रवाल समुद्री द्वीप है और इसे मरीन पार्क के रूप में संरक्षित किया गया है, जहाँ लुप्तप्राय कछुए और अनोखी प्रवाल प्रजातियाँ निवास करती हैं।
आज तक भारत-बांग्लादेश संबंधों की स्थिति कैसी रही है?
- राजनीतिक और कूटनीतिक संबंध: बांग्लादेश भारत की विदेश नीति का एक केंद्रीय स्तंभ है, जो नेबरहुड फर्स्ट नीति, एक्ट ईस्ट नीति 2014 और इंडो-पैसिफिक नीतियों का संबंध बिंदु के रूप में कार्य करता है।
- दोनों देश सार्क, बिम्सटेक, BBIN और इंडियन ओशन रिम एसोसिएशन (IORA) जैसे क्षेत्रीय समूहों में सक्रिय रूप से भाग लेते हैं ताकि कूटनीतिक तनावों को प्रबंधित और कम किया जा सके।
- सीमा और समुद्री समाधान: वर्ष 2015 का लैंड बॉउंड्री एग्रीमेंट और समुद्री सीमा निर्धारण शांतिपूर्ण समाधान के रूप में आवश्यक माने जाते हैं, जो द्विपक्षीय संबंधों में स्थिरता और सद्भाव बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं।
- मल्टीमॉडल कनेक्टिविटी:
- रेलमार्ग: 1965 से पहले के 6 पार-सीमा रेल मार्गों का पुनर्विकास, 3 यात्री ट्रेनों का संचालन (अस्थायी रूप से निलंबित), रेलवे वैगनों की आपूर्ति, भारत के पूर्वोत्तर को जोड़ने के लिये महत्त्वपूर्ण।
- सड़कें: मुख्य शहरों को जोड़ने वाले 5 सक्रिय बस मार्ग।
- आंतरिक जलमार्ग: वर्ष 1972 से इनलैंड वाटरवेज ट्रेड एंड ट्रांजिट (PIWTT) प्रोटोकॉल, जिसमें क्रूज सेवाएँ और नए मार्ग शामिल हैं।
- बंदरगाह: भारत के पूर्वोत्तर के लिये भारतीय ट्रांज़िट कार्गो हेतु चटगाँव और मोंगला बंदरगाहों का उपयोग।
- अवसंरचना: इंटीग्रेटेड चेक पोस्ट (ICPs) का एक नेटवर्क है और इसके और निर्माण की योजना बनाई गई है।
- आर्थिक सहयोग: बांग्लादेश, दक्षिण एशिया में भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। वित्तीय वर्ष 2023-24 में द्विपक्षीय व्यापार का मूल्य 14.01 बिलियन अमेरिकी डॉलर था।
- डॉलर निर्भरता कम करने के लिये द्विपक्षीय व्यापार को भारतीय रुपये में निपटाने की एक व्यवस्था शुरू की गई है।
- विद्युत और ऊर्जा सहयोग: बांग्लादेश भारत से 1,160 मेगावाट विद्युत आयात करता है। भारत की सहायता से निर्मित मैत्री सुपर थर्मल पावर प्लांट (1,320 मेगावाट) इस सहयोग का एक प्रमुख उदाहरण है।
- इसके अतिरिक्त हाई-स्पीड डीज़ल के लिये भारत–बांग्लादेश मैत्री पाइपलाइन स्थापित की गई है तथा भारतीय सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम (PSUs) तेल अन्वेषण और आपूर्ति में भी संलग्न हैं।
- विकासात्मक साझेदारी: भारत ने सड़कों, रेलवे, बंदरगाहों जैसी अवसंरचना परियोजनाओं के लिये लगभग 8 बिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य की 3 लाइन ऑफ क्रेडिट (LoC) प्रदान की हैं, साथ ही रक्षा क्षेत्र के लिये समर्पित 500 मिलियन अमेरिकी डॉलर की एक डिफेंस LoC भी दी गई है।
- इसके अतिरिक्त अखौरा–अगरतला रेल संपर्क और ड्रेजिंग जैसी विशिष्ट परियोजनाओं के लिये अनुदान सहायता प्रदान की गई है।
- प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण: वर्ष 2014 से अब तक भारत की संस्थाओं में 7,000 से अधिक बांग्लादेशी सिविल सेवकों और 1,250 न्यायिक अधिकारियों को प्रशिक्षण दिया गया है। इसके अलावा, लगभग 1,350 रक्षा कर्मियों को भी भारत में प्रशिक्षित किया गया है।
भारत और बांग्लादेश अपने द्विपक्षीय संबंधों को कैसे सुदृढ़ कर सकते हैं?
- संस्थागत संकट प्रबंधन: भारत–बांग्लादेश राजनीतिक संकट प्रतिक्रिया तंत्र की औपचारिक स्थापना की जाए, जिसमें एक वरिष्ठ दूत और विदेश मंत्रालय का समर्पित चैनल शामिल हो, ताकि संभावित दुष्प्रभावों का त्वरित प्रबंधन, तनाव की वृद्धि को रोका जा सके तथा कूटनीतिक परिसंपत्तियों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।
- इसके अतिरिक्त, दोनों देशों में सुरक्षित वीज़ा संचालन और नागरिकों की सुरक्षित आवागमन सुनिश्चित करने के लिये एक उच्च-स्तरीय वाणिज्यिक समन्वय प्रकोष्ठ स्थापित किया जाए।
- सरकारों से आगे बढ़कर सहभागिता: बांग्लादेश में सभी राजनीतिक दलों, नागरिक समाज, युवा समूहों, मीडिया और बौद्धिक वर्ग के साथ सक्रिय संवाद स्थापित किया जाए, ताकि किसी एक गुट का पक्ष लेने की धारणा न बने। ट्रैक 1.5 और ट्रैक-II संवादों को सुदृढ़ किया जाए, जिससे संकट संबंधी धारणाओं को संबोधित किया जा सके, गलत सूचना का प्रतिकार हो और सॉफ्ट ब्रिज का निर्माण किया जा सके।
- शेख हसीना को शरण देने के संदर्भ में पारदर्शी और सुसंगत नैरेटिव बनाए रखा जाए तथा इसे स्पष्ट रूप से मानवीय एवं सभ्यतागत पहल के रूप में प्रस्तुत किया जाए, न कि राजनीतिक संरक्षण के रूप में।
- पारदर्शी जल कूटनीति: गंगा जल संधि के नवीनीकरण पर वर्ष 2026 की समय-सीमा से काफी पहले तकनीकी और राजनीतिक चर्चाएँ शुरू की जाएँ। अन्य साझा नदियों (जैसे तीस्ता) पर घाटी-स्तरीय प्रबंधन दृष्टिकोण अपनाया जाए, जिसमें संयुक्त हाइड्रोलॉजिकल मॉडल और डेटा साझा करने की व्यवस्था शामिल हो, ताकि परस्पर विश्वास को सुदृढ़ किया जा सके।
- नई पीढ़ी के लिये 1971 की भावना का संवर्धन: जन-केंद्रित सांस्कृतिक पहलों जैसे संयुक्त स्मरणोत्सव, राहत प्रयास और मानवीय परियोजनाएँ को बढ़ावा दिया जाए, ताकि राजनीतिक पक्षपात के बिना भारत–बांग्लादेश के सांस्कृतिक संबंधों को उजागर किया जा सके।
- सकारात्मक विकल्प प्रस्तुत करना: रणनीतिक प्रतिस्पर्द्धा का मुकाबला विशेषाधिकार की मांग करके नहीं, बल्कि अन्य बाहरी पक्षों की तुलना में अधिक आकर्षक, पारदर्शी और तेज़ी से क्रियान्वित होने वाली साझेदारियाँ प्रदान करके किया जाए विशेष रूप से अवसंरचना तथा विकास परियोजनाओं में।
- सुरक्षा समन्वय को सुदृढ़ करना: BSF और बांग्लादेश की सीमा सुरक्षा बलों के बीच रियल-टाइम सीमा सुरक्षा प्रोटोकॉल लागू किये जाएँ, साथ ही संयुक्त हॉटलाइन स्थापित की जाए, ताकि 2025 में भारत–बांग्लादेश सीमा पर रिकॉर्ड स्तर की घुसपैठ की कोशिशों के बीच सीमापार घुसपैठ और गलत आकलनों को रोका जा सके।
निष्कर्ष
भारत–बांग्लादेश संबंध संवेदनशील और निर्णायक दौर से गुजर रहे हैं, जिन्हें राजनीतिक पुनर्संयोजन, युवा राष्ट्रवाद तथा बाह्य प्रभाव आकार दे रहे हैं। इन संबंधों को पुनर्जीवित करने के लिये सक्रिय कूटनीति, सुदृढ़ संपर्कता, पारदर्शी संसाधन प्रबंधन तथा नागरिक समाज के साथ सहभागिता आवश्यक है। मानवीय सरोकारों और रणनीतिक हितों के बीच संतुलन स्थापित कर भारत न केवल अपना प्रभाव बनाए रख सकता है, बल्कि क्षेत्रीय स्थिरता सुनिश्चित करते हुए पारस्परिक रूप से लाभकारी साझेदारियों को भी प्रोत्साहित कर सकता है।
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दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. ढाका में हाल के राजनीतिक परिवर्तनों के परिप्रेक्ष्य में भारत–बांग्लादेश द्विपक्षीय संबंधों को पुनर्जीवित करने में आने वाली चुनौतियों और अवसरों पर चर्चा कीजिये। |
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
1. 2024 के बाद बांग्लादेश में ऐसा कौन-सा रणनीतिक बदलाव हुआ जिसने भारत के लिये चुनौतियाँ उत्पन्न कीं?
