भारत में गरीबी | 13 Dec 2025

प्रिलिम्स के लिये: गरीबी, विश्व बैंक, गिनी इंडेक्स, आयुष्मान भारत, पोषण अभियान और समग्र शिक्षा

मेन्स के लिये: भारत में गरीबी के रुझान, समता, वितरणात्मक न्याय और समावेशी विकास।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों? 

16वें वित्त आयोग के अध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया द्वारा किये गए एक नए शोध पत्र में पाया गया है कि भारत ने वर्ष 2011–12 से वर्ष 2023–24 के बीच चरम गरीबी को लगभग समाप्त कर दिया है।

सारांश:

  • भारत में गरीबी में तीव्र गिरावट देखी गई है, जिसमें चरम गरीबी लगभग 2% तक कम हो गई है, साथ ही सामाजिक और धार्मिक समूहों में भी महत्त्वपूर्ण प्रगति हुई है।
  • बढ़ती खपत, मज़बूत कल्याण प्रणाली और व्यापक ग्रामीण सुधारों ने गरीबी में कमी लाने में सहायता की है।

गरीबी पर अध्ययन के प्रमुख निष्कर्ष क्या हैं?

  • चरम गरीबी लगभग समाप्त: वर्ष 2011–12 से वर्ष 2023–24 के बीच गरीबी 21.9% से घटकर 2.3% हो गई, जिससे चरम गरीबी के लगभग समाप्त होने का संकेत मिलता है। यह गिरावट बढ़ती खपत और कल्याण, पोषण तथा मूलभूत सेवाओं तक बेहतर पहुँच के कारण हुई।
  • सभी सामाजिक समूहों में गरीबी में कमी: अनुसूचित जातियाँ (SC), अनुसूचित जनजातियाँ (ST), अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) और FC सभी में गरीबी में महत्त्वपूर्ण कमी आई। अनुसूचित जनजातियों में गरीबी 8.7% तक घट गई। हालाँकि यह अन्य समूहों की तुलना में अभी भी अधिक है।
    • धार्मिक आधार पर गरीबी का अंतर तेज़ी से कम हुआ है और अब मुस्लिम समुदाय में ग्रामीण गरीबी हिंदुओं की तुलना में थोड़ी कम दर्ज की गई है, जिससे यह सामान्य धारणा कि मुस्लिम समुदाय में अधिक गरीबी है, बदल गई है।
  • ग्रामीण क्षेत्रों में तीव्र कमी: ग्रामीण गरीबी में 22.5 प्रतिशत अंकों की गिरावट हुई, जो शहरी क्षेत्र की 12.6 अंकों की गिरावट से अधिक है। यह मज़बूत कल्याण और बढ़ती खपत के कारण संभव हुआ।
  • लगभग शून्य गरीबी: हिमाचल प्रदेश, सिक्किम, गोवा, दिल्ली, चंडीगढ़ और दमन-दीव में गरीबी स्तर लगभग शून्य के करीब रिकॉर्ड किये गए।

गरीबी क्या है?

  • परिचय: विश्व बैंक के अनुसार, ‘कल्याण में स्पष्ट कमी’ है। गरीब वे लोग हैं जिनकी आय या उपभोग इतना नहीं है कि वे एक न्यूनतम स्वीकार्य स्तर से ऊपर उठ सकें।
    • अंतर्राष्ट्रीय गरीबी रेखा, जिसका उपयोग निम्न-आय अर्थव्यवस्थाओं में अत्यधिक गरीबी को मापने के लिये किया जाता है, प्रति व्यक्ति प्रति दिन 3.00 अमेरिकी डॉलर पर निर्धारित की गई है (वर्ष 2021 की क्रय शक्ति समानता के आधार पर)।
    • NITI आयोग के अनुसार, गरीबी को मापने के लिये गरीबी रेखा निर्धारित की जाती है (बुनियादी सामाजिक रूप से स्वीकार्य आवश्यकताओं को पूरा करने हेतु आवश्यक न्यूनतम व्यय) और गरीबी अनुपात उस जनसंख्या के हिस्से को दर्शाता है जो इस रेखा के नीचे जीवनयापन कर रही है।
  • भारत में गरीबी का आकलन:
    • स्वतंत्रता के बाद: योजना आयोग (1962) ने आधिकारिक गरीबी आकलन शुरू किया।
      • बाद में अलघ समिति (1979) और लकड़ावाला समिति (1993) जैसी समितियों ने विधियों को परिष्कृत किया, जिसमें उपभोग व्यय तथा कैलोरी मानदंड पर ध्यान केंद्रित किया गया।
    • तेंदुलकर समिति (2009): कैलोरी-आधारित मानकों से हटकर, एक समान अखिल भारतीय पॉवर्टी लाइन बास्केट (PLB) की सिफारिश की गई और मिक्स्ड रेफरेंस पीरियड (MRP) उपभोग डेटा को अपनाया गया।
      • इसने वर्ष 2011-12 की गरीबी रेखा का अनुमान 816 रुपये (ग्रामीण) और 1,000 रुपये (शहरी) प्रति व्यक्ति प्रति माह लगाया।
    • रंगराजन समिति (2014): तेंदुलकर पद्धति की आलोचना के बाद गठित, इसने ग्रामीण और शहरी PLB को अलग कर दिया, जिसका अनुमान 972 रुपये (ग्रामीण) तथा 1,407 रुपये (शहरी) प्रति व्यक्ति प्रति महीना था।
      • हालाँकि, सरकार ने आधिकारिक तौर पर इसकी सिफारिशों को नहीं अपनाया।
  • बहुआयामी गरीबी सूचकांक (MPI):  संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम और ऑक्सफोर्ड गरीबी और मानव विकास पहल (OPHI) द्वारा वर्ष 2010 में शुरू किया गया, MPI आय से परे गरीबी को मापता है, जिसमें स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन स्तर में अभावों को ध्यान में रखा जाता है।
    • यह एक साथ गरीब व्यक्तियों के अनुपात और उनके द्वारा अनुभव की जाने वाली अभावग्रस्तताओं की औसत संख्या दोनों को दर्शाता है।
  • राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी सूचकांक (NMPI): नीति आयोग NMPI को मापने के लिये राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS) का उपयोग करता है।
    • भारत में बहुआयामी गरीबी वर्ष 2013-14 में 29.17% से घटकर वर्ष 2022-23 में 11.28% हो गई है, जिससे लगभग 24.82 करोड़ लोग गरीबी से बाहर हुए हैं।
    • गिनी इंडेक्स वर्ष 2011-12 में 28.8 से घटकर वर्ष 2022-23 में 25.5 हो गया, जो असमानता में कमी को दर्शाता है।

गरीबी का प्रकार

परिभाषा

चरम गरीबी

इसे 2021 की क्रय शक्ति समता के आधार पर प्रति व्यक्ति प्रति दिन 3.00 अमेरिकी डॉलर से कम पर जीवन यापन करने के रूप में परिभाषित किया गया है।

सापेक्ष गरीबी

गरीबी का मापन समाज की आर्थिक स्थिति के संदर्भ में किया जाता है।

बहुआयामी गरीबी (MPI)

यह केवल आय ही नहीं, बल्कि स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन स्तर में मौजूद विभिन्न कमियों पर विचार करता है।

उपभोग आधारित गरीबी

घरेलू उपभोग व्यय के आधार पर मापा जाता है।

भारत में गरीबी में योगदान देने वाले कारक क्या हैं? 

  • P – निरंतर असमानता: आय का केंद्रीकरण उच्च बना हुआ है, शीर्ष 10% व्यक्तियों के पास राष्ट्रीय आय का 57% हिस्सा है, जिससे निम्न आय वाले परिवारों के लिये अपने जीवन स्तर में सुधार करने के लिये कम संसाधन और अवसर बचते हैं।
  • R – ग्रामीण आर्थिक निर्भरता: कृषि भारत के 46% कार्यबल को नियोजित करती है, लेकिन GDP में इसका योगदान केवल 18% है, जिससे व्यापक स्तर पर अल्प-नियोजन और कम आय की समस्या उत्पन्न होती है।
  • E – शिक्षा और कौशल की कमी: ASER की वर्ष 2024 की रिपोर्ट में कहा गया है कि कक्षा 5 के 50% छात्र कक्षा 2 के पाठ को पढ़ने में सक्षम नहीं हैं, जिससे भविष्य में आय संबंधी गतिशीलता सीमित हो जाती है।
  • S – सामाजिक बहिष्कार: विश्व असमानता रिपोर्ट 2022 के अनुसार, महिलाएँ श्रम आय का केवल 18% ही अर्जित करती हैं, और महिला श्रम बल की भागीदारी लगभग 31% ही बनी हुई है, जो गहरी सामाजिक और आर्थिक बाधाओं को दर्शाती है।
  • S – मलिन बस्तियों का विस्तार और शहरी भेद्यता: भारत की शहरी जनसंख्या का लगभग 17% हिस्सा मलिन बस्तियों में रहता है (जनगणना 2011), जिसमें हालिया वृद्धि प्रवासन और सीमित किफायती आवास के कारण हुई है।
  • U – बेरोज़गारी और अनौपचारिक कार्य: युवा बेरोज़गारी दर 10.2% (PLFS 2023-24) है, जो स्नातकों के लिये बढ़कर 29% हो गई है और कार्यबल का 80% से अधिक हिस्सा सामाजिक सुरक्षा के बिना अनौपचारिक नियोजन में कार्यरत है।
  • R – क्षेत्रीय असमानताएँ: बिहार जैसे राज्यों में गरीबी का स्तर 25% से अधिक बना हुआ है, जबकि केरल में चरम गरीबी शून्य है, जो संपूर्ण भारत में असमान विकास को दर्शाता है।
  • E – पर्यावरणीय और जलवायु तनाव: लगभग 51% भारतीय बालक गरीबी और जलवायु भेद्यता के दोहरे बोझ का सामना करते हैं; चक्रवात अम्फान जैसी आपदाओं ने अकेले वर्ष 2020 में 24 लाख लोगों को विस्थापित किया।

भारत में निर्धनता कम करने हेतु क्या उपाय किये जा सकते हैं?

निरंतर बनी रहने वाली निर्धनता को कम करने के लिये भारत को प्रभावी रणनीति अपनाने की आवश्यकता है जिससे अवसरों का विस्तार हो, सुरक्षा संजाल सुदृढ़ हो तथा समावेशी एवं अनुकूल विकास को बढ़ावा मिले। 

  • P- लोक सेवाओं को प्रभावी बनाना: आयुष्मान भारत, पोषण अभियान और समग्र शिक्षा के माध्यम से गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य, पोषण और शिक्षा तक पहुँच का विस्तार करना चाहिये ताकि दीर्घकालिक मानव पूंजी के साथ अनुकूलनशीलता का निर्माण किया जा सके।
  • R- ग्रामीण आजीविका में विविधता लाना: गैर-कृषि ग्रामीण आय को बढ़ावा देने हेतु MGNREGA पर बल देने के साथ PM-KUSUM, डेयरी/मत्स्य पालन मिशन के माध्यम से संपत्ति सृजन को बढ़ावा देकर कम उत्पादकता वाली कृषि पर अत्यधिक निर्भरता को कम करना।
  • O – कौशल विकास और रोज़गार के अवसर: प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY) को उन्नत बनाकर तथा मेक इन इंडिया के तहत श्रम-प्रधान क्षेत्रों को बढ़ावा देकर युवा बेरोज़गारी का समाधान करना।
  • S - सामाजिक सुरक्षा संजाल को सुदृढ़ करना: आर्थिक असंतुलन से संवेदनशील परिवारों की सुरक्षा हेतु वन नेशन वन राशन कार्ड, प्रधानमंत्री आवास योजना - शहरी (PMAY-U) 2.0 और प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (DBT) प्रणालियों के माध्यम से खाद्य सुरक्षा, आवास और प्रत्यक्ष सहायता को सुदृढ़ करना।
  • P - महिलाओं और उपेक्षित समूहों की समावेशिता बढ़ाना: आकांक्षी ज़िलों में DAY-NRLM SHG और लक्षित हस्तक्षेपों के माध्यम से आर्थिक भागीदारी को गहन करना।
  • E - जलवायु-अनुकूल प्रणालियों का विकास करना: मिशन LiFE के तहत जल संरक्षण मिशनों तथा जलवायु-अनुकूल प्रथाओं के माध्यम से ग्रामीण आजीविका की सुरक्षा करना।
  • R - क्षेत्रीय असमानताओं को कम करना: संतुलित विकास सुनिश्चित करने हेतु PM-जनमन और आकांक्षी ब्लॉक कार्यक्रम के माध्यम से पिछड़े राज्यों तथा आदिवासी क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करना।

निष्कर्ष

भारत में निर्धनता की समस्या व्यापक अभाव से परे असमानता, जलवायु दबाव और क्षेत्रीय विषमताओं जैसे कुछ विशेष क्षेत्रों में व्याप्त संवेदनशीलता तक सीमित हो गई है। सुनियोजित PROSPER रणनीति से भारत को समावेशी एवं धारणीय रूप से निर्धनता उन्मूलन में मदद मिल सकती है।

दृष्टि मेन्स का प्रश्न:

प्रश्न: भारत में निर्धनता अब जनजातीय और पिछड़े क्षेत्रों में केंद्रित है। इस पर चर्चा करने के साथ नीतिगत उपायों का सुझाव दीजिये।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

1. बहुआयामी गरीबी सूचकांक (MPI) के तहत किसका मापन किया जाता है?
MPI के तहत स्वास्थ्य, शिक्षा तथा जीवन स्तर में अभावों का मापन किया जाता है, जिसमें निर्धन लोगों का अनुपात तथा उनके समक्ष विद्यमान अभावों की औसत संख्या को शामिल किया जाता है।

2. गिनी सूचकांक के तहत किसका मापन किया जाता है?
इसके तहत आय या उपभोग वितरण में असमानता को मापा जाता है जिसमें 0 का अर्थ पूर्ण समानता है तथा 100 का अर्थ पूर्ण असमानता है। भारत का उपभोग-आधारित गिनी सूचकांक 28.8 (वर्ष 2011-12) से गिरकर 25.5 (वर्ष 2022-23) हो गया। 

3. भारत में ‘उपभोग-आधारित निर्धनता’ क्या है?
इसके तहत निर्धनता को आय के बजाय घरेलू उपभोग व्यय के आधार पर मापा जाता है, जो घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण (CES) जैसे सर्वेक्षणों पर आधारित होती है जिसमें 7-दिन, 30-दिन और 365-दिन की संदर्भ अवधि का उपयोग किया जाता है।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)

प्रिलिम्स 

प्रश्न. UNDP के समर्थन से 'ऑक्सफोर्ड निर्धनता एवं मानव विकास नेतृत्व' द्वारा विकसित 'बहु-आयामी निर्धनता सूचकांक' में निम्नलिखित में से कौन-सा/से सम्मिलित है/हैं? (2012)

1. पारिवारिक स्तर पर शिक्षा, स्वास्थ्य, संपत्ति तथा सेवाओं से वंचन

2. राष्ट्रीय स्तर पर क्रय-शक्ति समता

3. राष्ट्रीय स्तर पर बजट घाटे की मात्रा और GDP की विकास दर

निम्नलिखित कूटों के आधार पर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1

(b) केवल 2 और 3

(c) केवल 1 और 3

(d) 1, 2 और 3 

उत्तर: (a) 

मेन्स

प्रश्न. निर्धनता और कुपोषण एक विषाक्त चक्र का निर्माण करते हैं, जो मानव पूंजी निर्माण पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा है। इस चक्र को तोड़ने के लिये क्या कदम उठाए जा सकते हैं ? (2024)