भू-राजनीतिक परिवर्तनों के दौर में ब्रिक्स | 23 Dec 2025

प्रिलिम्स के लिये: ब्रिक्स, अमेज़न वर्षावन, संयुक्त राष्ट्र, IMF, क्रय शक्ति समता, न्यू डेवलपमेंट बैंक, आकस्मिक आरक्षित व्यवस्था (CRA), WTO, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, विश्व बैंक, स्विफ्ट, महत्त्वपूर्ण खनिज, अफ्रीकी संघ, आसियान, शांति स्थापना।     

मेन्स के लिये: ब्रिक्स से संबंधित प्रमुख तथ्य और समकालीन समय में इसकी प्रासंगिकता। ब्रिक्स से जुड़ी चुनौतियाँ और ब्रिक्स को मज़बूत करने का मार्ग।

स्रोत: TH

चर्चा में क्यों?

ब्राज़ील ने ब्रिक्स की अध्यक्षता ग्रहण करते समय भारत को अमेज़न वर्षावन की रीसायकल की गई लकड़ी से बना एक गैवल भेंट में दिया, जो सतत विकास के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

  •  ब्राज़ील का मानना है कि आज जब विश्व में बहुपक्षीय प्रणालियों पर अविश्वास बढ़ रहा है तब ब्रिक्स अपने संवाद और सहयोग के एक विश्वसनीय मंच के रूप में अपनी भूमिका को और मज़बूती से निभा रहा है।

सारांश

  • बहुपक्षवाद में बढ़ते अविश्वास के बीच ब्राज़ील ने ब्रिक्स की अध्यक्षता भारत को सौंप दी है।
  • ब्रिक्स समूह, जिसमें मिस्र और यूएई जैसे देशों को भी शामिल किया गया है, NDB जैसी संस्थाओं और अनाज विनिमय जैसी पहलों के माध्यम से बहुध्रुवीयता को बढ़ावा देता है। 
  • वैश्विक अविश्वास के बीच इसकी भूमिका बढ़ रही है, लेकिन आंतरिक विभाजन और आर्थिक विषमता इसकी प्रभावशीलता को चुनौती देते हैं, जिसके लिये मज़बूत संस्थागत और रणनीतिक समन्वय की आवश्यकता है।

ब्रिक्स क्या है?

  • परिचय: ब्रिक्स प्रमुख उभरती अर्थव्यवस्थाओं का एक सहयोगी अंतर-सरकारी संगठन है, जिसकी स्थापना आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देने और अपने सदस्यों के वैश्विक राजनीतिक और आर्थिक प्रभाव को बढ़ाने के लिये की गई है।
    • यह संक्षिप्त नाम मूल रूप से ब्राज़ील, रूस, भारत और चीन के लिये था, जिसमें दक्षिण अफ्रीका वर्ष 2010 में बाद में शामिल हुआ।
  • मुख्य उद्देश्य: इसके प्रमुख उद्देश्यों में सदस्य देशों के बीच व्यापार और निवेश को बढ़ावा देना, संयुक्त राष्ट्र और IMF जैसे वैश्विक शासन संस्थानों में सुधार करना और डॉलर पर निर्भरता को कम करने के लिये वैकल्पिक वित्तीय प्रणालियों की स्थापना करना शामिल है।
    • इसका उद्देश्य पश्चिमी प्रभाव को संतुलित करना और अधिक बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था की वकालत करना है।
  • स्थापना और विकास: ब्रिक शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम अर्थशास्त्री जिम ओ'नील ने 2001 में किया था। इस समूह ने 2006 के G-8 आउटरीच शिखर सम्मेलन में औपचारिक सहयोग शुरू किया और वर्ष 2009 में रूस में अपना पहला आधिकारिक शिखर सम्मेलन आयोजित किया।
  • सदस्यता का विस्तार: वर्ष 2024 में मिस्र, इथियोपिया, ईरान और संयुक्त अरब अमीरात के शामिल होने से समूह का विस्तार हुआ। इंडोनेशिया 2025 में शामिल हुआ। 
    • सऊदी अरब ने सदस्यता स्वीकार कर ली है लेकिन अभी तक इसे औपचारिक रूप नहीं दिया है, जबकि अर्जेंटीना ने प्रारंभिक विचार-विमर्श के बाद सदस्यता से बाहर रहने का विकल्प चुना है।
    • वर्ष 2024 में ब्रिक्स ने पार्टनर कंट्री का दर्जा शुरू किया, जिसे प्रारंभ में बेलारूस, बोलीविया, क्यूबा, कज़ाखस्तान, मलेशिया, नाइजीरिया, थाईलैंड, युगांडा और उज़्बेकिस्तान को प्रदान किया गया। इस व्यवस्था के तहत ये देश पूर्ण सदस्यता के बिना ही शिखर सम्मेलनों में भाग ले सकते हैं।
  • शेरपा प्रणाली: ब्रिक्स शेरपा नामित नेता होते हैं, जो ब्रिक्स ब्लॉक के भीतर अपने देशों का प्रतिनिधित्व करते हैं तथा ब्रिक्स देशों के बीच संचार के प्राथमिक चैनल के रूप में कार्य करते हैं।
    • वर्तमान में ब्रिक्स में भारत का प्रतिनिधित्व शेरपा के रूप में सुधाकर दलेला कर रहे हैं।
  • न्यू डेवलपमेंट बैंक (NDB): NDB एक बहुपक्षीय विकास बैंक है जिसकी स्थापना वर्ष 2015 में ब्रिक्स देशों द्वारा उभरते बाज़ारों और विकासशील देशों (EMDC) में बुनियादी ढाँचे और सतत विकास परियोजनाओं के लिये संसाधन जुटाने के लिये की गई थी। 
  • संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देशों के लिये इसकी सदस्यता खुली है, जिसके तहत बांग्लादेश (2021), संयुक्त अरब अमीरात (2021), मिस्र (2023) और अल्जीरिया (2025) नए सदस्यों के रूप में शामिल हुए हैं।
  • न्यू डेवलपमेंट बैंक (NDB) की प्रारंभिक अधिकृत पूंजी 100 अरब अमेरिकी डॉलर निर्धारित की गई है। ब्रिक्स के पाँचों संस्थापक सदस्यों के पास समान मतदान हिस्सेदारी है, स्थापना के समय प्रत्येक के पास 20% पूंजी थी तथा नए सदस्यों के शामिल होने पर भी उन्हें संस्था के मतदान अधिकारों का कम-से-कम 55% हिस्सा बरकरार रखने की गारंटी प्राप्त है।
  • महत्त्व: ब्रिक्स विश्व की लगभग 45% आबादी का प्रतिनिधित्व करता है तथा वैश्विक GDP का 37.3% हिस्सा (क्रय शक्ति समता के संदर्भ में) रखता है, जो सामूहिक रूप से G7 (29.3%) की आर्थिक हिस्सेदारी से अधिक है। 
  • प्रमुख पहल: प्रमुख पहलों में न्यू डेवलपमेंट बैंक (NDB, 2014), कंटिंजेंट रिज़र्व अरेंजमेंट (CRA), ब्रिक्स ग्रेन एक्सचेंज और विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार (STI) फ्रेमवर्क प्रोग्राम (2015) शामिल हैं।

बहुपक्षीय संस्थानों के प्रति बढ़ते अविश्वास के इस युग में ब्रिक्स ने अपनी प्रासंगिकता किस प्रकार बढ़ाई है?