अगस्त 2024 में भारत-समर्थक अवामी लीग सरकार के पतन से राजनीतिक अस्थिरता, इस्लामवादी ताकतों का उभार तथा चीन और पाकिस्तान के बढ़ते बाहरी प्रभाव की स्थिति उत्पन्न हुई।
2. भारत की 'नेबरहुड फर्स्ट' और 'एक्ट ईस्ट' नीतियों के लिये बांग्लादेश क्यों महत्त्वपूर्ण है?
बांग्लादेश भारत के पूर्वोत्तर राज्यों के लिये रणनीतिक संपर्क उपलब्ध कराता है, बंदरगाहों तक पहुँच, ऊर्जा सहयोग प्रदान करता है और दक्षिण-पूर्व एशिया के प्रवेश द्वार के रूप में कार्य करता है।
3. सुंदरबन क्या हैं?
सुंदरबन विश्व का सबसे बड़ा ज्वारीय मैंग्रोव वन है, जो भारत के दक्षिणी पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश में फैला हुआ है। यह रॉयल बंगाल टाइगर का आवास है और यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता प्राप्त है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)
प्रिलिम्स
प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020)
- पिछले दशक में भारत-श्रीलंका व्यापार के मूल्य में सतत वृद्धि हुई है।
- भारत और बांग्लादेश के बीच होने वाले व्यापार में ‘कपड़े और कपड़े से बनी चीज़ों’ का व्यापार प्रमुख है।
- पिछले पाँच वर्षों में दक्षिण एशिया में भारत के व्यापार का सबसे बड़ा भागीदार नेपाल रहा है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2
(c) केवल 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (b)
प्रश्न. तीस्ता नदी के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2017)
1- तीस्ता नदी का उद्गम वही है जो ब्रह्मपुत्र का है लेकिन यह सिक्किम से होकर बहती है।
2- रंगीत नदी की उत्पत्ति सिक्किम में होती है और यह तीस्ता नदी की एक सहायक नदी है।
3- तीस्ता नदी, भारत एवं बांग्लादेश की सीमा पर बंगाल की खाड़ी में जा मिलती है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(a) केवल 1 और 3
(b) केवल 2
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (b)
मेन्स
प्रश्न. आंतरिक सुरक्षा खतरों तथा नियंत्रण रेखा सहित म्याँमार, बांग्लादेश और पाकिस्तान सीमाओं पर सीमा-पार अपराधों का विश्लेषण कीजिये। विभिन्न सुरक्षा बलों द्वारा इस संदर्भ में निभाई गई भूमिका की विवेचना भी कीजिये। (2020)
बाल तस्करी पर सर्वोच्च न्यायालय के दिशा-निर्देश
प्रिलिम्स के लिये: भारत का सर्वोच्च न्यायालय, अनुच्छेद 23, UNCTOC, राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग।
मेन्स के लिये: मानव तस्करी के विरुद्ध संरक्षणात्मक उपाय, पीड़ित-केंद्रित आपराधिक न्यायशास्त्र के विकास में सर्वोच्च न्यायालय की भूमिका, बाल संरक्षण हेतु निवारक एवं पुनर्वासात्मक रणनीतियाँ।
चर्चा में क्यों?
भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने बाल तस्करी और वाणिज्यिक यौन शोषण को देश में एक “अत्यंत विचलित करने वाली वास्तविकता” के रूप में वर्णित किया है।
- सर्वोच्च न्यायालय ने दिशा-निर्देश निर्धारित किये, जिनमें सभी न्यायालयों को यह निर्देश दिया गया कि तस्करी के शिकार बच्चों को पीड़ित साक्षी के रूप में माना जाए तथा उनकी गवाही का संवेदनशीलता के साथ मूल्यांकन किया जाए और केवल मामूली असंगतियों के आधार पर उसे खारिज न किया जाए।
सारांश
- सर्वोच्च न्यायालय ने बाल तस्करी और वाणिज्यिक यौन शोषण को बालकों की गरिमा और मौलिक अधिकारों का गंभीर उल्लंघन माना है तथा न्यायालयों को निर्देश दिया है कि तस्करी के शिकार बच्चों को पीड़ित (injured) साक्षी के रूप में देखा जाए और केवल मामूली विरोधाभासों के आधार पर उनकी गवाही को अस्वीकार न किया जाए।
- प्रभावी प्रतिक्रिया के लिये प्रिवेंशन फर्स्ट दृष्टिकोण आवश्यक है, जिसमें सशक्त कानूनी प्रवर्तन के साथ सामुदायिक सतर्कता, कल्याणकारी योजनाओं का अभिसरण, ट्रांजिट निगरानी तथा बचाए गए बच्चों के लिये प्रभावी पुनर्वास तंत्र को समेकित किया जाए।
भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा बाल तस्करी की समस्या से निपटने के लिये कौन-से दिशा-निर्देश जारी किये गए हैं?
- पीड़ित की गवाही को विश्वसनीय साक्ष्य मानना : न्यायालयों को मानव तस्करी का शिकार हुए बच्चे की गवाही को एक पीड़ित गवाह/साक्षी की गवाही के रूप में देखा जाना चाहिये और उसे उचित महत्त्व देना चाहिये।
- गवाही में मामूली विसंगतियों से पीड़ित के बयान को अविश्वासनीय नहीं ठहराया जाना चाहिये और यदि उसकी गवाही विश्वसनीय है तो वह दोषसिद्धि के लिये पर्याप्त हो सकती है।
- मानव तस्करी की जटिल प्रकृति को देखते हुए, न्यायालयों को पीड़ितों से सटीक विवरण की अपेक्षा नहीं करनी चाहिये। अपराध की जटिलता के कारण पीड़ितों के लिये घटनाओं का स्पष्ट वर्णन करना कठिन होता है।
- सुभेद्यताओं/कमज़ोरियों के प्रति संवेदनशीलता : न्यायालयों को पीड़ितों, विशेषकर सीमांत समुदायों के पीड़ितों की सामाजिक-आर्थिक और सांस्कृतिक सुभेद्यताओं पर विचार करना चाहिये। न्यायिक मूल्यांकन संवेदनशीलता और यथार्थवाद से युक्त होना चाहिये।
- सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि बाल तस्करी और यौन शोषण बच्चों की गरिमा एवं शारीरिक अखंडता का उल्लंघन करते हैं और जीवन, गरिमा तथा सुरक्षा के उनके मौलिक अधिकारों को कमज़ोर करते हैं।
- द्वितीयक उत्पीड़न को कम करना : न्यायालय ने इस बात पर बल दिया कि कानूनी कार्यवाही के दौरान पीड़ितों को किसी भी प्रकार के अतिरिक्त आघात से बचाया जाए, उनकी गरिमा सुनिश्चित की जाए तथा उन्हें अनावश्यक मानसिक कष्ट से दूर रखा जाए।
- पूर्वाग्रहपूर्ण धारणाओं से बचना : न्यायालयों को पीड़ित के व्यवहार के आधार पर (जैसे कि- तत्काल विरोध न करने के आधार पर), किसी भी प्रकार की धारणा बनाने से परहेज करना चाहिये, क्योंकि इससे उसकी विश्वसनीयता कम हो सकती है।
बाल तस्करी क्या है?
