RTI अधिनियम, 2005 के 20 वर्ष
प्रिलिम्स के लिये: सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम, 2005, शासकीय गुप्त बात अधिनियम (OSA), 1923, भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023, मुख्य निर्वाचन आयुक्त, केंद्रीय सूचना आयोग, RTI संशोधन अधिनियम, 2019, डिजिटल वैयक्तिक डाटा संरक्षण (DPDP) अधिनियम, 2023, भारतीय कंप्यूटर आपातकालीन प्रतिक्रिया टीम (CERT-In), सूचना प्रदाता संरक्षण अधिनियम, 2014, डिजिलॉकर
मेन्स के लिये: RTI अधिनियम, 2005 संबंधी मुख्य तथ्य, इसकी प्रभावशीलता को सीमित करने वाली चुनौतियाँ और इसके कार्यान्वयन को सुदृढ़ बनाने की रणनीतियाँ
चर्चा में क्यों?
अक्तूबर 2025 में सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम, 2005 के कार्यान्वयन के 20 वर्ष पूर्ण होने के अवसर पर, एक अध्ययन किया गया, जिसमें इसकी कार्य-पद्धति की गंभीर खामियों को उजागर किया है, जो यह दर्शाता है कि पारदर्शिता प्रणाली पर गंभीर दबाव है।
RTI अधिनियम, 2005 संबंधी मुख्य तथ्य क्या हैं?
- परिचय: वर्ष 2005 में अधिनियमित, सूचना के अधिकार (RTI) अधिनियम, 2005 का उद्देश्य नागरिकों को लोक प्राधिकारियों द्वारा धारित जानकारी तक अबाध पहुँच प्रदान कराना है।
- यह शासकीय कार्यों में पारदर्शिता को बढ़ावा देने, उत्तरदायित्व का सुदृढ़ीकरण करने और लोक संस्थानों में सुशासन के सिद्धांतों में सुधार लाने के लिये अभिकल्पित किया गया था।
- पुणे में शाहिद रज़ा बर्नी द्वारा दायर RTI इस कानून के तहत दायर की गई पहली RTI थी।
- मुख्य घटक: यह अधिनियम केंद्र, राज्य और स्थानीय निकायों सहित सरकार के सभी स्तरों पर प्रवर्तनीय है।
- धारा 8(2) के अंतर्गत लोक हित का शासकीय गुप्त बात से अधिक महत्त्वपूर्ण होने पर इसका प्रकटीकरण किये जाने की अनुमति है और धारा 22 के अंतर्गत RTI अधिनियम, 2005 को अन्य कानूनों के साथ किसी भी विसंगति की दशा में वरीयता दिया जाना सुनिश्चित किया गया है।
- प्रदत्त छूट: RTI अधिनियम, 2005 में निहित किसी भी प्रावधान के बावजूद, नागरिक कोई भी ऐसी सूचना प्राप्त करने के हकदार नहीं हैं जो भारत की संप्रभुता, अखंडता, सुरक्षा, रणनीतिक, वैज्ञानिक या आर्थिक हितों को क्षति पहुँचा सकती हो, अन्य देशों के साथ संबंधों को प्रभावित कर सकती हो, या इससे किसी अपराध का उद्दीपन हो सकता हो।
- सूचना का अधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2019: मूल रूप से RTI अधिनियम, 2005 के तहत, मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्त 5 वर्ष या 65 वर्ष की आयु तक, जो भी पहले हो, पद ग्रहण करते थे तथा उनका वेतन एवं सेवा की शर्तें मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य निर्वाचन आयुक्तों के समान होती थीं।
- हालाँकि वर्ष 2019 के संशोधन ने इसे बदल दिया, जिससे केंद्र सरकार को उनके कार्यकाल, वेतन, भत्ते और सेवा की शर्तें निर्धारित करने की शक्ति मिल गई।
- RTI अधिनियम, 2005 की उपलब्धियाँ: इससे सार्वजनिक निधि के उपयोग में जवाबदेही बढ़ी है, जिससे नागरिकों को मनरेगा व्यय, PDS रिकॉर्ड और स्थानीय विकास परियोजनाओं तक पहुँच प्राप्त हुई है तथा लीकेज एवं दुरुपयोग में कमी आई है।
- इसने आदर्श सोसायटी, 2G स्पेक्ट्रम और राष्ट्रमंडल खेलों जैसे हाई-प्रोफाइल घोटालों को उज़ागर किया है, साथ ही सरकारी अधिकारियों में जवाबदेही की संस्कृति का निर्माण किया है, तथा उन्हें यह बोध कराया कि उनके कार्य सार्वजनिक जाँच के अधीन हैं।
RTI अधिनियम, 2005 के समक्ष प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?
- अत्यधिक विलंब: अधिकांशतः सूचना आयोगों (IC) में किसी मामले के निपटान में एक वर्ष से ज़्यादा का समय लग जाता है। कुछ राज्यों में तो यह विलंबता बहुत अधिक है, तेलंगाना में यह अनुमानतः 29 वर्ष और 2 माह एवं त्रिपुरा में 23 वर्ष है।
- रिक्त पद: वर्ष 2023 और वर्ष 2024 के बीच, नए आयुक्तों की नियुक्ति न होने के कारण छह सूचना आयोग अलग-अलग अवधि के लिये पूर्णतः निष्क्रिय हो गए।
- वर्तमान में झारखंड और हिमाचल प्रदेश आयोग निष्क्रिय हैं, जबकि केंद्रीय सूचना आयोग (CIC), छत्तीसगढ़ तथा आंध्र प्रदेश आयोग मुख्य सूचना आयुक्त के बिना काम कर रहे हैं।
- विधायी परिवर्तनों के माध्यम से क्षरण: RTI संशोधन अधिनियम, 2019 ने केंद्र सरकार को उनका कार्यकाल और वेतन निर्धारित करने का अधिकार देकर सूचना आयुक्तों की स्वायत्तता को कम कर दिया।
- डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण (DPDP) अधिनियम, 2023 ने धारा 8(1) में संशोधन किया, जिससे लोक सेवकों सहित सभी व्यक्तिगत जानकारी को प्रकटीकरण से छूट मिल गई।
- छूट का विस्तार: सरकारी विभाग अक्सर शासकीय गुप्त बात अधिनियम, 1923 के राष्ट्रीय सुरक्षा प्रावधानों का हवाला देते हुए RTI के तहत जानकारी देने से इनकार कर देते हैं। उदाहरण के लिये, RAW, IB और CERT-In जैसी एजेंसियों को RTI अधिनियम, 2005 की दूसरी अनुसूची के तहत छूट प्राप्त है।
- RTI कार्यकर्त्ताओं को धमकियाँ: RTI कार्यकर्त्ताओं को उत्पीड़न और हिंसा का सामना करना पड़ता है, जिससे नागरिक भ्रष्टाचार को उज़ागर करने के जोखिम से बचते हैं। विभिन्न कार्यकर्त्ताओं पर हमले हुए हैं या उनकी हत्या कर दी गई है, जबकि व्हिसलब्लोअर संरक्षण अधिनियम, 2014 के तहत सुरक्षा उपायों का क्रियान्वयन अभी भी शिथिल है।
RTI ढाँचे में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिये किन सुधारों की आवश्यकता है?
- सूचना आयोग को सुदृढ़ बनाना: पारदर्शी, समयबद्ध प्रक्रिया के माध्यम से IC की समय पर नियुक्तियाँ सुनिश्चित करना और आयोगों को पर्याप्त स्टाफ, प्रौद्योगिकी तथा बुनियादी ढाँचा प्रदान करना।
- लंबित मामलों को कुशलतापूर्वक कम करने के लिये प्रत्येक आयुक्त के लिये प्रदर्शन मानक स्थापित करना।
- प्रौद्योगिकी का समेकन: AI चैटबॉट और स्वचालित सहायक नागरिकों को RTI आवेदन तैयार करने में मदद कर सकते हैं, जबकि ब्लॉकचेन डेटा की प्रामाणिकता सुनिश्चित करता है।
- RTI पोर्टलों का डिजिलॉकर और रीयल-टाइम ट्रैकिंग के साथ एकीकरण, आवेदनों तक पहुँच एवं उनकी निगरानी में सुधार ला सकता है।
- कानून का कठोर अनुपालन: RTI अधिनियम, 2005 की धारा 4 के अंतर्गत अनिवार्य सक्रिय प्रकटीकरण को प्रभावी रूप से लागू किया जाए तथा अनुचित अस्वीकृति या विलंब के मामलों में लोक सूचना अधिकारियों (PIO) पर दंड लगाया जाए, ताकि RTI प्रवर्तन को सशक्त किया जा सके। पारदर्शिता और जवाबदेही बनाए रखने के लिये यह सुनिश्चित किया जाए कि सूचना आयोग RTI अधिनियम, 2005 की धारा 25 के अंतर्गत समय पर वार्षिक रिपोर्ट प्रस्तुत करें।
- RTI कार्यकर्त्ताओं का संरक्षण: व्हिसलब्लोअर संरक्षण अधिनियम, 2014 को पूर्ण रूप से लागू किया जाए, जिसमें गुमनाम शिकायतों और आपातकालीन सुरक्षा उपायों की व्यवस्था हो एवं RTI कार्यकर्त्ताओं पर हमलों के मामलों का निपटारा फास्ट-ट्रैक न्यायालयों द्वारा किया जाए।
- सरकार-सिविल सोसायटी साझेदारी के माध्यम से कार्यकर्त्ताओं की सुरक्षा हेतु ज़िला-स्तरीय हेल्पलाइन, सहायता केंद्र और विधिक सहायता कोष स्थापित किये जाएँ।
- स्वायत्तता की आंशिक बहाली: नियुक्ति प्रक्रिया में कार्यकारी विवेक पर निर्भर रहने के बजाय संसदीय निगरानी शामिल होनी चाहिये और सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालयों द्वारा आवधिक समीक्षा स्वतंत्रता को सशक्त कर सकती है।
निष्कर्ष
अपने अधिनियमन के दो दशक बाद, RTI अधिनियम, 2005 को रिक्तियों, अत्यधिक विलंब, कमज़ोर स्वायत्तता और कार्यकर्त्ताओं को खतरों सहित प्रणालीगत चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। सूचना आयोगों को सशक्त करना, दंड लागू करना, प्रौद्योगिकी का एकीकरण और RTI कार्यकर्त्ताओं की सुरक्षा, कानून की पारदर्शिता, जवाबदेही एवं लोकतांत्रिक शासन उद्देश्यों को पुनर्स्थापित करने के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 भारतीय लोकतंत्र के लिये एक ऐतिहासिक मोड़ साबित हुआ, किंतु इसके क्रियान्वयन में अनेक चुनौतियाँ विद्यमान हैं। इसके प्रदर्शन को बाधित करने वाली प्रमुख सीमाओं की आलोचनात्मक समीक्षा कीजिये और सुधारात्मक उपाय सुझाइये। |
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
1. सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 क्या है?
सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 नागरिकों को सार्वजनिक प्राधिकरणों के पास उपलब्ध जानकारी तक पहुँचने का अधिकार प्रदान करता है, जिससे पारदर्शिता, जवाबदेही और सुशासन को प्रोत्साहन मिलता है।
2. सूचना आयोगियों पर सूचना का अधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2019 का प्रभाव कैसे पड़ा?
वर्ष 2019 के संशोधन ने केंद्रीय सरकार को आयोगियों की अवधि, वेतन और सेवा शर्तें निर्धारित करने का अधिकार दिया, जिससे सूचना आयोगियों की स्वायत्तता कम हो गई।
3. डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण (DPDP) अधिनियम, 2023 का सूचना के अधिकार अधिनियम पर क्या प्रभाव पड़ा?
DPDP अधिनियम ने सूचना के अधिकार अधिनियम की धारा 8(1) में संशोधन किया, जिससे सभी व्यक्तिगत जानकारी को प्रकटीकरण से छूट मिल गई, जो सार्वजनिक अधिकारियों के कार्यों की पारदर्शिता को सीमित कर सकता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न
मेन्स
प्रश्न. "सूचना का अधिकार अधिनियम केवल नागरिकों के सशक्तीकरण के बारे में ही नहीं है, अपितु यह आवश्यक रूप से जवाबदेही की संकल्पना को पुनःपरिभाषित करता है।" विवेचना कीजिये। (2018)
कौशल विकास के माध्यम से किसानों को सशक्त बनाना
चर्चा में क्यों?
भारत की दो-तिहाई आबादी कृषि पर निर्भर है, इसलिये कौशल विकास के माध्यम से किसानों को सशक्त बनाना एक प्राथमिकता बन गई है। सरकार किसानों की उत्पादकता बढ़ाने और सतत् वृद्धि सुनिश्चित करने के लिये कौशल विकास को प्राथमिकता दे रही है।
कृषि कौशल विकास पर केंद्रित प्रमुख पहल क्या हैं?
- किसान प्रशिक्षण के लिये संस्थागत मंच:
- कृषि विज्ञान केंद्र (KVKs): ICAR द्वारा स्थापित ज़िला स्तरीय KVK व्यावहारिक प्रशिक्षण प्रदान कर रहे हैं; 58.02 लाख किसानों को प्रशिक्षित किया गया (वर्ष 2021-2024) और फरवरी 2025 तक 18.56 लाख किसानों को प्रशिक्षित किया गया।
- कृषि प्रौद्योगिकी प्रबंधन एजेंसी (ATMA): ATMA विकेंद्रीकृत विस्तार सुधारों को बढ़ावा देता है; राज्य के नेतृत्व वाले प्रशिक्षण, प्रदर्शनों और प्रदर्शन यात्राओं के माध्यम से 1.27 करोड़ किसानों (वर्ष 2021-2025) को प्रशिक्षित किया गया।
- ग्रामीण युवाओं को कौशल प्रदान करना और मशीनीकरण को बढ़ावा देना:
- ग्रामीण युवाओं का कौशल प्रशिक्षण (STRY): संबद्ध क्षेत्रों में अल्पकालिक व्यावसायिक प्रशिक्षण प्रदान करता है; 43,000 युवाओं को प्रशिक्षित किया गया (वर्ष 2021-2024), कुशल ग्रामीण जनशक्ति का निर्माण किया गया।
- कृषि मशीनीकरण पर उप-मिशन (SMAM): SMAM कृषि मशीनीकरण और कस्टम हायरिंग सेवाओं को बढ़ावा देता है; 57,139 किसानों को प्रशिक्षित किया गया (वर्ष 2021-2025)।
- मृदा, संसाधन और मूल्य शृंखलाओं पर ज्ञान को सुदृढ़ बनाना:
- मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना: जुलाई 2025 तक 25.17 करोड़ कार्ड वितरित किये गए; 93,000 से अधिक प्रशिक्षण सत्र और 6.8 लाख प्रदर्शन आयोजित किये गए, जिससे संतुलित पोषक तत्त्व प्रबंधन को प्रोत्साहन मिला।
- किसान उत्पादक संगठन (FPOs): 10,000 से अधिक पंजीकृत, कृषि-व्यवसाय, बाज़ार संपर्क और e-NAM एवं GeM जैसे डिजिटल प्लेटफॉर्मों के उपयोग पर प्रशिक्षण प्रदान किया गया।
- क्षेत्र-विशेष कौशल विकास पहलें:
- प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY 4.0) बड़े पैमाने पर कृषि कौशल प्रशिक्षण और प्रमाणन के माध्यम से किसानों की रोज़गार क्षमता बढ़ाती है।
- यह योजना कृषि कौशल को एकीकृत करती है, वर्ष 2015 से अब तक 1.64 करोड़ व्यक्तियों को प्रशिक्षण प्रदान किया गया और 1.29 करोड़ व्यक्तियों को प्रामाणित किया गया है।
- एकीकृत बागवानी विकास मिशन (MIDH) बेहतर उत्पादकता और आय के लिये वैज्ञानिक बागवानी प्रथाओं को बढ़ावा देता है।
- इस मिशन के तहत वर्ष 2014–2024 तक 9.73 लाख किसानों को बागवानी पद्धतियों में प्रशिक्षण दिया गया।
- राष्ट्रीय गोकुल मिशन (RGM) प्रजनन और कृत्रिम गर्भाधान में प्रशिक्षण के माध्यम से पशुधन की गुणवत्ता सुधारने पर केंद्रित है।
- इस मिशन के तहत 38,736 तकनीशियनों को कृत्रिम गर्भाधान और पशुपालन में प्रशिक्षण दिया गया।
- प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना (PMKSY) किसानों की आय बढ़ाने और नुकसान कम करने के लिये कृषि प्रसंस्करण क्षेत्र को सुदृढ़ बनाती है।
- इस योजना के तहत 1,601 कृषि प्रसंस्करण परियोजनाएँ स्वीकृत की गईं, जिससे 34 लाख किसानों को लाभ हुआ।
- प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY 4.0) बड़े पैमाने पर कृषि कौशल प्रशिक्षण और प्रमाणन के माध्यम से किसानों की रोज़गार क्षमता बढ़ाती है।
और पढ़े: किसानों की आय बढ़ाने हेतु 7 नई योजनाएँ |
कृषि संबंधी निष्कर्ष (आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25)
- कृषि विकास: कृषि क्षेत्र ने वर्ष 2016-23 के बीच प्रतिवर्ष 5% की वृद्धि दर्ज की, जबकि सकल मूल्य संवर्द्धन (GVA) में इसका हिस्सा 24.38% (2014-15) से बढ़कर 30.23% (2022-23) हो गया।
- पिछले दशक में कृषि आय प्रतिवर्ष 5.23% की दर से बढ़ी है।
- क्षेत्रीय प्रदर्शन: वर्ष 2013-14 से 2022-23 के बीच मत्स्यन क्षेत्र की वृद्धि दर सबसे अधिक रही (13.67%), इसके बाद पशुपालन (12.99%) रहा, जबकि तिलहन क्षेत्र में (1.9%) की धीमी वृद्धि हुई।
- सिंचाई कवरेज: यह सकल फसल क्षेत्र (GCA) के 49.3% (2015-16) से बढ़कर 55% (2020-21) हो गया, जबकि सिंचाई तीव्रता 144.2% से बढ़कर 154.5% हो गई।
- पंजाब (98%), हरियाणा (94%), उत्तर प्रदेश (84%) और तेलंगाना (86%) में सिंचाई कवरेज उच्च है, जबकि झारखंड एवं असम में यह 20% से कम है।
- GCA एक कृषि वर्ष में खेती की जाने वाली कुल भूमि है, जिसमें एक ही भूमि पर कई फसल चक्र शामिल हैं।
- पंजाब (98%), हरियाणा (94%), उत्तर प्रदेश (84%) और तेलंगाना (86%) में सिंचाई कवरेज उच्च है, जबकि झारखंड एवं असम में यह 20% से कम है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: कौशल विकास और प्रशिक्षण के माध्यम से किसानों को सशक्त बनाना भारतीय कृषि को जीविकोपार्जन आधारित से उद्यम-प्रधान विकास की दिशा में बदलने के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। चर्चा कीजिये। |
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
प्रश्न 1. मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना क्या है?
इसमें किसानों को फसल उत्पादकता और मृदा उर्वरता में सुधार के लिये विस्तृत मृदा पोषक तत्त्व स्थिति रिपोर्ट एवं उर्वरक सुझाव प्रदान किया जाता है।
प्रश्न 2. भारत में कृषि कौशल विकास के लिये प्रमुख संस्थागत मंच और योजनाएँ कौन-सी हैं?
VKS (ग्राम ज्ञान केंद्र), ATMA (कृषि प्रौद्योगिकी प्रबंधन एजेंसी), PMKVY 4.0 (प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना 4.0) और PMKSY- आधुनिक कृषि तथा कृषि-उद्यमिता में लाखों लोगों को प्रशिक्षण प्रदान करने वाली प्रमुख योजनाएँ हैं।
प्रश्न 3. मशीनीकरण और ग्रामीण कौशल विकास से कृषकों तथा युवाओं के लिये कौन-से अवसरों का सृजन होता है?
SMAM (कृषि मशीनीकरण पर उप-मिशन) और STRY (ग्रामीण युवाओं का कौशल प्रशिक्षण) मशीनीकरण तथा व्यावसायिक कौशल को बढ़ावा देते हैं, जिससे ग्रामीण रोज़गार एवं उत्पादकता में वृद्धि संभव होती है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न
प्रिलिम्स:
प्रश्न. जलवायु-अनुकूल कृषि (क्लाइमेट-स्मार्ट एग्रीकल्चर) के लिये भारत की तैयारी के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2021)
- भारत में 'जलवायु-स्मार्ट ग्राम (क्लाइमेट-स्मार्ट विलेज)' दृष्टिकोण, अंतर्राष्ट्रीय अनुसंधान कार्यक्रम-जलवायु परिवर्तन, कृषि एवं खाद्य सुरक्षा (CCAFS) द्वारा संचालित परियोजना का एक भाग है।
- CCAFS परियोजना, अंतर्राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान हेतु परामर्शदात्री समूह (CGIAR) के अधीन संचालित किया जाता है, जिसका मुख्यालय फ्राँस में है।
- भारत में स्थित अंतर्राष्ट्रीय अर्द्धशुष्क उष्णकटिबंधीय फसल अनुसंधान संस्थान (ICRISAT), CGIAR के अनुसंधान केंद्रों में से एक है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं?
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (d)
प्रश्न. भारत में, निम्नलिखित में से किन्हें कृषि में सार्वजनिक निवेश माना जा सकता है? (2020)
- सभी फसलों के कृषि उत्पाद के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारित करना
- प्राथमिक कृषि साख समितियों का कंप्यूटरीकरण
- सामाजिक पूंजी विकास
- कृषकों को निशुल्क बिजली की आपूर्ति
- बैंकिंग प्रणाली द्वारा कृषि ऋण की माफी
- सरकारों द्वारा शीतागार सुविधाओं को स्थापित करना
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:
(a) केवल 1,2 और 5
(b) केवल 1,3, 4 और 5
(c) केवल 2, 3 और 6
(d) 1, 2, 3, 4, 5 और 6
उत्तर: (c)
मेन्स:
प्रश्न. भारतीय कृषि की प्रकृति की अनिश्चितताओं पर निर्भरता के मद्देनज़र, फसल बीमा की आवश्यकता की विवेचना कीजिये और प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) की मुख्य विशेषताओं का उल्लेख कीजिये। (2016)
प्रश्न. भारत में स्वतंत्रता के बाद कृषि क्षेत्र में हुई विभिन्न प्रकार की क्रांतियों की व्याख्या कीजिये। इन क्रांतियों ने भारत में गरीबी उन्मूलन और खाद्य सुरक्षा में किस प्रकार मदद की है? (2017)
भारत के निजी पूंजीगत व्यय का पुनर्निर्देशन
चर्चा में क्यों?
बढ़ते वैश्विक टैरिफ और अस्थिर बाह्य मांग आर्थिक स्थिरता के लिये घरेलू बाज़ारों को प्राथमिकता देने की आवश्यकता को रेखांकित करती है, जिससे भारतीय निजी क्षेत्र के पूंजीगत व्यय (Capex) पर ध्यान केंद्रित हो जाता है।
पूंजीगत व्यय (Capex)
- परिचय: कैपेक्स (Capital Expenditure) का आशय ऐसी धनराशि से है जो भौतिक परिसंपत्तियों- जैसे संपत्ति, उपकरण या प्रौद्योगिकी- अर्जित करने, उन्नत करने या बनाए रखने पर व्यय की जाती है। यह दीर्घकालिक निवेश होता है, जिसे परिसंपत्ति के रूप में दर्ज किया जाता है और समय के साथ मूल्यह्रास (Depreciates) के अधीन होता है। उदाहरणों में मशीनरी की खरीद और सुविधाओं का आधुनिकीकरण शामिल हैं।
- परिचालन व्यय (Opex), जो व्यवसाय के दैनिक संचालन लागतों को दर्शाता है, के विपरीत कैपेक्स उन महत्त्वपूर्ण निवेशों को कहते हैं जो दीर्घकालिक लाभ प्राप्त करने के उद्देश्य से किये जाते हैं।
- भारत सरकार अपने वार्षिक बजट के माध्यम से पूंजीगत व्यय का आवंटन करती है, जिसे वित्त मंत्री प्रस्तुत करते हैं।
- वित्त वर्ष 2025-26 के लिये GDP के 3.1% के अनुरूप ₹11.21 लाख करोड़ के पूंजीगत व्यय का प्रावधान किया गया है।
- महत्त्व: कैपेक्स उच्च गुणक प्रभाव के कारण आर्थिक वृद्धि में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह सहायक उद्योगों को प्रोत्साहित करता है, रोज़गार सृजित करता है तथा श्रम उत्पादकता को बढ़ाता है।
- एक प्रतिचक्रीय राजकोषीय साधन के रूप में, कैपेक्स अर्थव्यवस्था को स्थिर करता है तथा परिसंपत्ति सृजन के माध्यम से दीर्घकालिक राजस्व सृजन का समर्थन करता है।
- यह ऋण चुकौती द्वारा देनदारियों को घटाने में भी सहायक होता है तथा निजी निवेश को उत्प्रेरित कर सतत् आर्थिक विकास के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
भारत में घरेलू पूंजीगत व्यय का विकास
- उदारीकरण-पूर्व: अंतर्मुखी नीतियों और संरक्षित घरेलू बाज़ारों के तहत व्यवसाय बढ़ रहे थे एवं असाधारण लाभ अर्जित रहे थे।
- उदारीकरण के बाद (1990 का दशक): संचित धन ने भारतीय कंपनियों को वैश्विक स्तर पर विस्तार करने, विदेशी संस्थाओं का अधिग्रहण करने तथा बहुराष्ट्रीय परिचालन स्थापित करने में सक्षम बनाया।
- वर्तमान संदर्भ: बढ़ती टैरिफ बाधाओं के कारण बाह्य मांग में आने वाले गतिरोध, आर्थिक विकास को बनाए रखने के लिये सरकार-व्यापार सहयोग को और अधिक बढ़ाने के लिये प्रेरित कर रहे हैं, क्योंकि मौजूदा सार्वजनिक निवेश तथा नीतिगत सुधार अपर्याप्त साबित हो रहे हैं।
भारत में निजी क्षेत्र के पूंजीगत व्यय के रुझान क्या हैं?
