भारत का परमाणु ऊर्जा उत्पादन
प्रिलिम्स के लिये:केंद्रीय बजट 2025-26, परमाणु ऊर्जा, COP 28, स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर (SMR), प्रोटोटाइप फास्ट ब्रीडर रिएक्टर (PFBR), न्यूक्लियर पावर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (NPCIL), परमाणु क्षति अधिनियम, 2010 के लिये नागरिक दायित्व, द दबावयुक्त भारी जल रिएक्टर (PHWR), यूरेनियम, परमाणु आपूर्तिकर्त्ता समूह, पूरक मुआवजे पर कन्वेंशन (CSC, 1997) मेन्स के लिये:भारत के विकास के लिये परमाणु ऊर्जा का महत्त्व और इसकी परमाणु रणनीति में प्रमुख चुनौतियाँ। एक स्थायी भविष्य के लिए आवश्यक सुधार। |
स्रोत: TH
चर्चा में क्यों?
केंद्रीय बजट 2025-26 में वर्ष 2047 तक 100 गीगावाट परमाणु ऊर्जा क्षमता का महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया गया है, जिसमें परमाणु ऊर्जा को विकसित भारत (2047) और 2070 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन प्राप्त करने में एक प्रमुख स्तंभ के रूप में स्थान दिया गया है।
- इस बदलाव के लिये मौजूदा चुनौतियों से निपटने हेतु विधायी, वित्तीय और नियामक ढाँचे में व्यापक सुधार की आवश्यकता है।
भारत अपने परमाणु ऊर्जा विकास में किस प्रकार आगे बढ़ रहा है?
- ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य: भारत ने अपना परमाणु सफर बहुत पहले शुरू कर दिया था, जब एशिया का पहला अनुसंधान रिएक्टर ‘अप्सरा’ वर्ष 1956 में और तारापुर में विद्युत रिएक्टर 1963 में स्थापित किया गया।
- वर्ष 1954 में भारत के परमाणु कार्यक्रम के शिल्पकार डॉ. होमी भाभा ने वर्ष 1980 तक 8 गीगावाट परमाणु ऊर्जा उत्पादन का लक्ष्य प्रस्तुत किया था।
- अंतर्राष्ट्रीय चुनौतियों के बावजूद भारत ने 220 मेगावाट के दबावयुक्त भारी जल रिएक्टर (PHWR) का स्वदेशीकरण सफलतापूर्वक किया, जिसे सबसे पहले राजस्थान में उपयोग किया गया और बाद में नरौरा, कैगा और काकरापार में दोहराया गया।
- वर्तमान क्षमता और भविष्य की संभावनाएँ: वर्तमान में भारत की परमाणु ऊर्जा उत्पादन क्षमता 8.18 गीगावाट है तथा वर्ष 2047 तक इसे 100 गीगावाट तक पहुँचाने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखा गया है। यह लक्ष्य भारत को विकसित राष्ट्र बनाने और वर्ष 2070 तक नेट ज़ीरो उत्सर्जन प्राप्त करने की रणनीति में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
- वैश्विक साझेदारियाँ और विकास: भारत ने COP28 घोषणा का समर्थन किया है, जिसका उद्देश्य वैश्विक परमाणु ऊर्जा क्षमता को तीन गुना बढ़ाना है। भारत फ्राँस और अमेरिका जैसे अंतरराष्ट्रीय साझेदारों के साथ सहयोग कर परमाणु ऊर्जा परियोजनाओं में तेज़ी लाने का प्रयास कर रहा है।
भारत के विकास के लिये परमाणु ऊर्जा का क्या महत्त्व है?
- ऊर्जा सुरक्षा: भारत की परमाणु ऊर्जा उसकी ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है, जो वर्ष 2047 तक चार गुना बढ़ने का अनुमान है। यह एक विश्वसनीय 24x7 विद्युत आपूर्ति प्रदान करके इस लक्ष्य को साकार करने में सहायक हो सकती है।
- स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर (SMR) और माइक्रो रिएक्टर ग्रिड निर्भरता के बिना दूरदराज के क्षेत्रों को स्वच्छ ऊर्जा प्रदान करते हैं, जबकि परमाणु विलवणीकरण तटीय क्षेत्रों में पानी की कमी से निपटने में मदद करता है।
- औद्योगिक वृद्धि का समर्थन: परमाणु रिएक्टर उन ऊर्जा-गहन उद्योगों (जैसे इस्पात, सीमेंट, डेटा सेंटर) को समर्थन दे सकते हैं जिन्हें विश्वसनीय और उच्च क्षमता वाली ऊर्जा की आवश्यकता होती है।
- SMR दूरदराज के उद्योगों, हाइड्रोजन उत्पादन और जल-शोधन (विलवणीकरण) जैसी आवश्यकताओं को भी पूरा कर सकते हैं।
- भू-राजनीतिक लाभ: कलपक्कम में प्रोटोटाइप फास्ट ब्रीडर रिएक्टर जैसी स्वदेशी प्रौद्योगिकीय प्रगति भारत की तकनीकी क्षमता को दर्शाती है, जो रणनीतिक कमज़ोरियों को कम करती है तथा वैश्विक ऊर्जा समझौतों में भारत की सौदेबाज़ी शक्ति को बढ़ाती है।
- आपदा प्रतिरोधकता: प्राकृतिक आपदाओं या भू-राजनीतिक व्यवधानों के समय परमाणु ऊर्जा एक अनुकूल आपूर्ति स्रोत प्रदान करती है। हालिया ग्रिड व्यवधानों के दौरान भी यह ऊर्जा स्रोत विश्वसनीय बना रहा है।
स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर (SMRs)
- स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर (SMRs) उन्नत परमाणु रिएक्टर होते हैं जिनकी प्रति यूनिट विद्युत उत्पादन क्षमता 300 मेगावाट (MW) तक होती है, जो पारंपरिक परमाणु रिएक्टरों की क्षमता का लगभग एक-तिहाई होती है।
- SMR की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:
- स्मॉल (Small): पारंपरिक परमाणु रिएक्टरों की तुलना में इनका आकार काफी छोटा होता है।
- मॉड्यूलर (Modular): इन्हें फैक्टरी में तैयार कर ट्रांसपोर्ट किया जा सकता है, जिससे इन्हें किसी भी स्थान पर पूर्वनिर्मित इकाइयों के रूप में स्थापित किया जा सकता है।
- रिएक्टर (Reactors): ये नाभिकीय विखंडन (Nuclear Fission) की प्रक्रिया के माध्यम से ऊष्मा उत्पन्न करते हैं, जिसे बाद में विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित किया जाता है।
- माइक्रो रिएक्टर: 1 मेगावाट से 20 मेगावाट, फ्लैटबेड ट्रक पर फिट किये जा सकते हैं, मोबाइल और तैनात करने योग्य।
- स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर (SMRs): 20 मेगावाट से 300 मेगावाट, अधिक इकाइयाँ जोड़कर बढ़ाया या घटाया जा सकता है।
- पूर्ण आकार के रिएक्टर: 300 मेगावाट से 1,000+ मेगावाट, विश्वसनीय, उत्सर्जन-मुक्त बेसलोड विद्युत् प्रदान करते हैं।
भारत में परमाणु ऊर्जा उत्पादन के समक्ष क्या चुनौतियाँ हैं?
