क्रोएशिया
स्रोत: पी.आई.बी
भारत के प्रधानमंत्री ने वर्ष 2025 में कनाडा में आयोजित G7 शिखर सम्मेलन में भाग लेने के बाद अपनी तीन देशों की यात्रा (साइप्रस, कनाडा और क्रोएशिया) के अंतर्गत क्रोएशिया के राष्ट्रपति से मुलाकात की।
क्रोएशिया (क्रोएशिया गणराज्य)
- स्थान: क्रोएशिया मध्य और दक्षिण-पूर्व यूरोप के संगम पर एड्रियाटिक सागर के किनारे स्थित है।
- इसकी स्थलीय सीमा स्लोवेनिया, हंगरी, सर्बिया, बोस्निया और हेर्ज़ेगोविना, मोंटेनेग्रो के साथ तथा समुद्री सीमा इटली के साथ लगती है।
- ऐतिहासिक रूप से क्रोएशिया यूगोस्लाविया का हिस्सा था, जब तक कि उसने वर्ष 1991 में स्वतंत्रता प्राप्त नहीं कर ली। इसके बाद देश में पुनर्निर्माण और लोकतांत्रिक सुधारों की प्रक्रिया शुरू हुई।
- भूगोल और जलवायु: क्रोएशिया में उपजाऊ मैदान, पहाड़ी और पर्वतीय क्षेत्र (जिसमें दीनारिक आल्प्स शामिल हैं, जिनमें दिनारा पीक की ऊँचाई 1,831 मीटर है) तथा एक ऊबड़-खाबड़ तटीय क्षेत्र शामिल हैं।
- इसके अंतर्देशीय क्षेत्र में महाद्वीपीय जलवायु विद्यमान है, जिसमें ग्रीष्म ऋतु और शीत ऋतु का अनुभव होता है, जबकि तटवर्ती क्षेत्र में भूमध्यसागरीय जलवायु पाई जाती है, जिसमें मृदु शीतकाल एवं शुष्क ग्रीष्मकाल होता है।
- नदियाँ और झीलें: प्रमुख नदियों में डेन्यूब, सावा, द्रवा, क्रका, कूपा, ऊना और सेटीना शामिल हैं तथा प्रमुख झीलें प्लिटविस झीलें (यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल) एवं व्रना झील हैं।
- सावा नदी पर स्थित इसकी राजधानी ज़ाग्रेब प्रशासनिक और आर्थिक केंद्र है।
- यह यूरोपीय संघ और NATO दोनों का सदस्य है।
और पढ़ें: भारत-क्रोएशिया संबंध
कीट-आधारित पशु चारा
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
भारत पारंपरिक पशु चारे के स्थान पर कीट-आधारित पशु चारे को एक सतत् (स्थायी) और जलवायु-अनुकूल विकल्प के रूप में बढ़ावा दे रहा है। इसका उद्देश्य रोगाणुरोधी प्रतिरोध (AMR) से निपटना और पशुपालन से होने वाले पर्यावरणीय प्रभाव को कम करना है।
- इसे ICAR द्वारा सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ ब्रैकिशवाटर एक्वाकल्चर (CIBA) और सेंट्रल मरीन फिशरीज रिसर्च इंस्टीट्यूट जैसे अनुसंधान संस्थानों के सहयोग से शुरू किया गया है।
कीट-आधारित पशु चारा क्या है?
- परिचय: कीट-आधारित पशु चारा एक प्रोटीन-समृद्ध विकल्प है, जो ब्लैक सोल्जर मक्खी (Hermetia illucens), झींगुर (Crickets), स्मॉल मीलवर्म (Alphitobius) और जमैका फील्ड झींगुर (Gryllus assimilis) जैसे कीटों से प्राप्त किया जाता है।
- इसका उपयोग पशुधन और जलीय कृषि में पोषण के एक स्थायी तथा चक्रीय स्रोत के रूप में किया जाता है।
- कार्य सिद्धांत: ब्लैक सोल्जर फ्लाई जैसे कीटों के लार्वा कृषि और खाद्य अपशिष्ट को तेज़ी से उच्च-प्रोटीन बायोमास (जिसमें प्रोटीन की मात्रा 75% तक हो सकती है) में केवल 12–15 दिनों के भीतर परिवर्तित कर देते हैं, जिससे त्वरित और किफायती पशु चारे का उत्पादन संभव होता है।
- इस प्रक्रिया से उत्पन्न प्रोटीन पशुओं के आँत संबंधी स्वास्थ्य को बेहतर बनाते हैं, जिससे एंटीबायोटिक्स की आवश्यकता कम हो जाती है और रोगाणुरोधी प्रतिरोध (AMR) से लड़ने में सहायता मिलती है।
- बचा हुआ कीट मल (frass) एक जैविक उर्वरक के रूप में कार्य करता है, जो परिपूर्ण चक्र वाली सतत् कृषि को समर्थन प्रदान करता है।
- महत्त्व:
- पोषण एवं आर्थिक मूल्य: कीट-आधारित चारा लगभग 75% तक प्रोटीन के साथ-साथ आवश्यक वसा, ज़िंक, कैल्शियम, आयरन और फाइबर से भरपूर होता है।
- यह सोया या मछली के भोजन की तुलना में बेहतर पाचन क्षमता प्रदान करता है, साथ ही यह लागत प्रभावी भी है। कम भूमि, जल और अन्य संसाधनों की आवश्यकता के कारण यह बड़े पैमाने पर पशुपालन और जलीय कृषि के लिये उपयुक्त विकल्प है।
- खाद्य सुरक्षा को समर्थन और AMR से मुकाबला: वर्ष 2050 तक मांस उत्पादन के दोगुना होने की संभावना के साथ, कीट-आधारित चारा FAO के वैश्विक खाद्य मांग में 70% वृद्धि के अनुमान के अनुरूप है। इसकी आँत स्वास्थ्य में सहायक विशेषताएँ एंटीबायोटिक्स पर निर्भरता को कम करती हैं, जिससे पशुपालन में रोगाणुरोधी प्रतिरोध (AMR) से निपटने में मदद मिलती है।
- पर्यावरणीय स्थिरता को बढ़ावा: कीट पालन से ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन में कमी आती है, भूमि क्षरण घटता है और पारंपरिक चारा स्रोतों की तुलना में इसका पर्यावरणीय प्रभाव भी कम होता है।
- यह जलवायु-स्मार्ट कृषि का समर्थन करता है और प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण में सहायक होता है।
- परिपूर्ण अर्थव्यवस्था को बढ़ावा: कीटों को जैविक अपशिष्ट (जैसे—कृषि और खाद्य अपशिष्ट) पर पाला जाता है, जो इसे उच्च गुणवत्ता वाले प्रोटीन और वसा में परिवर्तित कर देते हैं।
- बचा हुआ कीट मल (फ्रास) जैविक उर्वरक के रूप में कार्य करता है, जिससे एक बंद लूप, शून्य-अपशिष्ट उत्पादन मॉडल संभव होता है।
- वैश्विक स्वीकृति एवं भारतीय प्रोत्साहन: कीट-आधारित पशु चारे को कुक्कुट (मुर्गीपालन/पोल्ट्री), जलीय कृषि और पशुधन में उपयोग के लिये 40 से अधिक देशों में पहले से ही मंज़ूरी दी गई है।
- भारत में, ICAR और लूपवॉर्म व अल्ट्रा न्यूट्री इंडिया जैसी स्टार्टअप कंपनियाँ झींगा, सीबास, कुक्कुट (मुर्गीपालन/पोल्ट्री) और मवेशियों के लिये इसका परीक्षण कर रही हैं, जो देश में इसकी बढ़ती व्यापकता तथा अपनाए जाने की प्रवृत्ति को दर्शाता है।
- पोषण एवं आर्थिक मूल्य: कीट-आधारित चारा लगभग 75% तक प्रोटीन के साथ-साथ आवश्यक वसा, ज़िंक, कैल्शियम, आयरन और फाइबर से भरपूर होता है।
रोगाणुरोधी प्रतिरोध (AMR) क्या है?
- परिचय: AMR तब होता है जब बैक्टीरिया, वायरस, कवक और परजीवी रोगाणुरोधी दवाओं पर प्रतिक्रिया नहीं करते हैं।
- इससे एंटीबायोटिक्स और अन्य उपचार अप्रभावी हो जाते हैं, जिससे संक्रमण का उपचार कठिन हो जाता है तथा गंभीर बीमारी, विकलांगता और मृत्यु का खतरा बढ़ जाता है।
- AMR की व्यापकता: AMR शीर्ष वैश्विक स्वास्थ्य और विकास खतरों में से एक है। वर्ष 2019 में, बैक्टीरियल AMR के कारण 1.27 मिलियन मृत्यु हुईं और वैश्विक स्तर पर 4.95 मिलियन मृत्यु हुईं।
- विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, AMR के कारण 2050 तक स्वास्थ्य देखभाल लागत में 1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अतिरिक्त वृद्धि हो सकती है तथा वर्ष 2030 तक वार्षिक सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में 1-3.4 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की हानि हो सकती है।
- भारत में सामान्य दवा प्रतिरोधी रोगजनक:
- ई. कोली (ऑंत संक्रमण): प्रतिरोध बढ़ रहा है; कार्बापेनम के प्रति संवेदनशीलता 81.4% (2017) से घटकर 62.7 % (2023) हो गई।
- क्लेबसिएला न्यूमोनिया (निमोनिया/UTI): दो प्रमुख कार्बापेनेम्स के प्रति प्रतिरोध 58.5% से घटकर 35.6% और 48% से घटकर 37.6% (2017-2023) हो गया।
- एसिनेटोबैक्टर बाउमानी (अस्पताल में संक्रमण): पहले से ही अत्यधिक दवा प्रतिरोधी कोई बड़ा परिवर्तन नहीं दिखाता है, लेकिन इसका उपचार करना कठिन बना हुआ है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्स
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग करके सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (b)
नीचे दिए गए कूट का प्रयोक कर सही उत्तर चुनिये। (a) 1 और 2 उत्तर: (b)
(a) मलेरिया प्लास्मोडियम की कई प्रजातियों के कारण होता है उत्तर: (b) |
क्षेत्रीय परिषद
स्रोत: पी.आई.बी.
चर्चा में क्यों?
केंद्रीय गृहमंत्री एवं सहकारिता मंत्री ने उत्तर प्रदेश के वाराणसी में मध्य क्षेत्रीय परिषद की 25वीं बैठक की अध्यक्षता की, जिसका आयोजन उत्तर प्रदेश सरकार के सहयोग से अंतर-राज्य परिषद सचिवालय द्वारा किया गया।
क्षेत्रीय परिषदें क्या हैं?
- परिचय: क्षेत्रीय परिषदें वैधानिक निकाय हैं (संवैधानिक नहीं), जिनकी स्थापना राज्य पुनर्गठन अधिनियम, 1956 के तहत राज्यों के बीच सहकारी कार्य को बढ़ावा देने और एक स्वस्थ अंतर-राज्यीय तथा केंद्र-राज्य वातावरण बनाने के लिये एक उच्च-स्तरीय सलाहकार मंच के रूप में की गई है।
- क्षेत्रीय परिषदों का विचार पहली बार पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू द्वारा 1956 में राज्य पुनर्गठन आयोग (फज़ल अली आयोग, 1953) की रिपोर्ट पर चर्चा के दौरान प्रस्तावित किया गया था।
- राज्य पुनर्गठन अधिनियम, 1956 की धारा 15 से 22 के अंतर्गत पाँच क्षेत्रीय परिषदों की स्थापना की गई।
- उत्तर-पूर्वी क्षेत्र के लिये एक अलग परिषद है, जिसे पूर्वोत्तर परिषद कहा जाता है। इसकी स्थापना वर्ष 1972 में, पूर्वोत्तर परिषद अधिनियम, 1972 के अंतर्गत की गई थी।
- संघटन:
क्षेत्रीय परिषद |
राज्य |
उत्तरी क्षेत्रीय परिषद |
हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर, पंजाब, राजस्थान, दिल्ली, चंडीगढ़ |
मध्य क्षेत्रीय परिषद |
उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्तराखंड |
पूर्वी क्षेत्रीय परिषद |
बिहार, झारखंड, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, सिक्किम |
पश्चिमी क्षेत्रीय परिषद |
राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा, दादरा और नगर हवेली, दमन एवं दीव |
दक्षिणी क्षेत्रीय परिषद |
आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, पुदुचेरी |
- संगठनात्मक संरचना:
- अध्यक्ष: सभी पाँच क्षेत्रीय परिषदों के लिये केंद्रीय गृहमंत्री अध्यक्ष होते हैं। वे पूर्वोत्तर परिषद (NEC) के पदेन अध्यक्ष भी होते हैं।
- उपाध्यक्ष: किसी एक सदस्य राज्य के मुख्यमंत्री होते हैं, जिन्हें वार्षिक क्रमानुसार के आधार पर चुना जाता है।
- सदस्य: इसके सदस्यों में सदस्य राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्यमंत्री, उपराज्यपाल या प्रशासक शामिल होते हैं।
- इसके अतिरिक्त, प्रत्येक सदस्य राज्य से राज्यपाल दो मंत्रियों को परिषद के सदस्य के रूप में नामित करता है।
- सलाहकार: नीति आयोग (पूर्व में योजना आयोग) से एक नामित व्यक्ति, सदस्य राज्यों के मुख्य सचिव और विकास आयुक्त।
- प्रत्येक क्षेत्रीय परिषद में एक स्थायी समिति होती है, जिसमें सदस्य राज्यों के मुख्य सचिव शामिल होते हैं। राज्य द्वारा प्रस्तावित मुद्दों पर सबसे पहले इस समिति द्वारा चर्चा की जाती है और फिर अनसुलझे मामलों को आगे के विचार-विमर्श के लिये पूर्ण क्षेत्रीय परिषद के समक्ष रखा जाता है।
- उद्देश्य और कार्य: क्षेत्रीय परिषदें दो या अधिक राज्यों या केंद्र और राज्यों से जुड़े मुद्दों पर बातचीत तथा समन्वय के लिये एक संरचित मंच के रूप में कार्य करती हैं एवं आपसी समझ व सहयोग को बढ़ावा देती हैं।
- यद्यपि ये परामर्शदात्री प्रकृति के हैं, तथापि ये सहकारी संघवाद के प्रमुख साधन बन गये हैं तथा पिछले ग्यारह वर्षों में इनकी 61 बैठकें हो चुकी हैं।
- वे निम्नलिखित विषयों पर चर्चा करते हैं और संबोधित करते हैं:
- यौन अपराधों की त्वरित जाँच और फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट (FTSC) के कार्यान्वयन जैसे मुद्दे।
- हर गाँव में भौतिक बैंकिंग के माध्यम से वित्तीय समावेशन।
- आपातकालीन प्रतिक्रिया सहायता प्रणाली (ERSS-112) का क्रियान्वयन।
- पोषण, शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली, शहरी नियोजन और सहकारी क्षेत्र के विकास जैसे क्षेत्रीय मुद्दे।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित में से किस निकाय/किन निकायों का संविधान में उल्लेख नहीं है? (2013)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (d) मेन्स:प्रश्न: केंद्र सरकार ने केंद्र-राज्य संबंधों के क्षेत्र में हाल ही में क्या बदलाव किये हैं? संघवाद को मज़बूत करने के लिये तथा केंद्र और राज्यों के बीच संबंध मज़बूत करने के लिये उपाय सुझाइये। (2024) |
दुर्लभ दाता रजिस्ट्री का ई-रक्त कोष के साथ एकीकरण
स्रोत: द हिंदू
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय दुर्लभ रक्त प्रकारों (जैसे Bombay, Rh-null, P-Null) तक वास्तविक समय पर पहुँच को सक्षम करने और रक्त बैंकों के बीच राष्ट्रव्यापी समन्वय में सुधार करने के लिये भारतीय दुर्लभ दाता रजिस्ट्री (Rare Donor Registry of India- RDRI) को ई-रक्त कोष के साथ एकीकृत कर रहा है।
भारतीय दुर्लभ दाता रजिस्ट्री (RDRI) क्या है?
- दुर्लभ रक्त समूह दाताओं का राष्ट्रीय डेटाबेस: भारतीय दुर्लभ दाता रजिस्ट्री (RDRI) दुर्लभ रक्त समूह दाताओं का राष्ट्रीय डेटाबेस है।
- इसे भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद-राष्ट्रीय इम्यूनोहेमेटोलॉजी संस्थान (ICMR-NIIH) द्वारा अग्रणी चिकित्सा संस्थानों के सहयोग से विकसित किया गया है।
- उद्देश्य एवं आवश्यकता: RDRI उन रोगियों को सहायता प्रदान करता है, जिन्हें विशेष रूप से मिलान वाले रक्ताधान की आवश्यकता होती है, विशेष रूप से वे जो थैलेसीमिया, सिकल सेल रोग और अन्य दुर्लभ स्थितियों से पीड़ित होते हैं।
- दायरा/स्कोप तथा कवरेज: इस रजिस्ट्री में 4,000 से अधिक जाँचे गए रक्तदाताओं को शामिल किया गया है, जिनका परीक्षण 300 से अधिक दुर्लभ रक्त चिह्नकों (मार्कर्स) के लिये किया गया है।
- यह ऐसे रक्त समूहों पर केंद्रित हैं, जिनमें या तो उच्च आवृत्ति वाले प्रतिजन (Antigens) अनुपस्थित होते हैं या जिनमें असामान्य प्रतिजन संयोजन पाए जाते हैं।
- दुर्लभ रक्त समूह वाले लोगों के लिये महत्त्व: दुर्लभ रक्त समूहों का मिलान कर पाना कठिन होता है। असंगत रक्त चढ़ाने से एलोइम्यूनाइज़ेशन (alloimmunisation) हो सकता है, जिसमें रोगी संक्रमित रक्त के विरुद्ध एंटीबॉडी विकसित कर लेता है, जिससे भविष्य के उपचार जटिल हो जाते हैं।
ई-रक्त कोष क्या है?
- परिचय: ई-रक्त कोष एक केंद्रीकृत डिजिटल रक्त बैंक प्रबंधन प्रणाली है, जिसे राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत सी-डैक (CDAC) द्वारा विकसित किया गया है।
- यह पूरे भारत में रक्त की उपलब्धता, रक्तदान शिविरों और रक्त बैंकों की वास्तविक समय (रियल-टाइम) जानकारी प्रदान करता है।
- यह प्लेटफॉर्म रक्तदाताओं, अस्पतालों और रक्त बैंकों को आपस में जोड़ता है, जिससे कुशल निगरानी (ट्रैकिंग) और सुरक्षित रक्त संक्रमण सुनिश्चित हो पाता है।
रक्त
- परिचय: रक्त एक आवश्यक द्रव है, जो पूरे शरीर में ऑक्सीजन, पोषक तत्त्व, हार्मोन तथा अपशिष्ट पदार्थों का परिवहन करता है।
- अस्थि मज्जा में निर्मित रक्त प्रतिरक्षा, उपचार और यकृत तथा वृक्क के माध्यम से अपशिष्ट निष्कासन में भी सहायता करता है। एक औसत वयस्क के शरीर में लगभग 5 लीटर रक्त होता है।
- घटक: यह 45% कोशिकाओं (लाल रक्त कोशिकाएँ, श्वेत रक्त कोशिकाएँ और प्लेटलेट्स) और 55% प्लाज़्मा से मिलकर बना होता है, जो एक तरल पदार्थ है तथा प्रोटीन, विटामिन और खनिजों का परिवहन करता है।
- रक्त प्रकार या समूह: रक्त के चार मुख्य प्रकार/समूह होते हैं- A, B, AB और O।
बॉम्बे ब्लड ग्रुप क्या है?
पढ़ने के लिये यहाँ क्लिक कीजिये: बॉम्बे ब्लड ग्रुप
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. एक विवाहित दंपति ने एक बालक को गोद लिया। इसके कुछ वर्ष उपरांत उन्हें जुड़वाँ पुत्र हुए। दंपति में एक का रक्त वर्ग AB पॉज़ीटिव है और दूसरे का O नेगीटिव है। तीनों पुत्रों में से एक का रक्त वर्ग A पॉज़ीटिव, दूसरे का B पॉज़ीटिव और तीसरे का O पॉज़ीटिव है। गोद लिये गए पुत्र का रक्त वर्ग कौन-सा है ? (2011) (a) O पॉज़ीटिव (b) A पॉज़ीटिव (C) B पॉज़ीटिव (d) उपलब्ध जानकारी के आधार पर कहा नहीं जा सकता उत्तर: (a) |
नव्या पहल
स्रोत: पी.आई.बी.
भारत सरकार ने 16 से 18 वर्ष की किशोरियों को कक्षा 10 की न्यूनतम योग्यता के साथ मुख्य रूप से गैर-पारंपरिक नौकरी की भूमिकाओं में व्यावसायिक प्रशिक्षण मुहैया कराने के लिये नव्या (युवा किशोरियों के लिये व्यावसायिक प्रशिक्षण के ज़रिये आकांक्षाओं का पोषण) योजना शुरू की है।
- परिचय: यह महिला एवं बाल विकास मंत्रालय (MWCD) और कौशल विकास एवं उद्यमिता मंत्रालय (MSDE) की एक संयुक्त पायलट पहल है।
- कवरेज: इसमें 19 राज्यों के 27 ज़िले, जिनमें आकांक्षी ज़िले और उत्तर-पूर्वी क्षेत्र के ज़िले भी शामिल हैं।
- समन्वय: यह योजना प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY) और प्रधानमंत्री विश्वकर्मा योजना जैसी योजनाओं का लाभ उठाते हुए मंत्रालयों के बीच समन्वय को औपचारिक रूप प्रदान करती है।
- महत्त्व: यह योजना विकसित भारत@2047 दृष्टि के अनुरूप है तथा महिला-नेतृत्व विकास को बढ़ावा देती है। यह एक कुशल, आत्मनिर्भर और समावेशी कार्यबल के निर्माण के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता को सुदृढ़ करती है तथा युवा किशोरियों को सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन की वाहक के रूप में स्थापित करती है।
भारत में किशोरियों के लिये अन्य पहल
- बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ (BBBP)
- महिला शक्ति केंद्र (MSK)
- सुकन्या समृद्धि योजना (SSY)
- निर्भया फंड फ्रेमवर्क
- वन स्टॉप सेंटर (OSC)
- संविधान (106वाँ संशोधन) अधिनियम, 2023
और पढ़ें: किशोरियों पर WHO का अध्ययन