- परिचय: बाल तस्करी से तात्पर्य है किसी बच्चे का उसके शोषण के उद्देश्य से, ज़बरदस्ती, धोखाधड़ी, शक्ति के दुरुपयोग या संकटग्रस्त स्थिति का लाभ उठाकर भर्ती, परिवहन, स्थानांतरण, शरण देना या प्राप्त करना।
- शोषण में यौन शोषण, जबरन श्रम, दासता या गुलामी और अंगों का निष्कासन शामिल है तथा यह बाल अधिकारों, मानव गरिमा और शारीरिक अखंडता का गंभीर उल्लंघन है।
भारत में बाल तस्करी और वाणिज्यिक यौन शोषण का विनियमन
- संवैधानिक ढाँचा:
- अनुच्छेद 23 मानव तस्करी और जबरन श्रम को प्रतिबंधित करता है, इसे मौलिक अधिकारों का उल्लंघन बनाता है।
- कानूनी ढाँचा:
- भारतीय न्याय संहिता (BNS), 2023: BNS, 2023 के अनुच्छेद 143 और 144 मानव तस्करी तथा तस्करी किये गए बच्चों के यौन शोषण हेतु कठोर दंड प्रदान करते हैं, जिसमें आजीवन कारावास तक की सजा शामिल है और भिक्षाटन को शोषण के एक रूप के रूप में मान्यता दी गई है।
- अनैतिक व्यापार (निवारण) अधिनियम, 1956 (ITPA): वाणिज्यिक शोषण के लिये तस्करी के खिलाफ मूल कानून तथा इसमें वेश्यालय संचलन, तस्करी करना और संबंधित अपराधों को दंडित किया जाता है।
- लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012 (POCSO): बच्चों को यौन उत्पीड़न और शोषण से बचाने हेतु विशेष कानून तथा इसमें बाल-केंद्रित प्रक्रिया का प्रावधान है।
- आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम, 2013: तस्करी की व्यापक परिभाषा प्रदान करता है, जिसमें यौन शोषण, दासता, सेवकत्व, बलात श्रम और अंग निकालना शामिल है तथा यह बच्चों की तस्करी को सहमति की परवाह किये बिना शामिल करता है।
- किशोर न्याय (बालकों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015: इसमें कानून के साथ संघर्ष में बच्चों और देखभाल एवं संरक्षण की आवश्यकता वाले बच्चों के लिये संस्थागत व गैर-संस्थागत देखभाल और संरक्षण सेवाओं का एक सुरक्षा जाल सुनिश्चित किया गया है।
- मानव तस्करी और शोषण से संबंधित सहवर्ती विधायनों में बंधुआ श्रम प्रणाली (उन्मूलन) अधिनियम, 1976, बाल श्रम (निषेध और विनियमन) अधिनियम, 1986, बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 और मानव अंग एवं ऊतक प्रत्यारोपण अधिनियम, 1994 शामिल हैं। ये सभी मिलकर बलपूर्वक श्रम, बाल शोषण, समयपूर्व विवाह और अवैध अंग व्यापार को रोकने का उद्देश्य रखते हैं।
- सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय और दिशानिर्देश:
- विशाल जीत बनाम भारत संघ (1990): सर्वोच्च न्यायालय ने तस्करी और बाल वेश्यावृत्ति को एक गंभीर सामाजिक–आर्थिक समस्या माना तथा इसके समाधान हेतु निवारक तथा मानवीय दृष्टिकोण पर बल दिया।
- न्यायालय ने राज्यों को बाल वेश्यावृत्ति तथा देवदासी/जोगिन प्रथाओं के उन्मूलन के लिये सलाहकार समितियाँ गठित करने का निर्देश दिया।
- एम.सी. मेहता बनाम तमिलनाडु राज्य (1996): सर्वोच्च न्यायालय ने खतरनाक उद्योगों में बच्चों के नियोजन पर प्रतिबंध लगाया और बाल श्रम पुनर्वास कल्याण कोष के गठन का निर्देश दिया।
- बचपन बचाओ आंदोलन बनाम भारत संघ (2011): सर्वोच्च न्यायालय ने भारतीय सर्कसों में बच्चों के नियोजन पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया तथा सर्कसों में बच्चों के व्यापक शोषण और तस्करी से निपटने हेतु केंद्र व राज्य सरकारों को महत्त्वपूर्ण निर्देश जारी किये।
- विशाल जीत बनाम भारत संघ (1990): सर्वोच्च न्यायालय ने तस्करी और बाल वेश्यावृत्ति को एक गंभीर सामाजिक–आर्थिक समस्या माना तथा इसके समाधान हेतु निवारक तथा मानवीय दृष्टिकोण पर बल दिया।
- अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धताएँ: भारत ने संयुक्त राष्ट्र का ट्रांसनेशनल ऑर्गनाइज्ड क्राइम कन्वेंशन (UNCTOC) और इसके ट्रैफिकिंग प्रोटोकॉल को अनुमोदित किया है।
- साथ ही भारत ने महिलाओं और बच्चों की वेश्यावृत्ति के लिये तस्करी को रोकने और इसके खिलाफ मुकाबला करने हेतु SAARC कन्वेंशन को भी अनुमोदित किया है।
भारत में बाल तस्करी एवं शोषण के प्रभावी निवारण में कौन-सी चुनौतियाँ बाधक हैं?
