डेली न्यूज़ (16 Sep, 2022)



भारत में जैवविविधता हॉटस्पॉट

Biodiversity-Hotspots-in-India


एग्रीटेक समिट

प्रिलिम्स के लिये:

एग्रीटेक समिट, कृषि से संबंधित पहल।

मेन्स के लिये:

कृषि में प्रौद्योगिकी का महत्त्व।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय कृषि और किसान कल्याण मंत्री ने 'आउटलुक एग्रीटेक समिट एंड स्वराज अवार्ड्स 2022' को संबोधित किया।

एग्रीटेक समिट:

  • एग्रीटेक समिट भारत में कृषि के क्षेत्र में सर्वोत्तम प्रथाओं को पहचानने और ज्ञान साझा करने के लिये कृषि से संबंधित प्रौद्योगिकी में शामिल शीर्ष राजनीतिक नेतृत्व, नीति निर्माताओं, विचारशील नेताओं और कंपनियों को एक-साथ लाने का मंच है।
  • वार्षिक पुरस्कार कृषि के क्षेत्र में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन और नवाचारों को मान्यता देते हैं और उन लोगों को पहचान करते हैं जो स्मार्ट तकनीक का उपयोग करके विकास को आगे बढ़ा रहे हैं।
  • स्वराज अवार्ड का आयोजन भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) और कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार के सहयोग से किया गया था।

अभिभाषण के प्रमुख बिंदु:

  • खेती की चुनौतियों को कम करने और किसानों की आय बढ़ाने के लिये कई महत्त्वपूर्ण योजनाएँ लागू की जा रही हैं।
  • देश में 86 फीसदी छोटे किसान हैं, जिनके पास छोटा रकबा है और वे ज़्यादा निवेश नहीं कर सकते हैं। इन किसानों को आगे बढ़ाने के लिये सरकार काम कर रही है, क्योंकि अगर ये किसान पिछड़ जाएंगे तो न खेती आगे बढ़ेगी और न ही देश।
  • सरकार ने इनकी ओर ध्यान देते हुए 10 हज़ार नए किसान उत्पादक संगठन (FPO) बनाने का काम शुरू किया है। यदि छोटे किसान इन FPO से जुड़ते हैं तो खेती का रकबा बढ़ने के साथ ही किसानों की सामूहिक ताकत बढ़ेगी।
  • सरकार दलहन और तिलहन के क्षेत्र में भी काम कर रही है। दोनों ही अभावग्रस्त क्षेत्र थे।

कृषि में प्रौद्योगिकी का महत्त्व:

  • महत्त्व:
    • कृषि क्षेत्र की अपनी अद्वितीय चुनौतियाँ हैं जैसे अच्छे मानसून पर निर्भरता, छोटे और खंडित कृषि जोत, मशीनीकरण की कमी एवं पूंजी की कमी।
    • कृषि में प्रौद्योगिकी का उपयोग कृषि के विभिन्न पहलुओं में किया जा सकता है जैसे कि शाकनाशी, कीटनाशक, उर्वरक और उन्नत बीज का उपयोग।
    • वर्षों से कृषि क्षेत्र में प्रौद्योगिकी अत्यंत उपयोगी साबित हुई है।
      • वर्तमान में किसान उन क्षेत्रों में फसल उगाने में सक्षम हैं जहाँ उन्हें लगता था कि वे फसल नहीं उगा सकते हैं, लेकिन यह केवल कृषि जैव प्रौद्योगिकी के माध्यम से संभव हुआ है।
    • उदाहरण के लिये जेनेटिक इंजीनियरिंग ने फसलों या जानवरों के अन्य जीनों में कुछ उपभेदों को परिवर्तित करना संभव बना दिया है।
      • इस तरह की इंजीनियरिंग, फसलों के कीटों (जैसे- बीटी कॉटन) और सूखे के प्रतिरोध को बढ़ाती है। प्रौद्योगिकी के माध्यम से किसान दक्षता और बेहतर उत्पादन के लिये प्रत्येक प्रक्रिया को विद्युतीकृत करने की स्थिति में हैं।
  • पहल:
    • सरकार डिजिटल एग्री मिशन पर काम कर रही है ताकि किसानों की पहुँच सरकार तक हो और सरकार सभी किसानों तक पहुँच सके।
      • डिजिटल कृषि मिशन के तहत यदि सभी किसानों, कृषि क्षेत्रों, सरकारी योजनाओं, केंद्र और राज्य सरकारों तथा बैंकों को भी इस मंच पर लाया जाता है, तो योजनाओं का लाभ आसानी से उपलब्ध होगा।
    • कृषि गतिविधियों को मशीनीकरण से जोड़ा जा रहा है।
    • सरकार ड्रोन तकनीक को बढ़ावा दे रही है।

कृषि से संबंधित अन्य पहलें:

आगे की राह

  • कृषि क्षेत्र की चुनौतियों से निपटने की ज़रूरत है, इसमें तकनीक, निजी निवेश और रोज़गार के अवसरों को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न:

प्रश्न: 'प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना' के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2016)

  1. इस योजना के तहत किसानों को वर्ष के किसी भी मौसम में खेती की जाने वाली किसी भी फसल के लिये दो प्रतिशत का एक समान प्रीमियम का भुगतान करना होगा।
  2. इस योजना में चक्रवातों और बेमौसम बारिश तथा फसल कटाई के बाद होने वाले नुकसान को शामिल किया गया है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: B

व्याख्या:

  • प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना केंद्र सरकार द्वारा शुरू की गई फसल बीमा योजना है। इसमें प्राकृतिक आपदाओं (चक्रवात और बेमौसम बारिश), कीटों एवं बीमारियों से फसल कटाई से पूर्व तथा बाद के नुकसान को शामिल किया गया है। अत: कथन 2 सही है।
  • प्रमुख बिंदु:
    • सभी खरीफ फसलों के लिये किसानों द्वारा केवल 2% और सभी रबी फसलों के लिये 1.5% का एक समान प्रीमियम का भुगतान किया जाएगा। अतः कथन 1 सही नहीं है।
    • वार्षिक वाणिज्यिक और बागवानी फसलों के लिये 5% प्रीमियम का भुगतान किया जाना है।
    • किसानों द्वारा भुगतान की जाने वाली प्रीमियम दरें बहुत कम हैं और शेष प्रीमियम का भुगतान सरकार द्वारा किया जाएगा।
    • सरकारी सब्सिडी की कोई ऊपरी सीमा नहीं है। यदि शेष प्रीमियम 90% है, तो भी वह सरकार द्वारा वहन किया जाएगा।
    • प्रीमियम की सीमा अब हटा दी गई है और किसानों को बिना किसी कटौती के पूरी बीमा राशि का भुगतान किया जाएगा।
    • प्रौद्योगिकी के उपयोग को काफी हद तक प्रोत्त्साहित किया जाता है। किसानों के दावा भुगतान में देरी को कम करने के लिये फसल कटाई के डेटा का एकत्रण और अपलोड करने हेतु स्मार्टफोन का उपयोग किया जाएगा। फसल काटने में लगने वाले समय में कमी लाने के लिये के लिये रिमोट सेंसिंग का उपयोग किया जाएगा। अतः विकल्प (b) सही है।

मेन्स:

प्रश्न. भारत में कृषि उत्पादों के परिवहन और विपणन में मुख्य बाधाएँ क्या हैं? (2020)

स्रोत: पी.आई.बी.


भारत में ऑटोमोबाइल उद्योग

प्रिलिम्स के लिये:

इलेक्ट्रिक वाहन (EV), प्रोडक्शन-लिंक्ड इंसेंटिव (PLI), ऑटोमोटिव मिशन प्लान 2016-26, नेशनल इलेक्ट्रिक मोबिलिटी मिशन प्लान 2020 (NEMMP)।

मेन्स के लिये:

भारत में ऑटोमोबाइल क्षेत्र का महत्त्व।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्री ने 62वें ऑटोमोटिव कंपोनेंट मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (Automotive Component Manufacturers Association-ACMA) के वार्षिक सत्र को संबोधित किया।

  • सत्र का विषय 'फ्यूचर ऑफ मोबिलिटी- ट्रांस्फोर्मिंग टू बी अहेड ऑफ ऑपरच्युनिटी' (Future of Mobility - Transforming to be Ahead of Opportunity) था।
  • ACMA, भारतीय ऑटो कंपोनेंट उद्योग के हितों का प्रतिनिधित्व करने वाली शीर्ष संस्था है। 850 से अधिक निर्माताओं की इसकी सदस्यता संगठित क्षेत्र में ऑटो कंपोनेंट उद्योग के कारोबार में 85% से अधिक का योगदान करती है।

सत्र की मुख्य विशेषताएँ:

  • इस सत्र में टोमोबाइल उद्योग के लिये 5-सूत्री कार्य एजेंडा प्रस्तुत किया गया:
    • विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्द्धी बनने और आयात पर निर्भरता कम करने के लिये गुणवत्ता पर ध्यान केंद्रित करना।
    • समग्र रूप से विचार करने और खुलेपन एवं प्रतिस्पर्द्धा की भावना से दूसरों के साथ जुड़ने के लिये एक व्यापक दृष्टिकोण रखना।
    • मूल्यवर्द्धन पर बल देना।
    • अप्रतिस्पर्द्धी बाज़ार से बाहर निकलना और उन क्षेत्रों में बाज़ार के नए अवसरों का पता लगाना जहाँ स्वस्थ्य प्रतिस्पर्द्धा हो।
    • उद्योग के लिये बड़े क्ष्य और महत्त्वाकांक्षाएँ निर्धारित करना।
  • इसके अलावा सरकार इस बात पर बल देती है कि ऑटोमोटिव कंपोनेंट उद्योग का भविष्य अधिक कनेक्टेड होने, सुविधा पर ध्यान केंद्रित करने, स्वच्छ ऊर्जा और स्वच्छ गतिशीलता की ओर उन्मुख होने तथा अत्याधुनिक तकनीक का उपयोग करने पर आधारित है।

भारत में ऑटोमोबाइल उद्योग की स्थिति:

  • परिचय:
    • ऑटोमोबाइल उद्योग में यात्री वाहन, वाणिज्यिक वाहन, तिपहिया, दोपहिया और क्वाड्रिसाइकिल सहित सभी ऑटोमोबाइल वाहन शामिल हैं।
    • भारत का मोटर वाहन बाज़ार वर्ष 2021 में 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर का था जिसके पूर्वानुमान अवधि (2022-2027) पर1% की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) दर्ज करते हुए वर्ष 2027 में 160 बिलियन  अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने की उम्मीद है।
    • 4 मिलियन से अधिक मोटर वाहनों के औसत वार्षिक उत्पादन के साथ भारत दुनिया में ऑटोमोबाइल का चौथा सबसे बड़ा उत्पादक है।
      • भारत विश्व का सबसे बड़ा ट्रैक्टर निर्माता, दूसरा सबसे बड़ा बस निर्माता और तीसरा सबसे बड़ा भारी ट्रक निर्माता है।
    • वर्ष 2025 तक भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों का बाज़ार 50.000 करोड़ (7.09 अमेरिकी डॉलर) तक पहुँचने की उम्मीद है।
    • सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में हिस्सेदारी: 7.1%
    • भारत के निर्यात में हिस्सेदारी: 4.7%
  • पहल:
    • उत्पादन आधारित प्रोत्साहन (PLI) योजना:
      • केंद्रीय मंत्रिमंडल ने ऑटोमोबाइल और ऑटो कंपोनेंट्स क्षेत्रों में उत्पादन आधारित प्रोत्साहन (PLI) योजना की घोषणा की।
      • ऑटोमोबाइल क्षेत्र के लिये पीएलआई योजना (3.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर की लागत) उन्नत ऑटोमोटिव प्रौद्योगिकी उत्पादों के घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने और ऑटोमोटिव विनिर्माण मूल्यं शृंखला में निवेश आकर्षित करने हेतु 18% तक के वित्तीय प्रोत्साहन प्रस्तावित करती है।
    • प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई):
      • स्वचालित मार्ग के तहत पूर्ण लाइसेंसिंग के साथ 100% तक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) की अनुमति है। इसलिये निवेशकों के लिये भारत में अपना विनिर्माण संयंत्र/दुकान स्थापित करना आसान हो गया है।
      • ऑटोमोटिव मिशन योजन 2016-26 (एएमपी 2026):
    • ऑटोमोटिव मिशन योजना 2016-26 (एएमपी 2026) भारत में ऑटोमोटिव इकोसिस्टम के विकास की दिशा को रेखांकित करती है, जिसमें अनुसंधान, डिज़ाइन, प्रौद्योगिकी, परीक्षण, निर्माण, आयात/निर्यात, बिक्री को नियंत्रित करने के साथ ही ऑटोमोटिव वाहनों, घटकों और सेवाओं का उपयोग, मरम्मत और पुनर्चक्रण शामिल है।
    • नेशनल इलेक्ट्रिक मोबिलिटी मिशन प्लान 2020 (NEMMP):
      • एनईएमएमपी पहल भरोसेमंद, किफायती और सक्षम एक्सईवी (हाइब्रिड और इलेक्ट्रिक वाहन) को प्रोत्साहित करने के लिये की गई है जो सरकार-उद्योग दोनों के सहयोग से उपभोक्ताओं के प्रदर्शन और कीमत संबंधी अपेक्षाओं को पूरा कर सके।

ऑटोमोबाइल उद्योग के समक्ष चुनौतियाँ:

  • शेयर्ड कार: गत 3-4 वर्षों में भारत में ओला, उबर जैसे शेयर ए्प में काफी तेज़ी से वृद्धि हुई है
    • ये एप भारी ट्रैफ़िक में ड्राइविंग जैसी परेशानी के बिना यात्रा को और अधिक सुविधाजनक बनाते हैं तथा वाहन के रखरखाव की लागत से बचाते हैं, वह भी सभी सस्ती दरों पर। इसने निश्चित रूप से स्वामित्व की अवधारणा को चुनौती दी है और इस प्रकार वाहनों की बिक्री को प्रभावित किया है।
  • टाइट क्रेडिट अवेलेबिलिटी: देश में 80-85% वाहनों को राष्ट्रीयकृत बैंकों, निजी बैंकों या NBFC द्वारा वित्तपोषित किया जाता है।
    • कार खरीदने वाले लोगों को ऋण देने में बैंक अतिरिक्त सतर्कता बरत रहे हैं।
  • इलेक्ट्रिक वाहनों की ओर संक्रमण: सरकार क्रमशः 2023 और 2025 तक आंतरिक दहन संचालित दोपहिया एवं तिपहिया वाहनों पर प्रतिबंध लगाने की योजना बना रही है।
    • यह परिवर्तन अचानक तब आया है, जब ऑटोमोबाइल क्षेत्र की स्थिति पहले से ही विकट है क्योंकि वाहनों की बिक्री दो दशक के निचले स्तर पर आ गई है और रोज़गार में कमी के साथ बाज़ार  की स्थिति भी खराब हो गई है।
  • कमर्शियल वाहनों की मांग में कमी: नए मॉडल के ट्रकों की माल ढुलाई क्षमता में वृद्धि हुई है। इससे नए ट्रकों की मांग में गिरावट आई है क्योंकि उपभोक्ता अपने ट्रकों में माल ढुलाई कर सकते हैं।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न:

प्रश्न: मैग्नेटाइट कण जो न्यूरोडीजेनेरेटिव समस्याओं का कारण बनते हैं, पर्यावरण प्रदूषक के रूप में निम्नलिखित में से किससे उत्पन्न होते हैं?

  1. मोटर वाहनों के ब्रेक
  2. मोटर वाहनों के इंजन
  3. घरों के भीतर माइक्रोवेव स्टोव
  4. बिजली संयंत्र
  5. टेलीफोन लाइनें

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1, 2, 3 और 5
(b) केवल 1, 2 और 4
(c) केवल 3, 4 और 5
(d) 1, 2, 3, 4 और 5

उत्तर: (d)

व्याख्या:

  • चुंबकीय नैनो कण, नैनो कणों का एक वर्ग है जिसे चुंबकीय क्षेत्रों का उपयोग करके फेरबदल किया जा सकता है। ऐसे कणों में आमतौर पर दो घटक होते हैं, पहला- चुंबकीय सामग्री, जिसमे लोहा, निकल और कोबाल्ट शामिल है और दूसरा- रासायनिक घटक जिसमें कार्यक्षमता होती है। जब भी उपकरणों में किसी चुंबकीय घटक का उपयोग किया जाता है, तो वे चुंबकीय प्रवाह उत्पन्न करते है और चुंबकीय कण उत्पन्न करते हैं।
  • ऑटोमोटिव उद्योग द्वारा वाहनों को सुरक्षित बनाने के लिये सिरेमिक या फेराइट मैग्नेट का उपयोग किया जाता है। मोटर वाहनों में इस प्रकार के चुंबकों के उपयोग से चुंबकीय कण उत्पन्न हो सकते हैं। अत: कथन 1 सही है।
  • मोटर वाहनों के इंजन चुंबकीय कण उत्पन्न कर सकते हैं क्योंकि वे उच्च शक्ति वाले चुंबकों का उपयोग करते हैं जो चुंबकीय प्रवाह उत्पन्न करते हैं। अत: 2 कथन सही है।
  • माइक्रोवेव में चुंबकीय उत्तेजक (Stirrer) (चुंबकीय उत्तेजक एक उपकरण है जो व्यापक रूप से प्रयोगशालाओं में उपयोग किया जाता है और इसमें घूर्णन चुंबक होता है) का उपयोग किया जाता है जो चुंबकीय कण उत्पन्न कर सकता है। अत: कथन 3 सही है।
  • विद्युत् संयंत्र राख के साथ धातु सामग्री उत्पन्न करते हैं। विद्युत् संयंत्रों में कोयले का उपयोग दहन से जुड़े मैग्नेटाइट महीन कणों का प्रमुख स्रोत है। अत: कथन 4 सही है।
  • टेलीफोन लाइनें कम आवृत्ति, कम ऊर्जा विद्युत चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न करती हैं जो मैग्नेटाइट कणों के संभावित स्रोत हैं। अत: कथन 5 सही है।

अतः विकल्प d सही है।

स्रोत: पी.आई.बी.


इंडिया डिस्क्रिमिनेशन रिपोर्ट

प्रिलिम्स के लिये:

इंडिया डिस्क्रिमिनेशन रिपोर्ट, ऑक्सफैम इंडिया, रोज़गार बेरोज़गारी पर राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण, आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS), समानता का अधिकार, भेदभाव का निषेध (अनुच्छेद 15)।

मेन्स के लिये:

महिलाओं और अल्पसंख्यकों के खिलाफ भेदभाव के प्रभाव।

चर्चा में क्यों?

ऑक्सफैम इंडिया द्वारा जारी की गई इंडिया डिस्क्रिमिनेशन रिपोर्ट ने इस संदर्भ पर प्रकाश डाला कि महिलाओं और हाशिये के समुदायों को नौकरी में भेदभाव का सामना करना पड़ा।

प्रमुख बिंदु

  • यह डेटासेट रोज़गार-बेरोज़गारी पर राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण (2004-05), वर्ष 2018-19 और 2019-20 में आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (Periodic Labour Force Survey-PLFS) एवं केंद्र द्वारा अखिल भारतीय ऋण तथा निवेश सर्वेक्षण के 61वें दौर से लिया गया था।
  • अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति: शिक्षा और सहायक सरकारी नीतियों के कारण शहरी क्षेत्रों में भेदभाव में कमी आई है।
    • आय में अंतर: गैर-अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति वर्ग के लोगों के लिये वर्ष 2019-20 में स्व-नियोजित श्रमिकों की औसत आय 15,878 रुपए, जबकि अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति पृष्ठभूमि के लोगों की औसत आय 10,533 रुपए थी।
      • स्व-नियोजित गैर-अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के कर्मचारी अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति पृष्ठभूमि के अपने समकक्षों की तुलना में एक-तिहाई अधिक कमाते हैं
    • ग्रामीण क्षेत्रों में भेदभाव में वृद्धि: ग्रामीण भारत में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समुदायों को आकस्मिक रोज़गार में भेदभाव में वृद्धि का सामना करना पड़ रहा है।
  • महिलाएँ: महिलाओं के खिलाफ भेदभाव इतना अधिक है कि धर्म या जाति-आधारित उप-समूहों या ग्रामीण-शहरी विभाजन में शायद ही कोई अंतर है।
    • इस अवधि में महिलाओं के प्रति होने वाला भेदभाव वर्ष 2004-05 के 67.2% से बढ़कर वर्ष 2019-20 में 75.7% हो गया है।
  • पुरुषों और महिलाओं के मध्य आय का अंतर: ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में आकस्मिक श्रमिकों के लिये 50% से 70% के मध्य आय का अंतर भी ज़्यादा है। नियमित श्रमिकों के लिये यह सीमा कम है, पुरुषों की आय महिलाओं की आय से 20-60% अधिक है।
    • स्वरोज़गार के मामले में असमानता बहुत अधिक है, पुरुषों की आय महिलाओं की तुलना में 4 से 5 गुना अधिक है।
    • भारत में लैंगिक भेदभाव संरचनात्मक है जिसके परिणामस्वरूप 'सामान्य परिस्थितियों' में पुरुषों और महिलाओं की आय के मध्य भारी असमानताएँ व्याप्त होती हैं।

भेदभाव के विरुद्ध संवैधानिक प्रावधान:

  • समानता का अधिकार (अनुच्छेद 14, 15, 16):
    • विधि के समक्ष समानता: अनुच्छेद 14 के अनुसार किसी भी व्यक्ति को विधि के समक्ष समानता या विधि के समान संरक्षण से वंचित नहीं किया जाएगा।
      • यह अधिकार सभी व्यक्तियों को प्राप्त है, चाहे वह नागरिक या विदेशी, वैधानिक निगम, कंपनियाँ, पंजीकृत संस्थाएँ या किसी अन्य प्रकार के कानूनी व्यक्ति हो।
    • भेदभाव का निषेध: अनुच्छेद 15 के तहत किसी भी नागरिक के साथ जाति, धर्म, लिंग, जन्म स्थान और वंश के आधार पर भेदभाव नहीं कर सकता।
    • सार्वजनिक रोज़गार में अवसर की समानता: भारतीय संविधान का अनुच्छेद 16 किसी भी सार्वजनिक कार्यालय में रोज़गार या नियुक्ति के मामलों में सभी नागरिकों के लिये अवसर की समानता प्रदान करता है।

महिला सशक्तीकरण से संबंधित प्रमुख सरकारी योजनाएँ:

आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (Periodic Labour Force Survey-PLFS):

  • अधिक नियत समय अंतराल पर श्रम बल डेटा की उपलब्धता के महत्त्व को ध्यान में रखते हुए राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) ने अप्रैल 2017 में आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS) की शुरुआत की।
  • PLFS के मुख्य उद्देश्य हैं:
    • 'वर्तमान साप्ताहिक स्थिति' (CWS) में केवल शहरी क्षेत्रों के लिये तीन माह के अल्‍पकालिक अंतराल पर प्रमुख रोज़गार और बेरोज़गारी संकेतकों (अर्थात् श्रमिक-जनसंख्या अनुपात, श्रम बल भागीदारी दर, बेरोज़गारी दर) का अनुमान लगाना।
    • प्रतिवर्ष ग्रामीण और शहरी दोनों ही क्षेत्रों में सामान्य स्थिति एवं CWS में रोज़गार एवं बेरोज़गारी संकेतकों का अनुमान लगाना।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न:

प्रश्न. भारत को "जनसांख्यिकीय लाभांश" वाला देश माना जाता है। यह निम्नलिखित में से किसके कारण है: (वर्ष 2011)

 (A) 15 वर्ष से कम आयु वर्ग में इसकी उच्च जनसंख्या
 (B) 15-64 वर्ष के आयु वर्ग में इसकी उच्च जनसंख्या
 (C) 65 वर्ष से अधिक आयु वर्ग में इसकी उच्च जनसंख्या
 (D) इसकी उच्च कुल जनसंख्या

 उत्तर: (B)

  • जनसांख्यिकीय लाभांश का अर्थ उस आर्थिक विकास संभावना या क्षमता से है जो जनसंख्या की आयु संरचना में परिवर्तन के परिणामस्वरूप साकार हो सकता है।
  • जनसांख्यिकीय लाभांश एक ऐसी स्थिति है जब किसी देश में प्रजनन क्षमता और मृत्यु दर में गिरावट के कारण त्वरित आर्थिक विकास होता है।
  • प्रजनन दर में गिरावट के साथ युवा आबादी की हिस्सेदारी घटती जाती है और यदि यह गिरावट तीव्र होती है तो कार्यशील आयु की आबादी में पर्याप्त वृद्धि होती है जिससे 'जनसांख्यिकीय लाभांश' प्राप्त होता है।
  • ऐसी स्थिति में, एक अर्थव्यवस्था के संसाधनों को मुक्त कर दिया जाता है और देश के आर्थिक विकास तथा वृद्धि में तेज़ी लाने के लिये अन्य क्षेत्रों में निवेश किया जाता है।
  • कुल उच्च जनसंख्या का अर्थ यह नहीं है कि कार्यशील जनसंख्या का उच्च अनुपात है।
  • 65 वर्ष से अधिक आयु की उच्च जनसंख्या आश्रित जनसंख्या के बड़े अनुपात और श्रम शक्ति के कम अनुपात को दर्शाती है।
  • एक देश जो निम्न मृत्यु दर के साथ निम्न जन्म दर का अनुभव करता है, उसे अपनी कार्यशील आबादी की उत्पादकता में वृद्धि से आर्थिक लाभांश मिलता है क्योंकि उसकी आश्रित जनसंख्या कम होती है (जैसे बच्चे)।
  • 15-64 वर्ष के आयु वर्ग की उच्च जनसंख्या उच्च कार्यशील जनसंख्या और श्रम शक्ति की ओर संकेत करती है। अतः विकल्प (B) सही उत्तर है।

प्रश्न. भारतीय संदर्भ में समवेशी विकास में निहित चुनौतियों, जिसमें लापरवाह और अनुपयुक्त जनशक्ति शामिल है, पर टिप्पणी कीजिये। इन चुनौतियों का सामना करने के उपाय सुझाइये। (मेन्स-2016)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


शैलो वाटर माइनिंग

प्रिलिम्स के लिये:

डीप-सी माइनिंग, शैलो वाटर माइनिंग, मरीन इकोसिस्टम

मेंस के लिये:

शैलो वाटर माइनिंग और इसके निहितार्थ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में शोधकर्त्ताओं के एक समूह ने सुझाव दिया है कि शैलो वाटर माइनिंग जैवविविधता संरक्षण और संधारणीयता लक्ष्यों के विपरीत है, क्योंकि यह गतिविधि गंभीर पर्यावरणीय जोखिम उत्पन्न करती है।

शैलो वाटर माइनिंग क्या है?

  • शैलो वाटर माइनिंग 200 मीटर से कम गहराई पर होटी है और इसे स्थलीय खनन की तुलना में कम विनाशकारी और डीप-वाटर इकोसिस्टम के खनन से कम जोखिमभरा बताया गया है।
  • धातुओं और खनिजों की मांग को पूरा करने के लिये इसे अपेक्षाकृत कम जोखिम वाला तथा कम लागत वाला विकल्प माना जाता है। इसके अलावा, शैलो वाटर माइनिंग के लिये तकनीक पहले से मौजूद है।
  • नामीबिया और इंडोनेशिया में उथले-जल खनन परियोजनाएँ पहले से ही चल रही हैं तथा मेक्सिको, न्यूज़ीलैंड एवं स्वीडन में ये परियोजनाएँ प्रस्तावित की गई हैं।

निष्कर्ष क्या हैं?

  • बारे में:
    • शैलो वाटर माइनिंग डीप-सी माइनिंग के लिये संधारणीय विकल्प नहीं है।
      • समुद्र का वह भाग जो 200 मीटर की गहराई से नीचे स्थित है, डीप-सी के रूप में परिभाषित किया गया है और इस क्षेत्र से खनिज निकालने की प्रक्रिया को डीप-सी माइनिंग के रूप में जाना जाता है।
    • शैलो वाटर के समुद्र तल से धातुओं की खनन प्रक्रिया में बड़ी मात्रा में तलछट को हटाने की आवश्यकता होती है।
    • इन तलछटों जिसे जमा होने में हजारों साल लगते हैं, को हटाने का मतलब उन जीवों जिनका यहाँ निवास, को खतरे में डालना है।
  • प्रभाव:
    • चूँकि उथले-जल के पारिस्थितिक तंत्र पहले से ही प्रदूषण के कारण संवेदनशील हैं और जलवायु परिवर्तन के प्रभाव, यहाँ तक कि छोटे पैमाने पर खनन गतिविधियाँ भी समुद्री पारिस्थितिक तंत्र को विशेष रूप से स्थानीय पैमाने पर प्रभावित कर सकती हैं।
    • खनिज खनन आवासों को परिवर्तित कर देता है और साथ ही स्थानीय जैवविविधता के नुकसान एवं प्रजातियों के समुदायों में परिवर्तन का कारण बनता है।
    • खनन के अप्रत्यक्ष प्रभाव जैसे कि समुद्री तल अवसाद का प्रसार और समुद्री तल से निकलने वाले हानिकारक पदार्थ समुद्री पर्यावरण की स्थिति को असंतुलित करने में योगदान करते हैं।
    • उथले-जल खनन के समग्र पर्यावरणीय प्रभाव उन परिचालनों के समान हैं जहाँ समुद्री तल की खुदाई की जाती है, जैसे ड्रेजिंग। इसका मतलब है कि पारिस्थितिक तंत्र को संतुलित होने में दशकों लग सकते हैं।

सुझाव:

  • उथले-जल खनन गतिविधियों को "धातुओं की बढ़ती वैश्विक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये सिल्वर बुलेट" नहीं माना जाना चाहिये, जब तक कि पर्यावरणीय और सामाजिक आर्थिक प्रभावों की पूरी तरह से जाँच न हो जाए।
  • इस जानकारी के बिना कोई भी गहरे समुद्र में जैवविविधता, पारिस्थितिकी तंत्र और मानव कल्याण के लिये खनन गतिविधि के संभावित जोखिमों को नहीं समझ सकता है।
  • उथले समुद्री क्षेत्रों में खनन के लिये एहतियाती सिद्धांत लागू किया जाना चाहिये। उनका मानना है कि संचालन की अनुमति तब तक नहीं दी जानी चाहिये जब तक कि उसके जोखिम का पूरी तरह से आकलन नहीं हो जाता।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न:

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:

  1. वैश्विक महासागर आयोग अंतर्राष्ट्रीय जल में समुद्र तल की खोज और खनन के लिये लाइसेंस प्रदान करता है।
  2. भारत को अंतर्राष्ट्रीय जल में समुद्र तल खनिज अन्वेषण के लिये लाइसेंस प्राप्त हुआ है।
  3. 'दुर्लभ मृदा खनिज' अंतर्राष्ट्रीय समुद्र जल तल पर मौजूद हैं।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (b)

व्याख्या:

  • वैश्विक महासागर आयोग, वर्ष 2013 से 2016 के मध्य जागरूकता बढ़ाने समुद्र के क्षरण को दूर करने के लिये कार्रवाई को बढ़ावा देने एवं इसके पूर्ण रूप से स्वस्थ और उत्पादकता में मदद करने के लिये एक अंतर्राष्ट्रीय पहल थी।
  • इंटरनेशनल सीबेड अथॉरिटी (ISA) संयुक्त राष्ट्र का एक निकाय है, जो अंतर्राष्ट्रीय जल में महासागरों के समुद्री गैर-जीवित संसाधनों की खोज और दोहन को विनियमित करने के लिये स्थापित किया गया है। यह गहन समुद्री संसाधनों की खोज एवं दोहन पर विचार करता है, जो पर्यावरणीय प्रभाव का आकलन करता है तथा खनन गतिविधियों की निगरानी करता है। अतः कथन 1 सही नहीं है।
  • भारत, वर्ष 1987 में 'पायनियर इन्वेस्टर' का दर्जा प्राप्त करने वाला पहला देश था और नोड्यूल की खोज के लिये भारत को मध्य हिंद महासागर बेसिन (CIOB) में लगभग 5 लाख वर्ग किमी के क्षेत्र पर अनुमति प्रदान की गई थी। मध्य हिंद महासागर बेसिन में समुद्र तल से पॉलीमेटेलिक नोड्यूल्स की खोज करने के लिये भारत के विशेष अधिकारों को वर्ष 2017 में पाँच वर्षों के लिये बढ़ा दिया गया था। अत: कथन 2 सही है।
  • दुर्लभ मृदा खनिजों में अद्वितीय चुंबकीय, ल्यूमिनसेंट और विद्युत रासायनिक गुण होते हैं और इस प्रकार उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स, कंप्यूटर एवं नेटवर्क, संचार, स्वास्थ्य देखभाल, राष्ट्रीय रक्षा आदि सहित कई आधुनिक तकनीकों में उपयोग किया जाता है। इन्हें 'दुर्लभ मृदा खनिज' कहा जाता है तथा पूर्व में तकनीकी रूप से आक्साइड रूपों में इसका निष्कर्षण एक कठिन कार्य था।
  • दुर्लभ मृदा खनिज अंतर्राष्ट्रीय जल में समुद्र तल पर मौजूद हैं। विभिन्न महासागरों के समुद्र तल में दुर्लभ-पृथ्वी खनिजों का दुनिया का सबसे बड़ा अप्रयुक्त संग्रह है। अत: कथन 3 सही है।

अतः विकल्प (b) सही है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


भारत में सामाजिक उद्यमिता

प्रिलिम्स के लिये:

सामाजिक उद्यमी, गरीबी, पर्यावरण, सामाजिक और शासन (ESG) निवेश

मेन्स के लिये:

भारत में सामाजिक उद्यमिता, सामाजिक उद्यमियों का महत्त्व, विकास से संबंधित मुद्दे, वृद्धि और विकास

चर्चा में क्यों?

व्यवसायों और सरकारों के लिये वैश्विक सामाजिक-आर्थिक और पर्यावरणीय मुद्दों के बारे में निर्णय लेने हेतु सामाजिक उद्यमिता तेज़ी से महत्त्वपूर्ण होती जा रही है।

सामाजिक उद्यमी:

  • परिचय:
    • यह वाणिज्यिक उद्यम के विचार को धर्मार्थ (Charitable) गैर-लाभकारी संगठन के सिद्धांतों के साथ मिश्रित करने वाली अवधारणा है।
    • इसमें सामाजिक असमानताओं को दूर करने हेतु कम लागत वाले उत्पादों एवं सेवाओं से जुड़े व्यावसायिक मॉडल के विकास पर ज़ोर दिया जाता है।
    • यह अवधारणा आर्थिक पहल को सफल बनाने में मदद करती है और इसके तहत किये जाने वाले सभी निवेश सामाजिक एवं पर्यावरणीय मिशन पर केंद्रित होते हैं।
    • सामाजिक उद्यमियों को सामाजिक नवप्रवर्तनकर्त्ता (Social Innovators) भी कहा जाता है। वे परिवर्तनकारी एजेंट के रूप में कार्य करते हैं और अपने अभिनव विचारों का उपयोग करके महत्त्वपूर्ण परिवर्तन करते हैं।
    • वे समस्याओं की पहचान करते हैं और अपनी योजना के माध्यम से उनका समाधान करते हैं।
    • सामाजिक उत्तरदायित्व (Social Responsibility) और ESG (पर्यावरण, सामाजिक और शासन) निवेश के साथ-साथ सामाजिक उद्यमिता की अवधारणा भी तेज़ी से विकसित हो रही है।
    • सामाजिक उद्यमिता के उदाहरणों में- गरीब बच्चों के लिये शैक्षिक कार्यक्रम शुरू करना, पिछड़े क्षेत्रों में बैंकिंग सेवाएँ प्रदान करना और महामारी के कारण अनाथ हुए बच्चों की मदद करना शामिल है।

सामाजिक उद्यमियों का महत्त्व:

  • सामाजिक समस्याओं पर ध्यान देना: सामाजिक उद्यमी मुख्य रूप से सामाजिक समस्याओं पर ध्यान केंद्रित करते हैं। वे सामाजिक समस्याओं के समाधान के लिये सामाजिक व्यवस्था के निर्माण हेतु उपलब्ध संसाधनों को जुटाकर नवाचार की पहल करते हैं।
  • सामाजिक क्षेत्र में बदलाव के एजेंट: सामाजिक उद्यमी समाज में परिवर्तनकर्त्ताओं के रूप में कार्य करते हैं और इस रूप में मानव जाति के विकास में योगदान के लिये दूसरों को भी प्रेरित करते हैं।
    • वे न केवल समाज में एक मज़बूत उत्प्रेरक के रूप में कार्य करते हैं, बल्कि सामाजिक क्षेत्र में बदलाव के एजेंट के रूप में भी कार्य करते हैं।
  • परिवर्तन लाना: वे सामाजिक मूल्यों के सृजन और उसे बनाए रखने के लिये एक मिशन को अंगीकार करते हैं। वे नए अवसरों की पहचान करते हैं और उनका सख्ती से पालन करते हैं। वे लगातार नवाचार, अनुकूलन और लर्निंग की प्रक्रिया में संलग्न होते हैं।
  • जवाबदेही में बढ़ोतरी: वे उपलब्ध संसाधनों तक सीमित रहे बिना साहसपूर्वक कार्य करते हैं और लक्षित समूहों के प्रति उच्च जवाबदेही का प्रदर्शन करते हैं।
  • लोगों के जीवन में सुधार: लोग नोबेल शांति पुरस्कार विजेता मुहम्मद यूनुस जैसे सामाजिक उद्यमियों की ओर आकर्षित होते हैं, वहीं कई कारणों से वे स्टीव जॉब्स जैसे व्यावसायिक उद्यमियों का अनुसरण करते है, ये असाधारण लोग शानदार विचारों के साथ आते हैं और सभी बाधाओं के खिलाफ नए उत्पादों को बनाने तथा सेवाओं को प्रदान करने में सफल होते हैं जिससे लोगों के जीवन में नाटकीय रूप से सुधार होता है।
  • समावेशी समाज को प्राप्त करने में सहायता: वे ज़मीनी स्तर पर समावेशी सुधार और समुदायों के पुनर्निर्माण में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।

सामाजिक उद्यमियों का भारत के विकास में योगदान:

  • कोई अन्य गैर-लाभ नहीं:
    • भारत के विकास क्षेत्र में तेज़ी से परिवर्तन आया है, जिसमें लाभकारी सामाजिक उद्यमों की स्थापना शामिल है जो अब "गैर-लाभकारी" या "कम-लाभ" वाले उद्यमों तक सीमित नहीं हैं।
      • ये लाभकारी सामाजिक उद्यम दान या अनुदान के बिना अपने संचालन के लिये पर्याप्त धन अर्जित कर सकते हैं।
  • सामाजिक प्रभाव निवेश:
    • भारत की सबसे चुनौतीपूर्ण विकासात्मक मांगों को पूरा करने में सक्षम होने के लिये देश के सामाजिक उद्यमियों को पोषित, प्रोत्साहित और सम्मानित किया जा रहा है
    • प्रभाव निवेशक परिषद (Impact Investors Council-IIC) के अनुसार, भारत में लगभग 600 उद्यम अब 500 मिलियन लोगों को लाभान्वित करते हैं, जो 9 बिलियन अमेरिकी डाॅलर से अधिक की पूंजी को आकर्षित करते हैं।
      • प्रभाव निवेशक परिषद (IIC) भारत में प्रभावी निवेशकों का प्रमुख राष्ट्रीय उद्योग संघ है।
      • इसका मिशन प्रभावशाली निवेश परिसंपत्ति वर्ग विकसित करते हुए देश में सामाजिक निवेश अंतर को समाप्त करने के लिये निजी पूंजी को प्रोत्साहित करना है।
  • सामाजिक नवाचार आंदोलन को मज़बूत करना:
    • आज के सामाजिक उद्यमी भारत के विकास में योगदान देने वाले मौलिक नवप्रवर्तक और गतिशील समस्या-समाधानकर्त्ता बन गए हैं।
    • ये उद्यम अद्वितीय समस्याओं को नवोन्मेषी रूप से हल करने के लिये घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय दोनों तरह के रणनीतिक सहयोग की तलाश में हैं।
    • प्रौद्योगिकी के व्यापक उपयोग तथा सरकार द्वारा तेज़ी से डिजिटलीकरण की पहल ने उनके नवाचार को और आसान बना दिया है।
  • सरकार का समर्थन:
    • सोशल स्टॉक एक्सचेंज की घोषणा और आसन्न लॉन्च के साथ-साथ स्टार्टअप्स के लिये सरकारी समर्थन ने भारत में सामाजिक उद्यमिता हेतु अधिक सकारात्मक माहौल का मार्ग प्रशस्त किया है।
    • भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड ने हाल ही में सोशल स्टॉक एक्सचेंज के लिये रूपरेखा जारी की है, जिससे सामाजिक उद्यमियों हेतु अधिक धन जुटाना और अपने प्रभाव का विस्तार करना एवं तेज़ी से पहुँचना संभव हो गया है।
  • स्थिरता और बहुआयामी दृष्टिकोण:
    • व्यवसाय और सरकार दोनों ही स्थिरता के महत्त्व के बारे में तेज़ी से जागरूक हो रहे हैं।
    • सामाजिक उद्यमी और उनके व्यवसाय मॉडल हमेशा स्थिरता ढाँचे पर कार्य करते रहे हैं।
    • सरकार और कॉरपोरेट फर्म न केवल अपने व्यवसाय मॉडल से प्रेरणा लेने और उनसे सीखने वाले कार्यों को शामिल करने के लिये तैयार हैं, बल्कि इन उद्यमों को आगे बढ़ने में सहायता करने हेतु भी तैयार हैं।
    • इसके अतिरिक्त समाज में प्रचलित सामाजिक-आर्थिक अंतराल को कम करने के लिये एक बहुआयामी दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है।
      • उदाहरण के लिये वित्तीय संसाधनों की कमी के अलावा गरीबी के सांस्कृतिक, सामाजिक, मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक आयाम भी हैं, जो भेदभाव, बहिष्कार, असुरक्षा, भेद्यता, शक्तिहीनता एवं अस्वीकृति के रूप में प्रकट होते हैं।
      • सामाजिक उद्यमी मॉडल प्रत्येक समस्या के लिये अनुकूलन प्रदान करते हैं, इसलिये किसी मुद्दे के सभी आयामों को संबोधित कर सकते हैं।

आगे की राह

  • अमृत काल (25 वर्ष की अवधि वर्ष 2047 तक) में उद्देश्य, दृष्टि, मूल्य और लोकाचार से प्रेरित सामाजिक कार्यों के इन उत्साही लोगों पर एक बड़ा सामाजिक आर्थिक प्रभाव पैदा करने के लिये अधिक ज़िम्मेदारी लेने तथा अर्थव्यवस्था का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा बनने के लिये भरोसा किया जा सकता है।
    • एक दशक से अधिक समय से श्वाब (Schwab) फाउंडेशन फॉर सोशल एंटरप्रेन्योरशिप, विश्व आर्थिक मंच (World Economic Forum-WEF) की एक सहयोगी संस्था और जुबिलेंट भारतीय फाउंडेशन ने अपने वार्षिक सोशल एंटरप्रेन्योर ऑफ ईयर (Social Entrepreneur of the Year-SEOY) इंडिया अवार्ड के माध्यम से भारत में सामाजिक उद्यमिता का पोषण किया है। SEOY अवार्ड इंडिया-2022 इस पुरस्कार का 13वाँ संस्करण है।
    • इस वर्ष के पुरस्कार के उच्च प्रभाव वाले विजेता उपरोक्त संकेतों को पूरी तरह से प्रतिबिंबित करते हैं और हमें आश्वस्त करते हैं कि अगले 25 वर्षों में जब भारत अपनी स्वतंत्रताा की 100वीं वर्षगाँठ मनाएगा तब सामाजिक उद्यम देश में बहुत अधिक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे होंगे।
  • सामाजिक उद्यमियों के लिये कार्यक्रमों को शुरू करना, महामारी से प्रेरित अंतरालों को कम करना, मौज़ूदा पहलों को बढ़ाना और मुख्यधारा की प्रतिक्रिया प्रणाली का हिस्सा बनना वर्तमान समय की आवश्यकता है।

स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स


रामकृष्ण मिशन के 'जागृति' कार्यक्रम

प्रिलिम्स के लिये: 

रामकृष्ण मिशन का 'जागृति' कार्यक्रम, केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई), स्वामी विवेकानंद।

मेन्स के लिये:

स्वामी विवेकानंद की शिक्षाओं का महत्त्व।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय शिक्षा मंत्री ने स्कूली छात्रों के लिये रामकृष्ण मिशन के 'जागृति' कार्यक्रम की शुरुआत की।

‘जागृति' कार्यक्रम:

  • परिचय:
    • यह राष्ट्रीय शिक्षा नीति (National Education Policy-NEP), 2020 के अनुरूप एक बच्चे के समग्र व्यक्तित्व विकास को सुनिश्चित करने की दिशा में एक पहल है।
    • यह पहली से पाँचवीं कक्षा तक के छात्रों के लिये है।
  • पृष्ठभूमि:
    • रामकृष्ण मिशन, दिल्ली शाखा, वर्ष 2014 से माध्यमिक विद्यालय के छात्रों को "आत्मश्रद्धा" (आत्म-सम्मान) निर्माण और विकल्पों के चयन में सक्षम बनाने के लिये जागृत नागरिक कार्यक्रम का सफलतापूर्वक संचालन कर रहा है। यह उन्हें जीवन की सभी समस्याओं का समाधान खोजने में मदद करता है।
    • शिक्षाविदों की ओर से प्राथमिक विद्यालय के छात्रों के लिये इसी तरह के कार्यक्रम की मांग की गई है।
      • इसके जवाब में 'जागृति' को 126 स्कूलों के लिये डिज़ाइन और संचालित किया गया है।
  • केंद्र बिंदु:
    • सामाजिक परिवर्तन शिक्षा के प्रमुख लक्ष्यों में से एक है।
    • मूल्य और ज्ञान भौतिक सुखों से अधिक महत्त्वपूर्ण  हैं।
    • भविष्य के लिये तैयार और सामाजिक रूप से जागरूक पीढ़ी के निर्माण के लिये मूल्य आधारित शिक्षा आवश्यक है।

रामकृष्ण मिशन:

  • परिचय:
    • रामकृष्ण मिशन व्यापक शैक्षिक और परोपकारी कार्य करता है तथा भारतीय दर्शन के एक स्कूल अद्वैत वेदांत के आधुनिक संस्करण की व्याख्या करता है।
    • मिशन की स्थापना वर्ष 1897 में विवेकानंद द्वारा कोलकाता के पास संत रामकृष्ण (वर्ष 1836-86) के जीवन में सन्निहित वेदांत की शिक्षाओं का प्रसार करना और भारतीय लोगों की सामाजिक स्थितियों में सुधार करने के दोहरे उद्देश्य के साथ की गई थी।
    • संगठनों को 19वीं सदी के बंगाल के महान संत श्री रामकृष्ण (1836-1886) जिन्हें आधुनिक युग का पैगंबर माना जाता है तथा उनके प्रमुख शिष्य स्वामी विवेकानंद (1863-1902) द्वारा अस्तित्व में लाया गया था।
  • आदर्श वाक्य: "आत्मानो मोक्षार्थं जगद हिताय चा" ("अपने स्वयं के उद्धार और दुनिया के कल्याण के लिये")।

स्वामी विवेकानंद:

  • जन्म:
    • स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी, 1863 को हुआ तथा उनके बचपन का नाम नरेंद्र नाथ दत्त था।
    • प्रत्येक वर्ष स्वामी विवेकानंद की जयंती (12 जनवरी) को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाई जाती है।
    • वर्ष 1893 में खेतड़ी राज्य के महाराजा अजीत सिंह के अनुरोध पर उन्होंने 'विवेकानंद' नाम अपनाया।
  • योगदान:
    • उन्होंने विश्व को वेदांत और योग के भारतीय दर्शन से परिचित कराया।
      • उन्होंने 'नव-वेदांत' का प्रचार किया, एक पश्चिमी धारा के माध्यम से हिंदू धर्म की व्याख्या और भौतिक प्रगति के साथ आध्यात्मिकता के संयोजन में विश्वास किया।
    • विवेकानंद ने मातृभूमि के उत्थान के लिये शिक्षा पर सबसे अधिक बल दिया। मानव हेतु चरित्र-निर्माण की शिक्षा की वकालत की।
    • उन्हें वर्ष 1893 में शिकागो में विश्व धर्म संसद में दिये गए उनके भाषण के लिये जाना जाता है।
    • सांसारिक सुख और मोह से मोक्ष प्राप्त करने के चार मार्गों का वर्णन उन्होंने अपनी पुस्तकों (राजयोग, कर्मयोग, ज्ञानयोग और भक्तियोग) में किया है।
    • नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने विवेकानंद को "आधुनिक भारत का निर्माता" कहा था।
  • संबंधित संगठन:
    • वह 19वीं सदी के रहस्यवादी रामकृष्ण परमहंस के मुख्य शिष्य थे और उन्होंने वर्ष 1897 में रामकृष्ण मिशन की स्थापना की।
      • रामकृष्ण मिशन एक ऐसा संगठन है जो मूल्य आधारित शिक्षा, संस्कृति, स्वास्थ्य, महिला सशक्तीकरण, युवा एवं आदिवासी कल्याण एवं राहत तथा पुनर्वास के क्षेत्र में काम करता है।
    • वर्ष 1899 में उन्होंने बेलूर मठ की स्थापना की, जो उनका स्थायी निवास बन गया।
  • राष्ट्रवाद:
    • हालाँकि राष्ट्रवाद के विकास का श्रेय पश्चिमी प्रभाव को जाता है लेकिन स्वामी विवेकानंद का राष्ट्रवाद भारतीय आध्यात्मिकता और नैतिकता में गहराई से निहित है।
    • उनका राष्ट्रवाद मानवतावाद और सार्वभौमिकता पर आधारित है, जो भारतीय आध्यात्मिक संस्कृति की दो प्रमुख विशेषताएँ हैं।
    • पश्चिमी राष्ट्रवाद के विपरीत जो प्रकृति में धर्मनिरपेक्ष है, स्वामी विवेकानंद का राष्ट्रवाद धर्म पर आधारित है जो भारतीय लोगों का जीवन रक्त है।
    • उनके राष्ट्रवाद के आधार हैं:
      • जनता, स्वतंत्रता और समानता के लिये गहरी चिंता व्यक्त की और सार्वभौमिक भाईचारे के आधार पर दुनिया के आध्यात्मिक एकीकरण पर बल दिया।
      • "कर्मयोग" निःस्वार्थ सेवा के माध्यम से राजनीतिक और आध्यात्मिक दोनों तरह की स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिये नैतिकता की एक प्रणाली है।
    • उनके लेखन और भाषणों ने मातृभूमि को देशवासियों द्वारा मन और दिल से पूजे जाने वाले एकमात्र देवता के रूप में स्थापित किया।
  • मृत्यु:
    • वर्ष 1902 में बेलूर मठ में उनकी मृत्यु हो गई। पश्चिम बंगाल में स्थित बेलूर मठ, रामकृष्ण मठ और रामकृष्ण मिशन का मुख्यालय है।

स्रोत: पी.आई.बी.


आदिवासी समूह समझौता

प्रिलिम्स के लिये:

पूर्वोत्तर भारत, असम के जनजातीय समूह, पूर्वोत्तर भारत में शांति के लिये समझौते

मेन्स के लिये:

शांति बनाए रखने में सरकारी हस्तक्षेप, पूर्वोत्तर भारत के आदिवासी

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत सरकार, असम सरकार और आठ सशस्त्र आदिवासी समूहों के प्रतिनिधियों ने एक ऐतिहासिक समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं।

  • असम में आदिवासियों और चाय बागान श्रमिकों के दशकों पुराने संकट को समाप्त करने के लिये इस समझौते पर हस्ताक्षर किये गए।

Myanmar

आदिवासी समूह समझौता:

  • परिचय:
    • इस त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर के साथ ही असम के आदिवासी समूहों के 1182 कार्यकर्त्ता आत्मसर्पण कर मुख्यधारा में शामिल हो गए हैं।
  • उद्देश्य:
    • समझौते का उद्देश्य समूहों की सामाजिक, सांस्कृतिक, भाषायी और समुदाय-आधारित पहचान की रक्षा करना तथा उसे मज़बूत करना है।
    • इसका उद्देश्य आदिवासी समूहों की राजनीतिक, आर्थिक और शैक्षिक आकांक्षाओं को पूरा करना भी है।
    • इसका उद्देश्य पूरे राज्य में आदिवासी गाँवों/क्षेत्रों के साथ-साथ चाय बागानों का तीव्र एवं केंद्रित विकास सुनिश्चित करना है।
  • समझौते के प्रावधान:
    • समझौते में चाय बागानों का त्वरित और केंद्रित विकास सुनिश्चित करने के उद्देश्य से एक आदिवासी कल्याण एवं विकास परिषद की स्थापना करने का भी प्रावधान किया गया है।
    • समझौते में सशस्त्र कैडरों के पुनर्वास व पुनर्स्थापन तथा चाय बागान श्रमिकों के कल्याण के उपाय करने का भी प्रावधान है।
    • आदिवासी आबादी वाले गाँवों/क्षेत्रों में बुनियादी ढाँचे के विकास के लिये पाँच साल की अवधि में 1000 करोड़ रुपए का विशेष विकास पैकेज प्रदान किया जाएगा।
  • उग्रवाद संबंधी आँकड़े:
    • वर्ष 2014 से अब तक लगभग 8,000 उग्रवादी हथियार डालकर समाज की मुख्यधारा में शामिल हुए हैं।
    • पिछले दो दशकों में सबसे कम उग्रवाद की घटनाएँ वर्ष 2020 में दर्ज हुई हैं।
    • वर्ष 2014 की तुलना में वर्ष 2021 में उग्रवाद की घटनाओं में 74 प्रतिशत की कमी आई है।
      • इसी अवधि में सुरक्षा बलों की मृत्यु के आंकड़े में 60 प्रतिशत और आम नागरिकों की मृत्यु में 89 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है।

पूर्वोत्तर भारत में शांति के लिये सरकार के प्रयास:

  • समझौते:
    • NLFT समझौता 2019:
      • ‘नेशनल लिबरेशन फ्रंट ऑफ त्रिपुरा’ (NLFT) को वर्ष 1997 से गैरकानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम, 1967 के तहत प्रतिबंधित कर दिया गया है और यह अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर अपने शिविरों के माध्यम से हिंसा फैलाने के लिये उत्तरदायी है।
      • समझौता 2019 के परिणामस्वरूप 44 हथियारों के साथ 88 कैडरों का आत्मसमर्पण कराया गया।
    • ब्रू-रियांग (BRU-REANG):
      • ब्रू या रियांग पूर्वोत्तर भारत का एक स्थानीय समुदाय है, जो ज़्यादातर त्रिपुरा, मिज़ोरम और असम में रहता है। त्रिपुरा में उन्हें विशेष रूप से संवेदनशील जनजातीय समूह के रूप में मान्यता प्राप्त है।
      • 23 साल पुराने ब्रू-रियांग शरणार्थी संकट को हल करने के लिये 16 जनवरी, 2020 को एक ऐतिहासिक समझौते पर हस्ताक्षर किये गए, जिसके द्वारा 37,000 से अधिक आंतरिक रूप से विस्थापित लोगों को त्रिपुरा में बसाया जा रहा है।
    • बोडो समझौता 2020:
      • असम में अधिसूचित अनुसूचित जनजातियों में बोडो सबसे बड़ा समुदाय है।
        • वे वर्ष 1967-68 से बोडो राज्य की मांग कर रहे हैं।
      • असम में पाँच दशक पुराने बोडो मुद्दे को हल करने के लिये 27 जनवरी, 2020 को बोडो समझौते पर हस्ताक्षर किये गए, जिसके परिणामस्वरूप 30 जनवरी, 2020 को गुवाहाटी में भारी मात्रा में हथियारों और गोला-बारूद के साथ 1615 समूहों ने आत्मसमर्पण किया।
    • कार्बी आंगलोंग समझौता 2021:
      • असम के कार्बी क्षेत्रों में लंबे समय से चल रहे विवाद को हल करने के लिये इस पर हस्ताक्षर किये गए थे जिसमें 1000 से अधिक सशस्त्र कैडरों ने हिंसा को त्याग दिया और समाज की मुख्यधारा में शामिल हो गए।
    • असम-मेघालय अंतर-राज्य सीमा समझौता 2022 (AMISB):
      • असम और मेघालय राज्यों के बीच अंतर-राज्यीय सीमा विवाद के कुल 12 क्षेत्रों में से 6 पर विवाद को निपटाने के लिये 29 मार्च, 2022 को AMISB समझौते 2022 पर हस्ताक्षर किये गए थे।
  • AFSPA की आंशिक वापसी:
    • भारत सरकार ने अप्रैल 2022 में तीन पूर्वोत्तर राज्यों असम, नगालैंड और मणिपुर से सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम (AFSPA), 1958 को आंशिक रूप से वापस ले लिया।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ):

प्रश्न. मानवाधिकार कार्यकर्त्ता हमेशा ही इस तथ्य को उजागर करते हैं कि सशस्त्र बल (विशेष शक्तियाँ) अधिनियम, 1958 (AFSPA) एक सख्त अधिनियम है जिसके कारण सुरक्षा बलों द्वारा मानवाधिकारों के हनन के मामले सामने आते रहते हैं। ये कार्यकर्त्ता अफस्पा (AFSPA) के किस भाग का विरोध कर रहे हैं? सर्वोच्च न्यायालय द्वारा रखे गए दृष्टिकोण के संदर्भ में इसकी आवश्यकता का समालोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये। (2015)

स्रोत: पी.आई.बी.


संज्ञानात्मक विसंगति

मेन्स के लिये:

संज्ञानात्मक विसंगति अवधारणा, नैतिकता और मानव इंटरफेस

संज्ञानात्मक विसंगति:

  • परिचय:
    • संज्ञानात्मक विसंगति की परिभाषा है बेचैनी की वह भावना जो किसी के विश्वास, दृष्टिकोण, मूल्यों और उसके कार्यों के बीच आपसी तनाव के कारण पैदा होती है।
    • संज्ञानात्मक विसंगति की धारणा 1950 के दशक में अमेरिकी संज्ञानात्मक लियोन फेस्टिंगर द्वारा विकसित की गई थी।
    • फेस्टिंगर को विश्वास था कि लोगों को उनके विश्वासों, दृष्टिकोणों और व्यवहारों के सामंजस्य एवं संबद्धता को बढ़ावा देने के लिये प्रेरित किया गया था। ऐसे में जब लोगों में यह भावना विकसित हो जाती है कि उनके मानसिक सामंजस्य में खराबी आ गई है, तो वे अपनी संज्ञानात्मक विसंगति को समाप्त करने का प्रयास करने लगेंगे।
  • परीक्षण:
    • फेस्टिंगर ने एक प्रयोग किया जिसमें लोगों को एक नीरस, दोहराव वाला (पेंचों को मोड़ने) काम करना था।
    • उन्हें किसी से झूठ बोलने के लिये पैसा दिया गया और फिर उस व्यक्ति को यह समझाने का प्रयास करना था कि कार्य दिलचस्प था।
    • फेस्टिंगर ने दो समूह बनाए, एक समूह के सदस्यों को छोटी राशि का भुगतान किया गया और दूसरे समूह को एक बड़ी राशि का भुगतान किया गया। फेस्टिंगर ने पाया कि जिन लोगों को अधिक पैसा दिया गया था उन्होंने कम संज्ञानात्मक विसंगति का अनुभव किया।
  • संज्ञानात्मक विसंगति सिद्धांत:
    • यह न केवल किसी के विश्वासों और कार्यों के बीच तनाव से उत्पन्न होने वाली असुविधा की भावनाओं को समझाने का प्रयास करता है बल्कि यह भी विश्लेषण करता है कि लोग इस तनाव को कैसे हल करते हैं।

संज्ञानात्मक विसंगति का कारण:

  • बाध्यकारी अनुपालन व्यवहार:
    • बाध्यकारी अनुपालन एक ऐसी स्थिति है जिसमें एक व्यक्ति को ऐसा कार्य करने के लिये मजबूर किया जाता है जो उसके विश्वासों के विपरीत है
    • चूँकि कार्य पहले ही हो चुका है और व्यवहार को बदला नहीं जा सकता है, विसंगति को कम करने का तरीका यही है कि व्यक्ति अपने द्वारा किये गए कार्यों का पुनर्मूल्यांकन करे।
  • निर्णयन:
    • निर्णय अक्सर विसंगति पैदा कर सकते हैं क्योंकि निर्णयों में एक विकल्प को दूसरे पर चुनना शामिल होता है, जिसका अर्थ है एक विकल्प के नुकसान को स्वीकार करना।
      • उदाहरण:
        • किसी व्यक्ति को एक बड़े शहर में नौकरी का ऑफर मिलता है, लेकिन नौकरी के प्रस्ताव को अस्वीकार करने का मतलब है दोस्तों व परिवार के पास रहना।
        • दोनों विकल्पों के अपने-अपने लाभ और हानि हैं: अगर वह व्यक्ति नौकरी को स्वीकार कर लेता है तो अपने प्रियजनों से दूर हो जाएगा और यदि नौकरी ठुकरा देता है तो शहर में उपलब्ध अवसरों से चूक जाएगा।
  • प्रयास:
    • अधिकांश लोग बड़े लक्ष्यों को ज़्यादा महत्त्व देते हैं जिसे प्राप्त करने के लिये अत्यधिक प्रयासों की आवश्यकता होती है।
    • लेकिन संज्ञानात्मक विसंगति तब भी हो सकती है जब कोई व्यक्ति कुछ हासिल करने के लिये बहुत प्रयास करता है और बाद में वही नकारात्मक या अवांछनीय हो जाता है।

संज्ञानात्मक विसंगति को कैसे हल किया जा सकता है?

  • परिचय:
    • ऐसे कई तरीके थे जिनसे व्यक्तियों या समूहों ने अपनी परिस्थितियों के अनुकूल संज्ञानात्मक विसंगति का समाधान किया।
    • व्यक्ति अपने विचारों को बदल सकता है, अपने विचार और व्यवहार को सुमेलित कर सकता है, अपने व्यवहार को सही ठहराने के लिये एक विचार जोड़ सकता है अथवा विचारों एवं व्यवहार के बीच विसंगति को कम सकता है।
  • उदाहरण:
    • X एक 25 वर्षीय स्नातक (बेरोज़गार) है जिसने हाल ही में एक राजनीतिक दल का समर्थन करना शुरू किया है।
    • वह उस राजनीतिक दल का अनुकरण करता है क्योंकि वह सत्ता में आने पर देश में युवाओं के लिये बेहतर रोज़गार के अवसर और विकास प्रदान करने के उनके वादों में विश्वास करता है।
    • उसकी पार्टी चुनाव जीत जाती है। सत्ता में उस पार्टी के पाँच साल पूरे होने के बावजूद रोज़गार के क्षेत्र में कुछ ख़ास बदलाव नहीं आया है और X अभी भी बेरोज़गार है। चूँकि अगला चुनाव आने वाला है, उस राजनीतिक पार्टी के सदस्य फिर उसकी मदद मांगते हैं। ऐसी स्थिति में X क्या करेगा?
      • X उस स्थिति के विषय में अपनी राय बदल सकता है:
        • वह अपने पड़ोसियों A और B, जो कि ग्रेजुएट हैं, की ओर देखता है। उन्होंने अपनी गली में ही चाय और समोसे की दुकान खोली है।
        • व्यावहारिक अर्थों में न सही, लेकिन X ने निष्कर्ष निकाला कि उसकी पार्टी के सत्ता में आने के बाद नौकरियों का सृजन हुआ है ऐसे में इस स्थिति के विषय में उसकी राय बदलती है और उसके विश्वास की विसंगति में कमी आती है। इस प्रकार बदले हुए नज़रिये के साथ वह फिर से उसी राजनीतिक पार्टी को वोट देगा।
      • उस स्थिति के प्रति X अपना व्यवहार बदल सकता है:
        • वह समझता है और स्वीकार करता है कि जिस राजनीतिक दल का उसने समर्थन किया था, उसके वादे झूठे थे और अब उन पर भरोसा नहीं करने का फैसला लेता है।
      • X एक और तरह से सोच सकता है:
        • वह अपनी सरकार की गतिविधियों का विश्लेषण करता है और निष्कर्ष निकालता है कि भले ही सरकार नौकरियाँ प्रदान करने में विफल रही लेकिन पिछले पाँच वर्षों में उसकी पार्टी के नेतृत्व में, सर्वोच्च न्यायालय, पुलों, सड़कों आदि के निर्माण के रूप में विभिन्न अवसंरचनात्मक विकास हुए हैं।
        • अपने राजनीतिक दल के समर्थन को तर्कसंगत बनाने के लिये वह एक अन्य तरीके से सोचता है और ऐसा करते हुए अपने विचारों एवं व्यवहार के बीच संज्ञानात्मक विसंगति को हल करता है। वह अभी भी उसी पार्टी को इस उम्मीद के साथ वोट देगा कि पार्टी अपने वादे को पूरा करेगी तथा अगले कार्यकाल में अपने नागरिकों को रोज़गार प्रदान करेगी।
      • X विसंगति को कम कर सकता है:
        • वह अपनी पार्टी के सत्ता में आने के बाद अपने देश की स्थिति की तुलना आर्थिक रूप से गरीब पड़ोसी देशों के साथ करता है।
        • वह पाता है कि उसके देश में शिक्षित युवाओं में से केवल 40% ही कार्यरत हैं, जबकि पड़ोसी देशों में यह हिस्सा 30% से भी कम है।
        • इस प्रकार अपने राजनीतिक दल के शासन में दोषों को कम करने(दोष निकालने की प्रवृत्ति से बचने) से उसके विचारों और व्यवहार के बीच विसंगति के कारण उत्पन्न तनाव कम होता है।
        • इस प्रकार वह उसी राजनीतिक दल को वोट देना जारी रखेगा क्योंकि अब उसने उस पार्टी का समर्थन करने को उचित ठहराया है।

सिविल सेवक को संज्ञानात्मक विसंगति का अनुभव:

  • एक IPS अधिकारी जो अहिंसा में विश्वास करता है या किसी को कोई नुकसान नहीं पहुँचाता, उसे जब लाठीचार्ज का फैसला लेना पड़ता है या भीड़ को नियंत्रित करने के लिये पैलेट गन का इस्तेमाल करना पड़ता है तो वह संज्ञानात्मक विसंगति का अनुभव करता है।
    • नैतिक आचरण का सख्त अनुपालन सार्वजनिक और निजी जीवन दोनों में कुछ उद्देश्यों को पूरा करने में समस्याएँ उत्पन्न करता है, जिसके कारण व्यक्ति के भीतर निराशा उत्पन्न होती है। कई बार ईमानदार होना भी लोकसेवकों को शक्तिशाली निहित स्वार्थों के खिलाफ खड़ा कर देता है, जिससे उसके एवं उसके परिवार का जीवन खतरे में पड़ जाता है तथा उसके दिमाग में विसंगति उत्पन्न होने की संभावना बढ़ जाती है।
    • विकास बनाम पर्यावरण: किसी लोकसेवक को उस समय विसंगति का सामना करना पड़ सकता है, जब उसे किसी भी विकास परियोजना के लिये जनजातीय आबादी के विस्थापन पर निर्णय लेना होता है।

निष्कर्ष:

  • एक लोकसेवक को सदैव संवैधानिक नैतिक मूल्यों तथा सेवाओं की आचार-संहिता का पालन करना चाहिये और संज्ञानात्मक विसंगति के किसी भी मामले में सार्वजनिक सेवा के नैतिक ढाँचे के तहत कार्य करना चाहिये।
  • जब भी इस तरह की स्थिति उत्पन्न होती है, तो भावनात्मक बुद्धिमत्ता लोकसेवकों के लिये एक उपचारात्मक उपाय हो सकती है।

स्रोत: द हिंदू