यह नदी उत्तर-पूर्व दिशा में मैदानों की ओर बहती है तथा अंततः श्योपुर के उत्तर मेंचंबल नदीमें मिल जाती है।
इसकी कुल लंबाई लगभग 500 किमी (310 मील) है।
मौसमी प्रकृति और उपयोग:
बनास एक मौसमी नदी है, जो गर्मी के महीनों में प्रायः सूख जाती है।
इसके बावजूद, यह क्षेत्र में सिंचाई का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है।
सहायक नदियाँ:
बनास नदी की मुख्य सहायक नदियाँ बेराच नदी और कोटारी नदी हैं।
बाँध:
बिसलपुर बाँध बनास नदी पर स्थित है। यह एक गुरुत्व बाँध (gravity dam) है, जिसे सिंचाई तथा पेयजल आपूर्ति के उद्देश्य से बनाया गया है।
गुरुत्व बाँध कंक्रीट या पत्थर व ईंटों से बना होता है और यह जल के दाब का सामना अपने ही भार से करता है। इसकी स्थिरता पूरी तरह गुरुत्व बल पर निर्भर करती है।
चंबल नदी
चंबल नदी विंध्य पर्वत (इंदौर, मध्य प्रदेश) की उत्तरी ढलानों में सिंगार चौरी चोटी से निकलती है। वहाँ से यह मध्य प्रदेश में उत्तर दिशा में लगभग 346 किलोमीटर की लंबाई तक बहती है और फिर राजस्थान से होकर 225 किलोमीटर की लंबाई तक उत्तर-पूर्व दिशा में बहती है।
यह एक बरसाती नदी है और इसका बेसिन विंध्य पर्वत श्रृंखलाओं और अरावली से घिरा हुआ है। चंबल और इसकी सहायक नदियाँ उत्तर-पश्चिमी मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र को जल से भरती हैं।
राजस्थान में हाड़ौती पठार मेवाड़ मैदान के दक्षिण-पूर्व में चंबल नदी के ऊपरी जलग्रहण क्षेत्र में स्थित है।
इस राष्ट्रीय उद्यान की स्थापना वर्ष 1989 में हुई थी। इसका क्षेत्रफल 1,553 वर्ग किलोमीटर है तथा इसकी ऊँचाई 7,083 मीटर है। इसमें विविध भू-भाग शामिल हैं।
यह पार्क गौमुख-तपोवन ट्रेक का घर है, जो इस क्षेत्र के सबसे लोकप्रिय ट्रैकिंग मार्गों में से एक है।
गंगा नदी का उद्गम स्थल, गंगोत्री ग्लेशियर पर स्थित गौमुख, इसी पार्क के अंदर स्थित है।
वनस्पति: यह पार्क घनेशंकुधारी वनों से आच्छादित है, जो अधिकांशतः समशीतोष्ण प्रकृति के हैं। यहाँ की सामान्य वनस्पतियों मेंचीड़, देवदार, फर, स्प्रूस, ओकतथा रोडोडेंड्रोन शामिल हैं।
जीव-जंतु: इस पार्क में विभिन्न दुर्लभ तथा संकटग्रस्त प्रजातियाँ पाई जाती हैं, जैसे – भारल (नीली भेड़), काला भालू, भूरा भालू, हिमालयन मोनाल, हिमालयन स्नोकॉक, हिमालयन तहर, कस्तूरी मृग तथा हिम तेंदुआ।
भागीरथी पारिस्थितिकी-संवेदनशील क्षेत्र (ESZ):
वर्ष 2012 में पर्यावरण, वन तथा जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEF&CC) द्वारा एक राजपत्र अधिसूचना के माध्यम से गौमुख से उत्तरकाशी तक भागीरथी नदी के विस्तार के साथ 4,179.59 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को पारिस्थितिकी-संवेदनशील क्षेत्र (ESZ)घोषित किया गया था।
इस श्रेणी में आवश्यक पर्यावरणीय सेवाएँ शामिल की गई हैं, जैसे– अपशिष्ट से ऊर्जा (waste-to-energy) संयंत्र तथा शहरी अपशिष्ट प्रबंधन हेतु एकीकृत सैनिटरी लैंडफिल।
कानूनी तथा पर्यावरणीय चिंताएँ:
कानून का उल्लंघन: प्रस्तावित भस्मक का स्थान पर्यावरण संरक्षण के सिद्धांतों का उल्लंघन करता है, क्योंकि संवेदनशील क्षेत्रों में उद्योगों पर प्रतिबंध है।
ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016:इन नियमों के अनुसार, पर्वतीय क्षेत्रों में लैंडफिल का निर्माण सख्त वर्जित है तथा अपशिष्ट को मैदानी क्षेत्रों में उपयुक्त स्थान पर स्थानांतरित किया जाना चाहिये।
ऐसे संवेदनशील क्षेत्र में भस्मक की उपस्थिति से पारिस्थितिकी क्षरण का खतरा बढ़ जाता है।
सार्वजनिक विरोध: स्थानीय कार्यकर्त्ताओं तथा निवासियों ने गंगोत्री क्षेत्र के संवेदनशील पारिस्थितिक संतुलन को उजागर करते हुए कड़ी आपत्ति जताई है।
उनका तर्क है कि हिमालय में इस प्रकार की सुविधा की स्थापना से क्षेत्र की जैवविविधता को गंभीर खतरा उत्पन्न हो सकता है, जो अपने विशिष्ट तथा संवेदनशील पर्यावरण के कारण पहले से ही असुरक्षित है।
यह एक क्षेत्रीय इकाई के रूप में कार्य करता है तथा पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के प्रावधानों के संबंध में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को तकनीकी सेवाएँ भी प्रदान करता है।
संत कबीरदास जयंती 2025 | उत्तर प्रदेश | 12 Jun 2025
चर्चा में क्यों?
प्रधानमंत्री ने संत कबीरदास की 648वीं जयंती के अवसर पर, जिसे कबीरदास जयंती (कबीर प्रकट दिवस) के रूप में मनाया जाता है, पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की।
मुख्य बिंदु
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:
कबीरदास जयंती हर वर्ष हिंदू पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा तिथि को मनाई जाती है।
कबीरदास 15वीं शताब्दी के कवि, संत तथा समाज सुधारक थे, जिनका जन्म सन् 1440 में वाराणसी (उत्तर प्रदेश) में एक हिंदू परिवार में हुआ था, लेकिन उनका पालन-पोषण एक मुस्लिम बुनकर दंपत्ति द्वारा किया गया था।
उन्होंने रामानंद और शेख त़की जैसे गुरुओं से आध्यात्मिक मार्गदर्शन प्राप्त किया तथा अपने अद्वितीय दर्शन को आकार दिया।
दर्शन, कार्य और शिक्षाएँ:
वे भक्ति आंदोलनमें एक उल्लेखनीय व्यक्ति थे, जिसमें ईश्वर के प्रति समर्पण और प्रेम पर विशेष ज़ोर दिया गया।
भक्ति आंदोलन की शुरुआत 7वीं शताब्दी में दक्षिण भारत में हुई थी, जो 14वीं व 15वीं शताब्दी तक उत्तर भारत में फैल गया।
उन्होंने कबीर पंथ की स्थापना की, जो एक आध्यात्मिक समुदाय है, जिसके अनुयायी आज भी बड़ी संख्या में विद्यमान हैं।
उनके प्रमुख साहित्यिक योगदानों में बीजक, सखी ग्रंथ, कबीर ग्रंथावली तथा अनुराग सागर शामिल हैं।
उन्होंने अनेक भजन और दोहे लिखे, जिनमें अंधविश्वास की निंदा की गई तथा सामाजिक सुधार, स्वतंत्र चिंतन एवं आध्यात्मिक एकता को बढ़ावा दिया गया।
ब्रजभाषा और अवधीबोलियों में लिखी गई उनकी कविताओं ने भारतीय साहित्य और हिंदी भाषा के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।
मृत्यु और प्रतीकात्मक विरासत:
कबीरदास का निधन सन् 1518 में मगहर (उत्तर प्रदेश) में हुआ, जहाँ उनके अंतिम संस्कार को लेकर हिंदुओं और मुसलमानों के बीच विवाद उत्पन्न हुआ।
संत कबीर की विरासत को दोनों समुदायों द्वारा सम्मान दिया जाता है, वहाँ हिंदुओं द्वारा निर्मित समाधि है और मुसलमानों द्वारा निर्मित मज़ार, एक साथ स्थित हैं।