डेली न्यूज़ (03 Jul, 2025)



राष्ट्रीय खेल नीति 2025

प्रिलिम्स के लिये:

आर्थिक सुधार, 1991, ओलंपिक, खेलो इंडिया, फिट इंडिया मूवमेंट, भारतीय कुश्ती महासंघ

मेन्स के लिये:

भारत में खेल नीति का विकास, भारत के खेल पारिस्थितिकी तंत्र में चुनौतियाँ, खेल प्रशासन और सुधार

स्रोत: पी.आई.बी

चर्चा में क्यों?

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने राष्ट्रीय खेल नीति 2025 (खेलो भारत नीति 2025) को मंजूरी दे दी है, जो राष्ट्रीय खेल नीति 2001 का स्थान लेगी। यह नीति भारत को वैश्विक खेल महाशक्ति बनाने के लिये एक रोडमैप प्रस्तुत करती है, जिसका विशेष ध्यान वर्ष 2036 के ओलंपिक पर केंद्रित है।

राष्ट्रीय खेल नीति 2025 (NSP 2025) के प्रमुख स्तंभ क्या हैं?

  • NSP 2025 के स्तंभ: 
    • वैश्विक मंच पर उत्कृष्टता: यह नीति ज़मीनी स्तर से लेकर उच्चतम स्तर तक खेलों को सशक्त बनाने पर केंद्रित है। इसमें प्रतिभा की प्रारंभिक पहचान, प्रतिस्पर्द्धी लीगों और बुनियादी ढाँचे का विकास तथा विश्व-स्तरीय प्रशिक्षण और कोचिंग व्यवस्था की स्थापना शामिल है।
      • साथ ही, यह राष्ट्रीय खेल महासंघों की सुशासन प्रणाली को मज़बूत करने, खेल विज्ञान व प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देने तथा कोचों, अधिकारियों और सहयोगी स्टाफ को प्रशिक्षित करने का भी लक्ष्य रखती है।
    • आर्थिक विकास के लिये खेल: यह स्तंभ खेल पर्यटन, स्टार्टअप्स और निजी निवेश को बढ़ावा देता है, जिससे भारत वैश्विक खेल अर्थव्यवस्था में अपनी भूमिका को सुदृढ़ कर सके।
    • सामाजिक विकास के लिये खेल: यह नीति खेलों के माध्यम से सामाजिक समावेशन को बढ़ावा देने पर बल देती है — विशेष रूप से हाशिये पर मौजूद समूहों की भागीदारी को प्रोत्साहित करके, पारंपरिक और स्थानीय खेलों को पुनर्जीवित करके, प्रवासी भारतीयों की सहभागिता तथा स्वैच्छिक सेवा को बढ़ावा देकर।
    • जन आंदोलन के रूप में खेल: खेलों को राष्ट्रीय आंदोलन बनाने के लिये नीति का उद्देश्य अभियानों के माध्यम से जन भागीदारी और फिटनेस संस्कृति को बढ़ावा देना, संस्थानों के लिये फिटनेस सूचकांक शुरू करना तथा पूरे देश में खेल सुविधाओं तक पहुँच में सुधार करना है।
    • शिक्षा के साथ एकीकरण (NEP 2020): यह नीति राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के अनुरूप है और स्कूल पाठ्यक्रमों में खेलों को एकीकृत करने तथा शिक्षकों को प्रारंभिक स्तर पर खेलों में रुचि विकसित करने हेतु प्रशिक्षित करने का लक्ष्य रखती है।
  • रणनीतिक रूपरेखा:
    • शासन: राष्ट्रीय खेल नीति 2025 (NSP 2025) का उद्देश्य खेल प्रशासन में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिये एक कानूनी और विनियामक ढाँचे की स्थापना करना है।
    • निजी क्षेत्र की भागीदारी: सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP), कॉरपोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) और नवाचार आधारित वित्तपोषण पहलों के माध्यम से निजी निवेश को प्रोत्साहित करना।
    • प्रौद्योगिकी और नवाचार: प्रदर्शन की निगरानी तथा कार्यक्रम वितरण के लिये कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), डेटा एनालिटिक्स और उभरती प्रौद्योगिकियों का उपयोग करना।
    • निगरानी और मूल्यांकन: नियमित प्रगति की समीक्षा हेतु प्रमुख प्रदर्शन संकेतक (KPI) और समयबद्ध लक्ष्य के साथ एक राष्ट्रीय निगरानी ढाँचे की स्थापना करना।
    • राज्यों के लिये मॉडल नीति: यह नीति राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के लिये एक मार्गदर्शक के रूप में कार्य करेगी ताकि वे अपनी खेल नीतियाँ तैयार या अद्यतन कर सकें जो राष्ट्रीय लक्ष्यों के अनुरूप हों।

भारत की खेल नीति किस प्रकार विकसित हुई है?

  • वर्ष 1947 के बाद भारत में खेलों की स्थिति: वर्ष 1951 में भारत ने पहले एशियाई खेलों की मेज़बानी की, जिससे क्षेत्रीय स्तर पर उसकी महत्त्वाकांक्षाओं का संकेत मिला। वर्ष 1954 में अखिल भारतीय खेल परिषद (AICS) का गठन किया गया, जो सरकार को सलाह देने और उत्कृष्ट खिलाड़ियों को समर्थन देने के लिये बनाई गई थी।
    • हालाँकि, सीमित वित्तीय सहायता के कारण भारतीय खिलाड़ी प्रायः अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भाग नहीं ले पाते थे।
    • सीमित सरकारी समर्थन के बावजूद मिल्खा सिंह, गुरबचन सिंह, प्रवीण कुमार सोबती, और कमलजीत संधू जैसे खिलाड़ियों ने एथलेटिक्स में भारत को गौरव दिलाया। वहीं, 1920 से 1980 के दशक तक भारतीय पुरुष हॉकी टीम ओलंपिक में पूरी तरह से हावी रही।
  • भारत की खेल नीति की शुरुआत: वर्तमान युवा मामले एवं खेल मंत्रालय (MYAS) की शुरुआत वर्ष 1982 में नई दिल्ली में IX एशियाई खेलों के दौरान खेल विभाग के रूप में हुई थी। वर्ष 1985 में अंतर्राष्ट्रीय युवा वर्ष के दौरान इसका नाम बदलकर युवा मामले एवं खेल विभाग कर दिया गया।
    • वर्ष 2000 में इसे एक पूर्ण मंत्रालय का दर्जा दिया गया और बाद में इसे युवा मामले एवं खेल के रूप में दो विभागों में विभाजित कर दिया गया।
    • वर्ष 1984 में भारत ने पहली बार राष्ट्रीय खेल नीति (NSP) लागू की, जिसका उद्देश्य बुनियादी ढाँचे का विकास, जन भागीदारी और प्रशिक्षण स्तर पर उत्कृष्टता को बढ़ावा देना था।
      • इसमें शिक्षा के साथ खेलों के एकीकरण की बात की गई, जिसे बाद में राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 में औपचारिक रूप दिया गया।
    • वर्ष 1986 में भारतीय खेल प्राधिकरण (SAI) की स्थापना नीति के क्रियान्वयन हेतु की गई।
    • वर्ष 1986 से 2000 के बीच खेल एक राज्य सूची का विषय होने के कारण असमान रूप से लागू हुए; बजट सीमित था और सार्वजनिक या निजी भागीदारी बहुत कम थी।
  • उदारीकरण के बाद भारतीय खेलों पर प्रभाव (1991 के बाद): वर्ष 1991 के आर्थिक सुधारों और केबल टेलीविज़न के आगमन ने खेलों की दृश्यता तथा लोकप्रियता में भारी वृद्धि की, विशेष रूप से शहरी मध्यम वर्ग के बीच, जिसने अब खेलों को केवल क्रिकेट तक सीमित नहीं रखा।
    • इसके जवाब में, वर्ष 1997 की ड्राफ्ट खेल नीति में प्रस्ताव दिया गया कि राज्य सामूहिक खेलों पर तथा केंद्र श्रेष्ठ एथलीटों पर ध्यान केंद्रित करे, लेकिन इसे कभी लागू नहीं किया गया।
  • 21वीं सदी में भारतीय खेल: वर्ष 2001 में एक संशोधित राष्ट्रीय खेल नीति लाई गई, जिसका उद्देश्य जन भागीदारी और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रदर्शन में सुधार था।
    • जबकि खेलों को बजटीय सहायता प्राप्त हुई, ओलंपिक पदक सीमित रहे - राठौर (2004), बिंद्रा (2008), विजेंदर तथा मुक्केबाजी में विजेंदर सिंह (2008) और मैरी कॉम (2012) से कांस्य पदक।
    • राष्ट्रीय खेल विकास संहिता (2011) लागू की गई, जिसका उद्देश्य खेल महासंघों में सुधार लाना और डोपिंग व प्रशासन से जुड़ी समस्याओं का समाधान करना था, लेकिन इसे लागू करने में कई बाधाएँ आईं।
  • प्रमुख खेल योजनाएँ:
    • टारगेट ओलंपिक पोडियम योजना (2014): उच्च स्तरीय खिलाड़ियों को कोचिंग और अन्य सहायता देना।
    • खेलो इंडिया (2017): स्कूलों तथा विश्वविद्यालयों में प्रतिभा की पहचान और विकास करना।
    • फिट इंडिया मूवमेंट (2019): ज़मीनी स्तर पर फिटनेस को प्रोत्साहित किया गया। 

भारत की खेल प्रणाली में क्या चुनौतियाँ हैं?

  • शासन और नैतिक विफलताएँ: भारत की खेल शासन प्रणाली राजनीतिक हस्तक्षेप, लालफीताशाही और पेशेवर दृष्टिकोण की कमी से ग्रस्त है। प्रबंधन की विफलताओं, जैसे भारतीय कुश्ती महासंघ में यौन उत्पीड़न का मामला (2023) और अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति (2022) द्वारा भारतीय ओलंपिक संघ (IOA) का निलंबन, प्रणालीगत समस्याओं को उजागर करते हैं।
    • खिलाड़ियों को अपर्याप्त समर्थन, जैसा कि विनेश फोगाट द्वारा एक मामूली वज़न संबंधी समस्या के कारण ओलंपिक योग्यता से वंचित रह जाने जैसी घटनाओं में देखा गया, वैज्ञानिक प्रशिक्षण और योजना निर्माण में मौजूद खामियों को उजागर करता है।
  • क्रिकेट-केंद्रित खेल बाज़ार: क्रिकेट मीडिया, प्रायोजन और वित्तपोषण पर हावी है। वर्ष 2023 में भारत के खेल बाज़ार में क्रिकेट का हिस्सा 87% था, जबकि फुटबॉल, हॉकी और बैडमिंटन जैसे सभी अन्य खेलों के लिये मात्र 13% ही उपलब्ध रहा।
    • एथलेटिक्स, हॉकी या कुश्ती जैसे अन्य खेलों को बहुत ही कम दृश्यता और निवेश प्राप्त होता है।
  • एथलीट का कम प्रतिनिधित्व: यद्यपि भारत ने पेरिस 2024 ओलंपिक खेलों में अब तक का सबसे बड़ा दल- 117 खिलाड़ियों को भेजा, फिर भी यह संख्या अमेरिका (594), फ्राँस (572) और ऑस्ट्रेलिया (460) जैसे देशों की तुलना में उल्लेखनीय रूप से कम है।
    • यह भारत की विशाल जनसंख्या के बावजूद ज़मीनी स्तर पर प्रतिभा खोज और प्रारंभिक चरण में खिलाड़ियों के विकास में बनी रहने वाली खामियों को उजागर करता है।
  • संरचित प्रतिभा खोज का अभाव: भारत में ज़मीनी स्तर की प्रतिभा खोज के लिये एक सुव्यवस्थित प्रणाली का अभाव है। ग्रामीण और जनजातीय क्षेत्रों की प्रतिभाएँ प्रायः अनदेखी रह जाती हैं।
    • उदाहरण के लिये, भारतीय फुटबॉलर तुलसीदास बलराम की खोज संयोगवश हुई थी, जो यह दर्शाता है कि संगठित प्रतिभा खोज प्रणाली की आवश्यकता अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
  • भागीदारी में लैंगिक असमानता: महिलाओं को कम अवसर, बुनियादी ढाँचे की कमी और सामाजिक कलंक जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
    • सुरक्षा संबंधी चिंताओं, प्रेरणादायक उदाहरणों की कमी और शरीर की छवि से जुड़ी समस्याओं के कारण 49% लड़कियाँ खेलों से बाहर हो जाती हैं, जो लड़कों की तुलना में छह गुना अधिक है। 21% महिला खिलाड़ी बाल्यावस्था में दुर्व्यवहार का अनुभव होने की बात स्वीकार करती हैं, जो सुरक्षित और समान भागीदारी (यूनेस्को, 2024) को बाधित करता है ।
  • शैक्षणिक विषयों पर अत्यधिक ज़ोर: सांस्कृतिक दबाव के कारण खेलों की तुलना में शैक्षणिक कैरियर को प्राथमिकता दी जाती है। अभिभावक और विद्यालय प्रायः खेल को अनिवार्य नहीं बल्कि अतिरिक्त पाठ्यक्रम मानते हैं। इससे प्रारंभिक खेल सहभागिता और शारीरिक साक्षरता सीमित हो जाती है।

भारत में खेलों को बढ़ावा देने के लिये क्या उपाय किये जा सकते हैं?

  • ज़मीनी स्तर पर प्रतिभा पहचान को सुदृढ़ करना: ग्रामीण, जनजातीय और वंचित क्षेत्रों में संरचित प्रतिभा खोज कार्यक्रम शुरू किये जाएँ। 'खेलो इंडिया' और 'फिट इंडिया मूवमेंट' जैसी पहलों का उपयोग करते हुए निचले स्तर से ऊपर की ओर बढ़ने वाला दृष्टिकोण अपनाया जाए।
    • ऑस्ट्रेलिया की टैलेंट सर्च प्रोग्राम जैसी मॉडल योजनाओं को अपनाया जाए, जो विद्यालयों में शारीरिक परीक्षणों के माध्यम से संभावित ओलंपिक खिलाड़ियों की पहचान करती हैं।
  • खेल अवसंरचना को उन्नत करना: ज़िला और ब्लॉक स्तर पर समावेशी एवं सुलभ खेल सुविधाओं का विकास किया जाए।
  • खेल प्रशासन में सुधार: राष्ट्रीय खेल महासंघों (NSF) में स्वायत्तता, पारदर्शिता और व्यावसायिकता सुनिश्चित की जाए। महासंघों के प्रमुख पदों पर राजनेताओं के स्थान पर खेल विशेषज्ञों की नियुक्ति की जाए।
  • खेलों में लैंगिक समानता को बढ़ावा देना: खेलों में लड़कियों और महिलाओं के लिये सुरक्षित और समावेशी वातावरण सुनिश्चित किया जाए। लैंगिक लेखा परीक्षण, शिकायत निवारण तंत्र, और राष्ट्रीय टीमों में समान वेतन सुनिश्चित किया जाए।
    • यूनेस्को की "खेल और लैंगिक समानता कार्ययोजना" (2024) का उद्देश्य खेलों में हिंसा का उन्मूलन करना और वैश्विक स्तर पर महिलाओं की भागीदारी बढ़ाना है।
  • प्रौद्योगिकी और खेल विज्ञान का उपयोग करना: क्रिकेट से परे कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), वियरेबल्स (wearables) और डेटा विश्लेषण का उपयोग प्रदर्शन की निगरानी और चोटों की रोकथाम हेतु किया जाए।
    • पोषण, मनोविज्ञान और जैव-यांत्रिकी समर्थन के लिये क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर खेल विज्ञान केंद्र स्थापित किये जाएँ।
    • चीन और ब्रिटेन जैसे देश ओलंपिक प्रशिक्षण के लिये उन्नत प्रयोगशालाओं और डेटा प्रणालियों का उपयोग करते हैं।
  • खेल संस्कृति और जन-जागरूकता को बढ़ावा देना: खेलों को एक कैरियर और जीवनशैली के रूप में सामान्य बनाने के लिये जनसंचार माध्यमों के माध्यम से व्यापक प्रचार अभियान चलाए जाएँ। सामुदायिक खेल महोत्सव, स्कूल लीग और राज्य स्तरीय प्रतियोगिताओं का नियमित आयोजन किया जाए।
  • निगरानी और मूल्यांकन को संस्थागत रूप देना: खेल उपलब्धियों की निगरानी हेतु केंद्र और राज्य स्तर पर प्रमुख प्रदर्शन संकेतक (KPI) निर्धारित किये जाएँ। प्रगति के आकलन के लिये रियल-टाइम डैशबोर्ड और तृतीय-पक्ष ऑडिट का उपयोग किया जाए।
    • NSP 2025 एक राष्ट्रीय खेल मूल्यांकन रूपरेखा की परिकल्पना करता है, जिसे प्रभावी रूप से क्रियान्वित किया जाना आवश्यक है।

निष्कर्ष

भारत का एक वैश्विक खेल शक्ति के रूप में रूपांतरण केवल नीतियों से संभव नहीं है, इसके लिये प्रभावी क्रियान्वयन, जवाबदेही और दीर्घकालिक दृष्टिकोण की आवश्यकता है। NSP 2025 और 2036 ओलंपिक की आकांक्षा के साथ भारत एक ऐतिहासिक मोड़ पर है। यदि इसे सुधारों, समावेशिता और निवेश का समर्थन प्राप्त हो, तो खेल राष्ट्रीय विकास का एक सशक्त इंजन बन सकते हैं।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: राष्ट्रीय खेल नीति 2025 की प्रमुख विशेषताओं पर चर्चा कीजिये। भारतीय खेल प्रणाली में बनी रहने वाली प्रमुख चुनौतियों का परीक्षण कीजिये तथा प्रणालीगत सुधारों का सुझाव दीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. वर्ष 2000 में प्रारंभ किये गए लॉरियस विश्व खेल पुरस्कार (लॉरियस वर्ल्ड स्पोट्र्स अवार्ड) के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2021)

  1. अमरीकी गोल्फ खिलाड़ी टाइगर वुड्स इस पुरस्कार का सर्वप्रथम विजेता थे।
  2. अब तक यह पुरस्कार अधिकतर 'फॉर्मूला वन' के खिलाड़ियों को मिला है।
  3. अन्य खिलाड़ियों की तुलना में रॉजर फेडरर को यह पुरस्कार सर्वाधिक बार मिला है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं?

(a). केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (c)


प्रश्न. आइ० सी० सी० वर्ल्ड टेस्ट चैंपियनशिप के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:(2021)

  1. अंतिम दौर में पहुँचने वाली टीमों का निर्धारण, उनके द्वारा जीते गए मैचों की संख्या के आधार पर किया गया।
  2. न्यूज़ीलैंड का स्थान इंग्लैंड से ऊपर था, क्योंकि उसने इंग्लैंड की तुलना में अधिक मैच जीते।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/कौन-से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (d)


भारत-घाना संबंध

प्रिलिम्स के लिये:

एकीकृत भुगतान इंटरफ़ेस, भारतीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग (ITEC) कार्यक्रम, डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना, ई-विद्याभारती और ई-आरोग्यभारती (e-VBAB) 

मेन्स के लिये:

दक्षिण-दक्षिण सहयोग को बढ़ावा देने में भारत की भूमिका, भारत-अफ्रीका संबंध

स्रोत: पी.आई.बी.

चर्चा में क्यों? 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की घाना की राजकीय यात्रा (जो 30 वर्षों में किसी भारतीय प्रधानमंत्री की पहली यात्रा थी) भारत-अफ्रीका संबंधों में एक ऐतिहासिक मील का पत्थर साबित हुई।

  • इस यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान - द ऑफिसर ऑफ द ऑर्डर ऑफ द स्टार ऑफ घाना से सम्मानित किया गया।

घाना

  • स्थान: घाना (राजधानी अकरा) एक पश्चिमी अफ्रीकी देश है, जिसकी सीमा पश्चिम में कोट डी आइवर, उत्तर में बुर्किना फासो, पूर्व में टोगो तथा दक्षिण में गिनी की खाड़ी और अटलांटिक महासागर से लगती है।
  • महत्त्व: सहारा के दक्षिण में स्थित घाना वर्ष 1957 में स्वतंत्रता प्राप्त करने वाला पहला अश्वेत अफ्रीकी देश था, जिसका नाम मध्ययुगीन घाना साम्राज्य के नाम पर रखा गया था। 
    • इसे विशाल सोने के संसाधनों के लिये जाना जाता है और इसे गोल्ड कोस्ट कहा जाता था। यहाँ पर 19वीं शताब्दी में लाया गया कोको, निर्यात की प्रमुख वस्तु बना हुआ है।
    • 1990 के दशक से घाना में राजनीतिक स्थिरता के साथ आर्थिक सुधार देखा गया है और अब इसे अफ्रीका में लोकतांत्रिक शासन एवं सुधार के लिये एक मॉडल के रूप में उद्धृत किया जाता है।
  • पर्वत और झीलें: माउंट अफादजातो, माउंट जेबोबो और माउंट टोरोगबानी घाना में वोल्टा नदी के पूर्व में टोगो की सीमा के पास स्थित हैं। ये पर्वत टोगो-अताकोरा पर्वत शृंखला का हिस्सा हैं।
    • वोल्टा झील, विश्व की सबसे बड़ी कृत्रिम झीलों में से एक है।

Ghana

प्रधानमंत्री की घाना की राजकीय यात्रा के प्रमुख परिणाम क्या हैं?

  • द्विपक्षीय सहयोग: दोनों देश संबंधों को व्यापक साझेदारी तक बढ़ाने पर सहमत हुए।
  • रणनीतिक प्रस्ताव: भारत ने एकीकृत भुगतान इंटरफेस (UPI) सहित डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना संबंधी अनुभवों को साझा किया।
    • भारत ने ग्लोबल साउथ हेतु एक सशक्त आवाज़ के रूप में अपनी भूमिका की पुष्टि की तथा घाना को उसके समर्थन के लिये धन्यवाद दिया।
  • हस्ताक्षरित समझौता ज्ञापन (MoUs):
    • सांस्कृतिक आदान-प्रदान कार्यक्रम (CEP) पर समझौता ज्ञापन: यह कला, संगीत, नृत्य, साहित्य और विरासत में अधिक सांस्कृतिक समझ तथा आदान-प्रदान को बढ़ावा देने पर केंद्रित है।
    • भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) और घाना मानक प्राधिकरण (GSA) के बीच समझौता ज्ञापन: इसका उद्देश्य मानकीकरण, प्रमाणन और अनुरूपता मूल्यांकन में सहयोग को बढ़ावा देना है।
    • पारंपरिक एवं वैकल्पिक चिकित्सा संस्थान (ITAM), घाना और आयुर्वेद शिक्षण एवं अनुसंधान संस्थान (ITRA), भारत के बीच समझौता ज्ञापन: यह पारंपरिक चिकित्सा शिक्षा, प्रशिक्षण एवं अनुसंधान में सहयोग पर केंद्रित है।
    • संयुक्त आयोग की बैठक पर समझौता ज्ञापन: यह उच्च स्तरीय वार्ता को संस्थागत बनाने तथा नियमित आधार पर द्विपक्षीय सहयोग तंत्र की समीक्षा करने पर केंद्रित है।

समय के साथ भारत और घाना के संबंध किस प्रकार विकसित हुए हैं?

  • प्रारंभिक राजनयिक संबंध: भारत ने वर्ष 1953 में अकरा में एक प्रतिनिधिक कार्यालय खोला तथा वर्ष 1957 में पूर्ण राजनयिक संबंध स्थापित किये और इसी वर्ष घाना को स्वतंत्रता मिली।
  • साझा वैश्विक मंच: भारत और घाना गुट निरपेक्ष आंदोलन के संस्थापक सदस्य हैं और ये अनवरत वैश्विक मुद्दों जैसे कि उपनिवेशवाद से मुक्ति एवं दक्षिण-दक्षिण सहयोग पर एकजुट रहे हैं।
  • संस्थागत तंत्र :
    • भारत-घाना संयुक्त आयोग (1995) द्वारा नियमित उच्च स्तरीय वार्ता की सुविधा प्रदान की जाती है।
    • संयुक्त व्यापार समिति एवं विदेश कार्यालय परामर्श से व्यापार और कूटनीतिक समन्वय को मज़बूती मिलती है।
  • आर्थिक संबंध: भारत घाना का एक प्रमुख व्यापारिक साझेदार है, जिसका द्विपक्षीय व्यापार वर्ष 2024-25 में 3 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक हो गया। 
    • घाना द्वारा भारत को सोना, कोको और काजू का निर्यात किया जाता है जबकि भारत द्वारा फार्मास्यूटिकल्स, कृषि मशीनरी और वस्त्र का निर्यात किया जाता है।  
      • व्यापार संतुलन आमतौर पर घाना के पक्ष में है, जो मुख्य रूप से सोने के निर्यात (70% की हिस्सेदारी) पर निर्भर है।
    • भारतीय फार्मास्यूटिकल्स द्वारा घाना की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली में प्रमुख भूमिका निभाई जाती है और भारतीय कंपनियों ने घाना में लगभग 900 परियोजनाओं के तहत लगभग 2 बिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश किया है।
  • विकास परियोजनाएँ और वित्तीय सहायता: भारत ने ग्रामीण विद्युतीकरण के साथ चीनी तथा मछली प्रसंस्करण परियोजनाओं हेतु घाना को रियायती ऋण (LoCs) और अनुदान के रूप में 450 मिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक की सहायता प्रदान की है।
    • भारत ने घाना-बुर्किना फासो संपर्क गलियारे के हिस्से के रूप में वोल्टा नदी पर 300 मीटर के पुल सहित तेमा-मपाकादन रेलवे परियोजना का समर्थन किया, जिससे घाना में बुनियादी ढाँचे, संपर्क और व्यापार को बढ़ावा मिला।
  • डिजिटल सहयोग: घाना-इंडिया कोफी अन्नान ICT उत्कृष्टता केंद्र (2003) पश्चिम अफ्रीका का शीर्ष IT अनुसंधान और शिक्षा केंद्र है।
  • भारतीय समुदाय: घाना में भारतीय समुदाय द्वारा समर्थित हिंदू मंदिर, गुरुद्वारा और हिंदू मठ हैं। ISKCON (ज़्यादातर घानावासियों द्वारा संचालित) और सांस्कृतिक केंद्रों द्वारा सक्रिय रूप से भारतीय परंपराओं को बढ़ावा दिया जाता है। 
  • यहाँ पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का स्वागत "हरे राम हरे कृष्ण" नारे के साथ किया गया, जो दोनों देशों के बीच गहन सांस्कृतिक संबंधों के साथ भारत की बढ़ती सॉफ्ट पाॅवर को दर्शाता है।

भारत-अफ्रीका संबंध

  • आर्थिक संबंध: फरवरी 2025 तक भारत, अफ्रीका का चौथा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बना हुआ है जिसका द्विपक्षीय व्यापार 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर है।
    • अफ्रीका में भारतीय निवेश 75 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया है, जिसे वर्ष 2030 तक दोगुना करने का लक्ष्य है।
  • विकास और क्षमता निर्माण: भारत ने बुनियादी ढाँचे, ऊर्जा और कृषि में 200 से अधिक परियोजनाओं हेतु 12 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक का रियायती ऋण प्रदान किया है।
    • ITEC, पैन-अफ्रीकी ई-नेटवर्क, e-VBAB जैसी पहल मानव पूंजी विकास को बढ़ावा देने पर केंद्रित हैं।
  • अफ्रीका को समर्थन: G20 की अध्यक्षता के दौरान भारत ने अफ्रीकी संघ की स्थायी सदस्यता का समर्थन किया।
  • सामरिक और समुद्री सुरक्षा संबंध: हिंद महासागर क्षेत्र में अफ्रीका का स्थान भारत की समुद्री सुरक्षा तथा समुद्री मार्गों के लिये महत्त्वपूर्ण है।
    • मॉरीशस में भारत का पहला ओवरसीज़ नौसैनिक अड्डा (वर्ष 2024) और भारत-अफ्रीका सेना प्रमुख सम्मेलन (वर्ष 2023) बढ़ते रक्षा सहयोग को दर्शाते हैं।
  • ऊर्जा और क्रिटिकल मिनरल्स की सुरक्षा: अफ्रीका द्वारा भारत को कच्चे तेल (जैसे, नाइजीरिया, अंगोला से) के साथ कोबाल्ट तथा मैंगनीज जैसे क्रिटिकल खनिजों की आपूर्ति की जाती है जो स्वच्छ ऊर्जा अपनाने की दिशा में भारत के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
  • सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक आधार: प्रवासी भारतीयों के माध्यम से दोनों के बीच मज़बूत संबंध के साथ साझा औपनिवेशिक इतिहास तथा स्वतंत्रता आंदोलनों (जैसे, गांधी-मंडेला) से पारस्परिक प्रेरणा मिलती है।
  • प्रौद्योगिकी और नवाचार सहयोग: भारत, भारतीय IT और स्टार्टअप के माध्यम से अफ्रीका के डिजिटल परिवर्तन, स्मार्ट शहरों एवं फिनटेक में साझेदारी कर रहा है।
  • भारत-जापान-अफ्रीका त्रिपक्षीय भागीदारी: एशिया अफ्रीका ग्रोथ कॉरिडोर (AAGC) के माध्यम से भारत समावेशी विकास के क्रम में जापान की पूंजी, भारत की तकनीक और अफ्रीका के युवाओं की भूमिका पर बल देता है।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: भारत, घाना की राष्ट्र-निर्माण यात्रा में न केवल भागीदार है बल्कि सह-यात्री भी है। इस कथन के आलोक में भारत-घाना संबंधों की व्यापक प्रकृति का आकलन कीजिये।

और पढ़ें: भारत-अफ्रीका साझेदारी का विकास

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs) 

मेन्स

प्रश्न:"उत्पीड़ित और हाशिये पर पड़े राष्ट्रों के नेता के रूप में भारत की लंबे समय से चली आ रही छवि उभरती वैश्विक व्यवस्था में अपनी नई भूमिका के कारण गायब हो गई है।" स्पष्ट कीजिये। (2019)


UN वुमन और ग्लोबल जेंडर एजेंडा

प्रिलिम्स के लिये:

बीजिंग घोषणापत्र और कार्रवाई मंच, संयुक्त राष्ट्र महिला, खाद्य असुरक्षा, निर्धनता, संयुक्त राष्ट्र महासभा, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, NFHS-5, समान कार्य के लिये समान वेतन, सवेतन मातृत्व अवकाश                      

मेन्स के लिये:

महिला अधिकारों की स्थिति, महिला सशक्तीकरण से संबंधित चुनौतियाँ और आगे की राह।

स्रोत: डाउन टू अर्थ 

चर्चा में क्यों?

बीजिंग घोषणा और कार्रवाई मंच की 30वीं वर्षगाँठ, महिला, शांति और सुरक्षा (WPS) पर UNSC संकल्प 1325 के 25वें वर्ष तथा अपनी स्वयं की 15वीं वर्षगाँठ की पूर्व संध्या पर यूनाइटेड नेशंस वुमन ने चेतावनी दी कि बढ़ती हिंसा, निर्धनता में वृद्धि तथा बढ़ते डिजिटल एवं राजनीतिक अंतराल के कारण महिला अधिकारों के समक्ष "ऐतिहासिक और अनिश्चित क्षण" बना हुआ है।

UN वुमन के अनुसार महिलाओं के समक्ष प्रमुख मुद्दे क्या हैं?

  • राजनीतिक प्रतिक्रिया और प्रतिनिधित्व का अभाव: वर्ष 2024 में लगभग 4 में से 1 देश में महिला अधिकारों के खिलाफ प्रतिक्रिया देखने को मिली। पुरुषों को उपलब्ध विधिक अधिकारों की तुलना में महिलाओं की हिस्सेदारी केवल 64% है तथा 51% देशों द्वारा महिलाओं को पुरुषों के समान कार्य करने से रोका जाता है।
    • इसके अतिरिक्त, लगभग 75% सांसद पुरुष हैं और वर्ष 2021-2022 में आधिकारिक रूप से केवल 4% विकास सहायता, लैंगिक समानता पर केंद्रित थी। 
  • हिंसा का असंगत प्रभाव: वर्ष 2023 में 85,000 महिलाओं और बालिकाओं की जानबूझकर हत्या की गई जिसमें प्रत्येक 10 मिनट में एक की हत्या उनके साथी या करीबी रिश्तेदार द्वारा की गई।
    • वर्ष 2020 और 2023 के बीच 10 में से 8 शांति वार्ताओं और 10 में से 7 मध्यस्थता प्रयासों में कोई भी महिला शामिल नहीं (जो शांति प्रक्रियाओं से उनके निरंतर बहिष्कार का परिचायक है) थी।
  • आर्थिक असमानता: वैश्विक स्तर पर महिलाओं को समान कार्य हेतु पुरुषों की तुलना में 20% तक कम वेतन मिलता है और इनके द्वारा पुरुषों की तुलना में 2.5 गुना अधिक अवैतनिक देखभाल कार्य किया जाता है। 
  • खाद्य एवं शिक्षा संबंधी असुरक्षा: पुरुषों की तुलना में 47.8 मिलियन अधिक महिलाएँ मध्यम/गंभीर खाद्य असुरक्षा की स्थिति में हैं जबकि विश्व स्तर पर 1/3 खाद्यान्न का उत्पादन करने वाले छोटे पैमाने के किसानों में अधिकांश महिलाएँ हैं।
    • 119 मिलियन बालिकाओं को स्कूली शिक्षा और 39% युवतियों को उच्चतर माध्यमिक शिक्षा नहीं मिल पाती है।
  • जलवायु संवेदनशीलता: वर्ष 2050 तक जलवायु परिवर्तन के कारण 158 मिलियन से अधिक महिलाएँ और बालिकाएँ चरम निर्धनता की स्थिति में आ सकती हैं जबकि विश्व भर में पर्यावरण मंत्रियों में महिलाओं की हिस्सेदारी केवल 28% है।
  • स्वास्थ्य सेवाओं तक अपर्याप्त पहुँच: प्रतिदिन लगभग 800 महिलाओं की गर्भावस्था से संबंधित रोकथाम योग्य समस्याओं से मृत्यु हो जाती है।

भारत में महिला सशक्तीकरण से जुड़ी प्रमुख चुनौतियाँ

  • महिला श्रम बल भागीदारी दर (FLFPR) कम होना: भारत में FLFPR वर्ष 2017–18 में 23.3% से बढ़कर 2023–24 में 41.7% हुई है, फिर भी यह वैश्विक औसत (50%) और पुरुषों की भागीदारी (77.2%) से काफी कम है। इसके पीछे सामाजिक मान्यताएँ, देखभाल संबंधी ज़िम्मेदारियाँ और लचीले रोज़गार विकल्पों की कमी प्रमुख कारण हैं।
  • घरेलू कार्यभार: महिलाएँ प्रति दिन 236 मिनट अवैतनिक घरेलू कार्य करती हैं, जबकि पुरुष केवल 24 मिनट। इससे महिलाओं की शिक्षा, कौशल विकास और औपचारिक रोज़गार तक पहुँच सीमित हो जाती है।
  • लैंगिक वेतन असमानता: शहरी क्षेत्रों में महिलाएँ पुरुषों की तुलना में 29.4% कम कमाती हैं और ग्रामीण क्षेत्रों में यह अंतर 51.3% तक है।
    • साथ ही, 81% महिलाएँ असंगठित क्षेत्र में कार्यरत हैं, जहाँ नौकरी की सुरक्षा और लाभ नहीं मिलते।
  • डिजिटल असमानता: महिलाओं में केवल 54% के पास मोबाइल फोन है, जबकि पुरुषों में यह संख्या 82% है। इंटरनेट का उपयोग करने वाली महिलाएँ केवल 33% हैं, जबकि पुरुषों में 57% (NFHS-5)। इससे शिक्षा, रोज़गार और डिजिटल वित्त तक उनकी पहुँच बाधित होती है।
  • लैंगिक-आधारित हिंसा: भारत में वर्ष 2022 में महिलाओं के खिलाफ 4.4 लाख अपराध दर्ज हुए। NFHS-5 (2019–21) के अनुसार, 29.3% विवाहित महिलाएँ (18–49 आयु वर्ग) घरेलू हिंसा की शिकार हुईं।

बीजिंग घोषणा पत्र और कार्रवाई मंच (BPfA) क्या है? 

  • परिचय: बीजिंग घोषणा पत्र और कार्रवाई मंच (1995) को चीन के बीजिंग शहर में आयोजित चौथे विश्व महिला सम्मेलन के दौरान अंगीकार किया गया था। यह महिलाओं और लड़कियों के अधिकारों को बढ़ावा देने के लिये एक ऐतिहासिक वैश्विक रूपरेखा है।
    • यह दस्तावेज़ कानूनी संरक्षण, आवश्यक सेवाओं तक पहुँच, युवाओं की भागीदारी और सामाजिक परिवर्तन को प्रेरित करने जैसे रणनीतिक उद्देश्यों पर केंद्रित है।
    • भारत भी इस घोषणापत्र का हस्ताक्षरकर्त्ता है।
  • कार्रवाई के क्षेत्र: इस घोषणा पत्र में 12 महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों की पहचान की गई है, जिनमें लैंगिक समानता प्राप्त करने के लिये तत्काल ध्यान और कार्रवाई की आवश्यकता है। इन क्षेत्रों के लिये रणनीतियाँ तय की गई हैं ताकि सभी को समान अवसर मिल सकें। प्रमुख फोकस क्षेत्र में शामिल हैं:

  • बीजिंग+30 एक्शन एजेंडा: यह बीजिंग घोषणा पत्र और कार्रवाई मंच (BPfA) की 30वीं वर्षगांठ (1995–2025) का प्रतीक है, जिसका उद्देश्य इसकी कार्यान्वयन की समीक्षा तथा मूल्यांकन करना है।

यूएन वूमेन

  • स्थापना और अधिदेश: यूएन वूमेन, जुलाई 2010 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा स्थापित किया गया था। यह संयुक्त राष्ट्र की इकाई है जो लैंगिक समानता और महिलाओं के सशक्तीकरण के लिये कार्यरत है। यह संस्था UN सुधार एजेंडा के अंतर्गत चार पूर्ववर्ती निकायों के एकीकरण से बनी:
    • महिलाओं की प्रगति हेतु प्रभाग (DAW)
    • महिलाओं की प्रगति के लिये अंतर्राष्ट्रीय अनुसंधान और प्रशिक्षण संस्थान (INSTRAW)
    • लैंगिक मुद्दों और महिलाओं की प्रगति पर विशेष सलाहकार का कार्यालय (OSAGI)
    • संयुक्त राष्ट्र महिला विकास कोष (UNIFEM)।
  • मुख्य मिशन:
    • शासन और नेतृत्व: निर्णय-निर्माण प्रक्रियाओं में महिलाओं की समान भागीदारी सुनिश्चित करना।
    • आर्थिक सशक्तीकरण: महिलाओं के लिये समान वेतन, गरिमापूर्ण कार्य और आर्थिक आत्मनिर्भरता को सुनिश्चित करना।
    • महिलाओं के विरुद्ध हिंसा का अंत: लिंग आधारित हिंसा के सभी रूपों को समाप्त करना।
    • शांति एवं मानवीय कार्रवाई: संघर्ष समाधान, आपदा प्रतिक्रिया और शांति स्थापना में महिलाओं की भूमिका को बढ़ाना।

महिलाओं और शांति एवं सुरक्षा पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का प्रस्ताव (2000)

  • परिचय: 31 अक्तूबर, 2000 को सर्वसम्मति से पारित यह प्रस्ताव एक ऐतिहासिक कानूनी ढाँचा है, जो संघर्षों के दौरान महिलाओं और बालिकाओं पर असमान रूप से पड़ने वाले प्रभाव को मान्यता देता है और उन्हें लैंगिक-आधारित हिंसा, विशेष रूप से यौन हिंसा, से संरक्षण प्रदान करने की आवश्यकता पर बल देता है।
  • प्रस्ताव के प्रमुख स्तंभ: यह प्रस्ताव शांति निर्माण में महिलाओं की भागीदारी, लैंगिक-आधारित हिंसा से सुरक्षा, लैंगिक-संवेदनशील संघर्ष निवारण, तथा राहत और पुनर्वास प्रयासों में महिलाओं और बालिकाओं की विशिष्ट आवश्यकताओं को संबोधित करने पर बल देता है।

महिलाओं के समक्ष आने वाली चुनौतियों के समाधान के लिये संयुक्त राष्ट्र महिला ने क्या समाधान प्रस्तावित किये हैं?

  • प्रतिबद्धता और नेतृत्व को सशक्त बनाना: यह नवीनीकृत राजनीतिक इच्छाशक्ति, लैंगिक-संवेदनशील व्यवस्थाओं, भेदभावपूर्ण कानूनों के उन्मूलन, और महिलाओं के नेतृत्व को बढ़ावा देने का आह्वान करता है, जिसमें जलवायु कार्रवाई में महिलाओं की भागीदारी भी शामिल है।
  • लैंगिक समावेशी शांति निर्माण: यह संघर्ष की रोकथाम, शांति प्रक्रियाओं में महिलाओं की भागीदारी, और विशेष रूप से संघर्ष प्रभावित क्षेत्रों में प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार हेतु अधिक निवेश की आवश्यकता पर बल देता है।
  • आर्थिक सशक्तीकरण: यह समान कार्य के लिये समान वेतन, भेदभाव-निरोधी कानूनों, और देखभाल संबंधी अवैतनिक कार्यभार को कम करने व वर्ष 2035 तक 30 करोड़ नौकरियों के सृजन हेतु देखभाल अवसंरचना में निवेश का समर्थन करता है।
  • गरीबी और खाद्य असुरक्षा का उन्मूलन: यह सामाजिक सुरक्षा उपायों (नकद सहायता, मातृत्व अवकाश, पेंशन) और कृषि व वेतन के क्षेत्र में लैंगिक अंतर को समाप्त करने वाली नीतियों पर बल देता है।
  • शिक्षा और प्रौद्योगिकी तक पहुंच का विस्तार: यह शिक्षा लागत में कमी, नकद प्रोत्साहन, सुरक्षित शिक्षण वातावरण, डिजिटल पहुँच और ऑनलाइन सुरक्षा सुनिश्चित करने की सिफारिश करता है, साथ ही लैंगिक समानता हेतु सार्वजनिक-निजी निवेश बढ़ाने की बात करता है।

निष्कर्ष

बीजिंग घोषणा और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव 1325 जैसे वैश्विक संकल्पों के बावजूद, महिलाएँ लगातार प्रतिरोध, हिंसा और बहिष्करण का सामना कर रही हैं। लैंगिक समानता प्राप्त करने के लिये सरकारों को कानूनी सुधार, आर्थिक सशक्तीकरण, समावेशी शांति निर्माण और जलवायु न्याय को लागू करना आवश्यक है। इस दिशा में हुई गिरावट को पलटने और प्रगति सुनिश्चित करने के लिये सशक्त राजनीतिक इच्छाशक्ति, पर्याप्त वित्तीय संसाधन और महिलाओं का नेतृत्व अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: भारत में महिलाओं की आर्थिक भागीदारी में बाधाओं की जाँच कीजिये। नीतिगत हस्तक्षेपों से इन चुनौतियों का समाधान किस प्रकार किया जा सकता हैं?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)   

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन, विश्व के देशों के लिये 'सार्वभौम लैंगिक अंतराल सूचकांक (ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स)' का श्रेणीकरण प्रदान करता है? (2017)

(a) विश्व आर्थिक मंच
(b) UN मानव अधिकार परिषद
(c) UN वुमन
(d) विश्व स्वास्थ्य संगठन

उत्तर: (a)


मेन्स 

प्रश्न: 'देखभाल अर्थव्यवस्था' और 'मुद्रीकृत अर्थव्यवस्था' के बीच अंतर कीजिये। महिला सशक्तीकरण के द्वारा देखभाल अर्थव्यवस्था को मुद्रीकृत अर्थव्यवस्था में कैसे लाया जा सकता है? (2023)

प्रश्न. "महिला सशक्तीकरण जनसंख्या संवृद्धि को नियंत्रित करने की कुंजी है।" चर्चा कीजिये। (2019)

प्रश्न. भारत में महिलाओं पर वैश्वीकरण के सकारात्मक और नकारात्मक प्रभावों पर चर्चा कीजिये? (2015)

प्रश्न. "महिला संगठनों को लिंग-भेद से मुक्त करने के लिये पुरुषों की सदस्यता को बढ़ावा मिलना चाहिये।" टिप्पणी कीजिये। (2013)


GST के 8 वर्ष

प्रिलिम्स के लिये:

माल और सेवा कर (GST), अप्रत्यक्ष कर प्रणाली, ई-वे बिल, MSME, कैस्केडिंग प्रभाव, इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC), VAT, GST अपीलीय न्यायाधिकरण (GSTAT), GST परिषद, उत्क्रमी शुल्क संरचना, GST नेटवर्क (GSTN), ICEGATE, कार्बन क्रेडिट                     

मेन्स के लिये:

गत 8 वर्षों में GST का निष्पादन और संबंधित चुनौतियाँ, मौजूदा GST ढाँचे के सुदृढ़ीकरण हेतु आवश्यक उपाय

स्रोत: इकोनॉमिक टाइम्स 

चर्चा में क्यों?

माल और सेवा कर (GST) के 1 जुलाई 2017 को लागू होने के 8 वर्ष पूर्ण होने पर, विशेषज्ञ कर एकीकरण और डिजिटलीकरण में इसकी सफलता को स्वीकार करते हैं और साथ ही सरलीकरण, दरों को युक्तिसंगत बनाने और अनुपालन भार में कमी लाने की आवश्यकता पर बल देते हैं। 

विगत 8 वर्षों में GST की प्रमुख उपलब्धियाँ क्या हैं?

  • राजस्व में रिकॉर्ड स्तर की वृद्धि: GST राजस्व में निरंतर वृद्धि हुई है, जो औसत मासिक संग्रह 1.67 लाख करोड़ रुपए के साथ वित्त वर्ष 2024-25 में 1.8 लाख करोड़ रुपए से अधिक हो गया।
    • यह वृद्धि मौद्रिक सकल घरेलू उत्पाद से अधिक हो गई है, जो बेहतर अनुपालन, कर चोरी में कमी और आर्थिक औपचारिकता में हुए सुधार को परिलक्षित करती है।
  • डिजिटल परिवर्तन और अनुपालन दक्षता: GST का डिजिटलीकरण किया गया है जिसमें मैनुअल फाइलिंग से लेकर ई-इनवॉइसिंग, रियल-टाइम क्रेडिट मिलान, स्वचालित रिटर्न और ई-वे बिल जैसी सुविधाएँ शामिल हैं जिससे त्रुटियों और धोखाधड़ी की संभावना कम हो गई है।
    • पूर्व में MSME इसको लेकर संशय में थे किंतु वर्तमान में इसे ऋण, सरकारी खरीद और राष्ट्रीय बाज़ार के अभिगम का प्रवेश द्वार मानते हैं।
  • विस्तारित करदाता आधार: 30 अप्रैल, 2025 तक भारत में 1.51 करोड़ से अधिक सक्रिय GST पंजीकरण दर्ज थे जो वर्ष 2017 के 65 लाख पंजीकरण में हुई उल्लेखनीय वृद्धि को दर्शाता है। 
    • यह वृद्धि अर्थव्यवस्था का औपचारीकरण करने और कर अनुपालन में सुधार लाने में GST की सफलता को रेखांकित करती है।
  • ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस: GST से अंतर-राज्यीय कर बाधाएँ समाप्त हुईं, रसद लागत में कमी आई और आपूर्ति शृंखला दक्षता का वर्द्धन हुआ, जबकि प्रवेश करों और चुंगी (Octroi) की समाप्ति से व्यापार लागत में और अधिक बचत हुई है।
    • GST के 'एक राष्ट्र, एक कर' ढाँचे के माध्यम से बहुस्तरीय कर प्रणाली को प्रतिस्थापित किया गया, जिससे कैस्केडिंग प्रभाव कम हो गया, जबकि इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) तंत्र से निर्बाध ऋण प्रवाह सुनिश्चित हुआ, व्यापार लागत में कमी आई और प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा मिला।
  • कुशल रिफंड प्रसंस्करण: सीमा शुल्क ICEGATE पोर्टल के माध्यम से स्वचालित एकीकृत GST (IGST) रिफंड प्रसंस्करण में तेज़ी आई है और रिफंड की प्रक्रिया अब केवल एक सप्ताह का समय लगता है। वित्त वर्ष 2025 में 1.18 लाख करोड़ रुपए का संवितरण किया गया, जिससे निर्यातकों की चलनिधि में वृद्धि हुई।

माल एवं सेवा कर (GST) क्या है?

  • GST: 101वें संशोधन अधिनियम, 2016 के माध्यम से अनेक केंद्रीय और राज्य करों को GST के अंतर्गत शामिल कर समग्र भारत में एकीकृत अप्रत्यक्ष कर प्रणाली की शुरुआत की गई।
    • GST सभी वस्तुओं और सेवाओं की आपूर्ति पर अधिरोपित मूल्य-योजित कर (Value-Added Tax) है। 
  • इसने उत्पाद शुल्क, अतिरिक्त उत्पाद शुल्क और सेवा कर जैसे केंद्रीय करों तथा VAT, केंद्रीय बिक्री कर एवं विलासिता कर जैसे राज्य करों का स्थान लिया।

Timeline of GST

मुख्य विशेषताएँ: 

  • आपूर्ति-आधारित कराधान: GST का अधिरोपण वस्तुओं और सेवाओं की आपूर्ति पर किया जाता है, जबकि इससे पूर्व कर विनिर्माण, बिक्री या सेवा प्रावधान पर अधिरोपित किये जाते थे।
  • अभिप्राय-आधारित प्रणाली: GST अभिप्राय-आधारित उपभोग कर के रूप में कार्य करता है, जो पूर्व के मूल-आधारित कराधान मॉडल का स्थान लेता है।
  • बहुविध कर स्लैब: GST पाँच अलग-अलग दरों पर लगाया जाता है- 0%, 5%, 12%, 18% और 28%जिसमें GST परिषद द्वारा उत्पाद वर्गीकरण का निर्धारण किया जाता है।
  • दोहरी संरचना: GST की दोहरी संरचना है, जहाँ केंद्र (CGST) और राज्य (SGST) दोनों एक ही लेनदेन मूल्य पर कर का अधिरोपण करते हैं।
    • वस्तुओं और सेवाओं के आयात को अंतर्राज्यीय आपूर्ति माना जाता है और इस पर लागू सीमा शुल्क के अतिरिक्त IGST भी इसमें शामिल होता है।
  • शासन: GST परिषद एक महत्त्वपूर्ण निर्णय लेने वाली संस्था है। माल एवं सेवा कर नेटवर्क (GSTN) GST पोर्टल के लिये एक आईटी प्रणाली प्रदान करता है।
    • केंद्र और राज्य GST परिषद की अनुशंसाओं के आधार पर CGST, SGST और IGST दरें निर्धारित करते हैं।

वर्तमान GST ढाँचे में प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?

  • वस्तुओं का बहिष्करण: पेट्रोलियम उत्पादों एवं मानव उपभोग हेतु शराब को अब भी GST के दायरे से बाहर रखा गया है, जिसके परिणामस्वरूप करों की दोहरावयुक्त प्रकृति (Tax Cascading) और इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) की अनुपलब्धता के कारण नकदी प्रवाह से जुड़ी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।
    • जब राज्य राज्य सूची की प्रविष्टि 54 और अनुच्छेद 366(12A) के अंतर्गत मूल्य वर्धित कर (VAT) लगाते हैं, तब यदि इसे GST के तहत शामिल किया जाता है, तब राजस्व हानि और राजकोषीय स्वायत्तता को लेकर चिंताएँ उठती हैं।
  • माल एवं सेवा कर अपीलीय न्यायाधिकरण (GSTAT) में विलंब: लंबे समय से लंबित माल एवं सेवा कर अपीलीय न्यायाधिकरण (GSTAT) को हाल ही में अधिसूचित किया गया है, फिर भी यह कई राज्यों में अभी भी क्रियाशील नहीं है। इसके कारण उच्च न्यायालयों में अपीलों की लंबित संख्या, निर्णय प्रक्रिया में लंबा विलंब तथा करदाताओं के लिये अनिश्चितता बनी हुई है।
  • जटिल कर दर संरचना: वर्तमान में GST में पाँच प्रमुख कर स्लैब हैं, साथ ही 0.25%, 1% तथा 3% की विशेष दरें (मुख्यतः सोना, चाँदी और हीरे के लिये) लागू हैं। इससे वर्गीकरण संबंधी विवाद, बार-बार होने वाला विधिक वाद-विवाद, तथा इनवर्टेड ड्यूटी स्ट्रक्चर वाले क्षेत्रों में कार्यशील पूँजी से जुड़ी समस्याएँ उत्पन्न हो रही हैं।
    • हालाँकि मूल उद्देश्य तीन-दर प्रणाली को तार्किक रूप देना था, लेकिन विशेषज्ञों की सिफारिशों और GST परिषद में हुई चर्चाओं के बावजूद इस दिशा में कोई उल्लेखनीय प्रगति नहीं हुई है।
  • प्रक्रियात्मक एवं अनुपालन संबंधी समस्याएँ: स्वचालन और डिजिटलीकरण में प्रगति के बावजूद, प्रक्रियात्मक चुनौतियाँ बनी हुई हैं, जिनमें मामूली मुद्दों पर उच्च-मूल्य के मुकदमे, अत्यधिक नियमन और बार-बार नियमों में बदलाव के साथ जटिल अधिसूचनाएँ शामिल हैं।
  • विशेषज्ञों का कहना है कि ये प्रक्रियागत समस्याएँ प्राय: सरकार के सरलीकरण के व्यापक प्रयासों पर भारी पड़ती हैं।
  • व्याख्या संबंधी अस्पष्टताएँ: GST के अंतर्गत मध्यस्थ सेवाओं, अंतर-कंपनी लेनदेन और कर्मचारी स्थानांतरण की व्याख्या में अस्पष्टता परिपत्रों के बावजूद बनी हुई है, जिसके कारण अनुपालन में अस्पष्टता, परिचालन संबंधी बाधाएँ और व्यवसायों के लिये मुकदमेबाज़ी का जोखिम बढ़ रहा है।

वर्तमान GST ढाँचे में सुधार के लिये कौन-से सुधार लागू किये जा सकते हैं?

  • चरणबद्ध दृष्टिकोण: पेट्रोलियम को शामिल करने के लिये चरणबद्ध दृष्टिकोण प्राकृतिक गैस और विमानन टरबाइन ईंधन (ATF) के साथ शुरू हो सकता है, राजस्व-तटस्थ दर और राज्यों के लिये एक अस्थायी मुआवज़ा तंत्र का उपयोग करना, सुचारू एकीकरण सुनिश्चित करने के लिये एक वैध रणनीति है।
    • जबकि अनुच्छेद 366 (12A) मानव उपभोग के लिये शराब को GST से बाहर रखता है, उच्च हस्तांतरण हिस्सेदारी की पेशकश करके इसके समावेश को सुगम बनाया जा सकता है,
      • कम निर्भरता वाले राज्यों में पायलट परियोजनाएँ शुरू करना, तथा आम सहमति बनाने के लिये दीर्घकालिक राजकोषीय सुरक्षा प्रदान करना।
  • GST स्लैब दर का युक्तिकरण: उत्क्रमी शुल्क संरचना' (Inverted Duty Structure) को दूर करने के लिये रिफंड प्रक्रिया में तेज़ी, इनपुट टैक्स (विशेषकर कृत्रिम रेशा - Man-made fiber) में पुनर्संतुलन, तथा मुआवज़ा उपकर (Compensation Cess) की पुनः समीक्षा की जानी चाहिये, जिसमें इसे चरणबद्ध तरीके से समाप्त करना या फिर उच्चतम GST स्लैब में समाहित करना शामिल हो सकता है।
  • विवाद समाधान प्रणाली को सशक्त करना: लंबित अपीलों को उच्च न्यायालयों से शीघ्र निपटाने और विरोधाभासी व्याख्याओं को रोकने के लिये GST अपीलीय न्यायाधिकरण (GSTAT) को पूरे देश में सक्रिय किया जाना चाहिये, जिसके लिये न्यायाधिकरणों में नियुक्तियों की प्रक्रिया को तीव्र किया जाना आवश्यक है।
  • छोटे-मोटे मामलों पर मुकदमों को कम करने के लिये, प्रारंभिक प्रक्रियात्मक त्रुटियों पर दंड को माफ करने के लिये एक क्षमा योजना लागू कीजिये और अस्पष्टताओं पर अनिवार्य परिपत्र जारी कीजिये।
  • डिजिटल एकीकरण: जीएसटी नेटवर्क (GSTN) को आईसीईगेट (ICEGATE), विदेश व्यापार महानिदेशालय (DGFT), भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) और कॉरपोरेट कार्य मंत्रालय (MCA) से जोड़ते हुए सिंगल-विंडो अनुपालन प्रणाली लागू की जाये, जिससे रियल-टाइम डेटा साझा करने के साथ-साथ  स्वतः-भरे गये रिटर्न की सुविधा प्राप्त हो सके।
  • AI आधारित जाँच प्रणाली का उपयोग करते हुए रिफंड और ऑडिट की प्रक्रिया को समयबद्ध बनाया जाये, जैसे कि निर्यातकों को 15 दिनों के भीतर रिफंड दिया जाना।
  • नये क्षेत्रों में कर आधार का विस्तार: अगली पीढ़ी के GST सुधारों के तहत क्रिप्टो-एसेट्स, कार्बन क्रेडिट्स एवं डिजिटल वस्तुओं/सेवाओं जैसे उभरते क्षेत्रों को स्वच्छ, एकरूप और वैश्विक मानकों के अनुरूप करना आवश्यक है।

निष्कर्ष

GST ने भारत के कर ढाँचे में एक बड़ा परिवर्तन किया है, जिससे राजस्व में वृद्धि एवं आर्थिक औपचारिकता को बढ़ावा मिला है। हालाँकि, पेट्रोलियम उत्पादों की बहिष्कृति, दरों की जटिलता और विवादों के समाधान में विलंब जैसी चुनौतियाँ अब भी बनी हुई हैं। इन चुनौतियों से निपटने के लिये आवश्यक है कि बहिष्कृत क्षेत्रों को चरणबद्ध रूप से शामिल किया जाये, कर दरों का सरलीकरण किया जाये, विवादों का शीघ्र समाधान सुनिश्चित किया जाये तथा डिजिटल एकीकरण को सशक्त किया जाये। ये सुधार GST प्रणाली को वास्तव में "एक राष्ट्र, एक कर" को सुनिश्चित करेगे और भारत के 5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने के लक्ष्य को सशक्त आधार प्रदान करेंगे।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न. जबकि जीएसटी ने भारत की अप्रत्यक्ष कर प्रणाली को सरल बनाया है, फिर भी इसकी संरचनात्मक और परिचालन संबंधी चुनौतियाँ बनी हुई हैं।" इस कथन की समालोचनात्मक समीक्षा कीजिये तथा सुधार हेतु उपाय सुझाइये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न1. निम्नलिखित मदों पर विचार कीजिये: (2018)

  1. छिलका उतरे हुए अनाज
  2. मुर्गी के अंडे पकाए हुए
  3. संसाधित और डिब्बाबंद मछली 
  4. विज्ञापन सामग्री युक्त समाचार पत्र

उपर्युक्त मदों में से कौन-सी वस्तु/वस्तुएँ जीएसटी (वस्तु एवं सेवा कर) के अंतर्गत छूट प्राप्त है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1, 2 और 4
(d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: (c)


प्रश्न2. 'वस्तु एवं सेवा कर (गुड्स एंड सर्विसेज़ टैक्स/GST)' के क्रियान्वित किये जाने का/के सर्वाधिक संभावित लाभ क्या है/हैं? (2017)

  1. यह भारत में बहु-प्राधिकरणों द्वारा वसूल किये जा रहे बहुल करों का स्थान लेगा और इस प्रकार एकल बाज़ार स्थापित  करेगा।
  2. यह भारत के 'चालू खाता घाटे' को प्रबलता से कम कर विदेशी मुद्रा भंडार को बढ़ाने हेतु इसे सक्षम बनाएगा।
  3. यह भारत की अर्थव्यवस्था की संवृद्धि और आकार को वृहद् रूप से बढ़ाएगा और उसे निकट भविष्य में चीन से आगे निकलने में सक्षम बनाएगा।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (a)


प्रश्न. वस्तु एवं सेवा कर (राज्यों को क्षतिपूर्ति) अधिनियम, 2017 के तर्काधार की व्याख्या कीजिये। कोविड-19 ने कैसे वस्तु एवं सेवा कर क्षतिपूर्ति निधि को प्रभावित किया है और नए संघीय तनावों को उत्पन्न किया है? ( 2020)

प्रश्न. उन अप्रत्यक्ष करों को गिनाइये जो भारत में वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) में सम्मिलित किये गए हैं। भारत में जुलाई 2017 से क्रियान्वित जीएसटी के राजस्व निहितार्थों पर भी टिप्पणी कीजिये। ( 2019)


निजी क्षेत्र के अनुसंधान एवं विकास के लिये RDI योजना

प्रिलिम्स के लिये:

अनुसंधान नेशनल रिसर्च फाउंडेशन, डीप टेक, बौद्धिक संपदा, सेमीकंडक्टर, अटल इनोवेशन मिशन, नेशनल रिसर्च फाउंडेशन, कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व, STEM शिक्षा, AI, IoT, ब्लॉकचेन।                       

मेन्स के लिये:

अनुसंधान विकास और नवाचार (RDI) योजना के प्रावधान, अनुसंधान एवं विकास में निजी क्षेत्र की भूमिका, संबंधित चुनौतियाँ और उनके समाधान के उपाय।

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 1 लाख करोड़ रुपए की अनुसंधान विकास और नवाचार (RDI) योजना को मंजूरी दी, जिसका उद्देश्य निजी क्षेत्र को बुनियादी अनुसंधान में निवेश करने के लिये प्रोत्साहित करना है, जिससे नवीन उत्पाद और प्रौद्योगिकियाँ विकसित होंगी।

अनुसंधान विकास एवं नवाचार (RDI) योजना क्या है?

  • परिचय: यह विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय की एक पहल है, जिसका उद्देश्य नवीन प्रौद्योगिकियों और उत्पादों के विकास को बढ़ावा देने के लिये बुनियादी और अनुप्रयुक्त अनुसंधान में निजी क्षेत्र के निवेश को बढ़ावा देना है।
  • दायरा: यह जोखिम को कम करके और निजी अभिकर्त्ताओं को रियायती निधि प्रदान करके उभरते और रणनीतिक क्षेत्रों में अनुसंधान एवं विकास को बढ़ावा देता है। निधियों का उपयोग चार प्रमुख तरीकों से किया जाएगा:
    • निजी अनुसंधान एवं विकास तथा नवाचार को बढ़ावा देना, विशेष रूप से जैव प्रौद्योगिकी, रोबोटिक्स, ड्रोन और जलवायु परिवर्तन जैसे उभरते क्षेत्रों में;
    • प्रौद्योगिकी तत्परता के उच्चतर स्तर को प्राप्त करने के उद्देश्य से परिवर्तनकारी परियोजनाओं को वित्तपोषित करना;
    • महत्त्वपूर्ण या रणनीतिक रूप से आवश्यक प्रौद्योगिकियों के अधिग्रहण का समर्थन करना; तथा
    • डीप टेक क्षेत्र में स्टार्टअप्स के लिये वैकल्पिक वित्तपोषण चैनल के रूप में डीप टेक फंड ऑफ फंड्स की स्थापना करना।
  • प्रशासन एवं शासन: प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में ANRF का शासी बोर्ड RDI योजना के लिये समग्र रणनीतिक दिशा प्रदान करेगा, जबकि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग इसके कार्यान्वयन के लिये नोडल विभाग के रूप में कार्य करेगा।
    • ANRF के अंतर्गत एक विशेष प्रयोजन निधि (SPF) निधियों के संरक्षक के रूप में कार्य करेगी, जो मुख्य रूप से द्वितीय स्तर के निधि प्रबंधकों को दीर्घकालिक रियायती ऋण वितरित करेगी। 
      • ये प्रबंधक कम या शून्य ब्याज दर वाले ऋणों के माध्यम से अनुसंधान एवं विकास परियोजनाओं को वित्तपोषित करेंगे, स्टार्ट-अप के लिये इक्विटी समर्थन प्रदान करेंगे, तथा डीप-टेक या अन्य RDI-केंद्रित फंड्स ऑफ फंड्स (FoF) में योगदान दे सकते हैं।
  • वित्तपोषण संरचना: यह धनराशि केंद्रीय बजट के माध्यम से ANRF को 50 वर्ष के ब्याज मुक्त ऋण के रूप में आवंटित की जाएगी, जिसका उपयोग गुणक प्रभाव उत्पन्न करने के लिये किया जाएगा।
    • धन केवल एक निश्चित स्तर के विकास और बाज़ार क्षमता वाले उत्पादों को ही प्रदान किया जाएगा, जिसमें उच्च जोखिम वाली TRL-4 (तकनीकी तत्परता स्तर-4) परियोजनाएँ भी शामिल हैं, जिन्हें प्रायः वित्तीय सहायता का अभाव होता है।

नोट

  • भारत का अनुसंधान एवं विकास पर सकल व्यय (GERD) वर्ष 2011 में 60,196 करोड़ रुपए से बढ़कर वर्ष 2021 में 1.27 लाख करोड़ रुपए हो गया, लेकिन यह GDP का 0.64% ही है।
  • लक्ष्य यह है कि भारत का निजी क्षेत्र अंततः बुनियादी अनुसंधान में सरकारी वित्त पोषण से आगे निकल जाए, जैसा कि उन्नत प्रौद्योगिकी वाले देशों में देखा गया है।
  • पेटेंट फाइलिंग में भारत विश्व स्तर पर छठे स्थान पर है, वर्ष 2023 में 64,480 आवेदन हुए, जो वर्ष 2013-14 में 42,951 से अधिक है।

भारत में अनुसंधान एवं विकास में निजी क्षेत्र की भागीदारी के समक्ष क्या चुनौतियाँ हैं?

  • निजी क्षेत्र द्वारा कम अनुसंधान एवं विकास व्यय: भारत का उद्योग जगत अनुसंधान एवं विकास में सकल घरेलू उत्पाद का केवल 0.2% निवेश करता है, जो अमेरिका (2.7%), दक्षिण कोरिया (3.9%) और UK (2.1%) से काफी कम है, क्योंकि कई व्यवसाय दीर्घकालिक अनुसंधान की तुलना में अल्पकालिक लाभ को प्राथमिकता देते हैं।
  • कमज़ोर उद्योग-अकादमिक सहयोग: अकादमिक क्षेत्र और उद्योग के बीच सहयोग विश्वास की कमी और दृष्टिकोण में असंगति के कारण बाधित होता है, क्योंकि विश्वविद्यालय प्रायः सैद्धांतिक अनुसंधान पर केंद्रित रहते हैं जबकि उद्योग क्षेत्र व्यावसायिक रूप से तैयार समाधान चाहता है। 
    • इसके अतिरिक्त, बौद्धिक संपदा (IP) स्वामित्व पर विवाद प्रभावी साझेदारी में बाधा डालते हैं।
  • बाज़ार एवं वित्तपोषण चुनौतियाँ: कम वाणिज्यिक व्यवहार्यता, विशेष रूप से प्रारंभिक चरण या गहन तकनीक नवाचारों में, कॉर्पोरेट निवेश को बाधित करती है।
    • "वैली ऑफ डेथ" चरण (प्रौद्योगिकी तत्परता स्तर 3–6) — जब प्रौद्योगिकियाँ प्रयोगशाला से बाज़ार की ओर बढ़ती हैं — प्रायः अल्पवित्तपोषित रह जाता है और उपेक्षित कर दिया जाता है।
    • सार्वजनिक वित्तपोषण (जैसे, DST, MeitY योजनाएँ) पर भी अत्यधिक निर्भरता है, जबकि निजी कंपनियों को रक्षा और रणनीतिक अनुसंधान एवं विकास में प्रवेश संबंधी बाधाओं का सामना करना पड़ता है, जिसमें बड़े पैमाने पर DRDO का प्रभुत्व है।
  • अपर्याप्त IP संरक्षण और प्रवर्तन: लंबी पेटेंट स्वीकृतियाँ (3-6 वर्ष) और उच्च मुकदमेबाज़ी लागत नवाचार को बाधित करती हैं, जबकि कमज़ोर प्रवर्तन फार्मा जेनरिक और सॉफ्टवेयर पाइरेसी जैसे क्षेत्रों में राजस्व हानि का कारण बनती है।
  • कुशल अनुसंधान एवं विकास प्रतिभा की कमी: बेहतर अवसरों की तलाश में शीर्ष शोधकर्त्ताओं के विदेश जाने के कारण प्रतिभा पलायन जारी है, जबकि AI और उन्नत सामग्री जैसे क्षेत्रों में कौशल असंतुलन घरेलू अनुसंधान एवं विकास क्षमता को सीमित करता है।
    • इसके अतिरिक्त, उन्नत प्रयोगशालाओं (जैसे, सेमीकंडक्टर फैब्स, बायोटेक लैब्स) की स्थापना की उच्च लागत और सरकारी वित्त पोषित बुनियादी ढाँचे (जैसे, CSIR लैब्स ) तक सीमित पहुँच निजी क्षेत्र के अनुसंधान एवं विकास को और अधिक प्रतिबंधित करती है।
  • न्यून जोखिम लेने की प्रवृत्ति: असफलता का भय और पदानुक्रमित कार्यस्थल जैसी सांस्कृतिक बाधाएँ जोखिम लेने को हतोत्साहित करती हैं और शोधकर्त्ता की रचनात्मकता को क्षीण कर देती हैं।

निजी क्षेत्र भारत में अनुसंधान और नवाचार को कैसे बढ़ावा दे सकता है?

  • अनुसंधान एवं विकास निवेश में वृद्धि: भारत का अनुसंधान एवं विकास व्यय अमेरिका (3.46%), जापान (3.30%), इज़राइल (5.56%), और दक्षिण कोरिया (4.93%) जैसी उन्नत अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में काफी कम है। 
    • इस अंतर को कम करने के लिये, निजी कंपनियाँ अनुसंधान एवं विकास निवेश बढ़ा सकती हैं, विशेष रूप से फार्मा, IT, नवीकरणीय ऊर्जा और उन्नत विनिर्माण में, और IITs, IISc, NITs जैसे संस्थानों और CSIR, DRDO और ISRO जैसी प्रयोगशालाओं के साथ सहयोगात्मक अनुसंधान में संलग्न हो सकती हैं।
  • सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP): कॉर्पोरेट्स सरकार के साथ मिलकर अनुसंधान एवं विकास को बढ़ावा देने के लिये संयुक्त नवाचार निधि (जैसे, अटल इनोवेशन मिशन, नेशनल रिसर्च फाउंडेशन) को बढ़ावा दे सकते हैं।
    • वे प्रौद्योगिकी इन्क्यूबेटरों (जैसे, T-Hub, C-CAMP) में निवेश करके और कॉर्पोरेट एक्सेलेरेटर्स (जैसे, स्टार्टअप्स के लिये माइक्रोसॉफ्ट, गूगल लॉन्चपैड ) के साथ साझेदारी करके स्टार्टअप्स का समर्थन भी कर सकते हैं।
  • कॉर्पोरेट वेंचर कैपिटल (CVC): कॉर्पोरेट्स डीप-टेक स्टार्टअप्स (AI, बायोटेक, क्वांटम, स्पेस टेक) में निवेश कर सकते हैं और नवाचार और पैमाने में तीव्रता लाने के लिये मेंटरशिप, फंडिंग और वैश्विक बाज़ार तक पहुँच प्रदान कर सकते हैं।
  • नवप्रवर्तन को प्रोत्साहित करना: कॉरपोरेट क्षेत्र नवाचार को प्रोत्साहित करने हेतु विघटनकारी प्रौद्योगिकियों पर केंद्रित इन-हाउस नवाचार प्रयोगशालाएँ स्थापित कर सकता है, और कर्मचारियों को पेटेंट दाखिल करने के लिये प्रेरित कर सकता है, जैसा कि बौद्धिक संपदा सृजन में विप्रो, HCL और बायोकॉन जैसे उदाहरणों में देखा गया है।
  • उभरती प्रौद्योगिकियों को अपनाना: निजी क्षेत्र के प्रमुख क्षेत्रों (जैसे कृषि, स्वास्थ्य सेवा, रसद) में AI, IoT और ब्लॉकचेन जैसी उभरती प्रौद्योगिकियों को अपनाने को प्रोत्साहित किया जा सकता है।

निष्कर्ष

1 लाख करोड़ रुपए की RDI योजना निजी अनुसंधान एवं विकास को प्रोत्साहित करके भारत के नवाचार अंतर को पाटने के लिये एक परिवर्तनकारी पहल है। रणनीतिक वित्तपोषण, गहन तकनीक फोकस तथा संस्थागत समर्थन के साथ, इसका उद्देश्य अनुसंधान-संचालित अर्थव्यवस्था को उत्प्रेरित करना है। हालाँकि, निजी क्षेत्र की भागीदारी को सुधारों, साझेदारियों और नवाचार-अनुकूल पारिस्थितिकी तंत्र के माध्यम से मज़बूत किया जाना चाहिये।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: भारत के नवाचार लक्ष्यों को प्राप्त करने में निजी क्षेत्र की क्या भूमिका है? RDI योजना के संदर्भ में परीक्षण कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स 

प्रश्न: राष्ट्रीय नवप्रवर्तन प्रतिष्ठान - भारत (नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन-इंडिया) (NIF) के बारे में निम्नलिखित में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं? (2015)

  1. NIF केन्द्रीय सरकार के अधीन विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग की एक स्वायत्त संस्था है।
  2.  NIF अत्यंत उन्नत विदेशी वैज्ञानिक संस्थाओं के सहयोग से भारत की प्रमुख (प्रीमियर) वैज्ञानिक संस्थाओं में अत्यंत उन्नत वैज्ञानिक अनुसंधान को मज़बूत करने की एक पहल है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(A) केवल 1
(B) केवल 2
(C) 1 व 2 दोनों
(D) न तो 1 और न ही 2

 उत्तर: (A) 


मेन्स

प्रश्न: भारतीय विश्वविद्यालयों में वैज्ञानिक अनुसंधान का स्तर गिरता जा रहा है क्योंकि विज्ञान में कैरियर उतना आकर्षक नहीं है जितना कि वह कारोबार, संव्यवसाय इंजीनियरिंग या प्रशासन में है और विश्वविद्यालय उपभोक्ता-उन्मुखी होते जा रहे हैं । समालोचनात्मक टिप्पणी कीजिये। (2014)