  • बहुपक्षीय गतिरोध के लिये व्यावहारिक प्रतिक्रिया: विश्व व्यापार संगठन (WTO) और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में गतिरोध के बीच ब्रिक्स ने खाद्य सुरक्षा (ब्रिक्स अनाज विनिमय), डिजिटल शासन (ब्रिक्स रैपिड सूचना सुरक्षा चैनल), प्रौद्योगिकी साझाकरण (STI फ्रेमवर्क), कोविड-19 के दौरान वैक्सीन की समानता और NDB के माध्यम से जलवायु वित्त में कार्यात्मक सहयोग के माध्यम से अपनी प्रासंगिकता को बढ़ाया है।
  • प्रतिनिधित्व में वृद्धि: इंडोनेशिया के शामिल होने और ब्रिक्स भागीदार-देश मॉडल के साथ इस समूह ने वैश्विक दक्षिण में अपनी उपस्थिति का विस्तार किया है, जिससे सीमित क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व की आलोचनाओं का खंडन करते हुए संस्थागत अनुकूलता को बनाए रखा जा सके।
  • भौतिक, आर्थिक और ऊर्जा महत्त्व: वैश्विक जनसंख्या के लगभग 45% और विश्व GDP (PPP) के 35% से अधिक का प्रतिनिधित्व करने वाला ब्रिक्स, ईरान, यूएई और (संभावित रूप से) सऊदी अरब जैसे ऊर्जा-समृद्ध सदस्यों के समर्थन से वैश्विक विकास विमर्श, ऊर्जा बाज़ारों और मूल्य निर्धारण नीतियों पर अपना प्रभाव लगातार बढ़ा रहा है।
  • पश्चिम-नेतृत्व वाले ढाँचों के संस्थागत विकल्प: न्यू डेवलपमेंट बैंक और CRA IMF-केंद्रित शर्तों से बाहर विकास, जलवायु तथा तरलता समर्थन प्रदान करते हैं, जिससे BRICS एक परामर्शात्मक मंच से आगे बढ़कर समाधान-केंद्रित, विश्वसनीय संस्थागत प्लेटफॉर्म के रूप में विकसित हो रहा है।
  • बहुध्रुवीय विमर्श और कूटनीतिक अनुकूलनशीलता: कोविड-19 और यूक्रेन युद्ध जैसे संकटों के दौरान संवाद बनाए रखते हुए, स्वयं को अधिक न्यायसंगत बहुध्रुवीय व्यवस्था के समर्थक के रूप में स्थापित करके BRICS उन ग्लोबल साउथ देशों के साथ सामंजस्य स्थापित करता है, जो भू-राजनीतिक ध्रुवीकरण के बीच रणनीतिक स्वायत्तता तथा गैर-संरेखित कूटनीतिक क्षेत्र की तलाश में हैं।

BRICS के प्रभावी कार्यकरण में बाधा डालने वाली प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?

चुनौती क्षेत्र

                                        विवरण 

भू-राजनीतिक और रणनीतिक मतभेद

  • सदस्य देशों के रणनीतिक हितों में टकराव है (जैसे भारत–चीन सीमा विवाद, भारत–अमेरिका संबंध बनाम रूस–चीन गठजोड़), जिससे सुरक्षा, व्यापार और वैश्विक शासन सुधारों पर सहमति बनाना जटिल हो जाता है।
  • चीन, भारत और रूस ग्लोबल साउथ के नेतृत्व को लेकर आंशिक रूप से भिन्न तथा परस्पर प्रतिस्पर्द्धी दृष्टिकोण रखते हैं, जिसके कारण BRICS के एजेंडा, प्रतिनिधित्व और भविष्य की दिशा को लेकर सूक्ष्म स्तर पर प्रतिस्पर्द्धा दिखाई देती है।
  • BRICS में लोकतंत्र, मानवाधिकार और शासन पर आम सहमति का अभाव है, जिससे यह पश्चिमी संस्थानों के वास्तविक विकल्प के रूप में सीमित रह जाता है।

बाह्य दबाव और राजनीतिक दबाव

  • BRICS को विशेष रूप से डी-डॉलरीकरण के प्रयासों को लेकर अमेरिका जैसे देशों से प्रत्यक्ष बाह्य दबाव का सामना करना पड़ता है। दंडात्मक परिणामों, शुल्क और सदस्यों के गठबंधनों की आलोचना संबंधी चेतावनियाँ दर्शाती हैं कि BRICS में भागीदारी भू-राजनीतिक दबाव को आकर्षित करती है, जिससे पश्चिमी संबंधों के साथ समझौते करने पड़ते हैं।
  • डी-डॉलरीकरण की अवधारणाएँ मज़बूत हैं, लेकिन व्यावहारिक विकल्प (साझा भुगतान प्रणालियाँ, आरक्षित मुद्राएँ) अभी भी विखंडित हैं और बाज़ारों का पर्याप्त विश्वास हासिल नहीं कर पाई हैं।

आर्थिक असमानता

  • चीन BRICS के कुल GDP का लगभग 70% योगदान देता है, जिससे प्रभाव, निर्णय-निर्माण और संसाधन योगदान में असंतुलन उत्पन्न होता है तथा समानता के बजाय वर्चस्व की धारणा बनती है।

संस्थागत अविकसितता

  • NDB और CRA जैसी प्रमुख संस्थाएँ IMF तथा विश्व बैंक की तुलना में पैमाने एवं संचालन क्षमता में सीमित बनी हुई हैं।

विस्तार–सामंजस्य का द्वंद्व

  • वर्ष 2024 के बाद हुए विस्तार (मिस्र, इथियोपिया, ईरान, यूएई, इंडोनेशिया) से फोकस के कमज़ोर पड़ने, उप-गुटों के बनने और विविध प्राथमिकताओं के कारण निर्णय-निर्माण की गति धीमी होने का जोखिम है।
  • BRICS के पास सामूहिक सुरक्षा ढाँचे का अभाव है, जिससे कठोर सुरक्षा मुद्दों और संकट प्रबंधन पर इसकी विश्वसनीयता सीमित रहती है।

BRICS अपनी प्रभावशीलता और रणनीतिक प्रभाव को मज़बूत करने के लिये कौन-से कदम उठा सकता है?

  • संस्थागत और वित्तीय सुदृढ़ीकरण: BRICS को एकीकृत डिजिटल भुगतान प्लेटफॉर्म (जैसे ब्रिक्स पे) को कार्यान्वित करना चाहिये, न्यू डेवलपमेंट बैंक (NDB) के माध्यम से स्थानीय मुद्राओं में ऋण देने का विस्तार करना चाहिये तथा हरित ऊर्जा और रणनीतिक क्षेत्रों के लिये समर्पित कोष स्थापित करने चाहिये, ताकि स्विफ्ट, अमेरिकी डॉलर और IMF-केंद्रित वित्तीय चैनलों पर निर्भरता कम की जा सके।
  • व्यापार एकीकरण और आपूर्ति-शृंखला स्थिरीकरण: शुल्क युक्तिकरण, मानकों की पारस्परिक मान्यता और निर्बाध लॉजिस्टिक्स पर आधारित एक BRICS साझा बाज़ार ढाँचा, साथ ही BRICS अनाज विनिमय के क्रियान्वयन से खाद्य आपूर्ति को स्थिर किया जा सकेगा तथा औषधि एवं खनिज जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में व्यापार को सुदृढ़ किया जा सकेगा।
  • समन्वित कूटनीति और ग्लोबल साउथ के साथ समन्वय: वैश्विक शासन सुधारों पर BRICS के साझा और संस्थागत रुख को औपचारिक रूप प्रदान करना, क्षेत्रीय संघर्षों (जैसे सूडान, हैती) के लिये संकट-कूटनीति तंत्र विकसित करना तथा अफ्रीकी संघ एवं  आसियान जैसे समूहों के साथ BRICS+ संवाद को संस्थागत बनाना, दक्षिण–दक्षिण सहयोग और BRICS के कूटनीतिक प्रभाव को और मज़बूत करेगा।
  • नीति क्रियान्वयन के लिये स्थायी संस्थागत ढाँचा: एक सशक्त, तकनीकज्ञ-नेतृत्व वाले BRICS सचिवालय की स्थापना से घूर्णनशील अध्यक्षताओं के बावजूद नीतिगत निरंतरता सुनिश्चित होगी, क्रियान्वयन की निगरानी हो सकेगी और शिखर सम्मेलनों की घोषणाओं को मापनीय परिणामों में बदला जा सकेगा, जिससे समूह की कार्यान्वयन-कमी को दूर किया जा सकेगा।
  • संरक्षण एवं  मूल्य-शृंखला शक्ति के माध्यम से रणनीतिक स्वायत्तता: सामूहिक कानूनी एवं वित्तीय सुरक्षा तंत्र (जैसे संयुक्त परिसंपत्ति-संरक्षण कोष) को परिष्करण, प्रसंस्करण, लॉजिस्टिक्स और मानक-निर्धारण जैसे मूल्य-शृंखला खंडों में समन्वित निवेश के साथ जोड़ने से प्रतिबंधों के प्रति अनुकूलन बढ़ेगा तथा BRICS को केवल व्यापार समन्वय से आगे बढ़ाकर संरचनात्मक आर्थिक शक्ति के स्तर तक ले जाया जा सकेगा।

निष्कर्ष:

BRICS बहुध्रुवीयता की पैरवी करने वाला एक महत्त्वपूर्ण मंच बनकर उभरा है, जो अपनी आर्थिक क्षमता और संस्थागत नवाचार का प्रभावी उपयोग करता है। इसकी भविष्य की प्रासंगिकता आंतरिक असमानताओं और बाह्य दबावों को पार करते हुए ग्लोबल साउथ के लिये ठोस तथा परिणामोन्मुख सहयोग प्रदान करने पर निर्भर करेगी।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. पारंपरिक पश्चिम-प्रभुत्व वाले बहुपक्षीय संस्थानों के प्रतिरोधक के रूप में BRICS की भूमिका की समालोचनात्मक समीक्षा कीजिये। इसकी प्रमुख उपलब्धियाँ और सीमाएँ क्या हैं?

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

1. BRICS क्या है?
BRICS उभरती अर्थव्यवस्थाओं ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका का एक सहयोगात्मक अंतर-सरकारी संगठन है, जिसका उद्देश्य आर्थिक सहयोग और वैश्विक प्रभाव को बढ़ाना है।

2. वर्ष 2024–2025 में BRICS में किन देशों ने प्रवेश किया?
मिस्र, इथियोपिया, ईरान, यूएई और इंडोनेशिया ने BRICS में प्रवेश किया, जिससे BRICS+ के तहत समूह की पहुँच बढ़ी तथा सऊदी अरब की सदस्यता लंबित है।

3. BRICS के प्रमुख वित्तीय संस्थान कौन-कौन से हैं?
न्यू डेवलपमेंट बैंक (NDB) और कंटिन्जेंट रिज़र्व अरेंजमेंट (CRA) IMF/विश्व बैंक के विकल्प प्रदान करते हैं, स्थानीय मुद्रा में व्यापार तथा वित्तीय स्वायत्तता को बढ़ावा देते हैं।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)

प्रिलिम्स 

प्रश्न: निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2016)

  1. न्यू डेवलपमेंट बैंक की स्थापना APEC द्वारा की गई है।
  2.  न्यू डेवलपमेंट बैंक का मुख्यालय शंघाई में है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2 

उत्तर: (b) 


प्रश्न. हाल ही में चर्चा में रहा 'फोर्टालेजा डिक्लेरेशन' किससे संबंधित है? (2015) 

(a) आसियान
(b) ब्रिक्स
(c) ओईसीडी
(d) विश्व व्यापार संगठन

उत्तर: (b)


प्रश्न. BRICS के रूप में ज्ञात देशों के समूह के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2014)

  1. BRICS का पहला शिखर सम्मेलन वर्ष 2009 में रिओ डी जेनेरियो में हुआ था।
  2.  दक्षिण अफ्रीका BRICS समूह में शामिल होने वाला अंतिम देश था।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (b)