डेली न्यूज़ (29 Jun, 2022)



अंतर्राष्ट्रीय एमएसएमई दिवस

प्रिलिम्स के लिये:

एमएसएमई, एमएसएमई दिवस और महत्त्व, एमएसएमई को बढ़ावा देने के प्रयास।

मेन्स के लिये:

भारतीय अर्थव्यवस्था के लिये एमएसएमई का महत्त्व।

चर्चा में क्यों?

हर साल 27 जून को अंतर्राष्ट्रीय एमएसएमई दिवस मनाया जाता है, इसका आयोजन विश्व भर में MSME के महत्त्व को उजागर करने तथा देश की अर्थव्यवस्था में इसके योगदान के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिये किया जाता है।

प्रमुख बिंदु

  • इतिहास:
    • अप्रैल 2017 में संयुक्त राष्ट्र (United Nations- UN) ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में पारित एक प्रस्ताव के माध्यम से 27 जून को सूक्ष्म, लघु और मध्यम आकार के उद्यम दिवस के रूप में नामित किया।
    • मई 2017 में ‘एनहेनसिंग नेशनल केपेसिटीज़ फॉर अनलेशिंग फुल पोटेंशियल्स ऑफ एमएसएमई इन अचीविंग द एसडीजीज़ इन डेवलपिंग कंट्रीज़' (Enhancing National Capacities for Unleashing Full Potentials of MSMEs in Achieving the SDGs in Developing Countries') नामक एक कार्यक्रम शुरू किया गया।
    • इसे संयुक्त राष्ट्र शांति और विकास कोष (United Nations Peace and Development Fund) के सतत् विकास उप-निधि के लिये 2030 एजेंडा द्वारा वित्तपोषित किया गया है।
  • वर्ष 2022 के लिये थीम: ‘लचीलापन और पुनर्निर्माण: सतत् विकास के लिये एमएसएमई’ (Resilience and Rebuilding: MSMEs for Sustainable Development)।
    • थीम मुख्य रूप से इस बात पर प्रकाश डालती है कि किसी देश के सामाजिक-आर्थिक विकास के लिये सूक्ष्म-लघु और मध्यम आकार के उद्यम एक आवश्यक घटक हैं।
  • उद्देश्य:
    • विश्व MSME दिवस 2022 वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं को मज़बूत करने में MSMEs की क्षमता और उनकी भूमिका को मान्यता प्रदान करता है।
    • इसका उद्देश्य विश्व आर्थिक विकास और सतत् विकास में MSMEs के योगदान के बारे में सार्वजनिक जागरूकता बढ़ाना भी है।
  • महत्व:
    • संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, औपचारिक और अनौपचारिक सभी फर्मों में MSMEs की भागीदारी 90% से अधिक है तथा कुल रोज़गार में औसतन 70% एवं सकल घरेलू उत्पाद में 50% हिस्सेदारी है। देश की अर्थव्यवस्था में इतने महत्त्वपूर्ण योगदान के साथ MSMEs रोज़गार- सृजन, नवाचार और उत्पादकता में वृद्धि के लिये आवश्यक हैं।
    • हालांँकि रोज़गार सृजन में एक प्रमुख भूमिका होने के बावज़ूद दुनिया भर में MSMEs को सरकारों और प्रशासन से समर्थन की कमी के अलावा काम करने की स्थिति, उत्पादकता तथा अनौपचारिकता में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
    • विश्व MSME दिवस ऐसे उद्यमों के क्षमता विस्तार और वैश्विक अर्थव्यवस्था की मज़बूती हेतु इसका उपयोग बढ़ाने के लिये मनाया जाता है।

सूक्ष्म-लघु और मध्यम आकार के उद्यम:

  • परिचय:
    • सूक्ष्म-लघु और मध्यम आकार के उद्यम ऐसे संगठन हैं जो आमतौर पर 250 से अधिक कर्मचारियों को रोज़गार नहीं देते हैं, हालांँकि वैश्विक स्तर पर यह क्षेत्र दो-तिहाई से अधिक रोज़गार सृज़न करने के लिये ज़िम्मेदार हैं।
Revised MSME Classification
Composite Criteria : Investment and Annual Turnover
Classification Micro Small Medium
Manufacturing & Services Investment < Rs 1 cr
and
Turnover < Rs 5 cr
Investment < Rs 10 cr
and
Turnover < Rs 50 cr
Investment < Rs 20 cr
and
Turnover < Rs 100 cr
  • भारतीय अर्थव्यवस्था में MSME की भूमिका:
    • वे भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास को गति प्रदान करते हैं, देश के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में लगभग 30% का योगदान देते हैं।
    • निर्यात के संदर्भ में वे आपूर्ति शृंखला का एक अभिन्न अंग हैं और कुल निर्यात में लगभग 48% का योगदान करते हैं।
    • MSME रोज़गार सृजन में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, क्योंकि वे देश भर में लगभग 110 मिलियन लोगों को रोज़गार देते हैं।
      • दिलचस्प बात यह है कि MSME ग्रामीण अर्थव्यवस्था से भी जुड़े हुए हैं, क्योंकि आधे से अधिक MSME ग्रामीण भारत में कार्यरत हैं।

MSME क्षेत्र से संबंधित पहलें:

  • सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय खादी, ग्राम एवं जूट उद्योगों सहित MSME क्षेत्र के वृद्धि और विकास को बढ़ावा देकर एक जीवंत MSME क्षेत्र की कल्पना करता है।
  • सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम विकास अधिनियम को वर्ष 2006 में MSME को प्रभावित करने वाले नीतिगत मुद्दों के साथ-साथ क्षेत्र की कवरेज और निवेश सीमा को संबोधित करने के लिये अधिसूचित किया गया था।
  • प्रधानमंत्री रोज़गार सृजन कार्यक्रम (PMEGP): यह नए सूक्ष्म उद्यमों की स्थापना तथा देश के ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में रोज़गार के अवसर पैदा करने के लिये एक क्रेडिट लिंक्ड सब्सिडी योजना है।
  • पारंपरिक उद्योगों के उत्थान के लिये निधि की योजना (SFURTI): इसका उद्देश्य कारीगरों और पारंपरिक उद्योगों को समूहों में व्यवस्थित करना तथा इस प्रकार उन्हें वर्तमान बाज़ार परिदृश्य में प्रतिस्पर्द्धी बनाने के लिये वित्तीय सहायता प्रदान करना है।
  • नवाचार, ग्रामीण उद्योग और उद्यमिता को बढ़ावा देने हेतु योजना (ASPIRE): यह योजना 'कृषि आधारित उद्योग में स्टार्टअप के लिये फंड ऑफ फंड्स', ग्रामीण आजीविका बिज़नेस इनक्यूबेटर (LBI), प्रौद्योगिकी व्यवसाय इनक्यूबेटर (TBI) के माध्यम से नवाचार और ग्रामीण उद्यमिता को बढ़ावा देती है।
  • MSME को वृद्धिशील ऋण प्रदान करने के लिये ब्याज सबवेंशन योजना: यह भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा शुरू की गई थी, जिसमें सभी एमएसएमई को उनकी वैधता की अवधि के दौरान उनके बकाया, वर्तमान/वृद्धिशील सावधि ऋण/कार्यशील पूंजी पर 2% तक की राहत प्रदान की जाती है।
  • सूक्ष्म और लघु उद्यमों के लिये क्रेडिट गारंटी योजना: ऋण के आसान प्रवाह की सुविधा के लिये शुरू की गई इस योजना के अंतर्गत MSME को दिये गए संपार्श्विक मुक्त ऋण हेतु गारंटी कवर प्रदान किया जाता है।
  • सूक्ष्म और लघु उद्यम क्लस्टर विकास कार्यक्रम (MSE-CDP): इसका उद्देश्य MSME की उत्पादकता एवं प्रतिस्पर्द्धात्मकता के साथ-साथ क्षमता निर्माण को बढ़ाना है।
  • क्रेडिट लिंक्ड कैपिटल सब्सिडी और टेक्नोलॉजी अपग्रेडेशन स्कीम (CLCS-TUS): इसका उद्देश्य संयंत्र और मशीनरी की खरीद के लिये 15% पूंजी सब्सिडी प्रदान करके सूक्ष्म और लघु उद्यमों (MSME) को प्रौद्योगिकी उन्नयन की सुविधा प्रदान करना है।
  • CHAMPIONS पोर्टल: इसका उद्देश्य भारतीय MSME को उनकी शिकायतों को हल करके और उन्हें प्रोत्साहन, समर्थन प्रदान कर राष्ट्रीय एवं वैश्विक चैंपियन के रूप में स्थापित होने में सहायता करना है।
  • MSME समाधान: यह केंद्रीय मंत्रालयों/विभागों/सीपीएसई/राज्य सरकारों द्वारा विलंबित भुगतान के बारे में सीधे मामले दर्ज करने में सक्षम बनाता है।
  • उद्यम पंजीकरण पोर्टल: यह नया पोर्टल देश में MSME की संख्या पर डेटा एकत्र करने में सरकार की सहायता करता है।
  • एमएसएमई संबंध: यह एक सार्वजनिक खरीद पोर्टल है। इसे केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों द्वारा MSME से सार्वजनिक खरीद के कार्यान्वयन की निगरानी के लिये शुरू किया गया था।

