डेली न्यूज़ (10 May, 2021)



G7 के विदेश मंत्रियों की बैठक

चर्चा में क्यों?                                                                       

हाल ही में  ‘ग्रुप ऑफ सेवन’ (G7) देशों (अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, फ्रांँस, जर्मनी, इटली और जापान) के विदेश मंत्रियों की बैठक लंदन, ब्रिटेन में संपन्न हुई।

  • 47वांँ G7 शिखर सम्मेलन जून, 2021 में यूनाइटेड किंगडम की मेज़बानी में आयोजित किया जाएगा।

प्रमुख बिंदु: 

बैठक के विषय में:

  • आमंत्रित अथिति:
    • इस सम्मेलन में ऑस्ट्रेलिया, भारत, दक्षिण कोरिया, दक्षिण अफ्रीका और दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (Association of Southeast Asian Nations- ASEAN) के वर्तमान अध्यक्ष ब्रुनेई दारुस्सलाम आदि के प्रमुख शामिल थे।
      • ऑस्ट्रेलिया, भारत, दक्षिण कोरिया और दक्षिण अफ्रीका जून में आयोजित होने वाले G7 शिखर सम्मेलन में भी शामिल होंगे।
  • वार्ता में शामिल मुद्दे:
    • रूस के गैर-ज़िम्मेदाराना और अस्थिर व्यवहार: रूस द्वारा यूक्रेन (Ukraine’s) की सीमाओं पर अवैध रूप से अतिक्रमण, रूस द्वारा क्रीमिया में अपने सैन्य बलों को भेजने की कार्यवाही और वहाँ  किये गए निर्माण कार्यों पर चर्चा की गई।
    • चीन से संबंधित: शिनजियांग और तिब्बत में चीन द्वारा मानवाधिकारों का उल्लंघन और दुरुपयोग, विशेष रूप से उइगर और अन्य जातीय और धार्मिक अल्पसंख्यक समूहों के सदस्यों को निशाना बनाने आदि पर भी चर्चा की गई।
      • चीन से हॉन्गकॉन्ग (Hong Kong’s) की उच्च स्वायत्तता और अधिकारों और स्वतंत्रता (बेसिक लॉ) का सम्मान करने का आह्वान किया गया।
    • इस दौरान म्याँमार में सैन्य तख्तापलट की भी निंदा की गई।
      •  इंडो-पैसिफिक:
        • साथ ही सम्मेलन में इंडो-पैसिफिक क्षेत्र पर आसियान की केंद्रीयता का समर्थन किया गया।
        • एक स्वतंत्र और मुक्त इंडो-पैसिफिक के निर्माण के महत्त्व को दोहराया गया, जो कि समावेशी हो और कानून के शासन, लोकतांत्रिक मूल्यों, क्षेत्रीय अखंडता, पारदर्शिता, मानवाधिकारों और मौलिक स्वतंत्रता की रक्षा तथा विवादों शक्तियों के शांतिपूर्ण समाधान पर आधारित हो।
    • नियम-आधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था:
      • इसे सभी देशों द्वारा समय के साथ विकसित होने वाले सहमति के अनुसार अपनी गतिविधियों के संचालन हेतु एक साझा प्रतिबद्धता के रूप में वर्णित किया जा सकता है, जैसे कि अंतर्राष्ट्रीय कानून, क्षेत्रीय सुरक्षा व्यवस्था, व्यापार समझौते, आव्रजन प्रोटोकॉल और सांस्कृतिक व्यवस्था आदि।

ग्रुप ऑफ सेवन (G7): 

G7

  • G7 के विषय में:
    • यह एक अंतर-सरकारी संगठन है, जिसका गठन वर्ष 1975 में हुआ था।
    • वैश्विक आर्थिक व्यवस्था, अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा और ऊर्जा नीति जैसे साझा हित के मुद्दों पर चर्चा करने हेतु इस समूह की बैठक वार्षिक रूप से संपन्न होती है।
    • G7 का कोई निर्धारित संविधान या मुख्यालय नहीं है। वार्षिक शिखर सम्मेलन के दौरान नेताओं द्वारा लिये गए निर्णय गैर-बाध्यकारी होते हैं।
      • चर्चा के लिये आरक्षित विषयों और अनुवर्ती बैठकों सहित शिखर सम्मेलन के तमाम महत्त्वपूर्ण कार्य "शेरपा" (Sherpas) द्वारा किये जाते हैं, जो आमतौर पर व्यक्तिगत प्रतिनिधि या राजदूत होते हैं।
      • यूरोपीय संघ  (European Union), आईएमएफ (IMF), विश्व बैंक (World Bank) और संयुक्त राष्ट्र (United Nations) जैसे महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के प्रतिनिधियों को भी आमंत्रित किया जाता है।
  • मुद्दा:
    • वर्तमान में G7 में शामिल सभी देश सर्वाधिक उन्नत नहीं हैं। यद्यपि भारत सैन्य और आर्थिक दोनों मोर्चों पर उन्नति कर रहा है फिर भी यह G7 का हिस्सा नहीं है। यही कारण है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) की तरह G7 में भी व्यापक बदलाव लाने पर ज़ोर दिया जा रहा है।

भारत और G7:

  • पूर्व भागीदारी:
    • अगस्त 2019 में फ्रांँस के बिरिट्ज में संपन्न हुए 45वें शिखर सम्मेलन में भारत की  उपस्थिति एक प्रमुख आर्थिक एवं  मज़बूत रणनीतिक साझेदारी को प्रतिबिंबित करती है।
    • वर्ष 2020 में संयुक्त राज्य अमेरिका में आयोजित होने वाले शिखर सम्मेलन में भी भारत को आमंत्रित किया गया था, हालांँकि महामारी के कारण इस सम्मेलन का आयोजन नहीं किया सका।
    • इससे पहले भारत ने वर्ष 2005 से वर्ष 2009 के मध्य कुल पांँच बार G8 (वर्ष 2014 में रूस के अलग होने के साथ इसे G7 कहा जाने लगा) शिखर सम्मेलन में भाग लिया था।
  • G7 में भारत की भागीदारी का महत्त्व:
    • यह भारत को विकसित देशों के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध विकसित करने का अवसर प्रदान करता है।
    • यह भारत-प्रशांत क्षेत्र, विशेष रूप से हिंद महासागर में सदस्य देशों के साथ सुरक्षा सहयोग को बढ़ावा देगा।
    • वर्तमान में ब्राज़ील-रूस-भारत-चीन-दक्षिण अफ्रीका यानी ब्रिक्स (Brazil-Russia-India-China-South Africa- BRICS) के अध्यक्ष और वर्ष 2023 में G20 के अध्यक्ष के रूप में भारत, बेहतर विश्व के निर्माण हेतु  बहुपक्षीय सहयोग में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।

स्रोत: द हिंदू


भारत की ‘संप्रभु रेटिंग’

चर्चा में क्यों?

‘एसएंडपी ग्लोबल रेटिंग्स’ के अनुसार, भारतीय अर्थव्यवस्था पर महामारी के प्रतिकूल प्रभाव के बावजूद आगामी दो वर्षों के लिये देश की संप्रभु रेटिंग मौजूदा ‘BBB-’ स्तर पर अपरिवर्तित रहेगी।

  • S&P सबसे बड़ी क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों में से एक है, जो कंपनियों, देशों और उनके द्वारा जारी ऋण को AAA से D के पैमाने पर ग्रेड प्रदान करती है, जो कि उनके निवेश जोखिम की डिग्री का संकेत देते हैं।

प्रमुख बिंदु:

संप्रभु क्रेडिट रेटिंग:

  • संप्रभु क्रेडिट रेटिंग किसी देश या संप्रभु इकाई की साख का एक स्वतंत्र मूल्यांकन है।
  • यह निवेशकों को किसी भी राजनीतिक जोखिम सहित किसी विशेष देश के ऋण में निवेश से जुड़े जोखिम के स्तर की जानकारी देता है।
  • बाहरी ऋण बाज़ारों में बॉण्ड जारी करने के अलावा, देशों के लिये एक संप्रभु क्रेडिट रेटिंग प्राप्त करने का एक अन्य लक्ष्य अधिक-से-अधिक विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (FDI) को आकर्षित करना भी है।
  • किसी देश के अनुरोध पर एक क्रेडिट रेटिंग एजेंसी रेटिंग देने के लिये उसके आर्थिक और राजनीतिक वातावरण का मूल्यांकन करती है।
    • S&P उन देशों को BBB- या उच्च रेटिंग देता है, जिन्हें वह निवेश के लिये बेहतर मानती है और BB+ या निम्न ग्रेड वाले देश वे होते हैं, जहाँ भुगतान डिफॉल्ट होने का जोखिम होता है।
    • वहीँ मूडीज़ Baa3 या उच्च रेटिंग को निवेश योग्य मानता है और Ba1 और इससे नीचे की रेटिंग को अव्यवहार्य मानता है।

संप्रभु क्रेडिट रेटिंग और भारत:

  • आर्थिक सर्वेक्षण 2020-21 ने अर्थव्यवस्था की बुनियादी बातों को दर्शाने के लिये संप्रभु क्रेडिट रेटिंग पद्धति को अधिक पारदर्शी, कम व्यक्तिपरक और बेहतर बनाने का आग्रह किया है।
    • इसमें जीडीपी विकास दर, मुद्रास्फीति, प्राथमिक सरकारी ऋण (जीडीपी के % के रूप में), आवर्ती रूप से समायोजित प्राथमिक संतुलन (संभावित जीडीपी के % के रूप में), चालू खाता शेष (जीडीपी के % के रूप में), राजनीतिक स्थिरता, कानून का शासन, भ्रष्टाचार पर नियंत्रण, निवेशक सुरक्षा, व्यापार करने में आसानी, अल्पकालिक बाह्य ऋण (भंडार का %), आरक्षित पर्याप्तता अनुपात और संप्रभु डिफॉल्ट इतिहास आदि शामिल हैं।
  • सर्वेक्षण में कहा गया है कि भारत की भुगतान करने की क्षमता और इच्छा मुख रूप से देश के शून्य डिफॉल्ट संप्रभु इतिहास के माध्यम से प्रदर्शित होती है।
  • भारत की भुगतान करने की क्षमता न केवल बेहद कम विदेशी मुद्रा-संप्रदाय ऋण से, बल्कि देश के विदेशी मुद्रा भंडार के व्यापक आकार से भी देखी जा सकती है, जो निजी क्षेत्र के लघु अवधि ऋण के साथ-साथ भारत के समग्र संप्रभु और गैर-संप्रभु बाह्य ऋण का भुगतान करने में सक्षम है। 

क्रेडिट रेटिंग:

  • सामान्य शब्दों में क्रेडिट रेटिंग किसी विशेष ऋण या वित्तीय दायित्त्व के संबंध में एक उधारकर्त्ता की साख की मात्रा का आकलन है।
  • एक क्रेडिट रेटिंग किसी भी ऐसी संस्था को दी जा सकती है जो पैसे उधार लेना चाहती है , जिसमें एक व्यक्ति, निगम, राज्य या प्रांतीय प्राधिकरण, या संप्रभु सरकार भी शामिल हैं।
  • रेटिंग एजेंसी एक ऐसी कंपनी होती है, जो विभिन्न कंपनियों और सरकारी संस्थाओं की वित्तीय शक्ति का आकलन करती है, विशेष रूप से उनके ऋणों पर मूलधन और ब्याज़ भुगतान करने की क्षमता का।
  • फिच रेटिंग्स, मूडीज़ इन्वेस्टर्स सर्विस और स्टैंडर्ड एंड पूअर्स (S&P) तीन बड़ी अंतर्राष्ट्रीय क्रेडिट रेटिंग एजेंसियाँ हैं, जो लगभग 95% वैश्विक रेटिंग कारोबार को नियंत्रित करती हैं।
  • भारत में, भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) के तहत पंजीकृत कुल छह क्रेडिट रेटिंग एजेंसियाँ हैं, जिसमें CRISIL, ICRA, CARE, SMERA, फिच इंडिया और ब्रिकवर्क रेटिंग आदि शामिल हैं। 

स्रोत: द हिंदू


शहरी और ग्रामीण गरीबों पर कोविड-19 का प्रभाव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में हंगर वॉच (Hunger Watch) की एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि कोविड-19 ने शहरी गरीबों को अधिक भुखमरी तथा ग्रामीण गरीबों से ज़्यादा कुपोषण की स्थिति में पहुँचा दिया है।

  • हंगर वॉच सामाजिक समूहों और आंदोलनों का एक संगठन है।
  • इससे पहले संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (United Nations Development Programme) के एक अध्ययन में पाया गया था कि लगभग 207 मिलियन लोग कोरोनावायरस महामारी के गंभीर दीर्घकालिक प्रभाव के कारण वर्ष 2030 तक अत्यधिक गरीब हो जाएंगे।
  • साथ ही प्यू रिसर्च सेंटर (Pew Research Center) द्वारा किये गए एक नए शोध में पाया गया है कि कोविड-19 ने लगभग 32 मिलियन भारतीयों को मध्यम वर्ग से बाहर कर दिया है, जिससे भारत में गरीबी बढ़ गई है।

प्रमुख  बिंदु

आर्थिक प्रभाव:

  • खाद्य असुरक्षा ने अधिक लोगों को श्रम बल में प्रवेश करने के लिये प्रेरित किया है (उत्तरदाताओं के बीच श्रम बल में 55% की वृद्धि)।
    • इससे बाल श्रम में भी वृद्धि देखी गई।
  • आर्थिक संकट गहरा रहा था क्योंकि नौकरी गंवाने वाले लोग अभी तक वैकल्पिक रोज़गार नहीं ढूँढ पाए थे और अनौपचारिक क्षेत्र में आजीविका के अवसर लॉकडाउन के बाद बहुत कम बन पाए थे।
  • आधे से अधिक शहरी उत्तरदाताओं के आय में आधा या एक चौथाई की कमी आई जबकि यह ग्रामीण उत्तरदाताओं के आय में यह कमी एक तिहाई से थोड़ी अधिक थी।

सार्वज़निक वितरण प्रणाली और सामाजिक क्षेत्र की योजनाओं का कवरेज:

  • ग्रामीण निवासियों का एक बड़ा वर्ग सार्वज़निक वितरण प्रणाली (Public Distribution System- PDS) के माध्यम से खाद्यान्न की वजह से महामारी से प्रेरित आर्थिक व्यवधान को खत्म कर पाया, लेकिन शहरी गरीबों तक ऐसे राशन की पहुँच बहुत कम थी।
  • सामाजिक सुरक्षा योजनाओं का ग्रामीण गरीबों के बीच अपेक्षाकृत बेहतर कवरेज था, क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों में पीडीएस की बेहतर पहुँच थी।
  • शहरी क्षेत्रों के घरों के एक बड़े हिस्से की राशन कार्डों तक पहुँच नहीं थी।

पोषण और भूख:

  • पोषण संबंधी गुणवत्ता और मात्रा में गिरावट शहरी उत्तरदाताओं में अधिक थी क्योंकि इन्हें भोजन खरीदने के लिये पैसे उधार लेने की आवश्यकता थी।
  • कुल मिलाकर, भूख और खाद्य असुरक्षा का स्तर उच्च रहा। अतः इस स्थिति में रोज़गार के नए अवसर, खाद्य सहायता जैसे उपायों के बिना सुधार की कम उम्मीद है।
  • भारत का खाद्यान्न उत्पादन वर्ष 2018-19 (291.1 मिलियन टन) की तुलना में वर्ष 2019-20 (296.65 मिलियन टन) में 4% अधिक था, फिर भी भुखमरी की स्थिति पहले से व्यापक हो गई है और कुछ लोगों को तो पूरे दिन में आवश्यकता से कम भोजन मिल रहा है।
  • सामाजिक रूप से कमज़ोर समूहों जैसे- एकल महिलाओं के नेतृत्त्व वाले घर, विकलांग लोगों के घर, ट्रांसजेंडर आदि की स्थिति बहुत खराब हो गई थी।

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के आँकड़े:

कोविड के प्रभाव को कम करने के लिये सरकारी पहलें:

आगे की राह

  • चूँकि अधिकांश गरीबों के पास पहले से ही कम आय थी, घरेलू आय में यह कमी भुखमरी को बढ़ावा देने वाले उत्प्रेरक के समान है। इसे कम करने के लिये शहरी क्षेत्रों में रियायती भोजन और रोज़गार की गारंटी के प्रावधान वाली योजनाओं सहित सामाजिक सुरक्षा उपायों पर विशेष ध्यान देने की ज़रूरत है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


UDID पोर्टल

चर्चा में क्यों?

सामाजिक न्‍याय एवं अधिकारिता मंत्रालय (Ministry of Social Justice & Empowerment) ने एक अधिसूचना जारी करके सभी राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के लिये 01.06.2021 से ऑनलाइन मोड में अद्वितीय अक्षमता पहचान (Unique Disability ID- UDID) पोर्टल के माध्यम से दिव्यांगता प्रमाण पत्र जारी करना अनिवार्य कर दिया है।

प्रमुख बिंदु

अद्वितीय अक्षमता पहचान (UDID) पोर्टल:

  • इस परियोजना को राष्ट्रीय स्तर पर दिव्यांगजनों का डेटाबेस तैयार करने और प्रत्येक दिव्यांग (PwDs) को एक विशिष्ट अद्वितीय अक्षमता पहचान पत्र जारी करने के उद्देश्य से कार्यान्वित किया जा रहा है। 
  • यह परियोजना न केवल विकलांग लोगों को सरकारी लाभ देने में पारदर्शिता, दक्षता और सुगमता को प्रोत्साहित करेगी बल्कि एकरूपता भी सुनिश्चित करेगी।
  • यह परियोजना कार्यान्वयन के सभी स्तरों- ग्रामीण स्तर, ब्लॉक स्तर, ज़िला स्तर, राज्य स्तर और राष्ट्रीय स्तर पर लाभार्थियों की भौतिक एवं वित्तीय प्रगति की ट्रैकिंग को सरल बनाने में भी मदद करेगी।

 दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016:

  • दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम 2016, दिव्यांग व्यक्ति (समान अवसर, अधिकारों का संरक्षण और पूर्ण भागीदारी) अधिनियम, 1995 को प्रतिस्थापित करता है।
  • इस अधिनियम में विकलांगता को एक विकसित और गतिशील अवधारणा के आधार पर परिभाषित किया गया है तथा अपंगता के मौजूदा प्रकारों को 7 से बढ़ाकर 21 कर दिया गया है।
  • इस अधिनियम द्वारा दिव्यांग व्यक्तियों के लिये सरकारी नौकरियों में आरक्षण को 3% से बढाकर 4% तथा उच्च शिक्षण संस्थानों में आरक्षण को 3% से बढ़ाकर 5% कर दिया गया है।
  • यह अधिनियम दिव्यांगता से संबंधित नियमों को ‘विकलांग व्यक्तियों के लिये संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन’ (UN Convention on the Rights of Persons with Disabilities- UNCRPD) के अनुरूप बनाता है। उल्लेखनीय है कि भारत इस कन्वेंशन का हस्ताक्षरकर्त्ता है।

दिव्यांग्जनों के लिये अन्य कार्यक्रम/पहल:

  • सुगम्य भारत अभियान (Accessible India Campaign):  दिव्यांगजनों हेतु एक सक्षम और बाधारहित वातावरण तैयार करने के लिये।
  • दीनदयाल दिव्यांग पुनर्वास योजना (DeenDayal Disabled Rehabilitation Scheme): इस योजना के तहत दिव्यांग व्यक्तियों को विभिन्न सेवाएँ प्रदान करने के लिये गैर-सरकारी संगठनों को वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है।
  • एडिप योजना: सहायक यंत्रों/उपकरणों की खरीद/फिटिंग के लिये विकलांग व्‍यक्तियों को सहायता योजना (Assistance to Disabled persons for purchasing/fitting of aids/appliances scheme- ADIP) का उद्देश्य दिव्यांगजनों की सहायता हेतु उचित, टिकाऊ, परिष्कृत और वैज्ञानिक रूप से निर्मित, आधुनिक, मानक सहायता तथा उपकरणों तक उनकी पहुँच सुनिश्चित करना है। 
  • दिव्यांग छात्रों के लिये राष्ट्रीय फैलोशिप: इसका उद्देश्य दिव्यांग छात्रों को उच्च शिक्षा प्राप्त करने हेतु अवसरों में वृद्धि करना है।

स्रोत: पी.आई.बी.


विनियमन समीक्षा प्राधिकरण 2.0

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank Of India-RBI) ने दूसरे विनियमन समीक्षा प्राधिकरण (Regulations Review Authority- RRA 2.0) की सहायता के लिये एक सलाहकार समूह का गठन किया है।

  • रिज़र्व बैंक द्वारा नियमों को सुव्यवस्थित करने और विनियमित संस्थाओं के अनुपालन बोझ को कम करने के उद्देश्य से 1 मई, 2021 से एक वर्ष की अवधि के लिये RRA 2.0 का गठन किया गया था।

प्रमुख बिंदु:

पृष्ठभूमि:

  • RBI ने वर्ष 1999 में जनता, बैंकों और वित्तीय संस्थानों से प्राप्त प्रतिपुष्टि (Feedback) के आधार पर विनियमों, परिपत्रों, रिपोर्टिंग प्रणालियों की समीक्षा के लिये पहले विनियमन समीक्षा प्राधिकरण (RRA) की स्थापना की थी।

RRA 2.0:

  • यह नियामक निर्देशों को सुव्यवस्थित करने, जहाँ भी संभव हो रिपोर्टिंग की प्रक्रियाओं तथा आवश्यकताओं को कम करके और विनियमित संस्थाओं के अनुपालन बोझ को कम करने आदि विषयों पर ध्यान केंद्रित करेगा।
    • इसके अलावा यह विनियमित संस्थाओं से भी प्रतिपुष्टि प्राप्त करेगा।
    • विनियमित संस्थाओं में वाणिज्यिक बैंक, शहरी सहकारी बैंक, गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ शामिल हैं।

भारतीय रिज़र्व बैंक

गठन:

  • भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India-RBI) की स्थापना 1 अप्रैल, 1935 को  भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 के प्रावधानों के अनुसार हुई थी।
  • यद्यपि प्रारंभ में यह निजी स्वामित्व वाला बैंक था, लेकिन वर्ष 1949 में RBI के राष्ट्रीयकरण के बाद से इस पर भारत सरकार का पूर्ण स्वामित्व है।

मुख्य कार्य:

  • मौद्रिक प्रधिकारी (Monetary Authority): यह मौद्रिक नीति का प्रारूपण, क्रियान्वयन और निगरानी करता है।
  • वित्तीय प्रणाली का नियामक और पर्यवेक्षक: बैंकिंग परिचालन के लिये विस्तृत मानदंड निर्धारित करता है, जिसके अंतर्गत देश की बैंकिंग और वित्तीय प्रणाली काम करती है।
  • विदेशी मुद्रा प्रबंधक: यह विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम, 1999 का प्रबंधन करता है।
  • मुद्रा जारीकर्त्ता: यह मुद्रा जारी करता है और उसका विनिमय करता है अथवा परिचालन के योग्य नहीं रहने पर मुद्रा और सिक्कों को नष्ट करता है।
  • विकासात्मक भूमिका: राष्ट्रीय उद्देश्यों की सहायता के लिये व्यापक स्तर पर प्रोत्साहक कार्य करता है।
  • भुगतान और निपटान प्रणाली का नियामक तथा पर्यवेक्षक: यह व्यापक स्तर पर जनता की आवश्यकताओं को पूरा करने के उद्देश्य से देश में भुगतान प्रणालियों के सुरक्षित और कुशल तरीकों का परिचय तथा उन्नयन करता है।
  • संबंधित कार्य:
    • सरकार का बैंक: यह केंद्र और राज्य सरकारों के लिये वाणिज्यिक बैंक के रूप में  कार्य करता है तथा उनके बैंकर के रूप में भी कार्य करता है।
    • बैंकों का बैंक: सभी अनुसूचित बैंकों के बैंकिंग खातों का अनुरक्षण करता है।
    • वेज़ एंड मीन्स एडवांस (Ways and Means Advances- WMA) अल्पकालिक ऋण सुविधाएँ हैं, जो केंद्र और राज्यों को व्यय और प्राप्तियों के अंतर की पूर्ति करने के लिये RBI से धन उधार लेने की सुविधा प्रदान करता है।

RBI के प्रकाशन:

  • उपभोक्ता आत्मविश्वास सर्वेक्षण (Consumer Confidence Survey- CCS): त्रैमासिक प्रकाशन।
  • परिवारों की मुद्रास्फीति अपेक्षाओं का सर्वेक्षण (Inflation Expectations Survey of Households- IESH): त्रैमासिक प्रकाशन।
  • वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट (Financial Stability Report): अर्द्धवार्षिक
  • मौद्रिक नीति रिपोर्ट (Monetary Policy Report): अर्द्धवार्षिक
  • विदेशी मुद्रा भंडार पर रिपोर्ट (Report on Foreign Exchange Reserves): अर्द्धवार्षिक

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


वैश्विक मीथेन आकलन: मीथेन उत्सर्जन कम करने के लाभ और लागत

चर्चा में क्यों?

हाल ही में वैश्विक मीथेन आकलन: मीथेन उत्सर्जन कम करने के लाभ और लागत (Global Methane Assessment: Benefits and Costs of Mitigating Methane Emission) नामक एक रिपोर्ट में सुझाव दिया गया कि विश्व को जलवायु परिवर्तन (Climate Change) से बचने के लिये अपने मीथेन उत्सर्जन में अत्यधिक कटौती करने की आवश्यकता है।

मीथेन

मीथेन के विषय में:

  • मीथेन गैस पृथ्वी के वायुमंडल में कम मात्रा में पाई जाती है। यह सबसे सरल हाइड्रोकार्बन है, जिसमें एक कार्बन परमाणु और चार हाइड्रोजन परमाणु (CH4) शामिल होते हैं। मीथेन एक शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस (Greenhouse Gas) है। यह एक ज्वलनशील गैस है जिसे पूरे विश्व में ईंधन के रूप में उपयोग किया जाता है।
  • इसका निर्माण कार्बनिक पदार्थ के टूटने या क्षय से होता है। इसे आर्द्रभूमियों, मवेशियों, धान के खेत जैसे प्राकृतिक और कृत्रिम माध्यमों द्वारा वातावरण में उत्सर्जित किया जाता है।

मीथेन का प्रभाव:

  • मीथेन कार्बन की तुलना में 84 गुना अधिक शक्तिशाली गैस है और यह वायुमंडल में लंबे समय तक नहीं रहती है। इसके उत्सर्जन को अन्य ग्रीनहाउस गैसों की तुलना में कम करके ग्लोबल वार्मिंग को ज़्यादा कम किया जा सकता है।
  • यह जमीनी स्तर के ओज़ोन (Ozone) को खतरनाक वायु प्रदूषक बनाने के लिये ज़िम्मेदार है।

प्रमुख बिंदु

वर्तमान स्थिति:

  • वर्ष 1980 के दशक के बाद से मानव-निर्मित मीथेन का उत्सर्जन किसी अन्य समय की तुलना में तेज़ी से बढ़ रहा है।
  • कोविड-19 महामारी के दौरान कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर गिरा है। हालाँकि वातावरण में मीथेन पिछले वर्ष रिकॉर्ड स्तर पर पहुँच गया था।
  • यह चिंता का कारण है क्योंकि यह पूर्व-औद्योगिक समय से लगभग 30% ग्लोबल वार्मिंग के लिये ज़िम्मेदार था।

मीथेन उत्सर्जन को इसके प्रमुख स्रोतों से कम करना:

  • जीवाश्म ईंधन:
    • कुल मीथेन उत्सर्जन में तेल और गैस निष्कर्षण, प्रसंस्करण तथा वितरण जैसे जीवाश्म ईंधन क्षेत्र 23% तक ज़िम्मेदार है। कोयला खनन से मीथेन उत्सर्जन 12% तक होता है।
    • जीवाश्म ईंधन उद्योग के पास कम लागत वाली मीथेन कटौती की सबसे बड़ी क्षमता है, तेल और गैस उद्योग में 80% तक उपायों को नकारात्मक या कम लागत पर लागू किया जा सकता था।
    • इस क्षेत्र में लगभग 60% मीथेन कटौती आर्थिक रूप से लाभदायक हो सकती है क्योंकि इसके रिसाव को कम करने से बिक्री हेतु अधिक गैस उपलब्ध होगी।
  • अपशिष्ट:
    • अपशिष्ट क्षेत्र में लगभग 20% उत्सर्जन लैंडफिल और अपशिष्ट जल से होता है।
    • अपशिष्ट क्षेत्र पूरे विश्व में सीवेज के निपटान में सुधार करके मीथेन उत्सर्जन में कटौती कर सकता है।
  • कृषि:
    • कुल मीथेन उत्सर्जन में पशुओं के अपशिष्ट से बने खाद और आंत्र किण्वन का लगभग 32% और धान की खेती का 8% हिस्सा है।
    • अगले कुछ दशकों में प्रति वर्ष 65-80 मिलियन टन मीथेन उत्सर्जन को कम करने में खाद्य अपशिष्ट और नुकसान को कम करना, पशुधन प्रबंधन में सुधार तथा स्वस्थ आहार को अपनाना ये तीन व्यवहार परिवर्तन मदद कर सकते हैं।

क्षेत्र-वार उत्सर्जन में कमी :

  • यूरोप:
    • यहाँ खेती से मीथेन उत्सर्जन पर अंकुश लगाने की बड़ी संभावना है साथ ही जीवाश्म ईंधन संचालन और अपशिष्ट प्रबंधन में भी यह क्षमता है।
      • यूरोपीय आयोग ने यूरोपीय संघ मीथेन रणनीति (European Union Methane Strategy) को अपनाया था।
  • भारत:
    • यहाँ अपशिष्ट क्षेत्र में मीथेन उत्सर्जन को कम करने की सबसे बड़ी क्षमता है।
  • चीन:
    • मीथेन शमन क्षमता कोयला उत्पादन और पशुधन में सबसे अच्छी थी।
  • अफ्रीका:
    • यहाँ के पशुधन में मीथेन उत्सर्जन को कम करने की क्षमता सबसे अधिक है, इसके बाद तेल और गैस क्षेत्र हैं।

आवश्यकता और लाभ:

  • जलवायु परिवर्तन के बुरे प्रभावों से बचने के लिये मानव जनित मीथेन उत्सर्जन में 45% की कटौती की जानी चाहिये।
  • इस तरह की कटौती से वर्ष 2045 तक ग्लोबल वार्मिंग में 0.3 डिग्री सेल्सियस तक की वृद्धि को रोका जा सकेगा। यह वार्षिक रूप से समय से पूर्व होने वाली 260,000 लाख मौतों,  7,75,000 लाख अस्थमा से संबंधित मरीज़ों के साथ-साथ 25 मिलियन टन फसल के नुकसान को भी रोक सकता है।
  • मीथेन उत्सर्जन में कटौती से निकट भविष्य में वार्मिंग की दर में तेज़ी से कमी आ सकती है।

इस संदर्भ में भारत की पहलें:

समुद्री शैवाल आधारित पशु चारा:

  • सेंट्रल साल्ट एंड मरीन केमिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट (Central Salt & Marine Chemical Research Institute) ने देश के तीन प्रमुख संस्थानों के साथ मिलकर एक समुद्री शैवाल आधारित पशु आहार विकसित किया है, जिसका उद्देश्य मवेशियों से मीथेन उत्सर्जन कम करना है और मवेशियों तथा मुर्गी पालन में प्रतिरक्षा को बढ़ावा देना है।

भारत का ग्रीनहाउस गैस कार्यक्रम:

  • इंडिया GHG कार्यक्रम डब्ल्यूआरआई इंडिया (WRI India- गैर लाभकारी संगठन), कन्फेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्री (CII) और द एनर्जी एंड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट (TERI) के नेतृत्व में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को मापने और प्रबंधित करने के लिये एक उद्योग-नेतृत्व वाली स्वैच्छिक रूपरेखा है।
  • यह कार्यक्रम उत्सर्जन को कम करने और भारत में अधिक लाभदायक, प्रतिस्पर्द्धी और टिकाऊ व्यवसायों तथा संगठनों को चलाने के लिये व्यापक माप एवं प्रबंधन रणनीतियों का निर्माण करता है।

जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना:

  • जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना (National Action Plan on Climate Change) वर्ष 2008 में शुरू की गई थी, जिसका उद्देश्य जनता के प्रतिनिधियों, सरकार की विभिन्न एजेंसियों, वैज्ञानिकों, उद्योग और समुदायों के बीच जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न खतरे तथा निपटने के विषय में जागरूकता पैदा करना है।

भारत स्टेज-VI मानक:

जलवायु और स्वच्छ वायु संघ

  • इसे वर्ष 2019 में शुरू किया गया था। यह जलवायु की रक्षा और वायु गुणवत्ता में सुधार हेतु प्रतिबद्ध सरकारों, अंतर सरकारी संगठनों, व्यावसायिक संगठनों, वैज्ञानिक संस्थानों तथा नागरिक समाज संगठनों की एक स्वैच्छिक साझेदारी है।
    • भारत इस संघ का सदस्य है।

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम

शुरुआत:

  • यह 5 जून, 1972 को स्थापित एक प्रमुख वैश्विक पर्यावरण प्राधिकरण है।

कार्य:

  • यह विश्व स्तर पर पर्यावरणीय कार्यक्रमों को तैयार करता है, संयुक्त राष्ट्र (United Nations) प्रणाली के भीतर सतत् विकास को बढ़ावा देता है और वैश्विक पर्यावरण संरक्षण का समर्थन करता है।

प्रमुख रिपोर्ट:

प्रमुख अभियान:

मुख्यालय:

  • नैरोबी, केन्या।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


शुक्र ग्रह

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में वैज्ञानिकों ने रेडियो तरंगों (Radio Waves) की सहायता से शुक्र ग्रह से संबंधित नया डेटा प्राप्त किया है।

  • वैज्ञानिकों द्वारा वर्ष 2006 से वर्ष 2020 के मध्य कुल 21 बार रेडियो तरंगों को शुक्र ग्रह पर भेजा गया। कैलिफोर्निया के मोजावे रेगिस्तान (Mojave Desert ) में स्थित नासा के गोल्डस्टोन एंटीना (NASA's Goldstone Antenna) से भेजी गईं तरंगों से उत्पन्न ध्वनि का अध्ययन कर शुक्र के बारे में कई नई जानकारियांँ प्राप्त की गई हैं।

प्रमुख बिंदु: 

खोज से प्राप्त परिणाम: 

  • शुक्र का एक घूर्णन पृथ्वी के 243.0226 दिनों के बराबर है। इसका अर्थ है कि शुक्र का एक दिन पृथ्वी के एक वर्ष से अधिक का होता है, जो कि सूर्य के चारों ओर 225 दिनों में अपना एक चक्कर पूरा करता है।
  • शुक्र ग्रह के कोर का व्यास लगभग 7,000 किलोमीटर है, जो कि पृथ्वी के कोर के व्यास (6,970) की तुलना में अधिक है।
  • अपने अक्ष पर शुक्र का झुकाव 2.64 डिग्री है, जबकि पृथ्वी अपने अक्ष पर 23.5 डिग्री पर झुकी हुई है।

पूर्व में की गई खोज के परिणाम: 

  • पूर्व में शुक्र के वातावरण में फॉस्फीन (Phosphine) की उपस्थिति का पता लगाया गया था। जो  शुक्र ग्रह पर जीवन की उपस्थिति की संभावना को इंगित करता है।
  • ‘नेचर जियोसाइंस’ (Nature Geoscience) में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, शुक्र अभी भी भौगोलिक रूप से सक्रिय (Geologically Active) है।
    • अध्ययन ने शुक्र की सतह पर रिंग के आकार की संरचना (Ring-Like Structures) के रूप में 37 सक्रिय ज्वालामुखियों की पहचान की, जिन्हें कोरोने (Coronae) नाम दिया गया।

शुक्र ग्रह के बारे में: 

  • सूर्य से दूरी के हिसाब से यह दूसरा ग्रह है। संरचनात्मक रूप से पृथ्वी से कुछ समानता रखने के कारण इसे पृथ्वी का जुड़वाँ ग्रह (Earth’s Twin) भी कहा जाता है। 
  • शुक्र ग्रह पर वातावरण काफी सघन और विषाक्त है, जिसमें मुख्य रूप से कार्बन डाइऑक्साइड गैस और सल्फ्यूरिक एसिड के बादल विद्यमान हैं।
  • तेज़ी से बढ़ते ग्रीनहाउस प्रभाव/रनवे ग्रीन हाउस इफेक्ट (Runaway Greenhouse’ Effec) के साथ, इसकी सतह का तापमान 471 डिग्री सेल्सियस तक पहुंँच गया है, जो इसकी सतह को गर्म करके पिघलने के लिये काफी है।
    • रनवे ग्रीन हाउस इफेक्ट तब  उत्पन्न होता है, जब कोई ग्रह सूर्य से अधिक ऊर्जा अवशोषित कर उसे अंतरिक्ष में वापस उत्सर्जित करता है। इन परिस्थितियों में, सतह का तापमान जितनी तीव्र गति से बढ़ेगा है, सतह उतनी ही तेज़ी से गर्म होती है।
  • शुक्र सिर्फ दो ग्रहों में से एक है जो पूर्व से पश्चिम की ओर घूमते हैं। केवल शुक्र और यूरेनस ही इस प्रकार रोटेशन करते है। 
  • शुक्र के पास अपना कोई चंद्रमा और वलय नहीं है।
  • शुक्र पर,  दिन-रात का एक चक्र पृथ्वी के 117  दिन के बराबर होता हैं क्योंकि शुक्र, सूर्य के चारों ओर अपनी कक्षीय घूर्णन के विपरीत दिशा में घूमता है।

शुक्र ग्रह से संबंधित मिशन:

  • इसरो शुक्रयान: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन  (Indian Space Research Organisation- ISRO) भी शुक्र ग्रह से संबंधित एक मिशन की योजना बना रहा है, जिसे फिलहाल ‘शुक्रयान मिशन’ कहा गया है।
  • अकात्सुकी (वर्ष 2015- जापान)
  • वीनस एक्सप्रेस (वर्ष 2005- यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी)
  • नासा का मैजलन (वर्ष 1989)

स्रोत: द हिंदू