भारत में स्टार्टअप क्रांति
प्रिलिम्स के लिये: स्टार्टअप इंडिया, डिजिटल इंडिया, आधार, यूपीआई, भारतनेट, स्टार्टअप्स के लिये फंड ऑफ फंड्स, आईडेक्स, एडीआईटीआई, बौद्धिक संपदा अधिकार, डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम, 2023, स्किल इंडिया।
मेन्स के लिये: भारतीय अर्थव्यवस्था के परिवर्तन में स्टार्टअप इंडिया की भूमिका, संबंधित चुनौतियाँ और आगे की राह।
चर्चा में क्यों?
स्टार्टअप इंडिया पहल भारत के नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र को बदलने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही है, जिससे कई स्टार्टअप्स के विकास को बढ़ावा मिला है।
- फ्यूचर यूनिकॉर्न रिपोर्ट 2025 के अनुसार, 2025 में 11 नए स्टार्टअप भारत के यूनिकॉर्न क्लब में शामिल हो गए हैं।
स्टार्टअप इंडिया ने भारत के नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र को किस प्रकार परिवर्तित किया है?
- नवाचार ढाँचे का निर्माण: डिजिटल इंडिया, आधार, यूपीआई और भारतनेट ने एक डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढाँचा तैयार किया है, जो स्टार्टअप की बाधाओं को कम करता है, पहुँच का विस्तार करता है, लागत में कटौती करता है और एक समावेशी नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र को गति प्रदान करता है।
- स्टार्टअप्स के लिये फंड ऑफ फंड्स और क्रेडिट गारंटी योजनाओं ने शुरुआती चरण के स्टार्टअप्स, जैसे कि फशिन्ज़ा (परिधान और फैशन आपूर्ति शृंखला को सुव्यवस्थित करने वाला B2B मार्केटप्लेस) के लिये महत्त्वपूर्ण पूंजीगत सहायता प्रदान की है।
- ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस सुधारों जैसे सिंगल-विंडो क्लियरेंस और ऑनलाइन प्रणालियों ने अनुमोदनों को सरल बनाया है, जिससे व्यवसाय शुरू करने में लगने वाला समय और लागत काफी कम हो गई है।
- इन सुधारों ने एक स्तरित नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र या नवाचार स्टैक का निर्माण किया है, जिससे स्टार्टअप्स को तेज़ी से विस्तार करने में मदद मिली है।
- यूनिकॉर्न वृद्धि: वर्ष 2025 के मध्य तक भारत में 118 यूनिकॉर्न थे (2014 में केवल 4), जिनमें ज़ोमैटो, फोनपे, रेज़रपे, ओला, मीशो और डेल्हीवरी जैसी कंपनियाँ शामिल हैं, जो स्थानीय चुनौतियों का समाधान करते हुए वैश्विक स्तर पर भी पहुँचीं।
- यूनिकॉर्न एक ऐसा निजी स्वामित्व वाला स्टार्टअप है, जिसकी वैल्यूएशन 1 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक होती है।
- विविधीकृत स्टार्टअप इकोसिस्टम:
- फिनटेक: यूपीआई ने भारत को डिजिटल पेमेंट्स में वैश्विक नेतृत्व दिलाया।
- स्पेसटेक: 2020 के बाद के सुधारों ने स्काईरूट एयरोस्पेस और अग्निकुल कॉसमॉस जैसी निजी कंपनियों को सक्षम बनाया, भारत में अब 300+ स्पेस स्टार्टअप्स हैं।
- डिफेंसटेक: iDEX और ADITI जैसी योजनाओं के अंतर्गत 600 से अधिक स्टार्टअप्स रक्षा निर्माण में स्वदेशीकरण को आगे बढ़ा रहे हैं।
- स्टार्टअप डिविडेंड: स्टार्टअप्स ने 12 लाख से अधिक प्रत्यक्ष नौकरियाँ और लाखों अप्रत्यक्ष अवसर उत्पन्न किये हैं, साथ ही आयात निर्भरता को कम किया, निर्यात को बढ़ावा दिया और भारत की वैश्विक आर्थिक स्थिति को मज़बूत किया।
स्टार्टअप इंडिया पहल क्या है?
- परिचय: स्टार्टअप इंडिया पहल वर्ष 2016 में शुरू की गई थी। इस पहल का लक्ष्य नवाचार और उद्यमशीलता के लिये एक ऐसा सुदृढ़ पारिस्थितिकी तंत्र निर्मित करना है जो कर लाभ, सरल अनुपालन और वित्तपोषण के अभिगम जैसे उपायों के माध्यम से स्टार्टअप्स की सहायता कर आर्थिक विकास और रोज़गार को बढ़ावा दे।
- मुख्य विशेषताएँ:
- स्टार्टअप इंडिया के अंतर्गत प्रमुख योजनाएँ:
- स्टार्टअप इंडिया सीड फंड स्कीम (SISFS): SISFS के तहत स्टार्टअप्स को संकल्पना के प्रमाण, प्रोटोटाइप विकास और उत्पाद परीक्षण के लिये वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है।
- स्टार्टअप्स के लिये क्रेडिट गारंटी योजना (CGSS): CGSS के अंतर्गत ऋण अभिगम सुनिश्चित करने के लिये स्टार्टअप्स को संपार्श्विक-मुक्त ऋण की सुविधा प्रदान की जाती है।
- स्टार्टअप बौद्धिक संपदा संरक्षण (SIPP): SIPP के तहत स्टार्टअप को कम लागत पर पेटेंट फाइलिंग, ट्रेडमार्क पंजीकरण और बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR) संरक्षण में सहायता प्रदान की जाती है।
- प्रमुख उपलब्धियाँ:
- स्टार्टअप्स में वृद्धि: DPIIT- मान्यता प्राप्त स्टार्टअप्स की संख्या 500 (2016) से बढ़कर 1.59 लाख (2025) हो गई।
- स्टार्टअप इकोसिस्टम: भारत अब अमेरिका और चीन के बाद विश्व स्तर पर तीसरा सबसे बड़ा स्टार्टअप इकोसिस्टम है, जिसमें 100 से अधिक यूनिकॉर्न हैं।
- रोज़गार सृजन: 31 अक्तूबर, 2024 तक स्टार्टअप्स द्वारा 16.6 लाख से ज़्यादा प्रत्यक्ष रोज़गार उत्पन्न किये गए।
- महिला उद्यमियों का उदय: 73,151 मान्यता प्राप्त स्टार्टअप्स में कम-से-कम एक महिला निदेशक हैं, जो लैंगिक समावेशिता में प्रगति को दर्शाता है।
भारत के स्टार्टअप इकोसिस्टम के समक्ष प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?
- वित्तपोषण की बाधाएँ: टियर-II और टियर-III शहरों में स्टार्टअप्स को वित्तपोषण की समस्या का सामना करना पड़ रहा है, जो जुलाई 2024 में 2,202 करोड़ रुपए से घटकर अगस्त 2024 में 630 करोड़ रुपए रह गया है।
- नियामक जटिलता: भारत का जटिल नियामक वातावरण स्टार्टअप्स के लिये चुनौतियाँ पेश करता है, मोटर वाहन अधिनियम, 1988 के तहत ऐप-आधारित कैब वर्गीकरण और डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम, 2023 के तहत अनुपालन पर बहस के कारण कानूनी तथा प्रशासनिक बोझ बढ़ रहा है।
- विकास संबंधी चुनौतियाँ: सुदृढ़ प्रारंभिक वृद्धि के बावजूद, लगभग 90% स्टार्टअप पाँच वर्षों के भीतर असफल हो जाते हैं। इसका कारण है विस्तार की कठिनाइयाँ, संचालन में अक्षम्यता और नए बाज़ारों में प्रवेश से जुड़ी बाधाएँ।
- बाज़ार संतृप्ति: एडटेक क्षेत्र में तीव्र प्रतिस्पर्द्धा ने बाज़ार को संतृप्त कर दिया है, जिससे लाभांश कम हो रहे हैं और अस्थिर नकदी खर्च बढ़ रहा है। महामारी के बाद की गिरावट ने इस क्षेत्र में एकीकरण के जोखिम को और अधिक उजागर किया है।
भारत के स्टार्टअप इकोसिस्टम को सुदृढ़ करने हेतु किन उपायों की आवश्यकता है?
- कर लाभों में वृद्धि: कर प्रोत्साहनों को 3 से बढ़ाकर 5 वर्ष तक किया जाए। डीप-टेक स्टार्टअप्स और राष्ट्रीय प्राथमिकताओं को संबोधित करने वाले स्टार्टअप्स के लिये अतिरिक्त रियायतें दी जाएँ, जैसे इज़राइल का टेक कंपनियों के लिये 12% कॉर्पोरेट टैक्स मॉडल।
- बाज़ार तक पहुँच को बढ़ावा देना: सरकारी खरीद का एक निश्चित प्रतिशत स्टार्टअप्स से प्राप्त करना अनिवार्य किया जाए, जिससे उनके लिये पर्याप्त बाज़ार अवसर उत्पन्न हों।
- विकेंद्रीकृत स्टार्टअप इकोसिस्टम: टियर-2 और टियर-3 शहरों को स्टार्टअप हब के रूप में विकसित किया जाए, जिसमें बेहतर अवसंरचना तथा प्रोत्साहन दिये जाएँ। ‘हब-एंड-स्पोक’ मॉडल अपनाया जाना चाहिये, जहाँ बड़े शहर आसपास के छोटे शहरों को सहयोग दें।
- कौशल विकास: स्किल इंडिया के अंतर्गत क्षेत्र-विशिष्ट कौशल कार्यक्रमों का विस्तार किया जाना चाहिये। विशेषकर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), ब्लॉकचेन और IoT जैसी उभरती तकनीकों पर ध्यान दिया जाए, ताकि भविष्य के लिये तैयार स्टार्टअप कार्यबल विकसित हो सके।
निष्कर्ष
भारत की स्टार्टअप कहानी आत्मविश्वास के एक सभ्यतागत पुनर्संयोजन का प्रतीक है। स्टार्टअप इंडिया से यूनिकॉर्न नेशन तक की यात्रा नए भारत का सार प्रस्तुत करती है: साहसी, नवाचारी और वैश्विक स्तर पर महत्त्वाकांक्षी। स्टार्टअप इंडिया ने भारत को नौकरी खोजने वाली अर्थव्यवस्था से नौकरी देने वाली अर्थव्यवस्था में परिवर्तित कर दिया है। इसने फिनटेक, स्पेसटेक और डिफेंसटेक जैसे क्षेत्रों में नवाचार, यूनिकॉर्न वृद्धि तथा रोज़गार को बढ़ावा दिया है, जिसे कर प्रोत्साहन, फंडिंग, कौशल विकास एवं विकेंद्रीकृत इकोसिस्टम जैसे उपायों से दीर्घकालिक सफलता हेतु समर्थन मिला है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. यूनिकॉर्न बूम जहाँ सफलता को दर्शाता है, वहीं भारत का स्टार्टअप इकोसिस्टम फंडिंग और रेगुलेशन में गंभीर चुनौतियों का सामना कर रहा है। सतत् और समावेशी विकास सुनिश्चित करने के लिये आवश्यक उपायों पर चर्चा कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)
प्रिलिम्स
प्रश्न. उद्यम पूंजी का क्या अर्थ है? (2014)
(a) उद्योगों को प्रदान की जाने वाली एक अल्पकालिक पूंजी।
(b) नए उद्यमियों को प्रदान की गई एक दीर्घकालिक स्टार्ट-अप पूंजी।
(c) हानि की स्थिति में उद्योगों को प्रदान की जाने वाली धनराशि।
(d) उद्योगों के प्रतिस्थापन और नवीनीकरण के लिये प्रदान की गई धनराशि।
उत्तर: (b)
मेन्स
प्रश्न. भारतीय विश्वविद्यालयों में वैज्ञानिक अनुसंधान का स्तर गिरता जा रहा है, क्योंकि विज्ञान में करियर उतना आकर्षक नहीं है जितना कि वह कारोबार संव्यवसाय, इंजीनियरी या प्रशासन में है और विश्वविद्यालय उपभोक्ता-उन्मुखी होते जा रहे हैं। समालोचनात्मक टिप्पणी कीजिये। (2014)
बाढ़ और भूस्खलन का जोखिम
प्रिलिम्स के लिये: मानसून, हिमालय, बादल फटना, हिमोढ़, हिमनद झील के फटने से बाढ़ (ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड- GLOF)।
मेन्स के लिये: पहाड़ी क्षेत्रों में बाढ़ और भूस्खलन की संवेदनशीलता में योगदान करने वाले कारक और शमन के उपाय।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
वर्तमान मानसून के कारण उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश जैसे पहाड़ी राज्यों में असामान्य रूप से तीव्र वर्षा हुई है, जिससे भूस्खलन की घटनाएँ बढ़ गई हैं और नदी प्रणालियाँ चरम स्तर पर पहुँच गई हैं, जिसके परिणामस्वरूप जनजीवन और अवसंरचना दोनों पर जोखिम और अधिक बढ़ गया है।
पहाड़ी क्षेत्रों में बाढ़ और भूस्खलन की संभावना को कौन-से कारक बढ़ाते हैं?
- खड़ी ढलानें और गुरुत्वाकर्षण: खड़ी ढलानों पर पानी समतल भूमि की तुलना में बहुत तेज़ी से बहता है, जिससे जल का अवशोषण (इन्फिल्ट्रेशन) नहीं हो पाता। इसका परिणाम यह होता है कि पानी शीघ्र ही नालों और नदियों में एकत्र हो जाता है और अचानक आने वाली बाढ़ (फ्लैश फ्लड) की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
- उदाहरण के लिये मंडी, कुल्लू, धराली, थराली और जम्मू में भूस्खलन।
- भू-विज्ञान और मृदा का प्रकार: कई युवा पर्वत शृंखलाएँ (जैसे हिमालय) भूगर्भीय रूप से सक्रिय होती हैं तथा खंडित, कमज़ोर या अपक्षयित चट्टानों से बनी होती हैं जो आसानी से टूट जाती हैं।
- पर्वतीय मिट्टी अक्सर कमज़ोर होती है और उसमें गहरी जड़ प्रणाली का अभाव होता है, जिससे उसके बह जाने का खतरा रहता है।
- दार्जिलिंग और सिक्किम में बार-बार होने वाले भूस्खलन कमज़ोर चट्टानी संरचनाओं और नाज़ुक मिट्टी के कारण होते हैं।
- पर्वतीय मिट्टी अक्सर कमज़ोर होती है और उसमें गहरी जड़ प्रणाली का अभाव होता है, जिससे उसके बह जाने का खतरा रहता है।
- जलविज्ञान संबंधी कारक: एक घाटी वर्षा के पानी को एक संकरी धारा या नदी में प्रवाहित करती है और उच्च ऊर्जा प्रवाह के साथ तीव्र ढाल पानी को प्रबल अपरदन शक्ति प्रदान करती है, जो नदी के किनारों और ढलानों को नष्ट कर देती है, जिससे बाढ़ और भी बदतर हो जाती है।
- उदाहरण के लिये, उत्तराखंड में अलकनंदा और मंदाकिनी नदी घाटियों में अक्सर अचानक बाढ़ आ जाती है।
- उत्प्रेरक कारक: लगातार बारिश या तीव्र बादल फटने से मिट्टी संतृप्त हो जाती है, घर्षण कम हो जाता है और भूस्खलन, अचानक बाढ़ तथा मलबे का प्रवाह जैसी घटना देखने को मिलती है।
- अचानक तापमान में वृद्धि या अत्याधिक बारिश के कारण बर्फ पिघल जाती है, जिससे बड़ी मात्रा में पानी प्रवाहित होता है, ज़मीन संतृप्त हो जाती है और नदियों में बाढ़ आ जाती है।
- उदाहरण: जून–सितंबर 2025 के मौसम में उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में 30% से अधिक अतिरिक्त वर्षा दर्ज की गई है।
- मानव-जनित कारक: सड़क काटना, खड़ी ढलानों पर निर्माण, प्राकृतिक जल निकासी का अवरुद्ध होना, असंतुलित कृषि और अत्यधिक चराई ढलानों को अस्थिर करती है, जिससे भूस्खलन का खतरा बढ़ जाता है।
- जोशीमठ भूमि धंसाव (2023), जो अनियमित निर्माण से जुड़ा है, मानव-जनित भेद्यता को उजागर करता है।
जलवायु परिवर्तन बाढ़ और भूस्खलन की संवेदनशीलता को किस प्रकार प्रभावित करता है?
- चरम वर्षा घटनाओं में वृद्धि: गर्म वातावरण अधिक नमी (लगभग 7% प्रति 1°C) को धारण करता है, जिसके कारण तीव्र वर्षा और बादल फटने (क्लाउडबर्स्ट) की घटनाएँ होती हैं। इससे आकस्मिक बाढ़ (फ्लैश फ्लड) आती है, क्योंकि भूमि पानी को पर्याप्त तेज़ी से अवशोषित नहीं कर पाती और नाले-नदियाँ उफान पर आ जाते हैं।
- जलवायु परिवर्तन मानसूनी पैटर्न को बाधित करता है, जिससे कभी सूखा तो कभी तीव्र वर्षा होती है। सूखी और कठोर मिट्टी पानी को अवशोषित नहीं कर पाती, जिससे सतही बहाव, बाढ़ और अपरदन का खतरा बढ़ता है।
- हिमनद झील विस्फोट बाढ़ (GLOFs): बढ़ते तापमान के कारण ग्लेशियर पिघलते हैं और हिमोढ़ों द्वारा बांधित अस्थिर झीलों का निर्माण होता है, जिन्हें मोरेन (मलबे से बने बाँध) रोके रखते हैं। इनके टूटने पर GLOF की स्थिति उत्पन्न होती है, जिससे भारी मात्रा में पानी और मलबा अचानक प्रवाहित होते है, जिससे नीचे की ओर विनाशकारी बाढ़ आती है।
- वर्ष 2023 दक्षिण ल्होनक GLOF (सिक्किम) ने 16,000 करोड़ रुपये की चुंगथांग जलविद्युत परियोजना को नष्ट कर दिया, तीस्ता नदी में गाद जमा हो गई और निचले इलाकों में बाढ़ का खतरा बढ़ गया।
- पर्माफ्रॉस्ट का पिघलना: उच्च पर्वतीय क्षेत्रों में तापमान बढ़ने से पर्माफ्रॉस्ट (स्थायी रूप से जमी मिट्टी) पिघलने लगता है, जिससे ढलानों की स्थिरता कम हो जाती है। इसके परिणामस्वरूप चट्टानें गिरने, भूस्खलन होने और नदियों में मलबा जाने की घटनाएँ बढ़ती हैं, जो बाढ़ के खतरे को और अधिक बढ़ा देती हैं।
- वनाग्नि में वृद्धि: जलवायु परिवर्तन पहाड़ी क्षेत्रों को अधिक गर्म और शुष्क बना देता है, जिससे वनाग्नि की घटनाएँ बढ़ जाती हैं। ये आग वनस्पति को नष्ट कर देती हैं, मिट्टी को जलरोधी बना देती हैं तथा जब वर्षा होती है तो तीव्र गति से मलबे का बहाव (debris flow) शुरू हो जाता है।
- उदाहरण के लिये, भारत वन स्थिति रिपोर्ट (ISFR) 2023 के अनुसार अकेले उत्तराखंड में नवंबर 2022 और जून 2023 के बीच 5,351 वनाग्नि की घटनाएँ दर्ज की गईं है।
बाढ़ प्रबंधन पर NDMA दिशानिर्देश
- संरचनात्मक उपाय
- बाढ़ के जल का अपवर्तन: नदी के जल स्तर को कम करने के लिये प्राकृतिक/कृत्रिम चैनलों का उपयोग करना।
- जलग्रहण क्षेत्र उपचार/वनरोपण: जलग्रहण क्षेत्र प्रबंधन, मृदा संरक्षण, चेक डैम तथा अवरोधक बेसिन बाढ़ की तीव्रता को कम करने के लिये अवरोधन बेसिन।
- तटबंध/लीव/दीवार: अतिप्रवाह को रोकना; दिल्ली के पास यमुना पर प्रभावी।
- जल निकासी सुधार: सड़कों/नहरों/रेलवे द्वारा अवरुद्ध प्राकृतिक जल निकासी को बहाल करना।
- जल निकासी सुधार/गाद निष्कासन/ड्रेजिंग: निर्वहन क्षमता बढ़ाना, उद्गम/संगम स्थलों पर चयनात्मक गाद निष्कासन।
- जलाशय/बाँध/जल भंडारण: अतिरिक्त बाढ़ के जल का भंडारण करना।
- गैर-संरचनात्मक उपाय
- बाढ़ प्रबंधन योजनाएँ (FMP): सभी सरकारी विभागों/एजेंसियों के लिये अनिवार्य।
- बाढ़ पूर्वानुमान एवं चेतावनी: CWC और IMD से प्राप्त वास्तविक समय के निर्वहन तथा वर्षा के आँकड़ों पर आधारित।
- बाढ़ रोधी: सुरक्षा के लिये ऊँचे प्लेटफार्म, उपयोगिता प्रतिष्ठान, दो मंजिला आश्रय स्थल।
- एकीकृत जल संसाधन प्रबंधन (IWRM): बेसिन/वाटरशेड स्तर पर जल प्रबंधन।
- बाढ़ मैदान क्षेत्रीकरण: भूमि उपयोग को विनियमित करना; क्षेत्रों को अत्यधिक या आंशिक रूप से प्रभावित क्षेत्रों के रूप में चिह्नित करना।
भूस्खलन पर NDMA दिशानिर्देश
- भूस्खलन जोखिम क्षेत्रीकरण: भूस्खलन जोखिम क्षेत्रीकरण के नक्शे मैक्रो (1:50,000/25,000) और मेसो (1:10,000) पैमाने पर तैयार किये जाने चाहिये, जिसमें UAV, भौगोलिक लेज़र स्कैनर तथा उच्च-रिज़ॉल्यूशन उपग्रह डेटा जैसे उन्नत उपकरणों का उपयोग किया जाना चाहिये।
- पूर्व चेतावनी प्रणाली (LEWS): एक प्रभावी LEWS में वर्षा-आधारित थ्रेशोल्ड मॉडलिंग, वायरलेस उपकरण और वर्षा तथा भूकंप-प्रेरित भूस्खलनों दोनों के लिये वास्तविक समय निगरानी शामिल होनी चाहिये।
- क्षमता निर्माण एवं प्रशिक्षण: क्षमता निर्माण के लिये भूस्खलन जोखिम प्रबंधन में राष्ट्रव्यापी प्रशिक्षण आवश्यकता मूल्यांकन (TNA), प्रशिक्षण में नई प्रौद्योगिकियों का उपयोग और स्थाई स्तर के समुदायों पर ध्यान केंद्रित करना आवश्यक है।
- पर्वतीय क्षेत्र विनियम एवं नीतियाँ: रणनीति में भू-उपयोग नीतियों को तैयार करने और लागू करने, भवन विनियमों का अद्यतन करने, BIS कोडों को संशोधित करने तथा भूस्खलन-प्रवण क्षेत्रों में सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये नगर एवं ग्राम नियोजन कानूनों में जोखिम क्षेत्रीकरण प्रावधानों को शामिल करने की सिफारिश की गई है।
बाढ़ और भूस्खलन के प्रति क्षेत्रों की संवेदनशीलता को कम करने हेतु क्या उपाय अपनाए जा सकते हैं?
- पर्यावरणीय उपाय: देशी वृक्षों के साथ वनरोपण और पुनर्वनरोपण तथा वन पंचायतें समुदायों को मृदा का संरक्षण करने, वर्षा जल को अवशोषित करने और वनों की रक्षा करने के लिये सशक्त बनाती हैं।
- कॉन्टूर ट्रेंचिंग, टेरेस फार्मिंग और चेक डैम वर्षा के पानी के बहाव को धीमा करते हैं, जल अवशोषण की अनुमति देते हैं, तलछट को रोकते हैं तथा अपरदन को कम करते हैं।
- इंजीनियरिंग उपाय: रॉक बोल्ट, सॉइल नेल (Soil nail), अवरोधक दीवारें (Retaining walls) और मलबा प्रवाह अवरोधक/स्क्रीन ढलानों को स्थिर करते हैं तथा चट्टानों व मलबे को सड़कों या बस्तियों तक पहुँचने से रोकते हैं।
- नदी सुधार, अपवर्तन चैनल और अवसाद जाल नदी की वहन क्षमता को बढ़ाती हैं, अतिरिक्त जल को सुरक्षित दिशा में प्रवाहित करती हैं तथा गाद व मलबे को रोककर बाढ़ के जोखिम को कम करती हैं।
- शहरी बाढ़ प्रतिरोधक क्षमता को उचित जल-निकासी प्रणाली, स्पॉन्ज सिटी मॉडल और वर्षा जल संचयन के माध्यम से सुदृढ़ किया जा सकता है।
- नीति संबंधी उपाय: वहन क्षमता अध्ययनों को लागू करना, दृढ़ भूमि उपयोग नियोजन तथा आपदा-प्रवण क्षेत्रों की पहचान करना, ताकि तीव्र ढलानों, नदी तल तथा बाढ़ मैदानों पर निर्माण को रोका जा सके; असुरक्षित बस्तियों का पुनर्वास किया जा सके और दृढ़ भवन संहिता/बिल्डिंग कोड लागू की जा सके।
- सुदृढ़ शीघ्र चेतावनी प्रणालियाँ विकसित करना, जिनमें मौसम पूर्वानुमान, वर्षा आँकड़े और नदी स्तर का एकीकरण हो तथा उन्हें सामुदायिक सायरन व ड्रिल से समर्थित करना, ताकि समय पर सुरक्षित क्षेत्रों में निकासी सुनिश्चित की जा सके।
- आर्थिक एवं वित्तीय उपाय: राज्यों और ज़िलों के लिये समर्पित आपदा जोखिम न्यूनीकरण बजट बनाना।
- वर्षा/बाढ़-स्तर के कारकों के आधार पर त्वरित भुगतान हेतु पैरामीट्रिक बीमा मॉडल अपनाना (लंबे दावों से बचें)।
निष्कर्ष
पहाड़ी क्षेत्र स्वभावतः तीव्र ढलानों और अविकसित भूगर्भीय संरचना के कारण असुरक्षित होते हैं। लेकिन अस्थायी निर्माण और वनों की कटाई जैसी मानवीय गतिविधियों ने इस जोखिम को अत्यधिक बढ़ा दिया है। प्रभावी शमन के लिये एक एकीकृत दृष्टिकोण आवश्यक है, जो आपदा जोखिम न्यूनीकरण हेतु सेंडाई फ्रेमवर्क (2015–30) के अनुरूप हो और जिसमें दृढ़ भूमि-उपयोग नीतियाँ, पारिस्थितिक पुनर्स्थापन, इंजीनियरिंग समाधान तथा समुदाय-आधारित शीघ्र चेतावनी प्रणालियाँ शामिल हों।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. समालोचनात्मक विश्लेषण कीजिये कि भूगर्भीय नाजुकता और मानवीय गतिविधियाँ किस प्रकार पहाड़ी क्षेत्रों में जल-मौसम संबंधी आपदाओं में योगदान करती हैं। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)
मेन्स
प्रश्न. हिमालय क्षेत्र और पश्चिमी घाटों में भूस्खलनों के विभिन्न कारणों का अंतर स्पष्ट कीजिये। (2021)
प्रश्न. “हिमालय भूस्खलनों के प्रति अत्यधिक प्रवण है।” कारणों की विवेचना कीजिये तथा अल्पीकरण के उपयुक्त उपाय सुझाइये। (2016)