डेली न्यूज़ (24 Sep, 2022)



भारतीय दूरसंचार विधेयक प्रस्ताव 2022

प्रिलिम्स के लिये:

दूरसंचार विभाग (DoT), भारतीय दूरसंचार विधेयक प्रस्ताव 2022, ओवर-द-टॉप (OTT) प्लेटफॉर्म, भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम, 1885, भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (TRAI), दूरसंचार विकास कोष (TDF), उत्पादन संबद्ध प्रोत्साहन योजना (PLI), भारत नेट प्रोजेक्ट, प्राइम मिनिस्टर वाई-फाई एक्सेस नेटवर्क इंटरफेस (PM-WANI)।

मेन्स के लिये:

भारत के दूरसंचार क्षेत्र का महत्त्त्व।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में दूरसंचार विभाग (DoT) ने इंटरनेट आधारित ओवर-द-टॉप (OTT) दूरसंचार सेवाओं को विनियमित करने के लिये भारतीय दूरसंचार विधेयक प्रस्ताव 2022 जारी किया।

भारतीय दूरसंचार विधेयक प्रस्ताव 2022:

  • परिचय:
    • मसौदा विधेयक तीन अलग-अलग अधिनियमों को समेकित करता है जो वर्तमान में दूरसंचार क्षेत्र को नियंत्रित करते हैं जिसमें भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम, 1885, भारतीय वायरलेस टेलीग्राफी अधिनियम, 1933 और द टेलीग्राफ वायर्स (गैरकानूनी संरक्षण) अधिनियम, 1950 शामिल हैं।
  • ट्राई की शक्ति में कमी:
  • OTT विनियमन:
    • सरकार ने इंटरनेट आधारित और OTT संचार सेवाओं जैसे- व्हाट्सएप कॉल, फेसटाइम, गूगल मीट आदि को दूरसंचार सेवाओं के तहत शामिल किया है।
      • यह मांग एक समान अवसर प्रदान करने के लिये दूरसंचार ऑपरेटरों द्वारा लंबे समय से की जा रही थी। फिलहाल जहाँ टेलीकॉम कंपनियों को सेवाएँ देने के लिये लाइसेंस की ज़रूरत होती है, जबकि OTT प्लेटफॉर्म को नहीं।
      • इसके अलावा OTT को दूरसंचार सेवाओं के दायरे में लाने का मतलब है कि OTT और इंटरनेट आधारित संचार सेवाएँ प्रदान करने के लिये लाइसेंस की आवश्यकता होगी।
  • वापसी का प्रावधान:
    • दूरसंचार मंत्रालय ने किसी दूरसंचार या इंटरनेट प्रदाता द्वारा अपना लाइसेंस सरेंडर करने की स्थिति में शुल्क वापसी का प्रावधान प्रस्तावित किया है।
  • लाइसेंसधारियों द्वारा भुगतान में चूक:
    • भुगतान में चूक की स्थिति और असाधारण परिस्थितियों में वित्तीय, उपभोक्ता ब्याज़, क्षेत्र में प्रतिस्पर्द्धा बनाए रखने या विश्वसनीयता एवं दूरसंचार सेवाओं की निरंतर पूर्ति सहित सरकार ऐसी राशियों के भुगतान को स्थगित कर सकती है अथवा एक हिस्से या सभी देय राशियों को शेयरों में परिवर्तित कर सकती है, देय राशियों को बट्टे खाते में डाल सकती है या भुगतान से राहत प्रदान कर सकती है।
  • दिवाला मामले में:
    • दिवालिया होने की स्थिति में इकाई को सौंपा गया स्पेक्ट्रम सरकारी नियंत्रण में वापस आ जाता है तथा केंद्र सरकार इस तरह के लाइसेंसधारी को स्पेक्ट्रम का उपयोग जारी रखने की अनुमति देने सहित कोई और निर्धारित कार्रवाई कर सकती है।
  • दूरसंचार विकास कोष:
    • यह यूनिवर्सल सर्विस ऑब्लिगेशन फंड (USOF) का नाम बदलकर दूरसंचार विकास कोष (TDF) करने का प्रस्ताव करता है।
      • USOF की प्राप्ति दूरसंचार सेवा प्रदाताओं के वार्षिक राजस्व से होती है। TDF के लिये प्राप्त राशि को सबसे पहले भारत की संचित निधि में जमा किया जाएगा।
    • इस कोष का उपयोग ग्रामीण, दूरस्थ और शहरी क्षेत्रों में कनेक्टिविटी सेवाओं को बढ़ावा देने के लिये किया जाएगा। यह नई दूरसंचार सेवाओं के अनुसंधान और विकास, कौशल विकास एवं नई दूरसंचार सेवाओं की शुरुआत का समर्थन करने में भी सहायता करेगा।

भारत में दूरसंचार उद्योग की वर्तमान स्थिति:

  • वर्तमान स्थिति:
  • भारत में दूरसंचार उद्योग वर्ष 2022 तक 1.17 बिलियन ग्राहकों के साथ दुनिया में दूसरा सबसे बड़ा उद्योग है। भारत की कुल टेलीडेंसिटी (एक क्षेत्र में रहने वाले प्रत्येक सौ व्यक्तियों के लिये टेलीफोन कनेक्शन की संख्या है) 85.11 प्रतिशत है।
  • पिछले कुछ वर्षों में उद्योग की घातीय वृद्धि मुख्य रूप से किफायती टैरिफ, व्यापक उपलब्धता, मोबाइल नंबर पोर्टेबिलिटी (MNP) के रोल-आउट, 3G और 4G कवरेज का विस्तार एवं ग्राहकों के उपभोग प्रतिरूप को विकसित करने की वजह से प्रेरित है।
  • FDI प्रवाह के मामले में दूरसंचार क्षेत्र तीसरा सबसे बड़ा क्षेत्र है, जो कुल FDI प्रवाह का 6.44% योगदान देता है और प्रत्यक्ष रूप से 2.2 मिलियन रोज़गार एवं अप्रत्यक्ष रूप से 1.8 मिलियन रोज़गार में योगदान देता है।
  • वर्ष 2014 से 2021 के बीच दूरसंचार क्षेत्र में FDI प्रवाह 150% बढ़कर 20.72 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया जो वर्ष 2002-2014 के दौरान 8.32 बिलियन अमेरिकी डॉलर था।
  • टेलीकॉम सेक्टर में अब ऑटोमैटिक रूट के तहत 100% प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) की अनुमति दे दी गई है।
  • भारत वर्ष 2025 तक लगभग 1 बिलियन स्थापित उपकरणों के साथ विश्व स्तर पर दूसरा सबसे बड़ा स्मार्टफोन बाज़ार बनने की राह पर है और वर्ष 2025 तक 920 मिलियन मोबाइल ग्राहक होने की उम्मीद है जिसमें 88 मिलियन 5G कनेक्शन शामिल होंगे।
  • पहल:
    • आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत PLI योजनाएँ:
      • दूरसंचार और नेटवर्किंग उत्पादों के निर्माण के लिये 12,195 करोड़ रुपए की उत्पादन संबद्ध प्रोत्साहन योजना (PLI) मौजूदा PLI योजना की डिज़ाइन आधारित निर्माण योजना के लिये 4,000 करोड़ रुपए से अधिक के प्रोत्साहन निर्धारित किये गए हैं।
    • दूरसंचार क्षेत्र में सुधार:
      • वर्ष 2021 में तरलता बढ़ाने और दूरसंचार क्षेत्र के भीतर वित्तीय तनाव को कम करने के लिये बड़े पैमाने पर संरचनात्मक एवं प्रक्रियात्मक सुधार किये गए हैं।
    • भारत नेट परियोजना:
      • भारत नेट परियोजना के तहत 178,247 ग्राम पंचायतों में ऑप्टिकल फाइबर केबल बिछाई गई, जिनमें से 161,870 ग्राम पंचायतों में यह सेवा के लिये तैयार हैं। इसके अतिरिक्त, 4,218-ग्राम पंचायतों को सैटेलाइट मीडिया से जोड़ा गया है, जिससे सेवा के लिये तैयार ग्राम पंचायतों की कुल संख्या 166,088 हो गई है।
      • प्रधानमंत्री वाई-फाई एक्सेस नेटवर्क इंटरफेस (PM-WANI):
      • ब्रॉडबैंड इंटरनेट सेवाओं के विस्तार में तेज़ी लाने के लिये देश भर में फैले सार्वजनिक डेटा कार्यालयों (PDO) के माध्यम से सार्वजनिक वाई-फाई सेवा का प्रावधान करना।
  • चुनौतियाँ:
    • प्रति उपयोगकर्त्ता औसत राजस्व में गिरावट (ARPU): ARPU में लगातार तीव्र गिरावट देखी जा रही है, जो घटते मुनाफे और कुछ मामलों में गंभीर नुकसान के साथ भारतीय दूरसंचार उद्योग को राजस्व बढ़ाने के एकमात्र तरीके के रूप में समेकन के लिये प्रेरित कर रही है।
      • वर्ष 2019 में सर्वोच्च न्यायालय ने टेलीकॉम क्षेत्र से लगभग 92,000 करोड़ रुपए के समायोजित सकल राजस्व की वसूली के लिये सरकार की याचिका को अनुमति दे दी, जो उनकी परेशानियाँ और बढ़ा देती है।
    • सीमित विस्तार-क्षेत्र की उपलब्धता: उपलब्ध विस्तार-क्षेत्र यूरोपीय देशों की तुलना में 40% और चीन की तुलना में 50% से कम है।
    • कम ब्रॉडबैंड पहुँच : देश में कम ब्रॉडबैंड पहुँच चिंता का विषय है। पिछले अंतर्राष्ट्रीय दूरसंचार संघ (ITU) में ब्रॉडबैंड पर प्रस्तुत श्वेतपत्र के अनुसार, भारत में ब्रॉडबैंड की पहुँच केवल 7% है।
    • व्हाट्सएप, ओला आदि जैसे ओवर-द-टॉप (OTT) एप्लीकेशन को किसी दूरसंचार कंपनी से अनुमति या समझौते की आवश्यकता नहीं होती है। इससे दूरसंचार सेवा प्रदाताओं के राजस्व संग्रहण में बाधा उत्पन्न होती है।
    • दूरसंचार उपकरणों पर शुल्कों में भारी उतार-चढ़ाव जो कि केंद्रीय सर्वर से उपभोक्ता को पूरी प्रणाली से जोड़ने में योगदान देता है।

ओवर-द-टॉप (OTT):

  • OTT या ओवर-द-टॉप प्लेटफॉर्म ऑडियो और वीडियो होस्टिंग तथा स्ट्रीमिंग सेवाएँ जैसे- नेटफ्लिक्स, अमेज़न प्राइम वीडियो, हॉटस्टार आदि हैं, जो कंटेंट होस्टिंग प्लेटफॉर्म के रूप में शुरू हुए लेकिन जल्द ही स्वयं भी लघु फिल्मों, फीचर फिल्मों के साथ वृत्तचित्र एवं वेब सीरीज़ बनाने व रिलीज़ करने में शामिल हो गए।
    • ये प्लेटफ़ॉर्म कई प्रकार की सामग्री प्रदान करते हैं और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) का उपयोग करके उपयोगकर्त्ताओं को उस सामग्री का सुझाव देते हैं जिसे वे इस प्लेटफोर्म पर अपने रुचि के आधार पर देख सकते हैं।
    • अधिकांश OTT प्लेटफॉर्म आमतौर पर कुछ सामग्री  मुफ्त्त में पेश करते तथा और प्रीमियम सामग्री के लिये मासिक सदस्यता शुल्क लेते हैं जो आमतौर पर कहीं और उपलब्ध नहीं होता है।

आगे की राह

  • भारत में दूरसंचार क्षेत्र को विभिन्न चुनौतियों का सामना करना पड़ता है जैसे- पर्याप्त विस्तार-क्षेत्र बनाए रखना और नई तकनीकों को तेज़ी से अपनाना ताकि ग्राहकों को बेहतर एवं सुविधा संपन्न सेवा के साथ नई सुविधाओं और तकनीकों का उपयोग करने में सक्षम बनाया जा सके।
  • मसौदा दूरसंचार विधेयक 2022 ने इन चुनौतियों की ओर ध्यान दिया और यह किसी भी प्रकार के सुझाव के लिये आमंत्रित करता है ताकि आगे चलकर भारत में दूरसंचार के भविष्य के बारे में एक व्यापक नीति का नेतृत्त्व कर सके।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न:  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारत में निम्नलिखित में से कौन दूरसंचार, बीमा, बिजली आदि क्षेत्रों में स्वतंत्र नियामकों की समीक्षा करता है? (2019)

  1. संसद द्वारा गठित तदर्थ समितियाँ
  2. संसदीय विभाग से संबंधित स्थायी समितियाँ
  3. वित्त आयोग
  4. वित्तीय क्षेत्र विधायी सुधार आयोग
  5. नीति आयोग

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 1, 3 और 4
(c) केवल 3, 4 और 5
(d) केवल 2 और 5

उत्तर: a

  • संसदीय समितियाँ दो प्रकार की होती हैं- स्थायी समितियाँ और तदर्थ समितियाँ।स्थायी समितियाँ हर साल या समय-समय पर चुनी या नियुक्त की जाती है तथा उनका काम कमोबेश निरंतर आधार पर चलता रहता है। तदर्थ समितियोँ का गठन आवश्यकता पड़ने पर तदर्थ आधार पर किया जाता है एवं जैसे ही वे उन्हें सौंपे गए कार्य को पूरा करते हैं, उनका अस्तित्त्व समाप्त हो जाता है।
  • भारत में विभाग संबंधित 24 स्थायी समितियाँ हैं जिनमें संसद के दोनों सदनों के सदस्य शामिल हैं। ये समितियाँ मंत्रालय विशिष्ट हैं और अपने संबंधित विभागों के भीतर नियामकों के कामकाज की समीक्षा कर सकती हैं। उदाहरण के लिये अगस्त 2012 में, ऊर्जा संबंधी स्थायी समिति ने 'केंद्रीय विद्युत नियामक आयोग' के कामकाज पर एक रिपोर्ट प्रस्तुत की। अतः 1 सही है।
  • संसद द्वारा गठित तदर्थ समितियाँ नियामकों के कामकाज की जाँच कर सकती हैं। उदाहरण के लिये 2जी स्पेक्ट्रम के आवंटन पर संयुक्त संसदीय समिति (JPC) की संदर्भ शर्तों में स्पेक्ट्रम मूल्य निर्धारण और दूरसंचार लाइसेंस प्रदान करने पर नीति की समीक्षा शामिल है। वित्त आयोग और नीति आयोग की भूमिका सलाहकार प्रकृति की है तथा वे स्वतंत्र नियामकों की समीक्षा नहीं करते हैं। अत: 3 और 5 सही नहीं हैं।
  • वित्तीय क्षेत्र विधायी सुधार आयोग (FSLRC) का गठन मार्च 2011 में वित्त मंत्रालय द्वारा भारत की वित्तीय प्रणाली को नियंत्रित करने वाले कानूनों की व्यापक समीक्षा एवं पुनर्रचना के लिये किया गया था। स्वतंत्र नियामकों की समीक्षा करने में इसकी कोई भूमिका नहीं है। अत: 4 सही नहीं हैइसलिये विकल्प (a) सही उत्तर है।

मेन्स:

प्रश्न. सूचना प्रौद्योगिकी समझौतों (ITAs) का उद्देश्य हस्ताक्षरकर्त्ताओं द्वारा सूचना प्रौद्योगिकी उत्पादों पर सभी करों और प्रशुल्कों को कम करके शून्य पर लाना है। ऐसे समझौतों का भारत के हितों पर क्या प्रभाव होगा?(2014)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


पर्यावरण के लिये जीवनशैली (LiFE) आंदोलन

प्रिलिम्स के  लिये:

पर्यावरण के लिये जीवनशैली, पार्टियों का सम्मेलन (COP26), राष्ट्रीय वनीकरण कार्यक्रम (NAP), 'प्रो-प्लैनेट पीपल।

मेन्स के लिये:

पर्यावरण के लिये जीवनशैली (LiFE) का महत्त्व।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय ऊर्जा और नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्री ने अग्नि तत्त्व की मूल अवधारणा के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिये अग्नि तत्त्व- पर्यावरण के लिये जीवनशैली (LiFE) हेतु ऊर्जा अभियान शुरू किया, एक ऐसा तत्त्व जो ऊर्जा का पर्याय है तथा पंचमहाभूत के पाँच तत्त्वों में से एक है।

  • पंचमहाभूत में पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और अंतरिक्ष (आकाश) शामिल हैं।

अग्नि तत्त्व-पर्यावरण के लिये जीवनशैली (LiFE)  ऊर्जा अभियान:

  • यह विषय विशेषज्ञों के सीखने और अनुभवों पर विचार-विमर्श करने व सभी के लिये एक स्थायी भविष्य हेतु समाधान तलाशने के लिये एक मंच प्रदान करेगा।
  • इसके अलावा इसमें स्वास्थ्य, परिवहन, खपत और उत्पादन, सुरक्षा, पर्यावरण एवं आध्यात्मिकता पर ध्यान केंद्रित करने वाले कई महत्त्वपूर्ण विषयों को शामिल किया जाएगा।

पर्यावरण के लिये जीवनशैली (LiFE):

  • विषय:
    • LiFE का विचार भारत द्वारा वर्ष 2021 में ग्लासगो में 26वें संयुक्त्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (COP26) के दौरान पेश किया गया था।
      • यह विचार पर्यावरण के प्रति जागरूक जीवनशैली को बढ़ावा देता है जो 'विवेकहीन और व्यर्थ खपत' के बजाय 'सावधानी के साथ और सुविचारित उपयोग' पर केंद्रित है।
    • इस मिशन के शुभारंभ के साथ विवेकहीन और विनाशकारी खपत द्वारा शासित प्रचलित "उपयोग और निपटान" अर्थव्यवस्था को एक सर्कुलर इकॉनमी द्वारा प्रतिस्थापित किया जाएगा, जिसे सचेत व सुविचारित खपत द्वारा परिभाषित किया जाएगा।
  • उद्देश्य:
    • यह जलवायु से संबंधित सामाजिक मानदंडों को प्रभावित करने के लिये सामाजिक नेटवर्क की ताकत का लाभ उठाने का प्रयास करता है।
    • मिशन की योजना व्यक्तियों का एक वैश्विक नेटवर्क बनाने और उसका पोषण करने की है, जिसका नाम 'प्रो-प्लैनेट पीपल' (P3) है।
      • P3 की पर्यावरण के अनुकूल जीवनशैली को अपनाने और बढ़ावा देने के लिये एक साझा प्रतिबद्धता होगी।
      • P3 समुदाय के माध्यम से यह मिशन एक पारिस्थितिकी तंत्र बनाने का प्रयास करता है जो पर्यावरण के अनुकूल व्यवहारों को आत्मकेंद्रित होने के लिये सुदृढ़ और सक्षम करेगा।

पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में भारत की उपलब्धियाँ :

  • वनावरण में वृद्धि:
    • भारत का वन क्षेत्र का विस्तार हो रहा है और इसलिये शेरों, बाघों, तेंदुओं, हाथियों एवं गैंडों की आबादी बढ़ रही है।
      • कुल वन क्षेत्र वर्ष 2021 में कुल भौगोलिक क्षेत्र का 21.71% है, जबकि 2019 में 21.67% और 2017 में 21.54% था।
  • स्थापित विद्युत क्षमता:
    • गैर-जीवाश्म ईंधन आधारित स्रोतों से स्थापित विद्युत क्षमता के 40% तक पहुँचने की भारत की प्रतिबद्धता निर्धारित समय से 9 साल पहले हासिल कर ली गई है।
  • इथेनॉल ब्लेंडिंग लक्ष्य:
    • पेट्रोल में 10% एथेनॉल सम्मिश्रण का लक्ष्य नवंबर 2022 के लक्ष्य से 5 महीने पूर्व ही प्राप्त किया जा चुका है।
    • यह एक बड़ी उपलब्धि है, क्योंकि 2013-14 में सम्मिश्रण मुश्किल से 1.5% और 2019-20 में 5% था।
  • अक्षय ऊर्जा लक्ष्य:
    • भारत सरकार भी अक्षय ऊर्जा पर बहुत अधिक ध्यान दे रही है।
    • 30 नवंबर, 2021 को देश की स्थापित अक्षय ऊर्जा (RE) क्षमता 150.54 गीगावाट (सौर: 48.55 गीगावाट, पवन: 40.03 गीगावाट, लघु जलविद्युत: 4.83, जैव-शक्ति: 10.62, बड़ी हाइड्रो: 46.51 गीगावाट) है, जबकि इसकी परमाणु ऊर्जा आधारित स्थापित बिजली क्षमता 6.78 गीगावाट है।
      • भारत विश्व की चौथी सबसे बड़ी पवन ऊर्जा क्षमता से युक्त देश है।

अन्य संबंधित पहल:

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न:  

प्रश्न: 'राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित अभीष्ट योगदान शब्द को कभी-कभी समाचारों में किस संदर्भ में देखा जाता है? (2016)

(a) युद्ध प्रभावित मध्य-पूर्व से शरणार्थियों के पुनर्वास के लिये यूरोपीय देशों द्वारा की गई प्रतिज्ञा
(b) जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने के लिये विश्व के देशों द्वारा उल्लिखित कार्ययोजना
(c) एशियन इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट बैंक की स्थापना में सदस्य देशों द्वारा योगदान की गई पूंजी
(d) सतत् विकास लक्ष्यों के संबंध में दुनिया के देशों द्वारा उल्लिखित कार्ययोजना

उत्तर: (b)

व्याख्या:

  • ‘राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित अभीष्ट योगदान, UNFCCC के तहत पेरिस समझौते पर हस्ताक्षर करने वाले सभी देशों में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी लाने के लिये व्यक्त की गई प्रतिबद्धता को बताता है।
  • CoP21 में दुनिया भर के देशों ने सार्वजनिक रूप से उन कार्रवाइयों की रूपरेखा तैयार की, जिन्हें वे अंतर्राष्ट्रीय समझौते के अंतर्गत क्रियान्वयित करना चाहते थे। राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान पेरिस समझौते के दीर्घकालिक लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में अग्रसर है जो "वैश्विक औसत तापमान में वृद्धि को 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने के लिये तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के प्रयासों को बढ़ावा देता है तथा इस शताब्दी के उत्तरार्ध में नेट ज़ीरो उत्सर्जन लक्ष्य को प्राप्त करने का प्रयास करता है।" अतः विकल्प (b) सही है।

प्रश्न. जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC) की पार्टियों के सम्मेलन (CoP) के 26वें सत्र के प्रमुख परिणामों का वर्णन कीजिये। इस सम्मेलन में भारत द्वारा व्यक्त की गई प्रतिबद्धताएँ क्या हैं? (मुख्य परीक्षा, 2021)

स्रोत: पी.आई.बी.


आदिवासी वन अधिकार

प्रिलिम्स के लिये:

सामुदायिक वन संसाधन, वन अधिकार अधिनियम, आरक्षित वन, संरक्षित वन, अभयारण्य और राष्ट्रीय उद्यान।

मेन्स के लिये:

वन अधिकार अधिनियम, सामुदायिक वन संसाधन अधिकार और मान्यता का महत्त्व।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में छत्तीसगढ़ के करिपानी और बुदरा गाँवों के निवासियों ने 100 एकड़ में बड़े पैमाने पर वनीकरण अभियान चलाया, क्योंकि यह ग्रामीणों का अपनी वन भूमि पर अधिकार सुरक्षित करने का अंतिम प्रयास था।

  • राज्य के संरक्षित क्षेत्रों के 10 गाँवों को 9 अगस्त, 2022 को मनाए गए आदिवासी दिवस पर सामुदायिक वन संसाधन अधिकार (CFRR) प्रदान किया गया, लेकिन करिपानी और बुदरा को ये अधिकार नही प्राप्त हुए हैं।

सामुदायिक वन संसाधन अधिकार:

  • अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम (आमतौर पर वन अधिकार अधिनियम या FRA के रूप में संदर्भित), 2006 की धारा 3 (1)(i) के तहत सामुदायिक वन संसाधन अधिकार सामुदायिक वन संसाधनों को "संरक्षण, पुन: उत्पन्न या संरक्षित या प्रबंधित" करने के अधिकार की मान्यता प्रदान करते हैं।
  • ये अधिकार समुदाय को वनों के उपयोग के लिये स्वयं और दूसरों के लिये नियम बनाने की अनुमति देते हैं तथा इस तरह FRA की धारा 5 के तहत वे अपनी ज़िम्मेदारियों का निर्वहन करते हैं।
  • CFR अधिकार, धारा 3(1)(b) और 3(1)(c) के तहत सामुदायिक अधिकारों (CR) के साथ, जिसमें निस्तार अधिकार (रियासतों या ज़मींदारी आदि में पूर्व उपयोग किये जाने वाले) और गैर-लकड़ी वन उत्पादों पर अधिकार शामिल हैं, समुदाय की स्थायी आजीविका सुनिश्चित करते हैं।
  • एक बार जब CFRR को किसी समुदाय के लिये मान्यता दी जाती है, तो वन का स्वामित्त्त्व वन विभाग के बजाय ग्राम सभा के नियंत्रण में आ जाता है।
  • प्रभावी रूप से ग्राम सभा वनों के प्रबंधन के लिये नोडल निकाय बन जाती है।
  • ये अधिकार ग्राम सभा को सामुदायिक वन संसाधन सीमा के भीतर वन संरक्षण और प्रबंधन की स्थानीय पारंपरिक प्रथाओं को अपनाने का अधिकार देते हैं।
  • छत्तीसगढ़ दूसरा राज्य है जिसने राष्ट्रीय उद्यान यानी कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान के अंदर CFRR अधिकारों को मान्यता दी है।
  • वर्ष 2016 में ओडिशा सरकार ने सर्वप्रथम, सिमलीपाल राष्ट्रीय उद्यान के अंदर सामुदायिक वन संसाधनों (CFR) को मान्यता प्रदान की थी।

वन अधिकार अधिनियम, 2006:

  • यह वन में निवास करने वाली अनुसूचित जनजातियों (FDST) और अन्य पारंपरिक वनवासी (OTFD) जो पीढ़ियों से ऐसे जंगलों में निवास कर रहे हैं, को वन भूमि पर उनके वन अधिकारों को मान्यता देता है।
  • किसी भी ऐसे सदस्य या समुदाय द्वारा वन अधिकारों का दावा किया जा सकता है, जो दिसंबर 2005 के 13वें दिन से पहले कम-से-कम तीन पीढ़ियों (75 वर्ष) के लिये मुख्य रूप से वन भूमि में वास्तविक आजीविका की ज़रूरतों हेतु निवास करता है।
  • यह FDST और OTFD की आजीविका तथा खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए वनों के संरक्षण की व्यवस्था को मज़बूती प्रदान करता है।
  • ग्राम सभा को व्यक्तिगत वन अधिकार (IFR) या सामुदायिक वन अधिकार (CFR) या दोनों जो कि FDST और OTFD को दिये जा सकते हैं, की प्रकृति एवं सीमा निर्धारित करने हेतु प्रक्रिया शुरू करने का अधिकार है।
  • इस अधिनियम के तहत चार प्रकार के अधिकार हैं:
  • स्वामित्त्व अधिकार: यह FDST और OTFD को अधिकतम 4 हेक्टेयर भू-क्षेत्र पर आदिवासियों या वनवासियों द्वारा खेती की जाने वाली भूमि पर स्वामित्व का अधिकार देता है। यह स्वामित्व केवल उस भूमि के लिये है जिस पर वास्तव में संबंधित परिवार द्वारा खेती की जा रही है, इसके अलावा कोई और नई भूमि प्रदान नहीं की जाएगी।
    • उपयोग करने का अधिकार: वन निवासियों के अधिकारों का विस्तार लघु वनोत्पाद, चराई क्षेत्रों आदि तक है।
    • राहत और विकास से संबंधित अधिकार: वन संरक्षण के लिये प्रतिबंधों के अधीन अवैध बेदखली या जबरन विस्थापन और बुनियादी सुविधाओं के मामले में पुनर्वास का अधिकार शामिल है।
    • वन प्रबंधन अधिकार: इसमें किसी भी सामुदायिक वन संसाधन की रक्षा, पुनः उत्थान या संरक्षण या प्रबंधन का अधिकार शामिल है, जिसे वन निवासियों द्वारा स्थायी उपयोग के लिये पारंपरिक रूप से संरक्षित एवं सुरक्षित किया जाता है।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. राष्ट्रीय स्तर पर अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 के प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिये कौन सा मंत्रालय नोडल एजेंसी है?

(a) पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय
(b) पंचायती राज मंत्रालय
(c) ग्रामीण विकास मंत्रालय
(d) जनजातीय मामलों का मंत्रालय

उत्तर: (d)

व्याख्या:

  • अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006, जिसे वन अधिकार अधिनियम (FRA), 2006 के रूप में भी जाना जाता है, वन संसाधनों ंपर वहाँ रहने वाले आदिवासी समुदायों और अन्य पारंपरिक वनवासियों के अधिकारों को मान्यता देता है।
  • अधिनियम में खेती और निवास जो आमतौर पर व्यक्तिगत अधिकारों के रूप में होते हैं और सामुदायिक अधिकार जैसे चराई, मछली पकड़ना एवं जंगलों में जल निकायों तक पहुँच, विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूहों (Particularly Vulnerable Tribal Groups- PVTGs) के लिये आवास अधिकार आदि अधिकार शामिल हैं।
  • भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और निपटान अधिनियम, 2013 में उचित मुआवज़े एवं पारदर्शिता के अधिकार के संयोजन के साथ FRA आदिवासी आबादी को पुनर्वास तथा उनके लिये उचित बंदोबस्त के बिना बेदखली से रक्षा करता है।
  • जनजातीय मामलों के मंत्रालय के तहत अधिनियम के प्रावधानों और उसके तहत बनाए गए नियमों के अनुसार विभिन्न योजनाओं एवं परियोजनाओं को लागू किया जाता है।

अतः विकल्प (d) सही है।

स्रोत:  डाउन टू अर्थ


क्वाड समूह

प्रिलिम्स के लिये:

QUAD, HADR, इंडो-पैसिफिक

मेन्स के लिये:

भारत से जुड़े समूह और समझौते और/या भारत के हितों को प्रभावित करने वाले, द्विपक्षीय समूह और समझौते, QUAD एवं इसका महत्त्व

चर्चा में क्यों?

क्वाड (भारत, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान) के विदेश मंत्रियों ने संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) के आभासी मंच पर मानवीय सहायता एवं आपदा राहत (HADR) साझेदारी पर हस्ताक्षर करने के लिये मुलाकात की।

  • HADR के तहत सदस्य देश अन्य राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों, निजी गैर-सरकारी संगठनों के साथ हिंद-प्रशाँत क्षेत्र में अपने आपदा प्रतिक्रिया कार्यों का समन्वय करेंगे।

क्वाड समूह

  • क्वाड- भारत, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान का एक समूह है।
  • सभी चारों राष्ट्र लोकतांत्रिक होने के कारण इनकी एक सामान आधारभूमि हैं और निर्बाध समुद्री व्यापार और सुरक्षा के साझा हित का भी समर्थन करते हैं।
  • इसका उद्देश्य "मुक्त, स्पष्ट और समृद्ध" इंडो-पैसिफिक क्षेत्र सुनिश्चित करना तथा उसका समर्थन करना है।
  • क्वाड का विचार पहली बार वर्ष 2007 में जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने रखा था। हालाँकि यह विचार आगे विकसित नहीं हो सका, क्योंकि चीन के ऑस्ट्रेलिया पर दबाव के कारण ऑस्ट्रेलिया ने स्वयं को इससे दूर कर लिया।
  • अंतत: वर्ष 2017 में भारत, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और जापान ने एक साथ आकर इस "चतुर्भुज" गठबंधन का गठन किया।

QUAD

क्वाड व्यवस्था में भारत के लिये संभावनाएँ:

  • चीन से मुक़ाबला:
    • हिमालय में उपलब्ध अवसरवादी भूमि हड़पने के प्रयासों में संलग्न होने की तुलना में समुद्री क्षेत्र चीन के लिये बहुत अधिक महत्वपूर्ण हैं।
      • चीनी व्यापार का एक बड़ा हिस्सा भारतीय समुद्री मार्गों से होता है जो समुद्री चौकियोँ से होकर गुज़रता है।
      • सीमाओं पर किसी भी चीनी आक्रमण की स्थिति में, भारत क्वाड देशों के सहयोग से चीनी व्यापार को संभावित रूप से बाधित कर सकता है।
      • इसलिये महाद्वीपीय क्षेत्र के विपरीत भारत जहाँ चीन-पाकिस्तान की मिलीभगत के कारण 'नटक्रैकर जैसी स्थिति' का सामना कर रहा है, समुद्री क्षेत्र भारत के लिये गठबंधन, निर्माण, नियम स्थापित करने और रणनीतिक अन्वेषण के अन्य रूपों के लिये खुला है।
  • उभरते सुरक्षा प्रदाता की तरह:
    • समुद्री क्षेत्र में विशेष रूप से 'हिंद-प्रशांत' की अवधारणा के आगमन के साथ महान शक्तियों के बीच रुचि बढ़ रही है। उदाहरण के लिये, कई यूरोपीय देशों ने हाल ही में अपनी हिंद-प्रशांत रणनीतियों को जारी किया है।
    • भारत-प्रशांत भू-राजनीतिक कल्पना के केंद्र में स्थित है, 'व्यापक एशिया' की दृष्टि को साकार कर सकता है व भौगोलिक सीमाओं से दूर अपने प्रभाव को बढ़ा सकता है।
    • इसके अलावा भारत मानवीय सहायता और आपदा राहत, खोज एवं बचाव या समुद्री डकैती विरोधी अभियानों के लिये नौवहन की निगरानी, जलवायु की दृष्टि से कमज़ोर देशों को बुनियादी ढाँचा सहायता, कनेक्टिविटी पहल तथा इसी तरह की गतिविधियों में सामूहिक कार्रवाई कर सकता है।
    • इसके अलावा क्वाड हिंद महासागर क्षेत्र में चीन की साम्राज्यवादी नीतियों की जाँच कर सकता है तथा इस क्षेत्र में सभी के लिये सुरक्षा और विकास सुनिश्चित कर सकता है।

क्वाड से संबंधित मुद्दे:

  • अपरिभाषित दृष्टि: क्वाड परिभाषित रणनीतिक मिशन के बिना एक तंत्र बना हुआ है, इसके बावजूद सहयोग की संभावना है।
  • समुद्री प्रभुत्व: इंडो-पैसिफिक पर पूरा ध्यान क्वाड को एक भूमि-आधारित समूह के बजाय एक समुद्र का हिस्सा बनाता है, यह सवाल उठता है कि क्या यह सहयोग एशिया-प्रशांत और यूरेशियन क्षेत्रों तक फैला हुआ है।
  • भारत की गठबंधन प्रणाली का विरोध: तथ्य यह है कि भारत एकमात्र सदस्य है जो संधि गठबंधन प्रणाली के खिलाफ है, इसने एक मज़बूत चतुष्पक्षीय जुड़ाव को लेकर प्रगति को धीमा कर दिया है।

आगे की राह

  • क्वाड राष्ट्रों को सभी के आर्थिक एवं सुरक्षा हितों को आगे बढ़ाने के उद्देश्य से एक व्यापक ढाँचे में इंडो-पैसिफिक विज़न को बेहतर ढंग से प्रस्तुत करने की ज़रूरत है।
  • इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में भारत के कई अन्य साझेदार हैं, भारत ऐसे में इंडोनेशिया और सिंगापुर जैसे देशों को इस समूह में शामिल होने के लिये आमंत्रित कर सकता है।
  • भारत को इंडो-पैसिफिक क्षेत्र पर एक व्यापक दृष्टिकोण विकसित करनी चाहिये, जिसमें वर्तमान एवं भविष्य की समुद्री चुनौतियों पर विचार करने, अपने सैन्य एवं गैर-सैन्य उपकरणों को मज़बूत करने तथा रणनीतिक भागीदारों को शामिल करने पर ध्यान दिया जाए।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न :‘चतुर्भुज सुरक्षा संवाद’ (QUAD) वर्तमान समय में स्वयं को एक सैन्य गठबंधन से व्यापार गुट के रूप में परिवर्तित कर रहा है। चर्चा कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2020)

स्रोत: द हिंदू


G-4 देश

प्रिलिम्स के लिये:

संयुक्त राष्ट्र महासभा, G-4 देश, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC)।

मेन्स के लिये:

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता का महत्त्व।

चर्चा में क्यों?

संयुक्त राष्ट्र महासभा के हाल के 76वें सत्र के दौरान G-4 देशों ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में सुधार की 'तत्काल आवश्यकता' पर बल दिया।

G-4 देश:

  • G4 ब्राज़ील, जर्मनी, भारत और जापान का एक समूह है जो UNSC के स्थायी सदस्य बनने के इच्छुक हैं
  • G4 देश UNSC की स्थायी सदस्यता के लिये एक-दूसरे का समर्थन करत हैं।
  • G4 राष्ट्र पारंपरिक रूप से उच्च स्तरीय संयुक्त राष्ट्र महासभा के वार्षिक सत्र के दौरान मिलते हैं।

प्रमुख बिंदु:

  • उन्होंने महसूस किया कि संयुक्त राष्ट्र के निर्णय लेने वाले निकायों में तत्काल सुधार की आवश्यकता है क्योंकि वैश्विक मुद्दे तेज़ी से जटिल और परस्पर जुड़े हुए हैं।
  • इसके अलावा उन्होंने वार्ताओं की दिशा में काम करने के लिये अपनी संयुक्त प्रतिबद्धता दोहराई जो बहुपक्षवादी सुधार की ओर ले जाती है।
  • उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि महासभा ने अंतर-सरकारी वार्ता (IGN) में "सार्थक प्रगति" नहीं की और न ही पारदर्शिता को बनाए रखा।
  • उन्होंने अफ्रीकी देशों का स्थायी और अस्थायी रूप से प्रतिनिधित्व किये जाने के लिये अपना समर्थन दोहराया।
  • मंत्रियों ने अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा के सवालों पर जटिल एवं उभरती चुनौतियों का प्रभावी ढंग से जवाब देने हेतु परिषद की क्षमता बढ़ाने के लिये विकासशील देशों तथा संयुक्त राष्ट्र में प्रमुख योगदानकर्त्ताओं की बढ़ी हुई भूमिका एवं उपस्थिति की आवश्यकता पर सहमति व्यक्त की।

UNSC में सुधारों की आवश्यकता:

  • संयुक्त राष्ट्र दुनिया का प्रतिनिधित्व करता है और विडंबना यह है कि इसके महत्त्वपूर्ण निकाय में केवल 5 स्थायी सदस्य हैं।
  • सुरक्षा परिषद की वर्तमान संरचना द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद की वास्तविकताओं का प्रतिनिधित्व करती है और इस प्रकार दुनिया में शक्ति के बदलते संतुलन के अनुरूप नहीं है।
  • UNSC के गठन के समय बड़ी शक्तियों को उन्हें परिषद का हिस्सा बनाने के लिये विशेषाधिकार दिये गए थे। यह इसके उचित कामकाज़ के साथ-साथ संगठन 'लीग ऑफ नेशंस' की तरह विफलता से बचने के लिये आवश्यक था।
  • सुदूर पूर्व एशिया, दक्षिण अमेरिका और अफ्रीका जैसे क्षेत्रों का परिषद की स्थायी सदस्यता में कोई प्रतिनिधित्व नहीं है।