स्रोत: द हिंदू


नाइजीरिया में उच्च श्रेणी के लिथियम की खोज

प्रिलिम्स के लिये:

उच्च श्रेणी के लिथियम, स्पोड्यूमिन और लेपिडोलाइट, इलेक्ट्रिक वाहन

मेन्स के लिये:

भारत में लिथियम, लिथियम के अनुप्रयोग, लिथियम के आयात को कम करने के लिये भारत द्वारा उठाए गए कदम

चर्चा में क्यों?

हाल ही में नाइजीरिया में उच्च श्रेणी के लिथियम की खोज की गई है।

  • पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया में ग्रीनबुश खदान विश्व की सबसे बड़ी हार्ड-रॉक लिथियम खदान है।
  • लिथियम के सबसे बड़े आयातक दक्षिण कोरिया, चीन, जापान, अमेरिका और बेल्जियम हैं।

लिथियम:

  • परिचय:
    • लिथियम एक तत्त्व है और प्रकृति में दो खनिजों, स्पोड्यूमिन एवं लेपिडोलाइट में पर्याप्त रूप में सांद्रित होता है।
    • वे आमतौर पर विशेष चट्टानों में पाए जाते हैं जिन्हें दुर्लभ और ग्रीसेन्स कहा जाता है
    • भूवैज्ञानिक एजेंसी ने लिथियम को उच्च श्रेणी के रूप में वर्णित किया क्योंकि यह 1-13% ऑक्साइड सामग्री के साथ पाया जाता है। आमतौर पर अन्वेषण 0.4% के निचले स्तर पर शुरू होता है।
      • श्रेणी/ग्रेड (प्रतिशत में) खनिजों और या चट्टानों (जिसमें यह पाया जाता है) में लिथियम की सांद्रता का माप है।
      • इसलिये श्रेणी जितनी उच्च होगी, आर्थिक व्यवहार्यता उतनी ही अधिक होगी। लिथियम जैसी धातुओं के लिये उच्च ग्रेड बहुत दुर्लभ हैं।
  • अनुप्रयोग:
    • विशेष काँच और चीनी मिट्टी की वस्तुएंँ:
      • लिथियम डिसिलिकेट (Li2Si2O5) एक रासायनिक यौगिक है जिससे काँच और चीनी मिट्टी की वस्तुएँ बनती हैं।
      • इसकी मज़बूती, यांत्रिकता और अर्द्ध-पारदर्शिताा के कारण इसे व्यापक रूप से दंत सिरेमिक के रूप में उपयोग किया जाता है।
    • मिश्र धातु बनाना:
      • लिथियम धातु का प्रयोग उपयोगी मिश्र धातुओं को बनाने के लिये किया जाता है
        • उदाहरणतः मोटर इंजन के 'व्हाइट मेटल' बियरिंग बनाने के लिये लेड के साथ, एयरक्राफ्ट के पुर्जे बनाने के लिये एल्युमीनियम के साथ और आर्मर प्लेट बनाने के लिये मैग्नीशियम के साथ।
    • रिचार्जेबल बैटरी:
      • लिथियम का उपयोग मोबाइल फोन, लैपटॉप, डिजिटल कैमरा और इलेक्ट्रिक वाहनों के लिये रिचार्जेबल बैटरी में किया जाता है। लिथियम का उपयोग कुछ गैर-रिचार्जेबल बैटरियों में हृदय पेसमेकर, खिलौने और घड़ियों जैसी चीज़ों के लिये भी किया जाता है। बैटरी के विभिन्न प्रकार हैं:
        • लिथियम-कोबाल्ट ऑक्साइड बैटरी: इसका उपयोग उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स में किया जाता है और इसे इलेक्ट्रिक वाहनों में लगाया जा रहा है। यह अपेक्षाकृत सस्ती है।
        • लिथियम-निकल-मैंगनीज़-कोबाल्ट: यह बैटरी रसायन विज्ञान की एक नई, उच्च प्रदर्शन करने वाली श्रेणी है। यह मुख्य रूप से इलेक्ट्रॉनिक वाहन बाज़ार के लिये विकसित की गई है, लेकिन इसकी बढ़ती लागत प्रभावशीलता के कारण इसका व्यापक उपयोग हो रहा है।
        • लिथियम आयरन फॉस्फेट: यह अपेक्षाकृत उच्च प्रदर्शन के साथ सबसे सुरक्षित तकनीक है लेकिन अपेक्षाकृत महंगी है। यह चीन में बहुत लोकप्रिय है।
        • लिथियम-निकल-कोबाल्ट-एल्युमीनियम ऑक्साइड: इसे कोबाल्ट की खपत को कम करने के लिये विकसित किया गया है और इसे एक ठोस प्रदर्शनकर्त्ता व उचित लागत के लिये जाना जाता है। यह चीन के बाहर भी लोकप्रिय हो रही है।
  • अत्यधिक मांग:
    • स्वच्छ ऊर्जा के प्रति बढ़ते रुझान के कारण लिथियम की मांग आसमान काफी बढ़ गई है क्योंकि अधिकांश देश जीवाश्म ईंधन को समाप्त करने और शून्य उत्सर्जन वाले इलेक्ट्रिक वाहनों पर स्विच करने की योजना बना रहे हैं।
      • वैश्विक स्तर पर लिथियम का उत्पादन वर्ष 2010 के 28,100 मीट्रिक टन से बढ़कर वर्ष 2019 में 86,000 मीट्रिक टन हो गया है। चुनौती बाज़ार में पर्याप्त लिथियम की आपूर्ति करने की होगी।
  • भारत में लिथियम:
    • परमाणु खनिज निदेशालय (भारत के परमाणु ऊर्जा आयोग के तहत) के शोधकर्त्ताओं ने हालिया सर्वेक्षणों से दक्षिणी कर्नाटक के मांड्या ज़िले में भूमि के एक छोटे से हिस्से में 14,100 टन के लिथियम भंडार की उपस्थिति का अनुमान लगाया है।
      • साथ ही भारत की पहली लीथियम भंडार साइट भी मिली।

लिथियम के आयात को कम करने हेतु भारत द्वारा उठाए गए कदम:

  • भारत ने आयातित लिथियम पर अपनी निर्भरता को कम करने और स्थानीय इलेक्ट्रिक वाहनों (EV) के उद्योग के विकास को गति देने के लिये एक मल्टी-मोडल रणनीति (Multi-Modal strategy) अपनाई है।
  • राज्य द्वारा संचालित खनिज बिदेश इंडिया लिमिटेड (Khanij Bidesh India Ltd- KABIL) विदेशों में लिथियम और कोबाल्ट खदानों के अधिग्रहण के लिये अर्जेंटीना, चिली, ऑस्ट्रेलिया एवं बोलीविया मेंं प्रशासन के साथ मिलकर कार्य कर रही है।
  • इन देशों में लिथियम के समृद्ध भंडार हैं।
  • भारत द्वारा शहरी खनन (Urban Mining) पर भी कार्य किया जा रहा है जहांँ पुनर्नवीनीकरण सामग्री का उपयोग किया जाता है, इससे ताज़ा लिथियम इनपुट पर निर्भरता कम होगी तथा आयात में और कमी आएगी।

विगत वर्षों के प्रश्न:

प्रश्न. निम्नलिखित में से धातुओं का कौन-सा युग्म क्रमशः सबसे हल्की और सबसे भारी धातु का वर्णन करता है? (2008)

(a) लिथियम और पारा
(b) लिथियम और ऑस्मियम
(c) एल्युमीनियम और ऑस्मियम
(d) एल्युमीनियम और पारा

उत्तर: (b)

