डेली न्यूज़ (18 Sep, 2021)



गुप्तकालीन मंदिर के अवशेष

प्रिलिम्स के लिये

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, गुप्त साम्राज्य, शंखलिपि लिपि, कुमारगुप्त प्रथम

मेन्स के लिये

गुप्त साम्राज्य और भारतीय जीवनशैली के विभिन्न पहलुओं पर इसका प्रभाव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने उत्तर प्रदेश के एटा ज़िले के बिलसर गाँव में गुप्तकाल (5वीं शताब्दी) के एक प्राचीन मंदिर के अवशेषों की खोज की।

  • वर्ष 1928 में ASI द्वारा बिलसहर को 'संरक्षित स्थल' घोषित किया गया था।

प्रमुख बिंदु

  • स्तंभों के बारे में:
    •  खुदाई से प्राप्त दो स्तंभों पर गुप्त वंश के शक्तिशाली शासक कुमारगुप्त प्रथम के बारे में 5वीं शताब्दी ईस्वी की 'शंख लिपि' (शंख लिपि या शंख लिपि) में एक शिलालेख है।
      • सर्वप्रथम गुप्तों ने संरचनात्मक मंदिरों का निर्माण किया, जो प्राचीन रॉक-कट मंदिरों से अलग थे।
    • शिलालेख को महेंद्रादित्य से संबंधित समझा गया था जो राजा कुमारगुप्त प्रथम की उपाधि थी, जिन्होंने अपने शासन के दौरान अश्वमेध यज्ञ भी किया था।
      • इसी तरह के शिलालेख वाले अश्व मूर्ति लखनऊ के राजकीय संग्रहालय में है।
      • अश्वमेध यज्ञ वैदिक धर्म की श्रौत परंपरा के बाद एक अश्व की बलि का अनुष्ठान है।
    • यह खोज इसलिये भी महत्त्वपूर्ण है क्योंकि अभी तक केवल दो गुप्तकालीन संरचनात्मक मंदिर पाए गए हैं - दशावतार मंदिर (देवगढ़) और भितरगांव मंदिर (कानपुर देहात)

Ruins

  • शंखलिपि लिपि:
    • इसे "शेल-स्क्रिप्ट" भी कहा जाता है, जो उत्तर-मध्य भारत में शिलालेखों में पाई जाती है और 4वीं एवं 8वीं शताब्दी की बीच की कालावधि से संबंधित है।
      • शंखलिपि और ब्राह्मी दोनों ही शैलीबद्ध लिपियाँ हैं जिनका उपयोग मुख्य रूप से नाम तथा हस्ताक्षर के लिये किया जाता है।
      • शिलालेखों में वर्णों की एक छोटी संख्या होती है, जो यह प्रदर्शित करती है कि शैल शिलालेख नाम या शुभ प्रतीक या दोनों का संयोजन है।
    • इसकी खोज वर्ष 1836 में अंग्रेजी विद्वान जेम्स प्रिंसेप ने उत्तराखंड के बाराहाट में पीतल के त्रिशूल पर की थी।
    • शैल शिलालेखों के साथ प्रमुख स्थल: मुंडेश्वरी मंदिर (बिहार), उदयगिरि गुफाएँ (मध्य प्रदेश), मानसर (महाराष्ट्र) और गुजरात और महाराष्ट्र के कुछ गुफा स्थल
      • इस तरह के शिलालेख इंडोनेशिया के जावा और बोर्नियो में भी पाए गए हैं।
  • कुमारगुप्त प्रथम:
    • कुमारगुप्त प्रथम चंद्रगुप्त-द्वितीय के उत्तराधिकारी थे और उनका शासनकाल 414 से 455 ईस्वी के मध्य  था।
    • उन्होंने अश्वमेध यज्ञ किया जिसकी पुष्टि अश्वमेध सिक्कों से हुई। उनके 1395 सिक्कों की खोज से दक्षिण की ओर उनके विस्तार की पुष्टि होती है।
    • उनकी अवधि को गुप्तों के स्वर्ण युग का हिस्सा माना जाता है।
    • पाँचवीं शताब्दी ई. के मध्य में कुमारगुप्त-प्रथम का शासन पुष्यमित्र के विद्रोह और हूणों के आक्रमण से अस्त-व्यस्त हो गया था।
      • पुष्यमित्र के विरुद्ध सफल प्राप्त करना कुमारगुप्त प्रथम की सबसे बड़ी उपलब्धि थी।
    • कुमारगुप्त प्रथम की मृत्यु के बाद स्कंदगुप्त 455 ईस्वी में शासक बना और उसने 455 से 467 ईस्वी तक शासन किया।

गुप्त साम्राज्य 

  • परिचय
    • गुप्त साम्राज्य 320 और 550 ईसवीं के बीच उत्तरी, मध्य और दक्षिणी भारत के कुछ हिस्सों में फैला हुआ था।
    • यह अवधि कला, वास्तुकला, विज्ञान, धर्म एवं दर्शन में अपनी उपलब्धियों के लिये जानी जाती है।
    • चंद्रगुप्त प्रथम (320 - 335 ईसवीं) ने गुप्त साम्राज्य का तेज़ी से विस्तार किया और जल्द ही साम्राज्य के पहले संप्रभु शासक के रूप में स्वयं को स्थापित कर लिया।
    • इसी के साथ ही प्रांतीय शक्तियों के 500 सौ वर्षों के प्रभुत्त्व का अंत हो गया और परिणामस्वरूप मौर्यों के पतन के साथ शुरू हुई अशांति भी समाप्त हो गई।
    • इसके परिणामस्वरूप समग्र समृद्धि एवं विकास की अवधि की शुरुआत हुई, जो आगामी ढाई शताब्दियों तक जारी रही जिसे भारत के इतिहास में एक स्वर्ण युग के रूप में जाना जाता है।
  • शासन
    • गुप्त साम्राज्य की ‘मार्शल’ प्रणाली की दक्षता सर्वविदित थी। इसमें बड़े राज्य को छोटे प्रदेशों (प्रांतों) में विभाजित किया गया था।
  • व्यापार
    • सोने और चाँदी के सिक्के बड़ी संख्या में जारी किये गए जो स्वस्थ्य अर्थव्यवस्था का संकेतक है।
    • व्यापार और वाणिज्य देश के भीतर और बाहर दोनों जगह विकास हुआ। रेशम, कपास, मसाले, औषधि, अमूल्य रत्न, मोती, कीमती धातु और स्टील का निर्यात समुद्र द्वारा किया जाता था। 
  • धर्म
    • गुप्त सम्राट स्वयं वैष्णव (विष्णु के रूप में सर्वोच्च निर्माता की पूजा करने वाले हिंदू) थे, फिर भी उन्होंने बौद्ध एवं जैन धर्म के अनुयायियों के प्रति सहिष्णु का प्रदर्शन किया। 
  • साहित्य
    • इसी काल के दौरान कवि और नाटककार कालिदास ने अभिज्ञानशाकुंतलम, मालविकाग्निमित्रम, रघुवंश और कुमारसम्भम जैसे महाकाव्यों की रचना की। हरिषेण ने ‘इलाहाबाद प्रशस्ति’ की रचना की, शूद्रक ने मृच्छकटिका की, विशाखदत्त ने मुद्राराक्षस की रचना की और विष्णुशर्मा ने पंचतंत्र की रचना की।
    • वराहमिहिर द्वारा बृहतसंहिता लिखी गई और खगोल विज्ञान एवं ज्योतिष के क्षेत्र में भी योगदान दिया। प्रतिभाशाली गणितज्ञ और खगोलशास्त्री आर्यभट्ट ने सूर्य सिद्धांत लिखा जिसमें ज्यामिति, त्रिकोणमिति और ब्रह्मांड विज्ञान के कई पहलुओं को शामिल किया गया। शंकु द्वारा भूगोल के क्षेत्र में कई में ग्रंथों की रचना की गई।
  • वास्तुकला
    • उस काल की चित्रकला, मूर्तिकला और स्थापत्य कला के बेहतरीन उदाहरण अजंता, एलोरा, सारनाथ, मथुरा, अनुराधापुरा और सिगिरिया में देखे जा सकते हैं।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


कृषि पर समझौता: विश्व व्यापार संगठन

प्रिलिम्स के लिये:

विश्व व्यापार संगठन, कृषि पर समझौता, G-33, ग्रीन बॉक्स सब्सिडी, अंबर बॉक्स सब्सिडी, ब्लू बॉक्स सब्सिडी

मेन्स के लिये:

विश्व व्यापार संगठन और भारत की खाद्य सुरक्षा चिंताएँ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में G-33 वर्चुअल अनौपचारिक मंत्रिस्तरीय बैठक को संबोधित करते हुए भारत के वाणिज्य और उद्योग मंत्री ने विश्व व्यापार संगठन (WTO) के ‘कृषि पर समझौते’ में असंतुलन की ओर संकेत किया।

  • उन्होंने दावा किया कि यह विकसित देशों के पक्ष में है और नियम-आधारित, निष्पक्ष तथा न्यायसंगत व्यवस्था सुनिश्चित करने के लिये ऐतिहासिक विषमताओं एवं असंतुलनों को ठीक किया जाना चाहिये।
  • उन्होंने आग्रह किया कि G-33 को खाद्य सुरक्षा उद्देश्यों की प्राप्ति के लिये सार्वजनिक स्टॉकहोल्डिंग के स्थायी समाधान संबंधी सकारात्मक परिणामों हेतु प्रयास करना चाहिये और एक विशेष सुरक्षा तंत्र को शीघ्रता से अंतिम रूप देना चाहिये तथा घरेलू समर्थन पर एक संतुलित परिणाम प्राप्त करना चाहिये।

G-33

  • यह कृषि व्यापार वार्ता में विकासशील देशों के हितों की रक्षा के लिये विश्व व्यापार संगठन के ‘कान्कुन मंत्रिस्तरीय सम्मेलन’ के दौरान गठित विकासशील देशों का एक मंच है।
    • भारत G-33 का एक हिस्सा है, जो 47 विकासशील और अल्पविकसित देशों का समूह है।
  • यह समूह ऐसे देशों की मदद करने के लिये बनाया गया था जो समान समस्याओं का सामना कर रहे थे। G-33 ने विश्व व्यापार संगठन की वार्त्ताओं में विकासशील देशों हेतु विशेष नियम प्रस्तावित किये हैं, जैसे कि उन्हें अपने कृषि बाज़ारों तक पहुँच को प्रतिबंधित करना जारी रखने की अनुमति देना।

प्रमुख बिंदु

  • परिचय:
    • इसका उद्देश्य व्यापार बाधाओं को दूर करना और पारदर्शी बाज़ार पहुँच तथा वैश्विक बाज़ारों के एकीकरण को बढ़ावा देना है।
    • विश्व व्यापार संगठन की कृषि समिति, समझौते के कार्यान्वयन की देखरेख करती है और सदस्यों को संबंधित चिंताओं को दूर करने के लिये एक मंच प्रदान करती है।
  • कृषि पर समझौते के तीन स्तंभ:
    • घरेलू समर्थन: यह घरेलू सब्सिडी में कमी का आह्वान करता है जो मुक्त व्यापार और उचित मूल्य को विकृत करता है।
      • इस प्रावधान के तहत विकसित देशों द्वारा सहायता के कुल मापन को 6 वर्षों की अवधि में 20% और विकासशील देशों द्वारा 10 वर्षों की अवधि में 13% कम किया जाना है।
      • इसके तहत सब्सिडी को निम्नलिखित रूपों में वर्गीकृत किया गया है:
  • ग्रीन बॉक्स: 
    • इसके अंतर्गत दी जाने वाली सब्सिडी सामान्यतः व्यापार में या तो विकृति उत्पन्न  करती नहीं है या फिर न्यूनतम विकृति उत्पन्न करती है।
    • इसके अंतर्गत पर्यावरण संरक्षण कार्यक्रम, स्थानीय विकास कार्यक्रमों, अनुसंधान, आपदा राहत इत्यादि हेतु सरकार द्वारा प्रदान की गई आर्थिक सहायता को शामिल किया जाता है
    • इसलिये ग्रीन बॉक्स सब्सिडी पर प्रतिबंध नहीं होता है, बशर्ते यह  नीति-विशिष्ट मानदंडों के अनुरूप हो।
  • अंबर बॉक्स: 
    • इसके अंतर्गत ब्लू एवं ग्रीन बॉक्स के अलावा वे सभी सब्सिडियाँ आती हैं जो कृषि उत्पादन एवं व्यापार को विकृत करती हैं।
    •  इस सब्सिडी में सरकार द्वारा कृषि उत्पादों के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य का निर्धारण तथा कृषि उत्पादों की मात्रा के आधार पर प्रत्यक्ष आर्थिक सहायता आदि को शामिल किया जाता है। 
  • ब्लू बॉक्स: 
    • यह "शर्तों के साथ एम्बर बॉक्स"(Amber Box With Conditions)  है। इसे एसी स्थितियों में कमी लेन हेतु डिज़ाइन किया गया है जो व्यापार में विकृति उत्पन्न करती हैं।
    • आम तौर पर एम्बर बॉक्स में शामिल उस सब्सिडी को नीले बॉक्स में रखा जाता है जिसे प्राप्त करने के लिये किसानों को अपना उत्पादन सीमित करने की आवश्यकता होती है।
    • वर्तमान ब्लू बॉक्स सब्सिडी पर खर्च करने की कोई सीमा नहीं है।
  • बाज़ार तक पहुंँच: विश्व व्यापार संगठन में माल के लिये बाज़ार की पहुंँच का अर्थ शर्तों, टैरिफ और गैर-टैरिफ उपायों से है, जो सदस्यों द्वारा अपने बाज़ारों में विशिष्ट वस्तुओं के प्रवेश पर लगाए जाते हैं।
    • बाज़ार तक पहुंँच सुनिशित करने के लिये आवश्यक है कि मुक्त व्यापार की अनुमति देने के लिये अलग-अलग देशों द्वारा निर्धारित टैरिफ (जैसे कस्टम ड्यूटी) में उत्तरोत्तर कटौती की जाए। इसके लिये देशों को टैरिफरहित शर्तों को हटाकर टैरिफ ड्यूटी में में बदलने की भी आवश्यकता थी।
  • निर्यात सब्सिडी: कृषि इनपुट/निवेश वस्तुओं पर सब्सिडी, निर्यात को सस्ता बनाना या निर्यात को बढ़ावा देने हेतु अन्य प्रोत्साहन जैसे- आयात शुल्क में छूट आदि को निर्यात सब्सिडी के तहत शामिल किया गया है।
    • इनके परिणामस्वरूप अन्य देशों में अत्यधिक सब्सिडी वाले (और सस्ते) उत्पादों की डंपिंग हो सकती है जिससे उन देशों के घरेलू कृषि क्षेत्र को नुकसान हो सकता है।

विश्व व्यापार संगठन

  • यह वर्ष 1995 में अस्तित्व में आया। विश्व व्यापार संगठन, द्वितीय विश्व युद्ध के मद्देनजर स्थापित प्रशुल्क एवं व्यापार पर सामान्य समझौते (General Agreement on Tariffs and Trade- GATT) का उत्तराधिकारी है।
    • इसका उद्देश्य व्यापार प्रवाह में सुचारू रूप से, स्वतंत्र रूप से और अनुमानित रूप से मदद करना है।
    • विश्व के 164 देश इसके सदस्य हैं, जो विश्व व्यापार का 98% हिस्सा है।
  • इसे GATT के तहत आयोजित व्यापार वार्ताओं या दौरों की एक शृंखला के माध्यम से विकसित किया गया था।
    • GATT बहुपक्षीय व्यापार समझौतों का एक समूह है जिसका उद्देश्य कोटा को समाप्त करना और अनुबंध करने वाले देशों के बीच टैरिफ शुल्क में कमी करना है।
  • विश्व व्यापार संगठन के नियम, समझौते सदस्यों के मध्य वार्ताओं का परिणाम हैं।
    • वर्तमान संग्रह काफी हद तक वर्ष 1986- 94 के उरुग्वे राउंड की वार्ता का परिणाम है, जिसमें मूल प्रशुल्क एवं व्यापार सामान्य समझौते (GATT) का पुनरीक्षण शामिल था।
  • WTO का मुख्यालय स्विट्ज़रलैंड के जिनेवा में स्थित है।
  • विश्व व्यापार संगठन के अन्य तंत्र

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


शहरी नियोजन सुधार: नीति आयोग

प्रिलिम्स के लिये:

भारत की जनगणना 2011, सकल घरेलू उत्पाद, शहरीकरण 

मेन्स के लिये:

भारत में शहरीकरण की वर्तमान स्थिति तथा शहरी विकास से संबंधित योजनाएँ/कार्यक्रम 

चर्चा में क्यों?   

हाल ही में नीति आयोग ने 'भारत में शहरी नियोजन क्षमता में सुधार' (Reforms in Urban Planning Capacity in India) शीर्षक से रिपोर्ट जारी की है।

Urban-Population

प्रमुख बिंदु 

  • भारत में शहरीकरण
    • शहरीकरण स्तर (राष्ट्रीय):
      • 31.1% (भारत की जनगणना 2011) शहरीकरण स्तर के साथ, वर्ष 2011 में भारत की शहरी जनसंख्या 1210 मिलियन थी।
        • शहरीकरण कस्बों (Towns) और शहरों  (Cities) में रहने वाले लोगों की संख्या में वृद्धि को संदर्भित करता है।
      • पूरे देश में शहरी केंद्रों (Urban centres) का वितरण और शहरीकरण  (Urbanisation) की गति एक समान नहीं है।
        • देश की 75% से अधिक शहरी जनसंख्या 10 राज्यों- महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, राजस्थान और केरल में विद्यमान है।
    • राज्यवार परिदृश्य:
      • राष्ट्रीय औसत से ऊपर: गोवा, तमिलनाडु, केरल, महाराष्ट्र और गुजरात जैसे राज्यों में शहरीकरण का स्तर 40% से अधिक है।
      • राष्ट्रीय औसत से नीचे: बिहार, ओडिशा, असम और उत्तर प्रदेश में शहरीकरण का स्तर राष्ट्रीय औसत (31.1% ) से कम है।
      • केंद्रशासित प्रदेश: दिल्ली, दमन और दीव, चंडीगढ़ तथा लक्षद्वीप में शहरीकरण का स्तर 75% से अधिक है।
  • शहरी नियोजन क्षमता में सुधार की आवश्यकता:
    • बढ़ता शहरीकरण: भारत की शहरी जनसंख्या विश्व जनसंख्या का 11% है।
      • हालांँकि, निरपेक्ष संख्या (Absolute Numbers) से, भारत में शहरी जनसंख्या संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान, पश्चिमी यूरोप और दक्षिण अमेरिका जैसे अत्यधिक शहरीकृत देशों/क्षेत्रों से अधिक है।
      • वर्ष 2011से 2036 के दौरान,भारत में कुल जनसंख्या में 73% वृद्धि के लिये शहरी विकास ही ज़िम्मेदार होगा।
    • भारतीय अर्थव्यवस्था का केंद्र: शहरीकरण भारत के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में लगभग 60% का योगदान देता है।  
      • हालांँकि भारत में बड़े पैमाने पर अपर्याप्त अर्थव्यवस्था का स्तर मौज़ूद है।
    • भारत के राष्ट्रीय विकास लक्ष्य:
    • राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन (NIP): NIP के अंतर्गत शहरी क्षेत्र का महत्त्वपूर्ण हिस्सा (17%) शामिल है। 
      • NIP वर्ष 2020-25 की अवधि के दौरान 111 लाख करोड़ रुपए के अनुमानित निवेश के साथ देश में बुनियादी अवसंरचना परियोजनाओं की सुविधा प्रदान करता है। 
    • भारत की वैश्विक प्रतिबद्धताएँ:
      • SDG (लक्ष्य 11): सतत् विकास को प्राप्त करने के लिये अनुशंसित तरीकों में से एक के रूप में शहरी नियोजन को बढ़ावा देना।
      • यूएन-हैबिटेट का नया शहरी एजेंडा: इसे वर्ष 2016 में हैबिटेट-III में अपनाया गया था। यह शहरी क्षेत्रों के नियोजन, निर्माण, विकास, प्रबंधन और सुधार के सिद्धांतों को प्रदर्शित करता है।
      • यूएन-हैबिटेट (2020) यह एक अवधारणा के रूप में स्थानिक स्थिरता का उल्लेख करता है। यह सुझाव देता है कि किसी शहर की स्थानिक स्थितियाँ सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय मूल्य तथा कल्याण उत्पन्न करने के लिये अपनी क्षमता को बढ़ा सकती हैं।
      • पेरिस समझौता: भारत के राष्ट्रीय निर्धारित योगदान (NDC) में वर्ष 2005 के स्तर से वर्ष 2030 तक देश के सकल घरेलू उत्पाद की उत्सर्जन तीव्रता को 33% से 35% तक कम करने के लक्ष्य शामिल हैं।
  • सिफारिशें:
    • स्वस्थ शहरों की योजना: रिपोर्ट में 5 वर्ष की अवधि के लिये '500 स्वस्थ शहर कार्यक्रम (500 Healthy Cities Programme)' नामक केंद्रीय क्षेत्र की योजना की भी सिफारिश की गई है। इसके अंतर्गत राज्यों और स्थानीय निकायों द्वारा संयुक्त रूप से प्राथमिक शहरों और कस्बों का चयन किया जाएगा।
      • इस कार्यक्रम से शहरी भूमि का इष्टतम उपयोग भी हो सकता है।
    • शहरी शासन को पुनर्स्पष्ट करना: अधिक संस्थागत स्पष्टता और बहु-अनुशासनात्मक विशेषज्ञता के माध्यम से शहरी चुनौतियों को हल करना।
      • राज्य स्तर पर एक शीर्ष समिति के गठन की सिफारिश की गई है ताकि योजना, कानूनों (नगर और देश नियोजन संबंधी या शहरी और क्षेत्रीय विकास अधिनियम, अन्य प्रासंगिक अधिनियमों सहित) की नियमित समीक्षा की जा सके।
    • निजी क्षेत्र की भूमिका को सुदृढ़ बनाना: इसके अंतर्गत तकनीकी परामर्श सेवाओं की खरीद हेतु उचित प्रक्रियाओं को अपनाना, सार्वजनिक क्षेत्र में परियोजना संरचना और प्रबंधन कौशल को मज़बूत करना तथा निजी क्षेत्र के परामर्शियों को शामिल करना है।
    • मानव संसाधन को सुदृढ़ करने और मांग-आपूर्ति संतुलन के लिये उपाय: भारत सरकार के एक सांविधिक निकाय के रूप में 'राष्ट्रीय नगर और ग्राम योजनाकारों की परिषद' का गठन।
      • साथ ही आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय (MoHUA) के ‘नेशनल अर्बन इनोवेशन स्टैक’ के भीतर एक 'नेशनल डिजिटल प्लेटफॉर्म ऑफ़ टाउन एंड कंट्री प्लानर्स' बनाने का सुझाव दिया गया है।
    • शहरी नियोजन के रहस्योद्घाटन के लिये ‘सिटीज़न आउटरीच अभियान'
    • शहरी नियोजन शिक्षा प्रणाली को सुदृढ़ बनाना।

शहरी विकास से संबंधित योजनाएँ/कार्यक्रम

  • स्मार्ट सिटीज: इसका उद्देश्य ऐसे शहरों को बढ़ावा देना है जो मुख्य बुनियादी सुविधाएँ उपलब्ध कराएँ और अपने नागरिकों को एक गुणवत्तापूर्ण जीवन प्रदान करे तथा एक स्वच्छ और टिकाऊ पर्यावरण एवं 'स्मार्ट' समाधानों के प्रयोग का अवसर दें। 
  • अमृत मिशन: इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि हर घर में पानी की आपूर्ति और सीवरेज कनेक्शन के साथ नल की व्यवस्था हो।
  • स्वच्छ भारत मिशन-शहरी: इसका उद्देश्‍य शहरी भारत को खुले में शौच से मुक्‍त करना तथा देश में 4041 वैधानिक कस्‍बे में नगरीय ठोस अपशिष्‍ट का शत-प्रतिशत वैज्ञानिक प्रबंधन सुनिश्चित करना है । 
  • हृदय योजना: राष्ट्रीय विरासत शहर विकास एवं वृद्धि योजना (हृदय) का लक्ष्य शहरी नियोजन, आर्थिक विकास तथा विरासत संरक्षण को एक समावेशी तरीके और शहर की विरासत को संरक्षित करने के उद्देश्य से एकीकृत करना है।
  • प्रधानमंत्री आवास योजना-शहरी:  इस योजना का लक्ष्य पात्र शहरी गरीबों (झुग्गीवासी सहित) को पक्के घर उपलब्ध कराना है। 

स्रोत: पी. आई. बी.


ग्लोबल मीथेन प्लेज

प्रिलिम्स के लिये:

यूनाइटेड नेशंस फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज, ग्लोबल मीथेन प्लेज, पेरिस जलवायु समझौता, ग्रीनहाउस गैस, ट्रोपोस्फेरिक ओज़ोन, हरित धारा

मेन्स के लिये:

ग्लोबल मीथेन प्लेज के माध्यम से पर्यावरण को होने वाले लाभ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति ने ‘ग्लोबल मीथेन प्लेज’ (Global Methane Pledge) की घोषणा की है, जो इस दशक के अंत तक मीथेन उत्सर्जन में एक तिहाई की कटौती करने हेतु ‘संयुक्त राज्य अमेरिका-यूरोपियन संघ’ के नेतृत्त्व वाला प्रयास है।

प्रमुख बिंदु

  • परिचय:
    • अमेरिका और यूरोपीय संघ के बीच समझौता वर्ष 2030 तक (वर्ष 2020 के स्तर के आधार पर) वैश्विक मीथेन उत्सर्जन को कम-से-कम 30% कम करने का लक्ष्य निर्धारित करता है।
    • यदि यह विश्व में अपनाया जाता है, तो यह वर्ष 2040 तक वैश्विक तापन को 0.2C तक कम कर देगा, जबकि उस समय तक तापमान बढ़ने की संभावना है।
      • विश्व अब पूर्व-औद्योगिक समय की तुलना में लगभग 1.2C अधिक गर्म है।
  • मीथेन गैस:
    • परिचय:
      • मीथेन सबसे सरल हाइड्रोकार्बन है, जिसमें एक कार्बन परमाणु और चार हाइड्रोजन परमाणु (CH4) होते हैं।
        • यह ज्वलनशील है और इसका उपयोग विश्व में ईंधन के रूप में किया जाता है।
      • मीथेन एक शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस है।
      • मीथेन का लगभग 40% प्राकृतिक स्रोतों से और लगभग 60% मानव-प्रभावित स्रोतों से उत्सर्जिन होता है, जिसमें पशुधन खेती, चावल कृषि, बायोमास जलाना आदि शामिल हैं।
    • प्रभाव:
      • अधिक ग्लोबल वार्मिंग क्षमता: यह अपनी ग्लोबल वार्मिंग क्षमता के मामले में कार्बन डाइऑक्साइड की तुलना में लगभग 80-85 गुना अधिक शक्तिशाली है।
        • यह अन्य ग्रीनहाउस गैसों को कम करने के साथ-साथ ग्लोबल वार्मिंग में और अधिक तेज़ी से कमी लाने के लिये एक महत्त्वपूर्ण लक्ष्य स्थापित करता है।
      • ट्रोपोस्फेरिक ओज़ोन के उत्पादन को बढ़ावा देता है: बढ़ते उत्सर्जन से क्षोभमंडलीय ओज़ोन वायु प्रदूषण में वृद्धि हो रही है, जिससे वार्षिक रूप से दस लाख से अधिक मौतें समय से पहले होती हैं।
  • संबंधित भारतीय पहल:
    • ‘हरित धारा' (HD): भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (Indian Council of Agricultural Research- ICAR) ने  'हरित धारा' (Harit Dhara) नामक एक एंटी-मिथेनोजेनिक फीड सप्लीमेंट (Anti-Methanogenic Feed Supplement) विकसित किया है जो मवेशियों द्वारा किये जाने वाले मीथेन उत्सर्जन में 17-20% की कटौती कर सकता है और इसके परिणामस्वरूप दूध का उत्पादन भी बढ़ सकता है।
    • भारत ग्रीनहाउस गैस (GHG) कार्यक्रम: इसे WRI इंडिया (गैर-लाभकारी संगठन), भारतीय उद्योग परिसंघ (CII) और  द एनर्जी एंड रिसोर्सेज़ इंस्टीट्यूट (TERI) के नेतृत्व में संचालित किया जा रहा है। भारत GHG कार्यक्रम ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को मापने और प्रबंधित करने के लिये एक उद्योग के नेतृत्व वाला स्वैच्छिक ढाँचा है।
      • कार्यक्रम भारत में उत्सर्जन को कम करने और अधिक लाभदायक, प्रतिस्पर्द्धी तथा टिकाऊ व्यवसायों एवं संगठनों के संचलन हेतु व्यापक ढाँचे एवं प्रबंधन रणनीतियों का निर्माण करता है।
    • जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना (NAPCC): NAPCC को वर्ष 2008 में शुरू किया गया था जिसका उद्देश्य जनता के प्रतिनिधियों, सरकार की विभिन्न एजेंसियों, वैज्ञानिकों, उद्योग और समुदायों के मध्य जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न खतरे तथा उत्पन्न चुनौतियों का मुकाबला करने के लिये जागरूकता पैदा करना है।
    • भारत स्टेज-VI मानदंड: भारत द्वारा भारत स्टेज- IV (BS-IV) से भारत स्टेज-VI (BS-VI) उत्सर्जन मानदंडों को अपना लिया गया है।

वैश्विक मीथेन पहल (GMI)

  • यह एक अंतर्राष्ट्रीय सार्वजनिक-निजी भागीदारी है जो स्वच्छ ऊर्जा स्रोत के रूप में मीथेन की वसूली और उपयोग के लिये बाधाओं को कम करने पर केंद्रित है।
  • GMI विश्व भर में मीथेन से ऊर्जा परियोजनाओं को प्रसारित करने के लिये तकनीकी सहायता प्रदान करता है जो भागीदार देशों को मीथेन वसूली शुरू करने और परियोजनाओं का उपयोग करने में सक्षम बनाती है।
  • भारत GMI का एक भागीदार देश है।

स्रोत: द हिंदू


21वांँ SCO शिखर सम्मेलन

प्रिलिम्स के लिये: 

शंघाई सहयोग संगठन, उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन, शंघाई फाइव, क्षेत्रीय आतंकवाद विरोधी संरचना (RATS)

मेन्स के लिये:

शंघाई सहयोग संगठन की वर्तमान वैश्विक परिस्थितियों में प्रासंगिकता

चर्चा में क्यों?  

हाल ही में शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के राष्ट्राध्यक्षों की परिषद का 21वांँ शिखर सम्मेलन ताज़िकिस्तान के दुशांबे में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से आयोजित किया गया था।

  • इस बैठक में मुख्य रूप से अफगानिस्तान की वर्तमान परिस्थितयों और इसके वैश्विक नतीजों पर ध्यान केंद्रित किया गया था।
  • ईरान को संगठन के नौवें पूर्ण सदस्य के रूप में स्वीकार किया गया है।

प्रमुख बिंदु 

  • भारत का रुख:
    • भारत द्वारा कट्टरपंथ और उग्रवाद के खिलाफ कड़ा रुख अपनाते हुए एक संयुक्त दृष्टिकोण के साथ संगठन के सभी देशों को एक साथ आने और आतंक के वित्तपोषण तथा  सीमा पार आतंकवाद को रोकने हेतु एक आचार संहिता तैयार करने का आग्रह किया गया।
      • भारत द्वारा मध्य एशिया में उदारवादी इस्लाम के महत्त्व पर भी ज़ोर दिया गया।
    • वित्तीय और व्यापार प्रवाह में रुकावट के कारण अफगान लोगों की आर्थिक समस्याएंँ बढ़ रही हैं अत: इस बैठक में अफगानिस्तान के सामने आ रहे गंभीर मानवीय संकट पर चिंता व्यक्त की गई।
    • भारत ने इस बात को भी चिह्नित किया कि यदि अफगानिस्तान में विकास कार्य किये जाते है तो इससे ड्रग्स, अवैध हथियारों और मानव तस्करी का अनियंत्रित प्रवाह हो सकता है।
    • भारत, मध्य एशिया के साथ अपनी कनेक्टिविटी बढ़ाने के लिये प्रतिबद्ध है। भारत का मानना है कि सभी देशों की क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान होना चाहिये।

शंघाई सहयोग संगठन:

  • परिचय:
    • यह एक अंतर सरकारी स्थायी अंतर्राष्ट्रीय संगठन है। इसकी स्थापना वर्ष 2001 में की गई थी।
    • SCO चार्टर वर्ष 2002 में हस्ताक्षरित किया गया था और इसे वर्ष 2003 में लागू किया गया था।
    • यह एक यूरेशियाई राजनीतिक, आर्थिक और सैन्य संगठन है जिसका लक्ष्य इस क्षेत्र में शांति, सुरक्षा और स्थिरता बनाए रखना है।
    • इसे उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) के प्रतिकार के रूप में देखा जाता है, यह नौ सदस्यीय आर्थिक और सुरक्षा ब्लॉक है तथा सबसे बड़े अंतर-क्षेत्रीय अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों में से एक के रूप में उभरा है।
  • आधिकारिक भाषाएँ: 
    • रूसी और चीनी
  • स्थानीय निकाय: 
    • SCO सचिवालय बीजिंग में स्थित है।
    • क्षेत्रीय आतंकवाद विरोधी संरचना (Regional Anti-Terrorist Structure- RATS) की कार्यकारी समिति, ताशकंद में स्थित है।
  • अध्यक्षता
    • इसकी अध्यक्षता सदस्य देशों द्वारा बारी-बारी से एक वर्ष के लिये की जाती है।
  • उत्पत्ति: 
    • वर्ष 2001 में SCO के गठन से पूर्व, कज़ाकिस्तान, चीन, किर्गिस्तान, रूस और ताज़िकिस्तान शंघाई फाइव (Shanghai Five) के सदस्य थे।
    • शंघाई फाइव (वर्ष 1996) की उत्पत्ति सीमा निर्धारण (सीमांकन) और विसैन्यीकरण पर वार्ताओं की एक शृंखला के बाद हुई। ये वार्ताएँ चार पूर्व सोवियत गणराज्यों द्वारा चीन के साथ सीमाओं पर स्थिरता सुनिश्चित करने के उद्देश्य से आयोजित की गई थीं।
    • वर्ष 2001 में उज़्बेकिस्तान के संगठन में शामिल होने के बाद, शंघाई फाइव का नाम बदलकर शंघाई सहयोग संगठन (SCO) कर दिया गया।
    • भारत और पाकिस्तान वर्ष 2017 में इसके सदस्य बने। ईरान SCO का नौवाँ और सबसे नया सदस्य है।
      • वर्ष 2005 में भारत को SCO में एक पर्यवेक्षक बनाया गया था और इसने सामान्यतः समूह की मंत्रिस्तरीय बैठकों में भाग लिया है जो मुख्य रूप से यूरेशियाई क्षेत्र में सुरक्षा तथा आर्थिक सहयोग पर केंद्रित होती हैं।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


विश्व बैंक ने बंद की 'ईज़ ऑफ डूइंग बिजनेस' रिपोर्ट

प्रिलिम्स के लिये:

ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस' रिपोर्ट, विश्व बैंक

मेन्स के लिये:

विश्व बैंक द्वारा जारी 'ईज़ ऑफ डूइंग बिजनेस' रिपोर्ट के प्रकाशन को बंद किये जाने के कारण 

चर्चा में क्यों?

विश्व बैंक अपनी ईज़ ऑफ डूइंग बिजनेस' रिपोर्ट के वर्ष 2018 और 2020 संस्करणों (क्रमशः 2017 और 2019 में जारी) में बैंक कर्मचारियों के ‘नैतिक मामलों’ से संबंधित ‘डेटा अनियमितताओं’ की जाँच के बाद इसके प्रकाशन को बंद कर देगा।

  • यह व्यापार और निवेश के माहौल का आकलन करने के लिये एक नए दृष्टिकोण पर कार्य करेगा।

प्रमुख बिंदु

  • ‘ईज़ ऑफ डूइंग बिजनेस' रिपोर्ट:
    • इस रिपोर्ट को पहली बार वर्ष 2003 में जारी किया गया था ताकि व्यापार नियमों के उद्देश्य और उपायों का आकलन किया जा सके तथा 190 अर्थव्यवस्थाओं के जीवन चक्र एवं उनके अंतर्गत आने वाले व्यवसाय को प्रभावित करने वाले दस मापदंडों के आधार पर मापा जा सके।
    • इस रिपोर्ट के मानकों में व्यवसाय शुरू करना, निर्माण परमिट, विद्युत उपलब्धता, संपत्ति पंजीकरण, ऋण उपलब्धता, अल्पसंख्यक निवेशकों की सुरक्षा, करों का भुगतान, सीमा पार व्यापार, अनुबंध प्रवर्तन और दिवाला समाधान शामिल हैं।
    • यह ‘डिस्टेंस टू फ्रंटियर’ (DTF) स्कोर के आधार पर देशों को रैंकिंग प्रदान करता है जो वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं के संबंध में अर्थव्यवस्थाओं के बीच के अंतर को उजागर करता है।
      • उदाहरण के लिये 75 के स्कोर का अर्थ है कि एक अर्थव्यवस्था सभी अर्थव्यवस्थाओं और पूरे समय में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन की तय सीमा से 25 प्रतिशत अंक दूर थी।
  • भारत का प्रदर्शन:
    • विशेष रूप से वर्ष 2017, 2018 और 2019 में जारी तीन रिपोर्टों में भारत "सबसे उल्लेखनीय सुधार" दिखाते हुए शीर्ष 10 अर्थव्यवस्थाओं में स्थान पाने में सफल रहा।
      • ईज़ ऑफ डूइंग बिजनेस सूचकांक में 190 देशों के बीच भारत की रैंकिग वर्ष 2014 में 142 से सुधरकर 2015 में 130, 2017 में 100, 2018 में 77 और वर्ष 2019 में 63 देखी गई थी।      
    • अक्तूबर 2019 में प्रकाशित नवीनतम रिपोर्ट में भारत को ईज़ ऑफ डूइंग बिजनेस में 63वें स्थान पर रखा गया।
      • भारत ने अन्य शीर्ष सुधारकर्त्ताओं के साथ वर्ष 2018-19 में 59 नियामक सुधारों को लागू किया था जो विश्व में दर्ज सभी सुधारों का पाँचवा हिस्सा था।
      • वर्ष 2018-19 के दौरान भारत ने  ‘व्यवसाय शुरू करना', 'निर्माण परमिट से निपटना', 'सीमाओं के पार व्यापार' और 'दिवालियापन का समाधान' जैसे मापदंडों में सुधारों को लागू किया था। सरकार का लक्ष्य वर्ष 2020 तक शीर्ष 50 अर्थव्यवस्थाओं में शामिल होना था। 
    • भारत के लिये यह स्कोर केवल दो शहरों के कवरेज पर आधारित होता था, जिसमें मुंबई को 47% और दिल्ली को 53% भार दिया जाता था।

विश्व बैंक

विश्व बैंक पाँच प्रमुख विकास संस्थान:

  • अंतर्राष्ट्रीय पुनर्निर्माण और विकास बैंक (IBRD): यह लोन, ऋण और अनुदान प्रदान करता है। 
  • अंतर्राष्ट्रीय विकास संघ (IDA): यह निम्न आय वाले देशों को कम या बिना ब्याज वाले ऋण प्रदान करता है।
  • अंतर्राष्ट्रीय वित्त निगम (IFC): यह कंपनियों और सरकारों को निवेश, सलाह तथा परिसंपत्तियों के प्रबंधन संबंधी सहायता प्रदान करता है।
  • बहुपक्षीय निवेश गारंटी एजेंसी (MIGA): यह ऋणदाताओं और निवेशकों को युद्ध जैसे राजनीतिक जोखिम के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करने का कार्य करती है।
  • निवेश विवादों के निपटारे के लिये अंतर्राष्ट्रीय केंद्र (ICSID): यह निवेशकों और देशों के मध्य उत्पन्न निवेश-विवादों के सुलह और मध्यस्थता के लिये सुविधाएँ प्रदान करता है। 
    • भारत इसका सदस्य नहीं है।

स्रोत: द हिंदू