भारत द्वारा UNSC की स्थायी सदस्यता की मांग:

  • अवलोकन:
    • संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के गठन के पहले 40 वर्षों तक भारत ने कभी भी स्थायी सदस्यता के लिये नहीं कहा।
    • वर्ष 1993 में भी जब भारत ने सुधारों से संबंधित महासभा के प्रस्ताव के जवाब में संयुक्त राष्ट्र को अपना लिखित प्रस्ताव प्रस्तुत किया, तो उसने विशेष रूप से यह नहीं कहा कि वह अपने लिये स्थायी सदस्यता चाहता है।
    • पिछले कुछ वर्षों से ही भारत ने परिषद में स्थायी सदस्यता की मांग शुरू की है।
    • भारत अपनी अर्थव्यवस्था के आकार, जनसंख्या और इस तथ्य को देखते हुए कि यह दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, परिषद में स्थायी स्थान पाने का हकदार है।
      • भारत न केवल एशिया में बल्कि दुनिया में भी एक प्रमुख खिलाड़ी बन गया है।
      • यदि भारत इसमें स्थायी सदस्य के रूप में होता तो सुरक्षा परिषद एक अधिक प्रतिनिधि निकाय होगी।
  • आवश्यकता:
    • वीटो पावर होने से कोई असाधारण पावर का लाभ ले सकता है।
      • भारत 2009 से मसूद अजहर को वैश्विक आतंकवादी घोषित करने की कोशिश कर रहा था। चीन की एक वीटो शक्ति इसमें बाधा उत्पन्न करती रही।
    • भारत अपने हितों के लिये बेहतर काम कर पाएगा।
      • एक समय था जब USSR ने वास्तव में UNSC का बहिष्कार करना शुरू कर दिया था और यही वह समय था जब अमेरिका कोरियाई युद्ध के लिये प्रस्ताव पारित करने में कामयाब रहा था। उस समय से USSR ने महसूस किया कि संयुक्त राष्ट्र का बहिष्कार करने का कोई मतलब नहीं है। अगर कोई प्रस्ताव उनके खिलाफ है तो उसे वीटो रखने की आवश्यकता है।
    • एक स्थायी सदस्य के रूप में भारत की उपस्थिति एक वैश्विक शक्ति के तौर पर इसके उदय की स्वीकृति होगी, जो परिषद के अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा के उद्देश्यों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिये तैयार है।
    • भारत, परिषद की स्थायी सदस्यता से जुड़ी 'प्रतिष्ठा' का लाभ उठा सकेगा।

संयुक्त्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC):

  • अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखने की प्राथमिक ज़िम्मेदारी वर्ष 1945 में संयुक्त राष्ट्र चार्टर द्वारा स्थापित सुरक्षा परिषद की  है।
  • इस सुरक्षा परिषद में 15 सदस्य हैं:
    • इसके पाँच स्थायी सदस्य संयुक्त राज्य अमेरिका, रूसी संघ, फ्राँँस, चीन और यूनाइटेड किंगडम हैं।
    • सुरक्षा परिषद के अस्थायी सदस्यों को दो साल के कार्यकाल के लिये चुना जाता है।
  • सुरक्षा परिषद के प्रत्येक सदस्य का एक मत होता है। सभी मामलों पर सुरक्षा परिषद के निर्णय स्थायी सदस्यों सहित नौ सदस्यों के सकारात्मक मत द्वारा लिये जाते हैं, जिसमें सदस्यों की सहमति अनिवार्य है। पाँच स्थायी सदस्यों में से यदि कोई एक भी प्रस्ताव के विपक्ष में वोट देता है तो वह प्रस्ताव पारित नहीं होता है।
  • संयुक्त राष्ट्र का कोई भी सदस्य जो सुरक्षा परिषद का सदस्य नहीं है, बिना वोट के सुरक्षा परिषद के समक्ष लाए गए किसी भी प्रश्न की चर्चा में भाग ले सकता है, यदि सुरक्षा परिषद को लगता है कि उस विशिष्ट मामले के कारण उस सदस्य के हित विशेष रूप से प्रभावित होते हैं।

अंतर-सरकारी वार्ता:

  • IGN संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में और सुधार के लिये संयुक्त राष्ट्र के भीतर काम करने वाले राष्ट्र-राज्यों का एक समूह है।
  • IGN विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय संगठनों से बना है, यथा:
    • अफ्रीकी संघ
    • G4 राष्ट्र
    • आम सहमति समूह (UfC) के लिये एकजुट होना
    • L.69 विकासशील देशों का समूह
    • अरब संघ
    • कैरेबियन समुदाय (CARICOM)

आगे की राह

  • वैश्विक शक्तियों के पदानुक्रम बदल रहा है और P5 को यह महसूस करने की आवश्यकता है कि UNSC सुधारों को शुरू करने का यह उत्तम समय है। कमज़ोर शक्तियों को या तो अपनी सदस्यता छोड़ देनी चाहिये या UNSC के आकार का विस्तार करना चाहिये, जिससे नई उभरती शक्तियों के लिये दरवाज़े खुल सकें।
  • P5 के विस्तार से पहले अन्य सुधार कार्य सफल हो सकते हैं। तथाकथित शक्तिशाली राष्ट्रों में से कोई भी तालिका का विस्तार नहीं करना चाहता और न ही अपना हिस्सा दूसरे राष्ट्र के साथ साझा करना चाहता है।
  • प्रमुख बातचीत और समूहों में भाग लेने के लिये भारत को आर्थिक, सैन्य एवं कूटनीतिक रूप से खुद को मज़बूत करने पर ध्यान देने की ज़रूरत है। समय के साथ UNSC स्वयं भारत को UNSC का हिस्सा बनने के लिये उपयुक्त मानेगा।

स्रोत: द हिंदू


अलीवा: बाल विवाह के उन्मूलन हेतु डेटा संचालित दृष्टिकोण

प्रिलिम्स के लिये:

बाल विवाह, हिंदू विवाह अधिनियम 1955, विशेष विवाह अधिनियम 1954, बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006, 1993 में महिलाओं के खिलाफ सभी प्रकार के भेदभाव के उन्मूलन पर अभिसमय।

मेन्स के लिये:

भारत में बाल विवाह को समाप्त करने की पहल।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ओडिशा के एक ज़िले नयागढ़ ने बाल विवाह को मिटाने के लिये एक अनूठी पहल- अलीवा को अपनाया है।

  • ओडिशा की बाल विवाह रोकथाम रणनीति के अनुसार, राज्य का लक्ष्य 2030 तक बाल विवाह को समाप्त करना है।

पहल के प्रमुख बिंदु:

  • विषय:
    • यह कार्यक्रम जनवरी 2022 में शुरू किया गया था।
    • आंँगनबाड़ी कार्यकर्त्ताओं से कहा गया है कि वे अपने अधिकार क्षेत्र में आने वाली हर किशोरी की पहचान करें और उन पर नज़र रखें।
    • ज़िले के आंँगनबाडी केंद्रों में उपलब्ध अलीवा नाम के रजिस्टरों में किशोरियों की जन्म पंजीकरण तिथि, आधार, परिवार का विवरण, कौशल प्रशिक्षण आदि का विवरण दर्ज होता है।
    • लड़की की उम्र को स्थानीय स्कूल के प्रधानाध्यापक, पिता, पर्यवेक्षक और बाल विवाह निषेध अधिकारी (CMPO) द्वारा अनुमोदित किया जाता है।
    • अब तक ज़िले में 48,642 किशोरियों की जानकारी अलीवा रजिस्टर में दर्ज है।
    • बाल विवाह के बारे में सूचना मिलने पर ज़िला प्रशासन और पुलिस लड़कियों की उम्र के प्रमाण का पता लगाने के लिये रजिस्टर का सहारा लेते हैं।
    • ज़िले ने 10 वर्ष यानी 2020 से 2030 तक की अवधि के लिये रिकॉर्ड बनाए रखने का निर्णय लिया है।
  • महत्त्व:
    • अलीवा रजिस्टर अब तक सबसे विस्तारपूर्ण है जो 10 साल तक लड़कियों के जीवन की जानकारी रखता है।
      • कानून प्रवर्तन एजेंसियों के लिये यह रजिस्टर उपयोगी रहा है, क्योंकि माता-पिता सज़ा से बचने के लिये अपनी लड़कियों की उम्र के बारे में झूठ बोलने का प्रयास करते हैं।
    • पिछले आठ महीनों में ज़िला प्रशासन ने 61 बाल विवाह रोकने में कामयाबी हासिल की है।
    • यद्यपि रजिस्टर की संकल्पना बाल विवाह को रोकने के लिये की गई थी, लेकिन यह लड़कियों के स्वास्थ्य पर नज़र रखने के लिये बहुत उपयोगी रही है, खासकर यदि वे एनीमिक(रक्त की कमी से पीड़ित) हों।

भारत में बाल विवाह की वर्तमान स्थिति:

  • संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (United Nations Children’s Fund- UNICEF) के आकलन से पता चलता है कि भारत में प्रत्येक वर्ष 18 वर्ष से कम उम्र की कम-से-कम 15 लाख लड़कियों की शादी हो जाती है, जो वैश्विक संख्या का एक-तिहाई है और इस प्रकार अन्य देशों की तुलना में भारत में बाल वधुओं की सर्वाधिक संख्या मौजूद है।
    • NFHS-5 के अनुसार, सर्वेक्षण में शामिल3% महिलाओं की शादी 18 वर्ष की कानूनी आयु प्राप्त करने से पहले हो गई, जो NFHS-4 में रिपोर्ट किये गए 26.8% से कम है। पुरुषों में कम उम्र में विवाह का आँकड़ा 17.7% (NFHS-5) और 20.3% (NFHS-4) है।
      • पश्चिम बंगाल और बिहार में लगभग 41% ऐसी महिलाओं के साथ बालिका विवाह का प्रचलन सबसे अधिक था।
    • NHFS-5 के अनुसार, जम्मू-कश्मीर, लक्षद्वीप, लद्दाख, हिमाचल प्रदेश, गोवा, नगालैंड, केरल, पुद्दुचेरी और तमिलनाडु में कम उम्र में शादियाँ सबसे कम हुई हैं।
      • 20-24 वर्ष की आयु की महिलाओं की हिस्सेदारी जिन्होंने 18 वर्ष की आयु से पहले शादी की थी, पिछले पाँच वर्षों में 27% से घटकर 23% हो गई है।
      • राजस्थान, मध्य प्रदेश और हरियाणा में कम उम्र के विवाहों के अनुपात में सबसे अधिक कमी देखी गई।

बाल विवाह को रोकने हेतु सरकारी कानून और पहल:

  • शादी के लिये न्यूनतम आयु:
    • हिंदुओं के लिये हिंदू विवाह अधिनियम, 1955, महिला के लिये विवाह की न्यूनतम आयु 18 वर्ष और पुरुष के लिये न्यूनतम आयु 21 वर्ष निर्धारित करता है।
      • इस्लाम में युवावस्था प्राप्त कर चुके नाबालिग की शादी को वैध माना जाता है।
      • विशेष विवाह अधिनियम, 1954 भी महिलाओं और पुरुषों के लिये विवाह हेतु सहमति की न्यूनतम आयु के रूप में क्रमशः 18 और 21 वर्ष निर्धारित करता है।
  • बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 ने बाल विवाह निरोधक अधिनियम, 1929 का स्थान लिया, जो ब्रिटिश काल के दौरान अधिनियमित किया गया था।
    • यह एक बच्चे को 21 साल से कम उम्र के पुरुष और 18 साल से कम उम्र की महिला के रूप में परिभाषित करता है।
      • "नाबालिग" को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में परिभाषित किया गया है जिसने अधिनियम के अनुसार, वयस्कता की आयु प्राप्त नहीं की है।
    • किसी एक पक्ष द्वारा वांछित होने पर बाल विवाह की कानूनी स्थिति शून्य हो जाती है।
      • हालाँकि यदि सहमति धोखाधड़ी या छल से प्राप्त की जाती है या फिर बच्चे को उसके वैध अभिभावकों द्वारा बहकाया जाता है और यदि एकमात्र उद्देश्य बच्चे को तस्करी या अन्य अनैतिक उद्देश्यों के लिये उपयोग करना है, तो विवाह अमान्य होगा।
    • बालिकाओं के भरण-पोषण का भी प्रावधान है। यदि पति बालिग है तो गुजारा भत्ता देने के लिये उत्तरदायी है।
      • यदि पति भी अवयस्क है तो उसके माता-पिता को भरण-पोषण का भुगतान करना होगा।
    • बाल विवाह करने वाले वयस्क पुरुष या बाल विवाह को संपन्न कराने वालों को इस अधिनियम के तहत दो वर्ष के कठोर कारावास या 1 लाख रूपए का जुर्माना या दोनों सज़ा से दंडित किया जा सकता है।
    • अधिनियम में CPMO की नियुक्ति का भी प्रावधान है जिसका कर्तव्य बाल विवाह को रोकना और इसके बारे में जागरूकता फैलाना है।
  • लिंग अंतराल को कम करने हेतु भारत के प्रयास:
    • भारत ने वर्ष 1993 में ‘महिलाओं के विरुद्ध सभी प्रकार के भेदभाव के उन्मूलन पर अभिसमय (CEDAW) की पुष्टि की थी।
      • इस अभिसमय का अनुच्छेद-16 बाल विवाह का कठोरता से निषेध करता है और सरकारों से महिलाओं के लिये न्यूनतम विवाह योग्य आयु का निर्धारण करने एवं उन्हें लागू करने की अपेक्षा करता है।
      • वर्ष 1998 से भारत ने विशेष रूप से मानव अधिकारों की सुरक्षा पर राष्ट्रीय कानून का प्रवर्तन किया है, जिसे मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा, 1948 जैसे अंतर्राष्ट्रीय साधनों के अनुरूप तैयार किया गया है।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)

प्रश्न. भारतीय इतिहास के संदर्भ में 1884 का रखमाबाई मुकदमा किस पर केंद्रित था?

  1. महिलाओं का शिक्षा पाने का अधिकार
  2. सहमति की आयु
  3. दांपत्य अधिकारों का प्रत्यास्थापन

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये-

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (b)

व्याख्या:

  • रखमाबाई (1864-1955) ने इतिहास में अपनी पहचान सहमति आयु अधिनियम, 1891 के अधिनियमन में योगदान कानूनी मामले के कारण बना।
  • वर्ष 1885 में शादी के 12 वर्ष बाद उनके पति ने "वैवाहिक अधिकारों की बहाली" की मांग की, रखमाबाई को अपने पति के साथ रहने या छह महीने ज़ेल में बिताने का आदेश दिया गया। अत: 3 सही है।
  • रखमाबाई ने उस पति के साथ रहने से इनकार कर दिया, जिससे उसकी शादी बचपन में हुई थी, क्योंकि शादी में उसका कोई अधिकार नहीं था। रखमाबाई ने महारानी विक्टोरिया को पत्र लिखा। रानी ने न्यायालय के फैसले को खारिज़ कर दिया और शादी को भंग कर दिया।
  • इस मामले के प्रभावों ने सहमति की आयु अधिनियम, 1891 के पारित होने में गति प्रदान की, जिसने पूरे ब्रिटिश साम्राज्य में बाल विवाह को अवैध बना दिया। अत: 2 सही है।
  • हालाँकि रखमाबाई ब्रिटिश भारत में चिकित्सा का अभ्यास करने वाली पहली महिला डॉक्टर बनीं, लेकिन यह मामला महिलाओं के शिक्षा प्राप्त करने के अधिकार से संबंधित नहीं था। अतः 1 सही नहीं है।

अतः विकल्प (b) सही है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


बैंकिंग प्रणाली तरलता

प्रिलिम्स के लिये:

RBI, तरलता समायोजन सुविधा, कॉल मनी।

मेन्स के लिये:

बैंकिंग प्रणाली तरलता अधिशेष और घाटा तथा इसका प्रभाव।

चर्चा में क्यों?

 मई 2019 के बाद पहली बार लगभग 40 महीने तक अधिशेष में रहने के बाद बैंकिंग प्रणाली में तरलता घाटे में चली गई है।

बैंकिंग प्रणाली तरलता:

  • बैंकिंग प्रणाली में अधिक तरलता आसानी से उपलब्ध नकदी को संदर्भित करती है जिससे बैंक अल्पकालिक व्यापार और वित्तीय ज़रूरतों को पूरा करते हैं।
  • किसी निश्चित दिन पर यदि बैंकिंग प्रणाली तरलता समायोजन सुविधा (LAF) के तहत RBI से एक शुद्ध उधारकर्त्ता है, तो इसे तरलता के घाटे की स्थिति कहा जाता है और यदि बैंकिंग प्रणाली RBI के लिये एक शुद्ध ऋणदाता है तो इसे तरलता अधिशेष कहा जाता है।
    • LAF, RBI के संचालन को संदर्भित करता है जिसके माध्यम से वह बैंकिंग प्रणाली में या उससे तरलता को बढ़ाता या अवशोषित करता है।

घाटे  कोे ट्रिगर करने वाले मुद्दे:

  • नकदी की स्थिति में बदलाव अग्रिम कर निकासी के कारण आया है। इससे कॉल मनी रेट भी अस्थायी रूप से रेपो रेट से ऊपर बढ़ जाती है।
    • कॉल मनी दर वह दर है जिस पर मुद्रा बाज़ार में अल्पावधि निधि उधार ली जाती है और उधार दी जाती है।
    • बैंक इस प्रकार के ऋणों का सहारा परिसंपत्ति देयता असंतुलन को भरने, सांविधिक नकद आरक्षित अनुपात (CRR) और सांविधिक तरलता अनुपात (SLR) आवश्यकताओं का अनुपालन करने तथा धन की अचानक मांग को पूरा करने के लिये लेते हैं। RBI, बैंक, प्राथमिक डीलर आदि कॉल मनी मार्केट के भागीदार हैं।
    • इसके अलावा अमेरिकी डॉलर की तुलना में रुपए में गिरावट को रोकने के लिये RBI का लगातार हस्तक्षेप हो रहा है।
    • चलनिधि की स्थिति में कमी बैंक ऋण में वृद्धि, विदेशी मुद्रा बाज़ार में भारतीय रिज़र्व बैंक के हस्तक्षेप और ऋण मांग के असंतुलन के कारण वृद्धिशील ज़मा वृद्धि के कारण हुई है।

एक कठोर तरलता की स्थिति का उपभोक्ताओं पर प्रभाव:

  • एक कठोर तरलता (Tight Liquidity) की स्थिति से सरकारी प्रतिभूतियों की प्रतिफल में वृद्धि हो सकती है और बाद में उपभोक्ताओं के लिये ब्याज़ दरों में भी वृद्धि हो सकती है।
  • RBI रेपो रेट बढ़ा सकता है, जिससे फंड की लागत अधिक हो सकती है।
  • बैंक अपनी रेपो-लिंक्ड उधार दरों और फंड-आधारित उधार दर (MCLR) की सीमांत लागत में वृद्धि करेंगे, जिससे सभी ऋण जुड़े हुए हैं। इस वृद्धि के परिणामस्वरूप उपभोक्ताओं के लिये उच्च ब्याज़ दरें होंगी।
    • MCLR वह न्यूनतम ब्याज़ दर है जिस पर कोई बैंक उधार दे सकता है।

आगे की राह:

  • RBI की कार्रवाई तरलता की स्थिति की प्रकृति पर निर्भर करेगी। यदि मौजूदा चलनिधि घाटे की स्थिति अस्थायी है और मुख्य रूप से अग्रिम कर प्रवाह के कारण है, तो RBI को कार्रवाई नहीं करनी पड़ सकती है, क्योंकि फंड अंततः सिस्टम में वापस आ जाना चाहिये।
  • हालाँकि अगर यह प्रकृति में दीर्घकालिक है तो RBI को सिस्टम में तरलता की स्थिति में सुधार के लिये उपाय करना पड़ सकता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs):  

प्रश्न. यदि भारतीय रिज़र्व बैंक एक विस्तारवादी मौद्रिक नीति अपनाने का निर्णय लेता है, तो वह निम्नलिखित में से क्या नहीं करेगा? (2020)

  1. वैधानिक तरलता अनुपात में कटौती और अनुकूलन
  2. सीमांत स्थायी सुविधा दर में बढ़ोतरी
  3. बैंक रेट और रेपो रेट में कटौती

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (b)

  • विस्तारित मौद्रिक नीति या आसान मौद्रिक नीति तब होती है जब केंद्रीय बैंक अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहित करने के लिये अपने उपकरणों का उपयोग करता है। यह मुद्रा आपूर्ति तथा मांग को बढ़ाता है, ब्याज दरों को कम करता है इस प्रकार यह आर्थिक विकास को बढ़ावा देता है।
  • वैधानिक तरलता अनुपात (SLR) एक मौद्रिक नीति उपकरण है जिसका उपयोग भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) बैंकों के निपटान में तरलता का आकलन करने के लिये करता है। यह जमा का न्यूनतम प्रतिशत है जिसे वाणिज्यिक बैंक को नकद, सोना या अन्य प्रतिभूतियों के रूप में बनाए रखना होता है। यह मूल रूप से आरक्षित आवश्यकता है जिसे बैंकों से ग्राहकों को ऋण देने से पहले रखने की अपेक्षा की जाती है। एसएलआर बढ़ाने से बैंक सरकारी प्रतिभूतियों में अधिक पैसा लगाते हैं और अर्थव्यवस्था में नकदी के स्तर को कम करते हैं। इसके विपरीत स्थिति में अर्थव्यवस्था में नकदी प्रवाह को बनाए रखने में मदद मिलती है। एसएलआर कम करने से बैंकों के पास अधिक तरलता बच जाती है जो बदले में अर्थव्यवस्था में विकास और मांग को बढ़ावा दे सकती है। अतः कथन 1 सही नहीं है।
  • सीमांत स्थायी सुविधा (Marginal Standing Facility- MSF): वह सुविधा जिसके तहत अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक अपने 'वैधानिक तरलता अनुपात' (SLR) पोर्टफोलियो में निश्चित सीमा तक कमी (Dipping) करके ओवरनाइट सुविधा के तहत अतिरिक्त राशि उधार ले सकते हैं। एमएसएफ दर में वृद्धि के साथ बैंकों के लिये उधार लेने की लागत बढ़ जाती है जिसके परिणामस्वरूप उधार देने के लिये उपलब्ध संसाधन कम हो जाते हैं। अत: कथन 2 सही है।
  • रेपो दर या पुनर्खरीद दर ब्याज की प्रमुख मौद्रिक नीति दर है जिस पर केंद्रीय बैंक या भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) तरलता समायोजन सुविधा (LAF) के तहत सरकार और अन्य अनुमोदित प्रतिभूतियों के संपार्श्विक के बदले बैंकों को अल्पकालिक धन उधार देता है। बैंक दर वह ब्याज दर है जो RBI अपने दीर्घकालिक ऋणों पर वसूल करता है। विस्तारवादी मौद्रिक नीति के तहत RBI बैंकिंग क्षेत्र में तरलता बढ़ाने के लिये रेपो दर और बैंक दर को कम करता है। अत: कथन 3 सही नहीं है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस