हिंद महासागर क्षेत्र की सुरक्षा | 30 Jun 2025

प्रिलिम्स के लिये:

संसदीय स्थायी समिति, हिंद महासागर क्षेत्र (IOR), स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स, हॉर्न ऑफ अफ्रीका, SAARC, BIMSTEC, हिंद महासागर रिम एसोसिएशन (IORA), भारतीय राष्ट्रीय महासागर सूचना सेवा केंद्र (INCOIS), डीप ओशन मिशन, MAHASAGAR (क्षेत्र में सभी के लिये सक्रिय सुरक्षा और विकास हेतु समुद्री प्रमुख), कोलंबो सुरक्षा सम्मेलन, NavIC।                

मेन्स के लिये:

भारत के लिये हिंद महासागर क्षेत्र का महत्त्व, हिंद महासागर क्षेत्र में चीन की उपस्थिति के कारण भारत के समक्ष आने वाली चुनौतियाँ, हिंद महासागर क्षेत्र में चीन की उपस्थिति का मुकाबला करने के लिये भारत द्वारा आवश्यक कदम।

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

विदेश मामलों पर संसदीय स्थायी समिति की रिपोर्ट में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) में क्षेत्र-बाह्य ताकतों की बढ़ती उपस्थिति, विशेषकर चीन की बढ़ती पैठ, भारत के लिये एक महत्त्वपूर्ण रणनीतिक चुनौती है।

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चीन हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) में अपनी रणनीतिक उपस्थिति कैसे बढ़ा रहा है?

  • चीन हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) के तटीय देशों में बंदरगाहों, हवाई अड्डों और लॉजिस्टिक्स हब जैसी द्वैध-प्रयोग (नागरिक और सैन्य दोनों उद्देश्यों वाले) अवसंरचनाओं में निवेश कर रहा है, जिससे वह एक नौसैनिक समर्थन नेटवर्क तैयार कर रहा है। इसके प्रमुख उदाहरण हैं: हंबनटोटा (श्रीलंका) – 99 वर्षों के लिये लीज़ पर, ग्वादर (पाकिस्तान) – CPEC (चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा) का हिस्सा और चटगाँव (बांग्लादेश) तथा क्याउकप्यू (म्याँमार) – जो भारत की समुद्री सीमाओं के निकट स्थित हैं।
    • चीन की "स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स" रणनीति एक ऐसी नौसैनिक लॉजिस्टिक्स नेटवर्क विकसित करने की परिकल्पना करती है, जो संघर्ष की स्थिति में सैनिकों की त्वरित तैनाती को संभव बना सके।
  • सैन्य विस्तार और नौसेना की तैनाती: चीन ने जिबूती सैन्य अड्डे (2017) के माध्यम से हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) में अपनी नौसैनिक उपस्थिति को काफी बढ़ाया है, जिससे वह लंबे समय तक नौसैनिक अभियान संचालित कर सकता है। इसके साथ ही वह पनडुब्बियों सहित युद्धपोतों की तैनाती भी बढ़ा रहा है।
    • चीन "वैज्ञानिक" अनुसंधान पोत (जैसे: जियांग यांग हांग 3 (Xiang Yang Hong 3)) भी महासागरीय सर्वेक्षणों के लिये भेजता है, जो पनडुब्बी अभियानों और समुद्री क्षेत्र की निगरानी (Maritime Domain Awareness) में सहायक होते हैं।
  • ऋण-जाल कूटनीति: चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के तहत शुरू की गई परियोजनाएँ प्रायः अस्थिर ऋणों पर आधारित होती हैं, जिससे संबंधित देश ऋण-जाल में फँस जाते हैं। इसका स्पष्ट उदाहरण श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह संकट और मालदीव की बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं पर भारी ऋण में देखा जा सकता है, जिससे इन देशों की बीजिंग पर निर्भरता बढ़ती जा रही है।
    • चीन इन देशों की आर्थिक कमज़ोरियों का लाभ उठाकर उन पर दबाव बनाता है कि वे उसके रणनीतिक हितों के अनुरूप कदम उठाएँ, जिससे प्रायः क्षेत्रीय स्थिरता खतरे में पड़ जाती है।
  • राजनयिक और सुरक्षा साझेदारियाँ: चीन पाकिस्तान, बांग्लादेश, म्याँमार, ईरान तथा रूस के साथ संयुक्त नौसैनिक अभ्यास करता है, जिससे उसकी समुद्री सैन्य साझेदारियाँ और मज़बूत होती हैं। राजनीतिक रूप से, वह मालदीव के राष्ट्रपति मुइज़्जू (Muizzu) जैसे चीन समर्थक अभिकर्त्ताओं का समर्थन करता है ताकि क्षेत्र में अपना प्रभाव बढ़ा सके।

चीन की "स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स" रणनीति

  • ‘मोतियों की माला’ एक भू-राजनीतिक सिद्धांत है जो मलक्का जलडमरूमध्य से लेकर अफ्रीका के हॉर्न तक पूरे हिंद महासागर क्षेत्र में अपने बंदरगाहों और नौसैनिक अड्डों के विकास व विस्तार की दिशा में चीन के बढ़ते प्रयासों को दर्शाता है।
  • इस सिद्धांत के अनुसार चीन अपने महत्त्वपूर्ण ऊर्जा आयात की रक्षा करने और अपने समुद्री प्रभाव को बढ़ाने के लिये हिंद महासागर में प्रमुख समुद्री मार्गों के साथ रणनीतिक नौसैनिक अड्डों तथा वाणिज्यिक बंदरगाहों की एक शृंखला स्थापित करना चाहता है।
  • इन "पर्ल्स" में पाकिस्तान में ग्वादर, श्रीलंका में हंबनटोटा और अफ्रीका में जिबूती जैसे बंदरगाह शामिल हैं, जो चीन को इस क्षेत्र में अधिक पहुँच तथा प्रभाव प्रदान करते हैं।

चीन की उपस्थिति हिंद महासागर क्षेत्र में किस प्रकार भारत के हितों के लिये खतरा है?

  • सैन्य और सुरक्षा खतरे: चीन के रणनीतिक बंदरगाह - ग्वादर, हंबनटोटा, जिबूती तथा कोको द्वीप-चीनी नौसेना को युद्धपोतों को तैनात करने, भारतीय नौसैनिक गतिविधि की निगरानी करने एवं संभावित रूप से मलक्का जलडमरूमध्य और होर्मुज़ जलडमरूमध्य जैसे प्रमुख समुद्री मार्गों को अवरुद्ध करने में सक्षम बनाते हैं।
  • आर्थिक और सामरिक खतरे: भारत का 80% तेल आयात हिंद महासागर क्षेत्र से होकर गुज़रता है, इसलिये संघर्ष के दौरान चीन व्यापार मार्गों को बाधित कर सकता है, जिससे भारत की ऊर्जा सुरक्षा को खतरा हो सकता है।
    • चीन ऋण-जाल कूटनीति के कारण भारत को अपने पारंपरिक सहयोगियों, SAARC और बिम्सटेक में कूटनीतिक लाभ खोने का खतरा है तथा ग्राहक देशों के माध्यम से अपने तटों के निकट चीनी नौसैनिक पहुँच में वृद्धि का सामना करना पड़ सकता है।
  • खुफिया एवं निगरानी को खतरा: जियांग यांग हांग 03 जैसे चीन के जासूसी जहाज़ और ग्वादर में इलेक्ट्रॉनिक निगरानी अड्डे भारतीय नौसेना की गतिविधियों पर चीन की निगरानी को बढ़ाते हैं, जबकि संदिग्ध समुद्री सेंसर नेटवर्क पनडुब्बी का पता लगाने में सहायता करते हैं।
    • इससे भारत की नौसैनिक गोपनीयता को खतरा उत्पन्न हो गया है और इसकी परमाणु क्षमता, विशेष रूप से अरिहंत श्रेणी के SSBN (जहाज़, पनडुब्बी, बैलिस्टिक, परमाणु) के संचालन को नुकसान पहुँचा है।
  • कूटनीतिक और भू-राजनीतिक को खतरा: नेपाल, मालदीव और बांग्लादेश में चीन का बढ़ता प्रभाव, चीन-पाकिस्तान नौसैनिक अभ्यास तथा चीन-ईरान-रूस सहयोग जैसी सैन्य साझेदारियों के साथ मिलकर, भारत को अपने ही पड़ोस में अलग-थलग करने, उसकी सामरिक स्वायत्तता को कमज़ोर करने एवं क्षेत्रीय संतुलन के लिये अमेरिका और क्वाड पर निर्भरता बढ़ाने की धमकी देता है।
  • हिंद-प्रशांत क्षेत्र की स्थिरता के लिये खतरा: हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन का सैन्य विस्तार हिंद-प्रशांत क्षेत्र पर प्रभुत्व स्थापित करने की व्यापक रणनीति का हिस्सा है।
    • इससे सामरिक संतुलन बिगड़ सकता है और अमेरिका, जापान तथा ऑस्ट्रेलिया जैसे क्षेत्र-बाह्य देशों के बीच सैन्य टकराव भड़क सकता है, जिसके कारण भारत अस्थिर वातावरण में आ सकता है।

भारत के लिये हिंद महासागर क्षेत्र का क्या महत्त्व है?

  • सामरिक समुद्री सुरक्षा: भारत स्वयं को एक शुद्ध सुरक्षा प्रदाता के रूप में देखता है, जो INS विक्रांत (2022) के प्रक्षेपण और वार्षिक 17 बहुपक्षीय और 20 द्विपक्षीय नौसैनिक अभ्यासों में परिलक्षित होता है।
  • आर्थिक जीवन रेखा: भारत का लगभग 80% बाह्य व्यापार और 90% ऊर्जा आयात-निर्यात हिंद महासागर से होकर गुज़रता है, जो वैश्विक कंटेनर परिवहन का लगभग 70% वहन करने वाले समुद्री मार्गों पर स्थित है।
    • विझिंजम (केरल) जैसे बंदरगाहों का लक्ष्य ट्रांसशिपमेंट शेयर को बढ़ावा देना है। ब्लू इकोनॉमी से सकल घरेलू उत्पाद में 4% योगदान मिलने की उम्मीद है।
  • भू-राजनीतिक प्रभाव: चीन की "स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स" रणनीति का मुकाबला करने में महासागर केंद्रीय भूमिका निभाता है, जिसने भारत को सेशेल्स, मॉरीशस और मालदीव के साथ संबंधों को गहरा करने के लिये प्रेरित किया है। 
  • पर्यावरण और आपदा प्रबंधन: भारत की 11,098 किलोमीटर लंबी तटरेखा को समुद्र-स्तर में वृद्धि तथा चरम मौसम से खतरा है, जिसके लिये भारतीय राष्ट्रीय महासागर सूचना सेवा केंद्र (INCOIS) महत्त्वपूर्ण निगरानी एवं पूर्व चेतावनी प्रदान कर रहा है। 
    • आपदा रोधी अवसंरचना गठबंधन (CDRI) और मानवीय सहायता में भारत का नेतृत्व, जैसे कि चक्रवात ईदाई (2019) के बाद मोज़ाम्बिक को दी गई सहायता इसकी सॉफ्ट पावर को मज़बूत करती है।
  • वैज्ञानिक अनुसंधान और अन्वेषण: हिंद महासागर, गहरे समुद्र मिशन जैसी पहलों के माध्यम से भारत की तकनीकी उन्नति का समर्थन करता है, जिसमें गहरे समुद्र में अन्वेषण के लिये मानवयुक्त पनडुब्बी  मत्स्य 6000 भी शामिल है।
  • केंद्रीय हिंद महासागर बेसिन (75,000 वर्ग किलोमीटर) में भारत की पॉलीमेटेलिक नोड्यूल की खोज उसे गहरे समुद्र में खनन के क्षेत्र में अग्रणी देशों में स्थापित करती है। 

भारत हिंद महासागर क्षेत्र में अपनी उपस्थिति को कैसे सुदृढ़ कर सकता है और चीन के विस्तार का मुकाबला कैसे कर सकता है?

  • सैन्य एवं सुरक्षा उपाय: भारत को अपनी नौसैनिक क्षमताओं को सुदृढ़ करने के लिये पनडुब्बी बेड़े (fleet) का विस्तार करना चाहिये, विमान वाहक कार्यक्रम (कम-से-कम 3) को आगे बढ़ाना चाहिये, पनडुब्बी रोधी युद्ध प्रणालियों (ASW) को मज़बूत करना चाहिये तथा समुद्र के भीतर निगरानी नेटवर्क तैनात करने चाहिये।
    • अंडमान और निकोबार कमान (ANC) को नौसैनिक/वायुसेना अड्डों, मिसाइल प्रणालियों, इलेक्ट्रॉनिक युद्ध उपकरणों से सुसज्जित किया जाना चाहिये तथा क्वाड एवं आसियान देशों के साथ नियमित सैन्य अभ्यास किये जाने चाहिये।
  • आर्थिक एवं अवसंरचनात्मक प्रतिकार उपाय: भारत को अपनी महासागर (क्षेत्र में सभी के लिये सक्रिय सुरक्षा और विकास हेतु समुद्री नेतृत्व) नीति को बढ़ाना चाहिये, भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारे (IMEC) को बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के विकल्प के रूप में प्रस्तुत करना चाहिये, तथा चाबहार (ईरान), सबांग (इंडोनेशिया) एवं दुकम (ओमान) जैसे क्षेत्रीय बंदरगाहों में निवेश करना चाहिये।
    • अनुदान और रियायती ऋण प्रदान कर भारत हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) के देशों की चीन पर निर्भरता को घटा सकता है, साथ ही श्रीलंका, मालदीव और बांग्लादेश में अवसंरचना परियोजनाओं का समर्थन भी कर सकता है।
  • राजनयिक एवं रणनीतिक गठबंधन: भारत को समुद्री सुरक्षा में अपनी भूमिका का विस्तार करते हुए क्वाड को सशक्त बनाना चाहिये और अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया एवं फ्राँस के साथ रक्षा सहयोग को प्रगाढ़ कर प्रौद्योगिकी साझाकरण को बढ़ावा देना चाहिये।
    • भारत को IORA जैसे क्षेत्रीय समूहों को सामूहिक सुरक्षा हेतु पुनर्सक्रिय करना चाहिये और कोलंबो सुरक्षा सम्मेलन का उपयोग आतंकवाद-रोधी उपायों एवं समुद्री सहयोग को सुदृढ़ करने के लिये करना चाहिये।
  • प्रौद्योगिकीय उन्नयन: भारत को नाविक की कवरेज का विस्तार करना चाहिये और अतिरिक्त टोही उपग्रह तैनात करने चाहिये ताकि समुद्री क्षेत्र की जागरूकता बढ़ाई जा सके तथा चीनी नौसैनिक गतिविधियों की निगरानी की जा सके।
    • भारत को कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) आधारित समुद्री निगरानी प्रणालियों का विकास भी करना चाहिये और बंदरगाहों एवं नौसैनिक अड्डों को लक्षित करने वाले चीनी साइबर-जासूसी प्रयासों का मुकाबला करने हेतु साइबर सुरक्षा को सुदृढ़ बनाना चाहिये।
  • सॉफ्ट पावर एवं सांस्कृतिक कूटनीति: भारत को हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) में प्राचीन समुद्री मार्गों को पुनर्जीवित कर, बौद्ध धर्म को बढ़ावा देकर, शिक्षा एवं कौशल विकास का विस्तार कर और मानवीय सहायता एवं आपदा राहत (HADR) प्रयासों में नेतृत्व करते हुए सुनामी, चक्रवात तथा अन्य आपदाओं के लिये त्वरित प्रतिक्रिया वाली नौसैनिक टीमों के माध्यम से क्षेत्रीय सद्भावना को सुदृढ़ करना चाहिये।

निष्कर्ष

हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) में चीन की बढ़ती उपस्थिति भारत की सुरक्षा, अर्थव्यवस्था और क्षेत्रीय प्रभाव के लिये एक गंभीर चुनौती है। इसका मुकाबला करने के लिये भारत को अपनी नौसैनिक क्षमताओं को सुदृढ़ करना चाहिये, BRI के विकल्प स्वरूप आर्थिक अवसर प्रदान करने चाहिये, क्वाड जैसे गठबंधनों को मज़बूत करना चाहिये, निगरानी तंत्र को उन्नत करना चाहिये तथा सॉफ्ट पावर का रणनीतिक रूप से उपयोग करना चाहिये। भारत के समुद्री हितों की रक्षा और क्षेत्रीय स्थिरता बनाए रखने के लिये एक सक्रिय, बहुआयामी रणनीति अनिवार्य है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) में चीन के बढ़ते प्रभाव से भारत के लिये किस प्रकार की रणनीतिक चुनौती उत्पन्न होती है? IOR में चीन के बढ़ते प्रभाव का मुकाबला करने के लिये भारत कौन-से कदम उठा सकता है?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. 'क्षेत्रीय सहयोग के लिये इंडियन ओशन रिम एसोसिएशन फॉर रीज़नल को-ऑपरेशन (IOR_ARC)' के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2015)

  1. इसकी स्थापना हाल ही में घटित समुद्री डकैती की घटनाओं और तेल अधिप्लाव (आयल स्पिल्स) की दुर्घटनाओं के प्रतिक्रिया स्वरूप की गई है।   
  2. यह एक ऐसी मैत्री है जो केवल समुद्री सुरक्षा हेतु है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

 उत्तर: (d) 


मेन्स:

प्रश्न: वैश्विक व्यापार और ऊर्जा प्रवाह पर ध्यान केंद्रित करते हुए भारत के लिये मालदीव के भू-राजनीतिक तथा भू-रणनीतिक महत्त्व पर चर्चा कीजिये। आगे यह भी चर्चा करें कि यह संबंध अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्द्धा के बीच भारत की समुद्री सुरक्षा तथा क्षेत्रीय स्थिरता को कैसे प्रभावित करता है? (2024)

प्रश्न. भारत-रूस रक्षा समझौतों की तुलना में भारत-अमेरिका रक्षा समझौतों की क्या महत्ता है? हिंद-प्रशांत महासागरीय क्षेत्र में स्थायित्व के संदर्भ में विवेचना कीजिये। (2020)