डेली न्यूज़ (23 Dec, 2020)



COVID-19 के प्रबंधन पर रिपोर्ट

चर्चा में क्यों?

देश में कोरोना वायरस महामारी के प्रबंधन को लेकर गृह मामलों की संसदीय स्थायी समिति ने हाल ही में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की है।

प्रमुख बिंदु

  • समिति ने अपनी रिपोर्ट में कुल चार पहलुओं का विस्तृत मूल्यांकन किया है:
    • तत्परता
    • स्वास्थ्य अवसंरचना
    • सामाजिक प्रभाव 
    • आर्थिक प्रभाव

तत्परता

  • समस्या
    • समय रहते ज़िला स्तर पर भोजन, आश्रय और अन्य सुविधाओं से संबंधित दिशा-निर्देशों तथा सूचनाओं की कमी के कारण प्रवासी मज़दूरों के बीच चिंता और अनिश्चितता का माहौल पैदा हो गया, जिससे वे अपने गृह राज्य की ओर पुनः प्रवासन करने लगे और इसी पूरी प्रकिया में प्रवासी मज़दूर, कारखाना मज़दूर एवं दिहाड़ी मज़दूर सबसे अधिक प्रभावित हुए।
  • समाधान
    • आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 और महामारी रोग अधिनियम, 1897 के तहत महामारी रोकथाम के लिये एक राष्ट्रीय योजना और दिशा-निर्देश तैयार किये जाने की आवश्यकता है।
    • राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) के तहत एक विशिष्ट विंग का गठन किया जाना चाहिये, जिसके पास महामारी से निपटने में विशेषज्ञता हो और जो सार्वजनिक क्षेत्र, कॉरपोरेट्स, गैर-सरकारी संगठनों तथा अन्य हितधारकों के साथ सरकार की साझेदारी के निर्माण में अग्रणी भूमिका अदा करेगी।
    • भविष्य में इस तरह के संकट के प्रति त्वरित प्रतिक्रिया के लिये केंद्र, राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के बीच समन्वय हेतु एक प्रभावी संस्थागत तंत्र की आवश्यकता है।

स्वास्थ्य अवसंरचना

  • समस्या
    • निजी और सार्वजनिक अस्पतालों में ICU बेड्स की असंगतता एक बड़ी समस्या है।
    • जिन निजी अस्पतालों में बेड उपलब्ध हैं, वे या तो भौगोलिक रूप से आम लोगों की पहुँच से बाहर हैं या फिर अपेक्षाकृत काफी महँगे हैं।
      • कई निजी अस्पतालों में ओवरचार्जिंग यानी अधिक शुल्क लेने, कैशलेस सुविधा न प्रदान करने, उपभोग की वस्तुओं जैसे- पीपीई किट और मास्क आदि के लिये अलग से शुल्क वसूलने आदि समस्याएँ देखी गईं।
  • समाधान
    • समिति ने सुझाव दिया है कि इस समस्या से निपटने के लिये राष्ट्रीय स्तर पर एक व्यापक सार्वजानिक स्वास्थ्य अधिनियम बनाया जाना चाहिये, जो कि 
      • निजी अस्पतालों की जाँच और उन पर नियंत्रण में सरकार के प्रयासों का समर्थन कर सके।
      • दवाओं की कालाबाज़ारी पर लगाम लगा सके और उत्पाद मानकीकरण सुनिश्चित कर सके।
    • समिति का सुझाव है कि बीमा दावों को लेकर देश भर के सभी अस्पतालों के नियामक पर्यवेक्षण कराए जाने की आवश्यकता है।
    • इसके तहत बीमा कवरेज वाले सभी लोगों के लिये COVID-19 उपचार को कैशलेस बनाने का लक्ष्य होना चाहिये।

सामाजिक प्रभाव

  • समस्या
    • समिति ने अपनी रिपोर्ट में अंतर-राज्य प्रवासी कामगार (रोज़गार का ‎विनियमन और सेवा शर्तें) अ‎धिनियम,1979 के अप्रभावी क्रियान्वयन को एक बड़ी समस्या बताया है।
    • देशव्यापी लॉकडाउन के दौरान प्रवासी श्रमिकों के निवास स्थानों की पहचान करने और उन तक राहत पहुँचाना एक बड़ी समस्या थी, क्योंकि केंद्र अथवा राज्य सरकार के पास प्रवासी श्रमिकों से संबंधित कोई आँकड़े उपलब्ध नहीं थे।
  • समाधान
    • नीति निर्माताओं को जल्द-से-जल्द प्रवासी श्रमिकों से संबंधित एक राष्ट्रीय डेटाबेस लॉन्च करना चाहिये, ताकि महामारी और लॉकडाउन से प्रभावित लोगों को अतिशीघ्र राहत प्रदान की जा सके।
    • इस डेटाबेस के तहत ‘प्रवासी मज़दूरों के स्रोत और गंतव्य, उनके रोज़गार तथा कौशल की प्रकृति आदि से संबंधित विवरण शामिल किया जा सकता है।
      • यह भविष्य में महामारी जैसी समान आपातकालिक परिस्थितियों में प्रवासी श्रमिकों के लिये नीति निर्माण में मदद करेगा।
    • समिति के मुताबिक, जब तक सभी राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में 'एक देश-एक राशन कार्ड' योजना पूरी तरह से लागू नहीं हो जाती है, तब तक राशन कार्डों के अंतर-राज्य संचालन की अनुमति दी जानी चाहिये।
    • ‘मिड-डे मील’ योजना को शुरू किया जाना चाहिये।
      • जब तक स्कूल न खुल जाएँ तब तक यह सुनिश्चित किया जाना चाहिये कि स्थानीय प्रशासन समय पर राशन/भत्ता उपलब्ध कराए।

आर्थिक प्रभाव

  • समस्या
    • सरकारी योजनाओं का खराब क्रियान्वयन।
    • ऋण वितरण में विलंब। 
    • लॉकडाउन के कारण रोज़गार का नुकसान और आय में भारी गिरावट के चलते निजी खपत में काफी कमी।
  • सुझाव
    • अर्थव्यवस्था को पुनः पटरी पर लाने और महामारी से प्रभावित क्षेत्रों विशेष रूप से MSMEs का आर्थिक पुनरुद्धार सुनिश्चित करने के लिये और अधिक सरकारी योजनाओं एवं हस्तक्षेप की आवश्यकता है।

संसदीय समितियाँ

  • संसद के विभिन्न कार्यों को प्रभावी ढंग से संपन्न करने के लिये संसदीय समितियों को एक माध्यम के तौर पर प्रयोग किया जाता है। इन समितियों में विभिन्न दलों के सांसदों के छोटे-छोटे समूह होते हैं, जिन्हें उनकी व्यक्तिगत रुचि और विशेषता के आधार पर बाँटा जाता है।
    • स्थायी समितियाँ 
    • अस्थायी समितियाँ या तदर्थ समितियाँ
  • आमतौर पर संसदीय समितियाँ दो प्रकार की होती हैं: 
  • स्थायी समितियाँ: ये अनवरत प्रकृति की होती हैं अर्थात् इनका कार्य सामान्यतः निरंतर चलता रहता है। इसे निम्नलिखित समूहों में वर्गीकृत किया जा सकता है:
    • वित्तीय समितियाँ
    • विभागीय स्थायी समितियाँ (24)
    • सदन के दिन-प्रतिदिन के कार्यों से संबंधित गतिविधियाँ
  • अस्थायी समितियाँ या तदर्थ समितियाँ: तदर्थ समितियाँ अस्थायी प्रकृति की होती हैं और उन्हें सौंपे गए विशिष्ट कार्य की समाप्ति के बाद इन समितियों को भी समाप्त कर दिया जाता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारत-वियतनाम आभासी शिखर सम्मेलन

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत और वियतनाम ने अपने आभासी शिखर सम्मेलन के दौरान रक्षा, पेट्रोकेमिकल और परमाणु ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में सात समझौतों पर हस्ताक्षर किये तथा अपनी विकास साझेदारी को बढ़ाने पर सहमति व्यक्त की। इससे दोनों देशों को सतत् विकास लक्ष्यों (Sustainable Development Goals- SDGs) को प्राप्त करने में मदद मिलेगी, साथ ही जलवायु परिवर्तन (Climate Change) से निपटने की क्षमता विकसित होगी।

Vietnam

प्रमुख बिंदु

मुख्य समझौते:

  • इन समझौतों में विभिन्न क्षेत्र जैसे- IT, संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना (PeaceKeeping) और कैंसर अनुसंधान शामिल हैं।
  • दोनों पक्षों के बीच नेशनल टेलिकॉम इंडस्ट्री, न्हा ट्रांग (वियतनाम) में आर्मी सॉफ्टवेयर पार्क के लिये 5 मिलियन अमेरिकी डॉलर की भारतीय अनुदान सहायता हेतु समझौता हुआ। 
  • दोनों देशों ने विकिरण और परमाणु सुरक्षा के क्षेत्र में अपने नियामक निकायों के बीच द्विपक्षीय सहयोग को बढ़ावा देने पर प्रतिबद्धता जाहिर की।

रक्षा और सुरक्षा:

  • भारत-वियतनाम के बीच रक्षा और सुरक्षा साझेदारी भारत-प्रशांत क्षेत्र (Indo-Pacific Region) में स्थिरता लाने में एक महत्त्वपूर्ण कारक साबित होगा।
  • दोनों देश अपने तीनों सैन्य सेवाओं और तटरक्षक बलों के लिये सैन्य स्तर पर आदान-प्रदान, प्रशिक्षण तथा क्षमता निर्माण कार्यक्रमों को आगे बढ़ाएंगे तथा वियतनाम तक विस्तारित भारत की डिफेंस क्रेडिट लाइन को मज़बूत बनाएंगे।
    • VINBAX, भारत और वियतनाम की सेनाओं के बीच होने वाला एक सैन्य अभ्यास है।
  • दोनों पक्ष पारंपरिक और गैर-पारंपरिक सुरक्षा खतरों (साइबर, आतंकवाद, प्राकृतिक आपदा आदि) के समाधान के साथ ही ज़रूरत पड़ने पर कानून तथा न्यायिक सहयोग से अंतर-देशीय अपराधों से निपटने हेतु संस्थागत संवाद व्यवस्था के माध्यम से जुड़ेंगे।
    • इसका एक सफल उदाहरण भारत द्वारा वियतनाम के लिये डिफेंस लाइन ऑफ क्रेडिट (100 मिलियन डॉलर) के तहत हाई स्पीड गार्ड बोट विनिर्माण परियोजना का सफल कार्यान्वयन किये जाने के रूप में देखा जा सकता है।

पर्यटन: 

  • दोनों पक्ष अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद पर व्यापक सम्मेलन (Comprehensive Convention on International Terrorism) को जल्द अपनाने हेतु सहमति बनाने के संयुक्त प्रयासों को आगे बढ़ाएंगे।

दक्षिणी चीन सागर:

  • दोनों पक्षों ने अंतर्राष्ट्रीय कानून, खासतौर पर संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि (United Nations Convention on the Law of the Sea),1982  के अनुसार विवादों के शांतिपूर्ण समाधान का समर्थन करते हुए दक्षिण चीन सागर में शांति, स्थिरता, सुरक्षा और समुद्री व हवाई परिवहन की आज़ादी को बनाए रखने के महत्त्व को दोहराया।
  • दोनों नेताओं ने डिक्लरेशन ऑन कंडक्ट ऑफ पार्टीज़ इन साउथ चाइना सी (Declaration on the Conduct of Parties in the South China Sea) को पूर्ण और प्रभावी ढंग से लागू करने की अपील की।

विभिन्न मंचों पर सहयोग:

  • दोनों पक्ष बहुपक्षीय और क्षेत्रीय सहयोग को मज़बूत करेंगे, जिसमें संयुक्त राष्ट्र, आसियान की अगुवाई वाली व्यवस्थाएँ तथा मेकांग उप-क्षेत्रीय साझेदारी शामिल है। 
  • दक्षिण-पूर्वी एशियाई राष्ट्रों का संगठन:
    • हिंद-प्रशांत क्षेत्र में साझेदारी को प्रोत्साहित करने के लिये प्रमुख क्षेत्रों और आसियान आउटलुक ऑन इंडो-पैसफिक (ASEAN Outlook on Indo-Pacific) तथा इंडियाज़ इंडो-पैसफिक ओसियंस इनिशिएटिव (India’s Indo-Pacific Oceans Initiative) में व्यक्त किये गए उद्देश्यों एवं सिद्धांतों के अनुसार आसियान व भारत के बीच व्यावहारिक सहयोग को बढ़ाने वाले अवसरों का स्वागत किया गया। 
  • दोनों पक्ष संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UN Security Council) सहित अन्य अंतर्राष्ट्रीय संगठनों को अधिक प्रतिनिधित्व वाली, समकालीन और मौजूदा चुनौतियों से निपटने में सक्षम बनाने के लिये बहुपक्षवाद (Multilateralism) को सक्रियता के साथ प्रोत्साहित करेंगे। 