- विधायी और विनियामक बाधाएँ: परमाणु ऊर्जा अधिनियम, 1962 परमाणु ऊर्जा उत्पादन को पूरी तरह से सरकार के लिये आरक्षित करता है तथा भारतीय परमाणु ऊर्जा निगम लिमिटेड (NPCIL) एकमात्र संचालक है, जिससे निजी क्षेत्र की भागीदारी सीमित हो जाती है।
- परमाणु क्षति के लिये नागरिक दायित्व अधिनियम, 2010 (CLNDA) ऑपरेटरों (संचालकों) के साथ-साथ आपूर्तिकर्त्ताओं पर भी दायित्व प्रदान करता है, जिससे अमेरिका और फ्राँस जैसे विदेशी देश भारत में निवेश करने से हिचकते हैं।
- परमाणु ऊर्जा नियामक बोर्ड (AERB), जो परमाणु ऊर्जा विभाग के अधीनस्थ है, को पूर्ण स्वायत्तता प्राप्त नहीं है।
- वित्तीय और लागत संबंधी चुनौतियाँ: स्वदेशी दबावयुक्त भारी जल रिएक्टर (PHWR) की लागत लगभग 2 मिलियन अमेरिकी डॉलर प्रति मेगावाट है, जो कि कोयला आधारित संयंत्रों की तुलना में लगभग दोगुनी है; विदेशी रिएक्टरों की लागत इससे भी अधिक है।
- निम्न कार्बन उत्सर्जन होने के बावजूद, परमाणु ऊर्जा को "नवीकरणीय" के रूप में वर्गीकृत नहीं किया गया है, जिससे यह कर लाभ और हरित वित्तपोषण साधनों के लिये अयोग्य हो जाती है।
- ईंधन आपूर्ति की बाधाएँ: भारत में यूरेनियम भंडार सीमित हैं और परमाणु आपूर्तिकर्त्ता समूह (NSG) की सदस्यता न होने के कारण ईंधन आपूर्ति में कठिनाइयाँ आती हैं। वर्ष 2008 में NSG छूट मिलने के बावजूद, फ्राँस और अमेरिका के साथ ईंधन आपूर्ति समझौतों में प्रगति धीमी रही है।
- अपशिष्ट प्रबंधन संबंधी समस्याएँ: भारत में परमाणु अपशिष्ट प्रबंधन के लिये कुछ व्यवस्थाएँ मौजूद हैं, लेकिन उच्च-स्तरीय परमाणु अपशिष्ट के लिये अब तक कोई स्थायी गहराई वाला भू-वैज्ञानिक भंडारण स्थल विकसित नहीं किया गया है।
पढ़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: परमाणु क्षति के लिये नागरिक दायित्व अधिनियम, 2010
पढ़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: परमाणु क्षति के लिये पूरक क्षतिपूर्ति पर कन्वेंशन (CSC), 1997
भारत में परमाणु ऊर्जा उत्पादन को बढ़ावा देने के लिये क्या कदम उठाए जा सकते हैं?
- विधायी एवं विनियामक सुधार: परमाणु ऊर्जा उत्पादन में निजी भागीदारी की अनुमति देने के लिये परमाणु ऊर्जा अधिनियम (1962) में संशोधन तथा स्पष्ट स्वामित्व मॉडल स्थापित करना।
- आपूर्तिकर्त्ता दायित्व को सीमित करने के लिये CLNDA (2010) को संशोधित करना और निवेशक विश्वास को बढ़ाने के लिये पूरक मुआवजे पर कन्वेंशन (CSC, 1997) के साथ संरेखित करना।
- पारदर्शी सुरक्षा निगरानी के लिये AERB को एक वैधानिक प्राधिकरण के रूप में स्थापित करना।
- वित्तपोषण और निवेश प्रोत्साहन: ग्रीन बॉण्ड, कर प्रोत्साहन और कम लागत वाले जलवायु वित्तपोषण तक पहुँच को सक्षम करने के लिये परमाणु ऊर्जा को "नवीकरणीय ऊर्जा" के रूप में वर्गीकृत करना।
- भारतीय नियंत्रण बनाए रखने तथा संयुक्त उद्यमों को बढ़ावा देने के लिये परमाणु परियोजनाओं में 49% तक FDI की अनुमति दी जाए।
- रिएक्टरों की तैनाती में तेज़ी लाना: 220 मेगावाट PHWR डिज़ाइन का मानकीकरण करें ताकि इसे ‘भारत SMR’ के रूप में उपयोग में लाया जा सके, जिससे संयंत्र निर्माण का समय कम हो और वर्ष 2033 तक 5 SMR परिचालन में लाए जा सकें। साथ ही, NPCIL की 700 मेगावाट PHWR योजनाओं को तेज़ी से आगे बढ़ाया जाए ताकि बड़े पैमाने पर परमाणु ऊर्जा उत्पादन सुनिश्चित किया जा सके।
- फ्राँस के साथ जैतापुर परमाणु ऊर्जा संयंत्र (JNPP) सौदे को तेज़ी से आगे बढ़ाना तथा आंध्र प्रदेश के कोव्वाडा में AP1000 रिएक्टरों के लिये अमेरिकी वार्ता को पुनर्जीवित करना।
- ईंधन सुरक्षा और आपूर्ति शृंखला: कनाडा, कज़ाखस्तान और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के साथ दीर्घकालिक समझौतों के माध्यम से यूरेनियम और थोरियम की आपूर्ति सुनिश्चित की जाए। साथ ही, थोरियम रिएक्टरों पर अनुसंधान एवं विकास (R&D) को तेज़ किया जाए, विशेष रूप से BHAVINI के प्रोटोटाइप फास्ट ब्रीडर रिएक्टर (PFBR) जैसे परियोजनाओं को प्राथमिकता दी जाए।
- प्रमुख तकनीकों के स्वदेशीकरण के लिये परमाणु औद्योगिक पार्कों की स्थापना की जाए तथा स्थानीय आपूर्ति शृंखला को विकसित किया जाए, जिससे भारत में परमाणु ऊर्जा क्षेत्र की आत्मनिर्भरता को बढ़ावा मिल सके।
निष्कर्ष:
भारत की ऊर्जा सुरक्षा, औद्योगिक विकास और जलवायु लक्ष्यों के लिये परमाणु ऊर्जा अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। वर्ष 2047 तक 100 गीगावाट परमाणु ऊर्जा क्षमता हासिल करने के लिये निजी क्षेत्र की भागीदारी, विधायी सुधार और वैश्विक सहयोग आवश्यक होंगे। दायित्व कानूनों, वित्तीय बाधाओं और ईंधन आपूर्ति की चुनौतियों का समाधान करना इस दिशा में निर्णायक सिद्ध होगा। नीतिगत स्तर पर रणनीतिक परिवर्तन के माध्यम से परमाणु ऊर्जा को "विकसित भारत" (Viksit Bharat) और नेट-ज़ीरो उत्सर्जन प्रतिबद्धताओं का एक मज़बूत आधार बनाया जा सकता है।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: भारत में परमाणु ऊर्जा उत्पादन के विस्तार में प्रमुख चुनौतियों का उल्लेख कीजिये तथा संभावित समाधान सुझाइए। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. भारत में, क्यों कुछ परमाणु रिएक्टर "आई. ए. ई. ए. सुरक्षा उपायों" के अधीन रखे जाते हैं जबकि अन्य इस सुरक्षा के अधीन नहीं रखे जाते? (2020) (a) कुछ यूरेनियम का प्रयोग करते हैं और अन्य थोरियम का उत्तर: (b) मेन्स:प्रश्न. ऊर्जा की बढ़ती हुई जरूरतों के परिप्रेक्ष्य में क्या भारत को अपने नाभिकीय ऊर्जा कार्यक्रम का विस्तार करना जारी रखना चाहिये? नाभिकीय ऊर्जा से संबंधित तथ्यों एवं भयों की विवेचना कीजिये। (2018) प्रश्न. भारत में नाभिकीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी की संवृद्धि और विकास का विवरण प्रस्तुत कीजिए । भारत में तीव्र प्रजनक रियेक्टर कार्यक्रम का क्या लाभ है ? (2017) |
अमेरिका यूनेस्को से बाहर
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
संयुक्त राज्य अमेरिका ने वर्ष 2023 में पुनः शामिल होने के केवल दो वर्षों बाद संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (UNESCO) से बाहर निकलने का निर्णय लिया है। अमेरिका ने इस कदम के पीछे इज़राइल के खिलाफ कथित पक्षपात को कारण बताया है।
यूनेस्को के संबंध में मुख्य तथ्य क्या हैं?
