विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस, 2025
प्रिलिम्स के लिये:विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस, भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण, कोडेक्स एलीमेंटेरियस कमीशन, विश्व स्वास्थ्य संगठन, खाद्य और कृषि संगठन, भारतीय पोषण रेटिंग मेन्स के लिये:खाद्य सुरक्षा विनियमन, खाद्य सुरक्षा बनाम खाद्य सुरक्षा, भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण, भारत में खाद्य सुरक्षा को सुदृढ़ बनाना |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस 2025 (7 जून), जिसका विषय "फूड सेफ्टी: साइंस इन एक्शन" है, भारत की खाद्य मिलावट-केंद्रित प्रणाली से विज्ञान आधारित खाद्य सुरक्षा व्यवस्था की ओर बदलाव को उजागर करता है, जिसे भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) द्वारा संचालित किया जा रहा है।
- प्रगति के बावजूद, नियामक अंतराल और पुरानी प्रथाएँ अभी भी मौजूद हैं, जिनमें पुनः जाँच और सुधार की आवश्यकता है।
- नोट: विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस, जो संयुक्त राष्ट्र महासभा के प्रस्ताव के बाद 2019 से प्रतिवर्ष 7 जून को मनाया जाता है, एक वैश्विक अभियान है, जिसका उद्देश्य खाद्यजनित जोखिमों को रोकने, पहचानने और प्रबंधित करने के लिये जागरूकता बढ़ाना एवं कार्रवाई हेतु प्रेरित करना है।
भारत का खाद्य सुरक्षा ढाँचा कैसे विकसित हुआ?
- प्रारंभिक कानूनी ढाँचा (1954–2006): खाद्य अपमिश्रण निवारण अधिनियम, 1954 ने खाद्य सुरक्षा को द्विआधारी दृष्टिकोण से देखा, जिसमें भोजन या तो मिलावटी था या नहीं, बिना विभिन्न प्रकार के संदूषकों के बीच अंतर किये या जोखिम के स्तर को ध्यान में रखे।
- इसमें उपभोग की मात्रा, आहार संबंधी प्रवृत्तियाँ या संदूषकों की भिन्न-भिन्न जोखिम रूपरेखाओं का ध्यान नहीं रखा गया था।
- खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2006 द्वारा सुधार: इस अधिनियम ने भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) की स्थापना की, जिससे भारत के मानकों को वैश्विक मानकों के अनुरूप बनाया गया।
- FSSAI ने अंतर्राष्ट्रीय सर्वोत्तम प्रथाओं (कोडेक्स एलीमेंटेरियस) के अनुरूप एक जोखिम-आधारित ढाँचा प्रस्तुत किया, जिसमें कीटनाशकों के लिये अधिकतम अवशेष सीमा (MRL), खाद्य योजकों के लिये स्वीकार्य दैनिक सेवन (ADI) तथा पशु औषधि अवशेषों और प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले विषाक्त तत्त्वों के लिये मानक निर्धारित किये गए।
- वर्ष 2020 तक भारत के खाद्य सुरक्षा विनियम उन्नत अर्थव्यवस्थाओं के लगभग समकक्ष हो गए थे।
नोट: कोडेक्स एलीमेंटेरियस, या "फूड कोड", मानकों, दिशानिर्देशों और आचार संहिताओं का एक संग्रह है, जिसे कोडेक्स एलीमेंटेरियस कमीशन (CAC) द्वारा अपनाया गया है।
- कोडेक्स एलीमेंटेरियस कमीशन (CAC) एक अंतर्राष्ट्रीय खाद्य मानक संस्था है, जिसकी स्थापना वर्ष 1963 में खाद्य और कृषि संगठन (FAO) तथा विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा संयुक्त रूप से की गई थी। इसका उद्देश्य उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य की रक्षा करना और खाद्य व्यापार में निष्पक्ष प्रथाओं को सुनिश्चित करना है। CAC के 189 सदस्य हैं और भारत वर्ष 1964 में इस आयोग का सदस्य बना।
भारत में खाद्य सुरक्षा की चुनौतियाँ क्या हैं?
- भारत-विशिष्ट वैज्ञानिक आँकड़ों की कमी: अधिकांश सुरक्षा मानक अंतर्राष्ट्रीय आँकड़ों पर आधारित होते हैं, जो भारतीय आहार पैटर्न, कृषि पद्धतियों या पर्यावरणीय परिस्थितियों के अनुकूल नहीं हैं।
- भारतीय पारंपरिक आहारों के माध्यम से संदूषकों के संचयी संपर्क का आकलन करने के लिये समग्र कुल आहार अध्ययन (TDS) का अभाव है।
- स्थानीय विषविज्ञान संबंधी अध्ययनों की कमी के कारण सटीक जोखिम आकलन में बाधा आती है।
- अप्रभावी जोखिम संप्रेषण: MRL और ADI जैसे तकनीकी शब्द आम जनता के लिये समझने में कठिन होते हैं।
- भारत में वर्तमान खाद्य लेबलिंग प्रणाली असंगत है और अक्सर समझने में कठिन होती है। फ्रंट-ऑफ-पैक लेबलिंग (FOPL) को अनिवार्य न बनाए जाने के कारण उपभोक्ताओं के लिये किसी उत्पाद में उच्च मात्रा में नमक, चीनी या वसा की पहचान कर पाना कठिन हो जाता है।
- भारतीय पोषण रेटिंग (INR) अभी भी स्वैच्छिक है और इसमें उच्च स्टार रेटिंग के बावजूद पोषण गुणवत्ता निम्न होने की संभावना होती है, जिससे उपभोक्ताओं को गुमराह किया जा सकता है।
- विरासत और पुराने नियम: कुछ खाद्य नियम, जैसे- मोनोसोडियम ग्लूटामेट (MSG) से संबंधित, वैश्विक वैज्ञानिक सहमति के साथ टकराव रखते हैं।
- MSG को JECFA द्वारा वर्ष 1971 से वैश्विक रूप से सुरक्षित माना गया है और कई देशों ने इसके चेतावनी लेबल हटा दिये हैं, लेकिन भारत अभी भी इसे शिशुओं के लिये असुरक्षित बताने वाला लेबल अनिवार्य करता है।
- यह प्रतिबंध वर्तमान वैज्ञानिक साक्ष्य द्वारा समर्थित नहीं है। यह पुराना नियम उपभोक्ताओं को गुमराह करता है और पुराने नियमों को अद्यतन करने में भारत की अनिच्छा को दर्शाता है।
- अनौपचारिक एवं अनियमित खाद्य क्षेत्र: भारत में खाद्य उत्पादन एवं वितरण का एक बड़ा हिस्सा अनौपचारिक है, जिससे निगरानी करना कठिन हो जाता है।
- स्ट्रीट फूड विक्रेता, छोटे खाद्य व्यवसाय और स्थानीय निर्माता अक्सर औपचारिक नियामक ढाँचे के बाहर कार्य करते हैं तथा उनमें स्वच्छता एवं खाद्य सुरक्षा मानदंडों के प्रति जागरूकता व अनुपालन का अभाव होता है।
- उभरते खतरों के प्रति अपर्याप्त प्रतिक्रिया: भारत रोगाणुरोधी प्रतिरोध (AMR), आनुवंशिक रूप से संशोधित जीव (GMO) या जलवायु-प्रेरित खाद्य खतरों जैसे उभरते खतरों के प्रति अनुकूलन में धीमा है।
- प्रसंस्कृत और जंक फूड की बढ़ती खपत: प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों पर बढ़ता खर्च मधुमेह, उच्च रक्तचाप और मोटापे जैसी गैर-संचारी रोग (NCD) को बढ़ावा दे रहा है।
- अति-प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों में नमक, चीनी और वसा (HFSS) की मात्रा अधिक होती है, फिर भी इन्हें “स्वादिष्ट” और “सस्ते” विकल्प के रूप में विपणन किया जाता है।
- भ्रामक विज्ञापन: फास्ट-मूविंग उपभोक्ता सामान कंपनियाँ आक्रामक और अक्सर भ्रामक विज्ञापनों का उपयोग करती हैं, विशेषरूप से बच्चों एवं परिवारों को लक्षित करके।
- भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने ऐसी प्रथाओं पर चिंता जताई है तथा इन्हें जीवन के अधिकार (अनुच्छेद 21) के उल्लंघन से जोड़ा है।
खाद्य सुरक्षा पर रिपोर्ट और सूचकांक
रिपोर्ट और सूचकांक |
मुख्य अंतर्दृष्टि |
राज्यों के बीच व्यापक असमानता को दर्शाता है। केरल, तमिलनाडु, जम्मू और कश्मीर तथा गुजरात मज़बूत खाद्य सुरक्षा उपायों के माध्यम से सार्वजनिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देने में अग्रणी हैं। |
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भारत में विश्व स्तर पर कुपोषित लोगों की सबसे बड़ी संख्या (194.6 मिलियन) है, हालाँकि यह वर्ष 2004-06 में 240 मिलियन से बेहतर है। 55.6% से अधिक भारतीय (790 मिलियन लोग) स्वस्थ आहार का खर्च नहीं उठा सकते हैं, जो खराब खाद्य सामर्थ्य और पहुँच को दर्शाता है। |
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वैश्विक खाद्य सुरक्षा सूचकांक 2022 |
भारत को अल्जीरिया के साथ 68वें स्थान पर रखा गया, जो देश की खाद्य सुरक्षा के लिये लगातार चुनौतियों और खतरों को दर्शाता है। |
भारत में खाद्य सुरक्षा को सुदृढ़ करने के लिये किन सुधारों की आवश्यकता है?
- लेबलिंग और विनियामक ढाँचे को सुदृढ़ करना: जैसा कि FSSAI के मसौदा विनियमों (वर्ष 2022) और WHO द्वारा अनुशंसित किया गया है, अनिवार्य फ्रंट-ऑफ-पैक लेबलिंग (FOPL) उपभोक्ताओं को त्वरित एवं सूचित निर्णय लेने में मदद कर सकती है, विशेषरूप से प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों HFSS के लिये।
- FSSAI को HFSS खाद्य पदार्थों के लिये दिशा-निर्देशों को अंतिम रूप देना चाहिये, जिन्हें अभी तक सटीक रूप से परिभाषित नहीं किया गया है। एक स्पष्ट परिभाषा स्कूल कैंटीन और सार्वजनिक स्थानों पर लागू करने में सक्षम बनाएगी।
- पोषण संबंधी आँकड़ों को सरल बनाने के लिये ट्रैफिक-लाइट लेबलिंग या न्यूट्री-स्कोर (जैसा कि यूरोप में उपयोग किया जाता है) जैसी स्टार रेटिंग अपनाएँ।
- खाद्य, समवर्ती सूची का विषय है, जिसमें केंद्र और राज्यों के बीच साझा ज़िम्मेदारी शामिल है। सुरक्षित, स्वस्थ और टिकाऊ खाद्य प्रणाली की दिशा में राष्ट्रव्यापी परिवर्तन हेतु केंद्र-राज्य समन्वय को सुदृढ़ करना महत्त्वपूर्ण है।
- भ्रामक विज्ञापनों और स्वास्थ्य संबंधी दावों पर अंकुश लगाना: उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 और खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम, 2006 के तहत भ्रामक विज्ञापनों के खिलाफ स्वप्रेरणा से कार्रवाई करने हेतु FSSAI को सशक्त बनाना।
- HFSS उत्पादों के सेलिब्रिटी समर्थन पर प्रतिबंध लगाएँ, विशेषरूप से उन पर, जो बच्चों को लक्षित करते हैं या प्रसंस्कृत उत्पादों को "स्वास्थ्य पेय" के रूप में गलत तरीके से बढ़ावा देते हैं।
- निगरानी, मॉनीटरिंग और अनुपालन में सुधार: खाद्य व्यवसायों द्वारा वास्तविक समय अनुपालन को ट्रैक करने के लिये INFoLNET (खाद्य प्रयोगशालाओं हेतु ऑनलाइन पोर्टल) और खाद्य सुरक्षा अनुपालन प्रणाली (FoSCoS) का विस्तार करें।
- अनौपचारिक क्षेत्र और स्ट्रीट फूड विक्रेताओं को मुख्यधारा में लाना: पीएम स्वनिधि और FSSAI की ईट राइट स्ट्रीट फूड हब पहल के तहत, विक्रेताओं को स्वच्छता में प्रशिक्षित किया जाना चाहिये तथा "स्वच्छ स्ट्रीट फूड क्षेत्र" के रूप में प्रमाणित किया जाना चाहिये।
- व्यवसाय करने में आसानी के अंतर्गत FSSAI पंजीकरण को सरल बनाया जाएगा, विशेषरूप से राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन जैसी योजनाओं के अंतर्गत कार्य करने वाले सूक्ष्म उद्यमों और स्वयं सहायता समूहों (SHG) के लिये।
- स्वस्थ आहार और व्यवहार परिवर्तन को बढ़ावा देना: पोषण अभियान, स्कूल पाठ्यक्रमों और डिजिटल इन्फ्लुएंसर का उपयोग कर स्वस्थ भोजन तथा पारंपरिक भारतीय आहार (जैसे- अंतर्राष्ट्रीय पोषक अनाज वर्ष 2023 के दौरान कदन्न आधारित भोजन) को बढ़ावा देना चाहिये।
- स्कूल परिसर और आस-पास के इलाकों में HFSS भोजन पर प्रतिबंध लगाने वाले स्कूल कैंटीन दिशा-निर्देशों (2020) का सख्ती से अनुपालन सुनिश्चित करना।
- स्कूलों के लिये ‘शुगर बोर्ड’ (जो खाद्य पदार्थों में शर्करा की मात्रा को प्रदर्शित करता है) लगाने का CBSE का आदेश बच्चों को जागरूक करने की दिशा में एक व्यावहारिक कदम है।
- राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) के आग्रह के अनुसार इसे राज्य और निजी स्कूलों तक भी विस्तारित किया जाना चाहिये।
- सुरक्षित अवसंरचना और भंडारण सुनिश्चित करना: शीघ्र खराब होने वाले खाद्य पदार्थों के लिये कोल्ड स्टोरेज तथा सुरक्षित लॉजिस्टिक्स बनाने हेतु पीएम किसान संपदा योजना और ऑपरेशन ग्रीन्स जैसी योजनाओं का उपयोग करना चाहिये।
- खाद्य सुरक्षा और मानक (संदूषक, विषाक्त पदार्थ एवं अवशेष) विनियम, 2011 के अंतर्गत सुरक्षित कीटनाशक तथा एंटीबायोटिक अवशेष सीमा को लागू करना।
- उभरते जोखिमों और स्वास्थ्य खतरों से निपटना: AMR पर राष्ट्रीय कार्य योजना के खाद्य सुरक्षा घटकों को विशेषरूप से पोल्ट्री, डेयरी और जलीय कृषि क्षेत्रों में लागू करना।
भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (FSSAI)
- FSSAI खाद्य संरक्षा एवं मानक अधिनियम, 2006 के तहत स्थापित एक स्वायत्त वैधानिक निकाय है। यह स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के अधीन कार्य करता है और इसका मुख्यालय नई दिल्ली में है तथा पूरे देश में इसके आठ क्षेत्रीय कार्यालय हैं।
- FSSAI के कार्यों में खाद्य विनियम बनाना, खाद्य व्यवसायों को लाइसेंस प्रदान करना, खाद्य सुरक्षा कानूनों को लागू करना, खाद्य गुणवत्ता की निगरानी करना, जोखिम आकलन करना, खाद्य सुदृढ़ीकरण और जैविक खाद्य पदार्थों को बढ़ावा देना तथा प्रशिक्षण एवं जागरूकता कार्यक्रम प्रदान करना शामिल हैं।
- यह विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस, ईट राइट इंडिया, ईट राइट स्टेशन, खाद्य सुरक्षा मित्र और 100 फूड स्ट्रीट जैसे अभियान भी आयोजित करता है।
- भोजन का अधिकार भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 में निहित है, जो सम्मान के साथ जीवन जीने के अधिकार की गारंटी देता है। अनुच्छेद 39(a) और 47 के साथ पढ़ने पर, यह राज्य को पर्याप्त आजीविका, पोषण और जीवन स्तर सुनिश्चित करने के लिये बाध्य करता है। यह अधिकार अनुच्छेद 32 के माध्यम से एक मौलिक संवैधानिक उपाय के रूप में लागू किया जा सकता है।
निष्कर्ष
खाद्य सुरक्षा एक सार्वजनिक स्वास्थ्य अनिवार्यता और मौलिक अधिकार है। भारत को एक बहु-क्षेत्रीय, बहु-स्तरीय सुधार रणनीति की आवश्यकता है, जो न केवल उल्लंघनकर्त्ताओं को दंडित करे, बल्कि उपभोक्ताओं को सशक्त भी बनाए। बढ़ती उपभोक्ता जागरूकता और न्यायिक सक्रियता के साथ भारत की खाद्य प्रणाली को “पर्याप्त सुरक्षित” से “वास्तव में सुरक्षित और पौष्टिक” में बदलने का समय आ गया है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: भारत में खाद्य सुरक्षा में क्या चुनौतियाँ हैं तथा विनियामक अनुपालन को मज़बूत करने के लिये नीतिगत सुधारों का सुझाव दीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्सप्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (a) प्रश्न. राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 के अधीन बनाए गए उपबंधों के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) 1 और 2 उत्तर: (b) मुख्य:प्रश्न. खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्रक की चुनौतियों के समाधान हेतु भारत सरकार द्वारा अपनाई गई नीति को सविस्तार स्पष्ट कीजिये। (2019) |
विश्व आर्थिक स्थिति और संभावनाएँ-2025
स्रोत: पी.आई.बी.
चर्चा में क्यों?
भारत की GDP वृद्धि दर का पूर्वानुमान "विश्व आर्थिक स्थिति और संभावनाएँ-2025" (WESP) रिपोर्ट के मध्य-2025 अद्यतन में वर्ष 2025 के लिये 6.6% से घटाकर 6.3% कर दिया गया है।
- यह रिपोर्ट संयुक्त राष्ट्र के आर्थिक एवं सामाजिक मामलों के विभाग द्वारा जारी की जाती है, जो UNCTAD और पाँच UN क्षेत्रीय आयोगों के सहयोग से तैयार की जाती है। यह रिपोर्ट सतत् विकास लक्ष्यों (SDGs) पर केंद्रित, न्यायसंगत विकास नीतियों का समर्थन करने के लिये वैश्विक और क्षेत्रीय आर्थिक दृष्टिकोण प्रदान करती है।
‘विश्व आर्थिक स्थिति और संभावनाएँ’ रिपोर्ट से प्रमुख निष्कर्ष क्या हैं?
- भारत-विशिष्ट अवलोकन:
- सबसे तेज़ी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था: भारत की GDP वृद्धि दर वर्ष 2025 में 7.1% से घटाकर 6.3% कर दी गई है, लेकिन यह अभी भी प्रमुख वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं में सबसे अधिक है और वर्ष 2026 में इसे 6.4% तक पहुँचने की उम्मीद है।
- मुद्रास्फीति, मौद्रिक नीति और रोज़गार का दृष्टिकोण: मुद्रास्फीति वर्ष 2024 में 4.9% से घटकर वर्ष 2025 में 4.3% रहने का अनुमान है, जो RBI के 2–6% के लक्ष्य क्षेत्र के भीतर है और यह प्रभावी मौद्रिक प्रबंधन को दर्शाता है।
- बेरोज़गारी सामान्य रूप से स्थिर बनी हुई है, हालाँकि श्रम शक्ति भागीदारी में लैंगिक असमानताएँ संरचनात्मक चुनौती बनी हुई हैं।
- भारत के विकास के प्रमुख प्रेरक:
- विनिर्माण और निर्यात: विनिर्माण का GVA वर्ष 2023-24 में ₹27.5 लाख करोड़ तक बढ़ गया। कुल निर्यात वर्ष 2024-25 में रिकॉर्ड USD 824.9 बिलियन हुआ, जिसमें सेवा निर्यात USD 387.5 बिलियन और गैर-पेट्रोलियम वस्तु निर्यात USD 374.1 बिलियन रहे।
- रक्षा उत्पादन: रक्षा निर्यात मूल्य में भी लगभग तीन गुना वृद्धि हुई है तथा भारत अब लगभग 100 देशों को निर्यात कर रहा है, जो भारतीय रक्षा क्षमताओं में बढ़ते वैश्विक विश्वास का संकेत है।
- वैश्विक आर्थिक परिदृश्य: वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर वर्ष 2025 में धीमी होकर 2.4% (2024 में 2.9%) और 2026 में 2.5% रहने का अनुमान है, जो उन्नत तथा उभरती दोनों अर्थव्यवस्थाओं पर लागू होगी।
- टैरिफ एवं नीति अनिश्चितता के कारण अमेरिका की वृद्धि दर में गिरावट आने का अनुमान है, जबकि कमज़ोर मांग, निर्यात व्यवधान और रियल एस्टेट तनाव से प्रभावित चीन की वृद्धि दर वर्ष 2025 में 4.6% रहने का अनुमान है।
- अन्य EME: ब्राज़ील, मेक्सिको और दक्षिण अफ्रीका जैसी अर्थव्यवस्थाएँ कमज़ोर व्यापार, घटते निवेश तथा कमोडिटी मूल्य अस्थिरता के कारण डाउनग्रेड का सामना कर रही हैं।
- निर्यात राजस्व में गिरावट, सख्त वित्तीय स्थिति, आधिकारिक विकास सहायता (ODA) में कमी और बढ़ते ऋण संकट जोखिमों के बीच अल्प विकसित देशों (LDC) की वृद्धि दर वर्ष 2024 में 4.5% से घटकर वर्ष 2025 में 4.1% रहने का अनुमान है।
- प्रमुख वैश्विक आर्थिक मुद्दे:
- खाद्य मुद्रास्फीति और असुरक्षा: जलवायु परिवर्तन, मुद्रा अवमूल्यन, व्यापार संरक्षणवाद और आपूर्ति शृंखला व्यवधानों के कारण खाद्य मुद्रास्फीति, हेडलाइन मुद्रास्फीति से ऊपर बनी हुई है।
- वैश्विक स्तर पर 343 मिलियन लोग गंभीर खाद्य असुरक्षा का सामना कर रहे हैं, जिनमें से 1.9 मिलियन लोग गाज़ा, हैती, माली, दक्षिण सूडान और सूडान जैसे संघर्ष वाले क्षेत्रों में अकाल के खतरे में हैं।
- भारत जैसे देश, जहाँ घरेलू खर्च का बड़ा हिस्सा भोजन पर खर्च होता है, सबसे अधिक प्रभावित हैं।
- बढ़ता व्यापार और वैश्विक जोखिम: बढ़ते अमेरिकी टैरिफ से "टैरिफ शॉक" उत्पन्न हुआ है, जिससे वैश्विक व्यापार लागत बढ़ गई है, आपूर्ति शृंखला बाधित हुई है और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।
- बढ़ते व्यापार तनाव बहुपक्षवाद को कमज़ोर कर रहे हैं और वैश्विक असमानता को बढ़ा रहे हैं।
संयुक्त राष्ट्र आर्थिक और सामाजिक मामलों का विभाग
- UNDESA वर्ष 1948 में गठित संयुक्त राष्ट्र सचिवालय का एक मुख्य विभाग है, जो सतत् विकास के लिये वर्ष 2030 एजेंडा को लागू करने और सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) को प्राप्त करने में देशों का समर्थन करते हुए संयुक्त राष्ट्र के विकास स्तंभ का नेतृत्व करता है।
- यह संयुक्त राष्ट्र महासचिव के अधीन कार्य करता है तथा सदस्य देशों को आर्थिक, सामाजिक एवं पर्यावरणीय मुद्दों पर डेटा, विश्लेषण और नीति मार्गदर्शन प्रदान करता है।
- ECOSOC, महासभा और सतत् विकास पर उच्चस्तरीय राजनीतिक मंच (HLPF) जैसे प्रमुख संयुक्त राष्ट्र निकायों के सचिवालय के रूप में, UNDESA गरीबी उन्मूलन, समावेशी विकास, पर्यावरण संरक्षण एवं सुशासन में वैश्विक प्रयासों को समन्वित करने में मदद करता है।
- यह वैश्विक प्रतिबद्धताओं और राष्ट्रीय कार्रवाई के बीच एक सेतु के रूप में कार्य करता है, जिससे देशों को संयुक्त राष्ट्रस्तरीय समझौतों को कार्रवाई योग्य राष्ट्रीय नीतियों एवं सुधारों में परिवर्तन करने में मदद मिलती है।
प्रमुख आर्थिक रिपोर्ट और प्रकाशक
प्रकाशन संस्था |
प्रतिवेदन |
विश्व बैंक |
वैश्विक आर्थिक संभावनाएँ, विश्व विकास रिपोर्ट |
अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) |
विश्व आर्थिक परिदृश्य, वैश्विक वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट |
विश्व आर्थिक मंच (WEF) |
वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता रिपोर्ट, वैश्विक जोखिम रिपोर्ट |
संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCTAD) पर व्यापार और विकास |
विश्व निवेश रिपोर्ट |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. "त्वरित वित्तीयन प्रपत्र (Rapid Financing Instrument)" और "त्वरित ऋण सुविधा (Rapid Credit Facility)", निम्नलिखित में किस एक के द्वारा उधार दिये जाने के उपबंधों से संबंधित हैं ? (2022) (a) एशियाई विकास बैंक उत्तर: (b) 'प्रश्न. 'वैश्विक वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट (Global Financial Stability Report)' किसके द्वारा तैयार की जाती है? (2016) (a) यूरोपीय केंद्रीय बैंक उत्तर: (b) मेन्स:प्रश्न. विश्व बैंक व अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, संयुक्त रूप से ब्रेटन वुड्स नाम से जानी जाने वाली संस्थाएँ, विश्व की आर्थिक व वित्तीय व्यवस्था की संरचना का संभरण करने वाले दो अन्तःसरकारी स्तंभ हैं। पृष्ठीय रूप में विश्व बैंक व अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष दोनों की अनेक समान विशिष्टताएँ हैं, तथापि उनकी भूमिका, कार्य तथा अधिदेश स्पष्ट रूप से भिन्न हैं। व्याख्या कीजिये। (2013) |