भारत की एक्ट फार ईस्ट पॉलिसी

चर्चा में क्यों?

रूस में आयोजित ईस्टर्न इकोनाॅमिक फोरम (Eastern Economic Forum- EEF) में प्रधानमंत्री मोदी ने रूस के सुदूर पूर्वी क्षेत्र (Russia’s Far East Region) में विकास कार्यों को गति देने एवं रूस से रिश्तों को और अधिक मज़बूत करने के लिये ‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी’ (Act East policy) की ही तरह ‘एक्ट फार ईस्ट पॉलिसी’ (Act Far East policy) की शुरुआत की है।

प्रमुख बिंदु:

  • एक्ट फार ईस्ट पॉलिसी के तहत भारत ने रूस के फार ईस्ट (Far East) में विकास कार्यों के लिये 1 बिलियन डॉलर की लाइन ऑफ क्रेडिट (Line of Credit) की भी घोषणा की है।
  • भारत की इस नीति से भारतीय आर्थिक कूटनीति के विकास को एक नई राह मिलेगी एवं रूस के साथ संबंधों को और अधिक घनिष्ट किया जा सकेगा।
  • उल्लेखनीय है कि अपनी एक्ट ईस्ट पॉलिसी के तहत भारत पूर्वी एशिया (East Asia) के साथ सक्रिय रूप से कार्य कर रहा है।

क्या है लाइन ऑफ क्रेडिट?

लाइन ऑफ क्रेडिट (Line of Credit-LOC) एक प्रकार का ‘सुलभ ऋण’ (Soft Loan) होता है जो एक देश की सरकार द्वारा किसी अन्य देश की सरकार को रियायती ब्याज दरों पर दिया जाता है। आमतौर LOC इस प्रकार की शर्तों से जुड़ा हुआ होता है कि उधार लेने वाला देश उधार देने वाले देश से कुल LOC का निश्चित हिस्सा आयात करेगा। इस प्रकार दोनों देशों को अपने व्यापार और निवेश संबंधों को मज़बूत करने का अवसर मिलता है।

  • भारत ने अब तक SAARC सदस्यों को लाइन ऑफ क्रेडिट दिया है, जिनमें बांग्लादेश को 8 बिलियन डॉलर, श्रीलंका को 2 बिलियन डॉलर और अफगानिस्तान को 1.2 बिलियन डॉलर का ऋण शामिल है, परंतु अभी तक भारत ने किसी विकसित अर्थव्यवस्था को लाइन ऑफ क्रेडिट नहीं दिया था।

भारत के निहितार्थ:

  • रूस का यह क्षेत्र प्राकृतिक संसाधनों जैसे - तेल, प्राकृतिक गैस, लकड़ी, सोना और हीरे आदि से संपन्न है एवं भारत को अपनी आर्थिक वृद्धि की दर को बरकरार रखने के लिये इन सभी संसाधनों की ज़रूरत है।
  • भारत खाड़ी देशों पर अपनी ऊर्जा निर्भरता को कम करना चाहता है, इसलिये वह रूस से इन मुद्दों पर संपर्क साध रहा है, विदित है कि रूस के पास पर्याप्त मात्रा में ऊर्जा संसाधनों की उपलब्धता है।
  • भारत जैसे विकासशील देशों के लिये उनकी ऊर्जा ज़रूरतें मायने रखती हैं, इसलिये संभव है कि इस प्रकार के विकल्प तलाशने के बाद भारत, वैश्विक भू-राजनीतिक पटल पर अधिक मज़बूती से उभरे।
  • भारत और रूस के बीच इस क्षेत्र में विकास के लिये श्रमशक्ति (Manpower) के आयात पर भी चर्चा की गई, इसके परिणामस्वरूप भारतीयों को इस क्षेत्र में रोज़गार के नए अवसर मिल सकेंगे।
    • उल्लेखनीय है कि रूस का यह क्षेत्र, क्षेत्रफल की दृष्टि से विश्व के कुछ बड़े क्षेत्रों की सूची में शामिल है, परंतु इसके बावजूद भी इस क्षेत्र का जनसंख्या घनत्व काफी कम है।
    • रूस में भारतीय प्रवासियों की कम संख्या वहाँ पर सॉफ्ट-पॉवर (Soft Power) को कम कर रही है, प्रवासियों की संख्या बढ़ने से वहाँ पर भारत का सॉफ्ट-पॉवर बढ़ेगा, साथ ही भारत और रूस के संबंध बहुआयामी होंगे।
    • अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों द्वारा अपने वीज़ा नियमों को कठोर करने के बाद वहाँ पर भारतीयों का प्रवेश मुश्किल हो रहा है, इसलिये भारत द्वारा श्रमशक्ति (Manpower) के आयात संबंधी इस प्रकार के समझौते भारतीयों को बेहतर रोज़गार के मौके प्रदान करेंगे।
  • इस क्षेत्र के भू-रणनीतिक महत्त्व को देखते हुए भारत ने वर्ष 1992 में व्लादिवोस्तोक (Vladivostok) में वाणिज्य दूतावास की शुरुआत की थी। भारत वह पहला देश है जिसने व्लादिवोस्तोक में इस प्रकार का कदम उठाया था।
  • भारत के इस निर्णय को चीन की ‘स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स पॉलिसी’ (String of Pearls Policy) के काउंटर के रूप में भी देखा जा सकता है।
  • यह ठंडे साइबेरियाई जलवायु में स्थित एक क्षेत्र है, लेकिन अधिक महत्त्वपूर्ण रूप से यह चीन, मंगोलिया, उत्तर कोरिया और जापान (समुद्री) के साथ सीमा साझा करता है, जो इसे परिवहन की दृष्टि से काफी सुगम बनाता है।

भारत द्वारा उठाए गए इस प्रकार के महत्त्वपूर्ण कदम भारत को अंतर्राष्ट्रीय पटल पर और अधिक मज़बूत बनाते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वित्तीय वर्ष 2024-25 तक भारत को 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने का उद्देश्य निर्धारित किया है और इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिये हमें उन सभी क्षेत्रों की ओर भी ध्यान देना चाहिये जहाँ अब तक भारत की पहुँच कम है। इस संदर्भ में एक्ट फार ईस्ट पॉलिसी काफी लाभदायक साबित हो सकती है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस