हिंद-प्रशांत क्षेत्र
प्रिलिम्स के लिये:HACGAM, साउथ चाइना सी, रीजनल कॉम्प्रिहेंसिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप (RCEP), रेयर अर्थ मेटल्स मेन्स के लिये:हिंद-प्रशांत क्षेत्र का महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
नई दिल्ली में एशियाई तटरक्षक एजेंसियों (HACGAM) की 18वीं बैठक के दौरान भारत के रक्षा मंत्री ने पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य को संरक्षित करते हुए आर्थिक विकास के लिये समुद्री संसाधनों के सतत् उपयोग पर ज़ोर देते हुए कहा कि भारत हिंद-प्रशांत क्षेत्र में खुली और नियम आधारित समुद्री सीमाओं हेतु तैयार है।
एशियाई तटरक्षक एजेंसियों के प्रमुखों की बैठक (HACGAM):
- यह एक शीर्ष स्तर का मंच है जो एशियाई क्षेत्र की सभी प्रमुख तटरक्षक एजेंसियों को सुविधा प्रदान करता है, इसकी स्थापना वर्ष 2004 में हुई थी।
- यह ऑस्ट्रेलिया, बहरीन, बांग्लादेश, ब्रुनेई, कंबोडिया, चीन, फ्राँस, भारत, इंडोनेशिया, जापान, दक्षिण कोरिया, लाओ पीपुल्स डेमोक्रेटिक रिपब्लिक, मलेशिया, मालदीव, म्याँमार, पाकिस्तान, फिलीपींस, सिंगापुर, श्रीलंका, थाईलैंड, तुर्किये, वियतनाम और हॉन्गकॉन्ग (चीन) सहित 23 देशों का एक बहुपक्षीय मंच है।
- भारतीय तटरक्षक बल (ICG) HACGAM सचिवालय के समन्वय से 18वें HACGAM की मेज़बानी कर रहा है।
- 18 देशों एवं दो अंतर्राष्ट्रीय संगठनों [एशिया में जहाज़ों पर होने वाली समुद्री डकैती और सशस्त्र डकैती का सामना करने हेतु क्षेत्रीय सहयोग समझौता (ReCAAP ISC) तथा ड्रग्स और अपराध पर संयुक्त राष्ट्र कार्यालय- वैश्विक समुद्री अपराध कार्यक्रम (UNODC-GMCP)] के कुल 55 प्रतिनिधि बैठक में भाग ले रहे हैं।
हिंद-प्रशांत क्षेत्र
- परिचय:
- हिंद-प्रशांत एक हालिया अवधारणा है। लगभग एक दशक पहले दुनिया ने हिंद-प्रशांत के बारे में बात करना शुरू किया; इसका उदय काफी महत्त्वपूर्ण रहा है।
- इस शब्द की लोकप्रियता के पीछे के कारणों में से एक यह है कि हिंद एवं प्रशांत महासागर एक-दूसरे से रणनीतिक रूप से निकटता से जुड़े हैं।
- साथ ही एशिया आकर्षण का केंद्र बन गया है। इसका कारण यह है कि हिंद महासागर और प्रशांत महासागर समुद्री मार्ग प्रदान करते हैं। दुनिया का अधिकांश व्यापार इन्हीं महासागरों के माध्यम से होता है।
- महत्त्व:
- भारत-प्रशांत क्षेत्र दुनिया के सबसे अधिक आबादी वाले और आर्थिक रूप से सक्रिय क्षेत्रों में से एक है जिसमें चार महाद्वीप शामिल हैं: एशिया, अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका।
- क्षेत्र की गतिशीलता और जीवन शक्ति स्वयं स्पष्ट है, दुनिया की 60% आबादी और वैश्विक आर्थिक उत्पादन का 2/3 भाग इस क्षेत्र को वैश्विक आर्थिक केंद्र बनाता है।
- यह क्षेत्र प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का एक बड़ा स्रोत और गंतव्य भी है। हिंद-प्रशांत क्षेत्र दुनिया की कई महत्त्वपूर्ण एवं बड़ी आपूर्ति शृंखलाओं संबंधित है।
- भारतीय और प्रशांत महासागरों में संयुक्त रूप से समुद्री संसाधनों का विशाल भंडार है, जिसमें अपतटीय हाइड्रोकार्बन, मीथेन हाइड्रेट्स, समुद्री खनिज और पृथ्वी की दुर्लभ धातु शामिल हैं।
- बड़े समुद्र तट और अनन्य आर्थिक क्षेत्र (EEZ) इन संसाधनों के दोहन के लिये तटीय देशों को प्रतिस्पर्द्धी क्षमता प्रदान करते हैं।
- दुनिया की कई सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएँ हिंद-प्रशांत क्षेत्र में स्थित हैं, जिनमें भारत, यू.एस.ए, चीन, जापान, ऑस्ट्रेलिया शामिल हैं।
हिंद-प्रशांत क्षेत्र के संदर्भ में भारत का परिप्रेक्ष्य:
- सुरक्षा ढाँचा हेतु दूसरों के साथ सहयोग: भारत के कई महत्त्वपूर्ण साझेदार, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जापान और इंडोनेशिया का मानना है कि दक्षिण चीन सागर, पूर्वी चीन सागर में भारत की उपस्थिति मूल रूप से चीन का मुकाबला करने के लिये हो।
- हालाँकि भारत इस क्षेत्र में शांति और सुरक्षा के लिये सहयोग करना चाहता है। साझा समृद्धि एवं सुरक्षा हेतु देशों को बातचीत के माध्यम से क्षेत्र के लिये एक सामान्य नियम-आधारित व्यवस्था विकसित करने की आवश्यकता है।
- हिंद-प्रशांत क्षेत्र अफ्रीका से अमेरिका तक विस्तृत: भारत के लिये हिंद-प्रशांत क्षेत्र एक स्वतंत्र, खुले, समावेशी क्षेत्र के रूप में है। इसमें इस क्षेत्र से संबंधित सभी देश और भागीदारी रखने वाले देश शामिल हैं। भारत अपने भौगोलिक आयाम में अफ्रीका के तटों से लेकर अमेरिका के तटों तक के क्षेत्र को मानता है।
- व्यापार और निवेश में समान हिस्सेदारी: भारत हिंद-प्रशांत क्षेत्र में नियम-आधारित, खुले, संतुलित और स्थिर व्यापार वातावरण का समर्थन करता है, जो व्यापार एवं निवेश के क्षेत्र में सभी देशों के उन्नयन को सुनिश्चित करता है। ये देश क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) से अपेक्षा रखते है।
- एकीकृत आसियान: चीन के विपरीत भारत एक एकीकृत आसियान चाहता है, न कि विभाजित। चीन कुछ आसियान सदस्यों को दूसरों के खिलाफ करने की कोशिश के साथ एक तरह से 'फूट डालो और राज करो' की रणनीति को क्रियान्वित करता है।
- चीन के साथ सहयोग: भारत हिंद-प्रशांत क्षेत्र की अमेरिकी विचारधारा का पालन नहीं करता है, जो चीनी प्रभुत्व को नियंत्रित करना चाहता है। इसके बजाय भारत उन तरीकों की तलाश कर रहा है जिससे वह चीन के साथ मिलकर काम कर सके।
- एकल अभिकर्त्ता के प्रभुत्व के विरुद्ध: भारत इस क्षेत्र का लोकतंत्रीकरण करना चाहता है।पहले यह क्षेत्र अमेरिका के प्रभुत्त्व में हुआ करता था। हालाँकि इस बात का भय बना हुआ है कि यह क्षेत्र अब चीनी प्रभुत्त्व में न आ जाए। लेकिन भारत इस क्षेत्र में किसी भी अभिकर्त्ता का आधिपत्य नहीं चाहता है।
वर्तमान में हिंद-प्रशांत क्षेत्र संबंधी चुनौतियाँ:
- भू-रणनीतिक स्पर्द्धा का मंच: हिंद-प्रशांत क्षेत्र क्वाड और शंघाई सहयोग संगठन जैसे विभिन्न बहुपक्षीय संस्थानों के बीच भू-रणनीतिक स्पर्द्धा का प्रमुख मंच है।
- चीन का सैन्यीकरण का कदम: चीन हिंद महासागर में भारत के हितों और स्थिरता के लिये एक चुनौती रहा है। भारत के पड़ोसियों को चीन से सैन्य और ढाँचागत सहायता मिल रही है, जिसके अंतर्गत म्याँमार के लिये पनडुब्बियाँ, श्रीलंका के लिये युद्धपोत तथा जिबूती (हॉर्न ऑफ अफ्रीका) में इसका विदेशी सैन्य अड्डा शामिल है।
- इसके अलावा चीन का हंबनटोटा बंदरगाह (श्रीलंका) पर कब्जा है, जो भारत के तट से कुछ सौ मील की दूरी पर है।
- गैर-पारंपरिक मुद्दों के लिये हॉटस्पॉट: इस क्षेत्र की विशालता के कारण जोखिमों का आकलन करना और उनका समाधान करना मुश्किल हो जाता है, जिसके अंतर्गत समुद्री डकैती, तस्करी और आतंकवाद की घटनाएँ शामिल हैं।
- जलवायु परिवर्तन और लगातार तीन ला नीना की घटनाएँ जो हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चक्रवात एवं सूनामी पैदा कर रही हैं, इसकी पारिस्थितिक तथा भौगोलिक स्थिरता के लिये प्रमुख खतरे हैं।
- इसके अलावा अवैध, अनियमित और असूचित (IUU) मछली पकड़ने के कार्य तथा समुद्री प्रदूषण इस क्षेत्र के जलीय जीवन में बाधा उत्पन्न कर रहे हैं।
- जलवायु परिवर्तन और लगातार तीन ला नीना की घटनाएँ जो हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चक्रवात एवं सूनामी पैदा कर रही हैं, इसकी पारिस्थितिक तथा भौगोलिक स्थिरता के लिये प्रमुख खतरे हैं।
- भारत की सीमित नौसेना क्षमता: भारतीय सैन्य बजट के सीमित आवंटन के कारण भारतीय नौसेना के पास अपने प्रयासों को मज़बूत करने के लिये संसाधन और क्षमता सीमित है। इसके अलावा विदेशी सैन्य ठिकानों की कमी भारत के लिये हिंद-प्रशांत में अपनी उपस्थिति बनाए रखने हेतु एक बुनियादी चुनौती पैदा करती है।
आगे की राह
- इस क्षेत्र के देशों की अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत समुद्र और हवाई क्षेत्र में सामान्य स्थानों के उपयोग के अधिकार के रूप में समान पहुँच होनी चाहिये, जिसके लिये अंतर्राष्ट्रीय कानून के अनुसार नेविगेशन की स्वतंत्रता, अबाधित वाणिज्य तथा विवादों के शांतिपूर्ण समाधान की आवश्यकता होगी।
- संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता, परामर्श, सुशासन, पारदर्शिता, व्यवहार्यता तथा स्थिरता के आधार पर क्षेत्र में कनेक्टिविटी स्थापित करना महत्त्वपूर्ण है।
- हिंद-प्रशांत क्षेत्र की सुरक्षा के लिये समुद्री डोमेन जागरूकता (MDA) आवश्यक है। MDA का तात्पर्य समुद्री पर्यावरण से जुड़ी किसी भी गतिविधि की प्रभावी समझ से है जो सुरक्षा, अर्थव्यवस्था या पर्यावरण पर प्रभाव डाल सकती है।
- बहुध्रुवीयता: सुरक्षा, शांति और कानून का पालन करने की प्रकृति इस क्षेत्र के आसपास के देशों के लिये महत्त्वपूर्ण है। इससे क्षेत्र में बहुध्रुवीयता भी आएगी। इस क्षेत्र के छोटे राज्य भारत से अपेक्षा करते हैं कि वह किसी अवसर या संकट के जवाब में कार्रवाई करे और आर्थिक एवं सैन्य दोनों तरह से अपने विकल्पों को व्यापक बनाने में उनकी मदद करे। भारत को उनकी आकांक्षाओं को पूरा करने का प्रयास करना चाहिये।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्नमेन्स:प्रश्न. नई त्रि-राष्ट्रीय साझेदारी AUKUS का उद्देश्य भारत-प्रशांत क्षेत्र में चीन की महत्त्वाकांक्षाओं का मुकाबला करना है। क्या यह गठबंधन इस क्षेत्र में मौज़ूदा ‘साझेदारियों’ का स्थान लेने जा रहा है? वर्तमान परिदृश्य में AUKUS की ताकत और प्रभाव पर चर्चा कीजिये। (UPSC 2021) |
स्रोत: द हिंदू
समान नागरिक संहिता
प्रिलिम्स के लिये:समान नागरिक संहिता, अनुच्छेद 44, अनुच्छेद 25, अनुच्छेद 14. मेन्स के लिये:व्यक्तिगत कानूनों पर समान नागरिक संहिता के प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
कानून और न्याय मंत्रालय ने सर्वोच्च न्यायालय को बताया है कि न्यायालय संसद को कोई कानून बनाने का निर्देश नहीं दे सकता है और इसने देश में समान नागरिक संहिता (UCC) की मांग करने वाली जनहित याचिकाओं (PIL) को खारिज करने की मांग की है।
जनहित याचिकाओं के विषय:
- याचिकाकर्त्ताओं ने विवाह, तलाक, भरण-पोषण और गुजारा भत्ता (पूर्व पत्नी या पति को कानून द्वारा भुगतान किया जाने वाला धन) को विनियमित करने वाले व्यक्तिगत कानूनों में एकरूपता की मांग की है।
- याचिकाओं में तलाक के कानूनों के संबंध में विसंगतियों को दूर करने और उन्हें सभी नागरिकों के लिये एक समान बनाने तथा बच्चों को गोद लेने एवं संरक्षकता के लिये समान दिशा-निर्देश देने की मांग की गई थी।
सरकार का रुख:
- न्यायालय इस मामले में कोई मार्गदर्शन नहीं दे सकती क्योंकि यह नीति का मामला है जिसका फैसला जनता के चुने हुए प्रतिनिधियों को करना चाहिये। विधायिका को कानून पारित करने या वीटो करने की शक्ति है।
- विधि मंत्रालय ने विधि आयोग से सामान नागरिक संहिता से संबंधित विभिन्न मुद्दों की जाँच करने और समुदायों को शासित करने वाले विभिन्न व्यक्तिगत कानूनों की संवेदनशीलता, उनके गहन अध्ययन के आधार पर विचार करते हुए सिफारिशें करने का अनुरोध किया था।
- 21वें विधि आयोग ने अगस्त 2018 में 'परिवार कानून में सुधार' शीर्षक से एक परामर्श पत्र जारी किया था लेकिन 21वें विधि आयोग का कार्यकाल अगस्त 2018 में ही समाप्त हो गया।
समान नागरिक संहिता:
- परिचय:
- समान नागरिक संहिता पूरे देश के लिये एक समान कानून के साथ ही सभी धार्मिक समुदायों के लिये विवाह, तलाक, विरासत, गोद लेने आदि कानूनों में भी एकरूपता प्रदान करने का प्रावधान करती है।
- संविधान के अनुच्छेद 44 में वर्णित है कि राज्य भारत के पूरे क्षेत्र में नागरिकों के लिये एक समान नागरिक संहिता सुनिश्चित करने का प्रयास करेगा।
- अनुच्छेद-44, संविधान में वर्णित राज्य के नीति निदेशक तत्त्वों में से एक है।
- अनुच्छेद 44 का उद्देश्य संविधान की प्रस्तावना में निहित "धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य" की अवधारणा को मजबूत करना है।
- पृष्ठभूमि:
- समान नागरिक संहिता (UCC) की अवधारणा का विकास औपनिवेशिक भारत में तब हुआ, जब ब्रिटिश सरकार ने वर्ष 1835 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की थी, जिसमें अपराधों, सबूतों और अनुबंधों जैसे विभिन्न विषयों पर भारतीय कानून के संहिताकरण में एकरूपता लाने की आवश्यकता पर बल दिया गया, हालाँकि रिपोर्ट में हिंदू व मुसलमानों के व्यक्तिगत कानूनों को इस एकरूपता से बाहर रखने की सिफारिश की गई।
- ब्रिटिश शासन के अंत में व्यक्तिगत मुद्दों से निपटने वाले कानूनों की संख्या में वृद्धि ने सरकार को वर्ष 1941 में हिंदू कानून को संहिताबद्ध करने के लिये बी.एन. राव समिति गठित करने के लिये मजबूर किया।
- इन सिफारिशों के आधार पर हिंदुओं, बौद्धों, जैनों और सिखों के लिये निर्वसीयत उत्तराधिकार से संबंधित कानून को संशोधित एवं संहिताबद्ध करने हेतु वर्ष 1956 में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के रूप में एक विधेयक को अपनाया गया।
- हालाँकि मुस्लिम, इसाई और पारसी लोगों के लिये अलग-अलग व्यक्तिगत कानून थे।
- कानून में समरूपता लाने के लिये विभिन्न न्यायालयों ने अक्सर अपने निर्णयों में कहा है कि सरकार को एक समान नागरिक संहिता सुनिश्चित करने की दिशा में प्रयास करना चाहिये।
- शाह बानो मामले (1985) में दिया गया निर्णय सर्वविदित है।
- सरला मुद्गल वाद (1995) भी इस संबंध में काफी चर्चित है, जो कि बहुविवाह के मामलों और इससे संबंधित कानूनों के बीच विवाद से जुड़ा हुआ था।
- प्रायः यह तर्क दिया जाता है ‘ट्रिपल तलाक’ और बहुविवाह जैसी प्रथाएँ एक महिला के सम्मान तथा उसके गरिमापूर्ण जीवन के अधिकार पर प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं, केंद्र ने सवाल उठाया है कि क्या धार्मिक प्रथाओं को दी गई संवैधानिक सुरक्षा उन प्रथाओं तक भी विस्तारित होनी चाहिये जो मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करती हैं।
भारत में समान नागरिक संहिता की स्थिति
- वर्तमान में अधिकांश भारतीय कानून, सिविल मामलों में एक समान नागरिक संहिता का पालन करते हैं, जैसे- भारतीय अनुबंध अधिनियम, 1872, नागरिक प्रक्रिया संहिता, संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम, 1882, भागीदारी अधिनियम, 1932, साक्ष्य अधिनियम, 1872 आदि।
- हालाँकि राज्यों ने कई कानूनों में संशोधन किये हैं परंतु धर्मनिरपेक्षता संबंधी कानूनों में अभी भी विविधता है।
- हाल ही में कई राज्यों ने एक समान रूप से मोटर वाहन अधिनियम, 2019 को लागू करने से इनकार कर दिया था।
- वर्तमान में गोवा, भारत का एकमात्र ऐसा राज्य है जहाँ UCC लागू है।
व्यक्तिगत कानूनों पर समान नागरिक संहिता का निहितार्थ:
- समाज के संवेदनशील वर्ग को संरक्षण:
- समान नागरिक संहिता का उद्देश्य महिलाओं और धार्मिक अल्पसंख्यकों सहित संवेदनशील वर्गों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करना है, जबकि एकरूपता से देश में राष्ट्रवादी भावना को भी बल मिलेगा।
- कानूनों का सरलीकरण
- समान नागरिक संहिता विवाह, विरासत और उत्तराधिकार समेत विभिन्न मुद्दों से संबंधित जटिल कानूनों को सरल बनाएगी। परिणामस्वरूप समान नागरिक कानून सभी नागरिकों पर लागू होंगे, चाहे वे किसी भी धर्म में विश्वास रखते हों।
- धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत को बल:
- भारतीय संविधान की प्रस्तावना में ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द सन्निहित है और एक धर्मनिरपेक्ष गणराज्य को धार्मिक प्रथाओं के आधार पर विभेदित नियमों के बजाय सभी नागरिकों के लिये एक समान कानून बनाना चाहिये।
- लैंगिक न्याय
- यदि समान नागरिक संहिता को लागू किया जाता है, तो वर्तमान में मौजूद सभी व्यक्तिगत कानून समाप्त हो जाएंगे, जिससे उन कानूनों में मौजूद लैंगिक पक्षपात की समस्या से भी निपटा जा सकेगा।
चुनौतियाँ
- विविध व्यक्तिगत कानून:
- विभिन्न समुदायों के बीच रीति-रिवाज़ बहुत भिन्न होते हैं।
- यह भी एक मिथक है कि हिंदू एक समान कानून द्वारा शासित होते हैं। उत्तर में निकट संबंधियों के बीच विवाह वर्जित है लेकिन दक्षिण में इसे शुभ माना जाता है।
- पर्सनल लॉ में एकरूपता का अभाव मुसलमानों और ईसाइयों के लिये भी सही है।
- संविधान द्वारा नगालैंड, मेघालय और मिज़ोरम के स्थानीय रीति-रिवाजोंं को सुरक्षा दी गई है।
- व्यक्तिगत कानूनों की अत्यधिक विविधता (जिस भाव के साथ उनका पालन किया जाता है) किसी भी प्रकार की एकरूपता को प्राप्त करना बहुत कठिन बना देते हैं। विभिन्न समुदायों के बीच साझे विचार स्थापित करना जटिल कार्य है।
- विभिन्न समुदायों के बीच रीति-रिवाज़ बहुत भिन्न होते हैं।
- सांप्रदायिकता की राजनीति:
- कई विश्लेषकों का मत है कि समान नागरिक संहिता की मांग केवल सांप्रदायिकता की राजनीति के संदर्भ में की जाती है।
- समाज का एक बड़ा वर्ग सामाजिक सुधार की आड़ में इसे बहुसंख्यकवाद के रूप में देखता है।
- संवैधानिक बाधा:
- भारतीय संविधान का अनुच्छेद 25, जो किसी भी धर्म को मानने और प्रचार की स्वतंत्रता को संरक्षित करता है, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 में निहित समानता की अवधारणा के विरुद्ध है।
आगे की राह
- परस्पर विश्वास के निर्माण के लिये सरकार और समाज को कड़ी मेहनत करनी होगी, किंतु इससे भी महत्त्वपूर्ण यह है कि धार्मिक रूढ़िवादियों के बजाय इसे लोकहित के रूप में स्थापित किया जाए।
- एक सर्वव्यापी दृष्टिकोण के बजाय सरकार विवाह, गोद लेने और उत्तराधिकार जैसे अलग-अलग पहलुओं को चरणबद्ध तरीके से समान नागरिक संहिता में शामिल कर सकती है।
- सभी व्यक्तिगत कानूनों को संहिताबद्ध किया जाना आवश्यक है, ताकि उनमें से प्रत्येक में पूर्वाग्रह और रुढ़िवादी पहलुओं को रेखांकित कर मौलिक अधिकारों के आधार पर उनका परीक्षण किया जा सके।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. भारत के संविधान में निहित राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतों के तहत निम्नलिखित प्रावधानों पर विचार कीजिये: (2012)
उपर्युक्त में से कौन से गांधीवादी सिद्धांत हैं जो राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों में परिलक्षित होते हैं? (a) केवल 1, 2 और 4 उत्तर: (b) प्रश्न. कानून जो कार्यकारी या प्रशासनिक प्राधिकरण को कानून लागू करने के मामले में अनियंत्रित विवेकाधीन शक्तियाँ प्रदान करता है, भारत के संविधान के निम्नलिखित में से किस अनुच्छेद का उल्लंघन करता है? (a) अनुच्छेद 14 उत्तर: (a) प्रश्न. उन संभावित कारकों पर चर्चा कीजिये जो भारत को अपने नागरिकों के लिये एक समान नागरिक संहिता लागू करने से रोकते हैं, जैसा कि राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतों में प्रदान किया गया है। (मुख्य परीक्षा, 2015) |
स्रोत: द हिंदू
डेफएक्सपो-2022
प्रिलिम्स के लिये:रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता, मेक इन इंडिया, IADD, हिंद महासागर क्षेत्र प्लस कॉन्क्लेव। मेन्स के लिये:डेफएक्सपो-2022, इसके उद्देश्य और महत्त्व। |
चर्चा में क्यों?
डेफएक्सपो-2022 का 12वाँ संस्करण गुजरात के गांधीनगर में आयोजित किया जा रहा है।
- डेफएक्सपो का 11वाँ संस्करण वर्ष 2020 में लखनऊ (उत्तर प्रदेश) में आयोजित किया गया था।
डेफएक्सपो-2022:
- परिचय:
- डेफएक्सपो रक्षा मंत्रालय का एक प्रमुख द्विवार्षिक कार्यक्रम है, जिसमें स्थल, जल तथा वायु रक्षा प्रणालियों के साथ-साथ घरेलू सुरक्षा प्रणालियों का प्रदर्शन किया जाता है।
- यह पहली बार चार-स्थल प्रारूप (four-venue format) में आयोजित किया जा रहा है जिसमें रक्षा में 'आत्मनिर्भरता के लिये, लोगों को संलग्न करने और उन्हें एयरोस्पेस और रक्षा निर्माण क्षेत्र में शामिल होने के लिये प्रेरित करना शामिल है।
- इसका उद्देश्य घरेलू रक्षा उद्योग की ताकत का प्रदर्शन करना है जो अब सरकार और राष्ट्र के 'मेक इन इंडिया, मेक फॉर द वर्ल्ड' संकल्प को मज़बूती प्रदान कर रहा है।
- यह विशेष रूप से भारतीय कंपनियों के लिये पहला संस्करण है।
- थीम: गर्व का मार्ग।
प्रमुख बिंदु:
- यह भारत-अफ्रीका रक्षा वार्ता (IADD) के दूसरे संस्करण की मेज़बानी करेगा, जिसमें 53 अफ्रीकी देशों को आमंत्रित किया जाएगा।
- भारत-अफ्रीका रक्षा वार्ता, क्षमता निर्माण, प्रशिक्षण, साइबर सुरक्षा, समुद्री सुरक्षा और आतंकवाद का मुकाबला करने जैसे क्षेत्रों सहित आपसी जुड़ाव के लिये अभिसरण के नए क्षेत्रों का पता लगाएगा।
- अफ्रीका के प्रति भारत का दृष्टिकोण कंपाला सिद्धांतों द्वारा निर्देशित है।
- लगभग 40 देशों की भागीदारी के साथ अलग हिंद महासागर क्षेत्र प्लस (IOR+) सम्मेलन में भारत अपने सैन्य हार्डवेयर को विभिन्न देशों में पेश करेगा।
- यह सात नई रक्षा कंपनियों के गठन के एक वर्ष के उत्सव को भी चिह्नित करेगा, जो पूर्ववर्ती आयुध कारखानों से बनी हैं।
- ये सभी कंपनियाँ पहली बार डेफएक्सपो में भाग लेंगी।
आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत रक्षा क्षेत्र में सुधार:
- FDI सीमा में संशोधन: स्वचालित मार्ग के तहत रक्षा विनिर्माण में FDI की सीमा 49% से बढ़ाकर 74% कर दी गई है।
- परियोजना प्रबंधन इकाई (PMU): सरकार से एक परियोजना प्रबंधन इकाई (अनुबंध प्रबंधन उद्देश्यों के लिये) की स्थापना के साथ समयबद्ध रक्षा उपकरणों की खरीद और त्वरित निर्णय लेने की उम्मीद की जाती है।
- रक्षा आयात में कमी: सरकार आयात के लिये प्रतिबंधित हथियारों/प्लेटफॉर्मों की एक सूची अधिसूचित करेगी और इस प्रकार ऐसी वस्तुओं को केवल घरेलू बाज़ार से ही खरीदा जा सकता है।
- घरेलू पूंजीगत खरीद के लिये अलग से बजट प्रावधान।
- आयुध निर्माण बोर्ड का निगमीकरण: इसमें कुछ इकाइयों की सार्वजनिक सूची शामिल होगी, जो डिज़ाइनर और अंतिम उपयोगकर्त्ता के साथ विनिर्माता के अधिक कुशल इंटरफेस को सुनिश्चित करेगा।
स्रोत: द हिंदू
मिशन डेफस्पेस
प्रिलिम्स के लिये:सकारात्मक स्वदेशीकरण सूची, रक्षा क्षेत्र में पहल, HAL HPT-32। मेन्स के लिये:मिशन डेफस्पेस, सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप, प्रौद्योगिकी का स्वदेशीकरण, रक्षा के स्वदेशीकरण का महत्त्व और संबंधित चुनौतियाँ। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में आयोजित डेफएक्सपो में प्रधानमंत्री ने 'मिशन डेफस्पेस' लॉन्च किया है।
- उन्होंने चौथी रक्षा स्वदेशीकरण सूची भी जारी की, जिसमें निश्चित समय सीमा के बाद 101 वस्तुओं के आयात पर प्रतिबंध लगाना है।
- उन्होंने एक्सपो के दौरान इंडिया पवेलियन में हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) द्वारा डिज़ाइन और विकसित स्वदेशी ट्रेनर विमान HTT-40 (हिंदुस्तान टर्बो ट्रेनर-40) का भी अनावरण किया।
मिशन डेफस्पेस
- परिचय:
- यह भारतीय उद्योग और स्टार्ट-अप के माध्यम से अंतरिक्ष क्षेत्र में तीनों सेवाओं (भारतीय वायु सेना, नौसेना और सेना) के लिये अभिनव समाधान विकसित करने का एक महत्त्वाकांक्षी प्रयास है।
- अंतरिक्ष क्षेत्र में रक्षा आवश्यकताओं के आधार पर नवीन समाधान प्राप्त करने के लिये 75 चुनौतियों का निराकरण किया जा रहा है।
- स्टार्टअप्स, इनोवेटर्स और निजी क्षेत्र को समस्याओं के समाधान खोजने के लिये आमंत्रित किया जाएगा जिसमें आक्रामक और रक्षात्मक दोनों क्षमताएँ शामिल होंगी।
- इसका उद्देश्य अंतरिक्ष युद्ध के लिये सैन्य अनुप्रयोगों की एक शृंखला विकसित करना और निजी उद्योगों को भविष्य की आक्रामक और रक्षात्मक आवश्यकताओं के लिये सशस्त्र बलों के समाधान की पेशकश करने में सक्षम बनाना है।
- अंतरिक्ष में रक्षा अनुप्रयोगों से न केवल भारतीय सशस्त्र बलों को मदद मिलेगी बल्कि विदेशी मित्र राष्ट्रों तक भी इसका विस्तार किया जा सकता है।
रक्षा का स्वदेशीकरण:
- परिचय:
- स्वदेशीकरण में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने और आयात के बोझ को कम करने के दोहरे उद्देश्य के लिये देश के भीतर रक्षा उपकरण के विकास और उत्पादन करने की क्षमता है।
- रक्षा विनिर्माण में आत्मनिर्भरता रक्षा उत्पादन विभाग के प्रमुख उद्देश्यों में से एक है।
- रक्षा अनुसंधान विकास संगठन (DRDO), रक्षा सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम (DPSUs) और निजी संगठन रक्षा उद्योगों के स्वदेशीकरण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।
- भारत दुनिया के सबसे बड़े हथियार आयातकों में से एक है और सशस्त्र बलों द्वारा अगले पाँच वर्षों में रक्षा खरीद पर लगभग 130 बिलियन अमेरिकी डाॅलर खर्च करने की उम्मीद है।
- चौथी स्वदेशीकरण सूची:
- इसमें उन उपकरणों पर विशेष ध्यान देना है, जिन्हें विकसित किया जा रहा है और अगले 5-10 वर्षों में इसके फर्म ऑर्डर में तब्दील होने की संभावना है।
- चौथी सूची में सूचीबद्ध उपकरण न केवल घरेलू रक्षा उद्योग को सशस्त्र बलों की प्रवृत्ति के साथ भविष्य की ज़रूरतों को समझने में मदद करेंगे बल्कि इससे देश के भीतर अपेक्षित अनुसंधान और विकास तथा विनिर्माण क्षमता के लिये पर्याप्त अवसर भी प्राप्त होंगे ।
- महत्त्व:
- घरेलू उद्योग को बढ़ावा :
- ये आयुध और प्लेटफॉर्म घरेलू उद्योग को बढ़ावा देने के साथ देश में अनुसंधान एवं विकास तथा विनिर्माण को बदल देंगे।
- राजकोषीय घाटे को कम करना और राष्ट्रवाद को बढ़ावा देना:
- राजकोषीय घाटे में कमी, संवेदनशील सीमाओं और शत्रुतापूर्ण पड़ोसियों से सुरक्षा, रोज़गार सृजन तथा भारतीय सेनाओं के बीच अखंडता व संप्रभुता की मज़बूत भावना के साथ राष्ट्रवाद और देशभक्ति की भावना को प्रोत्साहित करना, स्वदेशीकरण के कुछ अन्य लाभ होंगे।
- घरेलू उद्योग को बढ़ावा :
HTT-40 स्वदेशी ट्रेनर विमान:
- HTT-40 भारतीय वायु सेना (IAF) के लिये हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) द्वारा विकसित एक बेसिक ट्रेनर विमान है।
- यह IAF के पुराने बेड़े HPT-32 दीपक ट्रेनर विमानों की जगह लेगा।
- यह अपनी श्रेणी में सर्वश्रेष्ठ ईंधन दक्षता और पावर रेटिंग प्रदान करता है।
- यह कम दूरी से उड़ान भरने के साथ तेज़ी से ऊँचाई पर पहुँच सकता है।
- इसकी अधिकतम गति 450 किमी/घंटा है और यह अधिकतम 1,000 किमी की ऊँचाई तक पहुँच सकता है। फ्लैप डाउन के साथ इसकी स्टॉल गति 135 किमी/घंटा होती है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. भारतीय रक्षा के संदर्भ में 'ध्रुव' क्या है? (2008) (a) विमान ले जाने वाला युद्धपोत उत्तर: (c) प्रश्न. भारत-रूस रक्षा सौदों पर भारत-अमेरिका रक्षा सौदों का क्या महत्त्व है? हिंद-प्रशांत क्षेत्र में स्थिरता के संदर्भ में चर्चा कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2020) प्रश्न. एस-400 वायु रक्षा प्रणाली तकनीकी रूप से दुनिया में वर्तमान में उपलब्ध किसी भी अन्य प्रणाली से कैसे बेहतर है? (मुख्य परीक्षा, 2021) |
स्रोत: द हिंदू
पोलियो उन्मूलन
प्रिलिम्स के लिये:पोलियो, संयुक्त राष्ट्र सतत् विकास लक्ष्य मेन्स के लिये:पोलियो और इसे खत्म करने की पहल, सरकारी नीतियाँ एवं हस्तक्षेप, |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में वैश्विक नेताओं ने बर्लिन में हुए विश्व स्वास्थ्य शिखर सम्मेलन में पोलियो उन्मूलन हेतु ‘वैश्विक पोलियो उन्मूलन पहल’ (GPEI) 2022-2026 रणनीति के लिये 2.6 बिलियन अमेरिकी डाॅलर के वित्तपोषण की पुष्टि की।
विश्व स्वास्थ्य शिखर सम्मेलन (WHS):
- डब्ल्यूएचएस एक अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य सम्मेलन है।
- डब्ल्यूएचएस 2022 का उद्देश्य आदान-प्रदान को मज़बूत करना, स्वास्थ्य चुनौतियों के अभिनव समाधानों को प्रोत्साहित करना, वैश्विक स्वास्थ्य को एक प्रमुख राजनीतिक मुद्दे के रूप में स्थापित करना तथा संयुक्त राष्ट्र सतत् विकास लक्ष्यों की भावना में वैश्विक स्वास्थ्य पर बातचीत को बढ़ावा देना है।
पोलियो:
- परिचय:
- पोलियो अपंगता का कारक और एक संभावित घातक वायरल संक्रामक रोग है जो तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करता है।
- प्रतिरक्षात्मक रूप से मुख्यतः पोलियो वायरस के तीन अलग-अलग उपभेद हैं:
- वाइल्ड पोलियो वायरस 1 (WPV1)
- वाइल्ड पोलियो वायरस 2 (WPV2)
- वाइल्ड पोलियो वायरस 3 (WPV3)
- लक्षणात्मक रूप से तीनों उपभेद समान होते हैं और पक्षाघात तथा मृत्यु का कारण बन सकते हैं।
- हालाँकि इनमें आनुवंशिक और वायरोलॉजिकल अंतर पाया जाता है, जो इन तीन उपभेदों के अलग-अलग वायरस बनाते हैं, जिन्हें प्रत्येक को एकल रूप से समाप्त किया जाना आवश्यक होता है।
- प्रसार:
- यह वायरस मुख्य रूप से ‘मलाशय-मुख मार्ग’ (Faecal-Oral Route) के माध्यम से या दूषित पानी अथवा भोजन के माध्यम से एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलता है।।
- यह मुख्यतः 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को प्रभावित करता है। आंँत में वायरस की संख्या में बढ़ोतरी होती, जहाँ से यह तंत्रिका तंत्र पर आक्रमण कर सकता है और पक्षाघात का कारण बन सकता है।
- लक्षण:
- पोलियो से पीड़ित अधिकांश लोग बीमार महसूस नहीं करते हैं। कुछ लोगों में केवल मामूली लक्षण जैसे- बुखार, थकान, जी मिचलाना, सिरदर्द, हाथ-पैर में दर्द आदि देखने को मिलता है।
- दुर्लभ मामलों में पोलियो संक्रमण के कारण मांँसपेशियों में पक्षाघात होता है।
- यदि साँस लेने के लिये उपयोग की जाने वाली मांँसपेशियाँ लकवाग्रस्त हो जाएँ या मस्तिष्क में कोई संक्रमण हो जाए तो पोलियो घातक हो सकता है।
- रोकथाम और इलाज:
- इसका कोई इलाज नहीं है लेकिन टीकाकरण से इसे रोका जा सकता है।
- टीकाकरण:
- ओरल पोलियो वैक्सीन (OPV): यह संस्थागत प्रसव के दौरान जन्म के समय ही दी जाती है, उसके बाद पहली तीन खुराक 6, 10 और 14 सप्ताह में तथा एक बूस्टर खुराक 16-24 महीने की उम्र में दी जाती है।
- इंजेक्टेबल पोलियो वैक्सीन (IPV): इसे सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम (UIP) के तहत DPT (डिप्थीरिया, पर्टुसिस और टेटनस) की तीसरी खुराक के साथ एक अतिरिक्त खुराक के रूप में दिया जाता है।
- भारत और पोलियो:
- तीन वर्ष के दौरान शून्य मामलों के बाद भारत को वर्ष 2014 में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा पोलियो-मुक्त प्रमाणन प्राप्त हुआ।
- यह उपलब्धि उस सफल पल्स पोलियो अभियान के बाद प्राप्त हुई जिसमें सभी बच्चों को पोलियो की दवा पिलाई गई थी।
- देश में वाइल्ड पोलियो वायरस के कारण अंतिम मामला 13 जनवरी, 2011 को देखा गया था।
- तीन वर्ष के दौरान शून्य मामलों के बाद भारत को वर्ष 2014 में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा पोलियो-मुक्त प्रमाणन प्राप्त हुआ।
पोलियो उन्मूलन उपाय:
वैश्विक:
- वैश्विक पोलियो उन्मूलन पहल:
- इसे वर्ष 1988 में वैश्विक पोलियो उन्मूलन पहल (GPEI) के तहत राष्ट्रीय सरकारों और WHO द्वारा शुरू किया गया था। वर्तमान में विश्व की 80% आबादी पोलियो मुक्त है।
- पोलियो टीकाकरण गतिविधियों के दौरान विटामिन A के व्यवस्थित प्रबंधन के माध्यम से अनुमानित 1.5 मिलियन नवजातों की मौतों को रोका गया है।
- इसे वर्ष 1988 में वैश्विक पोलियो उन्मूलन पहल (GPEI) के तहत राष्ट्रीय सरकारों और WHO द्वारा शुरू किया गया था। वर्तमान में विश्व की 80% आबादी पोलियो मुक्त है।
- विश्व पोलियो दिवस:
- यह प्रत्येक वर्ष 24 अक्तूबर को मनाया जाता है ताकि देशों को बीमारी के खिलाफ अपनी लड़ाई में सतर्क रहने का आह्वान किया जा सके।
भारत:
- पल्स पोलियो कार्यक्रम:
- इसे ओरल पोलियो वैक्सीन के अंतर्गत शत्-प्रतिशत कवरेज प्राप्त करने के उद्देश्य से शुरू किया गया था।
- सघन मिशन इंद्रधनुष 2.0:
- यह पल्स पोलियो कार्यक्रम (वर्ष 2019-20) के 25 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में शुरू किया गया एक राष्ट्रव्यापी टीकाकरण अभियान था।
- सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम:
- इसे वर्ष 1985 में 'प्रतिरक्षण के विस्तारित कार्यक्रम’ (Expanded Programme of Immunization) में संशोधन के साथ शुरू किया गया था।
- इस कार्यक्रम के उद्देश्य:
- टीकाकरण कवरेज में तेज़ी से वृद्धि
- सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार
- स्वास्थ्य सुविधा स्तर पर एक विश्वसनीय कोल्ड चेन सिस्टम की स्थापना
- जिलेवार प्रदर्शन की निगरानी के लिये तंत्र बनाना
- वैक्सीन उत्पादन में आत्मनिर्भरता प्राप्त करना आदि शामिल हैं।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. भारत सरकार द्वारा शुरू किया गया मिशन इंद्रधनुष' किससे संबंधित है? (2016) (a) बच्चों और गर्भवती महिलाओं का टीकाकरण उत्तर: A व्याख्या:
अतः विकल्प A सही है। |
स्रोत: डाउन टू अर्थ
स्वदेश दर्शन योजना 2.0
प्रिलिम्स के लिये:स्वदेश दर्शन योजना, PRASHAD, आत्मनिर्भर भारत मेन्स के लिये :पर्यटन क्षेत्र और संबंधित पहलें |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में 'स्वदेश दर्शन 2.0' (जनवरी 2023 से शुरू) के पहले चरण के हिस्से के रूप में, सरकार ने भारत की नई घरेलू पर्यटन नीति को बढ़ावा देने के लिये देश भर के 15 राज्यों की पहचान की है।
- यह नीति थीम आधारित पर्यटन सर्किट से इतर गंतव्य पर्यटन को पूर्व रूप में लाने पर केंद्रित है।
- पहचान किये गए कुछ प्रमुख स्थान उत्तर प्रदेश में झांसी और प्रयागराज, मध्य प्रदेश में ग्वालियर, चित्रकूट और खजुराहो तथा महाराष्ट्र में अजंता एवं एलोरा हैं।
स्वदेश दर्शन योजना:
- परिचय:
- इसे वर्ष 2014-15 में देश में थीम आधारित पर्यटन सर्किट के एकीकृत विकास के लिये शुरू किया गया था। इस योजना के तहत पंद्रह विषयगत सर्किटों की पहचान की गई है- बौद्ध सर्किट, तटीय सर्किट, डेज़र्ट सर्किट, इको सर्किट, हेरिटेज सर्किट, हिमालयन सर्किट, कृष्णा सर्किट, नॉर्थ ईस्ट सर्किट, रामायण सर्किट, ग्रामीण सर्किट, आध्यात्मिक सर्किट, सूफी सर्किट, तीर्थंकर सर्किट, जनजातीय सर्किट, वन्यजीव सर्किट।
- यह केंद्र द्वारा 100% वित्तपोषित है और केंद्र एवं राज्य सरकारों की अन्य योजनाओं के साथ अभिसरण हेतु तथा केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों और कॉर्पोरेट क्षेत्र की कॉर्पोरेट सामाजिक ज़िम्मेदारी (CSR) पहल के लिये उपलब्ध स्वैच्छिक वित्तपोषण का लाभ उठाने के प्रयास किये जाते हैं।
- उद्देश्य:
- पर्यटन को आर्थिक विकास और रोज़गार सृजन के प्रमुख इंजन के रूप में स्थापित करना।
- नियोजित और प्राथमिकता के आधार पर पर्यटन क्षमता वाले सर्किट विकसित करना।
- पहचान किये गए क्षेत्रों में आजीविका उत्पन्न करने के लिये देश के सांस्कृतिक और विरासत मूल्य को बढ़ावा देना।
- सर्किट/गंतव्यों में विश्व स्तरीय स्थायी बुनियादी ढाँचे को विकसित करके पर्यटकों के आकर्षण को बढ़ाना।
- समुदाय आधारित विकास और गरीब समर्थक पर्यटन दृष्टिकोण का पालन करना।
- आय के बढ़ते स्रोतों, बेहतर जीवन स्तर और क्षेत्र के समग्र विकास के संदर्भ में स्थानीय समुदायों में पर्यटन के संदर्भ में जागरूकता बढ़ाना।
- उपलब्ध बुनियादी ढाँचे, राष्ट्रीय संस्कृति और देश भर में प्रत्येक क्षेत्र के विशिष्ट स्थलों के संदर्भ में विषय-आधारित सर्किटों के विकास की संभावनाओं एवं लाभों का पूरा उपयोग करना।
- आगंतुक अनुभव/संतुष्टि को बढ़ाने के लिये पर्यटक सुविधा सेवाओं का विकास करना।
स्वदेश दर्शन योजना 2.0:
- परिचय:
- 'वोकल फॉर लोकल' के मंत्र के साथ स्वदेश दर्शन 2.0 नामक नई योजना का उद्देश्य पर्यटन गंतव्य के रूप में भारत की पूरी क्षमता को साकार कर "आत्मनिर्भर भारत" के लक्ष्य को प्राप्त करना है।
- स्वदेश दर्शन 2.0 एक वृद्धिशील परिवर्तन नहीं है, बल्कि स्थायी और ज़िम्मेदार पर्यटन स्थलों को विकसित करने के लिये स्वदेश दर्शन योजना को एक समग्र मिशन के रूप में विकसित करने हेतु पीढ़ीगत बदलाव है।
- यह पर्यटन स्थलों के सामान्य और विषय-विशिष्ट विकास के लिये बेंचमार्क एवं मानकों के विकास को प्रोत्साहित करेगी ताकि राज्य परियोजनाओं की योजना तैयार करने एवं विकास करते समय बेंचमार्क तथा मानकों का पालन किया जा सके।
- योजना के तहत पर्यटन क्षेत्र के लिये निम्नलिखित प्रमुख विषयों की पहचान की गई है।
- संस्कृति और विरासत
- साहसिक पर्यटन
- पारिस्थितिकी पर्यटन
- कल्याण पर्यटन
- एमआईसीई पर्यटन
- ग्रामीण पर्यटन
- तटीय पर्यटन
- परिभ्रमण- महासागर और अंतर्देशीय।
- महत्त्व:
- संशोधित योजना स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं में पर्यटन के योगदान को बढ़ाने का प्रयास करती है।
- इसका उद्देश्य स्थानीय समुदायों के लिये स्वरोज़गार सहित रोज़गार सृजित करना, पर्यटन एवं आतिथ्य में स्थानीय युवाओं के कौशल तथा निजी क्षेत्र के निवेश को बढ़ाना और स्थानीय सांस्कृतिक व प्राकृतिक संसाधनों को संरक्षित एवं समृद्ध बनाना है।
पर्यटन को बढ़ावा देने हेतु अन्य पहल:
- ‘प्रसाद’ (PRASHAD) योजना
- यह योजना धार्मिक पर्यटन अनुभव को समृद्ध करने हेतु पूरे भारत में तीर्थस्थलों का संवर्धन एवं उनको पहचान प्रदान करने पर केंद्रित है।
- इसका उद्देश्य तीर्थस्थलों को प्राथमिकता, नियोजित और टिकाऊ तरीके से एकीकृत करना है ताकि एक पूर्ण धार्मिक पर्यटन अनुभव प्रदान किया जा सके।
- प्रतिष्ठित पर्यटक स्थल:
- बोधगया, अजंता और एलोरा में बौद्ध स्थलों की पहचान प्रतिष्ठित पर्यटक स्थल (भारत की सॉफ्ट पावर को बढ़ाने के उद्देश्य से) के रूप में विकसित करने के लिये की गई है।
- बौद्ध सम्मेलन:
- बौद्ध सम्मेलन भारत को बौद्ध गंतव्य और दुनिया भर के प्रमुख बाज़ारों के रूप में बढ़ावा देने के उद्देश्य से हर वैकल्पिक वर्ष में आयोजित किया जाता है।
- देखो अपना देश पहल:
- देश के भीतर नागरिकों को यात्रा हेतु प्रोत्साहित करने और घरेलू पर्यटन सुविधाओं तथा बुनियादी ढाँचे के विकास को मज़बूत बनाने के लिये इसे पर्यटन मंत्रालय द्वारा वर्ष 2020 में शुरू किया गया था।
भारत में पर्यटन क्षेत्र परिदृश्य:
- तीसरे पर्यटन सैटेलाइट विवरण के अनुसार देश में 2017-18, 2018-19 और 2019-20 के दौरान रोज़गार में पर्यटन का योगदान क्रमशः 14.78%, 14.87% और 15.34% रहा है।
- पर्यटन द्वारा सृजित कुल रोज़गार 72.69 मिलियन (2017-18), 75.85 मिलियन (2018-19) और 79.86 मिलियन (2019-20) रहा है।
- विश्व यात्रा और पर्यटन परिषद की 2019 की रिपोर्ट में विश्व जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) में योगदान के मामले में भारत के पर्यटन को 10वें स्थान पर रखा गया है।
- वर्ष 2019 के दौरान सकल घरेलू उत्पाद में यात्रा और पर्यटन का योगदान कुल अर्थव्यवस्था का 6.8% था अर्थात् 13,68,100 करोड़ रुपए (194.30 अरब अमेरिकी डॉलर)।