  • हल्की धातुएँ कम परमाणु भार वाली धातुएँ होती हैं, जबकि भारी तत्त्वों का आमतौर पर उच्च परमाणु भार होता है।
  • ऑस्मियम एक कठोर धत्त्विक तत्त्व है जिसमें सभी ज्ञात तत्त्वों का घनत्व सबसे अधिक होता है। ऑस्मियम का परमाणु भार 190.2 u है और इसका परमाणु क्रमांक 76 है।
  • लिथियम का परमाणु क्रमांक 3 और परमाणु भार 6.941u सबसे हल्का ज्ञात धातु है।
  • अतः विकल्प (b) सही उत्तर है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


राष्ट्रमंडल ने 'लिविंग लैंड्स चार्टर' अपनाया

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रमंडल देश, लिविंग लैंड्स चार्टर।

मेन्स के लिये:

लिविंग लैंड्स चार्टर, संरक्षण।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में राष्ट्रमंडल के सदस्य पारिस्थितिकी तंत्र पुनर्बहाली पर संयुक्त राष्ट्र दशक के लिये निर्धारित रणनीति के अनुरूप अपने-अपने देशों में भविष्य की पीढ़ियों को स्वेच्छा से 'लिविंग लैंड' समर्पित करने हेतु सहमत हुए।

  • किगाली (रवांडा) में राष्ट्रमंडल शासनाध्यक्षों की बैठक (CHOGM) 2022 के समापन पर 'लिविंग लैंड्स चार्टर’ की घोषणा की गई।

पारिस्थितिक तंत्र पुनर्बहाली पर यूएन दशक:

  • संयुक्त राष्ट्र महासभा ने वर्ष 2021–30 के दशक को ‘पारिस्थितिक तंत्र पुनर्बहाली पर यूएन दशक’ घोषित किया।
  • इसका उद्देश्य संयुक्त राष्ट्र के पर्यावरणीय लक्ष्यों को बढ़ावा देना है।
  • विशेष रूप से खराब और नष्ट हो चुके पारिस्थितिक तंत्र की बहाली हेतु वैश्विक सहयोग प्रदान करने के लिये।
  • यह दुनिया भर में पारिस्थितिक तंत्र के संरक्षण और पुनरुद्धार का आह्वान करता है।

लिविंग लैंड्स चार्टर:

  • गैर-बाध्यकारी 'लिविंग लैंड्स चार्टर' (Living Lands Charter) में कहा गया है कि सदस्य देश वैश्विक भूमि संसाधनों की रक्षा करेंगे और जलवायु परिवर्तन, जैवविविधता के ह्रास एवं स्थायी प्रबंधन की दिशा में कार्य करते हुए भूमि क्षरण को रोकेंगे।
  • लिविंग लैंड्स चार्टर वैश्विक औसत तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक रखने के संयुक्त प्रयास को समाहित करने में मदद करता है।
  • चार्टर का उद्देश्य नीतिगत प्रभाव, वित्तपोषण, तकनीकी सहायता, शासन और राष्ट्रों द्वारा ज्ञान साझा कर मिश्रण जलवायु लक्ष्यों को प्राप्त करना है।
    • राष्ट्रमंडल सरकारों को 23 सितंबर, 2022 तक अपने उत्सर्जन में कमी के लक्ष्य को प्रस्तुत करने के लिये कहा गया है।
  • इसका उद्देश्य सदस्य देशों को तीन रियो अभिसमयों- जैव विविधता पर संयुक्त राष्ट्र अभिसमय, मरुस्थलीकरण से निपटने के लिये संयुक्त राष्ट्र अभिसमय (UNCCD) और जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन के तहत अपनी प्रतिबद्धताओं को प्रभावी ढंग से पूरा करने हेतु समर्थन देना है।

CHOGM 2022 के प्रमुख बिंदु:

  • राष्ट्रमंडल शासनाध्यक्षों की बैठक सभी राष्ट्रमंडल देशों के शासनाध्यक्षों की द्विवार्षिक शिखर बैठक है।
  • CHOGM 2022 का आयोजन रवांडा में किया गया था, जिसका विषय था- 'एक सामान्य भविष्य प्रदान करना: कनेक्टिंग, इनोवेटिंग, ट्रांसफॉर्मिंग।'
  • इसने मलेरिया और अन्य उष्णकटिबंधीय रोगों के खिलाफ लड़ाई के लिये प्रतिज्ञा के रूप में 4 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक की राशि जुटाई है।
  • वर्ष 1971 के बाद से 24 CHOGM हुए हैं, नवीनतम बैठक वर्ष 2018 में यूनाइटेड किंगडम (UK) में हुई।

राष्ट्रमंडल:

  • यह उन देशों का अंतर्राष्ट्रीय अंतर-सरकारी संगठन है जो ज़्यादातर पूर्व ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन क्षेत्र थे।
  • इसकी स्थापना 1949 में लंदन घोषणापत्र द्वारा की गई थी।
  • महारानी एलिजाबेथ द्वितीय राष्ट्रमंडल की प्रमुख हैं।
  • अफ्रीका, एशिया, अमेरिका, यूरोप और प्रशांत के कई देश राष्ट्रमंडल में शामिल हैं।
  • वर्तमान में 56 देश इसके सदस्य हैं। सदस्यता स्वतंत्र और समान स्वैच्छिक सहयोग पर आधारित है।
    • CHOGM 2022 में दो अफ्रीकी देशों गैबॉन और टोगो को क्रमशः 55वें और 56वें सदस्य के रूप में राष्ट्रमंडल राष्ट्र में शामिल किया गया है।
  • इसका मुख्यालय लंदन में है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


48वीं G-7 बैठक

प्रिलिम्स के लिये:

G-7, स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकी, इथेनॉल सम्मिश्रण, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश, कम कार्बन प्रौद्योगिकी

मेन्स के लिये:

भारत में स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकी बाज़ार,महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थान

चर्चा में क्यों?

हाल ही में 48वें G-7 शिखर सम्मेलन में भारत के प्रधानमंत्री ने G-7 राष्ट्रों को देश में उभर रही स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकियों के विशाल बाज़ार में निवेश करने के लिये आमंत्रित किया।

  • G-7 की वर्ष 2022 की अध्यक्षता जर्मनी के पास है।
  • जर्मन प्रेसीडेंसी ने अर्जेंटीना, भारत, इंडोनेशिया, सेनेगल और दक्षिण अफ्रीका को G-7 शिखर सम्मेलन में आमंत्रित किया है।

G-7:

  • यह एक अंतर-सरकारी संगठन है, जिसका गठन वर्ष 1975 में किया गया था।
  • वैश्विक आर्थिक शासन, अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा और ऊर्जा नीति जैसे सामान्य हित के मुद्दों पर चर्चा करने के लिये ब्लॉक की वार्षिक बैठक होती है।
  • G-7 देश यूके, कनाडा, फ्राँस, जर्मनी, इटली, जापान और अमेरिका हैं।
  • सभी G-7 देश और भारत G20 का हिस्सा हैं।
  • G-7 का कोई औपचारिक चार्टर या सचिवालय नहीं है। प्रेसीडेंसी जो हर साल सदस्य देशों के बीच आवंटित होती है, एजेंडा तय करने हेतु प्रभारी होती है। शिखर सम्मेलन से पहले शेरपा, मंत्री और दूत नीतिगत पहल करते हैं।
  • समिट वेबसाइट के अनुसार, वर्ष 2022 तक G-7 देश वैश्विक आबादी का 10%, वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का 31% और वैश्विक कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में 21% योगदान देते हैं। चीन एवं भारत, दुनिया के सबसे बड़े सकल घरेलू उत्पाद के आंँकड़ों के साथ दो सबसे अधिक आबादी वाले देश, इस समूह का हिस्सा नहीं हैं।
  • वर्ष 2021 में सभी G-7 देशों में सार्वजनिक क्षेत्र का वार्षिक व्यय, राजस्व से अधिक था। अधिकांश G-7 देशों में भी उच्च स्तर का सकल ऋण था, विशेष रूप से जापान (जीडीपी का 263%), इटली (151%) और अमेरिका (133%)।
  • G-7 देश वैश्विक व्यापार में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करते हैं। विशेष रूप से अमेरिका और जर्मनी प्रमुख निर्यातक देश हैं। वर्ष 2021 में दोनों देशों द्वारा विदेशों में एक ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक की वस्तुओं का निर्यात किया गया।

G-7 शिखर सम्मेलन की अन्य मुख्य विशेषताएंँ:

  • पीजीआईआई (PGII):
    • विकासशील और मध्यम आय वाले देशों को "गेम-चेंजिंग" और "पारदर्शी" बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं को वितरित करने हेतु G-7 ने पार्टनरशिप फॉर ग्लोबल इन्फ्रास्ट्रक्चर एंड इन्वेस्टमेंट (Partnership for Global Infrastructure and Investment-PGII) के तहत सालाना सामूहिक रूप से वर्ष 2027 तक 600 बिलियन डॉलर जुटाने की घोषणा की।
  • लाइफ कैंपेन:
    • भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा ग्लोबल इनिशिएटिव फॉर लाइफ (लाइफस्टाइल फॉर एन्वायरनमेंट) अभियान/कैम्पैन पर प्रकाश डाला गया।
      • इस अभियान का लक्ष्य पर्यावरण अनुकूल जीवनशैली को प्रोत्साहित करना है।
  • रूस-यूक्रेन संकट पर रुख:
    • रूस-यूक्रेन संकट के चलते ऊर्जा की कीमतें रिकॉर्ड स्तर तक बढ़ गई हैं। भारतीय प्रधानमंत्री ने अमीर और गरीब देशों की आबादी के बीच समान ऊर्जा वितरण की आवश्यकता को संबोधित किया।
    • रूस-यूक्रेन युद्ध पर प्रधानमंत्री ने अपना रुख दोहराया कि शत्रुता का तत्काल अंत होना चाहिये और बातचीत एवं कूटनीति का रास्ता चुनकर एक संकल्प पर पहुंँचा जाना चाहिये।

स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकी:

  • परिचय:
    • यह किसी भी प्रक्रिया, उत्पाद या सेवा को संदर्भित करता है जो महत्त्वपूर्ण ऊर्जा दक्षता सुधार, संसाधनों के सतत् उपयोग या पर्यावरण संरक्षण गतिविधियों के माध्यम से नकारात्मक पर्यावरणीय प्रभावों को कम करता है।
    • स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकियांँ ऊर्जा मांग की आपूर्ति को बढ़ाकर और पर्यावरणीय चुनौतियों एवं ऊर्जा के अन्य पारंपरिक स्रोतों के उपयोग के चलते उनके प्रभावों से निपटने के साथ आर्थिक विकास को भी सहन करती हैं।
    • स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकियांँ ऊर्जा कीमांग की आपूर्ति को बढ़ाकर और ऊर्जा के अन्य पारंपरिक स्रोतों के उपयोग के कारण पर्यावरणीय चुनौतियों एवं उनके प्रभावों से निपटने के साथ आर्थिक विकास को भी सहन करती हैं।
    • स्वच्छ प्रौद्योगिकी में पुनर्चक्रण, नवीकरणीय ऊर्जा (पवन ऊर्जा, सौर ऊर्जा, बायोमास, जल विद्युत, भूतापीय, जैव ईंधन, आदि), सूचना प्रौद्योगिकी, हरित परिवहन, इलेक्ट्रिक मोटर्स, हरित रसायन, विद्युत, ग्रेवाटर, आदि से संबंधित प्रौद्योगिकी की एक विस्तृत श्रृंखला शामिल है।
  • भारत में स्वच्छ प्रौद्योगिकी के लिये उभरता बाज़ार:
    • सरकारी विनियम:
      • अधिक सक्रिय मीडिया और पर्यावरण के प्रति लोगों में जागरूकता के साथ भारत अपनी सभी विकास रणनीतियों में पर्यावरण समर्थक रुख अपनाने की ओर अग्रसर है।
    • नवीन और स्वच्छ प्रौद्योगिकियों को अपनाना:
      • नवीन और स्वच्छ प्रौद्योगिकियों को अपनाने से भारत को सतत् विकास पथ में मदद मिलेगी क्योंकि भारतीय अर्थव्यवस्था अभूतपूर्व दर से बढ़ रही है।
    • वैश्विक जलवायु वार्ता:
      • जलवायु परिवर्तन पर मौजूदा वैश्विक वार्ताओं ने भारत जैसी तेज़ी से विकासशील अर्थव्यवस्थाओं पर हरित प्रौद्योगिकियों को अपनाने का दबाव डाला है।
    • प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI):
      • भारतीय बाज़ार विदेशी निवेशकों के लिये मज़बूत कारोबारी संभावनाएंँ पेश करता है।
      • भारत की बढ़ती अर्थव्यवस्था और ऊर्जा सुरक्षा को मज़बूत करने एवं प्रदूषण को कम करने के लिये स्वच्छ ऊर्जा की बढ़ती मांग के साथ-साथ चल रहे क्षेत्र में सुधार भारत को पर्यावरण के अनुकूल निवेश के लिये विश्व में सबसे आकर्षक स्थलों में से एक बना रहा है।
    • कम कार्बन प्रौद्योगिकियाँ:
      • भारत अक्षय बैटरियों और हरित हाइड्रोजन में एक वैश्विक नेता बनने के लिये विशेष रूप से अच्छी स्थिति में है।
      • अन्य कम कार्बन प्रौद्योगिकियांँ वर्ष 2030 तक भारत को 80 अरब डॉलर तक का बाज़ार बना सकती हैं।
  • भारत में विकास:
    • भारत ने गैर-जीवाश्म स्रोतों से 40% ऊर्जा-क्षमता और पेट्रोल में 10% इथेनॉल-मिश्रण का लक्ष्य हासिल किया है।
    • भारत में दुनिया का पहला पूर्ण रूप से सौर ऊर्जा संचालित हवाई अड्डा है।
    • भारत अक्षय स्रोतों से सबसे बड़े ऊर्जा उत्पादक देशों में से एक है। विद्युत क्षेत्र में नवीकरणीय ऊर्जा (बड़े जलविद्युत संयंत्रों को छोड़कर) कुल स्थापित विद्युत क्षमता का 20% हिस्सा है।

स्वच्छ ऊर्जा के लाभ:

  • स्वच्छ ऊर्जा वायु प्रदूषण में कमी सहित कई तरह के पर्यावरणीय और आर्थिक लाभ प्रदान करती है।
  • विविध स्वच्छ ऊर्जा आपूर्ति आयातित ईंधन पर निर्भरता को भी कम करती है।
  • अक्षय स्वच्छ ऊर्जा में निहित लागत भी कम होती है, क्योंकि तेल या कोयले जैसे ईंधन निकालने और परिवहन की कोई आवश्यकता नहीं होती है, ये संसाधन स्वाभाविक रूप से उपलब्ध होते हैं।
  • स्वच्छ ऊर्जा मिश्रण के अन्य औद्योगिक लाभ, भविष्य के स्वच्छ ऊर्जा संसाधनों के विकास, निर्माण और स्थापना के लिये रोज़गार का सृजन करते हैं।

स्रोत: द हिंदू


ब्लू पैसिफिक में भागीदार

प्रिलिम्स के लिये:

ब्लू पैसिफिक, G-7, ब्लू वाटर नेवी, एक्सक्लूसिव इकोनॉमिक ज़ोन, सोलोमन आइलैंड, बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव में भागीदार।

मेन्स के लिये:

प्रशांत/पैसिफिक द्वीप समूह देश, प्रशांत द्वीप देशों का महत्त्व, भारत-पीआईसी संबंध, प्रशांत द्वीप देशों से चीन के संबंध।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अमेरिका और उसके सहयोगी देशों- ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड, जापान तथा यूनाइटेड किंगडम ने ब्लू पैसिफिक क्षेत्र के छोटे द्वीप राष्ट्रों के साथ "प्रभावी एवं कुशल सहयोग" (Effective and Efficient Cooperation) के लिये 'पार्टनर्स इन द ब्लू पैसिफिक' (Partners in the Blue Pacific- PBP) नामक एक नई पहल शुरू की है।

  • PBP का उद्देश्य "जलवायु संकट, संपर्क और परिवहन, समुद्री सुरक्षा एवं सुरक्षा, स्वास्थ्य, समृद्धि तथा शिक्षा" के क्षेत्रों में सहयोग को बढ़ावा देना है।

पार्टनर्स इन ब्लू पैसिफिक (PBP) पहल:

  • PBP प्रशांत द्वीपों का समर्थन करने और क्षेत्र में राजनयिक, आर्थिक संबंधों को बढ़ावा देने के लिये पांँच देशों का "अनौपचारिक तंत्र" है।
  • यह निकट सहयोग के माध्यम से प्रशांत क्षेत्र में "समृद्धि, लचीलापन और सुरक्षा" बढ़ाने पर केंद्रित है।
  • अर्थात् PBP के माध्यम से ये देश एक साथ और व्यक्तिगत रूप से चीन के आक्रामक आउटरीच कोे प्रतिसंतुलित करने के लिये प्रशांत द्वीप देशों को और अधिक संसाधन उपलब्ध कराएगे।
  • पूर्व के सदस्य "प्रशांत क्षेत्रवाद को बढ़ावा देगे" और प्रशांत द्वीप समूह फोरम ( Pacific Islands Forum- PIF) के साथ मज़बूत संबंध कायम करेंगे।

प्रशांत द्वीप समूह फोरम (PIF):

  • पैसिफिक आइलैंड्स फोरम इस क्षेत्र का प्रमुख राजनीतिक और आर्थिक नीति संगठन है।
  • वर्ष 1971 में स्थापित, इसमें ऑस्ट्रेलिया, कुक आइलैंड्स, माइक्रोनेशिया के संघीय राज्य, फिजी, फ्रेंच पोलिनेशिया, किरिबाती, नाउरू, न्यू कैलेडोनिया, न्यूज़ीलैंड, नीयू, पलाऊ, पापुआ न्यू गिनी, मार्शल आइलैंड्स गणराज्य, समोआ, सोलोमन द्वीप, टोंगा, तुवालु और वानुअतु सहित 18 सदस्य देश शामिल हैं।

PIC का महत्त्व:

  • सबसे बड़ा अनन्य आर्थिक क्षेत्र (EEZ):
    • द्वीपों को भौतिक और मानव भूगोल के आधार पर तीन अलग-अलग भागों में विभाजित किया गया है- माइक्रोनेशिया, मेलानेशिया और पोलिनेशिया।
    • अपने छोटे भूमि क्षेत्र के बावजूद द्वीप प्रशांत महासागर के विस्तृत क्षेत्र में फैले हुए हैं।
    • हालांँकि इनमे से कुछ सबसे छोटे एवं सबसे कम आबादी वाले राज्य हैं, जिनके पास दुनिया के कुछ सबसे बड़े अनन्य आर्थिक क्षेत्र (EEZ) हैं।
  • आर्थिक क्षमता:
    • बड़े EEZ में बहुत अधिक आर्थिक संभावनाएंँ हैं क्योंकि उनका उपयोग मत्स्य पालन, ऊर्जा, खनिजों और वहांँ मौजूद अन्य समुद्री संसाधनों का दोहन करने के लिये किया जा सकता है।
      • इसलिये ये छोटे द्वीप राज्यों के बजाय बड़े महासागरीय राज्यों के रूप में पहचाने जाते हैं।
    • वास्तव में किरिबाती और FSM दोनों PIC का EEZ भारत से बड़ा है।
  • प्रमुख शक्ति प्रतिद्वंद्विता में भूमिका:
    • इन देशों ने सामरिक क्षमताओं के विकास और प्रदर्शन के लिये शक्ति प्रक्षेपण एवं प्रयोगशालाओं हेतु स्केप्रिंग बोर्ड्स रूप में प्रमुख शक्ति प्रतिद्वंद्विता में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
    • औपनिवेशिक युग की प्रमुख शक्तियों ने इन सामरिक क्षेत्रों पर नियंत्रण पाने के लिये एक-दूसरे के साथ प्रतिस्पर्द्धा की।
    • द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान (शाही जापान और यूएस) प्रशांत द्वीपों ने भी संघर्ष के प्रमुख कारकों में से एक के रूप में काम किया।
  • प्रमुख परमाणु हथियार परीक्षण स्थल:
    • संभावित वोट बैंक:
      • साझा आर्थिक और सुरक्षा चिंताओं के कारण संबंधित 14 PICs संयुक्त राष्ट्र में मतदान के लिये ज़िम्मेदार हैं और अंतर्राष्ट्रीय राय जुटाने हेतु प्रमुख शक्तियों के संभावित वोट बैंक के रूप में कार्य करते हैं।
    • सामरिक महत्त्व:
      • अपनी 2019 की रणनीति रिपोर्ट में अमेरिकी रक्षा विभाग ने इंडो-पैसिफिक को "अमेरिका के भविष्य के लिये सबसे अधिक परिणामी क्षेत्र" कहा।
        • संयुक्त राज्य अमेरिका के पश्चिमी तट से लेकर भारत के पश्चिमी तटों तक दुनिया के एक बड़े हिस्से में फैले इस क्षेत्र में दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला राज्य (चीन), सबसे अधिक आबादी वाला लोकतंत्र (भारत), और सबसे बड़ा मुस्लिम-बहुल राज्य (इंडोनेशिया) है और इसमें पृथ्वी की आधी से अधिक आबादी शामिल है।
      • दुनिया की 10 सबसे बड़ी स्थायी सेनाओं में से 7 इंडो-पैसिफिक में निवास करती हैं और इस क्षेत्र के 6 देशों के पास परमाणु हथियार हैं।
      • दुनिया के 10 सबसे व्यस्त बंदरगाहों में से नौ इस क्षेत्र में हैं और वैश्विक समुद्री व्यापार का 60% एशिया से होकर गुज़रता है, जिसमें एक-तिहाई वैश्विक शिपिंग अकेले दक्षिण चीन सागर के माध्यम से होती है।

चीन द्वारा प्रशांत क्षेत्र में अपने संबंधों को बदलने की कोशिश:

  • जैसे ही चीन ने सोलोमन द्वीप समूह के साथ एक सुरक्षा समझौते पर हस्ताक्षर किये, इस सौदे ने चीनी सेना को दक्षिणी प्रशांत क्षेत्र में गुआम के अमेरिकी द्वीप क्षेत्र के करीब और ऑस्ट्रेलिया एवं न्यूज़ीलैंड के ठीक बगल में एक आधार मिलने को लेकर गंभीर चिंताओं को चिह्नित किया।
  • महत्त्वपूर्ण शिपिंग लेन पर हावी होने की चीन की कोशिश ने 10 प्रशांत देशों को "कॉमन डेवलपमेंट विज़न" नामक एक गेम-चेंजिंग समझौते का समर्थन करने के लिये प्रेरित किया।
    • कॉमन डेवलपमेंट विज़न एक व्यापक रणनीतिक साझेदारी है जिसमें आपसी सम्मान और सामान्य विकास जैसी विशेषता है, ताकि साझा भविष्य के साथ एक करीबी चीन-प्रशांत द्वीप देशों के समुदाय का निर्माण किया जा सके।
    • इसका दृष्टिकोण सहकारी और स्थायी सुरक्षा उपायों का पालन करना तथा क्षेत्रीय शांति को बढ़ावा देना, शासन व साइबर सुरक्षा में संवाद एवं सहयोग को मज़बूत करना है।
  • चीन और अमेरिका 21 PIF संवाद भागीदारों में से हैं, लेकिन इस वर्ष उन्होंने क्षेत्रीय मंच की फिजी बैठक के दौरान संवाद भागीदारों के साथ व्यक्तिगत रूप से शामिल नहीं होने का फैसला किया था।
  • PIC की विशाल समुद्री समृद्धि के अलावा ताइवान कारक चीन के प्रशांत क्षेत्र में प्रमुख भूमिका निभाता है।
    • चीन जो ताइवान को एक अलग क्षेत्र मानता है, अनिवार्य सैन्य आक्रमण जैसी तैयारी कर रहा है।
  • PIC भू-रणनीतिक रूप से उस स्थान पर स्थित हैं जिसे चीन अपने 'सुदूर समुद्र' के रूप में संदर्भित करता है, जिस पर नियंत्रण चीन को एक प्रभावी ब्लू वाटर सक्षम नौसेना बना देगा, जो महाशक्ति बनने के लिये एक आवश्यक शर्त है।
    • ब्लू वाटर नेवी वह है जो अपनी समुद्री सीमाओं की तुलना में बहुत बड़े समुद्री क्षेत्र में खुद को प्रोजेक्ट करने की क्षमता रखती है।

चीन का मुकाबला करने के लिये अमेरिका और उसके सहयोगियों की प्रतिक्रिया:

  • PBP को लॉन्च करने से पहले अमेरिका और उसके सहयोगियों ने इंडो-पैसिफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क फॉर प्रॉस्पेरिटी (IPEF) की शुरुआत की, जो निम्नलिखित13 देशों के साथ इस क्षेत्र में व्यापार बढ़ाने वाला कारक है-
    • ऑस्ट्रेलिया, ब्रुनेई, भारत, इंडोनेशिया, जापान, मलेशिया, न्यूज़ीलैंड, फिलीपींस, सिंगापुर, दक्षिण कोरिया, थाईलैंड, फिज़ी और वियतनाम।
  • G-7 ने निम्न और मध्यम आय वाले देशों में विकास परियोजनाओं को निधि देने के लिये 600 बिलियन डॉलर जुटाने का वादा करके चीन के बेल्ट एंड रोड पहल को टक्कर देने हेतु ग्लोबल इंफ्रास्ट्रक्चर एंड इंवेस्टमेंट (PGII) के लिये एक योजना की घोषणा की।

भारत-PIC संबंध:

  • परिचय:
    • PIC के साथ भारत की बातचीत अभी भी काफी हद तक इस क्षेत्र में बड़े पैमाने पर भारतीय डायस्पोरा की उपस्थिति से प्रेरित है।
    • फिज़ी की लगभग 40% आबादी भारतीय मूल की है और लगभग 3000 भारतीय वर्तमान में पापुआ न्यू गिनी में रहते हैं।
    • संस्थागत जुड़ाव के संदर्भ में भारत प्रशांत द्वीप फोरम (PIF) में फोरम के प्रमुख संवाद भागीदारों में से एक के रूप में भाग लेता है।
    • हाल के वर्षों में PIC के साथ भारत की बातचीत को सुविधाजनक बनाने में सबसे महत्त्वपूर्ण विकास भारत और प्रशांत द्वीप समूह सहयोग (FIPIC) के लिये एक क्रिया-उन्मुख फोरम का गठन किया गया है।
    • FIPIC बहुराष्ट्रीय समूह है जिसे 2014 में लॉन्च किया गया था।
  • सहयोग के क्षेत्र:
    • नीली अर्थव्यवस्था:
      • अपने संसाधन संपन्न EEZ (विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र) के साथ PIC भारत की बढ़ती अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिये तरलीकृत प्राकृतिक गैस (LNG) और हाइड्रोकार्बन जैसे प्राकृतिक संसाधनों के आकर्षक स्रोत हो सकते हैं और नए बाज़ार भी प्रदान कर सकते हैं।
      • 'नीली अर्थव्यवस्था' के अपने विचार पर ज़ोर देते हुए भारत इन देशों के साथ विशेष रूप से जुड़ सकता है।
    • जलवायु परिवर्तन और सतत् विकास:
      • इन द्वीपीय देशों की भौगोलिक स्थिति उन्हें जलवायु चुनौतियों के प्रतिकूल प्रभावों के प्रति संवेदनशील बनाती है।
      • समुद्र के बढ़ते स्तर के कारण मिट्टी की बढ़ती लवणता निचले द्वीपीय राज्यों के लिये खतरा है, जिससे विस्थापन की समस्या भी पैदा हो रही है।
      • इसलिये जलवायु परिवर्तन और सतत् विकास चिंता के महत्त्वपूर्ण क्षेत्र हैं जहांँ प्रभावी व ठोस समाधान के लिये एक मज़बूत साझेदारी विकसित की जा सकती है।

यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न:

प्रश्न. प्रायः समाचारों में देखी जाने वाली 'बीजिंग घोषणा और कार्रवाई मंच (बीजिंग डिक्लरेशन एंड प्लेटफ़ॉर्म फॉर एक्शन)' निम्नलिखित में से क्या है?

(a) क्षेत्रीय आतंकवाद से निपटने की एक कार्यनीति (स्ट्रैटेजी), शंघाई सहयोग संगठन की बैठक का परिणाम
(b) एशिया-प्रशांत क्षेत्र में धारणीय आर्थिक संवृद्धि की एक कार्ययोजना, एशिया- प्रशांत आर्थिक मंच (एशिया-पैसिफिक इकोनॉमिक फोरम) के विचार-विमर्श का एक परिणाम
(c) महिला सशक्तीकरण हेतु एक कार्यसूची, संयुक्त राष्ट्र द्वारा आयोजित विश्व सम्मेलन का एक परिणाम
(d) वन्यजीवों के दुर्व्यापार (ट्रैफिकिंग) की रोकथाम हेतु कार्यनीति, पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन (ईस्ट एशिया समिट) की एक उद्घोषणा

उत्तर: (c)

व्याख्या:

  • वर्ष 1995 में चीन की राजधानी बीजिंग में संयुक्त राष्ट्र संघ के तत्त्वावधान में चतुर्थ विश्व महिला सम्मेलन आयोजित किया गया था। इस सम्मेलन में संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा महिला अधिकारों पर बीजिंग घोषणा पत्र को भी अपनाया गया था। यह दुनिया भर में महिलाओं के लिये समानता, विकास और शांति हासिल करने के लिये एक वैश्विक प्रतिबद्धता है। यह पहले संयुक्त राष्ट्र सम्मेलनों, विशेष रूप से तृतीय संयुक्त राष्ट्र विश्व महिला सम्मेलन (नैरोबी), 1985 की प्रगति और सर्वसम्मति पर आधारित है।
  • प्लेटफॉर्म फॉर एक्शन महिला सशक्तीकरण का एजेंडा है। महिलाओं की उन्नति के लिये नैरोबी दूरंदेशी रणनीतियों के कार्यान्वयन में तेज़ी लाने और आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक तथा राजनीतिक निर्णयों में पूर्ण व समान हिस्सेदारी के माध्यम से सार्वजनिक तथा निजी जीवन के सभी क्षेत्रों में महिलाओं की सक्रिय भागीदारी के लिये सभी बाधाओं को दूर करना।
  • अतः विकल्प (c) सही उत्तर है।

स्रोत : इंडियन एक्सप्रेस


नरेगा की मांग में वृद्धि

प्रिलिम्स के लिये:

नरेगा (राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना)।

मेन्स के लिये:

नरेगा की कार्यप्रणाली, इसकी चुनौतियाँ और आगे की राह।

चर्चा में क्यों?

मई 2022 में 2.61 करोड़ परिवारों ने नरेगा (राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना) के तहत काम किया, जो पिछले वर्ष के इसी महीने की तुलना में 17.39% अधिक है।

प्रमुख बिंदु:

  • अप्रैल में गिरावट के बाद नरेगा की मांग में तेज़ी आई थी। अप्रैल 2022 में 1.86 करोड़ परिवारों ने नरेगा का लाभ उठाया, जो पिछले वर्ष अप्रैल में दर्ज की गई संख्या से 12.27% कम है।
  • नरेगा का लाभ उठाने वाले परिवारों की संख्या मई 2020 की तुलना में कम है, जब कोविड-19 की पहली लहर के दौरान लॉकडाउन के मद्देनज़र प्रवासी श्रमिकों के अपने गांँवों में लौटने के कारण मांग तेज़ी से बढ़कर 3.30 करोड़ हो गई।
    • लेकिन यह मई 2019 (महामारी पूर्व समय) में दर्ज 2.10 करोड़ के आंँकड़े से अधिक है।
  • राज्यों के संदर्भ में उत्तर प्रदेश में नरेगा का लाभ उठाने वाले परिवारों की संख्या में सबसे अधिक वृद्धि देखी गई, इसके बाद तमिलनाडु का स्थान है।
  • जबकि सबसे ज़्यादा गिरावट छत्तीसगढ़ में और उसके बाद झारखंड में दर्ज की गई।

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नरेगा (NREGS):

  • महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम (मनरेगा), जिसे महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना (मनरेगा) के रूप में भी जाना जाता है, 25 अगस्त, 2005 को अधिनियमित कानून है।
  • यह वैधानिक न्यूनतम मज़दूरी पर सार्वजनिक कार्य से संबंधित अकुशल श्रम करने के इच्छुक किसी भी ग्रामीण परिवार के वयस्क सदस्यों के लिये प्रत्येक वित्तीय वर्ष में 100 दिनों के रोज़गार के लिये कानूनी गारंटी प्रदान करता है।
  • ग्रामीण विकास मंत्रालय (MRD) राज्य सरकारों के सहयोग से इस योजना के संपूर्ण कार्यान्वयन की निगरानी कर रहा है।
  • यह अधिनियम ग्रामीण भारत में गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले लोगों के लिये मुख्य रूप से अर्द्ध या अकुशल कामगारों के लिये तथा ग्रामीण लोगों की क्रय शक्ति में सुधार लाने के उद्देश्य से लाया गया था। यह देश में अमीर और गरीब के बीच की खाई को पाटने का प्रयास करता है।
  • कानून के अनुसार निर्धारित कार्यबल का लगभग एक-तिहाई महिलाएंँ होनी चाहिये।
  • पंजीकृत व्यक्ति कार्य के लिये लिखित रूप में (कम-से-कम चौदह दिनों तक लगातार काम करने के लिये) आवेदन पंचायत या कार्यक्रम अधिकारी को प्रस्तुत कर सकता है।
  • रोज़गार 5 किमी. के दायरे में दिया जाएगा और यदि यह 5 किमी. से अधिक है, तो अतिरिक्त वेतन का भुगतान किया जाएगा।
  • नरेगा के तहत अधिसूचित किये गए अधिकांश कार्य कृषि और संबद्ध गतिविधियों से संबंधित हैं, इसके अलावा ये ग्रामीण स्वच्छता परियोजनाओं को सुविधा प्रदान करते हैं।
  • नरेगा एक मांग आधारित मज़दूरी रोज़गार कार्यक्रम है और केंद्र से राज्यों को संसाधन हस्तांतरण प्रत्येक राज्य में रोज़गार की मांग पर आधारित है।
  • यह मांग पर काम प्रदान करने में विफलता और किये गए काम के लिये मज़दूरी के भुगतान में देरी के मामलों में भत्ते व मुआवज़े दोनों प्रदान करके मज़दूरी रोज़गार के लिये कानूनी गारंटी प्रदान करता है।
  • मई 2021 में ग्रामीण विकास मंत्रालय ने राष्ट्रीय मोबाइल निगरानी सॉफ्टवेयर (NMMS) एप लॉन्च किया, जो राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम (NREGA) के कार्यों में "नागरिक निरीक्षण में सुधार तथा पारदर्शिता बढ़ाने" के लिये एक नया एप्लीकेशन है।

NREGS के परिणाम:

  • पिछले 15 वर्षों में इसने 31 अरब से अधिक व्यक्ति-दिवस रोज़गार का सृजन किया है।
  • पिछले 15 वर्षों में सरकार ने इस मांग-संचालित कार्यक्रम में 6.4 लाख करोड़ रुपए से अधिक का निवेश किया है।
  • देश के ग्रामीण क्षेत्रों में वर्ष 2006 से अब तक 30 मिलियन से अधिक जल संरक्षण से संबंधित संपत्ति विकसित की गई है।

चुनौतियाँ:

  • कम मज़दूरी दर: नरेगा मज़दूरी वर्तमान में लगभग 180 रुपए प्रतिदिन है जो बाज़ार दर से काफी नीचे है। लगभग एक दशक से एक ही तरह के काम के लिये औसत मज़दूरी दर की अनदेखी करते हुए मज़दूरी को केवल मुद्रास्फीति के लिये समायोजित किया गया है और अभी यह 23 राज्यों में न्यूनतम मज़दूरी दर से नीचे गिर गई है, जिससे भागीदारी में गिरावट आई है।
  • मज़दूरी के भुगतान में देरी: एक मुद्दा यह है कि इस योजना के तहत श्रमिकों को 15 दिनों के भीतर भुगतान किया जाना अनिवार्य है; इन लोगों को अक्सर भुगतान नहीं मिलता है। पिछले कुछ वित्तीय वर्षों में लगभग 10,000 करोड़ रुपए के बकाया वेतन की एक बड़ी शेष राशि का खुलासा हुआ है।
  • भ्रष्टाचार: इस योजना के साथ सबसे बड़ा मुद्दा यह है कि अगर फंडिंग आवंटन बढ़ भी जाता है, तो भी सिस्टम से भ्रष्ट बिचौलियों को जड़ से खत्म करना बहुत मुश्किल है।
  • महत्त्वहीन कार्य: अधिकांश अधिकारी केवल अर्थहीन कार्य की पेशकश करते हैं जिसका देश में कृषि के बुनियादी ढांँचे में कोई योगदान नहीं है।

आगे की राह

  • विचार यह है कि इसे सालाना संशोधित किया जा सकता है तथा वेतनभोगी श्रमिकों को उनकी खपत की जरूरतों के आधार पर पर्याप्त रूप से मुआवज़ा दिया जा सकता है और यह एक बेहतर तरीका हो सकता है।
  • संसाधनों के कुशल प्रबंधन के माध्यम से भ्रष्टाचार से निपटने और देर से भुगतान के मुद्दे को कम करने हेतु प्रौद्योगिकी का लाभ उठाने की आवश्यकता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


वैश्विक अवसंरचना और निवेश के लिये साझेदारी

प्रिलिम्स के लिये:

बिल्ड बैक बेटर वर्ल्ड (B3W), PGII, BRI, चाइना-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (CPEC), सिल्क रोड इकोनॉमिक बेल्ट, क्लाइमेट सस्टेनेबिलिटी फंड, श्रीलंका में हंबनटोटा पोर्ट

मेन्स के लिये:

PGII के स्तंभ, PGII से भारत को लाभ, बेल्ट रोड इनिशिएटिव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में 48वें G-7 शिखर सम्मेलन में G7 सहयोगियों के साथ अमेरिका ने वैश्विक अवसंरचना और निवेश के लिये साझेदारी (PGII) का अनावरण किया।

पृष्ठभूमि:

  • अमेरिका ने अपने सहयोगियों के साथ विकासशील दुनिया में 40 ट्रिलियन डॉलर के बुनियादी ढाँचे के अंतर को कम करने के उद्देश्य से 2021 में बिल्ड बैक बेटर वर्ल्ड (B3W) के शुभारंभ की घोषणा की थी।
    • इसलिये ग्लोबल इन्फ्रास्ट्रक्चर और निवेश के लिये साझेदारी B3W योजना का पुन: लॉन्च किया गया है।
  • PGII को एशिया, यूरोप, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका में कनेक्टिविटी, इंफ्रास्ट्रक्चर व व्यापार परियोजनाओं के निर्माण के लिये चीन के मल्टी ट्रिलियन डॉलर के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) हेतु G-7 के विरोधी के रूप में देखा जा रहा है।

वैश्विक अवसंरचना और निवेश के लिये साझेदारी:

  • परिचय:
    • PGII एक "मूल्य-संचालित, उच्च-प्रभाव और पारदर्शी बुनियादी ढाँचा साझेदारी है जो निम्न एवं मध्यम आय वाले देशों की विशाल बुनियादी ढाँचे की ज़रूरतों को पूरा करती है।
      • संयुक्त राज्य अमेरिका और उसके सहयोगियों के आर्थिक एवं राष्ट्रीय सुरक्षा हितों का समर्थन करते हैं।
    • PGII के तहत G-7 विकासशील और मध्यम आय वाले देशों को "गेम-चेंजिंग" और "पारदर्शी" बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं के लिये 2027 तक 600 बिलियन डॉलर जुटाएगा
    • अमेरिकी राष्ट्रपति ने PGII के लिये अगले पाँच वर्षों में अनुदान, सार्वजनिक वित्तपोषण और निजी पूंजी के तहत 200 बिलियन अमेरिकी डॉलर देने की घोषणा की।
    • यूरोपीय आयोग के अध्यक्ष ने इसी अवधि में इस साझेदारी के लिये 300 अरब यूरो जुटाने की यूरोप की प्रतिबद्धता की घोषणा की।
  • पीजीआईआई (PGII) के स्तंभ:
    • पहला: G-7 समूह का उद्देश्य जलवायु संकट से निपटना और स्वच्छ ऊर्जा आपूर्ति शृंखलाओं के माध्यम से वैश्विक ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करना है।
    • दूसरा: यह परियोजनाओं का डिजिटल सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (ICT) नेटवर्क को मज़बूत करने पर ध्यान केंद्रित करेगी जो 5 जी और 6 जी इंटरनेट कनेक्टिविटी तथा साइबर सुरक्षा जैसी तकनीकों को सुविधाजनक बनाती है।
    • तीसरा: परियोजनाओं का उद्देश्य लैंगिक समानता और समानता को बढ़ाना है।
      • लैंगिक समानता: इसके लिये सामाजिक रूप से मूल्यवान वस्तुओं, अवसरों, संसाधनों और पुरस्कारों द्वारा महिलाओं व पुरुषों दोनों को समान अवसर प्रदान करने की आवश्यकता होती है।
      • लिंग समानता: इसके अनुसार प्रत्येक व्यक्ति की अलग-अलग परिस्थितियांँ होती हैं तथा यह समान परिणाम तक पहुंँचने के लिये आवश्यक सटीक संसाधनों और अवसरों को आवंटित करता है।
    • चौथा: परियोजना वैश्विक स्वास्थ्य बुनियादी ढांँचे के उन्नयन पर ज़ोर देती है।
      • यूएस इंटरनेशनल डेवलपमेंट फाइनेंस कॉरपोरेशन (DFC), G-7 राष्ट्रों और EU के साथ सेनेगल में वैक्सीन सुविधा उपलब्ध करने हेतु 3.3 मिलियन अमेरिकी डाॅलर की तकनीकी सहायता अनुदान वितरित कर रहा है।
      • यूरोपीय आयोग की ग्लोबल गेटवे पहल भी PGII का समर्थन करने वाली परियोजनाओं को संचालित करती है- जैसे लैटिन अमेरिका में एमआरएनए वैक्सीन संयंत्र
  • भारत को लाभ:
    • यूएस इंटरनेशनल डेवलपमेंट फाइनेंस कॉरपोरेशन (Development Finance Corporation-DFC) ओमनिवोर एग्रीटेक और क्लाइमेट सस्टेनेबिलिटी फंड में 30 मिलियन अमेरीकी डॅालर तक का निवेश करेगा।
      • क्लाइमेट सस्टेनेबिलिटी फंड: यह एक इम्पैक्ट वेंचर कैपिटल फंड है जो भारत में कृषि, खाद्य प्रणाली, जलवायु और ग्रामीण अर्थव्यवस्था में निर्माण को बढ़ावा देने वाले उद्यमों में निवेश करता है।
      • फंड उन कंपनियों में निवेश करता है जो भारत में खाद्य सुरक्षा को बढ़ावा देती हैं और जलवायु लचीलापन तथा अनुकूलन दोनों को बढ़ावा देती हैं तथा यह छोटे जोत वाले खेतों की लाभप्रदता व कृषि उत्पादकता में भी सुधार करेगी।
    • आम्निवोर एग्रीटेक: यह एक प्रौद्योगिकी संचालित कृषि पद्धति है जो कृषि समृद्धि को बढ़ाएगी और कृषि को अधिक लचीला और टिकाऊ बनाने के लिये खाद्य प्रणालियों को बदल देगी।
      • इसमें किसान मंच, सुस्पष्ट सटीक कृषि, कृषि-बायोटेक आदि शामिल हैं।