कोविड-19 महामारी का प्रबंधन:

  • वे कोविड-19 महामारी का प्रबंधन करने में अपने अनुभव साझा करेंगे और साझेदारी को बढ़ावा देंगे, स्वास्थ्य पेशेवरों की ऑनलाइन ट्रेनिंग का समर्थन करेंगे, टीके के विकास में संस्थागत सहयोग प्रदान करेंगे, खुली आपूर्ति शृंखलाओं को बढ़ावा देंगे, सीमा पार आवाजाही को सुविधाजनक बनाएंगे तथा WHO (World Health Organization) जैसी बहुपक्षीय संस्थाओं में घनिष्ठ संपर्क व तालमेल बनाए रखेंगे।
  • महामारी के बाद सहयोग:
    • दोनों पक्ष कोविड-19 महामारी से जन्मी नई चुनौतियों के साथ-साथ नए अवसरों को स्वीकार करते हुए विश्वसनीय, कुशल और अनुकूल आपूर्ति शृंखला के निर्माण की दिशा में काम करेंगे तथा मानव-केंद्रित वैश्वीकरण को बढ़ावा देंगे।

आर्थिक सहयोग:

  • वर्ष 2024 तक भारत के 5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने के लक्ष्य और वर्ष 2045 तक उच्च आय वाली अर्थव्यवस्था बनने की वियतनाम की महत्त्वाकांक्षा की प्राप्त के लिये MSMES तथा कृषि समेत अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों का अच्छी तरह से दोहन किया जाएगा।
  • भारत और वियतनाम दोनों एक व्यापक रणनीतिक साझेदार हैं। इस आर्थिक सहयोग का एक बड़ा उदाहरण वियतनाम के निन्ह थुआन (Ninh Thuan) प्रांत में स्थानीय समुदाय के लाभ के लिये भारत की ओर से 15 लाख डॉलर के ‘सहायता अनुदान’ (Grant-in-Aid) से सात विकास परियोजनाओं को पूरा किया गया।

जलवायु परिवर्तन पर सहयोग:

  • दोनों पक्ष नई और नवीकरणीय ऊर्जा संसाधनों, ऊर्जा संरक्षण तथा अन्य जलवायु-अनुकूल प्रौद्योगिकियों में भागीदारी करेंगे।
  • भारत ने कहा कि भविष्य में अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन में वियतनाम की संभावित भागीदारी, सौर ऊर्जा को बड़े पैमाने पर विकसित करने में सहयोग के नए अवसर प्रदान करेगी।
  • भारत को उम्मीद है कि निकट भविष्य में आपदारोधी अवसंरचना गठबंधन (Coalition for Disaster Resilient Infrastructure) में वियतनाम शामिल होगा।
  • दोनों मेकांग - गंगा त्वरित प्रभाव परियोजनाओं (Mekong - Ganga Quick Impact Projects) के विस्तार पर सहमत हुए।

सांस्कृतिक सहयोग और जुड़ाव:

  • दोनों पक्ष वर्ष’ 2022 में भारत-वियतनाम राजनयिक संबंधों की 50वीं वर्षगाँठ को यादगार बनाने के लिये भारत-वियतनाम सांस्कृतिक और सभ्यता पर एक विश्वकोश को प्रकाशित करने के लिये सक्रिय रूप से सहयोग करेंगे।
  • दोनों पक्ष अपने साझा संस्कृति और सभ्यता (बौद्ध, चाम संस्कृति, परंपरा, प्राचीन शास्त्र) की विरासत को संजोएंगे तथा इसमें शोध कार्यों को बढ़ावा देंगे।
    • दोनों देशों में चिकित्सा की पारंपरिक प्रणालियाँ (आयुर्वेद और वियतनाम- पारंपरिक चिकित्सा) स्वास्थ्य संबंधी समृद्ध ज्ञान के कई सामान्य सूत्र साझा करते हैं।
  • वियतनाम में विरासत के संरक्षण में तीन विकास भागीदारी परियोजनाओं (माई सन मंदिर के एफ-ब्लॉक, क्वांग नाम में डोंग डुओंग बौद्ध मठ और फु येन में न्हान चाम टॉवर) पर अमल किया जाएगा जाएगा।

लोगों के बीच संपर्क:

  • दोनों पक्ष सीधी उड़ानों को बढ़ाकर, सरल वीज़ा प्रक्रियाओं द्वारा यात्राओं को आसान बनाकर और पर्यटन की सुविधाएँ बढ़ाकर लोगों के बीच घनिष्ठ आदान-प्रदान में वृद्धि के प्रयासों को तेज़ करेंगे।

शिक्षा और संस्थागत सहयोग:

  • वे अपने रिश्तों को संसदीय आदान-प्रदान, भारतीय प्रदेशों और वियतनामी प्रांतों के बीच संबंधों, शैक्षिक तथा अकादमिक संस्थानों के बीच सहयोग, संयुक्त शोध कार्यक्रम, फिल्म, खेल आदि के माध्यम से मज़बूत बनाएंगे। 
  • वे भारत-वियतनाम संबंधों और उनके ऐतिहासिक रिश्तों से जुड़ी सामग्री को एक-दूसरे के स्कूलों की पाठ्यपुस्तकों में बढ़ावा देने के लिये दोनों पक्षों की संबंधित एजेंसियों के बीच सहयोग को सुविधाजनक बनाएंगे।

आगे की राह

  • वियतनाम भारत की एक्ट ईस्ट नीति का एक प्रमुख स्तंभ है और दोनों देशों के बीच सहयोग की अभी काफी गुंजाइश है।
  • भारत और वियतनाम के बीच निकट संबंध दक्षिण-पूर्व एशिया (जहाँ चीन लगातार आक्रामक रुख अपना रहा है) में रणनीतिक संतुलन बनाए रखने के लिये काफी महत्त्वपूर्ण हैं।
  • वैश्विक स्तर पर चीन विरोधी भावनाओं के बीच कई कंपनियों ने चीन से हटने का निर्णय लिया है, जिससे भारत और वियतनाम के लिये कई आर्थिक अवसर उत्पन्न हुए हैं, आवश्यक है कि दोनों देश एक साथ मिलकर इन अवसरों का लाभ प्राप्त करें।
  • इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में मौजूद रणनीतिक चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए भारत और वियतनाम को बहुपक्षीय संस्थानों जैसे- संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) आदि में निकटता के साथ कार्य करना चाहिये। ज्ञात हो कि भारत और वियतनाम को आगामी दो वर्षों के लिये संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में अस्थायी सदस्यों के तौर पर चुना गया है।

स्रोत: पीआईबी


विद्युत (उपभोक्ताओं के अधिकार) नियम, 2020

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्र सरकार द्वारा ‘विद्युत (उपभोक्ताओं के अधिकार) नियम, 2020’ को अधिसूचित किया गया है, जो देश में उपभोक्ताओं को विद्युत की विश्वसनीय एवं निरंतर आपूर्ति तक पहुँच की सुविधा प्रदान करेगा। 

  • गौरतलब है कि ‘विद्युत’ संविधान की सातवीं अनुसूची के तहत समवर्ती सूची का विषय है और केंद्र सरकार के पास इस पर कानून बनाने की शक्ति तथा अधिकार है। 

प्रमुख बिंदु:

कवरेज:  

  • इन नियमों के तहत  देश में उपभोक्ताओं के लिये विद्युत आपूर्ति के विभिन्न पहलुओं को कवर किया गया है, जिनमें वितरण लाइसेंसधारियों के दायित्व, मीटरिंग की व्यवस्था, नए कनेक्शन जारी करना, मौजूदा कनेक्शनों में संशोधन, शिकायत निवारण और मुआवज़ा तंत्र शामिल हैं।

महत्त्व: 

  • यह वितरण कंपनियों को उपभोक्ताओं के प्रति अधिक जवाबदेह बनाएगा, इस प्रकार यह वितरण कंपनियों के एकाधिकार को कम करेगा और उपभोक्ताओं को अधिक विकल्प प्रदान करेगा।
  • इसके तहत अनुपालन सुनिश्चित करने के लिये सरकार द्वारा वितरण कंपनियों पर दंड लागू  करने का प्रावधान किया गया है तथा इससे प्राप्त राशि को उपभोक्ताओं के खाते में जमा किया जाएगा।
  • ये नियम देश भर में ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस (Ease of Doing Business) को आगे बढ़ाने की दिशा में भी एक महत्त्वपूर्ण कदम है।
  • इन नियमों के कार्यान्वयन से नए बिजली कनेक्शन, रिफंड और ऐसी ही अन्य महत्त्वपूर्ण सेवाओं की आपूर्ति समयबद्ध तरीके से सुनिश्चित की जा सकेगी।

नियम में शामिल क्षेत्र: 

अधिकार और दायित्त्व:

  • अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार, किसी परिसर के मालिक या पट्टेदार द्वारा किये गए अनुरोध पर विद्युत आपूर्ति सुनिश्चित करना प्रत्येक वितरण लाइसेंसधारी का उत्तरदायित्त्व होगा।
  • इसके तहत वितरण लाइसेंसधारी से विद्युत की आपूर्ति के लिये सेवा के न्यूनतम मानकों के संदर्भ में उपभोक्ताओं के अधिकारों को भी शामिल किया गया है।

नए कनेक्शन जारी करना और मौजूदा कनेक्शन में संशोधन:

  • पारदर्शी, सरल और समयबद्ध प्रक्रियाएँ।
  • आवेदक के लिये ऑनलाइन आवेदन का विकल्प।
  • चिह्नित क्षेत्रों में नए कनेक्शन प्रदान करने और मौजूदा कनेक्शन को संशोधित करने हेतु मेट्रो शहरों में 7 दिन और अन्य नगरपालिका क्षेत्रों में 15 दिन तथा’ ग्रामीण क्षेत्रों में 30 दिनों की अधिकतम अवधि।
  • कनेक्शन काटने और पुनः जोड़ने का प्रावधान। 

विद्युत मीटर से जुड़े प्रावधान: 

  • कोई कनेक्शन बगैर मीटर के नहीं दिया जाएगा।
  • सभी मीटर स्मार्ट प्रीपेमेंट मीटर या प्रीपेमेंट मीटर होंगे।
  • मीटरों के परीक्षण का प्रावधान। 
  • दोषपूर्ण/ जले हुए या चोरी हो गए मीटरों के प्रतिस्थापन के लिये प्रावधान।

बिलिंग और भुगतान: 

  • उपभोक्ता टैरिफ और बिलों में पारदर्शिता।
  • एक उपभोक्ता के पास बिल का भुगतान करने के लिये ऑनलाइन और ऑफलाइन माध्यम का विकल्प होगा।
  • बिलों के अग्रिम भुगतान का प्रावधान।

आपूर्ति की विश्वसनीयता:

  • वितरण लाइसेंसधारी को सभी उपभोक्ताओं को 24x7 बिजली की आपूर्ति सुनिश्चित करनी होगी। हालाँकि कृषि जैसे उपभोक्ताओं की कुछ श्रेणियों के लिये आपूर्ति के कम घंटे निर्दिष्ट किये जा सकते हैं।
  •  वितरण लाइसेंसधारी को विद्युत कटौती की निगरानी और पुनर्बहाली के लिये एक तंत्र (जहाँ तक संभव हो स्वाचलित) की स्थापना करनी होगी।   

प्रोज़्यूमर (Prosumer) के रूप में उपभोक्ता:

  • इस स्थिति में एक प्रोज़्यूमर अपने उपभोक्ता होने के दर्जे को बनाए रखेंगे और उनके पास एक सामान्य उपभोक्ता के बराबर अधिकार होंगे परंतु उन्हें छत पर सौर ऊर्जा उपकरण के साथ नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन इकाइयों को स्थापित करने का भी अधिकार होगा।
    • एक प्रोज़्यूमर (Prosumer) वह व्यक्ति है जो  उपभोग के साथ-साथ  उत्पादन भी करता है।

लाइसेंस के प्रदर्शन मानक:

  • वितरण लाइसेंसधारियों के लिये प्रदर्शन के मानकों को अधिसूचित किया जाएगा।
  • प्रदर्शन के मानकों के उल्लंघन की स्थिति में वितरण लाइसेंसियों द्वारा उपभोक्ताओं को मुआवज़ा राशि देने का प्रावधान किया जाएगा।

मुआवज़ा तंत्र:

  • उपभोक्ताओं को स्वचालित मुआवज़े का भुगतान किया जाएगा, जिसके लिये मानकों के प्रदर्शन की निगरानी दूरस्थ रूप (Remotely) से की जा सकती है।

उपभोक्ता सेवाओं के लिये कॉल सेंटर:

  • वितरण लाइसेंसधारी को एक केंद्रीकृत 24x7 टोल-फ्री कॉल सेंटर स्थापित करना होगा।
  • लाइसेंसधारी एक एकीकृत दृष्टिकोण प्राप्त करने के लिये सभी सेवाओं को एक सार्वजनिक ‘ग्राहक संबंध प्रबंधन’ (Customer Relation Manager- CRM) प्रणाली के माध्यम से प्रदान करने का प्रयास करेंगे।

शिकायत निवारण तंत्र: 

  • उपभोक्ता शिकायत निवारण फोरम (CGRF) में उपभोक्ता और प्रोज़्यूमर के प्रतिनिधि शामिल होंगे।
  • इसे बहु स्तरीय बनाकर आसान कर दिया गया है और उपभोक्ता के प्रतिनिधियों की संख्या एक से चार कर दी गई है।
  • लाइसेंसधारक उस समय को निर्दिष्ट करेगा जिसके भीतर विभिन्न स्तरों पर फोरम द्वारा अलग-अलग प्रकार की शिकायतों का समाधान किया जाना है। शिकायत निवारण के लिये अधिकतम 45 दिनों की समयावधि निर्दिष्ट की गई है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


पूर्व शिक्षण की मान्यता (RPL) कार्यक्रम

चर्चा में क्यों?

कौशल विकास एवं उद्यमिता मंत्रालय (Ministry of Skill Development and Entrepreneurship- MSDE) पंचायती राज विभाग (Department of Panchayati Raj- DoPR) के साथ मिलकर श्रमिकों हेतु ‘पूर्व शिक्षण की मान्यता’ (Recognition of Prior Learning-RPL) नामक एक विशेष कार्यक्रम का आयोजन कर रहा है।

प्रमुख बिंदु:

RPL कार्यक्रम:

  • इसका उद्देश्य कौशल विकास कार्यक्रमों के बेहतर नियोजन और कार्यान्वयन के लिये विकेंद्रीकरण और स्थानीय शासन को बढ़ावा देना है।
  • इसका कार्यान्वयन राष्ट्रीय कौशल विकास निगम (National Skill Development Corporation- NSDC) द्वारा किया जा रहा है।
  • यह औपचारिक माध्यम के इतर अधिग्रहीत शिक्षण के मूल्य को मान्यता देता है और एक व्यक्ति के कौशल के लिये एक सरकारी प्रमाण-पत्र प्रदान करता है।
  • इस कार्यक्रम में उम्मीदवारों को डिजिटल और वित्तीय साक्षरता की अवधारणाओं के लिये तीन वर्ष तक निःशुल्क जोखिम एवं आकस्मिक बीमा कवरेज भी प्रदान किया जाएगा।
  • RPL कार्यक्रम में भाग लेने के लिये किसी भी उम्मीदवार से कोई शुल्क नहीं लिया जाता है बल्कि प्रत्येक सफल तथा प्रमाण-पत्र प्राप्त करने वाले उम्मीदवार को 500 रुपए प्रदान किये जाते हैं।
  • MSDE राज्य कौशल विकास मिशनों (State Skill Development Missions- SSDMs)/ज़िला कौशल समितियों (District Skill Committees- DSCs) के चयन और परियोजना कार्यान्वयन एजेंसियों (Project Implementing Agencies- PIAs) की सहायता और कार्यक्रम के सफल निष्पादन की सुविधा प्रदान कर रहा है।
  • इस योजना की निगरानी कौशल विकास एवं उद्यमिता मंत्रालय तथा पंचायती राज मंत्रालय द्वारा की जा रही है, इसके लिये उन्हें पंचायती राज निदेशालय, उत्तर प्रदेश और राज्य कौशल विकास मिशन, उत्तर प्रदेश द्वारा सहायता प्रदान की जा रही है।
  • यह पहल ‘ग्राम पंचायत के स्तर पर कौशल विकास योजना’ (Skill Development Planning at the level of Gram Panchayat) के एक व्यापक कार्यक्रम का हिस्सा है जो देश भर के विभिन्न ज़िलों की ग्राम पंचायतों में संगठित तरीके से RPL को मान्यता देने की शुरुआत पर केंद्रित है।

महत्त्व:

  • हमारे देश की लगभग 70 प्रतिशत जनसंख्या ग्रामीण भारत में रहती है, इसलिये  ज़िला कौशल विकास योजनाओं की सफलता के लिये ज़िला पंचायतों का समावेश महत्त्वपूर्ण है। साथ ही इस प्रकार का समावेशन कौशल भारत अभियान के मामले में एक व्यापक स्तर की सुविधा प्रदान करेगा।
  • RPL देश में पहले से मौजूद कार्यबल के कौशल को मानकीकृत ढाँचे के साथ संरेखित करेगा तथा उम्मीदवारों को आत्मविश्वास, सम्मान तथा मान्यता प्रदान प्रदान करेगा।
  • युवाओं के अनौपचारिक शिक्षण की नियम-निष्ठता को समर्थन मिलने से स्थायी आजीविका के अवसर तलाशने जैसे उनके प्रयास पूरे होंगे और दूसरों के ज्ञान पर आधारित विशेषाधिकार जैसी असमानताओं को कम किया जा सकेगा।
  • यह प्रशिक्षुओं के कौशल को पहचानने के अलावा उन्हें ग्राम पंचायत के विकास कार्यों के कारण सृजित कार्य अवसरों से भी जोड़ेगा।
  • ग्राम पंचायत स्तर पर कौशल विकास की योजना से सही अर्थों में विकेंद्रीकरण में योगदान मिलेगा।

आजीविका संवर्द्धन के लिये कौशल अधिग्रहण और ज्ञान जागरूकता (SANKALP) योजना 

यह कौशल विकास उद्यमिता मंत्रालय (एमएसडीई) का एक परिणाम आधारित केंदीय प्रायोजित कार्यक्रम है जिसका विशेष फोकस विकेंद्रित, विनियोजन एवं गुणवत्ता सुधार पर है। 

  • यह एक केंद्र प्रायोजित योजना है जो विश्व बैंक के सहयोग से तैयार की गई है।
  • इसका उद्देश्य राष्ट्रीय कौशल विकास मिशन (NSDM) के अधिदेश को कार्यन्वित करना है। 
  • यह केंद्रीय एवं राज्य दोनों ही एजेंसियों को शामिल करते हुए समग्र कौशल निर्माण प्रणाली पर ध्यान केंद्रित करती है। 
  • इसके तहत चार प्रमुख परिणाम क्षेत्रों की पहचान की गई है जो इस प्रकार हैं: 
    • संस्थागत सुदृढ़ीकरण (राष्ट्रीय, राज्य एवं ज़िला स्तर पर); 
    • कौशल विकास कार्यक्रमों का गुणवत्तापूर्ण आश्वासन; 
    • कौशल विकास में अधिकार विहीन आबादी का समावेश ;
    • सार्वजनिक निजी साझेदारी (पीपीपी) के ज़रिये कौशलों को विस्तारित करना।

स्रोत: पी.आई.बी.


भारत में जनसंख्या स्थिरता: NFHS-5

चर्चा में क्यों?

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (NFHS-5) के हालिया आँकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि कुल प्रजनन दर (TFR) में गिरावट के कारण भारत की जनसंख्या में स्थिरता आ रही है।

प्रमुख बिंदु

पृष्ठभूमि

  • वर्ष 2005 और वर्ष 2016 के बीच आयोजित NFHS-3 और NFHS-4 के दौरान देश भर के 22 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में से 12 में आधुनिक गर्भनिरोधक उपायों (गर्भनिरोधक गोलियाँ, कंडोम, अंतर्गर्भाशयी उपकरण) के उपयोग में गिरावट देखी गई थी।
    • हालाँकि NFHS-5 में इस स्थिति में सुधार हुआ है और कुल 12 में से 11 राज्यों में आधुनिक गर्भनिरोधक उपायों के प्रयोग में बढ़ोतरी हुई है।

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5

  • कुल प्रजनन दर (TFR): किसी एक विशिष्ट वर्ष में प्रजनन दर का अभिप्राय प्रजनन आयु (जो कि आमतौर पर 15 से 49 वर्ष की मानी जाती है) के दौरान एक महिला से जन्म लेने वाले अनुमानित बच्चों की औसत संख्या को दर्शाता है।
    • पिछले आधे दशक की समयावधि में अधिकांश भारतीय राज्यों में TFR में गिरावट दर्ज की गई है, विशेषकर शहरी महिलाओं में। इसका अर्थ है कि भारत की जनसंख्या में स्थिरता आ रही है।
    • सिक्किम में सबसे कम TFR (औसतन 1.1) दर्ज किया गया, जबकि बिहार में प्रति महिला औसत TFR 3 दर्ज किया गया।
    • सर्वेक्षण में शामिल 22 राज्यों में से 19 राज्यों में कुल प्रजनन दर (TFR) को प्रतिस्थापन स्तर से कम पाया गया।
      • प्रतिस्थापन स्तर का अभिप्राय उस कुल प्रजनन दर से होता है, जिस पर एक पीढ़ी बिना पलायन के स्वयं को दूसरी पीढ़ी के साथ प्रतिस्थापित कर लेती है अर्थात् हम कह सकते हैं कि इस अवस्था में मरने वाले लोगों का स्थान भरने के लिये उतने ही बच्चे पैदा हो जाते हैं।
      • यह स्तर अधिकतर देशों में प्रति महिला लगभग 2.1 है, हालाँकि यह मृत्यु दर में परिवर्तन के साथ कुछ अलग हो सकता है।
  • गर्भ निरोधक का उपयोग
    • समग्र तौर पर भारत के अधिकांश राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में गर्भनिरोधक प्रचलन दर (CPR) में बढ़ोतरी देखी गई है, और यह दर हिमाचल प्रदेश और पश्चिम बंगाल में सबसे अधिक है।

निहितार्थ

  • इन आँकड़ों से यह स्पष्ट होता है कि भारत के अधिकांश राज्यों में कुल प्रजनन दर (TFR) प्रतिस्थापन स्तर पर पहुँच गई है। 
  • राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में आधुनिक गर्भ निरोधकों के उपयोग में वृद्धि को इंगित करता है, साथ ही एक महिला से जन्म लेने वाले औसत बच्चों की संख्या में भी गिरावट दर्ज की जा रही है।

जनसंख्या नियंत्रण से संबंधित उपाय

  • प्रधानमंत्री की अपील: वर्ष 2019 में स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर अपने संबोधन में प्रधानमंत्री ने देश से अपील करते हुए जनसंख्या नियंत्रण को देशभक्ति के एक रूप के तौर पर प्रस्तुत किया था।
  • मिशन परिवार विकास: केंद्र सरकार ने 7 उच्च जनसंख्या वृद्धि वाले राज्यों के 146 ज़िलों (जिनमें कुल प्रजनन दर 3 से अधिक है) में गर्भ निरोधकों और परिवार नियोजन सेवाओं की पहुँच को लगातार बढ़ाने के लिये वर्ष 2017 में मिशन परिवार विकास की शुरुआत की थी।
  • राष्ट्रीय परिवार नियोजन क्षतिपूर्ति योजना (NFPIS): इस योजना को वर्ष 2015 में लॉन्च किया गया था और इसके तहत लाभार्थियों की मृत्यु और नसबंदी की विफलता की स्थिति में बीमा प्रदान किया जाता है।
  • नसबंदी करने वालों के लिये मुआवज़ा योजना: योजना के तहत स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा वर्ष 2014 से नसबंदी कराने वाले लाभार्थियों की मज़दूरी के नुकसान की भरपाई की जाती है।

अंतर्विरोध

  • राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 के आँकड़ों से यह सिद्ध होता है कि देश की जनसंख्या में स्थिरता आ रही है, जबकि सरकार द्वारा ‘जनसंख्या विस्फोट’ के मद्देनज़र सरकार लोगों से जनसंख्या कम करने की अपील कर रही है।

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण

  • यह पूरे देश भर में व्यापक पैमाने पर आयोजित किया जाने वाला एक राष्ट्रीय सर्वेक्षण है, जिसे कई राउंड्स में पूरा किया जाता है।
    • सर्वेक्षण का पहला चरण 22 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के आँकड़े प्रदर्शित करता है, जबकि शेष 14 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों (चरण- II) में कार्य प्रगति पर है।
  • इसका आयोजन स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के प्रबंधन में किया जाता है, जहाँ मुंबई स्थित अंतर्राष्ट्रीय जनसंख्या विज्ञान संस्थान (IIPS) नोडल एजेंसी के रूप में कार्य करती है।

आगे की राह

  • भारत की जनसंख्या पहले ही 125 करोड़ के आँकड़े को पार कर चुकी है और उम्मीद है कि आने वाले कुछ दशकों में भारत, विश्व के सबसे अधिक आबादी वाले देश चीन को भी पीछे छोड़ देगा।
  • कई जानकारों का मानना है कि बच्चों की संख्या पर प्रतिबंध लगाने से संबंधित कोई भी नीति भारत के तकनीकी क्रांति को आगे बढ़ाने के लिये आवश्यक शिक्षित युवाओं की कमी की संख्या को और भी गंभीर कर देगा।
    • ‘वन चाइल्ड पॉलिसी’ के कारण चीन के समक्ष मौजूद समस्याएँ (जैसे- लैंगिक असंतुलन) भारत के सक्षम भी उत्पन्न हो सकती हैं।
  • NFHS-5 के आधार पर मौजूदा कार्यक्रमों को मज़बूत करने और नीतिगत हस्तक्षेप के लिये नई रणनीतियों को विकसित किया जा सकता है।
  • नीति निर्माताओं को हालिया NFHS-5 आँकड़ों के आधार पर वर्तमान नीतियों और कार्यक्रमों में आवश्यक परिवर्तन करना चाहिये।

स्रोत: द हिंदू


किलाऊआ ज्वालामुखी: हवाई

चर्चा में क्यों?

हाल ही में हवाई के बिग आईलैंड के किलाऊआ ज्वालामुखी (Kilauea Volcano) में विस्फोट होने के कारण 4.4 तीव्रता का भूकंप आया।

Kilauea-Volcano

प्रमुख बिंदु:

किलाऊआ ज्वालामुखी:

  • किलाऊआ, जिसे माउंट किलाऊआ (हवाई में "अधिक फैलाने वाला") भी कहा जाता है, संयुक्त राज्य अमेरिका के हवाई द्वीप के दक्षिण-पूर्वी भाग पर हवाई ज्वालामुखी राष्ट्रीय उद्यान में स्थित है।
    • किलाऊआ के पश्चिमी और उत्तरी ढलान इसके पास के ज्वालामुखी मौनालोआ के साथ विलय होते हैं।
  • इसे विश्व के सबसे सक्रिय ज्वालामुखियों में स्थान प्राप्त है तथा इसका आकार गुंबद के समान है।
  • ज्वालामुखी का 4,090-फुट (1,250-मीटर) शिखर क्षतिग्रस्त हो गया है जिसके कारण लगभग 3 मील (5 किमी) लंबा, 2 मील (3.2 किमी०) चौड़ा तथा 4 वर्ग मील (10 वर्ग किलोमीटर) से अधिक के क्षेत्र वाले एक काल्डेरा का निर्माण हुआ है।
    • काल्डेरा, क्रेटर (यह ज्वालामुखी शंकु के ऊपर सामान्यतः कीपाकार गर्तनुमा आकृति है) का ही विस्तृत रूप है। यह क्रेटर में धँसाव अथवा विस्फोटक उदगार से निर्मित स्थलरूप माना जाता है। क्रेटर के धँसाव से उसका आकार बड़ा हो जाता है व काल्डेरा का निर्माण होता है। 
  • विस्फोट की घटनाएँ: 
    • काल्डेरा 19वीं शताब्दी के दौरान और 20वीं शताब्दी के शुरुआती भाग में लगभग निरंतर सक्रिय रहने वाला स्थल था।
    • किलाऊआ में वर्ष 1952 से अब तक  लगभग 34 बार विस्फोट हो चुका है।
    • ज्वालामुखी के पूर्वी रिफ्ट ज़ोन के साथ वर्ष 1983 से 2018 तक विस्फोट की गतिविधि लगभग जारी रहीं

भारत में ज्वालामुखी:

  • बैरन द्वीप, अंडमान द्वीप समूह (भारत का एकमात्र सक्रिय ज्वालामुखी)
  • नारकोंडम, अंडमान द्वीप समूह
  • बारातांग, अंडमान द्वीप समूह
  • डेक्कन ट्रैप्स, महाराष्ट्र
  • धिनोधर हिल्स, गुजरात
  • धोसी हिल, हरियाणा

ज्वालामुखी:

Volcano

  • ज्वालामुखी का संबंध पृथ्वी के अन्तर्जात बल से उत्पन्न होने वाले आकस्मिक संचलन से है। इसके अंतर्गत पृथ्वी के  आंतरिक परतों में पेरीडोटाइट के गलन से मैग्मा की उत्पत्ति होती है।
  • जब यही मैग्मा पृथ्वी की आंतरिक परतों को तोड़ते हुए सतह पर आता है तो उसे लावा कहा जाता है। इस क्रिया के अंतर्गत लावा के अतिरिक्त गैस, राख व तरल पदार्थ भी पृथ्वी की सतह पर आते हैं।
  • इस प्रकार मैग्मा की उत्पत्ति से लेकर उदगार तक की सम्पूर्ण क्रिया को ज्वालामुखीयता (Volcanism) कहा जाता है।
  • ज्वालामुखी क्रिया में सबसे अधिक जलवाष्प गैस निकलती है। इसके अलावा कार्बन डाइऑक्साइड, सल्फर  डाइऑक्साइड, हाइड्रोजन तथा नाइट्रोजन जैसी कई अन्य गैसें भी निकलती हैं।
  • ज्वालामुखीयता के कारण:
    • पृथ्वी की आंतरिक परतों में रेडियोएक्टिव तत्त्वों के विघटन के फलस्वरूप अत्यधिक तापमान के कारण संवहन धाराओं की उत्पत्ति होती है जो प्लेटों के संचलन हेतु प्रमुख रूप से उत्तरदायी हैं।
    • संवहन धाराओं के प्रभाव से प्लेटों में अपसारी, अभिसारी व समानांतर प्लेट संचलन संपन्न होता है, किंतु ज्वालामुखीयता से केवल अपसारी व अभिसारी प्लेट संचलन का ही संबंध है। 
    • अपसारी प्लेट सीमांत पर प्लेटों के एक-दूसरे के विपरीत संचलन से भ्रंशन की क्रिया के फलस्वरूप दाब में कमी के कारण शांत दरार प्रकार की ज्वालामुखी की क्रिया संपन्न होती है।
      • फलस्वरूप महासागरीय बेसिन पर ही जहाँ बेसाल्ट लावा से महासागरीय कटक का निर्माण होता है, वहीं महाद्वीपीय क्षेत्र पर बेसाल्टिक पठार का विकास होता है।
    • अभिसारी प्लेट सीमांत पर अत्यधिक घनत्त्व वाली प्लेट का कम घनत्त्व वाली प्लेट के नीचे क्षेपण से तापमान व दाब की अधिकता के कारण मैग्मा की उत्पत्ति होती है और यही मैग्मा पृथ्वी की आंतरिक परतों को तोड़ते हुए सतह पर आ जाता है। 
      • फलस्वरूप महाद्वीपीय क्षेत्र में ज्वालामुखी पर्वत तथा महासागरीय क्षेत्र में ज्वालामुखी द्वीप का निर्माण होता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


