डेली न्यूज़ (26 Aug, 2021)



परिवहन क्षेत्र के डिकार्बोनाइज़ेशन के लिये फोरम

प्रिलिम्स के लिये

नीति आयोग, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन,  वायु प्रदूषण, पेरिस जलवायु समझौते, राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान, जैव विविधता कन्वेंशन

मेन्स के लिये

परिवहन क्षेत्र के डिकार्बोनाइज़ेशन फोरम की स्थापना का उद्देश्य एवं अपेक्षित लाभ तथा इससे संबंधित विभिन्न पहलें

चर्चा में क्यों?

हाल ही में नीति आयोग (NITI Aayog) और वर्ल्ड रिसोर्स इंस्टीट्यूट (World Resources Institute-WRI), द्वारा संयुक्त रूप से भारत में ‘फोरम फॉर डिकार्बोनाइज़िग ट्रांसपोर्ट’ (Forum for Decarbonizing Transport) को लॉन्च किया गया था।

  • WRI इंडिया विधिक रूप से इंडिया रिसोर्स ट्रस्ट के रूप में पंजीकृत एक स्वतंत्र चैरिटी है जो पर्यावरण की दृष्टि से स्वस्थ और सामाजिक रूप से न्यायसंगत विकास को बढ़ावा देने के लिये वस्तुनिष्ठ जानकारी और व्यावहारिक प्रस्ताव प्रदान करता है।
  • नीति आयोग सरकार के लिये एक सलाहकार थिंक टैंक के रूप में कार्य करता है और इसकी अध्यक्षता प्रधानमंत्री करता है। इसने योजना आयोग का स्थान लिया।

प्रमुख बिंदु 

परिचय :

  • यह मंच राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC)- एशिया के लिये परिवहन पहल  (NDC-TIA) परियोजना का एक हिस्सा है, जो प्रभावी नीतियों की एक सुसंगत रणनीति विकसित करने और क्षेत्र में कार्बन मुक्त परिवहन की व्यवस्था सुनिश्चित करने के लिये एक बहु-हितधारक मंच के गठन पर केंद्रित है।
    • NDC-TIA सात संगठनों का एक संयुक्त कार्यक्रम है जो चीन, भारत और वियतनाम को अपने-अपने देशों में परिवहन को कार्बन मुक्त करने के लिये एक व्यापक दृष्टिकोण को बढ़ावा देने में संलग्न करेगा। यह परियोजना अंतर्राष्ट्रीय जलवायु पहल (IKI) का हिस्सा है।
    • IK जर्मनी के जलवायु वित्तपोषण और जैव विविधता कन्वेंशन के फ्रेमवर्क में वित्तपोषण प्रतिबद्धताओं का एक प्रमुख तत्त्व है।
  • भारत में परिवहन क्षेत्र को स्वच्छ बनाने के लिये यह विविध विचारों को साथ लाने और एक एकीकृत दृष्टिकोण अपनाने हेतु माध्यम के रूप में कार्य करेगा।

उद्देश्य :

  • इस परियोजना का उद्देश्य एशिया में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन (परिवहन क्षेत्र) के चरम स्तर (दो डिग्री से नीचे के लक्ष्य के अनुरूप) को नीचे लाना है जिसके परिणामस्वरूप  ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन की वजह से संकुलन और वायु प्रदूषण जैसी समस्याएँ होती हैं।

अपेक्षित लाभ :

  • यह व्यापार के एक अभिनव मॉडल के विकास में मदद करेगा जिससे लक्षित परिणाम प्राप्त होंगे और भारत में इलेक्ट्रिक मोबिलिटी क्षेत्र का समग्र विकास होगा। 
  • यह फोरम समान नीतियों के विकास के लिये संवाद शुरू करने और परिवहन क्षेत्र में उत्सर्जन को कम कर विशिष्ट परिणाम प्राप्त करने में मदद हेतु भी एक मंच  प्रदान करेगा।

आवश्यकता:

  • भारत में एक विशाल और विविध परिवहन क्षेत्र है, जो कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) का उत्सर्जन करने वाला तीसरा सबसे बड़ा क्षेत्र है।
  • अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA), 2020 और पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, 2018 के डेटा से पता चलता है कि परिवहन क्षेत्र में शामिल सड़क परिवहन, कॉर्बन डाइऑक्साइड के कुल उत्सर्जन में 90% से अधिक का योगदान देता है।
  • बढ़ते शहरीकरण के साथ वाहनों का आकार यानी वाहनों की बिक्री की संख्या तेज़ी से बढ़ रही है। अनुमान है कि 2030 तक वाहनों की कुल संख्या दोगुनी हो जाएगी।
  • इसलिये 2050 के लिये निर्धारित पेरिस जलवायु समझौते के लक्ष्यों को प्राप्त करने हेतु भारत में परिवहन क्षेत्र को एक डिकार्बोनाइज़ेशन पथ की ओर अग्रसर होना आवश्यक है।

संबंधित पहलें:

  • फेम योजना
    • यह ‘नेशनल इलेक्ट्रिक मोबिलिटी मिशन’ प्लान का एक हिस्सा है। इसका मुख्य उद्देश्य सब्सिडी प्रदान करके इलेक्ट्रिक वाहनों को प्रोत्साहित करना है।
    • हाल ही में केंद्र सरकार ने इको-फ्रेंडली वाहनों को बढ़ावा देने के मद्देनज़र ‘फेम-II’ (फास्टर एडॉप्शन एंड मैन्युफैक्चरिंग ऑफ इलेक्ट्रिक व्हीकल्स) योजना के तहत इलेक्ट्रिक टू-व्हीलर्स पर सब्सिडी को 50% बढ़ाने का फैसला किया है।
  • PLI योजना के तहत प्रोत्साहन:
    • यह योजना पिछले वर्ष विभिन्न उद्योगों के लिये शुरू की गई थी, जिसमें पाँच वर्ष की अवधि में ऑटोमोबाइल और ऑटो-कंपोनेंट उद्योग के लिये 57,00 करोड़ रुपए से अधिक का परिव्यय शामिल था।
    • इसके तहत ‘एडवांस सेल केमिस्ट्री बैटरी स्टोरेज’ निर्माण के लिये लगभग 18,000 करोड़ रुपए स्वीकृत किये गए हैं।
    • इन प्रोत्साहनों का उद्देश्य इलेक्ट्रिक वाहनों (EV) के स्वदेशी विकास को प्रोत्साहित करना है, ताकि उनकी अग्रिम लागत को कम किया जा सके।
  • नवीकरणीय मोटर वाहन उद्योग:
    • भारत वर्तमान में दुनिया का सबसे बड़ा इलेक्ट्रिक वाहन निर्माण और आपूर्ति केंद्र बनने के उद्देश्य से एक घरेलू नवीकरणीय मोटर वाहन उद्योग के निर्माण में लगा हुआ है।
      • बैटरी चालित इलेक्ट्रिक वाहन और ईंधन-सेल वाहन प्रौद्योगिकियाँ वर्ष 2050 तक देश में जीवाश्म से चलने वाले वाहनों को पीछे छोड़ने के लिये पूरी तरह तैयार हैं।

आगे की राह

  • भारत के पास अपने शहरी परिवहन क्षेत्र को कार्बन मुक्त करने का एक महत्त्वपूर्ण अवसर है। मोटर वाहनों के विद्युतीकरण के साथ-साथ पैदल, साइकिल और सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा देकर देश के लिये सही रणनीति अपनाई जानी चाहिये।
  • देश भर में इलेक्ट्रिक वाहनों का लाभ उठाने और उन्हें कारगर बनाने हेतु विभिन्न हितधारकों के लिये एक अनुकूल पारिस्थितिकी तंत्र बनाने की आवश्यकता है।
  • इन हितधारकों के बीच एक समन्वित प्रयास निवेश को सक्षम बनाने, प्रोत्साहित करने और उद्योग का उचित संचालन सुनिश्चित करने में मदद करेगा।

स्रोत: पीआईबी


ईज़ 4.0

प्रिलिम्स के लिये

ईज़ 4.0 बैंकिंग सुधार प्रदर्शन,  बैड बैंक,  फिनटेक

मेन्स के लिये

सरकार द्वारा बैंकिंग क्षेत्र में सुधारों से जुड़े प्रयास में ईज़ रिफॉर्म एजेंडा की भूमिका

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय वित्त मंत्री ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (PSB) के वार्षिक प्रदर्शन की समीक्षा की और EASE 4.0 या एन्हांस्ड एक्सेस एंड सर्विस एक्सीलेंस रिफॉर्म एजेंडा (Enhanced Access and Service Excellence Reform Agenda-EASE) लॉन्च किया।

  • EASE 4.0 सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के लिये एक सामान्य सुधार एजेंडा है जिसका उद्देश्य स्वच्छ और स्मार्ट बैंकिंग को संस्थागत बनाना है।

Clean-Banking

प्रमुख बिंदु

ईज़ 4.0 के बारे में : 

  • EASE 4.0 ग्राहक-केंद्रित डिजिटल परिवर्तन के एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए PSB को तकनीक-सक्षम, सरलीकृत और सहयोगी बैंकिंग के लिये प्रतिबद्ध करता है।
  • इसके अंतर्गत निम्नलिखित प्रमुख विषय प्रस्तावित किये गए:
    • 24x7 बैंकिंग : EASE 4.0 के तहत बैंकिंग सेवाओं की निर्बाध उपलब्धता सुनिश्चित करने हेतु लचीली तकनीक के साथ नए युग के 24x7 बैंकिंग की थीम पेश की गई है।
    • उत्तर-पूर्वी राज्यों पर फोकस : बैंकों को भी उत्तर-पूर्वी राज्यों के लिये विशेष स्कीम तैयार करने के लिये अनुरोध किया गया है।
    • बैड बैंक : प्रस्तावित बैड बैंक लाइसेंस प्राप्त करने के बहुत करीब है।
      • एक बैड बैंक वह है जिसे किसी अन्य वित्तीय संस्थान के बैड ऋणों और अन्य अनकदी (illiquid) होल्डिंग्स को खरीदने के लिये स्थापित किया जाता है।
    • बैंकिंग क्षेत्र के बाह्य क्षेत्रों से धन का सृजन: बदलते समय के साथ अब उद्योगों के पास बैंकिंग क्षेत्र के बाह्य क्षेत्रों से भी धन के सृजन का विकल्प है। 
      • बैंक स्वयं विभिन्न माध्यमों से धन जुटा रहे हैं।
      • जहाँ ज़रूरत हो वहाँ क्रेडिट को लक्षित करने के लिये इन नए पहलुओं का अध्ययन करने की आवश्यकता है।
    • फिनटेक क्षेत्र का लाभ उठाना : फिनटेक (वित्तीय प्रौद्योगिकी), एक ऐसा क्षेत्र जो बैंकों को तकनीकी सहायता प्रदान कर सकता है और साथ ही बैंकिंग क्षेत्र की सहायता से लाभ उठा सकता है।
    • निर्यात प्रोत्साहन : 'एक जिला, एक निर्यात' एजेंडा को आगे बढ़ाने के लिये बैंकों से राज्य सरकारों के साथ मिलकर काम करने का आग्रह किया जाएगा।

Ease-4.0

EASE एजेंडा के संदर्भ में:

  • इसे सरकार और PSB द्वारा संयुक्त रूप से जनवरी 2018 में लॉन्च किया गया था।
  • इसे इंडियन बैंक्स एसोसिएशन के माध्यम से कमीशन किया गया था और बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप द्वारा निर्मित किया गया था।
  • EASE सुधार एजेंडा के तहत विभिन्न चरण:
    • EASE 1.0: EASE 1.0 रिपोर्ट ने पारदर्शी रूप से गैर-निष्पादित आस्तियों (NPA) के समाधान में PSB के प्रदर्शन में महत्त्वपूर्ण सुधार दिखाया।
    • EASE 2.0: EASE 2.0 को EASE 1.0 की नींव पर बनाया गया था और सुधार यात्रा को अपरिवर्तनीय बनाने, प्रक्रियाओं और प्रणालियों को मज़बूत करने तथा परिणामों को लागू करने के लिये छह विषयों में नए सुधार कार्य बिंदु प्रस्तुत किये गए। EASE 2.0 के छह विषय हैं:
      • ज़िम्मेदार बैंकिंग;
      • ग्राहक प्रतिक्रिया;
      • क्रेडिट ऑफ-टेक,
      • उद्यमी मित्र के रूप में पीएसबी (MSMEs के क्रेडिट प्रबंधन के लिये सिडबी पोर्टल);
      • वित्तीय समावेशन और डिजिटलीकरण;
      • शासन और मानव संसाधन (HR)।
    • Ease 3.0: यह तकनीक का उपयोग करते हुए सभी ग्राहक अनुभवों में बैंकिंग को आसान बनाने का प्रयास करता है।
      • Dial-a-Loan और PSBloansin59minutes.com
      • फिनटेक और ई-कॉमर्स कंपनियों के साथ साझेदारी,
      • Credit@Click,
      • टेक-सक्षम कृषि ऋण,
      • EASE बैंकिंग आउटलेट आदि।
  • EASE रिफॉर्म्स एजेंडा के तहत प्रदर्शन:
    • EASE रिफॉर्म्स इंडेक्स: इंडेक्स 120+ ऑब्जेक्टिव मेट्रिक्स पर प्रत्येक PSB के प्रदर्शन को मापता है। इसका लक्ष्य सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के बीच बेहतर प्रतिस्पर्द्धा को प्रोत्साहित करके परिवर्तन को जारी रखना है।
    • PSB ने अच्छा प्रदर्शन किया है और महामारी के दौरान विस्तारित सेवा के बावजूद त्वरित सुधारात्मक कार्रवाई (PCA) से बाहर आ गए हैं।
      • PCA एक ढाँचा है जिसके तहत कमज़ोर वित्तीय मैट्रिक्स वाले बैंकों को आरबीआई द्वारा निगरानी में रखा जाता है।
    • फरवरी 2020 में EASE 3.0 रिफॉर्म्स एजेंडा के लॉन्च होने के बाद से PSB ने चार तिमाहियों में अभूतपूर्व वृद्धि दर्ज की है।

PSBs

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


गन्ने का मूल्य निर्धारण

चर्चा में क्यों?

हाल ही में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने चीनी सीज़न 2021-22 के लिये गन्ने के उचित और लाभकारी मूल्य (FRP) में बढ़ोतरी को मंज़ूरी दी है।

गन्ना (Sugarcane)

  • तापमान : उष्ण और आर्द्र जलवायु के साथ 21-27 डिग्री सेल्सियस के बीच।
  • वर्षा : लगभग 75-100 सेमी.।
  • मिट्टी का प्रकार : गहरी समृद्ध दोमट मिट्टी।
  • शीर्ष गन्ना उत्पादक राज्य : उत्तर प्रदेश> महाराष्ट्र> कर्नाटक> तमिलनाडु> बिहार।
  • ब्राज़ील के बाद भारत गन्ने का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है।
  • इसे बलुई दोमट से लेकर चिकनी दोमट मिट्टी तक सभी प्रकार की मिट्टी में उगाया जा सकता है, क्योंकि इसके लिये अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी की आवश्यकता होती है।
  • इसमें बुवाई से लेकर कटाई तक शारीरिक श्रम की आवश्यकता होती है।
  • यह चीनी, गुड़, खांडसारी और राब का मुख्य स्रोत है।
  • चीनी उद्योग को समर्थन देने हेतु सरकार की दो पहलें हैं- चीनी उपक्रमों को वित्तीय सहायता देने की योजना (SEFASU) और जैव ईंधन पर राष्ट्रीय नीति गन्ना उत्पादन योजना। 

प्रमुख बिंदु 

  • गन्ने का मूल्य निर्धारण : गन्ने की कीमतें निम्न द्वारा निर्धारित की जाती हैं:
    • केंद्र सरकार : उचित और लाभकारी मूल्य (FRP)
      • केंद्र सरकार उचित और लाभकारी मूल्यों की घोषणा करती है जो कृषि लागत और मूल्य आयोग (CACP) की सिफारिश पर निर्धारित होते हैं तथा आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडल समिति (CCEA) द्वारा घोषित किये जाते हैं।
        • CCEA की अध्यक्षता भारत का प्रधानमंत्री करता है।
      •  FRP गन्ना उद्योग के पुनर्गठन पर रंगराजन समिति की रिपोर्ट पर आधारित है।
    • राज्य सरकार : राज्य परामर्श मूल्य (SAP)
      • प्रमुख गन्ना उत्पादक राज्यों की सरकारों द्वारा राज्य परामर्श मूल्य (SAP) की घोषणा की जाती है।
      • SAP आमतौर पर FRP से अधिक होता है।
  • FRP और MSP के बीच तुलना:

उचित और लाभकारी मूल्य (FRP)

न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP)

परिभाषा

FRP वह न्यूनतम मूल्य है जिस पर चीनी मिलों द्वारा किसानों से गन्ना खरीदा जाना है।

MSP किसी भी फसल के लिये "न्यूनतम मूल्य" है जिसे सरकार किसानों हेतु लाभकारी मानती है और इसलिये "समर्थन" के योग्य है।
यह वह कीमत भी है जिस पर सरकारी एजेंसियाँ ​ फसल विशेष की खरीद करती हैं तो भुगतान करती हैं।


अनुशंसा

कृषि लागत और मूल्य आयोग (CACP) द्वारा अनुशंसित

कृषि लागत और मूल्य आयोग (CACP) द्वारा अनुशंसित

अनिवार्य फसलें

अनिवार्य फसल गन्ना है।

अनिवार्य फसलों में खरीफ मौसम की 14 फसलें, 6 रबी फसलें और अन्य वाणिज्यिक फसलें शामिल हैं।

  • अनाज (7): धान, गेहूँ, जौ, ज्वार, बाजरा, मक्का और रागी।
  • दालें (5): चना, अरहर/तूर, मूँग, उड़द और अन्य दालें।
  • तिलहन (8): मूँगफली, रेपसीड/सरसों, तोरिया, सोयाबीन, सूरजमुखी के बीज, तिल, कुसुम बीज और नाइजर बीज।
  • कच्चा कपास, कच्चा जूट, खोपरा, भूसी वाला नारियल

कारक 

  • गन्ने के उत्पादन की लागत;
  • वैकल्पिक फसलों से उत्पादकों की वापसी और कृषि वस्तुओं की कीमतों की सामान्य प्रवृत्ति;
  • उपभोक्ताओं को उचित मूल्य पर चीनी की उपलब्धता;
  • वह मूल्य जिस पर गन्ने से उत्पादित चीनी को चीनी उत्पादकों द्वारा बेचा जाता है;
  • गन्ने से चीनी की प्राप्ति;
  • उप-उत्पादों की बिक्री से होने वाली प्राप्ति अर्थात् गुड़, खोई और  उन पर आरोपित मूल्य;
  • गन्ने के उत्पादकों के लिये जोखिम और मुनाफे के कारण उचित मार्जिन
  • वस्तु की आपूर्ति और मांग की स्थिति।
  • बाज़ार मूल्य रुझान (घरेलू और वैश्विक) तथा अन्य फसलों के साथ समानता।
  • उपभोक्ताओं पर प्रभाव (मुद्रास्फीति)।
  • पर्यावरण (मिट्टी और पानी का उपयोग)।
  • कृषि और गैर-कृषि क्षेत्रों के बीच व्यापार की शर्तें।

कानूनी समर्थन

गन्ने का मूल्य निर्धारण आवश्यक वस्तु अधिनियम (ईसीए), 1955 के तहत जारी गन्ना (नियंत्रण) आदेश, 1966 के वैधानिक प्रावधानों द्वारा नियंत्रित होता है।

MSP अनिवार्य है, सांविधिक नहीं।
वर्तमान में MSP या उनके कार्यान्वयन को अनिवार्य करने वाले किसी कानून के लिये कोई वैधानिक समर्थन नहीं है।

नोट: कृषि लागत और मूल्य आयोग (CACP) कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय का एक संबद्ध कार्यालय है। यह एक सलाहकार निकाय है जिसकी सिफारिशें सरकार के लिये बाध्यकारी नहीं हैं।

स्रोत-पी.आई.बी. 


अफगानिस्तान से सुरक्षा संबंधी खतरा

प्रिलिम्स के लिये:

चाबहार पोर्ट, इंटरनेशनल नॉर्थ साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर (INSTC), TAPI पाइपलाइन, UNSC, SCO, BRICS

मेन्स के लिये:

अफगानिस्तान में तालिबान शासन की बहाली का भारत एवं विश्व पर प्रभाव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत ने अफगानिस्तान में तालिबान शासन की बहाली के बाद रूस और जर्मनी की सरकार के प्रमुखों के साथ संपर्क स्थापित किया। अफगानिस्तान में स्थिरता इस क्षेत्र की शांति और सुरक्षा से जुड़ी है और भारत इसका कोई अपवाद नहीं है।

  • अफगानिस्तान के मुद्दे पर भारत और चीन के बीच मतभेदों तथा तालिबान को सुविधा प्रदान करने में पाकिस्तान की भूमिका के बावजूद रूस ने UNSC, SCO एवं BRICS जैसे अन्य मंचों पर द्विपक्षीय तथा बहुपक्षीय रूप से भारत के साथ काम करने में रुचि दिखाई है।

Afghanistan

प्रमुख बिंदु

अफगानिस्तान में तालिबान शासन की वापसी:

  • वर्ष 2020 में अमेरिका ने तालिबान के साथ (कतर की राजधानी दोहा में) एक समझौते पर हस्ताक्षर किये, जिसमें अफगानिस्तान से विदेशी सैनिकों की पूर्ण वापसी की परिकल्पना की गई थी।
  • हालाँकि उस समझौते में प्रमुख दोष यह था कि इसमें अफगान सरकार को बाहर कर दिया गया था।
    • इसके अलावा वे तालिबान लोकतांत्रिक सरकार को वैध शासक के रूप में नहीं देखते हैं और वे संविधान के शासन या लोकतंत्र में विश्वास नहीं करते हैं।
  • इसलिये अमेरिकी सैनिकों की वापसी के तुरंत बाद तालिबान ने अफगानिस्तान में राजधानी काबुल सहित प्रमुख शहरों पर कब्ज़ा कर लिया।
  • इसने सीमा पार आतंकवाद, मानवीय संकट और नई भू-राजनीतिक व्यवस्था के संबंध में विभिन्न चिंताओं को उठाया है।

अफगानिस्तान से निष्कासित आतंकवादी भारत के लिये खतरा:

  • सीमा पार आतंकवाद: भारत सीमा पार आतंकवाद के मुद्दे से चिंतित है, जो अब तालिबान शासन के वापस आने के बाद बढ़ सकता है।
    • लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे समूह, जो तालिबान के साथ घनिष्ठ संबंध रखते हैं और जिन्हें पाकिस्तान का समर्थन प्राप्त है, क्षेत्रीय शांति एवं सुरक्षा के लिये खतरा हैं।
  • धार्मिक कट्टरवाद: सभी कट्टरपंथी समूहों की तरह तालिबान को अपनी धार्मिक विचारधारा को राज्य के हितों की अनिवार्यता के साथ संतुलित करने में परेशानी होगी।
  • नए क्षेत्रीय भू-राजनीतिक विकास: चीन-पाकिस्तान-तालिबान के बीच नई क्षेत्रीय भू-राजनीतिक धुरी का निर्माण हो सकता है, जो भारत के हितों के खिलाफ हो सकता है।
  • आर्थिक नुकसान: तालिबान के वापस आने से अफगानिस्तान में भारत का निवेश खतरे में पड़ जाएगा। यह अफगानिस्तान के माध्यम से मध्य एशिया के लिये कनेक्टिविटी परियोजनाओं को भी बाधित करेगा।

अफगानिस्तान के साथ संबंधों में भारत की राजनयिक भागीदारी:

  • हाल ही में भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ने ब्रिक्स देशों (ब्राज़ील-रूस-भारत-चीन-दक्षिण अफ्रीका) के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों (NSAs) की बैठक की अध्यक्षता की।
    • इस बैठक में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन द्वारा विचार हेतु ब्रिक्स काउंटर टेररिज़्म एक्शन प्लान को अपनाने हेतु सिफारिश की गई।
    • कार्ययोजना का उद्देश्य निम्नलिखित क्षेत्रों में सहयोग के मौजूदा तंत्र को और अधिक मज़बूती प्रदान करना है:
      • आतंकवाद के वित्तपोषण से निपटना।
      • आतंकवादियों द्वारा इंटरनेट के दुरुपयोग पर अंकुश। 
      • आतंकवादियों की यात्रा पर अंकुश।
      • सीमा नियंत्रण।
      • क्षमता निर्माण।
      • क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग।
  • संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के 31वें विशेष सत्र में भारत द्वारा अफगानिस्तान में गंभीर मानवाधिकार चिंताओं और स्थिति पर विभिन्न चिंताओं को उठाया गया।

आगे की राह: 

  • तालिबान के साथ बातचीत: तालिबान से बात करके भारत निरंतर विकास सहायता के बदले विद्रोहियों से अपनी सुरक्षा गारंटी की मांँग कर सकता है।
    • भारत, तालिबान को पाकिस्तान से अपनी स्वायत्तता की संभावना तलाशने हेतु भी राजी कर सकता है।
  • वैश्विक आतंकवाद से लड़ना: वैश्विक समुदाय को आतंकवाद की वैश्विक चिंता के खिलाफ लड़ने की ज़रूरत है।
  • क्षेत्रीय सहयोग: तालिबान के पुनरुत्थान के साथ अफगानिस्तान से एक राजनीतिक समझौते में भारत और तीन प्रमुख क्षेत्रीय देशों जिनमें चीन, रूस और ईरान शामिल हैं, के हित आपस में जुड़े हुए हैं।
    • इसलिये  इस मोर्चे पर समान विचारधारा वाले देशों से सहयोग की ज़रूरत है।

स्रोत:  इंडियन एक्सप्रेस 


नैनो रोबोट

प्रिलिम्स के लिये:

रूट कैनाल उपचार, नैनो विज्ञान और प्रौद्योगिकी मिशन, नैनो विज्ञान और प्रौद्योगिकी पहल

मेन्स के लिये:

नैनो आकार के रोबोट का उपयोग करके रूट कैनाल उपचार में आने वाली समस्याओं का निवारण एवं इसके लाभ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में वैज्ञानिकों के एक समूह ने नैनो आकार के रोबोट का उपयोग करके रूट कैनाल उपचार (दंत प्रक्रियाओं) से संबंधित मुद्दों से निपटने का एक तरीका खोजा है।

  • रूट कैनाल उपचार को संक्रमित रूट कैनाल से बैक्टीरिया को खत्म करने, दाँतों में पुन: संक्रमण को रोकने और प्राकृतिक दाँत को बचाने के लिये डिज़ाइन किया गया है।

प्रमुख बिंदु

शोध के संबंध में:

  • रूट कैनाल उपचार में दाँत का कुछ भाग छूट जाता है, इससे कुछ बैक्टीरिया रह जाते हैं जो दंत नलिकाओं के भीतर गहरे में स्थित होते हैं।
  • शोध में वैज्ञानिक ने नैनो आकार के रोबोट का उपयोग करके इससे निपटने का एक तरीका खोजा है जो नलिकाओं के माध्यम से उपचार करेगा और बैक्टीरिया को लक्षित करेगा।
  • इस पद्धति के तहत सर्पिल आकार के सिलिका नैनो बॉट्स, जिसमें थोड़ा सा लोहा लगा होता है, को दाँत की केंद्रीय कैनाल में अंतःक्षिप्त किया जाता है और फिर एक घूर्णन चुंबकीय क्षेत्र स्थापित किया जाता है। यह नैनो रोबोट को स्थानांतरित करने का एक साधन है।
  • एक बार बैक्टीरियल कॉलोनी में पहुँच जाने के बाद नैनो रोबोट विभिन्न जीवाणुरोधी रणनीतियों को तैनात कर सकता है, जिनमें से एक स्थानीयकृत हीटिंग है।

नैनो रोबोट:

  • नैनो रोबोटिक्स नैनो स्केल पर मशीन या रोबोट बनाने की तकनीक का वर्णन करती है।
    • 'नैनोबॉट' इंजीनियर नैनो मशीनों को संदर्भित करने के लिये एक अनौपचारिक शब्द है।
  • नैनोबॉट्स ऐसे रोबोट हैं जो बहुत ही विशिष्ट कार्य करते हैं और ~50–100 NM तक चौड़े होते हैं।
  • दवा वितरण के लिये उनका बहुत प्रभावी ढंग से उपयोग किया जा सकता है।
    • आमतौर पर रोग प्रभावित क्षेत्र में पहुँचने से पहले दवाएँ पूरे शरीर में काम करती हैं।
    • नैनोटेक्नोलॉजी का उपयोग करके दवा को एक सटीक स्थान पर लक्षित किया जा सकता है जो दवा को अधिक प्रभावी बना देगा और संभावित दुष्प्रभावों की संभावना को कम करेगा।

स्वास्थ्य देखभाल में नैनो तकनीक का उपयोग:

  • दिल के दौरे के लिये नैनोटेक डिटेक्टर।
  • नेत्र शल्य चिकित्सा, कीमोथेरेपी आदि के लिये नैनोकैरियर्स।
  • रक्त शर्करा के स्तर को नियंत्रित करने के लिये मधुमेह पैड।
  • नैनोस्पंज एक लाल रक्त कोशिका झिल्ली के साथ लेपित बहुलक नैनोकण हैं और इसे विषाक्त पदार्थों को अवशोषित करने तथा उन्हें रक्त प्रवाह से निकालने के लिये उपयोग किया जा सकता है।
  • नैनोफ्लेयर्स का उपयोग रक्तप्रवाह में कैंसर कोशिकाओं का पता लगाने के लिये किया जाता है।
  • डीएनए अनुक्रमण को अधिक कुशल बनाने के लिये नैनोपोर्स का उपयोग किया जाता है।

नैनो प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देने के लिये सरकारी पहलें:

  • नैनो विज्ञान और प्रौद्योगिकी मिशन (NSTM):
    • NSTM वर्ष 2007 में शुरू किया गया एक अम्ब्रेला कार्यक्रम है जिसका उद्देश्य नैनो प्रौद्योगिकी में अनुसंधान और विकास को बढ़ावा देना है। 
    • इसके उद्देश्यों में अनुसंधान को बढ़ावा देना, अनुसंधान का समर्थन करने के लिये बुनियादी ढाँचे का विकास, नैनो प्रौद्योगिकी का विकास, मानव संसाधन और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग शामिल हैं।
  • नैनो विज्ञान और प्रौद्योगिकी पहल (NSTI):
    • यह वर्ष 2001 में विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा स्थापित किया गया था।
    • इसका उद्देश्य दवाओं, दवा वितरण, जीन लक्ष्यीकरण और डीएनए चिप्स सहित नैनो सामग्री संबंधी बुनियादी ढाँचे के विकास, अनुसंधान एवं  अनुप्रयोग कार्यक्रमों से संबंधित मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करना है।

स्रोत-द हिंदू


भारत-नीदरलैंड संबंध

प्रिलिम्स के लिये:

ग्रीन हाइड्रोजन, बिग डेटा, इंटरनेट ऑफ थिंग्स, राष्ट्रीय हाइड्रोजन मिशन, डीप ओशन मिशन 

मेन्स के लिये:

आर्थिक एवं व्यापार तथा विज्ञान और प्रौद्योगिकी के संदर्भ में भारत-नीदरलैंड संबंध

चर्चा में क्यों?  

हाल ही में भारत और नीदरलैंड द्वारा विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी तथा नवाचार में द्विपक्षीय सहयोग की समीक्षा की गई है।

Netherlands

प्रमुख बिंदु 

बैठक के मुख्य बिंदु:

  • संपन्न बैठक में भारत का ज़ोर इस बात पर रहा कि स्वास्थ्य, कृषि और जल ये तीनों क्षेत्र, दोनों देशों के मध्य घनिष्ठ पारस्परिक सहयोग के आधार हैं।
  • नीदरलैंड की तरफ से ग्रीन हाइड्रोजन और महासागर विज्ञान के क्षेत्र में मिलकर कार्य करने का प्रस्ताव रखा गया।
  • दोनों देशों द्वारा स्मार्ट एनर्जी ग्रिड, बिग डेटा और इंटरनेट ऑफ थिंग्स के संबंध में संयुक्त अनुसंधान एवं विकास का समर्थन करने पर सहमति व्यक्त की गई।
  • भारत ने नीदरलैंड को अंतरिक्ष क्षेत्र में जानकारी साझा करने हेतु आमंत्रित किया, विशेष रूप से हाल के दिनों में भारत द्वारा शुरू किये गए पथ-प्रदर्शक सुधारों के मद्देनज़र, निजी क्षेत्र को उपग्रह प्रक्षेपण और अंतरिक्ष आधारित गतिविधियों में एक समान अवसर प्रदान करने की अनुमति दी गई है।
  • दोनों देशों द्वारा भविष्य में सौर ऊर्जा, गैस आधारित प्रतिष्ठानों, साइबर सुरक्षा, डेटा विज्ञान, शहरी जल प्रणाली और उभरते अन्य क्षेत्रों में सहयोग करने पर सहमति व्यक्त की गई जिससे भारत में लोगों के लिये रोज़गार के नए अवसर उत्पन्न होंगे।
  • जलवायु परिवर्तन संपूर्ण विश्व के लिये चिंता का प्रमुख कारण है, इस पर भी प्रकाश डाला गया।

नोट 

  • भारत सरकार ने स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर भारत को हरित हाइड्रोजन उत्पादन और निर्यात हेतु एक वैश्विक हब बनाने के लिये राष्ट्रीय हाइड्रोजन मिशन की घोषणा की।
  • इसके अलावा पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने हाल ही में गहरे समुद्र में संसाधनों का पता लगाने और समुद्री संसाधनों के सतत् उपयोग हेतु गहरे समुद्र की प्रौद्योगिकियों को विकसित करने के उद्देश्य से डीप ओशन मिशन शुरू किया है।

भारत-नीदरलैंड संबंध:

  • आर्थिक और व्यापारिक: वित्त वर्ष 2021 में नीदरलैंड भारत में विदेशी निवेश का छठा सबसे बड़ा निवेशक देश है।
    • नीदरलैंड यूरोपीय संघ का भारत का 5वांँ सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदारी वाला देश है। यह भारत के अग्रणी निवेशक देशों में से एक है।
  • ऐतिहासिक संबंध: भारत-डच संबंध 400 वर्षों से भी अधिक पुराने हैं, भारत में पहली डच ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना लगभग 17वीं शताब्दी ईस्वी में हुई थी।
    • वर्ष 1947 में दोनों देशों के मध्य आधिकारिक संबंध स्थापित हुए और तभी से दोनों के संबंध सौहार्दपूर्ण और मैत्रीपूर्ण हैं।
    • दोनों देश लोकतंत्र, बहुलवाद और कानून के शासन के समान आदर्शों को भी साझा करते हैं।
  • सांस्कृतिक संबंध: वर्तमान में नीदरलैंड यूरोपीय मुख्य भूमि में भारतीय समुदाय का निवास स्थल है।
    • अक्तूबर 2011 में भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (ICCR) सांस्कृतिक केंद्र "गांधी केंद्र" हेग में स्थापित किया गया था।
  • विज्ञान और प्रौद्योगिकी में सहयोग: नीदरलैंड्स ऑर्गनाइज़ेशन फॉर साइंटिफिक रिसर्च (Netherlands Organization for Scientific Research- NWO) भारत सरकार के विभिन्न विभागों के साथ सहयोग करता है।
    • उदाहरणतः "स्वस्थ पुन: उपयोग के लिये शहरी सीवेज धाराओं का स्थानीय उपचार (LOTUS-HR)" शीर्षक से एक परियोजना चल रही है।
    • LOTUS-HR परियोजना भारत के जैव प्रौद्योगिकी विभाग और डच (Dutch) NWO-TTW द्वारा वित्तपोषित विश्वविद्यालयों और कंपनियों का एक भारत-नीदरलैंड संयुक्त सहयोग है।
  • जल प्रबंधन में सहयोग:
    • डच इंडो वाटर एलायंस लीडरशिप इनिशिएटिव (Dutch Indo Water Alliance Leadership Initiative- DIWALI) नामक एक मंच विकसित किया गया है जिसमें शामिल होकर भारत और नीदरलैंड पानी की समस्या संबंधी चुनौतियों का समाधान कर  सकते हैं।
  • कृषि में सहयोग: कृषि भारत के साथ द्विपक्षीय सहयोग बढ़ाने के लिये नीदरलैंड द्वारा पहचाने गए प्रमुख क्षेत्रों में से एक है।
    • कृषि पर 5वीं संयुक्त कृषि कार्य समूह (Joint Agriculture Working Group- JAWG) की बैठक वर्ष 2018 में नई दिल्ली में हुई थी।
    • JAWG के तहत एक कार्ययोजना पर हस्ताक्षर किये गए, जिसमें बागवानी, पशुपालन और डेयरी, मत्स्य पालन तथा खाद्य प्रसंस्करण में उत्कृष्टता केंद्र (Centres of Excellence- CoE) स्थापित करने में सहयोग की परिकल्पना की गई है।
    • इसके साथ ही कोल्ड चेन, आपूर्ति शृंखला प्रबंधन आदि के क्षेत्र में कौशल विकास और क्षमता निर्माण भी शामिल है।
  • स्वास्थ्य सहयोग:
    • संचारी रोगों और रोगाणुरोधी प्रतिरोध से जुड़ी उभरती स्वास्थ्य चुनौतियों में अधिक अनुसंधान सहयोग को बढ़ावा देने के लिये जनवरी 2014 में स्वास्थ्य देखभाल एवं सार्वजनिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में सहयोग हेतु एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये गए थे।

