डेली न्यूज़ (08 Dec, 2025)



FDTL मानदंड और भारत का विमानन क्षेत्र

प्रिलिम्स के लिये: UDAN, डिजी यात्रा, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI), एविएशन टर्बाइन फ्यूल (ATF), सस्टेनेबल एविएशन फ्यूल (SAF), नागर विमानन महानिदेशालय (DGCA), भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण (AAI)

मेन्स के लिये: विमानन सुरक्षा नियमन और पायलट थकान प्रबंधन, भारत के विमानन उद्योग का विकास, भारत के नागर विमानन में चुनौतियाँ और संभावित सुधार, क्षेत्रीय कनेक्टिविटी और समावेशी विकास

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों? 

इंडिगो एयरलाइंस की बड़ी उड़ानों के रद्द होने के बाद समीक्षा की जा रही है, क्योंकि संशोधित फ्लाइट ड्यूटी टाइम लिमिटेशन (FDTL) नियमों के लागू होने से हजारों यात्री फँस गए। इसके चलते नागर विमानन महानिदेशालय (DGCA) ने संचालन को स्थिर करने के लिए अस्थायी छूट प्रदान की।

संशोधित फ्लाइट ड्यूटी टाइम लिमिटेशन (FDTL) नियम क्या हैं?

  • परिचय: FDTL नियम नागर विमानन महानिदेशालय (DGCA) द्वारा जारी सुरक्षा नियम हैं, जो निर्धारित करते हैं कि पायलट कितने समय तक ड्यूटी पर रह सकते हैं, वे कितने घंटे उड़ान भर सकते हैं, कितनी रात में लैंडिंग की अनुमति है, और उन्हें न्यूनतम विश्राम कितने समय का लेना अनिवार्य है।
    • ये नियम पायलट की थकान को रोकने, मानवीय त्रुटियों को कम करने और विमानन सुरक्षा बढ़ाने के लिये बनाए गए हैं, तथा ये अंतर्राष्ट्रीय विमानन मानकों के अनुरूप हैं।
  • नए FDTL नियम:
    • साप्ताहिक आराम बढ़ाया गया: पायलटों को अब लगातार 48 घंटे का आराम लेना अनिवार्य है, जो पहले 36 घंटे था।
    • रात में लैंडिंग की सीमा तय: पायलट अब केवल 2 रात की लैंडिंग कर सकते हैं, जो पहले 6 थी।
      • लगातार 2 रात्री ड्यूटी से अधिक की अनुमति नहीं है।
    • अनिवार्य रोस्टर समायोजन: एयरलाइनों को नए सीमाओं के अनुसार क्रू रोस्टर को पुनः डिज़ाइन करना होगा।
    • त्रैमासिक थकान रिपोर्टिंग: एयरलाइनों को नियमित रूप से थकान जोखिम रिपोर्टें DGCA को प्रस्तुत करनी होंगी।
  • उद्देश्य: थकान हवाई यात्रा में एक प्रमुख संचालन जोखिम है, विशेष रूप से सुबह जल्दी उड़ानों और रात में लैंडिंग के दौरान।
    • नए FDTL नियम पायलट की सतर्कता बढ़ाने, मानवीय त्रुटियों को कम करने और भारत के विमानन सुरक्षा मानकों को वैश्विक मानदंडों के अनुरूप बनाने का लक्ष्य रखते हैं।

नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (DGCA)

  • परिचय: DGCA, जिसका मुख्यालय नई दिल्ली में है, भारत का सर्वोच्च नागरिक उड्डयन सुरक्षा नियामक संगठन है।
    • यह नागरिक उड्डयन मंत्रालय के अंतर्गत एक संलग्न कार्यालय के रूप में कार्य करता है और भारत में हवाई परिवहन सेवाओं, हवाई सुरक्षा तथा हवाई उड़ान योग्यता मानकों को अंतर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संगठन (ICAO) के समन्वय में विनियमित करने के लिये ज़िम्मेदार है।
  • DGCA की भूमिका:
    • विमानन सुरक्षा नियामक: भारत में हवाई सुरक्षा, उड़ान संचालन सुरक्षा और हवाई उड़ान योग्यता मानकों को सुनिश्चित करता है।
    • लाइसेंसिंग प्राधिकरण: पायलट, विमान रखरखाव अभियंता, उड़ान अभियंता और एयर ट्रैफिक कंट्रोलर को लाइसेंस जारी करता है।
    • हवाई परिवहन सेवाओं का विनियमन: भारतीय और विदेशी ऑपरेटरों की अनुसूचित और गैर-अनुसूचित उड़ानों को नियंत्रित करता है।
    • दुर्घटना जाँच और रोकथाम: विमानन दुर्घटनाओं और घटनाओं की जाँच करता है और सुरक्षा निवारक उपाय लागू करता है।
    • पर्यावरणीय विनियमन: ICAO अनुबंध 16 के अनुसार विमान की ध्वनि और इंजन उत्सर्जन की निगरानी करता है।
    • कानूनी और नीतिगत समर्थन: विमान नियम, नागरिक उड्डयन आवश्यकताओं (CARs) को अपडेट करता है और नए विमानन कानूनों का समर्थन करता है।

भारत के विमानन क्षेत्र की स्थिति क्या है?

  • वैश्विक रैंकिंग: अमेरिका और चीन के बाद भारत तीसरा सबसे बड़ा घरेलू विमानन बाज़ार है।
    • शहरीकरण, पर्यटन और मध्यम वर्ग के विस्तार के कारण यात्रियों की मांग बढ़ रही है।
  • यात्री यातायात वृद्धि: वर्ष 2040 तक यात्री यातायात छह गुना बढ़कर लगभग 1.1 बिलियन होने की आशा है।
  • आर्थिक योगदान: वर्ष 2025 तक, विमानन  7.7 मिलियन से अधिक नौकरियों (प्रत्यक्ष + अप्रत्यक्ष) का समर्थन करता है और भारत के सकल घरेलू उत्पाद में 1.5% का योगदान देता है।
  • फ्लीट स्ट्रेंथ: इंडियन फ्लीट की हिस्सेदारी कुल वैश्विक बेड़े का लगभग 2.4% है।
    • एयरलाइन विस्तार और नए विमान ऑर्डर के कारण फ्लीट का आकार तीव्रता से बढ़ा है।
  • हवाई अड्डा अवसंरचना विस्तार: परिचालन हवाई अड्डों की संख्या वर्ष 2014 में 74 से बढ़कर वर्ष 2025 में 163 हो गई। वर्ष 2047 तक, भारत का लक्ष्य 350-400 हवाई अड्डे निर्मित करना है।
  • ग्रीनफील्ड हवाई अड्डों एवं पीपीपी आधारित विकास पर विशेष ध्यान दिया जाएगा ।
  • भारतीय नागरिक उड्डयन विनियमन: 
    • एयर कॉर्पोरेशन एक्ट, 1953: नौ एयरलाइन कंपनियों का राष्ट्रीयकरण किया गया। 1990 के दशक के मध्य तक इस क्षेत्र में सरकारी स्वामित्व वाली एयरलाइनों का प्रभाव था।
    • ओपन स्काई पॉलिसी (1990-94): निजी एयर टैक्सी ऑपरेटरों को अनुमति दी गई। इंडियन एयरलाइंस (IA) और एयर इंडिया (AI) का एकाधिकार समाप्त किया गया ।
    • भारतीय वायुयान अधिनियम, 2024: यह औपनिवेशिक युग के विमान अधिनियम, 1934 का स्थान लेता है और भारत के विमानन कानूनों को ICAO मानकों और शिकागो कन्वेंशन के अनुरूप बनाता है।
      • यह विमानन विनिर्माण में मेक इन इंडिया तथा आत्मनिर्भर भारत को बढ़ावा देता है, सरलीकृत लाइसेंसिंग एवं नियामक प्रक्रियाओं को प्रस्तुत करता है, एक संरचित अपील तंत्र प्रदान करता है, और साथ ही भारत के समग्र विमानन प्रशासन ढाँचे का आधुनिकीकरण करता है।

भारत के विमानन क्षेत्र में प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?

  • पायलट एवं चालक दल की कमी: हवाई यातायात में तीव्र वृद्धि के कारण प्रशिक्षित पायलटों, केबिन-क्रू और रखरखाव कर्मचारियों की मांग और उपलब्धता के बीच असंतुलन उत्पन्न हो गया है।
    • FDTL जैसे नए सुरक्षा मानदंडों ने मानवशक्ति की आवश्यकताओं को और बढ़ा दिया है, जिसके कारण उड़ानें बार-बार रद्द हो रही हैं, देरी हो रही है और परिचालन संबंधी व्यवधान उत्पन्न हो रहे हैं, क्योंकि एयरलाइनों ने नई स्टाफिंग आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये पहले से पर्याप्त पायलटों को नियुक्त और प्रशिक्षित नहीं किया था।
  • हवाई अड्डे के बुनियादी ढाँचे में बाधाएँ: दिल्ली, मुंबई और बेंगलूरू जैसे प्रमुख हवाई अड्डे लगभग पूरी क्षमता से संचालित होते हैं, जिसके कारण रनवे पर भीड़भाड़, पार्किंग की कमी और हवाई क्षेत्र में भीड़भाड़ की स्थिति उत्पन्न हो जाती है, विशेष रूप से व्यस्त समय के दौरान।
  • उच्च परिचालन लागत: विमानन टर्बाइन ईंधन (ATF) की ऊँची कीमतों, डॉलर में विमान पट्टे की लागत और बढ़ते रखरखाव व्यय के कारण एयरलाइनों को भारी वित्तीय दबाव का सामना करना पड़ता है ।
  • आक्रामक क्षमता एवं समय-निर्धारण प्रथाएँ: एयरलाइंस प्रायः पर्याप्त बैकअप-क्रू या अतिरिक्त विमान के बिना महत्वाकांक्षी उड़ान कार्यक्रम की घोषणा करती हैं, जिससे व्यवधान के दौरान बड़े पैमाने पर उड़ानों के रद्द होने का जोखिम बढ़ जाता है।
  • यात्री संरक्षण एवं शिकायत निवारण: बड़े पैमाने पर व्यवधानों के दौरान, यात्रियों को खराब संचार, कमज़ोर मुआवज़ा तंत्र और सीमित कानूनी उपायों का सामना करना पड़ता है।
  • विदेशी विमानों एवं आपूर्ति शृंखलाओं पर निर्भरता: आयातित विमानों, इंजनों और स्पेयर पार्ट्स पर भारी निर्भरता के कारण इस क्षेत्र को वैश्विक आपूर्ति शृंखला में व्यवधान और मुद्रा अस्थिरता का सामना करना पड़ता है।
  • विनिमय दर में अस्थिरता: अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपये के मूल्य में गिरावट से एयरलाइनों की लागत बढ़ जाती है, क्योंकि विमान पट्टे और ईंधन आयात जैसे प्रमुख व्यय डॉलर में होते हैं।
  • विमानन सुरक्षा जोखिम: वर्ष 2025 में हाल ही में हुई दुर्घटनाएँ और बढ़ता यातायात सुरक्षा निरीक्षण और आपातकालीन प्रतिक्रिया पर चिंता को उजागर करता है।

भारत के विमानन क्षेत्र को मज़बूत बनाने के लिये क्या उपाय किये जा सकते हैं?

  • स्थिरीकरण के लिये अस्थायी नियामक राहत: DGCA ने इंडिगो को कुछ रात्रिकालीन परिचालनों से एक बार के लिये अस्थायी छूट प्रदान की है । इस अल्पकालिक राहत का उपयोग केवल परिचालन स्थिरीकरण के लिये किया जाना चाहिये, न कि दीर्घकालिक निर्भरता के लिये।
    • FDTL मानदंडों को कमज़ोर नहीं किया जाना चाहिये, क्योंकि थकान प्रबंधन विमानन सुरक्षा के लिये महत्त्वपूर्ण है।
  • परिचालन बफर्स ​​का निर्माण करना: व्यस्त मौसम और तकनीकी विफलताओं के दौरान व्यवधानों से निपटने के लिये स्टैंडबाय पायलट, रिज़र्व केबिन-क्रू और अतिरिक्त विमान बनाए रखें ।
  • यात्री संचार एवं मुआवज़े में सुधार: जनता का विश्वास बहाल करने के लिये वास्तविक समय अपडेट, स्वचालित रिफंड और मुआवज़ेको मज़बूत किया जाना चाहिये।
  • सतत विमानन को प्रोत्साहित करना: सस्टेनेबल एविएशन फ्यूल (SAF), ऊर्जा कुशल हवाई अड्डों को बढ़ावा देना, तथा कार्बन कटौती के लिये ICAO's की अंतर्राष्ट्रीय विमानन के लिए कार्बन ऑफसेटिंग और न्यूनीकरण योजना (CORSIA) के अनुपालन को बढ़ावा देना।
  • हवाई क्षेत्र आधुनिकीकरण: हवाई क्षेत्र के उपयोग को अनुकूलित करने और देरी को कम करने के लिये उन्नत-सतही आंदोलन मार्गदर्शन और नियंत्रण प्रणाली के साथ प्रस्तावित नागरिक हवाई यातायात प्रबंधन प्रणाली को शीघ्रता से लागू करना।

निष्कर्ष

इंडिगो संकट ने भारत के विमानन क्षेत्र में जनशक्ति नियोजन, बुनियादी ढाँचे की तैयारी और यात्री सुरक्षा में गंभीर कमियों को उजागर किया है। हालाँकि FDTL मानदंड सुरक्षा को प्राथमिकता देते हैं, लेकिन एयरलाइनों को चालक दल की क्षमता और परिचालन लचीलापन मज़बूत करना होगा। हवाई क्षेत्र के आधुनिकीकरण एवं सतत प्रथाओं के साथ, यह क्षेत्र अधिक सुरक्षित और स्थिर विकास सुनिश्चित कर सकता है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)

1. FDTL मानदंड क्या हैं?
FDTL (फ्लाइट ड्यूटी टाइम लिमिटेशन) मानदंड DGCA सुरक्षा नियम हैं जो पायलट ड्यूटी घंटे, उड़ान समय, रात्रि लैंडिंग और थकान को रोकने के लिये अनिवार्य आराम को विनियमित करते हैं।

2. संशोधित FDTL नियमों के अंतर्गत प्रमुख नए परिवर्तन क्या हैं?
साप्ताहिक विश्राम को बढ़ाकर 48 घंटे कर दिया गया, रात्रि लैंडिंग की संख्या 2 कर दी गई, लगातार 2 से अधिक रात्रि ड्यूटी नहीं की गई, तथा DGCA को अनिवार्य रूप से तिमाही थकान रिपोर्टिंग की गई।

3. भारत में DGCA की भूमिका क्या है?
DGCA, नागरिक उड्डयन मंत्रालय के अंतर्गत भारत का सर्वोच्च नागरिक उड्डयन नियामक है, जो हवाई सुरक्षा, लाइसेंसिंग, उड़ान योग्यता, उड़ान विनियमन और ICAO समन्वय के लिये उत्तरदायी है।

4. नागरिक विमानन में भारत की वर्तमान वैश्विक स्थिति क्या है?
भारत, अमेरिका और चीन के बाद तीसरा सबसे बड़ा घरेलू विमानन बाज़ार है और यहाँ 7.7 मिलियन से अधिक नौकरियाँ उपलब्ध हैं।

सारांश

  • इंडिगो ने संशोधित FDTL नियमों के लागू होने के बाद बड़े पैमाने पर उड़ानों रद्द करने का सामना किया, जिससे संसद में भी सवाल उठे और मानव संसाधन की कमी उजागर हुई।
  • नए नियम पायलटों के आराम पर बल देते हैं, रात में उड़ानों की संख्या को सीमित करते हैं और थकान की रिपोर्टिंग को अनिवार्य बनाते हैं, जिससे हवाई सुरक्षा बेहतर हो सके।
  • भारत का विमानन क्षेत्र तेजी से बढ़ रहा है, लेकिन इसे क्रू की कमी, उच्च लागत, बुनियादी ढाँचे में अड़चन और सुरक्षा जोखिम जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
  • यह संकट कड़े सुरक्षा नियमों, बेहतर क्रू योजना, सतत विमानन और वायु क्षेत्र आधुनिकीकरण की आवश्यकता को उजागर करता है।

यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)

मेन्स

प्रश्न. सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) मॉडल के अधीन संयुक्त उपक्रमों के माध्यम से भारत में विमान पत्तनों के विकास का परीक्षण कीजिये। इस संबंध में प्राधिकरणों के समक्ष कौन-सी चुनौतियाँ हैं? (2017)


NEP 2020: विद्यालय के स्तर पर नवाचार को प्रोत्साहन

प्रिलिम्स के लिये: राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 (NEP 2020), पीएम ई-विद्या, दीक्षा, लैंगिक समावेशन कोष, राष्ट्रीय मूल्यांकन केंद्र (परख), स्कूल नवाचार दूत प्रशिक्षण कार्यक्रम (SIATP), IPR, अटल न्यू इंडिया चैलेंज (ANIC)।   

मेन्स के लिये: राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 (NEP, 2020) और भारत में शिक्षा प्रणाली को बदलने में इसकी भूमिका, शिक्षा प्रणाली को बदलने के लिये भारत की प्रमुख पहल और इसके प्रभाव।

स्रोत: PIB

चर्चा में क्यों?

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 (NEP 2020) के तहत भारत की शिक्षा प्रणाली में व्यापक परिवर्तन के कारण सुर्खियाँ बटोर रही है। सरकार की पहल रटकर याद करने की ज्ञानार्जन की मूल पद्धति से हटकर पूछताछ-आधारित, अनुभवात्मक शिक्षा की ओर बढ़ रही है, जिससे छात्रों में रचनात्मकता, आलोचनात्मक सोच और नवाचार को बढ़ावा मिल रहा है।

NEP 2020 भारत में विद्यालय के स्तर को किस प्रकार बदल रहा है?

  • बहुविषयक शिक्षा: छात्रों के पास लचीले, बहुविषयक विकल्प होते हैं (जैसे, संगीत के साथ भौतिकी) और वे कक्षा 6 से ही व्यावसायिक प्रशिक्षण शुरू कर सकते हैं।
    • विभिन्न स्तरों पर कला, प्रौद्योगिकी और कौशल-आधारित शिक्षा का एकीकरण।
  • मूल्यांकन में सुधार: रटने की बजाय मूल क्षमताओं के आकलन पर जोर दिया गया है। 360-डिग्री समग्र प्रगति कार्ड अब संज्ञानात्मक, सामाजिक और भावनात्मक विकास की समग्र निगरानी करता है।
  • डिजिटल एकीकरण: पीएम ई-विद्या और दीक्षा जैसे डिजिटल प्लेटफॉर्म 25 करोड़ से अधिक छात्रों को वर्चुअल लैब, शिक्षक प्रशिक्षण और ऑनलाइन शिक्षा तक पहुँच प्रदान करते हैं।
  • समतामूलक और समावेशी शिक्षा: लैंगिक समावेशन कोष और विशेष शिक्षा क्षेत्र वंचित समूहों व क्षेत्रों को लक्षित सहायता प्रदान करेंगे। साथ ही, दिव्यांग बच्चों के लिये समर्पित संसाधन केंद्रों, सहायक प्रौद्योगिकियों और समावेशी शिक्षा को विशेष रूप से प्रोत्साहित किया जाएगा।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 क्या है?

  • NEP 2020 का उद्देश्य सभी शैक्षिक स्तरों पर  गुणवत्ता, समानता, पहुँच और सामर्थ्य से संबंधित चुनौतियों से निपटना है।
    • यह वर्ष 1986 की 34 वर्ष पुरानी NEP का स्थान लेती है, डॉ. के. कस्तूरीरंगन समिति (2019) की सिफारिशों पर आधारित है।
  • NEP 2020 संरचना: 5+3+3+4 संरचना प्रस्तुत की गई है, जिसमें आधारभूत वर्ष (आयु 3-8) 100% खेल-आधारित है।

  • प्रदर्शन मूल्यांकन: अब प्रत्येक पाठ्यपुस्तक, प्रश्नपत्र और कक्षा गतिविधि में केवल रटने की बजाय अनुप्रयोग और नवाचार के आकलन पर जोर दिया जाएगा।

मुख्य लक्ष्य:

मुख्य क्षेत्र

लक्ष्य / उद्देश्य

सार्वभौमिक विद्यालय नामांकन

वर्ष 2030 तक स्कूली शिक्षा (प्री-स्कूल से माध्यमिक) में 100% सकल नामांकन अनुपात (GER) प्राप्त करना।

विद्यालय से बाहर बच्चे

2 करोड़ विद्यालय से बाहर बच्चों को पुनः मुख्यधारा की शिक्षा प्रणाली से जोड़ना।

उच्च शिक्षा तक पहुँच

वर्ष 2035 तक 3.5 करोड़ नई सीटें जोड़कर उच्च शिक्षा में सकल नामांकन अनुपात (GER) को लगभग 27% से बढ़ाकर 50% तक पहुँचाना।

शिक्षक योग्यता

2030 तक सभी विद्यालय शिक्षकों के लिये 4-वर्षीय एकीकृत B.Ed. डिग्री को अनिवार्य न्यूनतम योग्यता के रूप में लागू करना।

संस्थागत स्वायत्तता

15 वर्षों के भीतर कॉलेज संबद्धता प्रणाली को समाप्त करना तथा सभी कॉलेजों को ग्रेडेड स्वायत्तता प्रदान करना।

महत्त्वपूर्ण पहल:

शिक्षा प्रणाली में परिवर्तन के लिये भारत की प्रमुख पहल क्या हैं?

  • अटल नवाचार मिशन (AIM): AIM, नीति आयोग द्वारा वर्ष 2016 में स्कूलों, कॉलेजों और स्टार्टअप्स में नवाचार और उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिये शुरू की गई एक प्रमुख पहल है। इसके प्रमुख घटक हैं:
    • अटल टिंकरिंग लैब्स (ATL): स्कूलों में स्थापित नवाचार प्रयोगशालाएँ, जहाँ 3D प्रिंटर, रोबोटिक्स किट और सेंसर जैसे आधुनिक उपकरण उपलब्ध कराए जाते हैं। इनसे अब तक 1.1 करोड़ से अधिक छात्र जुड़ चुके हैं।
    • अटल इन्क्यूबेशन सेंटर (AIC): 3,500 से अधिक स्टार्टअप्स को इनक्यूबेट करते हुए, मार्गदर्शन, सीड फंडिंग और बुनियादी ढाँचे के साथ स्टार्टअप्स को समर्थन प्रदान करना।
    • अटल सामुदायिक नवाचार केंद्र (ACIC): वंचित और पिछड़े क्षेत्रों में प्रौद्योगिकी आधारित नवाचार को बढ़ावा देना।
    • अटल न्यू इंडिया चुनौतियाँ (ANIC): राष्ट्रीय प्राथमिकताओं से जुड़े प्रौद्योगिकी-आधारित समाधानों को वित्तीय सहायता और मार्गदर्शन प्रदान करना।
  • SIC और SIATP: रचनात्मकता, डिज़ाइन सोच और उद्यमशीलता को बढ़ावा देने के लिये स्कूलों में स्कूल इनोवेशन काउंसिल (SIC) की स्थापना की गई है। गतिविधियों में नेतृत्व वार्ता, कार्यशालाएँ, क्षेत्र भ्रमण और डेमो दिवस शामिल हैं।
    • स्कूल इनोवेशन एम्बेसडर प्रशिक्षण कार्यक्रम (SIATP) शिक्षकों को डिज़ाइन थिंकिंग, IPR, उद्यमिता और परियोजना मार्गदर्शन में प्रशिक्षित करता है।
      • 72 घंटे से अधिक का गहन प्रशिक्षण, शिक्षकों को छात्रों को मार्गदर्शन देने और नवाचार-आधारित शिक्षाशास्त्र को लागू करने में सक्षम बनाता है।
  • इंस्पायर पुरस्कार - मानक: छात्रों को सामाजिक समस्याओं के समाधान हेतु विज्ञान और प्रौद्योगिकी समाधान प्रस्तावित करने के लिये प्रोत्साहित करता है।
    • शीर्ष नवाचारों को मार्गदर्शन, प्रोटोटाइप और राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त होते हैं, जिससे प्रारंभिक स्तर की उद्यमशीलता और समस्या-समाधान कौशल को बढ़ावा मिलता है।
  • स्कूल इनोवेशन मैराथन: छात्र विकसित भारत–2047 के दृष्टिकोण के अनुरूप वास्तविक जीवन की समस्याओं के समाधान पर कार्य करेंगे। इसके अंतर्गत डिज़ाइन थिंकिंग, रोबोटिक्स और बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR) पर कार्यशालाएँ भी आयोजित की जाएँगी।
  • विकसित भारत बिल्डथॉन 2025: वोकल फॉर लोकल, आत्मनिर्भर भारत और स्वदेशी जैसे विषयों पर कक्षा 6-12 के छात्रों के लिये राष्ट्रव्यापी हैकथॉन। 
    • इसका समापन 1 करोड़ रुपये के कुल पुरस्कार पूल से 1,000 से अधिक विजेताओं को पुरस्कार प्रदान किये जाने के साथ होगा।

शिक्षा नीति में नवाचार ने भारत में विद्यालय स्तर पर शिक्षा को किस प्रकार परिवर्तित किया है?

  • आलोचनात्मक सोच का संवर्द्धन: ATL, SIC और INSPIRE पुरस्कार–MANAK जैसे कार्यक्रम छात्रों में व्यावहारिक समस्या समाधान, डिज़ाइन थिंकिंग तथा STEM कौशल को विकसित और सशक्त बनाते हैं।
  • उद्यमशीलता को बढ़ावा देना: ATL स्टूडेंट इनोवेटर प्रोग्राम (SIP), अटल इनक्यूबेशन सेंटर (AIC) और अटल न्यू इंडिया चैलेंज (ANIC) के माध्यम से छात्रों को विचार निर्माण से लेकर प्रोटोटाइप विकास और स्टार्टअप स्थापना तक का व्यावहारिक अनुभव प्राप्त होता है।
  • राष्ट्रीय स्तर पर नवाचारों का विस्तार: हैकथॉन, इनोवेशन मैराथन और बिल्डथॉन राष्ट्रीय स्तर पर पहचान, मार्गदर्शन और वित्तीय सहायता के अवसर प्रदान करते हैं, जिससे स्कूल स्तर पर विकसित विचार प्रभावी समाधानों में परिवर्तित हो सकते हैं।
  • राष्ट्रीय लक्ष्यों के साथ संरेखण: ये पहल आत्मनिर्भरता (आत्मनिर्भर भारत), सतत् विकास और वर्ष 2047 की चुनौतियों के लिये तैयारी को सुदृढ़ करती हैं, जिससे भारत वैश्विक नवाचार केंद्र के रूप में उभरता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 का उद्देश्य भारत की शिक्षा प्रणाली को विषय-वस्तु (कंटेंट) आधारित मॉडल से दक्षता (कम्पिटेंसी) आधारित मॉडल में परिवर्तित करना है। इस शैक्षिक परिवर्तन को आगे बढ़ाने वाली प्रमुख पहलों की आलोचनात्मक समीक्षा कीजिये तथा नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा देने में उनके संभावित प्रभावों का परीक्षण कीजिये।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

1. NEP 2020 का मुख्य उद्देश्य क्या है?
NEP 2020 का उद्देश्य रटंत विद्या की जगह आलोचनात्मक सोच, रचनात्मकता और अनुभवात्मक अधिगम को बढ़ावा देना है तथा सभी स्कूली स्तरों पर STEM और व्यावसायिक कौशल को सुदृढ़ करना है।

2. अटल टिंकरिंग लैब्स (ATLs) क्या हैं?
ATL स्कूलों में स्थापित मेकरस्पेस हैं, जहाँ 3D प्रिंटर, रोबोटिक्स किट जैसे उपकरण उपलब्ध कराए जाते हैं, ताकि छात्रों में नवाचार, डिज़ाइन थिंकिंग और व्यावहारिक STEM कौशल विकसित किये जा सकें।

3. INSPIRE पुरस्कार – MANAK योजना क्या है?
यह योजना छात्रों को सामाजिक समस्याओं के समाधान हेतु विज्ञान और प्रौद्योगिकी आधारित विचार प्रस्तुत करने के लिये प्रोत्साहित करती है तथा प्रारंभिक चरण के उद्यमशीलता को बढ़ावा देने हेतु मार्गदर्शन, प्रोटोटाइप निर्माण और राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कार प्रदान करती है।

सारांश

  • NEP 2020 खेल-आधारित, अनुभवात्मक और नवाचार-केंद्रित शिक्षा को बढ़ावा देती है, जिससे रटंत सीखने की जगह आलोचनात्मक सोच और रचनात्मकता को प्राथमिकता दी जाती है।
  • अटल इनोवेशन मिशन (AIM) और ATLs STEM, उद्यमशीलता और डिज़ाइन थिंकिंग को विकसित करते हैं, जिनमें 1.1 करोड़ से अधिक छात्र शामिल हैं।
  • SICs, SIATP, INSPIRE Awards और राष्ट्रीय हैकथॉन जैसी योजनाएँ नवाचार को बढ़ावा देती हैं, छात्रों को मार्गदर्शन प्रदान करती हैं और आत्मनिर्भरता को सशक्त बनाती हैं।
  • डिजिटल प्लेटफॉर्म जैसे PM e-VIDYA और DIKSHA पूरे देश में शिक्षा की पहुँच, सततता और समावेशी भागीदारी सुनिश्चित करते हैं, जिससे भारत की बदलती शिक्षा प्रणाली सभी के लिये सुलभ और समावेशी बनती है।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

मेन्स:

प्रश्न. राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 धारणीय विकास लक्ष्य-4 (2030) के साथ अनुरूपता में है। उसका ध्येय भारत में शिक्षा प्रणाली की पुनःसंरचना और पुनःस्थापना है। इस कथन का समालोचनात्मक निरीक्षण कीजिये। (उत्तर 250 शब्दों में दीजिये) (2020)


आक्रामक विदेशी पादप प्रजातियों से खतरा

स्रोत: डाउन टू अर्थ

चर्चा में क्यों?

नेचर सस्टेनेबिलिटी के एक अध्ययन के अनुसार, आक्रामक विदेशी पादप प्रतिवर्ष भारत के 15,500 वर्ग किलोमीटर प्राकृतिक क्षेत्रों में फैल रहे हैं, जिससे 60 वर्षों में 8.3 लाख करोड़ रुपये का आर्थिक नुकसान हो रहा है और पारितंत्र, वन्यजीव, कृषि तथा ग्रामीण आजीविकाएँ खतरे में पड़ रही हैं।

आक्रामक विदेशी पादप प्रजातियाँ क्या होती हैं?

  • परिचय: आक्रामक पादप प्रजातियाँ वे गैर-स्थानीय पादप/पौधे हैं जिन्हें जानबूझकर या अनजाने में किसी पारितंत्र में लाया जाता है, जहाँ ये स्थानीय प्रजातियों से प्रतिस्पर्द्धा करते हैं और आर्थिक, पर्यावरणीय या मानव स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं।
    • आक्रमणों की गति बढ़ रही है, जिसका कारण जलवायु परिवर्तन, भूमि उपयोग में बदलाव, परिवर्तित आग के पैटर्न, मिट्टी की नमी में बदलाव, पशुपालन की चराई की आदतें और जैव विविधता में ह्रास हैं।
  • भारत में आक्रामक पादप प्रजातियाँ: प्रमुख आक्रमणकारी पौधों में लैंटाना कैमरा, क्रोमोलाइना ओडोराटा और प्रोसोपिस जुलिफ्लोरा शामिल हैं।
    • ये आक्रमण प्रजातियाँ भारत के 2,66,954 वर्ग किलोमीटर प्राकृतिक आवासों में फैले हुए हैं।
  • उच्च-जोखिम क्षेत्र: इसमें शिवालिक–तेराई बेल्ट, पूर्वोत्तर का डुआर क्षेत्र, अरावली, दंडकारण्य के वन, और पश्चिमी घाट में नीलगिरी शामिल हैं।
    • सूखे घास के मैदान, सवाना, शोलाघास के मैदान और गंगा–ब्रह्मपुत्र के किनारे के दलदली मैदानी इलाके जैसे खुले पारितंत्र तेज़ी से फैलने वाले आक्रामक पादपों के लिये सबसे संवेदनशील हैं।
  • आक्रामक विदेशी प्रजातियाँ भारत के प्राकृतिक पारितंत्रों को बदल रही हैं
    • जैव विविधता ह्रास: आक्रामक पौधे स्थानीय वनस्पतियों से प्रतिस्पर्द्धा करते हैं, जिससे पारितंत्र की एकरूपता, मिट्टी का क्षरण और व्यापक पारिस्थितिकी व्यवधान होता है।
      • जैसे-जैसे स्थानीय पौधों की संख्या घटती है, शाकाहारी अपने प्राकृतिक खाद्य स्रोत खो देते हैं, जिससे शिकारियों को भी शिकार की कमी के कारण स्थानांतरित होना पड़ता है।
    • पशुपालन: आक्रामण से पशुओं के जीवन के लिये आवश्यक चारे और चरागाह की उपलब्धता कम हो जाती है।
    • मानव: आक्रामक प्रजातियाँ चारा, ईंधन और उपजाऊ भूमि तक पहुँच को कम करती हैं, जिससे ग्रामीण आजीविकाओं को सीधे नुकसान होता है।
      • ये श्वसन संबंधी समस्याओं जैसे स्वास्थ्य मुद्दों को भी बढ़ाते हैं और आय व संसाधन सुरक्षा को कमज़ोर करके गरीबी को गहरा करते हैं।
      • वर्ष 2022 तक 1.44 करोड़ लोग, 27.9 लाख पशु और 2 लाख वर्ग किलोमीटर छोटे किसान की खेती आक्रामक प्रजातियों के प्रभाव में थे, जो पारिस्थितिकी तथा आजीविका जोखिम की गंभीरता को दर्शाता है।

Invasive_Alien_Species

भारत में आक्रामक प्रजातियों के प्रबंधन की चुनौतियाँ और उपाय क्या हैं?

          चुनौतियाँ

                आवश्यक उपाय

भारत में आक्रामक प्रजातियों के लिये कोई समर्पित राष्ट्रीय मिशन या केंद्रीय प्राधिकरण नहीं है।

स्पष्ट नेतृत्व और अधिकारों के साथ राष्ट्रीय आक्रामक प्रजाति मिशन (National Invasive Species Mission) स्थापित किया जाएँ। आक्रामक प्रजाति नियंत्रण को जलवायु अनुकूलन, जलग्रहण प्रबंधन और पुनर्स्थापन कार्यक्रमों में शामिल किया जाएँ।

एकीकृत राष्ट्रीय डाटाबेस या दीर्घकालिक निगरानी प्रणाली की कमी है।

केंद्रीकृत GIS-आधारित डाटाबेस, प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली और राष्ट्रीय स्तर का मॉनिटरिंग नेटवर्क विकसित किया जाएँ।

कमज़ोर क्वारंटाइन और बायो-सिक्योरिटी सिस्टम के कारण नई आक्रामक प्रजातियाँ लगातार प्रवेश करती रहती हैं।

पौधों, बीजों एवं मृदा के आयात के लिये  क्वारंटाइन स्क्रीनिंग, सीमा-बायो-सिक्योरिटी, और आयात नियमों को मज़बूत किया जाएँ।

प्रजाति-विशिष्ट नियंत्रण विधियों और दीर्घकालिक पारिस्थितिकी पुनर्प्राप्ति पर सीमित वैज्ञानिक शोध।

इकोलॉजिकल मॉडलिंग, जैव-नियंत्रण और पुनर्स्थापन विज्ञान के लिये शोध निधि बढ़ाई जाएँ।

हाथ से की जाने वाली निकासी महंगी, श्रम-सघन और बिना पुनर्स्थापन के प्राय: अप्रभावी होती है।

समुदाय-आधारित हटाने के प्रयासों को बढ़ावा, मशीनरी सहायता और बायोफ्यूल उत्पादन जैसे सतत उपयोग के विकल्प विकसित किये जाएँ।

हटाए गए क्षेत्रों का पुनर्स्थापन नहीं होता, जिससे आक्रामक प्रजातियाँ जल्दी लौट आती हैं।

पुन: आक्रमण रोकने के लिये देशज (स्थानीय) घासों और झाड़ियों का सक्रिय पुनर्स्थापन सुनिश्चित किया जाएँ।

निष्कर्ष

भारत में तेज़ी से फैल रही आक्रामक वनस्पति जैव विविधता, आजीविकाओं और पारिस्थितिक स्वास्थ्य के लिये गंभीर खतरा बन रही है, जिसके लिये त्वरित राष्ट्रीय कार्रवाई आवश्यक है। दीर्घकालिक पारिस्थितिक अनुकूलन सुनिश्चित करने के लिये एक समन्वित मिशन अनिवार्य है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. आक्रामक विदेशी प्रजातियाँ प्रणालीगत पर्यावरणीय कुप्रबंधन का परिणाम हैं। इनके प्रसार के कारक तथा पारिस्थितिक प्रभावों का विश्लेषण कीजिये।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

1. आक्रामक विदेशी प्रजातियाँ क्या हैं?
वे गैर-स्थानीय पौधे हैं जिन्हें जानबूझकर या अनजाने में किसी नए क्षेत्र में लाया गया होता है। ये वहाँ स्थापित होकर तेज़ी से फैलते हैं और स्थानीय प्रजातियों से प्रतिस्पर्द्धा करके उन्हें पीछे छोड़ देते हैं, जिससे पारिस्थितिक तंत्र, अर्थव्यवस्था या मानव स्वास्थ्य को नुकसान पहुँचता है।

2. अब आक्रमण तेज़ी से क्यों बढ़ रहे हैं?
इसके कारणों में जलवायु परिवर्तन, भूमि उपयोग में बदलाव, अग्नि चक्र में परिवर्तन, मृदा की नमी में बदलाव और पशुधन की बढ़ी हुई चराई शामिल हैं। ये सभी कारक मिलकर आक्रामक प्रजातियों के लिये अनुकूल परिस्थितियाँ उत्पन्न करते हैं।

3. आक्रामक प्रजातियों पर नियंत्रण हेतु कौन‑से उपाय आवश्यक हैं?
एक राष्ट्रीय आक्रामक प्रजाति मिशन की स्थापना, एक केंद्रीय GIS डाटाबेस और प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली का विकास, क्वारंटाइन/बायो-सिक्योरिटी को मज़बूत करना, प्रजाति-विशिष्ट अनुसंधान को वित्तपोषित करना तथा समुदाय की भागीदारी के साथ पुनर्स्थापन को प्राथमिकता देना आवश्यक है।

सारांश

  • नेचर सस्टेनेबिलिटी के एक अध्ययन से पता चलता है कि भारत के प्राकृतिक क्षेत्रों में प्रतिवर्ष लगभग 15,500 वर्ग किमी में आक्रामक विदेशी पौधों का प्रसार हो रहा है, जो पारिस्थितिक तंत्र और आजीविकाओं पर गंभीर प्रभाव डाल रहा है।
  • लैंटाना कैमरा, क्रोमोलेना ओडोराटा और प्रोसोपिस जूलीफ्लोरा जैसी प्रजातियाँ अब बड़े आवासों पर हावी हो चुकी हैं, जिससे 2,66,954 वर्ग किमी प्राकृतिक क्षेत्र प्रभावित हुआ है।
  • वर्ष 2022 तक, इन आक्रामक प्रजातियों के प्रसार के कारण 144 मिलियन लोग, 2.79 मिलियन पशुधन और 2 लाख वर्ग किमी कृषि भूमि पारिस्थितिक एवं आर्थिक जोखिमों के संपर्क में आ गए थे।
  • कमज़ोर बायो-सिक्योरिटी, खराब निगरानी और राष्ट्रीय स्तर पर किसी व्यापक मिशन की अनुपस्थिति नियंत्रण प्रयासों में बाधा बन रही है, जो जैव विविधता तथा ग्रामीण समुदायों की रक्षा के लिये एक समन्वित रणनीति की आवश्यकता को रेखांकित करती है।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)

मेन्स:

प्रश्न. भारत में जैव विविधता किस प्रकार अलग-अलग पाई जाती है? वनस्पतिजात और प्राणिजात के संरक्षण में जैव विविधता अधिनियम, 2002 किस प्रकार सहायक है? (2018)


RBI द्वारा 'गोल्डीलॉक्स फेज़' को बनाए रखने हेतु रेपो रेट में कटौती

स्रोत: ET

चर्चा में क्यों?

भारतीय रिज़र्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति (Monetary Policy Committee- MPC) ने रेपो रेट में 25 बेसिस पॉइंट्स की कटौती की है, जिससे यह 5.25% हो गया है। यह वर्ष 2025 में कुल 125 bps की कटौती है। RBI ने मौजूदा आर्थिक स्थिति को ‘गोल्डीलॉक्स फेज़’ बताया है - जिसमें निम्न मुद्रास्फीति और मज़बूत GDP वृद्धि है।

शामिल है।

अर्थव्यवस्था में 'गोल्डीलॉक्स फेज़' क्या है?

  • परिचय: अर्थव्यवस्था में गोल्डीलॉक्स फेज़ एक ऐसी स्थिति को संदर्भित करता है, जहाँ अर्थव्यवस्था पूरी तरह से संतुलित होती है - वृद्धि मज़]बूत और सतत होती है, लेकिन इतना ज़्यादा नहीं कि अर्थव्यवस्था अति-उत्साहित (Overheating) हो जाए। मुद्रास्फीति (Inflation) कम और स्थिर बनी रहती है, जिससे न तो कमज़ोर मांग या अपस्फीति (Deflationary) के जोखिम की आशंका होती है।
    • दिसंबर 2025 में, RBI गवर्नर ने भारत की अर्थव्यवस्था को "रेयर गोल्डीलॉक्स फेज़" कहा, क्योंकि 2025-26 की दूसरी तिमाही (जुलाई-सितंबर) में वृद्धि दर 8.2% थी, जबकि मुद्रास्फीति दूसरी तिमाही में औसतन 1.7% थी तथा अक्तूबर, 2025 में  घटकर 0.3% हो गई।
  • महत्त्व: गोल्डीलॉक्स फेज़ में, केंद्रीय बैंकों के पास प्रायः अधिक गतिशीलता की आशंका होती है- वे विकास को बढ़ावा देने के लिये दरों को लंबे समय तक कम रख सकते हैं, या (जैसा कि भारत के मामले में है) अनुकूल चक्र को बढ़ाने के लिये दरों में कटौती कर सकते हैं।
    • यह एक अस्थायी आदर्श अवधि है जिसे नीति निर्माता संरक्षित करने और बढ़ाने का प्रयास करते हैं।

RBI द्वारा रेपो रेट में कटौती के प्रमुख कारक क्या हैं?

  • सतत अवमुद्रास्फीति: मुद्रास्फीति में तेजी से गिरावट आई, वर्ष 2025-26 की दूसरी तिमाही में औसतन 1.7% तथा अक्तूबर, 2025 में घटकर 0.3% हो गई, जो RBI के निचले टॉलरेंस बैंड (4% ± 2%) से काफी नीचे है। 
    • मूल्य दबाव में इस गिरावट ने RBI के लिये अर्थव्यवस्था को अधिक प्रभावित किये बिना ब्याज दरों में कटौती करने हेतु नीतिगत आशंका उत्पन्न कर दी।
    • लचीली मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण (FIT) व्यवस्था के अंतर्गत पहली बार हेडलाइन मुद्रास्फीति 2% के निम्न स्तर से नीचे आ गई।
  • भारत का गोल्डीलॉक्स फेज़: दूसरी तिमाही में वृद्धि दर 8.2% पर मजबूत रही, जबकि मुद्रास्फीति 2.2% रही, जिससे सतत आर्थिक विकास के लिये आदर्श समष्टि आर्थिक स्थितियाँ निर्मित हुईं।
    • RBI ने इस अनुकूल अवधि को बनाए रखने और घरेलू मांग का समर्थन करने के लिये दरें कम कीं।
  • बाहरी चुनौतियों का संतुलन: कमजोर वैश्विक व्यापार, अस्थिर बाज़ार और भू-राजनीतिक जोखिम भारत के निर्यात और निवेश को प्रभावित कर रहे थे। 
    • दर में कटौती का उद्देश्य इन बाहरी दबावों के खिलाफ घरेलू मांग को बढ़ाकर अर्थव्यवस्था को संरक्षण प्रदान करना था।
  • विकास की गति को समर्थन: दर में कटौती का उद्देश्य त्यौहारी सीजन में मांग, GST सुधारों के प्रभाव और समग्र घरेलू खपत को बढ़ावा देकर इस अनुकूल समष्टि आर्थिक स्थितियाँ में विकास को प्रोत्साहित करना है।

रेपो रेट

  • रेपो रेट (पुनर्खरीद समझौता दर) वह ब्याज दर है जिस पर वाणिज्यिक बैंक केंद्रीय बैंक से धन ऋण लेते हैं ।
  • कार्यप्रणाली: इसमें बैंकों को अल्पकालिक तरलता की ज़रूरत पूरी करने के लिये धन ऋण लेने की सुविधा मिलती है, जिसमें प्रतिभूतियों को संपार्श्विक के रूप में रखा जाता है और बाद में उन्हें ब्याज सहित उच्च मूल्य पर पुनःखरीदा जाता है।
  • ऋण लागत पर प्रभाव: उच्च रेपो रेट से ऋण लेने की लागत बढ़ती है तथा क्रेडिट प्रवाह धीमा हो जाता है, जबकि कम रेपो रेट से उधार लेने की लागत कम हो जाती है।
  • मौद्रिक नीति में भूमिका: केंद्रीय बैंक रेपो रेट के माध्यम से मुद्रा आपूर्ति, मुद्रास्फीति और आर्थिक विकास को नियंत्रित करता है।

लचीला मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण

  • लचीला मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण (FIT): FIT एक मौद्रिक नीति ढाँचा है, जिसमें केंद्रीय बैंक का उद्देश्य एक निश्चित मध्यम अवधि के मुद्रास्फीति लक्ष्य को प्राप्त करना होता है, साथ ही अल्पकालिक उत्पादन और रोज़गार की स्थिरीकरण आवश्यकताओं के लिये लचीलापन बनाए रखा जाता है।
  • प्राथमिक अधिदेश: FIT का प्राथमिक अधिदेश एक सार्वजनिक रूप से घोषित, विशिष्ट मुद्रास्फीति लक्ष्य है, जिसे आमतौर पर एक बिंदु या सीमा के रूप में व्यक्त किया जाता है। 
    • उदाहरण के लिए: भारत में, RBI का लक्ष्य उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) आधारित मुद्रास्फीति को 4% पर बनाए रखना है, जो ±2% यानी 2% से 6% के बैंड के भीतर रहता है।
  • व्यापार-चक्र प्रबंधन: FIT औपचारिक रूप से अल्पकालिक व्यापार-चक्र को स्वीकार करता है, ताकि केंद्रीय बैंक मुद्रास्फीति को मुख्य नाममात्र मानक के रूप में रखते हुए विकास का समर्थन कर सके और इन दोनों उद्देश्यों के बीच संतुलन स्थापित कर सके।

भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा रेपो रेट में कटौती के भारतीय अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव हो सकते हैं?

  • आर्थिक विकास को बढ़ावा: कम ब्याज दरें ऋण लागत को घटाती हैं, बैंकिंग ऋण को बढ़ावा देती हैं, खपत को प्रोत्साहित करती हैं और व्यवसायों के पूंजीगत व्यय में निवेश को उत्साहित करती हैं।
  • मुद्रास्फीति का दबाव: यदि वस्तुओं और सेवाओं की आपूर्ति सीमित है तो बढ़ी हुई तरलता मांग-जनित मुद्रास्फीति को बढ़ा सकती है, RBI की कटौती इस विश्वास को दर्शाती है कि मुद्रास्फीति 2–6% के लक्ष्य बैंड के भीतर बनी रहेगी।
  • बाहरी क्षेत्र की परिस्थितियाँ: कम ब्याज दरों से निवेश आकर्षण घट सकता है, जिससे रुपया कमज़ोर हो सकता है; यह निर्यात प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ाता है लेकिन आयात लागत को बढ़ाकर व्यापार घाटा का जोखिम उत्पन्न करता है।
  • बचत पर प्रभाव: कम ब्याज दरें सावधि जमा और लघु बचत पर रिटर्न को घटाती हैं, जिससे घरेलू परिवारों द्वारा बचत करने की प्रवृत्ति कम हो सकती है।

MPC

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: भारत के हालिया आर्थिक आँकड़ों के संदर्भ में, मुद्रास्फीति नियंत्रण और आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करने के बीच संतुलन बनाने में मौद्रिक नीति समिति (MPC) की भूमिका पर चर्चा कीजिये।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

1. रेपो रेट क्या है?
रेपो रेट वह ब्याज दर है जिस पर वाणिज्यिक बैंक अपनी अल्पकालिक तरलता आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये RBI से ऋण लेते हैं

2. अर्थशास्त्र में गोल्डीलॉक्स मोमेंट क्या है?
एक ऐसा अवधि जिसमें विकास मज़बूत होता है और मुद्रास्फीति कम होती है, जिससे नीति निर्माता अर्थव्यवस्था का समर्थन करने के लिये लचीलापन रखते हैं बिना अधिक गर्म होने के जोखिम के।

3. लचीली मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण (FIT) कैसे काम करता है:
FIT एक मध्यम अवधि के लिये मुद्रास्फीति लक्ष्य तय करता है, जबकि अल्पकालिक झटकों के दौरान वृद्धि और रोजगार का समर्थन करने हेतु विवेक का उपयोग करने की अनुमति देता है।

सारांश

  • RBI ने रेपो रेट में 25 आधार अंक की कटौती कर 5.25% कर दी, यह बताते हुए कि अर्थव्यवस्था एक असाधारण 'गोल्डीलॉक्स' फेस में है, जिसमें वृद्धि (~8%) मज़बूत है और मुद्रास्फीति असामान्य रूप से कम (2% से नीचे) है।
  • यह निर्णय लगातार मुद्रास्फीति में गिरावट के कारण संभव हुआ, जिसने लचीली मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण (FIT) ढाँचे के तहत नीति बनाने की सुविधा प्रदान की।
  • इस रणनीतिक कटौती का उद्देश्य घरेलू मांग को मज़बूत करना और अनुकूल परिस्थितियों को बनाए रखना है साथ ही वैश्विक अनिश्चितताओं से अर्थव्यवस्था को पहले से ही सुरक्षा प्रदान करना है।
  • यह वृद्धि बनाए रखने और मूल्य स्थिरता के बीच संतुलन बनाने के लिये एक समायोजित कदम को दर्शाता है, जो वर्तमान मैक्रोइकॉनॉमिक गति को सुरक्षित करने हेतु RBI के दायरे में उपलब्ध लचीलापन का उपयोग करता है।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न(PYQs)

प्रिलिम्स

प्रश्न. मौद्रिक नीति समिति (MPC) के संबंध में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2017)

  1. यह आरबीआई की बेंचमार्क ब्याज दरों को तय करती है।
  2. यह आरबीआई के गवर्नर सहित 12 सदस्यीय निकाय है जिसका प्रतिवर्ष पुनर्गठन किया जाता है।
  3. यह केंद्रीय वित्त मंत्री की अध्यक्षता में कार्य करती है।

निम्नलिखित कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये :

(a) केवल 1

(b) केवल 1 और 2

(c) केवल 3

(d) केवल 2 और 3


उत्तर: (a)

प्रश्न. यदि भारतीय रिज़र्व बैंक एक विस्तारवादी मौद्रिक नीति अपनाने का निर्णय लेता है, तो वह निम्नलिखित में से क्या नहीं करेगा? (2020)

  1. वैधानिक तरलता अनुपात में कटौती और अनुकूलन
  2.  सीमांत स्थायी सुविधा दर में बढ़ोतरी 
  3. बैंक रेट और रेपो रेट में कटौती

निम्नलिखित कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2

(b) केवल 2

(c) केवल 1 और 3

(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (b)


Mains

प्रश्न.1 संभावित सकल घरेलू उत्पाद (GDP) क्या है। इसके निर्धारकों की चर्चा कीजिये। उन कारकों का भी उल्लेख कीजिये जो भारत को अपनी संभावित सकल घरेलू उत्पाद प्राप्त करने में बाधा डालते हैं। (250 शब्द)  (2020)  

प्रश्न: क्या आप इस बात से सहमत हैं कि स्थिर जीडीपी वृद्धि और कम मुद्रास्फीति ने भारतीय अर्थव्यवस्था को अच्छी स्थिति में रखा है? अपने तर्कों के समर्थन में कारण बताइये। (2019)