- व्याप्त सामाजिक-आर्थिक संकट: गरीबी, बेरोज़गारी, पलायन, आपदाएँ और पारिवारिक विघटन बच्चों को लगातार संकटग्रस्त स्थिति में धकेलते हैं, जिससे तस्करों के लिये एक निरंतर आपूर्ति स्रोत बनता है।
- सस्ते श्रम, घरेलू दासता, भीख मंगवाने और वाणिज्यिक यौन शोषण की मांग लगातार तस्करी बाजारों को सक्रिय बनाए रखती है।
- क्विक-कॉमर्स डिलीवरी ऐप्स के उदय ने अविनियमित डार्क स्टोर और छॅंटाई केंद्रों में बाल श्रम की छिपी हुई मांग उत्पन्न कर दी है, जहाँ बच्चे तेज़ वितरण लक्ष्यों को पूरा करने के लिये लंबी रातों की शिफ्ट में काम करते हैं।
- अदृश्य और संगठित तस्करी शृंखलाएँ: तस्करी नेटवर्क स्रोत, पारगमन और गंतव्य क्षेत्रों में स्तरित और खंडित संरचनाओं के माध्यम से काम करते हैं, जिससे पहचान और विघटन अत्यंत कठिन हो जाता है।
- उदाहरण के लिये, तस्कर भारत-नेपाल की संवेदनशील सीमा का लाभ उठाते हैं और बच्चों को कई राज्यों के मार्गों से भेजते हैं, जिससे किसी एक राज्य पुलिस बल के लिये पूरी तस्करी शृंखला को ट्रैक करना कठिन हो जाता है।
- पीड़ितों की चुप्पी: भय, कलंक, आघात और धमकियाँ रिपोर्टिंग को दबा देती हैं, जिससे शोषण छिपा और अनदेखा रह जाता है।
- असंवेदनशील पूछताछ प्रक्रियाएँ पीड़ितों को पुनः आघात पहुँचाती हैं, जिससे न्याय प्रक्रिया में सहयोग करने की इच्छा कम हो जाती है।
- प्रौद्योगिकी का दुरुपयोग: सोशल मीडिया और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म ग्रूमिंग, भर्ती और यौन शोषण को संभव बनाते हैं, जो अक्सर पारंपरिक पुलिसिंग की पहुँच से बाहर होता है।
- उदाहरण के लिये, ‘आभासी भर्ती’ मॉडल में, तस्कर इंस्टाग्राम पर नकली ‘टैलेंट हंट’ प्रोफाइल का उपयोग करके आकांक्षी किशोर प्रभावकों को मॉडलिंग अनुबंधों के वचनों से लुभाते हैं और अंततः उन्हें वाणिज्यिक यौन शोषण के लिये तस्करी करते हैं।
- डेटा और निगरानी में अंतराल: राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) डेटा को अद्यतन करने में देरी और लापता, बचाए गए एवं तस्करी के शिकार बच्चों के खंडित डेटाबेस प्रभावी प्रारंभिक चेतावनी, ट्रैकिंग और निवारण प्रयासों को सीमित करते हैं।
बाल तस्करी और शोषण को प्रभावी ढंग से रोकने के लिये कौन-से उपाय अपनाए जा सकते हैं?
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने इस बात पर ज़ोर दिया कि बाल तस्करी के खिलाफ सबसे प्रभावी रणनीति निवारण है और तद्नुसार इस बुराई को रोकने के लिये लक्षित उपायों की सिफारिश की:
- स्रोत-क्षेत्र संबंधी सिफारिशें: तस्करी-संभावित गाँवों और शहरी बस्तियों की पहचान करना तथा परिभाषित संकेतकों (स्कूल छोड़ने वाले, गरीबी, पलायन, पारिवारिक संकट) का उपयोग करके जोखिमग्रस्त बच्चों और संकटग्रस्त परिवारों का मानचित्रण करना।
- कल्याणकारी योजनाओं (राशन, मनरेगा, शिक्षा, स्वास्थ्य) का अभिसरण सुनिश्चित करना ताकि आर्थिक संकट परिवारों को तस्करों की ओर न धकेले।
- ग्राम बाल संरक्षण समितियों (VCPC), आँगनवाड़ी कार्यकर्त्ताओं, स्कूल प्राधिकारियों और स्थानीय पुलिस के माध्यम से पंचायत-स्तरीय सतर्कता को मज़बूत करना।
- बच्चों और बाहरी लोगों की आवाजाही पर नज़र रखने वाले ग्राम-स्तरीय रजिस्टर बनाए रखना, जिन्हें ट्रैकचाइल्ड पोर्टल और घर (GHAR - गो होम एंड री-यूनाइट) पोर्टल पर नियमित रूप से अद्यतन किया जाए, क्योंकि तस्कर अक्सर शिक्षा या रोज़गार के प्रस्तावों के बहाने काम करते हैं।
- संक्रमण-क्षेत्र से संबंधित सिफारिशें: GRP (गवर्नमेंट रेलवे पुलिस) और RPF (रेलवे प्रोटेक्शन फोर्स), परिवहन कर्मियों, कुलियों, विक्रेताओं तथा पुलिस को बच्चों और उनके साथ मौजूद वयस्कों की संदिग्ध गतिविधियों की पहचान हेतु संवेदनशील बनाया जाए तथा उन्हें प्रशिक्षण दिया जाए।
- सभी ट्रांजिट बिंदुओं पर स्थानीय भाषाओं में हेल्पलाइन नंबर (1098, 112) तथा बाल अधिकारों से संबंधित जानकारी प्रदर्शित की जाए।
- गंतव्य-क्षेत्र से संबंधित सिफारिशें: प्लेसमेंट एजेंसियों, कारखानों, ईंट भट्टों, होटलों, मसाज पार्लरों, घरेलू कार्य स्थलों तथा मनोरंजन प्रतिष्ठानों का नियमित निरीक्षण किया जाए।
- बाल श्रम, बाल विवाह और घरेलू दासता के प्रति शून्य सहनशीलता सुनिश्चित की जाए।
- बचाए गए बच्चों के लिये किशोर न्याय (बालकों की देखरेख और संरक्षण) अधिनियम, 2015 के तहत बाल देखभाल संस्थानों, आश्रय गृहों और पुनर्वास सुविधाओं की उपलब्धता सुनिश्चित की जाए।
निष्कर्ष
बाल तस्करी बच्चों की गरिमा और मौलिक अधिकारों का गंभीर उल्लंघन है। सर्वोच्च न्यायालय के दिशानिर्देश, तस्करी के शिकार बच्चों को पीड़ित साक्षी के रूप में मान्यता देकर तथा रूढ़ियों और मामूली असंगतियों को खारिज करके, न्याय व्यवस्था को सुदृढ़ बनाते हैं।
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दृष्टि मेन्स प्रश्न : प्रश्न. संवैधानिक और कानूनी प्रावधानों के संदर्भ में बाल तस्करी को मौलिक अधिकारों का उल्लंघन के रूप में चर्चा कीजिये। |
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
1. कौन-सा संवैधानिक प्रावधान सीधे तौर पर बाल तस्करी पर प्रतिबंध लगाता है?
संविधान का अनुच्छेद 23 मानव तस्करी और बेगार (बलात श्रम) पर प्रतिबंध लगाता है, जिससे यह मौलिक अधिकारों का उल्लंघन बन जाता है।
2. भारत में बाल तस्करी से निपटने वाले प्रमुख कानून कौन-से हैं?
भारतीय न्याय संहिता, 2023; अनैतिक देह व्यापार (निवारण) अधिनियम, 1956 (ITPA); यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012 (POCSO); आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम, 2013 तथा संबंधित श्रम एवं बाल संरक्षण कानून।
3. बाल तस्करी का पता लगाना और उसे रोकना कठिन क्यों है?
क्योंकि यह विभिन्न क्षेत्रों में फैले संगठित और अदृश्य नेटवर्कों के माध्यम से संचालित होती है, जिसे गरीबी, प्रवासन, सामाजिक कलंक तथा पीड़ितों द्वारा कम रिपोर्टिंग जैसी समस्याएँ और जटिल बना देती हैं।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)
प्रश्न. संसार के दो सबसे बड़े अवैध अफीम उत्पादक राज्यों से भारत की निकटता ने उसकी आंतरिक सुरक्षा चिंताओं को बढ़ा दिया है। नशीली दवाओं के अवैध व्यापार एवं बंदूक बेचने, गुपचुप धन विदेश भेजने और मानव तस्करी जैसे अवैध गतिविधियों के बीच कड़ियों को स्पष्ट कीजिये। इन गतिविधियों को रोकने के लिये क्या-क्या उपाय किये जाने चाहिये? (2018)
ब्यूरो ऑफ पोर्ट सिक्योरिटी
भारत सरकार ने भारत के सभी बंदरगाहों और जहाजों की व्यापक तथा जोखिम-आधारित सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये एक समर्पित वैधानिक संस्था, ब्यूरो ऑफ पोर्ट सिक्योरिटी (BoPS) स्थापित करने का निर्णय लिया है।
- ब्यूरो ऑफ पोर्ट सिक्योरिटी (BoPS): यह BoPS मर्चेंट शिपिंग एक्ट, 2025 की धारा 13 के अंतर्गत वैधानिक संस्था के रूप में गठित किया जाएगा।
- BoPS का संचालन पत्तन, पोत परिवहन एवं जलमार्ग मंत्रालय (MoPSW) के अधीन होगा और यह जहाजों तथा बंदरगाह सुविधाओं की सुरक्षा के लिये नियामक और पर्यवेक्षी कार्य करेगा।
- BoPS का नेतृत्व महानिदेशक (Director General) करेंगे, जो पे लेवल-15 के IPS अधिकारी होंगे। एक वर्ष के संक्रमणकालीन अवधि के दौरान, शिपिंग के महानिदेशक (DGS/DGMA), BoPS के महानिदेशक के रूप में कार्य करेंगे।
- यह ब्यूरो नागर विमानन सुरक्षा ब्यूरो (BCAS) के मॉडल पर आधारित है, जो क्षेत्रीय सर्वोत्तम प्रथाओं के स्थानांतरण को दर्शाता है।
- BoPS के तहत, बंदरगाहों की IT और डिजिटल अवसंरचना की सुरक्षा के लिये एक समर्पित साइबर सुरक्षा विभाग स्थापित किया जाएगा, जो समुद्री साइबर खतरों की बढ़ती प्रासंगिकता को उजागर करता है।
- केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (CISF): पूर्व में, बंदरगाह सुरक्षा अवसंरचना को सुदृढ़ करने के लिये, CISF को बंदरगाहों हेतु मान्यता प्राप्त सुरक्षा संगठन (RSO) के रूप में नामित किया गया था, जिसके अंतर्गत सुरक्षा मूल्यांकन करना और बंदरगाह सुरक्षा योजनाएँ तैयार करना शामिल है।
- नई व्यवस्था के तहत, CISF को यह ज़िम्मेदारी दी गई है कि वह बंदरगाह सुरक्षा में लगे निजी सुरक्षा एजेंसियों (PSA) को प्रशिक्षण और प्रमाणन प्रदान करे, साथ ही नियामक सुरक्षा उपाय सुनिश्चित किये जाएँ ताकि केवल लाइसेंस प्राप्त एजेंसियाँ इस क्षेत्र में कार्य कर सकें।
- व्यापक महत्त्व: BoPS द्वारा संचालित समुद्री सुरक्षा के अनुभव और सर्वोत्तम प्रथाएँ अब विमानन सुरक्षा क्षेत्र में भी अपनाई जाएँगी, जिससे समग्र आंतरिक सुरक्षा शासन को और सुदृढ़ किया जा सके।


