डेली न्यूज़ (26 Jun, 2021)



एम्बरग्रीस

प्रिलिम्स के लिये:

एम्बरग्रीस, स्पर्म व्हेल और इसकी संरक्षण स्थिति

मेन्स के लिये:

महत्त्वपूर्ण नहीं

चर्चा में क्यों?

हाल ही में मुंबई पुलिस ने पाँच लोगों को गिरफ्तार कर उनके पास से लगभग 9 किलो एम्बरग्रीस (Ambergris) जब्त किया है।

Ambergris

प्रमुख बिंदु:

परिचय:

  • फ्रांसीसी शब्द ग्रे एम्बर या एम्बरग्रीस को प्रायः व्हेल की उल्टी (Vomit) के रूप में जाना जाता है।
  • यह एक ठोस और मोम जैसा पदार्थ है जो स्पर्म व्हेल की आँतों में उत्पन्न होता है।
    • स्पर्म व्हेल में से केवल 1% ही एम्बरग्रीस का उत्पादन करती हैं।
  • रासायनिक रूप से एम्बरग्रीस में एल्कलॉइड, एसिड और एंब्रेन नामक एक विशिष्ट यौगिक होता है, जो कोलेस्ट्रॉल के समान होता है।
  • यह जल निकाय की सतह के चारों ओर तैरता है और कभी-कभी तट के समीप आकर इकठ्ठा हो जाता है।
  • इसके उच्च मूल्य के कारण इसे तैरता हुआ सोना कहा जाता है। अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में 1 किलो एम्बरग्रीस की कीमत 1 करोड़ रुपए है।

प्रयोग:

  • इसका इस्तेमाल इत्र बाज़ार में खासतौर पर कस्तूरी जैसी सुगंध विकसित करने के लिये किया जाता है।
    • ऐसा माना जाता है कि दुबई जैसे देशों में जहाँ इत्र का एक बड़ा बाज़ार है, इसकी अधिक मांग है।
  • प्राचीन मिस्रवासी इसका प्रयोग धूप (Incense) के रूप में करते थे। ऐसा माना जाता है कि इसका उपयोग कुछ पारंपरिक औषधियों और मसालों के रूप में भी किया जाता है।

तस्करी:

  • अपने उच्च मूल्य के कारण विशेष रूप से तटीय क्षेत्रों में यह तस्करों के निशाने पर रहा है।
    • ऐसे कई मामले सामने आए हैं जहाँ इस तरह की तस्करी के लिये गुजरात के तट का इस्तेमाल किया गया है।
  • चूँकि स्पर्म व्हेल एक संरक्षित प्रजाति है, इसलिये व्हेल के शिकार की अनुमति नहीं है। हालाँकि तस्कर, व्हेल के पेट से एम्बरग्रीस प्राप्त करने के लिये इसका अवैध रूप से शिकार करते हैं।

स्पर्म व्हेल (Sperm Whale):

Sperm-Whale

परिचय:

  • स्पर्म व्हेल, (फिसेटर कैटोडोन), जिसे काचलोट भी कहा जाता है, दाँत वाली व्हेल में सबसे बड़ी, अपने विशाल चौकोर सिर और संकीर्ण निचले जबड़े के कारण आसानी से पहचानी जाती है।
  • स्पर्म व्हेल गहरे नीले-भूरे या भूरे रंग की होती है, जिसके पेट पर सफेद धब्बे होते हैं। यह थिकसेट है और इसमें छोटे पैडल जैसे फ्लिपर्स (Flippers) होते हैं और इसकी पीठ पर गोल कूबड़ की शृंखला होती है।

आवास:

  • ये विश्व के समशीतोष्ण और उष्णकटिबंधीय जल क्षेत्र में पाए जाते हैं।

खतरे:

  • स्पर्म व्हेल के लिये सबसे बड़ा खतरा ध्वनि प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन सहित निवास स्थान की क्षति है।
  • अन्य खतरों में फिशिंग गियर में उलझाव, जहाज़ों के साथ टकराव और एक बार फिर व्हेल के व्यावसायिक शिकार की अनुमति देने का प्रस्ताव शामिल हैं।

संरक्षण स्थिति:

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


द वर्ल्ड ड्रग रिपोर्ट-2021

प्रिलिम्स के लिये

द वर्ल्ड ड्रग रिपोर्ट-2021, ड्रग्स और अपराध पर संयुक्त राष्ट्र कार्यालय

मेन्स के लिये

नशीली दवाओं के उपयोग पर कोविड-19 का प्रभाव और इससे संबंधित सरकार के प्रयास

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ‘ड्रग्स और अपराध पर संयुक्त राष्ट्र कार्यालय’ (UNODC) ने अपनी ‘द वर्ल्ड ड्रग रिपोर्ट-2021’ में इस बात पर प्रकाश डाला है कि कोविड-19 के दौरान लॉकडाउन प्रतिबंधों ने इंटरनेट के माध्यम से मादक पदार्थों की तस्करी को तेज़ कर दिया है।

  • इस रिपोर्ट में दवाओं से आशय दवा नियंत्रण कन्वेंशन के तहत नियंत्रित पदार्थों और उनके गैर-चिकित्सीय उपयोग से है।

प्रमुख बिंदु

आँकड़ों का विश्लेषण

  • वर्ष 2010-2019 के बीच वैश्विक जनसंख्या में वृद्धि के कारण नशीली दवाओं का उपयोग करने वाले लोगों की संख्या में 22 प्रतिशत की वृद्धि हुई।
  • पिछले वर्ष दुनिया भर में लगभग 275 मिलियन लोगों ने नशीली दवाओं का इस्तेमाल किया, जबकि 36 मिलियन से अधिक लोग नशीली दवाओं के उपयोग संबंधी विकारों से पीड़ित थे।
  • नशीली दवाओं के उपयोग के कारण होने वाली बिमारियों के लिये ‘ओपिओइड’ सबसे अधिक उत्तरदायी है।
  • कोरोना वायरस महामारी के दौरान फार्मास्युटिकल दवाओं के गैर-चिकित्सा उपयोग में भी वृद्धि देखी गई।

भांग अधिक शक्तिशाली है, किंतु कम युवा इसे हानिकारक रूप में देखते हैं:

  • पिछले 24 वर्षों में विश्व के कुछ हिस्सों में भांग की क्षमता चार गुना तक बढ़ गई है, यहाँ तक ​​कि भांग को हानिकारक मानने वाले किशोरों की संख्या में भी 40 प्रतिशत की गिरावट आई है।
    • भांग में प्रमुख मनो-सक्रिय घटक Δ9-THC लंबे समय से मानसिक स्वास्थ्य विकारों के विकास के लिये उत्तरदायी है।
  • कारण: भांग उत्पादों का आक्रामक विपणन और सोशल मीडिया चैनलों के माध्यम से प्रचार।

बढ़ती वेब-आधारित बिक्री वैश्विक नशीली दवाओं के उपयोग के पैटर्न को बदल सकती है:

  • ऑनलाइन बिक्री के साथ दवाओं तक पहुँच भी पहले से कहीं ज़्यादा आसान हो गई है और डार्क वेब पर प्रमुख दवा बाज़ारों की कीमत अब लगभग 315 मिलियन डॉलर सालाना हो गई है।
  • एशियाई देश, मुख्य रूप से चीन और भारत वर्ष 2011-2020 के दौरान विश्लेषण किये गए 19 प्रमुख डार्कनेट बाज़ारों में बेची जाने वाली दवाओं के शिपमेंट से जुड़े हुए हैं।
  • डार्क वेब पर नशीली दवाओं के लेन-देन में कैनबिस या भांग सबसे प्रमुख है और सामान्य वेब पर नारकोटिक ड्रग्स और साइकोट्रोपिक पदार्थ (NDPS) तथा सिंथेटिक दवाओं के निर्माण में उपयोग किये जाने वाले पदार्थों की बिक्री शामिल है।

The-Internet

कोविड-19 का प्रभाव

  • सामाजिक आर्थिक प्रभाव
    • कोविड-19 संकट ने 100 मिलियन से अधिक लोगों को अत्यधिक गरीबी में धकेल दिया है और बेरोज़गारी तथा असमानता में भी बढ़ोतरी की है। आँकड़ों की मानें तो वर्ष 2020 में दुनिया भर में 255 मिलियन लोगों ने अपना रोज़गार खो दिया है।
    • दुनिया भर में मानसिक स्वास्थ्य से पीड़ित लोगों की संख्या भी बढ़ रही है। इस तरह के सामाजिक आर्थिक तनावों से दवाओं की मांग में तेज़ी आने की संभावना है।
  • सकारात्मक ट्रेंड 
    • महामारी के दौरान प्रौद्योगिकी के उपयोग में वृद्धि ने टेलीमेडिसिन जैसे सेवा वितरण के अधिक लचीले मॉडल के माध्यम से नवाचार को गति दी है, जिसने स्वास्थ्य पेशेवरों को अधिक रोगियों तक पहुँचने और उनका इलाज करने में सक्षम बनाया है।
    • वैश्विक बाज़ार में उभर रहे नए नारकोटिक ड्रग्स और साइकोट्रोपिक पदार्थों (NDPS) की संख्या वर्ष 2013 में 163 से गिरकर वर्ष 2019 में 71 हो गई।
    • ओपिओइड के उपयोग संबंधी विकारों वाले लोगों के इलाज के लिये उपयोग की जाने वाली ओपिओइड दवा सुलभता से उपलब्ध है, क्योंकि विज्ञान-आधारित उपचार अधिक व्यापक रूप से उपलब्ध हो गए हैं।

नशीली दवाओं के उपयोग में वृद्धि के कारण:

  • ड्रग तस्करों ने लॉकडाउन प्रतिबंधों के कारण शुरुआती झटके से जल्द ही स्वयं की रिकवरी कर ली है और एक बार फिर से तीव्रता से कार्य कर रहे हैं।
    • यह आंशिक रूप से प्रौद्योगिकी और क्रिप्टोकरेंसी भुगतान के उपयोग में वृद्धि से भी प्रेरित है, जो नियमित वित्तीय प्रणाली के भीतर नहीं आती है।
  • नशीली दवाओं के संपर्क रहित लेन-देन, जैसे कि मेल के माध्यम से, में भी बढ़ोतरी हो रही है और यह ट्रेंड संभवतः महामारी के बाद और अधिक तीव्र हो गया है।
  • विक्रेता अपने उत्पादों का विज्ञापन और विपणन ‘अनुसंधान रसायन’ या ‘कस्टम सिंथेसिस’ के रूप में करके कानून प्रवर्तन एजेंसियों से बचने का प्रयास करते हैं।

सुझाव

  • भांग उत्पादों के उपयोग के सकारात्मक प्रभाव संबंधी गलत सूचनाओं का मुकाबला करना काफी महत्त्वपूर्ण है।
  • नशीली दवाओं के नकारात्मक उपयोग संबंधी वैज्ञानिक जानकारी और तथ्यों के प्रसार तथा इससे संबंधित जागरूकता अभियान शुरू किये जाने चाहिये।
  • डार्कनेट पर मादक पदार्थों की तस्करी से निपटने के लिये कानून प्रवर्तन एजेंसियों की क्षमता को बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये।
  • सरकारों और निजी क्षेत्र की संयुक्त प्रतिक्रियाओं के माध्यम से इंटरनेट पर अवैध दवाओं के विज्ञापनों और लिस्टिंग को नियंत्रित करना आसान हो सकता है।
  • इंटरनेट-आधारित सेवाओं में आ रही तेज़ी के साथ वैज्ञानिक मानकों को लगातार अपडेट करना भी आवश्यक है।

ड्रग्स और अपराध पर संयुक्त राष्ट्र कार्यालय (UNODC)

  • इसकी स्थापना वर्ष 1997 में हुई थी और वर्ष 2002 में इसे ड्रग्स और अपराध पर संयुक्त राष्ट्र कार्यालय (UNODC) के रूप में नामित किया गया था।
  • इसकी स्थापना यूनाइटेड नेशंस इंटरनेशनल ड्रग्स कंट्रोल प्रोग्राम (UNDCP) तथा संयुक्त राष्ट्र में अपराध निवारण और आपराधिक न्याय विभाग (Crime Prevention and Criminal Justice Division- CPCJD) के संयोजन में की गई थी और यह ड्रग कंट्रोल एवं अपराध रोकथाम की दिशा में कार्य करता है।

इससे संबंधित अन्य प्रयास

  • प्रतिवर्ष 26 जून को ‘नशीली दवाओं के दुरुपयोग और अवैध तस्करी के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय दिवस’ का आयोजन किया जाता है।
  • सिंगल कन्वेंशन ऑन नारकोटिक्स ड्रग्स, 1961
  • कन्वेंशन ऑन साइकोट्रोपिक सब्सटेंस-1971
  • कन्वेंशन ऑन इलीसिट ट्रैफिक ऑन नारकोटिक ड्रग्स एँड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस, 1988
    • भारत उपर्युक्त तीनों का हस्ताक्षरकर्त्ता है और इसने ‘नारकोटिक्स ड्रग्स एँड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस’ (NDPS) अधिनियम, 1985 भी लागू किया है।

भारत की सुभेद्यता

  • भारत दुनिया में दो प्रमुख अवैध अफीम उत्पादन क्षेत्रों- पश्चिम में गोल्डन क्रीसेंट (ईरान-अफगानिस्तान-पाकिस्तान) और पूर्व में स्वर्णिम त्रिभुज (दक्षिण-पूर्व एशिया) के मध्य में स्थित होने के कारण ड्रग उत्पादों की तस्करी के प्रति काफी सुभेद्य है।
  •  गोल्डन क्रीसेंट क्षेत्र में अफगानिस्तान, ईरान और पाकिस्तान शामिल हैं। स्वर्णिम त्रिभुज, रूक तथा मेकांग नदियों के संगम पर स्थित वह क्षेत्र है जहाँ थाईलैंड की सीमाएँ लगती हैं।

Iran

स्रोत: द हिंदू


एग्रीस्टैक: कृषि क्षेत्र हेतु नया डिजिटल प्रयोजन

प्रिलिम्स के लिये

एग्रीस्टैक 

मेन्स के लिये

कृषि में ई-टेक का प्रयोग 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में कृषि मंत्रालय ने 6 राज्यों के 100 गाँवों के लिये एक पायलट कार्यक्रम चलाने हेतु माइक्रोसॉफ्ट के साथ समझौता ज्ञापन (Memorandum of Understanding) पर हस्ताक्षर किये हैं।

  • समझौता ज्ञापन में माइक्रोसॉफ्ट की क्लाउड कंप्यूटिंग सेवाओं के माध्यम से 'एकीकृत किसान सेवा इंटरफेस' (Unified Farmer Service Interface) बनाने की आवश्यकता है।
  • इसमें 'एग्रीस्टैक' (कृषि में प्रौद्योगिकी आधारित हस्तक्षेप का एक संग्रह) बनाने की मंत्रालय की योजना का एक बड़ा हिस्सा शामिल है, जिस पर बाकी सभी संरचनाएँ बनायी जाएंगी।

प्रमुख बिंदु:

एग्रीस्टैक के बारे में:

  • यह प्रौद्योगिकियों और डिजिटल डेटाबेस का एक संग्रह है जो किसानों तथा कृषि क्षेत्र पर केंद्रित है।
  • एग्रीस्टैक किसानों को कृषि खाद्य मूल्य शृंखला में एंड टू एंड सर्विसेज़ प्रदान करने के लिये एक एकीकृत मंच तैयार करेगा।
  • यह केंद्र के डिजिटल इंडिया कार्यक्रम के अनुरूप है, जिसका उद्देश्य भारत में भूमि के डिजिटलीकरण से लेकर मेडिकल रिकॉर्ड तक के डेटा को डिजिटाइज़ करने के लिये व्यापक प्रयास करना है।
  • इस कार्यक्रम के तहत प्रत्येक किसान की एक विशिष्ट डिजिटल पहचान (किसानों की आईडी) होगी जिसमें व्यक्तिगत विवरण, उनके द्वारा खेती की जाने वाली भूमि की जानकारी, साथ ही उत्पादन और वित्तीय विवरण शामिल होंगे।
    • प्रत्येक आईडी व्यक्ति की डिजिटल राष्ट्रीय आईडी आधार से जुड़ी होगी।

आवश्यकता:

  • वर्तमान में भारत में अधिकांश किसान छोटे और सीमांत स्तर के किसान हैं जिनकी उन्नत तकनीकों या औपचारिक ऋण तक सीमित पहुँच है जो उत्पादन में सुधार तथा  बेहतर मूल्य प्राप्त करने में मदद कर सकते हैं।
  • कार्यक्रम के तहत प्रस्तावित नई डिजिटल कृषि प्रौद्योगिकियों और सेवाओं के प्रयोग से मवेशियों की निगरानी के लिये सेंसर, मिट्टी का विश्लेषण करने और कीटनाशक छिड़काव के लिये ड्रोन, कृषि उपज में सुधार तथा किसानों की आय को बढ़ावा देना शामिल है।

संभावित लाभ:

  • क्रेडिट और सूचना तक अपर्याप्त पहुँच, कीट संक्रमण, फसल की बर्बादी, फसलों की कम कीमत और उपज की भविष्यवाणी जैसी समस्याओं से डिजिटल प्रौद्योगिकी के उपयोग से पर्याप्त रूप से निपटा जा सकता है।
  • यह नवाचार को बढ़ावा देने के साथ ही कृषि क्षेत्र में निवेश को भी बढ़ाएगा तथा अधिक लचीली फसलों के लिये अनुसंधान को बढ़ावा देगा।

चिंताएँ:

  • डेटा सुरक्षा कानून का अभाव:
    • इसकी अनुपस्थिति में यह एक ऐसी व्यवस्था बन सकती है जहाँ निजी डेटा प्रोसेसिंग संस्थाएँ किसान की भूमि के बारे में किसान की तुलना में अधिक जानकारी रख सकती हैं और वे जिस सीमा तक चाहें किसानों के डेटा का दोहन करने में सक्षम हो सकती हैं।
  • व्यावसायीकरण:
    • 'एग्रीस्टैक' के गठन से कृषि विस्तार गतिविधियों का व्यावसायीकरण होगा क्योंकि ये डिजिटल और निजी क्षेत्र में स्थानांतरित हो जाएंगी।
  • विवाद निपटान तंत्र की अनुपस्थिति:
    • समझौता ज्ञापन डिजिटल रूप से एकत्र किये गए भूमि डेटा का भौतिक सत्यापन करते हैं, लेकिन विवाद उत्पन्न होने पर कार्रवाई का तरीका क्या होगा, इस पर कुछ भी  स्पष्ट नहीं है, खासकर जब ऐतिहासिक साक्ष्य स्पष्ट करते हैं कि भूमि विवादों को निपटाने में वर्षों लगते हैं।

गोपनीयता और बहिष्करण मुद्दे:

  • इस व्यवस्था में प्रस्तावित किसान आईडी आधार से जुड़ी होगी जिससे गोपनीयता और बहिष्करण के मुद्दे उभरेंगे।
  • कई शोधकर्त्ताओं ने उल्लंघन और लीक के लिये आधार डेटाबेस की भेद्यता को स्पष्ट किया है, जबकि कल्याण वितरण में आधार-आधारित बहिष्करण को भी विभिन्न संदर्भों में अच्छी तरह से उल्लेखित किया गया है।
  • साथ ही भूमि रिकॉर्ड का किसान डेटाबेस बनाने का तात्पर्य है कि इसमें काश्तकार किसानों, बटाईदारों और खेतिहर मजदूरों को नहीं शामिल किया जाएगा।
    • आँकड़ों से पता चलता है कि खेतिहर मदूरों की आबादी किसानों से ज़्यादा हो गई है।

आगे की राह:

  • इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि डेटा और प्रौद्योगिकी द्वारा किसानों को सशक्त बनाया जा सकता है लेकिन केवल इसके लिये सूचना का संतुलित प्रयोग होना आवश्यक है।
  • प्रायोगिक परियोजनाओं पर काम कर रही निजी फर्मों को भूमि स्वामित्व पर मतभेदों को सुलझाने के लिये राज्य सरकारों के साथ प्रभावी ढंग से सहयोग करना चाहिये।
  • सरकार को पायलट ट्रेल्स से प्राप्त परिणामों के आधार पर परियोजना के साथ आगे बढ़ना चाहिये। 

स्रोत: डाउन टू अर्थ


वन क्षेत्रों का LiDAR आधारित सर्वेक्षण

प्रिलिम्स के लिये:

लिडार, वन क्षेत्र की सर्वेक्षण परियोजना

मेन्स के लिये:

LiDAR आधारित सर्वेक्षण का महत्त्व

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय पर्यावरण मंत्री ने एक आभासी कार्यक्रम में 10 राज्यों में वन क्षेत्रों के लिडार (Light Detection and Ranging- LiDAR) आधारित सर्वेक्षण की विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (DPRs) जारी की।

  • ये 10 राज्य असम, बिहार, छत्तीसगढ़, गोवा, झारखंड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, मणिपुर, नगालैंड और त्रिपुरा हैं।

प्रमुख बिंदु:

वन क्षेत्र की सर्वेक्षण परियोजना:

  • इस परियोजना को 26 राज्यों में कुल 261897 हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में कार्यान्वित करने के लिये जुलाई 2020 में कुल 18.38 करोड़ रुपए की लागत के साथ वापकोस (WAPCOS) को सौंपा गया था।
    • WAPCOS जल शक्ति मंत्रालय के तहत एक मिनी रत्न सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम (PSU) है।
  • यह अपनी तरह का पहला और LiDAR तकनीक का उपयोग करने वाला एक अनूठा प्रयोग है जो वन क्षेत्रों में जल और चारे को बढ़ाने में मदद करेगा जिससे मानव-पशु संघर्ष को कम किया जा सकेगा।
    • LiDAR तकनीक में 90% सटीकता पाई गई है।
  • राज्यों को इस परियोजना में उपयोग करने के लिये प्रतिपूरक वनीकरण प्रबंधन एवं योजना प्राधिकरण (Compensatory Afforestation Management and Planning Authority- CAMPA) निधि दी जाएगी।
    • CAMPA का उद्देश्य वनीकरण और पुनर्जनन गतिविधियों को बढ़ावा देना है ताकि गैर-वन उपयोगों हेतु आवंटित वन भूमि की क्षतिपूर्ति की जा सके।
    • CAMPA की स्थापना प्रतिपूरक वनीकरण कोष (CAF) के प्रबंधन के लिये की गई थी और यह CAMPA कोष के संरक्षक के रूप में कार्य करता है।
  • WAPCOS ने राज्‍य वन विभागों की भागीदारी के साथ इन राज्‍यों में वन ब्‍लॉक के भीतर एक बड़े टीले की पहचान करने के साथ ‍विस्तृत परियोजना रिपोर्ट तैयार करने और स्थान विशेष के भूगोल, उसकी स्थलाकृति तथा वहाँ की मृदा की विशेषताओं के अनुरूप मृदा एवं जल संरक्षण की उपयुक्त एवं व्यावहारिक सूक्ष्म संरचनाओं के निर्माण के लिये स्थानों व संरचनाओं की पहचान करने के उद्देश्य से प्रत्येक राज्य में 10,000 हेक्टेयर के औसत क्षेत्रफल की भूमि का चयन किया है।
    • राज्यों/केंद्र-शासित प्रदेशों ने वन ब्लॉक के अंदर एक बड़े टीले की पहचान इस मानदंड के साथ की है कि चयनित क्षेत्र में राज्य की औसत वर्षा होनी चाहिये।

महत्त्व:

  • मानव-पशु संघर्ष को कम करने के अलावा यह हमें उन क्षेत्रों की पहचान करने में मदद करेगा, जिन्हें भूजल पुनर्भरण की आवश्यकता है, जिससे स्थानीय समुदायों को मदद मिलेगी।
  • यह वर्षा जल संचरण में मदद करेगा और उसके बहाव को रोकेगा, जिससे भूजल को रिचार्ज करने में मदद मिलेगी।
  • WAPCOS ने लिडार तकनीक का उपयोग करके इन DPR को तैयार किया है, जिसमें 3-डी (त्रि-आयामी) डिजिटल एलिवेशन मॉडल (DEM), इमेजरी और परियोजना क्षेत्रों की परतों का उपयोग एनीकट, गेबियन, गली प्लग, लघु अंतःस्त्रवण टंकी, अंतःस्त्रवण टंकी, खेतों की मेंड़, धँसे हुए तालाब, खेती वाले तालाब आदि जैसी विभिन्न प्रकार की मृदा और जल संरक्षण संरचनाओं की सिफारिश करने के लिये किया जाता है।

लाइट डिटेक्शन एंड रेंजिंग (LiDAR)

परिचय:

  • यह सुदूर संवेदन प्रौद्योगिकी है जो दूरी के मापन के लिये लक्ष्य पर लेज़र प्रकाश भेजता है और परावर्तित प्रकाश का विश्लेषण करता है। 
  • वायुजनित प्रणाली द्वारा दर्ज किये गए अन्य डेटा के साथ-साथ यह संयुक्त प्रकाश स्पंद पृथ्वी के आकार और इसकी सतह की विशेषताओं के बारे में सटीक, त्रि-आयामी जानकारी प्रदान करता है।
  • LiDAR उपकरण में मुख्य रूप से एक लेज़र, एक स्कैनर और एक विशेष ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (Global Positioning System- GPS) रिसीवर होता है।
    • व्यापक क्षेत्रों में LiDAR से डेटा प्राप्त करने के लिये हवाई जहाज़ और हेलीकॉप्टर का सबसे अधिक उपयोग किया जाता है।
  • LiDAR एक साधारण सिद्धांत का पालन करता है जो पृथ्वी की सतह पर किसी वस्तु पर लेज़र लाइट डालता है और LiDAR स्रोत पर लौटने में लगने वाले समय की गणना करता है।
    • प्रकाश जिस गति से यात्रा करता है (लगभग 186,000 मील प्रति सेकंड) उसको देखते हुए LiDAR के माध्यम से सटीक दूरी को मापने की प्रक्रिया अविश्वसनीय रूप से तेज़ प्रतीत होती है।

अनुप्रयोग:

  • लिडार का उपयोग आमतौर पर सर्वेक्षण, भूगणित, भू-विज्ञान, पुरातत्त्व, भूगोल, भूविज्ञान, भू-आकृति विज्ञान (Geomorphology), भूकंप विज्ञान, वानिकी, वायुमंडलीय भौतिकी, लेज़र मार्गदर्शन, हवाई लेज़र स्वाथ मैपिंग (Airborne Laser Swath Mapping- ALSM) और लेज़र अल्टीमेट्री में अनुप्रयोगों के साथ उच्च-रिज़ॉल्यूशन मानचित्र के लिये किया जाता है।

स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस


आईएनएस विक्रांत: पहला स्वदेशी विमानवाहक

प्रिलिम्स के लिये

आईएनएस विक्रांत, रक्षा अधिग्रहण परिषद

मेन्स के लिये

प्रौद्योगिकी के स्वदेशीकरण का महत्त्व और आवश्यकता

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत के रक्षा मंत्री ने ‘आत्मनिर्भर भारत’ अभियान के हिस्से के रूप में निर्मित स्वदेशी विमानवाहक आईएनएस विक्रांत (IAC-1) पर चल रहे कार्य की समीक्षा की।

  • आईएनएस विक्रांत को वर्ष 2022 में कमीशन किये जाने की संभावना है। वर्तमान में भारत के पास केवल एक ही विमानवाहक पोत है, रूसी मूल का आईएनएस विक्रमादित्य।
  • इससे पहले रक्षा अधिग्रहण परिषद (DAC) ने ‘प्रोजेक्ट-75I’ के तहत भारतीय नौसेना हेतु छह उन्नत पनडुब्बियों के लिये ‘प्रस्ताव निवेदन’ (RFP) जारी करने की मंज़ूरी दी थी।

प्रमुख बिंदु

आईएनएस विक्रांत

  • इस स्वदेशी विमानवाहक का नाम नौसेना के सेवामुक्त प्रथम वाहक के नाम पर ‘विक्रांत’ रखा गया है।
  • इसमें 30 विमानों का एक वायु घटक होगा, जिसमें स्वदेशी उन्नत हल्के हेलीकाप्टरों के अलावा मिग-29K लड़ाकू जेट, कामोव-31 एयरबोर्न अर्ली वार्निंग हेलीकॉप्टर और जल्द ही नौसेना में शामिल होने वाले MH-60R मल्टी-रोल हेलीकॉप्टर होंगे।
  • इसकी अधिकतम गति तकरीबन 30 समुद्री मील (लगभग 55 किमी. प्रति घंटा) होगी और इसे चार गैस टर्बाइनों द्वारा संचालित किया जाएगा। स्वदेशी विमानवाहक एक बार में 18 समुद्री मील (32 किमी. प्रति घंटे) की गति से 7,500 समुद्री मील की दूरी तय करने में सक्षम होगा।
  • इस विमानवाहक पर हथियारों के रूप में बराक एलआर एसएएम और एके-630 शामिल हैं, साथ ही इसमें सेंसर के रूप में एमएफएसटीएआर और आरएएन -40 एल 3डी रडार शामिल हैं। पोत में ‘शक्ति’ नाम का इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर सूट भी मौजूद है।
  • इस विमानवाहक पोत में विमान संचालन को नियंत्रित करने के लिये ‘रनवे’ और 'शॉर्ट टेक ऑफ बट अरेस्टड रिकवरी' सिस्टम भी मौजूद है।

महत्त्व:

  • विमानवाहक पोत की लड़ाकू क्षमता, पहुँच और बहुमुखी प्रतिभा देश की रक्षा में मज़बूत क्षमताओं को जोड़ेगी और समुद्री क्षेत्र में भारत के हितों को सुरक्षित रखने में मदद करेगी।
  • यह लंबी दूरी पर वायु शक्ति को प्रक्षेपित करने की क्षमता के साथ एक अतुलनीय सैन्य उपकरण की पेशकश करेगा, जिसमें हवाई अवरोध, सतह-विरोधी युद्ध, आक्रामक और रक्षात्मक काउंटर-एयर, हवाई पनडुब्बीरोधी युद्ध तथा हवाई पूर्व चेतावनी शामिल हैं।

भारतीय नौसेना की वर्तमान स्थिति:

  • समुद्री क्षमता परिप्रेक्ष्य योजना (Maritime Capability Perspective Plan) के अनुसार, वर्ष 2027 तक भारत के पास लगभग 200 जहाज़ होने चाहिये परंतु लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये अभी भी बहुत कुछ करना बाकी है।
    • हालाँकि इसका कारण मुख्य रूप से वित्तपोषण नहीं बल्कि प्रक्रियात्मक देरी या स्वयं द्वारा लगाए गए कुछ प्रतिबंध हैं।
  • नौसेना के पास अत्याधुनिक सोनार और रडार हैं। इसके अलावा इसके कई जहाज़ों में स्वदेशी सामग्री की उच्च मात्रा इस्तेमाल की गई है।

कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई में नौसेना का योगदान:

  • ऑपरेशन समुद्र सेतु- I: कोरोना वायरस के मद्देनज़र लागू किये गए यात्रा प्रतिबंधों के बीच विदेश में फँसे भारतीय नागरिकों को वापस लाने के लिये निकासी अभियान है।
  • ऑपरेशन समुद्र सेतु- II: भारतीय नौसेना ने भारत में ऑक्सीजन से भरे कंटेनरों की शिपमेंट के लिये ‘ऑपरेशन समुद्र सेतु-II’ की शुरुआत की थी।

स्रोत: द हिंदू


परिवर्तनकारी शहरी मिशनों के 6 वर्ष

प्रिलिम्स के लिये:

परिवर्तनकारी शहरी मिशन

मेन्स के लिये:

परिवर्तनकारी शहरी मिशनों की उपलब्धियाँ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय (MoHUA) ने तीन परिवर्तनकारी शहरी मिशनों [स्मार्ट सिटीज़ मिशन (SCM), अटल शहरी कायाकल्प और शहरी परिवर्तन मिशन (AMRUT) तथा प्रधानमंत्री आवास योजना-शहरी (PMAY-U)] के छह वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में एक ऑनलाइन कार्यक्रम का आयोजन किया। 

  • यह दिन MoHUA के एक स्वायत्त निकाय, शहरी मामलों के राष्ट्रीय संस्थान (National Institute of Urban Affairs) की स्थापना के 45 वर्षों को भी चिह्नित करता है, जिसे शहरीकरण से संबंधित मुद्दों पर अनुसंधान और अभ्यास के बीच की खाई को पाटने का कार्य सौंपा गया है।

प्रमुख बिंदु:

प्रगति/उपलब्धियाँ:

  • प्रधानमंत्री आवास योजना-शहरी (PMAY-U):
    • इसके अंतर्गत  कुल 1.12 करोड़ आवास स्वीकृत किये गए हैं, जिनमें से 82.5 लाख घरों के निर्माण के लिये आधार तैयार किये जा चुके हैं और लगभग 48 लाख घरों का काम पूरा हो चुका है।
    • PMAY-U की क्रेडिट लिंक्ड सब्सिडी योजना (Credit Linked Subsidy Scheme- CLSS) से 16 लाख परिवार लाभान्वित हुए।
    • PMAY-U के तहत सरकारी निवेश ने लगभग 689 करोड़ व्यक्ति दिवस का रोज़गार सृजित किया, जो लगभग 246 लाख रोज़गारों में तब्दील हो गया।
    • शहरी प्रवासियों/गरीबों के लिये PMAY-U के तहत एफोर्डेबल रेंटल हाउसिंग कॉम्पलेक्सेज़ योजना को ज़मीनी स्तर पर उल्लेखनीय प्रतिक्रिया मिली है।
  • अटल शहरी कायाकल्प और शहरी परिवर्तन मिशन (AMRUT):
    • अमृत मिशन के तहत अब तक 1.05 करोड़ घरेलू नल कनेक्शन और 78 लाख सीवर /सेप्टेज़ कनेक्शन प्रदान किये गए हैं।
    • लगभग 88 लाख स्ट्रीट लाइटों को ऊर्जा दक्ष एलईडी लाइटों से बदला गया जिससे ऊर्जा की बचत हुई।
    • ऊर्जा एवं संसाधन संस्थान (TERI) के अनुसार, अमृत के तहत विभिन्न पहलों के माध्यम से 84.6 लाख टन कार्बन फुटप्रिंट को कम किया गया।
  • स्मार्ट सिटीज़ मिशन (SCM):

आयोजन के दौरान महत्त्वपूर्ण लॉन्च/रिलीज़:

इंडिया स्मार्ट सिटीज़ अवार्ड्स 2020

  • ये पुरस्कार सामाजिक पहलू, शासन, संस्कृति, शहरी पर्यावरण, स्वच्छता, अर्थव्यवस्था, जल, शहरी गतिशीलता से संबंधित विभिन्न विषयों पर दिये गए।
  • इस वर्ष ICCC के सस्टेनेबल बिज़नेस मॉडल और इनोवेशन अवार्ड विशेष रूप से कोविड प्रबंधन के मामले में कुछ दिलचस्प थीम भी शामिल किये गए।
  • इंदौर और सूरत ने अपने समग्र विकास के लिये इस वर्ष संयुक्त रूप से सिटी अवार्ड जीता, जबकि उत्तर प्रदेश ने स्टेट श्रेणी में अवार्ड जीता।

क्लाइमेट स्मार्ट सिटीज़ असेसमेंट फ्रेमवर्क 2.0

  • भारत में शहरी जलवायु कार्यप्रणाली को तैयार करने, लागू करने और निगरानी करने के लिये एक व्यापक रोडमैप प्रदान करने के उद्देश्य से सितंबर 2020 में लॉन्च किया गया था।
  • इसमें बेहतर प्रदर्शन करने वाले शीर्ष 9 शहरों में सूरत, इंदौर, अहमदाबाद, पुणे, विजयवाड़ा, राजकोट, विशाखापत्तनम, पिंपरी-चिंचवाड़ और वडोदरा शामिल हैं।

स्मार्ट सिटी के तहत आईसीटी पहल

  • ICCC परिपक्वता आकलन फ्रेमवर्क
    • यह नागरिकों को बेहतर सेवाएँ प्रदान करने के लिये शहरों को अपने ICCCs में सुधार हेतु महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों की पहचान करने में मदद करने के लिये एक स्व-मूल्यांकन टूल किट है।
  • स्मार्ट सिटी आईसीटी मानक
    • ये मानक एक स्मार्ट सिटी में मौजूद बहु-विक्रेता, बहु-नेटवर्क और बहु-सेवा वातावरण में उत्पादों के बीच अंतर-संचालन की सुविधा प्रदान करेंगे।
    • यह भारतीय मानक ब्यूरो (BSI) द्वारा आयोजित किया जाता है।
  • इंडिया स्मार्ट सिटी फेलोशिप प्रोग्राम:
    • भारत के शहरी भविष्य के डिज़ाइन में युवा नेतृत्त्व और जीवंतता को बढ़ावा देना।
  • 'ट्यूलिप-द अर्बन लर्निंग इंटर्नशिप प्रोग्राम' रिपोर्ट:
    • यह भारतीय शहरों के लिये नवीन समाधान विकसित करने हेतु स्नातकों को शहरी स्थानीय निकायों और स्मार्ट शहरों से जोड़ने का एक मंच है।
  • CITIIS- नॉलेज प्रोडक्ट 
    • इसे वर्ष 2018 में ‘फ्रेंच डेवलपमेंट एजेंसी’ और ‘यूरोपीय संघ’ के साथ साझेदारी में लॉन्च किया गया।
    • इसमें परियोजनाओं को विकसित करने एवं शहरी बुनियादी अवसंरचना में स्थिरता एवं नवाचार के एजेंडे को आगे बढ़ाने हेतु एक नया दृष्टिकोण अपनाया गया है।

स्मार्ट सिटी मिशन (Smart City Mission)

  • परिचय : यह भारत सरकार के आवास और शहरी कार्य मंत्रालय के तहत एक अभिनव पहल है, जिसे नागरिकों के लिये स्मार्ट परिणाम प्राप्त करने के साधन के रूप में स्थानीय विकास और दोहन प्रौद्योगिकी को सक्षम करके आर्थिक विकास को बढ़ावा देने तथा लोगों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार करने हेतु क्रियान्वित किया जा रहा है।
  • उद्देश्य : इसका उद्देश्य उन शहरों को बढ़ावा देना है जो मूल बुनियादी ढाँँचा प्रदान करते हैं और अपने नागरिकों को स्वच्छ एवं टिकाऊ वातावरण तथा '​स्मार्ट' समाधान के अनुप्रयोग द्वारा अच्छी गुणवत्ता युक्त जीवन प्रदान करते हैं।
  • फोकस : सतत् और समावेशी विकास तथा कॉम्पैक्ट क्षेत्रों पर प्रभाव को देखने के लिये एक प्रतिकृति मॉडल का निर्माण करना जो अन्य महत्त्वाकांक्षी शहरों हेतु एक प्रकाश स्तंभ के रूप में कार्य करेगा।
  • एकीकृत कमान और नियंत्रण केंद्र (ICCC) एक समेकित तरीके से बेहतर स्थितिजन्य जागरूकता के साथ वास्तविक समय डेटा संचालन संबंधित निर्णय लेने हेतु मानकीकृत  शहरों को न्यूनतम और अधिकतम डेटा से लैस करता है। ICCC से नागरिकों के दैनिक जीवन में सकारात्मक प्रभाव लाने पर ध्यान केंद्रित करते हुए विशिष्ट परिणाम देने की अपेक्षा की जाती है।

अमृत मिशन (AMRUT Mission)

  • शुरु: जून 2015
  • संबंधित मंत्रालय : आवास और शहरी कार्य मंत्रालय 
  • उद्देश्य :
    • यह सुनिश्चित करना कि हर घर में पानी की आपूर्ति और सीवरेज कनेक्शन के साथ नल की व्यवस्था हो।
    • हरियाली और पार्कों जैसे खुले स्थानों को अच्छी तरह से विकसित करके AMRUT जीवन की बेहतर एवं स्वस्थ गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिये बुनियादी नागरिक सुविधाओं में वृद्धि करता है।
    • गैर-मोटर चालित परिवहन (जैसे पैदल चलना और साइकिल चलाना) द्वारा सार्वजनिक परिवहन या निर्माण सुविधाओं के परिणामस्वरूप प्रदूषण को कम करना।

प्रधानमंत्री आवास योजना- शहरी

  • लॉन्च: इसे 25 जून, 2015 को लॉन्च किया गया था और इसका उद्देश्य वर्ष 2022 तक शहरी क्षेत्रों में सभी के लिये आवास उपलब्ध कराना है।
  • क्रियान्वयन मंत्रालय:  आवास एवं शहरी मामलों का मंत्रालय
  • विशेषताएँ
    • यह योजना पात्र शहरी गरीबों के लिये पक्का घर सुनिश्चित करके झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले लोगों समेत शहरी गरीबों के बीच शहरी आवास की कमी को दूर करती है।
    • इस मिशन के तहत संपूर्ण भारत के शहरी क्षेत्र को कवर किया गया है, जिसमें सांविधिक शहर, अधिसूचित योजना क्षेत्र, विकास प्राधिकरण, विशेष क्षेत्र विकास प्राधिकरण, औद्योगिक विकास प्राधिकरण या राज्य कानून के तहत ऐसा कोई प्राधिकरण शामिल है जिसे शहरी नियोजन और विनियम के तहत कार्य सौंपा गया है।

PMAY

स्रोत: पी.आई.बी


अफ्रीकन स्वाइन फीवर

प्रिलिम्स के लिये 

अफ्रीकन स्वाइन फीवर, विश्व व्यापार संगठन, विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, क्लासिकल स्वाइन फीवर

मेन्स के लिये 

अफ्रीकन स्वाइन फीवर एवं क्लासिकल स्वाइन फीवर का संक्षिप्त परिचय तथा इसके प्रभाव, इसकी रोकथाम में विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन की भूमिका

चर्चा में क्यों?

नगालैंड में पिछले दो सप्ताह में अफ्रीकन स्वाइन फ्लू (African Swine Flu) का कोई नया मामला सामने नहीं आया है।

  • पहली बार इस बीमारी की पहचान नवंबर-दिसंबर 2019 में अरुणाचल प्रदेश की सीमा से लगे चीनी क्षेत्रों में की गई थी।
  • इससे पहले अप्रैल 2020 में क्लासिकल स्वाइन फीवर (CSF) के कारण सूअरों की मौत की जानकारी मिली थी।

ASF

प्रमुख बिंदु

परिचय :

  • यह  एक अत्यधिक संक्रामक और घातक पशु रोग है, जो घरेलू तथा जंगली सूअरों को संक्रमित करता है। इसके संक्रमण से सूअर एक प्रकार के तीव्र रक्तस्रावी बुखार (Hemorrhagic Fever) से पीड़ित होते हैं।
  • रोग की अन्य अभिव्यक्तियों में तेबुखार, अवसाद, एनोरेक्सिया, भूख न लगना, त्वचा में रक्तस्राव, उल्टी और दस्त शामिल हैं। 
  • इसे पहली बार 1920 के दशक में अफ्रीका में देखा गया था।
    • ऐतिहासिक रूप से अफ्रीका और यूरोप, दक्षिण अमेरिका तथा कैरेबियन के कुछ हिस्सों में प्रकोप की सूचना मिली है।
    • हालाँकि हाल ही में (2007 से) अफ्रीका, एशिया और यूरोप के कई देशों में घरेलू और जंगली दोनों सूअरों में यह बीमारी पाई गई।
  • इस रोग में मृत्यु दर 100 प्रतिशत के करीब होती है और चूँकि इस बुखार का कोई इलाज नहीं है, अतः इसके संक्रमण को फैलने से रोकने का एकमात्र तरीका जानवरों को मारना है।
  • अफ्रीकी स्वाइन फीवर मनुष्य के लिये खतरा नहीं होता है, क्योंकि यह केवल जानवरों से जानवरों में फैलता है।
  • अफ्रीकी स्वाइन फीवर, विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन (OIE) के पशु स्वास्थ्य कोड में सूचीबद्ध एक ऐसी बीमारी है जिसके संदर्भ में तुरंत OIE को सूचना देना आवश्यक है।

क्लासिकल स्वाइन फीवर (CSF) :

  • क्लासिकल स्वाइन बुखार को हॉग हैजा (Hog Cholera) के नाम से भी जाना जाता है, यह सूअरों से संबंधित एक गंभीर बीमारी है।
  •  यह दुनिया में सूअरों से संबंधित आर्थिक रूप से सर्वाधिक हानिकारक महामारी, संक्रामक रोगों में से एक है। 
  • यह Flaviviridae फैमिली के जीनस पेस्टीवायरस के कारण होता है, जो कि इस वायरस से निकटता से संबंधित है जो मवेशियों में ‘बोवाइन संक्रमित डायरिया’ और भेड़ों में ‘बॉर्डर डिज़ीज़’ का कारण बनता है।
  • इसमें मृत्यु दर 100% है।
  • हाल ही में इससे बचने के लिये ICAR-IVRI ने एक ‘सेल कल्चर CSF वैक्सीन (लाइव एटेन्यूटेड या जीवित ऊतक) विकसित की, जिसमें लैपिनाइज़्ड वैक्सीन वायरस का उपयोग एक बाह्य स्ट्रेन के माध्यम से किया गया।
    • नया टीका टीकाकरण के 14 दिन से 18 महीने तक सुरक्षात्मक प्रतिरक्षा प्रदान करता है।

विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन

(World Organisation for Animal Health or OIE)

  • यह दुनिया-भर में पशुओं के स्वास्थ्य में सुधार हेतु उत्तरदायी एक अंतर-सरकारी संगठन (Intergovernmental Organisation) है।
  • वर्तमान में कुल 182 देश इसके सदस्य हैं। भारत इसके सदस्य देशों में से एक है।
  • यह नियमों से संबंधित मानक दस्तावेज़ विकसित करता है जिनके उपयोग से सदस्य देश बीमारियों और रोगजनकों से स्वयं को सुरक्षित कर सकते हैं। इसमें से एक क्षेत्रीय पशु स्वास्थ्य संहिता भी है।
  • इसके मानकों को विश्व व्यापार संगठन (WTO) द्वारा संदर्भित संगठन (Reference Organisation) के अंतर्राष्ट्रीय स्वच्छता नियमों के रूप में मान्यता प्राप्त है।
  • इसका मुख्यालय पेरिस (फ्राँस) में स्थित है।

स्रोत : डाउन टू अर्थ


पाकिस्तान को FATF की ग्रे लिस्ट में बनाए रखने का निर्णय

प्रिलिम्स के लिये 

वित्तीय कार्रवाई कार्य बल

मेन्स के लिये 

FATF कार्य व इसका महत्त्व

चर्चा में क्यों?

वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (Financial Action Task Force- FATF) ने पाकिस्तान को “इन्क्रीज्ड मॉनिटरिंग लिस्ट” में बनाए रखने का निर्णय लिया है।

  • “इन्क्रीज्ड मॉनिटरिंग लिस्ट” ग्रे सूची का ही दूसरा नाम है।

प्रमुख बिंदु

पृष्ठभूमि: 

  • FATF ने जून 2018 में पाकिस्तान को ’ग्रे सूची’ में रखने के बाद 27 सूत्रीय कार्रवाई योजना जारी की थी। यह कार्रवाई योजना धन शोधन और आतंकी वित्तपोषण पर अंकुश लगाने से संबंधित है।
  • अक्तूबर 2020 सत्र के दौरान FATF द्वारा पाकिस्तान के लिये निर्धारित 27 सूत्रीय कार्रवाई योजना को पूर्ण करने की समय-सीमा को कोविड-19 महामारी के कारण फरवरी 2021 तक विस्तारित कर दिया गया था। 
    • तब इसने 27 निर्देशों में से 6 का पूरी तरह से अनुपालन नहीं किया था।
  • फरवरी 2021 में, FATF ने आतंकवाद का मुकाबला करने में पाकिस्तान की महत्त्वपूर्ण प्रगति को स्वीकार किया, हालाँकि उसे अभी भी 27-सूत्रीय कार्य योजना में से तीन का पूरी तरह से पालन करना था।
    • ये तीन बिंदु वित्तीय प्रतिबंधों और आतंकी फंडिंग वाले बुनियादी ढाँचे तथा इसमें शामिल संस्थाओं के खिलाफ दंड के संदर्भ में प्रभावी कदमों से संबंधित थे।

ग्रे सूची में बरकरार रखने के विषय में:

  • FATF ने कहा कि पाकिस्तान 26/11 के आरोपी हाफिज सईद और JeM प्रमुख मसूद अजहर जैसे संयुक्त राष्ट्र द्वारा नामित आतंकवादियों के खिलाफ उचित कार्रवाई करने में विफल रहा है। हालाँकि पाकिस्तान ने कार्रवाई के 27 में से 26 बिंदुओं को पूरा किया है
  • FATF पाकिस्तान को आतंकवाद के वित्तपोषण की जाँच और संयुक्त राष्ट्र द्वारा नामित आतंकवादी समूहों के वरिष्ठ नेताओं और कमांडरों को लक्षित करते हुए अभियोजन के माध्यम से आतंकवाद के वित्तपोषण का विरोध करने से संबंधित एक शेष मुद्दे को जल्द से जल्द संबोधित करने के लिये प्रगति जारी रखने के लिये प्रोत्साहित करता है।
  • इसके अलावा, FATF ने मुख्य रूप से मनी लॉन्ड्रिंग कार्रवाइयों को पूरा करने के लिये कार्यों की एक और 6-सूत्रीय सूची  भी सौंपी है।
    • पाकिस्तान से उसके मनी-लॉन्ड्रिंग अधिनियम में संशोधन करने, नामित गैर-वित्तीय व्यवसायों और पेशों (Designated Non-Financial Businesses and Professions- DNFBPs) जैसे- रियल एस्टेट एजेंसियों तथा रत्न व्यापारियों पर कार्रवाई, मनी लॉन्ड्रिंग संस्थाओं की संपत्तियों को जब्त एवं फ्रीज करने और वित्तपोषण पर अंकुश लगाने के लिये व्यवसायों की निगरानी करने के साथ ही गैर-अनुपालन की स्थिति में उन पर वित्तीय प्रतिबंध लगाने की उम्मीद की गई है।

महत्त्व: 

  • FATF ने पाकिस्तान के विरुद्ध आतंकी गतिविधियों के लिये धन जुटाने में शामिल कई प्रतिबंधित संगठनों जैसे- जैश-ए-मोहम्मद प्रमुख मसूद अजहर, लश्कर-ए-तैयबा के हाफिज सईद आदि पर कार्रवाई में निष्क्रियता के मामले में संज्ञान लिया है।
  • भारत ने कई मौकों पर 26/11 के मुंबई और पुलवामा हमलों सहित कई आतंकी मामलों में पाकिस्तान में पल रहे आतंकवादियों की संलिप्तता को उजागर किया है।
  • पाकिस्तान का FATF की ग्रे सूची में बना रहना उसके समक्ष यह दबाव बनाएगा कि वह भारत में इस तरह के आतंकवादी हमलों को रोकने के लिये पर्याप्त उपाय करे।
    • अगले स्तर की "ब्लैकलिस्ट" के विपरीत, ग्रेलिस्टिंग में कोई कानूनी प्रतिबंध नहीं है, लेकिन यह आर्थिक सख्ती को आकर्षित करता है और किसी देश की अंतर्राष्ट्रीय ऋण तक पहुँच को प्रतिबंधित करता है।
      • पाकिस्तान के विदेश मंत्री द्वारा यह अनुमान लगाया था कि प्रत्येक उस वर्ष के दौरान जब  पाकिस्तान ग्रेलिस्ट में रहा है, पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था को 10 अरब डॉलर का नुकसान हुआ है।

वित्तीय कार्रवाई कार्य बल

परिचय: 

  • FATF का गठन वर्ष 1989 में जी-7 देशों की पेरिस में आयोजित बैठक में हुआ था।
  • FATF मनी लांड्रिंग, टेरर फंडिंग जैसे मुद्दों पर दुनिया में विधायी और नियामक सुधार लाने के लिये आवश्यक राजनीतिक इच्छा शक्ति पैदा करने का काम करता है। यह व्यक्तिगत मामलों को नहीं देखता है।

उद्देश्य: 

  • FATF का उद्देश्य मनी लॉड्रिंग, आतंकवादी वित्तपोषण जैसे खतरों से निपटना और अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय प्रणाली की अखंडता के लिये अन्य कानूनी, विनियामक और परिचालन उपायों के प्रभावी कार्यान्वयन को बढ़ावा देना है।

मुख्यालय: 

सदस्य देश: 

FATF की सूचियाँ:

  • ग्रे लिस्ट: 
    • किसी भी देश का FATF की ‘ग्रे’ लिस्ट में शामिल होने का अर्थ है कि वह देश आतंकवादी फंडिंग और मनी लॉड्रिंग पर अंकुश लगाने में विफल रहा है।
  • ब्लैक लिस्ट: 
    • किसी भी देश का FATF की ‘ब्लैक लिस्ट’ (Black List) में शामिल होने का अर्थ है कि उस देश को अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं द्वारा वित्तीय सहायता मिलनी बंद हो जाएगी।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


वायु गुणवत्ता और कोविड-19 के बीच संबंध

प्रिलिम्स के लिये 

वायु गुणवत्ता सूचकांक, उजाला योजना, भारत स्टेज VI, राष्ट्रीय उत्सर्जन सूची (NEI), पार्टिकुलेट मैटर (PM)

मेन्स के लिये 

वायु गुणवत्ता और कोविड-19 के बीच पारस्परिक संबंध, पार्टिकुलेट मैटर का संक्षिप्त परिचय एवं इसके प्रभाव, वायु प्रदूषण को कम करने हेतु पहल

चर्चा में क्यों?

एक अखिल भारतीय अध्ययन में पहली बार वायु प्रदूषण और कोविड -19 के बीच पारस्परिक संबंध पाया गया है।

  • इस अध्ययन में यह पाया गया कि खराब वायु गुणवत्ता और पार्टिकुलेट मैटर (PM) 2.5 के उच्च उत्सर्जन वाले क्षेत्रों में कोविड -19 संक्रमण और इससे संबंधित मौतों की संभावना अधिक है।

पार्टिकुलेट मैटर (Particulate Matter) 2.5 :

  • यह 2.5 माइक्रोमीटर से कम व्यास का एक वायुमंडलीय कण होता है, जो कि मानव बाल के व्यास का लगभग 3% होता है।
    • यह इतना छोटा होता है कि इसे केवल इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप की मदद से ही देखा जा सकता है।
  • यह श्वसन संबंधी समस्याओं का कारण बन सकता है और हमारे देखने की क्षमता को भी प्रभावित करता है। यह एक अंतःस्रावी विघटनकर्त्ता है, जो इंसुलिन स्राव और इंसुलिन संवेदनशीलता को प्रभावित कर सकता है, इस प्रकार मधुमेह में योगदान देता है।
  • ये कण ईंधन के जलने और वातावरण में होने वाली रासायनिक प्रतिक्रियाओं के परिणामस्वरूप बनते हैं। जंगल की आग जैसी प्राकृतिक आपदाएँ भी हवा में PM 2.5 में योगदान करती हैं। 
  • ये कण भी स्मॉग उत्पन्न होने का प्राथमिक कारण हैं।

प्रमुख बिंदु 

परिचय :

घटक:

  • अध्ययन में तीन प्रकार के डेटा सेट शामिल हैं : 
    • PM2.5 की राष्ट्रीय उत्सर्जन सूची (NEI) 2019, वैज्ञानिकों द्वारा विकसित।
    • 5 नवंबर, 2020 तक कोविड-19 पॉज़िटिव मामलों की संख्या और संबंधित मौतों की संख्या।
    • वायु गुणवत्ता सूचकांक डेटा (इन-सीटू अवलोकन)।

महत्त्वपूर्ण अवलोकन:

  • 'मानवजनित उत्सर्जन स्रोतों और वायु गुणवत्ता डेटा के आधार पर भारत में सूक्ष्म कण पदार्थ (पीएम2.5) क्षेत्रों और कोविड-19 के बीच एक लिंक स्थापित करना' शीर्षक के अध्ययन में बताया गया है कि अत्यधिक प्रदूषित क्षेत्रों में रहने वाले लोग कोरोनावायरस संक्रमण के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं।
  • परिवहन और औद्योगिक गतिविधियों में भारी मात्रा में जीवाश्म ईंधन जैसे-पेट्रोल, डील और कोयले का उपयोग करने वाले क्षेत्रों में कोविड ​​-19 मामलों की अधिक संख्या देखने को मिली।
    • उदाहरणस्वरूप महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, दिल्ली और गुजरात जैसे राज्यों में कोविड-19 मामलों की अधिक संख्या देखने को मिली। इन राज्यों में लोग लंबे समय तक 2.5 PM की उच्च सांद्रता के संपर्क में अपेक्षाकृत अधिक रहे हैं, खासकर शहरों में जहाँ  जीवाश्म ईंधन का अत्यधिक उपयोग होता है।
    • मुंबई और पुणे उन हॉटस्पॉट्स में से हैं जहाँ परिवहन और औद्योगिक क्षेत्रों से उच्च वायु प्रदूषण कोविड -19 मामलों और मौतों की अधिक संख्या से संबंधित है।
  • इस तथ्य के भी प्रमाण हैं कि नोवेल कोरोनावायरस PM 2.5 जैसे सूक्ष्म कणों से चिपक जाता है, जिससे वे कोविड-19 के हवाई संचरण को और अधिक प्रभावी बनाकर एक हिस्से से दूसरे हिस्से में जाने की अनुमति देते हैं।

प्रभाव:

  • जब मानव-प्रेरित उत्सर्जन को कोविड-19 वायरस के दोहरे प्रभाव के साथ जोड़ा जाता है तो फेफड़ों को नुकसान बहुत तेज़ी से होगा और स्वास्थ्य की स्थिति खराब होगी।
  • अध्ययन के परिणाम वर्तमान परिस्थितियों के साथ-साथ भविष्य की संभावनाओं के लिये उच्च प्रदूषण स्तर वाले क्षेत्रों में अधिक निवारक कदम और संसाधन प्रदान करके वायरस के प्रसार को कम करने में मदद करेंगे।

समाधान:

  • स्वच्छ प्रौद्योगिकी को अपनाने, भारत स्टेज (BS) VI जैसे बेहतर परिवहन उत्सर्जन मानदंडों को अपनाने और कण उत्सर्जन को कम करने के लिये अल्ट्रा-सुपरक्रिटिकल पावर प्लांट जैसी बेहतर कोयला प्रौद्योगिकी सुनिश्चित करने की आवश्यकता है।

वायु प्रदूषण को कम करने के लिये अन्य पहलें:

वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI)

  • AQI दैनिक वायु गुणवत्ता की रिपोर्टिंग के लिये एक सूचकांक है।
  • यह उन स्वास्थ्य प्रभावों पर केंद्रित है जिन्हें कोई भी व्यक्ति प्रदूषित वायु में साँस लेने के कुछ घंटों या दिनों के भीतर अनुभव कर सकता है।
  • AQI की गणना आठ प्रमुख वायु प्रदूषकों के लिये की जाती है:
    • भू-स्तरीय ओज़ोन,
    • PM10,
    • PM2.5,
    • कार्बन मोनोऑक्साइड,
    • सल्फर डाइऑक्साइड,
    • नाइट्रोजन डाइऑक्साइड,
    • अमोनिया,
    • लेड (शीशा),
  • भू-स्तरीय ओज़ोन और एयरबोर्न पार्टिकल्स दो ऐसे प्रदूषक हैं जो भारत में मानव स्वास्थ्य के लिये सबसे बड़ा खतरा हैं।

स्रोत: द हिंदू