- पूंजीगत व्यय में समग्र वृद्धि: वित्त वर्ष 2021-22 और वित्त वर्ष 2024-25 के बीच निजी क्षेत्र के पूंजीगत व्यय (Capex) में 66.3% की वृद्धि हुई, लेकिन वित्त वर्ष 2025-26 में इसमें 25.5% की गिरावट आने की उम्मीद है।
- निवेश की प्रकृति: वित्त वर्ष 2025 में लगभग 49.6% उद्यमों ने आय सृजन के लिये, 30.1% ने उन्नयन के लिये और 2.8% ने विविधीकरण के लिये निवेश किया।
- क्षेत्रीय वितरण: विनिर्माण क्षेत्र की हिस्सेदारी सबसे अधिक 43.8% रही, इसके बाद सूचना एवं संचार की हिस्सेदारी 15.6% तथा परिवहन एवं भंडारण की हिस्सेदारी 14% रही।
- सकल अचल संपत्तियों (GFA) में वृद्धि: निजी कॉर्पोरेट क्षेत्र में प्रति उद्यम औसत सकल अचल संपत्ति (GFA) वर्ष 2022-23 और वर्ष 2023-24 के बीच 27.5% बढ़ी।
भारत के विकास को बनाए रखने में घरेलू पूंजीगत व्यय क्या भूमिका हो सकती है?
- निजी निवेश का अभिवर्द्धन: भारत का बाह्य प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) 12.6% चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) से बढ़ रहा है, जो वैश्विक औसत (3.9%) से कहीं अधिक है। ऐसे में, भारतीय कंपनियाँ घरेलू अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बनाने के लिये घरेलू अवसरों में अधिक निवेश कर सकती हैं।
- भारतीय कंपनियों को अपने रिकॉर्ड स्तर के उच्च कॉर्पोरेट लाभ का उपयोग निजी निवेश और पूँजीगत व्यय बढ़ाने के लिये करना चाहिये, जो सरकारी प्रोत्साहनों के अनुरूप हो।
- पारिश्रमिक में मध्यम वृद्धि का सुनिश्चय: भारतीय व्यवसायों में आय असमानता का निवारण करने के लिये 15 वर्षों के उच्चतम कॉर्पोरेट लाभ (2023-24) के बावजूद स्थिर पारिश्रमिक का समाधान करने की क्षमता है।
- चूँकि वास्तविक पारिश्रमिक वृद्धि 7% (वित्त वर्ष 2025) से घटकर 6.5% (वित्त वर्ष 2026) होने का अनुमान है, इसलिये कंपनियों को एक सकारात्मक विकास चक्र को बनाए रखने के लिये औपचारिक क्षेत्रों, विशेष रूप से विनिर्माण क्षेत्र में, संविदाकरण को कम करने और श्रमिकों को सशक्त बनाने की आवश्यकता है।
- अनुसंधान एवं विकास में निवेश: भारतीय कंपनियों को अपने अनुसंधान एवं विकास (R&D) व्यय में वृद्धि करनी चाहिये, जो वर्तमान में सकल घरेलू उत्पाद का केवल 0.64% है, जबकि चीन में यह 2.1% है।
- निजी क्षेत्र का कुल अनुसंधान एवं विकास में केवल 36% का योगदान है- जो अमेरिका, चीन और दक्षिण कोरिया के लगभग 70% से काफी कम है- इसलिये कंपनियों को अल्पकालिक रिटर्न पर ध्यान केंद्रित न कर मूलभूत अनुसंधान पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये, जो दीर्घकालिक उत्पादकता लाभ के लिये आवश्यक है।
निजी क्षेत्र के पूंजीगत व्यय को कैसे बढ़ाया जा सकता है?
- संस्थागत तंत्र और ऋण समर्थन को सशक्त बनाना: बड़े निजी निवेशों के लिये त्वरित अनुमोदन सुनिश्चित करने हेतु प्रोजेक्ट मॉनिटरिंग ग्रुप (PMG) का पुनर्गठन किया जाए।
- MSME के लिये आपातकालीन क्रेडिट लाइन गारंटी योजना (ECLGS) का विस्तार किया जाए और मध्यम आकार के निर्माताओं को समान समर्थन प्रदान किया जाए।
- प्रारंभिक चरण के औद्योगिक और तकनीकी निवेशों को प्रोत्साहित करने के लिये स्टार्टअप्स के लिये क्रेडिट गारंटी योजना (CGSS) का उपयोग किया जाए।
- उत्पादन आधारित प्रोत्साहन (PLI) योजनाओं का विस्तार: रक्षा निर्माण और प्रिसिजन इंजीनियरिंग जैसे क्षेत्रों के लिये PLI योजनाएँ शुरू की जाएँ।
- निवेशकों का विश्वास बढ़ाने के लिये PLI वितरण में पारदर्शिता और समयबद्धता सुनिश्चित की जाए।
- कर और नियामक ढाँचे में सुधार: मशीनरी और संयंत्र निवेश पर त्वरित मूल्यह्रास लाभ को पुनः पेश किया जाए या बढ़ाया जाए।
- निर्माण क्षेत्र की प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ाने के लिये राष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स नीति (2022) को तेज़ी से लागू किया जाए ताकि लॉजिस्टिक्स लागत कम की जा सके।
- निवेशों का जोखिम कम करना: सड़कों, बिजली और रेलवे जैसे क्षेत्रों में निजी पूंजी आकर्षित करने एवं जोखिम साझा करने के लिये इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट (InvIT) तथा रियल एस्टेट इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट (REIT) को बढ़ावा दिया जाए।
निष्कर्ष
भारत की विकास गति बनाए रखने के लिये घरेलू पूंजी का निवेश बढ़ाने, उचित वेतन सुनिश्चित करने और अनुसंधान एवं विकास (R&D) को सुदृढ़ करने हेतु प्रयोग किया जाना चाहिये, ताकि वैश्विक अनिश्चितताओं के बीच एक सशक्त, आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था के राष्ट्रीय हितों के अनुरूप वृद्धि सुनिश्चित की जा सके।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. घरेलू मांग में निरंतर वृद्धि भारत की आर्थिक सुदृढ़ता के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। इस मांग को प्रोत्साहित करने में भारतीय व्यवसायों की भूमिका का विश्लेषण कीजिये। |
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
1. वर्तमान में भारत में घरेलू निजी निवेश बढ़ाने की आवश्यकता क्यों है?
रिकॉर्ड-उच्च कॉर्पोरेट मुनाफे और सरकारी प्रोत्साहनों के बावजूद, निजी पूंजीगत व्यय (capex) कमज़ोर बना हुआ है, जबकि बाहरी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) वैश्विक औसत से कहीं अधिक तेज़ी से बढ़ रहा है।
2. भारत की अनुसंधान एवं विकास (R&D) पारिस्थितिकी में मुख्य चुनौती क्या है?
भारत का सकल R&D व्यय केवल GDP का 0.64% है और निजी क्षेत्र का योगदान मात्र 36% है, जो प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के मुकाबले बहुत कम है। इसके अलावा, इसमें दीर्घकालिक आधारभूत अनुसंधान के बजाय अल्पकालिक रिटर्न पर अधिक ध्यान दिया जाता है।
3. भारत की अर्थव्यवस्था के लिये मध्यम वेतन वृद्धि सुनिश्चित करना क्यों महत्त्वपूर्ण है?
वेतन वृद्धि खपत और समग्र मांग को बनाए रखती है; वर्ष 2023–24 में कॉर्पोरेट मुनाफा 15 वर्ष के उच्चतम स्तर पर पहुँचा, जबकि वास्तविक वेतन वृद्धि FY25 में 7% से गिरकर FY26 में 6.5% होने का अनुमान है, जिससे घरेलू मांग कमज़ोर होने का जोखिम बढ़ सकता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न
प्रिलिम्स:
प्रश्न. निरपेक्ष तथा प्रति व्यक्ति वास्तविक GNP की वृद्धि आर्थिक विकास की ऊँची दर का संकेत नहीं करतीं, यदि (2018)
(a) औद्योगिक उत्पादन कृषि उत्पादन के साथ-साथ बढ़ने में विफल रह जाता है।
(b) कृषि उत्पादन औद्योगिक उत्पादन के साथ-साथ बढ़ने में विफल रह जाता है।
(c) निर्धनता और बेरोज़गारी में वृद्धि होती है।
(d) निर्यातों की अपेक्षा आयात तेज़ी से बढ़ते हैं।
उत्तर: (c)
मेन्स
प्रश्न. "सुधारोत्तर अवधि में सकल-घरेलू-उत्पाद (GDP) की समग्र संवृद्धि में औद्योगिक संवृद्धि दर पिछड़ती गई है।" कारण बताइये। औद्योगिक-नीति में हाल में किये गए परिवर्तन औद्योगिक संवृद्धि दर को बढ़ाने में कहाँ तक सक्षम हैं? (2017)