हरित राष्ट्रीय राजमार्ग गलियारा परियोजना

चर्चा में क्यों?

भारत सरकार और विश्व बैंक (World Bank) ने हरित राष्ट्रीय राजमार्ग गलियारा परियोजना (Green National Highways Corridor Project- GNHCP) के कार्यान्वयन हेतु 500 मिलियन डॉलर की एक परियोजना पर हस्ताक्षर किये हैं।

प्रमुख बिंदु:

परियोजना के बारे में:

  • सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय (Ministry of Road Transport and Highways- MoRTH) ने सितंबर 2015 में ‘हरित राजमार्ग नीति’ (Green Highways Policy) की घोषणा का अनुसरण करते हुए राष्ट्रीय हरित राजमार्ग मिशन (National Green Highways Mission- NGHM) की शुरुआत की थी।
  • हरित राष्ट्रीय राजमार्ग गलियारा परियोजना (GNHCP), NGHM के क्रियान्वयन तथा हरित एवं सुरक्षित परिवहन के प्रावधान का समर्थन करती है।
  • परियोजना का उद्देश्य चयनित राज्यों में सुरक्षित और हरित राष्ट्रीय राजमार्ग गलियारों का प्रदर्शन करना और हरित एवं सुरक्षित प्रौद्योगिकियों के क्षेत्र में सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय (MoRTH) की क्षमता का विस्तार करना भी है।

परियोजना के घटक:

  • हरित राजमार्ग गलियारा सुधार और रख-रखाव:
    • इसमें राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश और आंध्र प्रदेश राज्यों में मौजूदा राष्ट्रीय राजमार्गों में से चयनित लगभग 783 किमी. लंबे राजमार्गों का पाँच वर्षों तक उन्नयन एवं रख-रखाव शामिल है।
  • संस्थागत क्षमता संवर्द्धन:
    • यह प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण और राष्ट्रीय राजमार्ग नेटवर्क की जलवायु भेद्यता में सुधार लाने तथा ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन को कम करने के प्रयास में MoRTH की क्षमता बढ़ाने में मदद करेगा।
  • सड़क सुरक्षा:
    • यह सड़क सुरक्षा से संबंधित डेटा विश्लेषण और राजमार्ग सुरक्षा निगरानी में सुधार के संदर्भ में सहायता प्रदान करेगा।

सरकार तथा विश्व बैंक के बीच समझौते के बारे में:

  • अंतर्राष्ट्रीय पुनर्निर्माण और विकास बैंक (International Bank for Reconstruction and Development- IBRD) से 500 मिलियन डॉलर के ऋण की परिपक्वता अवधि पाँच वर्ष की रियायत के साथ 18.5 वर्ष है।

परियोजना का महत्त्व:

  • भारत में लगभग 40 प्रतिशत सड़क यातायात राष्ट्रीय राजमार्गों के माध्यम से होता है। हालाँकि इन राजमार्गों के कई हिस्से ऐसे हैं जिनकी क्षमता अपर्याप्त तथा जल निकासी से संबंधित संरचनाएँ कमज़ोर हैं। इसके अलावा इन हिस्सों में दुर्घटना प्रवण ब्लैक स्पॉट भी मौजूद हैं।
  • परिवहन से संबंधित बुनियादी ढाँचे का उद्देश्य निर्बाध कनेक्टिविटी प्रदान करना और लॉजिस्टिक्स खर्चे को कम करना है।
  • ऐतिहासिक रूप से भारत में परिवहन क्षेत्र ने महिलाओं के लिये सीमित रोज़गार के अवसर उपलब्ध कराए हैं। यह परियोजना परिवहन क्षेत्र में लिंग-संबंधी मुद्दों के गहन विश्लेषण के साथ-साथ राजमार्ग गलियारों में हरित प्रौद्योगिकियों का इस्तेमाल करने के लिये महिलाओं के नेतृत्त्व वाले सूक्ष्म उद्यमों और महिलाओं के सामूहिक प्रशिक्षण द्वारा महिलाओं हेतु रोज़गार सृजन में मंत्रालय की मदद करेगी।
  • यह भारतमाला परियोजना कार्यक्रम (Bharatmala Pariyojana Program-BPP) का भी समर्थन करेगी।

हरित राजमार्ग नीति 2015 की प्रमुख विशेषताएँ:

  • इस नीति का उद्देश्य समुदायों, किसानों, गैर सरकारी संगठनों, निजी क्षेत्रों और वन विभाग सहित अन्य सरकारी संस्थाओं की भागीदारी से देश में राजमार्ग गलियारों में हरियाली को बढ़ावा देना है।
  • यह नीति विकास के मार्ग में आने वाले मुद्दों को संबोधित करती है और सतत् विकास के मार्ग को प्रशस्त करती है।
    • किसी भी क्षेत्र में वृक्षों का रोपण मिट्टी की उपयुक्तता और जलवायु परिस्थितियों पर निर्भर करेगा।
  • इसका उद्देश्य राष्ट्रीय राजमार्गों के किनारे वृक्ष तथा झाड़ियाँ लगाकर वायु प्रदूषण और धूल के प्रभाव को कम करना है। ये वृक्ष तथा झाड़ियाँ वायु प्रदूषकों के लिये प्राकृतिक सिंक के रूप में कार्य करेंगे और तटबंध की ढलानों पर मृदा अपरदन को रोकने का कार्य करेंगे।

विश्व बैंक (World Bank)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस