भारत स्वच्छ ऊर्जा संक्रमण में अग्रणी | 15 Nov 2025

यह एडिटोरियल 10/11/2025 को द हिंदू बिज़नेस लाइन में प्रकाशित Gauging the costs for clean energy transition पर आधारित है। इस लेख में उभरती अर्थव्यवस्थाओं के लिये स्वच्छ ऊर्जा संक्रमण की सामर्थ्य को दर्शाया गया है, जिसके लिये वर्ष 2030 तक केवल 121 अरब डॉलर की आवश्यकता है। भारत सौर, पवन और बैटरी की लागत में तेज़ी से गिरावट के बीच नवीकरणीय ऊर्जा को अपनी क्षमता के 63% तक बढ़ाने के लिये 57 अरब डॉलर के साथ अग्रणी है।

प्रिलिम्स के लिये: भारत का स्वच्छ ऊर्जा संक्रमण, भारत की COP26 प्रतिबद्धता, अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी, नेशनल ग्रीन हाइड्रोजन मिशन, अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन, उत्पादन-आधारित प्रोत्साहन (PLI) योजना, ग्रीन बॉण्ड, महत्त्वपूर्ण खनिज, SDG 7 (सस्ती और प्रदूषण-मुक्त ऊर्जा) 

मेन्स के लिये: नवीकरणीय ऊर्जा की ओर भारत के संक्रमण में प्रमुख उपलब्धि, भारत के नवीकरणीय ऊर्जा संक्रमण में बाधा डालने वाली प्रमुख चुनौतियाँ। 

एक नए अध्ययन से पता चलता है कि उभरती अर्थव्यवस्थाओं के लिये स्वच्छ ऊर्जा संक्रमण पहले की तुलना में कहीं अधिक किफायती है। वर्षव 2024 और 2030 के दौरान, नौ प्रमुख G20 उभरते बाज़ारों को विद्युत उत्पादन के लिये जलवायु वित्त में केवल 121 अरब डॉलर की आवश्यकता होगी, जो सामान्य निवेश से केवल अतिरिक्त लागत है। भारत इस परिवर्तन में अग्रणी है, जहाँ नवीकरणीय ऊर्जा की स्थापित क्षमता का हिस्सा 45% से बढ़ाकर 63% करने के लिये 57 अरब डॉलर की जलवायु वित्त आवश्यकता अनुमानित है। वर्ष 2010 के बाद से सौर, पवन और बैटरी भंडारण की लागत में क्रमशः 83%, 42% एवं 90% की भारी गिरावट ने इस परिवर्तन को आर्थिक रूप से व्यवहार्य बना दिया है। विशेष रूप से भारत के लिये, जहाँ जीवाश्म ईंधन ऊर्जा निवेश में 43 अरब डॉलर की कमी आएगी, वहीं नवीकरणीय ऊर्जा पर खर्च में 90 अरब डॉलर की वृद्धि होनी चाहिये, जिससे यह देश हरित ऊर्जा क्रांति में अग्रणी स्थान पर होगा और उभरती अर्थव्यवस्थाओं में जलवायु वित्त की आवश्यकता सबसे अधिक होगी। 

नवीकरणीय ऊर्जा की ओर भारत के संक्रमण में प्रमुख उपलब्धि क्या हैं? 

  • समय से पहले गैर-जीवाश्म ईंधन क्षमता लक्ष्य को पार करना: भारत ने अपनी स्थापित बिजली उत्पादन क्षमता का 50% गैर-जीवाश्म ईंधन स्रोतों से प्राप्त करने की COP26 प्रतिबद्धता पहले ही प्राप्त कर ली है, जो असाधारण नीतिगत प्रभावशीलता और तीव्र कार्यान्वयन को दर्शाता है। 
    • यह प्रारंभिक उपलब्धि ऊर्जा वृद्धि को कार्बन-गहन स्रोतों से अलग करने को दर्शाती है, जिससे भारत के नेट-ज़ीरो 2070 के मार्ग में वैश्विक विश्वास सुदृढ़ होता है और आगामी महत्त्वाकांक्षी स्वच्छ ऊर्जा लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायता मिलती है। 
    • सितंबर 2025 तक, स्थापित गैर-जीवाश्म क्षमता 250 गीगावाट को पार कर गई है, जो देश की कुल बिजली क्षमता के 50% से अधिक का प्रतिनिधित्व करती है और वर्ष 2030 के लक्ष्य को पाँच वर्ष पहले ही सफलतापूर्वक पूरा कर लिया है। 
  • सौर क्षमता और विनिर्माण विकास में वैश्विक नेतृत्व: सौर ऊर्जा ऊर्जा संक्रमण का केंद्रीय स्तंभ है और भारत बड़े पैमाने पर क्षमता वृद्धि एवं घरेलू विनिर्माण समर्थन के माध्यम से स्वयं को एक वैश्विक सौर ऊर्जा केंद्र के रूप में स्थापित कर रहा है। 
    • राष्ट्रीय योजनाओं की सफलता और रिवर्स ऑक्शन द्वारा संचालित कम टैरिफ, सौर ऊर्जा को नए बिजली उत्पादन का सबसे अधिक लागत-प्रतिस्पर्द्धी एवं तेज़ी से उपयोग में लाया जा सकने वाला स्रोत बनाते हैं, जिससे आयातित ईंधन की आवश्यकता कम हो जाती है। 
    • भारत की संचयी सौर क्षमता लगभग 130 गीगावाट (अक्तूबर 2025 तक) तक पहुँच गई है और उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) योजना के कारण घरेलू सौर मॉड्यूल निर्माण क्षमता वित्त वर्ष 2024-25 में 38 गीगावाट से लगभग दोगुनी होकर 74 गीगावाट हो गई है। 
  • राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन (NGHM) का शुभारंभ: राष्ट्रीय ग्रीन हाइड्रोजन मिशन का शुभारंभ उर्वरक, शोधन और भारी उद्योगों जैसे कठिन औद्योगिक क्षेत्रों को कार्बन मुक्त करने की दिशा में भारत के कदम को दर्शाता है, ताकि देश की संपूर्ण अर्थव्यवस्था धीरे-धीरे स्वच्छ और न्यूनतम-कार्बन वाली बन सके।
    • यह मिशन हरित हाइड्रोजन उत्पादन और उपयोग के लिये एक व्यापक पारिस्थितिकी तंत्र स्थापित करता है, जिससे भारत हरित हाइड्रोजन निर्यात के लिये एक संभावित वैश्विक केंद्र के रूप में स्थापित होता है, जो दीर्घकालिक ऊर्जा सुरक्षा के लिये महत्त्वपूर्ण है। 
    • मिशन का लक्ष्य वर्ष 2030 तक कम से कम 5 मिलियन मीट्रिक टन (MMT) प्रति वर्ष हरित हाइड्रोजन उत्पादन क्षमता विकसित करना है, जिससे कुल ₹8 लाख करोड़ से अधिक का निवेश आकर्षित होने की उम्मीद है। 
  • रूफटॉप सौर योजनाओं के माध्यम से नवीकरणीय ऊर्जा का विकेंद्रीकरण: एक बड़ा बदलाव बिजली उत्पादन के लोकतंत्रीकरण पर ध्यान केंद्रित करना है, जो बड़े उपयोगिता-स्तरीय परियोजनाओं से आगे बढ़कर घरों एवं किसानों को स्वच्छ ऊर्जा के उत्पादक के रूप में सशक्त बनाना है। 
    • विकेंद्रीकृत सौर ऊर्जा, विशेष रूप से रूफटॉप और कृषि पंपिंग को व्यापक रूप से अपनाने से ट्रांसमिशन घाटे में उल्लेखनीय कमी आती है, ग्रिड की अनुकूलनशीलता बढ़ता है, और उपभोक्ताओं के बिजली बिलों पर सीधा प्रभाव पड़ता है। 
    • फरवरी 2024 में ₹75,021 करोड़ के परिव्यय के साथ शुरू की गई प्रधानमंत्री सूर्य घर: मुफ्त बिजली योजना का लक्ष्य एक करोड़ घरों में रूफटॉप सौर ऊर्जा स्थापित करना है। 
  • ऊर्जा भंडारण के लिये वित्तीय प्रोत्साहन: सौर और पवन ऊर्जा की अस्थायी चुनौती को समझते हुए, सरकार ने चौबीसों घंटे (RTC) विश्वसनीय विद्युत आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिये बैटरी ऊर्जा भंडारण प्रणालियों (BESS) और पंप भंडारण परियोजनाओं (PSP) सहित ऊर्जा भंडारण को प्राथमिकता दी है। 
    • वर्तमान लागत अंतर को पाटने, भंडारण परियोजनाओं को व्यवहार्य बनाने और ग्रिड में परिवर्तनीय नवीकरणीय ऊर्जा की व्यापक पैठ को सुगम बनाने के लिये लक्षित वित्तीय तंत्रों की शुरुआत आवश्यक है। 
    • कैबिनेट ने सितंबर 2023 में BESS के लिये व्यवहार्यता अंतर निधि (VGF) योजना को स्वीकृति दी है, जिसमें 4,000 मेगावाट घंटे की BESS परियोजनाओं के विकास के लिये प्रारंभिक आवंटन शामिल है। 
  • अपतटीय पवन ऊर्जा के क्षेत्र में आगे बढ़ना: नवीकरणीय ऊर्जा मिश्रण में विविधता लाने और विशाल अप्रयुक्त क्षमता का दोहन करने के लिये, भारत रणनीतिक रूप से अपतटीय पवन ऊर्जा के उच्च-क्षमता कारक, उच्च-लागत वाले क्षेत्र में आगे बढ़ रहा है, जिसके लिये पर्याप्त सरकारी समर्थन की आवश्यकता है। 
    • यह अग्रणी कदम स्वच्छ ऊर्जा के लिये एक नया मार्ग प्रशस्त करता है, विशेष रूप से गुजरात और तमिलनाडु के तटों पर और साथ ही बड़े टर्बाइनों एवं संरचनाओं के लिये एक नई घरेलू विनिर्माण तथा आपूर्ति शृंखला को उत्प्रेरित करता है। 
    • सरकार ने हाल ही में भारत की पहली 1 गीगावाट अपतटीय पवन परियोजनाओं के लिये ₹7,453 करोड़ की VGF योजना को मंजूरी दी है, जिसका लक्ष्य वर्ष 2030 तक 30 गीगावाट की क्षमता प्राप्त करना है। 

भारत के नवीकरणीय ऊर्जा संक्रमण में बाधा डालने वाली प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं? 

  • कम भंडारण क्षमता के कारण ग्रिड अस्थिरता और कटौती: मुख्य चुनौती सौर और पवन ऊर्जा की अनियमित आपूर्ति है, जो पर्याप्त ग्रिड-स्तरीय ऊर्जा भंडारण की कमी एवं पारंपरिक कोयला बिजली संयंत्रों की अनुकूलनशीलता की कमी के कारण गंभीर रूप से सीमित है। 
    • दिन के समय उपलब्ध बिजली आपूर्ति और शाम के समय चरम माँग के बीच यह असंगति, ऑपरेटरों को स्वच्छ ऊर्जा में कटौती करने या उसे व्यर्थ जाने देने के लिये बाध्य करती है, जिससे नये परियोजनाओं की आर्थिक व्यवहार्यता कमज़ोर होती है तथा चरम घंटों में जीवाश्म ईंधन के उपयोग की आवश्यकता उत्पन्न हो जाती है। 
    • नवीनतम आँकड़े दर्शाते हैं कि वर्ष 2025 के उत्तरार्द्ध में कुछ क्षेत्रों में सौर ऊर्जा कटौती दरें 12% तक पहुँच गयीं और कुछ दिनों में 40% तक सौर उत्पादन को अतिरिक्त आपूर्ति के कारण ग्रिड तक पहुँचने से वंचित कर दिया गया, जो इस तथ्य को प्रमाणित करता है कि क्षमता-वृद्धि की गति ग्रिड-तैयारी से अधिक है।  
  • व्यापक प्रतिपक्षीय जोखिम और DISCOM का वित्तीय संकट: राज्य के स्वामित्व वाली वितरण कंपनियों (DISCOM) की वित्तीय स्थिति, नवीकरणीय ऊर्जा डेवलपर्स के लिये सबसे बड़ा ऋण जोखिम है, जो खरीदी गई बिजली के भुगतान में विलंब से उत्पन्न होता है। 
    • इनकी दुर्बल वित्तीय स्थिति उच्च संचरण एवं वितरण (T&D) हानियों, अप्रभावी बिलिंग/संग्रह क्षमता तथा रियायती दरों के कारण न वसूल हो पाने वाली लागतों से उत्पन्न होती है जिससे स्वच्छ ऊर्जा परियोजनाओं के लिये ऋण की कुल लागत बढ़ जाती है। 
    • साथ ही, कई वितरण कंपनियों को व्यवहार्य क्रेडिट रेटिंग प्राप्त करने के लिये 8 से 17 महीने के भुगतान समर्थन की आवश्यकता होती है। 
  • आयातित घटकों और कच्चे माल पर गहरी निर्भरता: महत्त्वाकांक्षी 'मेक इन इंडिया' और PLI योजनाओं के बावजूद, नवीकरणीय ऊर्जा आपूर्ति शृंखला (विशेष रूप से सौर एवं बैटरी भंडारण के लिये) महत्त्वपूर्ण अपस्ट्रीम घटकों तथा महत्त्वपूर्ण खनिजों के लिये आयात पर अत्यधिक निर्भर है। 
    • यह आयात निर्भरता इस क्षेत्र को भू-राजनीतिक जोखिमों, मुद्रा में उतार-चढ़ाव और वैश्विक आपूर्ति शृंखला व्यवधानों के प्रति संवेदनशील बनाती है, जिससे ऊर्जा संप्रभुता के दीर्घकालिक लक्ष्य को खतरा होता है। 
    • CEEW के अनुसार, भारत सोलर मॉड्यूल और लिथियम-आयन बैटरियों के आयात पर बहुत अधिक निर्भर है तथा वर्ष 2023 में चीन से होने वाले बैटरी आयात का लगभग 80% हिस्सा आयात होगा। 
  • व्यापक और किफायती जलवायु वित्त जुटाने की आवश्यकता: इस बदलाव के लिये भारी संचयी निवेश की आवश्यकता है और घरेलू वित्तीय पारिस्थितिकी तंत्र, ग्रीन बॉन्ड जैसे सकारात्मक कदमों के बावजूद, अभी भी ग्रीन हाइड्रोजन एवं अपतटीय पवन जैसी पूंजी-गहन, उच्च-जोखिम वाली, उभरती प्रौद्योगिकियों के लिये आवश्यक गहन व दीर्घकालिक, कम लागत वाली पूंजी का अभाव है। 
    • नवीन मिश्रित वित्त और जोखिम-साझाकरण तंत्र के बिना, पूंजी की लागत उच्च बनी रहेगी, जिससे यह बदलाव योजना से कहीं अधिक महंगा हो जाएगा। 
    • अपने नेट-ज़ीरो 2070 लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये, भारत को अनुमानतः 10 ट्रिलियन डॉलर के संचयी निवेश की आवश्यकता होगी, फिर भी इसे लगभग 3.5 ट्रिलियन डॉलर के विशाल दीर्घकालिक वित्तपोषण अंतर का सामना करना पड़ रहा है जिसे बाह्य एवं नवीन पूंजी द्वारा समाप्त करना होगा। 
  • राज्यों में नियामक और संविदात्मक विसंगतियाँ: नवीकरणीय ऊर्जा कार्यढाँचा प्रायः राज्य स्तर पर असंगत नीति कार्यान्वयन और पूर्वव्यापी परिवर्तनों के कारण बाधित होता है, जिससे निवेशकों एवं डेवलपर्स के लिये महत्त्वपूर्ण नियामक अनिश्चितता उत्पन्न होती है। 
    • कटौती मुआवज़ा, भूमि अधिग्रहण नियम और ग्रीन ओपन एक्सेस कार्यान्वयन जैसे क्षेत्रों में अस्पष्टताएँ लंबे कानूनी विवादों को जन्म देती हैं तथा अत्यंत आवश्यक दीर्घकालिक निजी निवेश को बाधित करती हैं। 
    • हालिया रिपोर्टों से पता चलता है कि नवीकरणीय ऊर्जा कार्यान्वयन एजेंसियों ने 43 गीगावाट से अधिक क्षमता के लिये पुरस्कार पत्र (LoAs) जारी किये हैं, जबकि अंतिम खरीदारों के साथ बिजली बिक्री समझौते (PSA) पर हस्ताक्षर नहीं हुए हैं, जो बाज़ार में विसंगति एवं परियोजना निष्पादन के संबंध में अनिश्चितता को दर्शाता है। 
  • भूमि अधिग्रहण संबंधी चिंताएँ और जीवन-काल के अंत में अपशिष्ट प्रबंधन: उपयोगिता-स्तरीय नवीकरणीय ऊर्जा में परिवर्तन अत्यधिक भूमि-प्रधान है, जिससे भूमि उपयोग को लेकर अपरिहार्य संघर्ष उत्पन्न होते हैं– जिसके परिणामस्वरूप प्रायः समुदायों का विस्थापन, चरागाह/कृषि भूमि का विचलन और विवादास्पद भूमि अधिग्रहण प्रक्रियाएँ होती हैं जो अपर्याप्त मुआवज़े, सहमति एवं पारदर्शिता के मुद्दे उठाती हैं। 
    • इसके अलावा, पुराने सौर पैनलों और बैटरियों से निकलने वाले ई-अपशिष्ट के प्रबंधन की भविष्य की चुनौती एक खतरनाक पर्यावरणीय बम है जिसके लिये भविष्य में पारिस्थितिक क्षति से बचने के लिये राष्ट्रीय पुनर्चक्रण अवसंरचना का तत्काल विस्तार आवश्यक है। 
    • अंतर्राष्ट्रीय नवीकरणीय ऊर्जा एजेंसी (IRENA) के अनुसार, भारत वर्तमान में लगभग 1,00,000 टन सौर अपशिष्ट उत्पन्न करता है, लेकिन वर्ष 2030 तक यह आँकड़ा बढ़कर 6,00,000 टन हो सकता है। 
  • कुशल हरित कार्यबल की गंभीर कमी और प्रशिक्षण में असंतुलन: ‘हरित रोज़गार’ के वादे के बावजूद, इस क्षेत्र का तेज़ी से विस्तार एक महत्त्वपूर्ण कौशल अंतराल और शैक्षणिक पाठ्यक्रम तथा अत्याधुनिक उद्योग आवश्यकताओं के बीच असंतुलन के कारण गंभीर रूप से बाधित है। 
    • यह कमी अत्यधिक विशिष्ट विनिर्माण और अनुसंधान एवं विकास भूमिकाओं से लेकर बुनियादी परियोजना स्थापना और अनुरक्षण तक, हर चीज़ को प्रभावित करती है, जिससे परियोजना में विलंब होता है तथा परिचालन दक्षता कम हो जाती है। 
    • भारत को वर्ष 2030 तक नवीकरणीय क्षेत्र में 12 लाख कुशल श्रमिकों की गंभीर कमी का सामना करना पड़ सकता है, जिसका सीधा असर परियोजना की समयसीमा और लागत पर पड़ेगा। 
  • क्षेत्रीय असमानताएँ और ऊर्जा अभिगम्यता: स्वच्छ ऊर्जा संक्रमण के दौरान कुछ क्षेत्रों को अन्य क्षेत्रों की तुलना में कहीं अधिक सामाजिक और आर्थिक प्रभावों का सामना करना पड़ेगा। 
    • उदाहरण के लिये, झारखंड, छत्तीसगढ़ और ओडिशा जैसे कोयले पर निर्भर राज्यों में रोज़गार छिन सकता है तथा राजस्व में गिरावट आ सकती है, जबकि राजस्थान, गुजरात व तमिलनाडु जैसे नवीकरणीय ऊर्जा-समृद्ध राज्यों को बढ़े हुए निवेश एवं हरित रोज़गार से लाभ होगा। 
    • यह असमान वितरण राष्ट्रीय स्तर पर न्यायसंगत और संतुलित परिवर्तन सुनिश्चित करने के लक्ष्य को जटिल बनाता है। 
  • डेटा गवर्नेंस की खामियाँ और पारदर्शिता: ऊर्जा क्षेत्र के अपर्याप्त, असंगत या विलंबित आँकड़े सूचित नीति-निर्माण को गंभीर रूप से सीमित करते हैं तथा कुशल बाज़ार कार्यप्रणाली को कमज़ोर करते हैं। 
    • उत्पादन, भंडारण, पारेषण क्षमता और राज्य-स्तरीय परिवर्तन प्रगति पर वास्तविक काल सत्यापित आँकड़ों का अभाव उत्तरदायित्व को कम करता है, निवेशकों के विश्वास को कमज़ोर करता है और साक्ष्य-आधारित हस्तक्षेपों को डिज़ाइन करने की क्षमता को सीमित करता है। 
    • इसके अलावा, मानकीकरण और विस्तृत जानकारी का अभाव ‘ग्रीनवाशिंग’ के लिये अनुकूल स्थिति प्रदान करता है, जलवायु प्रतिबद्धताओं की विश्वसनीयता को कमज़ोर करता है तथा पोर्टफोलियो-व्यापी पर्यावरणीय, सामाजिक एवं शासन (ESG) जोखिम का सटीक आकलन करने की कोशिश कर रहे निवेशकों के लिये उचित परिश्रम की लागत को बढ़ाता है।

भारत नवीकरणीय ऊर्जा संक्रमण को त्वरित गति देने के लिये क्या कदम उठा सकता है? 

  • वितरण कंपनियों (DISCOM) के लिये प्रदर्शन-आधारित वित्तीय अनुशासन लागू करना: वितरण कंपनियों (DISCOM) की वित्तीय व्यवहार्यता को एक अपरक्राम्य प्रदर्शन-आधारित वित्तपोषण मॉडल के माध्यम से सुरक्षित किया जाना चाहिये, जो पिछली बेलआउट विफलताओं से अलग हो। 
    • यह उपाय केंद्र सरकार की वित्तीय सहायता (जैसे RDSS) को एग्रीगेट टेक्निकल एंड कमर्शियल (AT&C) हानियों में ठोस तथा मापनीय कमी, पूर्ण लागत-परावर्तक टैरिफ निर्धारण तथा सब्सिडियों के अनिवार्य ‘DBT’ के साथ सख्ती से जोड़ने की आवश्यकता पर बल देता है। 
    • यह प्रावधान हानि-न्यूनन लक्ष्यों के वास्तविक-काल डिजिटल पर्यवेक्षण को अनिवार्य बनाता है तथा LPS नियमों के सख्त प्रवर्तन के माध्यम से उत्पादक कंपनियों (GENCO) को समयबद्ध भुगतान सुनिश्चित करता है, जिससे निजी निवेशकों के लिये प्रतिपक्षीय जोखिम में महत्त्वपूर्ण कमी आती है। 
  • राष्ट्रीय ग्रिड अनुकूलनशीलता बाज़ार और भंडारण अधिदेश स्थापित करना: ग्रिड अनुकूलनशीलता और ऊर्जा भंडारण को सौर और पवन परियोजनाओं के मात्र सहायक घटक के बजाय एक स्वतंत्र, आवश्यक सेवा के रूप में देखें, ताकि त्वरित परिनियोजन को प्रोत्साहित किया जा सके और रुकावटों का प्रबंधन किया जा सके। 
    • यह उपाय त्वरित-प्रतिक्रिया संसाधनों और डायनेमिक डिस्पैच के लिये एक बाज़ार-तंत्र की स्थापना की माँग करता है, जो बैटरी ऊर्जा भंडारण प्रणालियों (BESS), पम्प्ड स्टोरेज परियोजनाओं (PSP) तथा गैस-पीकर संयंत्रों द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाओं का पूर्ण मूल्यांकन सुनिश्चित करे। 
    • यह कदम केंद्रीय विद्युत नियामक आयोग (CERC) द्वारा एक राष्ट्रीय ऊर्जा भंडारण दायित्व (NESO) रूपरेखा जारी करने से सम्बद्ध है, जो वर्तमान नवीकरणीय क्रय दायित्व (RPO) प्रणाली का स्थान लेगी तथा ऐसे लक्ष्य निर्धारित करेगी जिनमें राउंड-द-क्लॉक (RTC) विद्युत के लिये आवश्यक MWh भंडारण क्षमता को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया जाये। 
  • ग्रीन हाइड्रोजन माँग सृजन अधिदेश शुरू करना: महत्त्वाकांक्षी ग्रीन हाइड्रोजन मिशन को साकार करने के लिये, सरकार को प्रमुख उच्च-कार्बन उद्योगों में मिश्रण कोटा अनिवार्य करके रणनीतिक रूप से मुख्य माँग सृजित करनी चाहिये, जिससे बड़े पैमाने पर परियोजना वित्तपोषण के लिये आवश्यक महत्त्वपूर्ण उन्नयन निश्चितता प्रदान हो सके।
    • यह नीति संकेत बड़े पैमाने पर इलेक्ट्रोलाइज़र निर्माण और डाउनस्ट्रीम बुनियादी अवसंरचना में शुरुआती निवेशों के जोखिम को कम करता है और गारंटीकृत पैमाने की अर्थव्यवस्थाओं के माध्यम से लागत में कमी के वक्र को तीव्र करता है। 
    • यह उपाय 'हार्ड-टु-अबेट' केंद्रीय क्षेत्रों के लिये अनिवार्य ग्रीन हाइड्रोजन उपभोग-कोटा अधिसूचित करने से संबंधित है, जिसकी शुरुआत उर्वरक उत्पादन, पेट्रोलियम रिफाइनिंग और इस्पात से की जायेगी, साथ ही प्रारंभिक व्यावसायिक-स्तर के ग्रीन अमोनिया निर्यात संयंत्रों के लिये विशेष रूप से लक्षित वायबिलिटी गैप फंडिंग (VGF) योजनाओं का प्रावधान किया जायेगा। 
  • वर्चुअल नेट मीटरिंग और विकेंद्रीकृत ऊर्जा व्यापार को सक्षम करना: छत पर सौर ऊर्जा विकास को व्यक्तिगत घरों की स्थापना से समुदाय-व्यापी, वर्चुअल मॉडल में परिवर्तित करने की आवश्यकता है ताकि छत पर भौतिक सीमाओं को दूर किया जा सके और शहरी क्षेत्रों में वितरित उत्पादन की क्षमता का पूरा लाभ उठाया जा सके। 
    • इसके लिये एक इकाई या सहकारी समितियों के स्वामित्व वाले कई स्थानों पर पीयर-टू-पीयर (P2P) ऊर्जा व्यापार और वर्चुअल नेट मीटरिंग (VNM) के लिये सक्षम नियामक कार्यढाँचे की आवश्यकता है। 
    • इस उपाय में विद्युत मंत्रालय (MoP) द्वारा ग्रीन ओपन एक्सेस नियमों में संशोधन करके वाणिज्यिक और आवासीय परिसरों के लिये समेकित VNM की अनुमति दी जानी चाहिये, भूमि-बाधित संस्थाओं को ऑफ-साइट या साझा सामुदायिक सौर परियोजनाओं में निवेश करने के लिये प्रोत्साहित किया जाना चाहिये, जिससे शहरी अंगीकरण की दर में भारी वृद्धि होगी। 
  • नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्रों के लिये एकल-खिड़की मेगा-साइट मंज़ूरियाँ बनाएँ: भूमि अधिग्रहण, राइट-ऑफ-वे (ROW) और अंतर-राज्यीय ट्रांसमिशन मंज़ूरियों में लंबे समय से हो रही विलंब कार्यान्वयन में सबसे बड़ी बाधा बनी हुई है, जिससे अनुमति प्रक्रिया का व्यापक सरलीकरण आवश्यक हो गया है। 
    • राष्ट्रीय स्तर पर महत्त्वपूर्ण परियोजनाओं के लिये एक समर्पित, त्वरित तंत्र निविदा आवंटन से लेकर कमीशनिंग तक के समय को कम करेगा, जिससे परियोजना निष्पादन समय-सीमा में उल्लेखनीय रूप से सुधार होगा। 
    • इस उपाय में पूर्व-मंजूरी प्राप्त भूमि बैंकों, पूर्व-अनुमोदित पर्यावरणीय परमिटों और केंद्र एवं राज्य प्रतिनिधियों वाले एकल परियोजना मंज़ूरी बोर्ड के साथ ‘नवीकरणीय ऊर्जा निवेश क्षेत्र (REIZ)’ की स्थापना शामिल है, जिससे औसत परियोजना अनुमोदन चक्र 18 महीनों से कम होकर 6 महीने से भी कम हो जाएगा। 
  • विशिष्ट हरित प्रौद्योगिकी संस्थानों के माध्यम से मानव पूंजी का कौशल विकास: वर्तमान इंजीनियरिंग और व्यावसायिक प्रशिक्षण पाइपलाइन अत्यधिक तकनीकी, अगली पीढ़ी की नवीकरणीय प्रौद्योगिकियों जैसे उच्च दक्षता वाले TOPCon सेल, बड़े पैमाने पर BESS परिनियोजन एवं अपतटीय पवन ऊर्जा अनुरक्षण की माँगों के लिये अपर्याप्त है। 
    • निरंतर विकास और वास्तविक आत्मनिर्भरता (आत्मनिर्भर भारत) के लिये एक विशिष्ट कार्यबल तैयार करने हेतु एक समन्वित राष्ट्रीय प्रयास आवश्यक है। 
    • इस उपाय में उद्योग जगत के अभिकर्त्ताओं के साथ साझेदारी में उत्कृष्टता केंद्र (CoE) बनाने के लिये एक राष्ट्रीय हरित कौशल विकास मिशन शुरू करना शामिल है, जो इलेक्ट्रिक वाहन (EV) चार्जिंग अवसंरचना, हरित हाइड्रोजन संयंत्र संचालन एवं उन्नत मीटरिंग अवसंरचना (AMI) परिनियोजन और डेटा विश्लेषण पर केंद्रित होगा। 
  • मौजूदा कोयला बिजली बेड़े में रेट्रोफिट फ्लेक्सिबिलिटी को अनिवार्य करना: तत्काल पूर्ण उपयोग-निवृत्ति के बजाय ग्रिड स्थिरता के लिये अधिक किफायती और तात्कालिक रणनीति यह है कि वर्तमान कोयला-आधारित विद्युत् संयंत्र बेड़े में तकनीकी रेट्रोफिट (जैसे बॉयलर में संशोधन) अनिवार्य किये जाने चाहिये ताकि संयंत्र लचीले रूप से संचालित हो सकें और ‘टू-शिफ्ट साइक्लिंग’ क्षमता प्राप्त कर सकें। 
    • इससे यह सुनिश्चित होता है कि पारंपरिक संयंत्र उच्च परिवर्तनशील नवीकरणीय ऊर्जा (RE) के प्रवेश को समर्थन देने के लिये तेज़ी से बढ़ व घट सकते हैं तथा प्रभावी रूप से सिंथेटिक ऊर्जा भंडारण समाधान के रूप में कार्य कर सकते हैं जब तक कि BESS की लागत में और कमी न आ जाए। 
    • इस उपाय में केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (CEA) द्वारा नए तकनीकी मानक जारी करना शामिल है, जिनके अनुसार 15 वर्ष से अधिक पुराने सभी ताप विद्युत-उत्पादन संयंत्रों के लिये अनुकूल परिचालन को अनिवार्य बनाया जायेगा। जो संयंत्र न्यूनतम 'रैम्प रेट' को पूरा नहीं करेंगे उन्हें दंडित किया जायेगा और जो संयंत्र तीव्र 'पार्ट-लोड' परिचालन करने में सक्षम होंगे उन्हें प्रोत्साहन दिया जायेगा। 
  • विभिन्न क्षेत्रों में जैव ऊर्जा परिनियोजन में तीव्रता: जैव ऊर्जा अपशिष्ट प्रबंधन समाधान और स्वच्छ ऊर्जा दोनों प्रदान करती है। भारत निम्नलिखित तरीकों से विस्तार कर सकता है: 
    • कृषि अवशेषों (जैसे, फसल के पराली) और नगरपालिका के ठोस अपशिष्ट को ऊर्जा में रूपांतरित करना, जिससे बिजली उत्पादन करते समय प्रदूषण कम हो। 
    • सड़क परिवहन को कार्बन मुक्त करने के लिये इथेनॉल और बायोडीज़ल जैसे तरल जैव ईंधन का उत्पादन करना। 
    • वाहनों, नौ-वहन और विमानन में उपयोग के लिये SATAT जैसी पहलों के तहत संपीड़ित बायोगैस (CBG) जैसे गैसीय जैव ईंधन का विस्तार करना।  
      • यह चक्रीय अर्थव्यवस्था के लक्ष्यों का समर्थन करता है और जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम करता है। 
  • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और सीमा-पार ऊर्जा सहयोग को गहन करना: वैश्विक मंचों पर भारत के नेतृत्व को और अधिक बढ़ाया जाना चाहिये: 
    • अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA), मिशन इनोवेशन और G20 के दौरान भारत के जलवायु नेतृत्व ने भारत को हरित प्रौद्योगिकी एवं वित्त के प्रदाता तथा प्राप्तकर्ता, दोनों के रूप में स्थापित किया है। 
    • ASEAN, SAARC, BIMSTEC के साथ क्षेत्रीय बिजली व्यापार को सुदृढ़ किया जाना चाहिये और मध्य पूर्व के साथ उभरती हरित हाइड्रोजन साझेदारियों को मज़बूत किया जाना चाहिये। 
    • बहुपक्षीय सहयोग के माध्यम से संयुक्त अनुसंधान एवं विकास, बैटरी भंडारण नवाचार और कम लागत वाले वित्त को बढ़ावा दिया जाना चाहिये। इससे प्रौद्योगिकी प्रसार में तेज़ी आती है और वित्तपोषण लागत कम होती है। 
  • सामुदायिक भागीदारी और लैंगिक समावेशन को बढ़ावा देना: जन-केंद्रित परिवर्तन दीर्घकालिक सफलता सुनिश्चित करता है। इसमें शामिल हैं: सामुदायिक स्वामित्व मॉडल, स्थानीय सहकारी समितियाँ और सौर एवं पवन परियोजनाओं के लिये राजस्व-साझाकरण कार्यढाँचे। 
    • लिंग-केंद्रित हस्तक्षेप जो महिलाओं की कार्यबल भागीदारी, नेतृत्वकारी भूमिकाएँ और हरित आजीविका के अवसरों तक अभिगम्यता बढ़ाते हैं। 
    • ऐसे उपाय विश्वास का निर्माण करते हैं, अंगीकरण की दरों में सुधार करते हैं और ऊर्जा संक्रमण को सामाजिक रूप से संधारणीय बनाते हैं। 
  • न्यायसंगत परिवर्तन की ओर: भारत को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि कोयले पर निर्भर राज्य और कमज़ोर श्रमिक पीछे न छूटें। इसमें शामिल हैं: कोयला क्षेत्र के श्रमिकों का पुनः कौशल विकास और पुनर्नियोजन, राज्य अर्थव्यवस्थाओं में विविधता लाना (जैसे: झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा)। 
    • न्यायसंगत परिवर्तन के बिना, तेज़ बदलाव सामाजिक प्रतिरोध को जन्म दे सकते हैं और क्षेत्रीय असमानताओं को बढ़ा सकते हैं। 
    • यहाँ तक कि अच्छी नीयत वाली नीतियाँ (जैसे कि E20 ईंधन नीति या दिल्ली की वाहन कबाड़ नीति) पर भी पर्याप्त तैयारी, आपूर्ति-शृंखला की तैयारी या जन जागरूकता के बिना लागू किये जाने पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने का जोखिम रहता है। 
      • भारत को आजीविका और गतिशीलता को बाधित होने से बचाने के लिये चरणबद्ध कार्यान्वयन, हितधारकों के साथ परामर्श, बुनियादी अवसंरचना की तैयारी तथा सामर्थ्य संबंधी सुरक्षा उपाय सुनिश्चित करने होंगे। 

निष्कर्ष:

भारत का नवीकरणीय ऊर्जा संक्रमण तकनीकी प्रगति, सुदृढ़ नीतिगत समर्थन और घटती लागतों के कारण एक निर्णायक मोड़ पर है। फिर भी, इसकी पूरी क्षमता को साकार करने के लिये वित्तीय नवाचार, संस्थागत सुधार और ग्रिड आधुनिकीकरण की आवश्यकता है। इस रूपांतरण को तीव्र करने से न केवल ऊर्जा स्वतंत्रता सुनिश्चित होगी, बल्कि हरित रोज़गार और समावेशी विकास भी उत्पन्न होगा। SDG 7 (सस्ती और प्रदूषण-मुक्त ऊर्जा), SDG 9 (उद्योग, नवाचार एवं बुनियादी सुविधाएँ), SDG 13 (जलवायु परिवर्तन कार्रवाई) और SDG 12 (उत्तरदायित्वपूर्ण खपत और उत्पादन) के अनुरूप, भारत का परिवर्तन एक सतत् एवं समुत्थानशील भविष्य की ओर ले जाने वाला मार्ग दर्शाता है। 

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. “भारत का नवीकरणीय ऊर्जा संक्रमण केवल एक पर्यावरणीय अनिवार्यता ही नहीं, बल्कि एक आर्थिक अवसर भी है।” अब तक हुई प्रगति और एक स्थायी ऊर्जा भविष्य प्राप्त करने के लिये आवश्यक चुनौतियों पर चर्चा कीजिये। 

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)

प्रिलिम्स

प्रश्न 1. भारतीय अक्षय ऊर्जा विकास एजेंसी लिमिटेड (IREDA) के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं? (2015)

  1. यह एक पब्लिक लिमिटेड सरकारी कंपनी है। 
  2. यह एक गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: 

(a) केवल 1 

(b) केवल 2 

(c) 1 और 2 दोनों 

(d) न तो 1 और न ही 2 

उत्तर: (c)


मेन्स 

प्रश्न 1. “वहनीय (ऐफोर्डेबल), विश्वसनीय, धारणीय तथा आधुनिक ऊर्जा तक पहुँच संधारणीय (सस्टेनबल) विकास लक्ष्यों (एस.डी.जी.) को प्राप्त करने के लिये अनिवार्य है।” भारत में इस संबंध में हुई प्रगति पर टिप्पणी कीजिये।  (2018)