PGII का मुकाबला चीन की BRI से:

  • परियोजना:
    • PGII ने जलवायु कार्रवाई और स्वच्छ ऊर्जा पर ध्यान केंद्रित किया है, जबकि चीन ने सौर, पनबिज़ली और पवन ऊर्जा परियोजनाओं के साथ-साथ BRI के तहत कोयले से चलने वाले बड़े संयंत्र बनाए हैं।
  • वित्तपोषण:
    • PGII का लक्ष्य अनुदान और निवेश के माध्यम से परियोजनाओं का निर्माण करना है। चीन उन देशों को बड़े कम ब्याज़ वाले ऋण देकर BRI की परियोजनाओं का निर्माण करता है जिन्हें आमतौर पर 10 वर्षों में भुगतान करना पड़ता है।
    • जबकि G-7 ने 2027 तक 600 बिलियन अमेरिकी डाॅलर का वादा किया है, यह अनुमान लगाया गया है कि उस समय तक BRI के लिये चीन का कुल वित्तपोषण 1.2 अमेरिकी डाॅलर से 1.3 ट्रिलियन अमेरिकी डाॅलर तक पहुँच सकता था, जबकि वास्तविक वित्तपोषण अधिक था। PGII के तहत निजी पूंजी भी जुटाई जाएगी, जबकि चीन का BRI प्रमुख रूप से राज्य द्वारा वित्तपोषित है।
  • पारदर्शिता:
    • G-7 नेताओं ने PGII परियोजनाओं की आधारशिला के रूप में 'पारदर्शिता' पर ज़ोर दिया, BRI को बड़े पैमाने पर ऋण देने के लिये देशों को गोपनीय निविदाओं पर हस्ताक्षर करने हेतु आलोचना का सामना करना पड़ा है, जिससे देश चीन के ऋणी हो गए।
      • उदाहरण के लिये BRI के प्रमुख 62 बिलियन अमेरिकी डाॅलर के चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे के बाद पाकिस्तान पर अपने विदेशी ऋण का एक बड़ा हिस्सा बीजिंग का बकाया है।
      • PGII का लक्ष्य अनुदान और निवेश के माध्यम से परियोजनाओं का निर्माण करना है।

बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI):

  • परिचय:
    • बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) एक महत्त्वाकांक्षी परियोजना है जो एशिया, अफ्रीका और यूरोप के महाद्वीपों में फैले कई देशों के बीच संपर्क व सहयोग पर केंद्रित है। BRI करीब 150 देशों (चीन का दावा) में फैला है।
      • प्रारंभ में वर्ष 2013 में घोषित इस परियोजना में रोडवेज़, रेलवे, समुद्री बंदरगाहों, पावर ग्रिड, तेल और गैस पाइपलाइनों तथा संबंधित बुनियादी ढांँचा परियोजनाओं के नेटवर्क का निर्माण शामिल है।
    • परियोजना में दो भाग शामिल:
      • सिल्क रोड इकोनॉमिक बेल्ट: यह भूमि आधारित है और चीन को मध्य एशिया, पूर्वी यूरोप और पश्चिमी यूरोप से जोड़ने की उम्मीद है।
      • 21वीं सदी का समुद्री रेशम मार्ग: यह समुद्र आधारित है और चीन के दक्षिणी तट को भूमध्यसागरीय, अफ्रीका, दक्षिण-पूर्व एशिया और मध्य एशिया से जोड़ने की उम्मीद है।
  • चीन के लिये BRI का महत्त्व:
    • बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) वैश्विक, राजनीतिक और रणनीतिक प्रभाव के लिये अपनी महत्त्वाकांक्षाओं के रूप में चीन की आर्थिक व औद्योगिक ताकत का द्योतक है।
    • जैसे-जैसे घरेलू अवसंरचना पर खर्च कम टिकाऊ होता गया, चीन ने घरेलू व्यवसायों की वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देने पर ज़ोर दिया।
      • कम विकसित और विकासशील देशों में बड़े बुनियादी ढाँचे के निवेश ने चीन को दुनिया भर में अपने प्रभाव का लाभ उठाने में सक्षम बनाया है, संभावित रूप से वैश्विक व्यवस्था के स्थापित नियमों को बदल दिया है और पश्चिमी शक्तियों को चुनौती दी है।
    • बीआरआई यूरेशियन क्षेत्र में चीन की उपस्थिति को मज़बूत करेगा और इसे एशिया के हृदय क्षेत्र पर एक कमांडिंग स्थिति में रखेगा।
  • आलोचना:
    • पश्चिमी आलोचकों ने इस पहल को नव उपनिवेशवाद या 21वीं सदी के लिये मार्शल योजना के रूप में वर्णित किया है।
    • बीआरआई को चीन की ऋण जाल नीति के एक भाग के रूप में भी देखा जा रहा है, जिसमें चीन जान-बूझकर कर्जदार देश से आर्थिक या राजनीतिक रियायतें प्राप्त करने के इरादे से दूसरे देश को अत्यधिक ऋण देता है।

भारत के BRI में शामिल न होने का कारण:

  • चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) BRI की प्रमुख परियोजनाओं में से एक है, जिसे भारत अपनी संप्रभुता के उल्लंघन के रूप में देखता है।
    • सीपीईसी कश्मीर विवाद में पाकिस्तान की वैधता में मदद कर सकता है।
  • चीन गिलगित-बाल्टिस्तान के विवादित क्षेत्र में सड़कों और बुनियादी ढाँचे का निर्माण कर रहा है, जो पाकिस्तान के नियंत्रण में है लेकिन भारत जम्मू-कश्मीर का हिस्सा होने का दावा करता है।
  • यदि सीपीईसी परियोजना सफलतापूर्वक लागू हो जाती है, तो इससे दक्षिण एशियाई क्षेत्र में भारत के रणनीतिक हितों में बाधा आएगी। यह भारत को घेरने की बीजिंग की रणनीतिक महत्त्वाकांक्षा को पूरा करेगा।
    • दक्षिण एशियाई क्षेत्र में चीन के बढ़ता प्रभाव भारत की रणनीतिक पकड़ के लिये हानिकारक हैं, उदाहरण के लिये श्रीलंका में हंबनटोटा बंदरगाह के निर्माण ने चीन को हिंद महासागर में एक महत्त्वपूर्ण रणनीतिक स्थान प्रदान किया है।

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स्रोत: द हिंदू