भारी धातु प्रदूषण को कम करने में स्पंज की भूमिका
भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा किये गए एक हालिया अध्ययन में सुंदरबन डेल्टा में पाए जाने वाले ताजे पानी के स्पंजों को भारी धातु प्रदूषण का पता लगाने और उसे कम करने के प्राकृतिक साधन के रूप में पहचाना गया है, जो जैव-संकेतक (बायोइंडिकेटर) और जैव-उपचार (बायोरेमेडिएशन) के कारक के रूप में उनकी दोहरी क्षमता को उजागर करता है।
सारांश
- सुंदरबन में पाए जाने वाले ताजे पानी के स्पंज भारी धातुओं को जैव-संचित (bioaccumulate) करने की असाधारण क्षमता दिखाते हैं, जिससे वे विश्वसनीय जैव-संकेतक (बायोइंडिकेटर) बनते हैं।
- प्रदूषण की पहचान और जैव-उपचार में उनकी दोहरी भूमिका विषैली धातु प्रदूषण के प्रबंधन के लिये एक टिकाऊ, पारिस्थितिकी-आधारित दृष्टिकोण प्रदान करती है।
स्पंज क्या होते हैं?
- परिचय: स्पंज सरल, जलीय प्राणी है जो पोरिफेरा (Porifera) संघ से संबंधित होते हैं। ये पृथ्वी पर पाए जाने वाले सबसे प्राचीन और आदिम बहुकोशिकीय जीवों में से हैं, जिनका जीवाश्म रिकॉर्ड 60 करोड़ वर्ष से भी अधिक पुराना है।
- स्पंज की मुख्य विशेषताएँ:
- वास्तविक ऊतकों या अंगों का अभाव: इनमें तंत्रिका तंत्र, मांसपेशियाँ या पाचन तंत्र जैसी जटिल शरीर प्रणालियाँ नहीं होतीं।
- फिल्टर-फीडिंग तंत्र: ये अपने शरीर की सतह पर मौजूद अनेक छिद्रों (ओस्टिया) के माध्यम से पानी को खींचते हैं। कोआनोसाइट्स (कॉलर कोशिकाएँ) नामक विशेष कोशिकाएँ पानी से बैक्टीरिया, प्लव्कजन और जैविक कणों को फँसाकर ग्रहण करती हैं, फिर यह ऑस्कुला के माध्यम से बाहर निकाल दिया जाता है।
- कंकाल: इनमें खनिज स्पिक्यूल्स (जैसे सिलिका, कैल्शियम कार्बोनेट) और/या स्पोंजिन नामक रेशेदार प्रोटीन से बना सरल कंकाल होता है।
- आवास: अधिकांश स्पंज समुद्री वातावरण में पाए जाते हैं, लेकिन कुछ प्रजातियाँ ताजे पानी में भी रहती हैं (जैसे सुंदरबन में अध्ययन की गई प्रजातियाँ)।
- सहजीवी संबंध: स्पंज विभिन्न सूक्ष्मजीव समुदायों (बैक्टीरिया, आर्किया) का आवास होते हैं, जो पोषण, रासायनिक सुरक्षा और हालिया शोध के अनुसार जैव-उपचार (बायोरिमेडिएशन) में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
- भारी धातु प्रदूषण को कम करने में भूमिका: स्पॉन्ज विषैले धातुओं जैसे आर्सेनिक, सीसा और कैडमियम को अपने अंदर जमा करने में सक्षम होते हैं, और ये धातुएँ आसपास के पानी की तुलना में कहीं अधिक केंद्रित हो जाती हैं। स्पॉन्ज इन धातुओं को अपनी सतह से चिपकाकर या अपने छिद्रयुक्त संरचना में फँसा कर निकालते हैं।
भारी धातुएँ क्या हैं?
- परिचय: भारी धातु ऐसे तत्त्वों का समूह हैं जिनका परमाणु भार और घनत्व अधिक होता है, सामान्यतः 5 g/cm³ से अधिक। भारी धातुओं के सामान्य उदाहरण हैं— सीसा (Pb), आर्सेनिक (As), कैडमियम (Cd) आदि।
- विशेषताएँ:
- विषाक्तता: ये बहुत कम मात्रा में भी हानिकारक होती हैं और जीवित जीवों में जमा होकर विषाक्तता या अन्य स्वास्थ्य समस्याएँ उत्पन्न कर सकती हैं।
- स्थायित्व: कई भारी धातुएँ आसानी से विघटित नहीं होतीं और लंबे समय तक पर्यावरण में बनी रहती हैं।
- बायोएक्यूमुलेशन: पौधे और जानवर इन्हें अवशोषित कर लेते हैं, जिससे ये खाद्य शृंखला में जमा होती जाती हैं और उच्च स्तर के जीवों के ऊतकों में अधिक मात्रा में संचित हो सकती हैं।
- प्रमुख स्रोत:

भारत में क्षेत्रीय भारी धातु संदूषण:
|
राज्य/क्षेत्र |
प्रमुख संदूषक |
प्रभावित क्षेत्र |
रिपोर्ट किये गए स्वास्थ्य प्रभाव |
|
पश्चिम बंगाल और बिहार |
आर्सेनिक, कैडमियम |
नदिया ज़िला, कोलकाता |
आर्सेनिकोसिस (त्वचा के घाव), दीर्घकालिक फेफड़ों की बीमारी, परिधीय न्यूरोपैथी, श्वसन क्षमता में कमी |
|
पंजाब |
सेलेनियम, यूरेनियम, बेरियम |
होशियारपुर, नवांशहर, मालवा, लुधियाना |
बाल झड़ना, नाखूनों में परिवर्तन, ‘लहसुन जैसी’ साँस, अंगों की कार्यक्षमता में समस्या (यकृत/किडनी), DNA नुकसान, स्तन कैंसर का बढ़ा जोखिम |
|
उत्तर प्रदेश |
हेक्सावैलेंट क्रोमियम (Cr VI), आर्सेनिक, सीसा |
कानपुर, बलाई |
जठरांत्रीय परेशानी, त्वचा में असामान्यताएँ, आँखों में शिकायतें |
|
मध्य प्रदेश |
पारा, औद्योगिक प्रदूषक |
सिंगरौली, रतलाम, मलांजखंड | कंपकंपाहट, पेट में दर्द, श्वसन समस्याएँ, मसूड़ों की समस्याएँ |
|
ओडिशा |
लोहा, औद्योगिक भारी धातुएँ |
कियोंझर, टालचर, गंजाम | तीव्र श्वसन संक्रमण, जलजनित रोग |
|
दिल्ली और NCR |
सीसा, एल्युमिनियम |
यमुना नदी बेसिन | उच्च रक्त सीसा स्तर (माताओं/बच्चों में), कमज़ोरी, दुश्चिंता, उच्च रक्तचाप, तंत्रिका विषाक्तता |
|
कर्नाटक |
चाँदी, कैडमियम |
बंगलूरू |
गुर्दे (किडनी) की कार्यक्षमता में कमी, बालों में भारी धातु संचयन |
बायोएक्यूमुलेशन
- बायोएक्यूमुलेशन उस धीरे-धीरे होने वाली प्रक्रिया को कहते हैं जिसमें हानिकारक और स्थायी विषैले पदार्थ, जैसे भारी धातुएँ, एक एकल जीव के शरीर में जमा हो जाते हैं, जब पर्यावरण, जल, वायु या भोजन उसकी मेटाबोलिज़्म या उत्सर्जन क्षमता से अधिक हो जाता है।
- बायोमैग्निफिकेशन के विपरीत, जो आहार शृंखला में विभिन्न स्तरों पर होता है, बायोएक्यूमुलेशन व्यक्तिगत स्तर पर होता है और बायोमैग्निफिकेशन को उत्प्रेरित करता है।
- एक प्रमुख उदाहरण है जलीय प्रणाली में मिथाइलमर्करी (Methylmercury)। औद्योगिक प्रदूषण से उत्पन्न अकार्बनिक पारा जलीय वातावरण में मिथाइलमर्करी में परिवर्तित हो जाता है, जो मछलियों और शेलफिश में जमा हो जाता है।
- शिकार करने वाली मछलियाँ (जैसे टूना, स्वॉर्डफिश) इसमें उच्च स्तर दिखाती हैं, जिससे मानव उपभोक्ताओं के लिये न्यूरोलॉजिकल नुकसान का जोखिम उत्पन्न होता है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
1. स्वच्छ जल का स्पंज भारी धातु प्रदूषण के प्रभावी जैव-संकेतक क्यों होते हैं?
इनकी फिल्टर-फीडिंग आदत और उच्च जैव-संचयन क्षमता के कारण आर्सेनिक, सीसा तथा कैडमियम जैसी धातुओं का पता कम पर्यावरणीय सांद्रता पर भी लगाया जा सकता है।
2. बायोएक्यूमुलेशन, बायोमैग्निफिकेशन से कैसे अलग है?
बायोएक्यूमुलेशन एक ही जीव के भीतर होता है, जबकि बायोमैग्निफिकेशन में आहार शृंखला के विभिन्न पोषण स्तरों के साथ विषाक्त पदार्थों की सांद्रता बढ़ती जाती है।
3. भारी धातु विषाक्तता से होने वाली दो प्रसिद्ध बीमारियों के नाम और उनके कारण बताइये।
मिनमाटा रोग मरकरी के कारण होता है और इटाई-इटाई रोग कैडमियम के कारण होता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)
प्रश्न. प्रदूषण की समस्याओं का समाधान करने के संदर्भ में जैवोपचारण (बायोरेमीडिएशन) तकनीक के कौन-सा/से लाभ है/हैं ? (2017)
- यह प्रकृति में घटित होने वाली जैवनिम्नीकरण प्रक्रिया का ही संवर्द्धन कर प्रदूषण को स्वच्छ करने की तकनीक है।
- कैडमियम और लेड जैसी भारी धातुओं से युक्त किसी भी संदूषक को सूक्ष्मजीवों के प्रयोग से जैवोपचारण द्वारा सहज और पूरी तरह उपचारित किया जा सकता है।
- जैवोपचारण के लिये विशेषतः अभिकल्पित सूक्ष्मजीवों को सृजित करने हेतु आनुवंशिक इंजीनियरी (जेनेटिक इंजीनियरिंग) का उपयोग किया जा सकता है।
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये :
(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (c)
पंडित मदन मोहन मालवीय की जयंती
भारत रत्न महामना पंडित मदन मोहन मालवीय की जयंती 25 दिसंबर को मनाई जाती है।
पंडित मदन मोहन मालवीय
- परिचय: 25 दिसंबर, 1861 को प्रयागराज, उत्तर प्रदेश में जन्मे, उन्होंने आधुनिक भारत को आकार देने में अहम भूमिका निभाई, जिसमें शैक्षिक सुधार, स्वतंत्रता संग्राम, पत्रकारिता और समाज सेवा शामिल थे।
- महात्मा गांधी ने मालवीयाजी को ‘देवता पुरुष’ कहा, रवींद्रनाथ टैगोर ने उन्हें ‘महामना’ की उपाधि दी (हालाँकि कुछ स्रोत इसका श्रेय महात्मा गांधी को भी देते हैं) और डॉ. एस. राधाकृष्णन ने उन्हें ‘कर्मयोगी’ के रूप में वर्णित किया।
- मुख्य योगदान:
- भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका: वह गांधीजी के नमक सत्याग्रह तथा वर्ष 1930 के सविनय अवज्ञा आंदोलन के प्रमुख सहभागी रहे और उन्हें कुल चार बार (1909, 1918, 1932, 1933) भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में चुना गया था।
- उन्होंने 11 वर्ष (1909–20) तक इंपीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल के सदस्य के रूप में कार्य किया और ब्रिटिश-भारतीय अदालतों में सफलतापूर्वक देवनागरी लिपि को लागू करवाया।
- उन्होंने 'सत्यमेव जयते' शब्द को लोकप्रिय बनाया। हालाँकि यह वाक्यांश मूल रूप से ‘मुण्डकोपनिषद’ से है। अब यह शब्द भारत का राष्ट्रीय आदर्श वाक्य है।
- उन्होंने वर्ष 1915 में हिंदू महासभा की स्थापना में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- उन्होंने विशेष रूप से चौरी चौरा घटना (1922) में आरोपित लोगों की रक्षा करने के लिये विधिक पेशे में वापसी की।
- शैक्षिक क्षेत्र के नवप्रवर्तनकर्त्ता: उन्होंने वर्ष 1916 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) की स्थापना की और भारतीय युवाओं के लिये स्काउटिंग आंदोलन को भी आगे बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- सामाजिक सुधार: गिरमिटिया प्रथा को समाप्त करने में अहम भूमिका निभाई, जिससे कई भारतीयों को बंधुआ मज़दूरी से आज़ादी मिली।
- पर्यावरण सक्रियता: हरिद्वार में भीमगोडा में गंगा पर ब्रिटिश बांध बनाने से रोकने के लिये वर्ष 1905 में गंगा महासभा की स्थापना की।
- संपादकीय कार्य: उन्होंने कई प्रकाशनों की स्थापना की, जिनमें हिंदी साप्ताहिक अभ्युदय (1907), हिंदी मासिक मर्यादा (1910) और अंग्रेज़ी दैनिक लीडर (1909) शामिल हैं। इसके अलावा उन्होंने हिंदुस्तान टाइम्स बोर्ड के अध्यक्ष के रूप में भी सेवा दी।
- भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका: वह गांधीजी के नमक सत्याग्रह तथा वर्ष 1930 के सविनय अवज्ञा आंदोलन के प्रमुख सहभागी रहे और उन्हें कुल चार बार (1909, 1918, 1932, 1933) भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में चुना गया था।
- सम्मान: वर्ष 2014 में उन्हें मरणोपरांत देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान, भारत रत्न से सम्मानित किया गया था। वर्ष 2016 में भारतीय रेलवे ने मालवीय जी के सम्मान में वाराणसी-नई दिल्ली ‘महामना एक्सप्रेस’ शुरू की थी।
|
और पढ़ें: मदन मोहन मालवीय जयंती |
संरक्षण रणनीति के रूप में राइनो डीहॉर्निंग
साइंस पत्रिका में प्रकाशित एक हालिया अध्ययन दर्शाता है कि अफ्रीकी अभयारण्यों में राइनो डीहॉर्निंग (गैंडों के सींग काटकर हटा दिये जाते है) अवैध शिकार में उल्लेखनीय कमी आई है। यह तेज़ी से बढ़ते अवैध वन्यजीव व्यापार के बीच साक्ष्य-आधारित वन्यजीव संरक्षण के लिये महत्त्वपूर्ण अंतर्दृष्टि प्रदान करता है।
- राइनो हॉर्न: राइनो हॉर्न केराटिन से बने होते हैं, हड्डी से नहीं और इनमें वैज्ञानिक रूप से सिद्ध कोई औषधीय गुण नहीं पाए गए हैं। इसके बावजूद, एशिया के कुछ हिस्सों में इन्हें प्रतिष्ठा के प्रतीक के रूप में देखा जाता है और पारंपरिक चिकित्सा में उपयोग किया जाता है।
- यह मांग एक लाभकारी अवैध बाज़ार को बढ़ावा देती है, जिसने वर्ष 2012 से 2022 के बीच USD 874 मिलियन से USD 1.13 बिलियन तक का कारोबार किया। इस अवधि में हॉर्न की कीमतें USD 3,382 से USD 22,257 प्रति किलोग्राम के बीच रहीं।
- राइनो डीहॉर्निंग की प्रभावशीलता: डीहॉर्निंग से अवैध शिकार में 78% की कमी आई, जबकि इसमें कुल एंटी-पोचिंग बजट का केवल 1.2% ही खर्च हुआ। व्यक्तिगत स्तर पर डीहॉर्न किये गए गैंडों में अवैध शिकार का जोखिम 95% कम पाया गया।
- राइनो संरक्षण का भारतीय मॉडल: असम का काज़ीरंगा राष्ट्रीय उद्यान, जिसे ‘राइनो कैपिटल ऑफ द वर्ल्ड’ कहा जाता है और जहाँ एक-सींग वाले गैंडे की सबसे अधिक संख्या पाई जाती है, ने पिछले तीन वर्षों में केवल 1–2 राइनो की ही हानि दर्ज की है।
- यह सफलता इंडियन राइनो विज़न 2005, स्मार्ट पेट्रोलिंग, समुदाय की भागीदारी तथा मानव-वन्यजीव संघर्ष के प्रभावी प्रबंधन से उपजी है। इसी कारण विशेषज्ञों का तर्क है कि मज़बूत संरक्षण शासन के चलते भारत में डीहॉर्निंग की आवश्यकता नहीं है।
- राइनो DNA इंडेक्स सिस्टम (RhODIS): यह DNA आधारित फॉरेंसिक डेटाबेस है, जिसे राइनो के DNA (सींग, गोबर) से विकसित किया गया है। इसका उद्देश्य अवैध व्यापार को ट्रैक करना तथा फॉरेंसिक साक्ष्यों के माध्यम से ज़ब्त सींग और किसी खास शिकार किये गए राइनो के बीच सीधा संबंध स्थापित करना है ताकि अपराध की जाँच व अभियोजन की कार्यवाही सुदृढ़ रूप से हो सके।
- RhODIS का मूल विकास दक्षिण अफ्रीका में हुआ था, जिसे बाद में भारत में अनुकूलित और लागू किया गया।
|
और पढ़ें: स्टेट ऑफ द राइनो, 2023 |
DHRUV64 माइक्रोप्रोसेसर
15 दिसंबर को इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) ने DHRUV64 के लॉन्च की घोषणा की। यह C-DAC द्वारा माइक्रोप्रोसेसर विकास कार्यक्रम (MDP) के तहत विकसित एक पूरी तरह स्वदेशी 64-बिट माइक्रोप्रोसेसर है, जिसका उद्देश्य भारत के संप्रभु सेमीकंडक्टर इकोसिस्टम को सुदृढ़ करना है।
DHRUV64
- परिचय:
- DHRUV64: यह भारत के प्रोसेसर इकोसिस्टम का हिस्सा है, जिसमें IIT-मद्रास का SHAKTI, IIT-बॉम्बे का AJIT, ISRO–सेमीकंडक्टर लैब का VIKRAM और C-DAC का THEJAS64 (2025) शामिल हैं।
- यह एक सामान्य-उद्देश्य, 64-बिट, डुअल-कोर माइक्रोप्रोसेसर है।
- क्लॉक स्पीड: लगभग 1 गीगाहर्ट्ज़।
- विकासकर्त्ता: सेंटर फॉर डेवलपमेंट ऑफ एडवांस्ड कंप्यूटिंग (C-DAC)।
- आर्किटेक्चर: RISC-V पर आधारित।
- कार्यक्रम: डिजिटल इंडिया RISC-V (DIR-V)।
- उपयोग: एंबेडेड सिस्टम्स के साथ-साथ ऑपरेटिंग सिस्टम-स्तरीय कार्यभारों के लिये डिज़ाइन किया गया।
- DHRUV64: यह भारत के प्रोसेसर इकोसिस्टम का हिस्सा है, जिसमें IIT-मद्रास का SHAKTI, IIT-बॉम्बे का AJIT, ISRO–सेमीकंडक्टर लैब का VIKRAM और C-DAC का THEJAS64 (2025) शामिल हैं।
THEJAS32 पहला भारत में डिज़ाइन किया गया DIR-V चिप था, जिसका निर्माण (फैब्रिकेशन) मलेशिया में किया गया। THEJAS64 दूसरा चिप था, जिसे SCL मोहाली में निर्मित किया गया। DHRUV64 इस शृंखला का तीसरा चिप है।
- अनुप्रयोग
- टेलीकॉम बेस स्टेशन
- औद्योगिक स्वचालन और नियंत्रक
- ऑटोमोटिव इलेक्ट्रॉनिक्स
- राउटर और नेटवर्किंग उपकरण
- रणनीतिक और सरकारी प्रणालियाँ
- डिजिटल इंडिया RISC-V (DIR-V) कार्यक्रम:
- डिजिटल इंडिया RISC-V (DIR-V) कार्यक्रम का उद्देश्य स्वदेशी RISC-V आधारित माइक्रोप्रोसेसरों का एक पोर्टफोलियो विकसित करना है, ताकि विदेशी प्रोसेसर प्रौद्योगिकियों पर भारत की निर्भरता कम की जा सके।
- यह कार्यक्रम उद्योग, रक्षा, अंतरिक्ष एवं उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे रणनीतिक और वाणिज्यिक क्षेत्रों को लक्षित करता है तथा प्रौद्योगिकीय संप्रभुता को सुदृढ़ करने में सहायक है।
- RISC‑V:
- RISC-V एक ओपन-सोर्स इंस्ट्रक्शन सेट आर्किटेक्चर (ISA) है, जो किसी को भी लाइसेंस शुल्क दिये बिना प्रोसेसर डिज़ाइन और अनुकूलित करने की अनुमति देता है।
- ARM या x86 (Intel/AMD) के विपरीत, इसके उपयोग के लिये कंपनियों को किसी प्रकार का ‘लाइसेंस कर’ नहीं देना पड़ता।
- यह मॉड्यूलर और स्केलेबल प्रोसेसर डिज़ाइन को समर्थन देता है, जिससे यह एंबेडेड सिस्टम से लेकर उच्च-प्रदर्शन कंप्यूटिंग तक के अनुप्रयोगों के लिये उपयुक्त है।
- RISC-V एक ओपन-सोर्स इंस्ट्रक्शन सेट आर्किटेक्चर (ISA) है, जो किसी को भी लाइसेंस शुल्क दिये बिना प्रोसेसर डिज़ाइन और अनुकूलित करने की अनुमति देता है।
|
और पढ़ें: DHRUVA फ्रेमवर्क |
भारत द्वारा श्रीलंका को 450 मिलियन डॉलर की मदद
भारत ने चक्रवात दित्वाह के बाद श्रीलंका की पुनर्बहाली में सहायता के लिये 450 मिलियन अमेरिकी डॉलर के पुनर्निर्माण पैकेज की घोषणा की, जिससे हिंद महासागर क्षेत्र में प्रथम प्रतिक्रिया देने वाली भूमिका और मज़बूत हुई।
- इससे पहले ऑपरेशन सागर बंधु के तहत भारत ने श्रीलंका को मानवीय सहायता, राहत सामग्री और चिकित्सीय मदद प्रदान की, जिसमें कैंडी (Kandy) के पास भारतीय सेना का एक फील्ड अस्पताल (Indian Army Field Hospital) शामिल था, जिसने 8,000 से अधिक लोगों का इलाज किया, जिससे भारत के मज़बूत समर्थन की पुनः पुष्टि हुई।
- श्रीलंका की नाज़ुक पुनर्निर्माण स्थिति: चक्रवात के आने के समय श्रीलंका अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के समर्थन में अस्थायी राजकोषीय स्थिरता दिखा रहा था।
- श्रीलंका के वर्ष 2022 के ऋण डिफॉल्ट के बाद लागू किये गए IMF-नेतृत्व वाले कार्यक्रम ने कर वृद्धि, सब्सिडी में कटौती और ऊँची ब्याज दरों जैसे कठोर बचत उपाय लागू किये ताकि कुछ हद तक व्यापक आर्थिक स्थिरता बहाल की जा सके, लेकिन इसका असमान रूप से सबसे अधिक नुकसान गरीबों को हुआ।
- अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने हाल ही में अपने त्वरित वित्तीयन प्रपत्र (Rapid Financing Instrument-RFI) के तहत लगभग 206 मिलियन अमेरिकी डॉलर की आपातकालीन वित्तीय सहायता को मंज़ूरी दी।
- RFI किसी भी ऐसे IMF सदस्य देश को, जो भुगतान संतुलन की तात्कालिक आवश्यकता का सामना कर रहा हो, शीघ्र वित्तीय सहायता प्रदान करता है।
- विश्व बैंक का अनुमान है कि प्रत्यक्ष भौतिक क्षति से 4.1 अरब अमेरिकी डॉलर (जो श्रीलंका की GDP का लगभग 4% है) का नुकसान हुआ है। इस पुनर्बहाली को वर्ष 2004 की सुनामी से भी अधिक चुनौतीपूर्ण माना जा रहा है।
- भारत के लिये रणनीतिक महत्त्व: यह पुनर्निर्माण पैकेज वर्ष 2022 में श्रीलंका को दी गई भारत की 4 बिलियन अमेरिकी डॉलर की सहायता (क्रेडिट लाइन, करेंसी स्वैप, पेट्रोलियम सपोर्ट) पर आधारित है।
- भारत ने हिंद महासागर क्षेत्र में, खासकर श्रीलंका के लिये सदैव पहले मदद करने वाले देश के रूप में कार्य किया है, जैसे वर्ष 2021 में MV एक्सप्रेस पर्ल शिप में आग लगने की आपदा के दौरान मदद देना और चक्रवात रोआनू (2016) के दौरान सहायता देना।
- यह नेबरहुड फर्स्ट तथा सागर पहलों को और मज़बूत करता है एवं जलवायु संकटों के बीच भारत के क्षेत्रीय नेतृत्व को बढ़ाता है।
|
और पढ़ें: भारत-श्रीलंका संबंध |





