भारत की बढ़ती रक्षा नवाचार एवं निर्यात क्षमता | 16 May 2025

प्रिलिम्स के लिये:

ऑपरेशन सिंदूर, ब्रह्मोस मिसाइल, iDEX योजना, रक्षा औद्योगिक गलियारे, डिफेंस स्पेस एजेंसी, सकारात्मक स्वदेशीकरण सूची, INS विक्रांत, आत्मनिर्भर भारत, चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ, SCALP क्रूज़ मिसाइल, HAMMER

मेन्स के लिये:

भारत के रक्षा क्षेत्र से संबंधित प्रमुख घटनाक्रम, भारत के रक्षा क्षेत्र के समक्ष प्रमुख चुनौतियाँ।

स्रोत: बिज़नेसलाइन

चर्चा में क्यों?

भारत का रक्षा क्षेत्र आयात निर्भरता से निर्यात क्षमता की दिशा में रूपांतरित हो रहा है, जो रक्षा में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के क्रम में iDEX (रक्षा उत्कृष्टता हेतु नवाचार) तथा घरेलू उत्पादन एवं निर्यात में वृद्धि जैसी पहलों द्वारा प्रेरित है।

भारत के रक्षा क्षेत्र से संबंधित प्रमुख घटनाक्रम क्या हैं? 

  • स्वदेशी रक्षा उत्पादन में वृद्धि: भारत का घरेलू रक्षा उत्पादन वर्ष 2014-15 के 30-35% से बढ़कर वर्ष 2024-25 में 65% हो गया, जो वित्त वर्ष 2023-24 में 1.27 लाख करोड़ रुपए के सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुँच गया, और वर्ष 2029 तक इसे 3 लाख करोड़ रुपए तक करने का लक्ष्य है। 
    • इसमें निजी क्षेत्र की प्रमुख भूमिका है, जिसका कुल रक्षा उत्पादन में 21% का योगदान है। वित्त वर्ष 2024-25 में 92% से अधिक पूंजी खरीद अनुबंध घरेलू फर्मों को दिये गए, जिसमें मेक इन इंडिया जैसी पहलों के माध्यम से मज़बूत नीतिगत समर्थन देखा गया।
  • रक्षा निर्यात विस्तार: वित्त वर्ष 2013-14 और वित्त वर्ष 2024-25 के बीच भारत का रक्षा निर्यात 34 गुना से अधिक बढ़कर वर्ष 2024-25 में 23,622 करोड़ रुपए तक पहुँच गया, जिसमें निज़ी क्षेत्र का योगदान रक्षा सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रमों (DPSU) से लगभग दोगुना है।
    • भारत अमेरिका, फ्राँस और आर्मेनिया सहित 100 से अधिक देशों को डोर्नियर DO-228 विमान, चेतक हेलीकॉप्टर, बुलेटप्रूफ जैकेट, हल्के टॉरपीडो और इंटरसेप्टर नौकाओं का निर्यात करता है।
    • भारत ने वैश्विक प्रभाव को मज़बूत करने के लिये वर्ष 2029 तक रक्षा निर्यात को 50,000 करोड़ रुपए तक पहुँचाने का लक्ष्य रखा है।

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  • रक्षा अनुसंधान एवं विकास में तकनीकी प्रगति: भारत का रक्षा अनुसंधान एवं विकास iDEX और प्रौद्योगिकी विकास निधि (TDF) के माध्यम से आगे बढ़ा है। 
    • iDEX प्रोटोटाइप और रिसर्च किकस्टार्ट (स्पार्क) के लिये समर्थन के माध्यम से 1.5 करोड़ रुपए तक, iDEX प्राइम के माध्यम से 10 करोड़ रुपए तक और iDEX (ADITI) (2024) योजना के साथ अभिनव प्रौद्योगिकियों के विकास में सहायता के माध्यम से 25 करोड़ रुपए तक का वित्तपोषण प्रदान करता है।
      • ऑपरेशन सिंदूर के दौरान तैनात किये गए स्काईस्ट्राइकर लोइटरिंग म्यूनिशन और AI-संचालित निगरानी रोबोट जैसे प्रमुख परिणाम इसके प्रभाव को दर्शाते हैं। 
    • वर्ष 2021 में नवाचार के लिये प्रधानमंत्री पुरस्कार से सम्मानित, iDEX भारत की रक्षा आत्मनिर्भरता के लिये केंद्रीय प्रयास बन गया है।
  • रक्षा औद्योगिक गलियारे (DIC) विकास: भारत ने स्वदेशी रक्षा उत्पादन को बढ़ावा देने और निवेश आकर्षित करने के लिये उत्तर प्रदेश एवं तमिलनाडु में 2 रक्षा औद्योगिक गलियारे स्थापित किये हैं। 
    • ये गलियारे MSME के लिये बुनियादी ढाँचे, प्रोत्साहन और समर्थन प्रदान करते हैं।
  • सशस्त्र बलों का आधुनिकीकरण: भारत स्वदेशी और उन्नत आयातित प्रणालियों के मिश्रण के माध्यम से अपने सशस्त्र बलों का तीव्र आधुनिकीकरण कर रहा है। 
    • वर्ष 2025 में हवाई क्षमताओं को बढ़ावा देने के लिये 156 हल्के लड़ाकू हेलीकॉप्टरों (LCH) के लिये अनुबंध पर हस्ताक्षर किये गए।
    • ऑपरेशन सिंदूर में SCALP मिसाइलों, हैमर बमों और युद्ध सामग्री जैसे सटीक हथियारों का प्रभावी ढंग से उपयोग किया गया।
    • आधुनिकीकरण में घरेलू स्तर पर विकसित प्लेटफॉर्मों जैसे तेजस लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट, अर्जुन MK-1A टैंक, एस्ट्रा एयर-टू-एयर मिसाइल और पिनाका रॉकेट सिस्टम पर भी ध्यान केंद्रित किया गया है। 
    • DRDO हाइपरसोनिक प्रौद्योगिकी, मानवरहित हवाई वाहन (UAV), और एंटी-सैटेलाइट हथियारों में प्रगति कर रहा है, जबकि AI, रोबोटिक्स और अंतरिक्ष-आधारित इंटेलिजेंस, सर्विलांस एवं रिकॉनिसेंस (ISR) उपकरण भविष्य के युद्ध के लिये भारत की तैयारियों को आकार दे रहे हैं।  
  • नीतिगत सुधार: भारत ने स्वतः मार्ग से 74% तक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) और सरकारी अनुमोदन के माध्यम से 100% तक निवेश की अनुमति दी है, जिसके परिणामस्वरूप वर्ष 2000 से अब तक ₹5,516 करोड़ का निवेश आकर्षित हुआ है।

भारत के रक्षा क्षेत्र की प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?

  • प्रौद्योगिकीय अंतराल एवं आयात पर निर्भरता: भारत को लड़ाकू विमान इंजनों, इलेक्ट्रॉनिक रूप से सक्रिय स्कैन ऐरे (AESA) रडार, अर्द्धचालकों तथा सटीक इलेक्ट्रॉनिक्स जैसी प्रमुख रक्षा प्रौद्योगिकियों में गंभीर अंतराल का सामना करना पड़ रहा है।
  • धीमी एवं जटिल खरीद प्रक्रिया: नौकरशाही स्तर पर विलंब रक्षा अधिग्रहण में बाधा उत्पन्न करते हैं, जिससे सैन्य तत्परता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
    • उदाहरण के लिये, तेजस कार्यक्रम को स्वीकृति से प्रोटोटाइप तक पहुँचने में लगभग 20 वर्ष लग गए, जबकि राफेल लड़ाकू विमान और स्कॉर्पीन पनडुब्बी जैसे सौदों को भी विलंब का सामना करना पड़ा। 
    • हालाँकि नई रक्षा अधिग्रहण परिषद की दिशानिर्देशों का उद्देश्य खरीद प्रक्रिया को तेज़ करना है, लेकिन प्रभावी क्रियान्वयन अब भी एक चुनौती बना हुआ है।
    • रक्षा परीक्षण अवसंरचना योजना (DTIS) के अंतर्गत 6–8 नए परीक्षण केंद्रों की योजना के बावजूद, परियोजनाओं की स्वदेशी मान्यता और तैनाती की प्रक्रिया में देरी बनी हुई है।
  • कम अनुसंधान एवं विकास (R&D) बजट: वर्ष 2025-26 में ₹6.81 लाख करोड़ के रक्षा बजट में से केवल ₹1.8 लाख करोड़ आधुनिकीकरण हेतु आवंटित किये गए हैं, जबकि DRDO को मात्र 3.94% भाग प्राप्त हुआ है।
    • भारत में समग्र अनुसंधान एवं विकास पर व्यय सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 0.7% है, जो चीन (2.4%), अमेरिका (3.5%) और इज़राइल (5.4%) जैसे वैश्विक समकक्षों की तुलना में कहीं कम है।
  • निजी क्षेत्र की सीमित भूमिका: रक्षा उत्पादन में निजी कंपनियों का योगदान केवल 21% है, जिसे खरीद संबंधी जोखिम, अनुसंधान एवं विकास में सीमित सहायता, तथा सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों के साथ कमज़ोर समन्वय बाधित करते हैं।
    • इसके अतिरिक्त, व्यापारिक तनाव जैसे अनिश्चित वैश्विक घटनाक्रम निवेशकों के विश्वास को और अधिक कमज़ोर करते हैं तथा रक्षा पारितंत्र में निजी क्षेत्र की दीर्घकालिक भागीदारी में बाधा उत्पन्न करते हैं।
  • परीक्षण एवं प्रमाणीकरण की चुनौतियाँ: भारत में उन्नत रक्षा तकनीकों जैसे कि मानवरहित विमान (UAV), इलेक्ट्रॉनिक युद्ध प्रणाली, और इलेक्ट्रो-ऑप्टिक्स के परीक्षण हेतु पर्याप्त सुविधाओं का अभाव है।
  • साइबर सुरक्षा एवं आंतरिक सुरक्षा की चुनौतियाँ: भारत की साइबर सुरक्षा एवं इलेक्ट्रॉनिक युद्ध क्षमताएँ चीन जैसे देशों की तुलना में पिछड़ी हुई हैं, जिसका उदाहरण वर्ष 2020 में मुंबई पावर ग्रिड पर हुआ साइबर हमला है।
    • इसके अतिरिक्त, चीफ ऑफ डिफेन्स स्टाफ (CDS) की स्थापना के बावजूद, एकीकृत योजना की कमी और इंटीग्रेटेड थिएटर कमांड्स के क्रियान्वयन में देरी, संयुक्त सैन्य अभियानों की प्रभावशीलता को बाधित करती है।
  • पुराने उपकरण: MiG-21 जैसे विरासती सिस्टम आज भी बिना किसी उन्नयन के संचालित हो रहे हैं, जो रक्षा खरीद और योजना में गहरी खामियों को दर्शाते हैं।

भारत की रक्षा नवाचार एवं निर्यात क्षमता को बढ़ावा देने के लिये कौन-से उपाय किये जाने चाहिये?

  • रक्षा अनुसंधान एवं विकास और नवाचार को सशक्त करना: DRDO, निजी उद्योग, स्टार्टअप, अकादमिक संस्थानों और वैश्विक तकनीकी कंपनियों के बीच सहयोग को बढ़ावा देकर रक्षा अनुसंधान में निवेश को बढ़ाना चाहिये।
    • क्वांटम कंप्यूटिंग, हाइपरसोनिक्स, स्वायत्त प्रणाली और साइबर सुरक्षा जैसी उन्नत तकनीकों पर केंद्रित रक्षा नवाचार क्षेत्रों और इनक्यूबेशन हब स्थापित करना चाहिये।
      • सरकारी सहायता प्राप्त अनुसंधान को अनुसंधान एवं विकास (R&D) अनुदानों में वृद्धि तथा निज़ी क्षेत्र की भागीदारी के माध्यम से व्यापक स्तर पर बढ़ाया जाना चाहिये।
    • उदाहरण के लिये, हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) द्वारा एयरोस्पेस घटकों में 3D प्रिंटिंग के उपयोग से लागत और उत्पादन के समय में उल्लेखनीय कमी आई है।
  • निज़ी क्षेत्र और MSME की भागीदारी को सुदृढ़ करना: स्थानीय कंपनियों के लिये आरक्षित खरीद कोटा निर्धारित किया जाये, विशेषकर टियर-2 एवं टियर-3 शहरों में, जिससे निर्माण प्रक्रिया का विकेंद्रीकरण हो और आपूर्ति शृंखला का विस्तार हो सके।
    • स्टार्टअप्स को प्रारंभिक निवेश (सीड फंडिंग) तथा रक्षा अनुबंधों तक सरल पहुँच प्रदान कर स्थानीय नवाचार को प्रोत्साहित किया जाये।
  • परीक्षण और साइबर सुरक्षा अवसंरचना का उन्नयन: यूएवी, कृत्रिम बुद्धिमत्ता-आधारित प्लेटफॉर्म, इलेक्ट्रॉनिक युद्ध एवं संचार प्रणालियों के लिये परीक्षण एवं प्रमाणीकरण सुविधाओं का विस्तार एवं आधुनिकीकरण किया जाये, जिसे सार्वजनिक-निज़ी भागीदारी (PPP) के माध्यम से संचालित किया जाये।
    • राष्ट्रीय रक्षा साइबर कमान (National Defence Cyber Command) की स्थापना की जाये, जिससे सैन्य नेटवर्कों की सुरक्षा, कृत्रिम बुद्धिमत्ता-आधारित रक्षा रणनीतियों का एकीकरण, तथा साइबर युद्ध प्रशिक्षण को शामिल किया जा सके।
  • सामरिक वैश्विक साझेदारी और रक्षा निर्यात को बढ़ावा देना: एयरोस्पेस, शिपबिल्डिंग एवं मिसाइल तकनीक के क्षेत्रों में विदेशी मूल उपकरण विनिर्माताओं (OEMs) के साथ संयुक्त विकास एवं प्रौद्योगिकी हस्तांतरण समझौते किये जायें।
    • फ्रांस (राफेल ऑफसेट) और रूस (ब्रह्मोस जैसी संयुक्त मिसाइल परियोजना) के साथ सहयोग से अत्याधुनिक तकनीक तक पहुँच और निर्यात के रास्ते खुलेंगे।
    • क्वाड एवं I2U2 जैसे मंचों का उपयोग करते हुए भारत रक्षा कूटनीति को मज़बूत कर सकता है तथा अफ्रीका, दक्षिण-पूर्व एशिया और लैटिन अमेरिका जैसे क्षेत्रों में बाज़ार विस्तार कर सकता है। इसके लिये एक समर्पित रक्षा निर्यात सुविधा प्रकोष्ठ की स्थापना की जाये, जो ऑफसेट प्रबंधन एवं प्रौद्योगिकी हस्तांतरण को सुगम बनाए।
  • निगरानी एवं निर्यात संवर्धन को संस्थागत बनाना: रक्षा उत्पादन एवं निर्यात प्रोत्साहन नीति (DPEPP) के तहत स्थानीयकरण लक्ष्यों की निगरानी हेतु रीयल-टाइम डिफेंस इंडीजेनाइज़ेशन डैशबोर्ड तथा इंडीजेनाइज़ेशन परफॉर्मेंस इंडेक्स लागू किये जायें, ताकि मंत्रालयों की जवाबदेही सुनिश्चित की जा सके।
    • नवीन निर्यात बाज़ारों की पहचान की जाये और अंतर्राष्ट्रीय रक्षा निविदाओं तक पहुँच को सरल बनाया जाए, जिससे भारत की छवि एक विश्वसनीय वैश्विक रक्षा निर्यातक के रूप में सशक्त हो।
  • क्षेत्रीय सेवा और रखरखाव केंद्र स्थापित करें: वियतनाम, यूएई जैसे रणनीतिक देशों में क्षेत्रीय हब स्थापित किये जायें, जहाँ बिक्री पश्चात सेवा, अनुरक्षण एवं उन्नयन की सुविधाएँ उपलब्ध हों। इससे ग्राहक विश्वास बढ़ता है, राजस्व उत्पन्न होता है तथा दीर्घकालिक रक्षा संबंध मज़बूत होते हैं।

निष्कर्ष

रक्षा क्षेत्र में नवोन्मेषक और निर्यातक के रूप में भारत का परिवर्तन निरंतर आगे बढ़ रहा है। iDEX जैसी पहल, निज़ी क्षेत्र की बढ़ती भागीदारी और सहायक नीतिगत सुधारों ने एक आत्मनिर्भर और वैश्विक रूप से प्रतिस्पर्द्धी रक्षा पारिस्थितिकी तंत्र की नींव रखी है। यह विकास न केवल राष्ट्रीय सुरक्षा को मज़बूत करता है, बल्कि रक्षा क्षेत्र में बढ़ी हुई रणनीतिक स्वायत्तता और वैश्विक प्रभाव के साथ वर्ष 2047 तक विकसित भारत बनने के भारत के दृष्टिकोण को भी आगे बढ़ाता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: भारतीय रक्षा क्षेत्र के आयात-निर्भरता से एक वैश्विक निर्यातक बनने की दिशा में हुए परिवर्तन पर चर्चा कीजिये। इस परिवर्तन को प्रेरणा देने वाली प्रमुख पहल कौन-सी हैं?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्षों के प्रश्न (PYQs)  

प्रारंभिक 

Q. मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा करने सहित दूरस्थ क्षेत्रों में स्थानीय जन-समुदाय के उत्थान के लिये सेना द्वारा संचालित अभियान (ऑपरेशन) को क्या कहा जाता है: (2024)

(a) ऑपरेशन संकल्प  
(b) ऑपरेशन मैत्री  
(c) ऑपरेशन सद्भावना  
(d) ऑपरेशन मदद  

उत्तर: (C)  


मेन्स

Q. “भारत में बढ़ते हुए सीमापारीय आतंकी हमले और अनेक सदस्य राज्यों के आंतरिक मामलों में पाकिस्तान द्वारा बढ़ता हुआ हस्तक्षेप SAARC (दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन) के भविष्य के लिये सहायक नहीं है।” उपयुक्त उदाहरणों के साथ स्पष्ट कीजिये। (2016) 

Q. 'उग्र अनुसरण' एवं 'शल्यक प्रहार' पदों का प्रयोग प्रायः आतंकवादी हमलों के विरुद्ध सैन्य कार्रवाई के लिये किया जाता है। इस प्रकार की कार्रवाइयों के युद्ध नीतिक प्रभाव की विवेचना कीजिये। (2016)