स्रोत: पीआईबी


न्यूमोकोकल कॉन्जुगेट वैक्सीन

प्रिलिम्स के लिये:

विश्व स्वास्थ्य संगठन, कॉन्जुगेट वैक्सीन,  निमोनिया, सतत् विकास लक्ष्य 

मेन्स के लिये:

न्यूमोकोकल कॉन्जुगेट वैक्सीन की आवश्यकता, सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम

चर्चा में क्यों?   

हाल ही में आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री द्वारा राज्य में शिशुओं के लिये न्यूमोकोकल कॉन्जुगेट वैक्सीन (Pneumococcal Conjugate Vaccine- PCV) टीकाकरण अभियान शुरू किया गया है।

  • इससे पहले दिसंबर 2020 में भारत की पहली विकसित स्वदेशी न्यूमोकोकल कॉन्जुगेट वैक्सीन ‘न्यूमोसिल’ को लॉन्च किया गया था।

प्रमुख बिंदु 

न्यूमोकोकल कॉन्जुगेट वैक्सीन के बारे में:

  • यह न्यूमोकोकल रोग से सुरक्षा प्रदान करती है जो बच्चों और वयस्कों दोनों को न्यूमोकोकल रोग से बचा सकती है।
  • यह वैक्सीन न्यूमोकोकी कुल (Pneumococci Family) के कई जीवाणुओं के मिश्रण से तैयार की गई है, जिन्हें निमोनिया का कारण माना जाता है, इसलिये वैक्सीन के नाम में 'कॉन्जुगेट' शामिल है।

न्यूमोकोकल रोग: 

  • न्यूमोकोकल रोग के बारे में:
    • स्ट्रेप्टोकोकस न्यूमोनिया या न्यूमोकोकस नामक बैक्टीरिया के कारण होने वाले संक्रमण को न्यूमोकोकल रोग के नाम से जाना जाता है। ज़्यादातर लोगों के नाक और गले में न्यूमोकोकस जीवाणु पाए जाते हैं, जबकि जीवाणु के कोई लक्षण नहीं दिखाई देते हैं।
    • हालाँकि कभी-कभी बैक्टीरिया/जीवाणु बढ़कर शरीर के अन्य हिस्सों में फैल जाते हैं और तब लोग बीमार हो जाते हैं।
  • प्रभाव: 
    • ये बैक्टीरिया कई तरह की बीमारियों का कारण बन सकते हैं, जिनमें निमोनिया भी शामिल है, जो फेफड़ों का संक्रमण है। न्यूमोकोकल बैक्टीरिया निमोनिया के सबसे सामान्य कारणों में से एक है।
    • निमोनिया के अलावा न्यूमोकोकल बैक्टीरिया निम्नलिखित संक्रमण का कारण होता है जिनमें शामिल हैं:
      • कान के संक्रमण।
      • साइनस संक्रमण।
      • मेनिनजाइटिस (मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी को ढंकने वाले ऊतक का संक्रमण)।
      • बैक्टेरिमिया (रक्त का संक्रमण)।
    • डॉक्टर इन संक्रमणों में से कुछ को "आक्रामक" या इनवेसिव (Invasive)  मानते हैं। इनवेसिव रोग (Invasive Disease) का अर्थ है कि रोगाणु शरीर के उन हिस्सों पर आक्रमण करते हैं जो सामान्य रूप से कीटाणुओं से मुक्त होते हैं।
  • सुभेद्य जनसंख्या: 
    • न्यूमोकोकल रोग किसी को भी हो सकता है लेकिन 2 वर्ष से कम उम्र के बच्चे, कुछ चिकित्सीय स्थितियों वाले लोग, 65 वर्ष या उससे अधिक उम्र के वयस्क और सिगरेट पीने वाले लोगों में इसका सबसे अधिक खतरा होता है।

आवश्यकता:

  • निमोनिया शिशु और बाल मृत्यु दर का एक प्रमुख कारण रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों की कुल मौतों में से 15% मौतें निमोनिया के कारण होती हैं।
  • यह अनुमान लगाया गया था कि इस बीमारी ने लगभग 16 लाख बच्चों को प्रभावित किया और वर्ष 2015 में देश भर में लगभग 68,700 बच्चों की मौत हुई।
  • सतत् विकास लक्ष्य 3 में नवजात शिशुओं और 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों की रोकी जा सकने वाली मौतों को समाप्त करने का आह्वान किया गया है। यह निर्दिष्ट करता है कि सभी देशों को वर्ष  2030 तक नवजात मृत्यु दर को कम-से-कम 12 मृत्यु प्रति 1,000 जीवित जन्म और पाँच वर्ष से कम आयु के कम-से-कम 25 मृत्यु प्रति 1,000 जीवित जन्मों तक कम करने का लक्ष्य रखना चाहिये।
    • नवजात मृत्यु दर को जीवन के पहले 28 दिनों के भीतर मृत्यु के रूप में परिभाषित किया गया है।

सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम

  • इसे वर्ष 1985 में बच्चों और गर्भवती महिलाओं में बारह वैक्सीन-रोकथाम योग्य बीमारियों के खिलाफ मृत्यु दर और रुग्णता को रोकने के लिये शुरू किया गया था।
  • UIP के तहत हेमोफिलस इन्फ्लुएंज़ा टाइप बी संक्रमण (Haemophilus Influenzae Type B Infections), खसरा, रूबेला, जापानी एनसेफेलाइटिस (Japanese Encephalitis- JE) और रोटावायरस दस्त (Rotavirus Diarrhoea) के कारण होने वाली बारह वैक्सीन-रोकथाम योग्य बीमारियों जैसे- तपेदिक, डिप्थीरिया, पर्टुसिस, टेटनस, पोलियो, हेपेटाइटिस बी, निमोनिया और मेनिनजाइटिस के खिलाफ नि: शुल्क टीकाकरण प्रदान किया जाता है।
  • यह विश्व के सबसे बड़े स्वास्थ्य कार्यक्रमों में से एक है। कई वर्षों से चालू होने के बावजूद UIP 1 वर्ष से कम आयु के केवल 65% बच्चों का पूर्ण टीकाकरण करने में सक्षम है।

स्रोत: द हिंदू


‘की इंडिकेटर फॉर एशिया एंड द पैसिफिक 2021’ रिपोर्ट: ADB

प्रिलिम्स के लिये

एशियाई विकास बैंक, सकल घरेलू उत्पाद

मेन्स के लिये

एशिया-प्रशांत क्षेत्र की मौजूदा स्थिति और कोविड-19 महामारी का प्रभाव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में एशियाई विकास बैंक (ADB) ने ‘की इंडिकेटर फॉर एशिया एंड द पैसिफिक 2021’ शीर्षक से एक रिपोर्ट जारी की है।

  • यह रिपोर्ट दर्शाती है कि इस क्षेत्र ने पिछले दो दशकों में कई विकास लक्ष्यों के संबंध में पर्याप्त प्रगति हासिल की है।
  • यह ADB के 49 क्षेत्रीय सदस्यों के लिये व्यापक आर्थिक, वित्तीय, सामाजिक और पर्यावरणीय आँकड़े  प्रस्तुत करती है।

एशियाई विकास बैंक

परिचय

  • यह वर्ष 1966 में स्थापित एक क्षेत्रीय विकास बैंक है। इसमें 68 सदस्य हैं। भारत इसका एक संस्थापक सदस्य है।
    • कुल सदस्यों में से 49 सदस्‍य देश एशिया-प्रशांत क्षेत्र से हैं, जबकि 19 सदस्य अन्य क्षेत्रों से हैं।
  • 31 दिसंबर, 2019 तक ADB के पाँच सबसे बड़े शेयरधारकों में जापान और संयुक्त राज्य अमेरिका (प्रत्येक कुल शेयरों के 15.6% के साथ), पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (6.4%), भारत (6.3%) और ऑस्ट्रेलिया (5.8%) शामिल हैं।

उद्देश्य 

  • एशिया में सामाजिक और आर्थिक विकास को बढ़ावा देना।

मुख्यालय

  • मनीला, फिलीपींस

प्रमुख बिंदु

  • गरीबी
    • महामारी ने वर्ष 2020 में विकासशील एशिया-प्रशांत क्षेत्र में 75-80 मिलियन लोगों को अत्यधिक गरीबी में धकेल दिया है।
    • लगभग 203 मिलियन लोग- विकासशील एशिया की जनसंख्या का 5.2%, वर्ष 2017 तक अत्यधिक गरीबी में रह रहे थे।
      • यदि कोविड-19 महामारी नहीं होती तो यह संख्या वर्ष 2020 में घटकर 2.6% रह जाती।
  • वैश्विक जीडीपी में योगदान:
    • एशिया-प्रशांत क्षेत्र की अर्थव्यवस्था हाल के वर्षों में मज़बूत गति से आगे बढ़ी है और इसने वर्ष 2019 में वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 35% तक का योगदान दिया है।
    • किंतु कोविड-19 महामारी से प्रेरित निम्न घरेलू निवेश और धीमी वैश्विक व्यापार एवं आर्थिक गतिविधियों ने इस गति को चुनौती देना शुरू कर दिया।
  • घरेलू आय
    • व्यापार में संलग्न परिवारों की एक बड़ी संख्या महामारी से बुरी तरह प्रभावित हुई थी।
      • कृषि में संलग्न या मज़दूरी और वेतन पर निर्भर परिवारों में केवल आधे से अधिक ने आय में वृद्धि, कोई परिवर्तन नहीं या 26% तक की कमी की सूचना दी हे।
  • बेरोज़गारी
    • दुनिया भर में महामारी के कारण वर्ष 2020 में बेरोज़गारी दर में कम-से-कम 20% की वृद्धि हुई है, साथ ही एशिया-प्रशांत क्षेत्र में काम के घंटे में अनुमानित 8% का नुकसान हुआ है।
    • जैसे-जैसे व्यवसाय बाधित हुए कई श्रमिकों ने अपनी नौकरी खो दी, जिससे उच्च बेरोज़गारी दर में और अधिक बढ़ोतरी हुई है।
  • श्रम बल भागीदारी:
    • वर्ष 2019 से 2020 तक महिलाओं के बीच श्रम बल भागीदारी दर में औसतन 1.4% की गिरावट आई, जबकि पुरुषों के बीच श्रम बल भागीदारी दर में 0.8% की गिरावट आई।
  • एशिया-प्रशांत का 71 प्रतिशत कार्यबल अब गैर-कृषि रोज़गार में है। वर्ष 2000-2019 के बीच इस क्षेत्र की गैर-कृषि रोज़गार दर 52% से बढ़कर 71% हो गई जो विश्व भर में सबसे तेज़ विकास दर में से एक है।
  • सतत् विकास:
  • बच्चों से संबंधित डेटा:
    • अल्पपोषण की व्यापकता वर्ष 2001 के 521 मिलियन से घटकर वर्ष 2019 में 316 मिलियन हो गई।
    • कोविड-19 महामारी के दौरान स्कूलों के बंद होने से क्षेत्र के लगभग सभी शिक्षार्थी प्रभावित हुए।
    • दूरस्थ शिक्षा के माध्यम से स्कूल की गतिविधियों को जारी रखने के प्रयासों के बावजूद गरीब छात्रों को महामारी के दौरान शिक्षा में अधिक व्यवधान का सामना करना पड़ा।

आगे की राह

  • एशिया और प्रशांत ने प्रभावशाली प्रगति की है लेकिन कोविड-19 ने सामाजिक और आर्थिक दोषों  को प्रकट किया है जो इस क्षेत्र के सतत् और समावेशी विकास को कमज़ोर कर सकते हैं।
  • सतत् विकास के लिये संयुक्त राष्ट्र के 2030 एजेंडा के SDG को प्राप्त करने हेतु निर्णय निर्माताओं को कार्रवाई के लिये एक गाइड के रूप में उच्च गुणवत्ता और समय पर डेटा का उपयोग करने की आवश्यकता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि स्वास्थ्य लाभों से विशेष रूप से गरीब और कमजोंर पीछे न रहें।

स्रोत: डाउन टू अर्थ