- परिचय: संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (UNESCO) संयुक्त राष्ट्र की एक विशेष एजेंसी है। यह शिक्षा, विज्ञान एवं संस्कृति के क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के माध्यम से शांति स्थापित करने का प्रयास करती है।
- इसका मुख्यालय पेरिस में है तथा इसके 194 सदस्य देश और 12 सहयोगी सदस्य हैं।
- इतिहास: यूनेस्को की स्थापना 16 नवंबर, 1945 को हुई थी और यूनेस्को के जनरल कॉन्फ्रेंस का प्रथम सत्र वर्ष 1946 में नवंबर-दिसंबर के दौरान पेरिस में आयोजित किया गया था।
- भारत इस संगठन का एक संस्थापक सदस्य है।
- भूमिका और अधिदेश:
- सभी के लिये समावेशी, न्यायसंगत और आजीवन सीखने के अवसर सुनिश्चित करना (SDG 4 के अनुरूप)।
- मूर्त एवं अमूर्त सांस्कृतिक विरासत (विश्व विरासत सूची) की रक्षा करना।
- वैज्ञानिक अनुसंधान, सतत् विकास और शांति एवं मानवता के लिये विज्ञान के उपयोग को बढ़ावा देना।
- आपसी समझ और सहिष्णुता को बढ़ाएँ।
आपसी समझ और सहनशीलता को बढ़ाना
- अमेरिका का यूनेस्को से बाहर होना: यह तीसरी बार है जब संयुक्त राज्य अमेरिका ने यूनेस्को (UNESCO) से बाहर निकलने का फैसला किया है, और ट्रंप प्रशासन के दौरान यह दूसरी बार हो रहा है।
- निकासी और पुनःप्रवेश की समयरेखा:
- पहली निकासी (1984, रीगन प्रशासन): अमेरिका ने शीत युद्ध के दौरान यूनेस्को (UNESCO) से यह कहते हुए अपना नाम वापस ले लिया कि संगठन में कुप्रबंधन, भ्रष्टाचार, और सोवियत हितों के प्रति झुकाव देखा गया।
- दूसरी निकासी (2017, ट्रम्प का पहला कार्यकाल): अमेरिका ने यूनेस्को (UNESCO) से बाहर होने का फैसला इज़राइल-विरोधी पक्षपात का हवाला देते हुए लिया, खासकर 2011 में जब यूनेस्को ने फिलिस्तीन को एक सदस्य राष्ट्र के रूप में स्वीकार किया था।
- तीसरी निकासी (2025, ट्रम्प का दूसरा कार्यकाल): राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने दूसरे कार्यकाल में घोषणा की कि अमेरिका दिसंबर 2026 तक यूनेस्को से दूसरी बार बाहर हो जाएगा। यह फैसला उस पुनः प्रवेश के बाद लिया गया जो वर्ष 2023 में बाइडेन प्रशासन के दौरान किया गया था।
यूनेस्को से अमेरिका के हटने का संभावित प्रभाव क्या हो सकता है?
- वैश्विक प्रभाव:
- वित्तीय संकट: अमेरिका के यूनेस्को से बाहर निकलने से संगठन के बजट में बड़ा अंतर आ गया है, जिससे शिक्षा, सांस्कृतिक धरोहर संरक्षण और जलवायु शोध कार्यक्रमों को खतरा पैदा हो गया है।
- उदाहरण के लिये अमेरिका और इज़राइल ने वर्ष 2011 में यूनेस्को द्वारा फिलिस्तीन को सदस्य राष्ट्र के रूप में शामिल करने के फैसले के बाद यूनेस्को को दी जाने वाली वित्तीय सहायता रोक दी थी।
- भू-राजनीतिक सत्ता परिवर्तन: चीन संभवतः यूनेस्को के एजेंडे में प्रभुत्व स्थापित कर सकता है और प्रचुर मात्रा में चीन-समर्थक विचारधाराओं को बढ़ावा दे सकता है।
- विज्ञान और शिक्षा पर असर: अमेरिका की अनुपस्थिति से वैश्विक स्तर पर एआई नैतिकता, जलवायु विज्ञान और लड़कियों की शिक्षा जैसे कार्यक्रमों के लिये समर्थन कम हो जाता है। उदाहरण के तौर पर यूनेस्को द्वारा आयोजित STEM क्लीनिक्स, जिनका उद्देश्य लड़कियों को STEM (विज्ञान, तकनीक, इंजीनियरिंग तथा गणित) शिक्षा से परिचित कराना है, प्रभावित हो सकते हैं।
- बहुपक्षवाद में संकट: अमेरिका की अनियमित और अप्रत्याशित वापसी वैश्विक सहयोग को बाधित करती है, जिससे बहुपक्षीय संस्थाएँ कमज़ोर होती हैं तथा विकासशील देशों को असंगत अंतर्राष्ट्रीय समर्थन एवं नीतियों के कारण निराशा होती है।
- वित्तीय संकट: अमेरिका के यूनेस्को से बाहर निकलने से संगठन के बजट में बड़ा अंतर आ गया है, जिससे शिक्षा, सांस्कृतिक धरोहर संरक्षण और जलवायु शोध कार्यक्रमों को खतरा पैदा हो गया है।
- भारत पर प्रभाव:
- अवसर: भारत यूनेस्को में अपने कूटनीतिक प्रभाव को बढ़ा सकता है और संस्कृति, शिक्षा तथा एआई नैतिकता जैसे वैश्विक एजेंडों को आकार देकर अपनी भूमिका मज़बूत कर सकता है।
- भारत अपनी सॉफ्ट पावर (सांस्कृतिक प्रभाव) को भी प्रस्तुत कर सकता है, दक्षिण-दक्षिण सहयोग को बढ़ावा दे सकता है, और अधिक भारतीय स्थलों को विश्व धरोहर सूची में शामिल किये जाने का समर्थन कर सकता है।
- चुनौतियाँ: वित्तपोषण में कटौती से नालंदा और सुंदरबन जैसे स्थलों पर प्रमुख भारतीय परियोजनाओं पर असर पड़ सकता है, जबकि शिक्षा कार्यक्रमों में भी कमी आ सकती है।
- यूनेस्को में चीन का बढ़ता प्रभाव और योगदान बढ़ाने का दबाव भारत के संसाधनों और भू-राजनीतिक संतुलन पर दबाव डाल सकता है।
- अवसर: भारत यूनेस्को में अपने कूटनीतिक प्रभाव को बढ़ा सकता है और संस्कृति, शिक्षा तथा एआई नैतिकता जैसे वैश्विक एजेंडों को आकार देकर अपनी भूमिका मज़बूत कर सकता है।
आगे की राह
- समावेशी शासन व्यवस्था: यूनेस्को को अपनी कार्यप्रणाली में भू-राजनीतिक हस्तक्षेप को सीमित करना चाहिये, ताकि वह शिक्षा और सांस्कृतिक संरक्षण जैसे अपने मूल लक्ष्यों पर केंद्रित रह सके।
- सतत् ढाँचा: यूनेस्को को समान एवं न्यायसंगत वित्तपोषण मॉडल अपनाने चाहिये और एआई नैतिकता, डिजिटल शिक्षा, तथा जलवायु शिक्षा जैसे उभरते मुद्दों को प्रभावी रूप से संबोधित करना चाहिये।
- स्थानीय क्रियान्वयन: पारदर्शी शासन सुनिश्चित किया जाए, दक्षिण-दक्षिण सहयोग को प्रोत्साहन मिले, और क्षेत्रीय कार्यक्रमों को समर्थन दिया जाए ताकि हर क्षेत्र की आवश्यकताओं के अनुसार प्रभावशाली तथा लक्षित कार्यवाही हो सके।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: Q. यूनेस्को से अमेरिका के हटने के संगठन की कार्यप्रणाली पर पड़ने वाले प्रभाव का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रश्न. यूनेस्को के मैकब्राइड आयोग के लक्ष्य और उद्देश्य क्या हैं? इस पर भारत की क्या स्थिति है? (2016) |
मैनुअल स्कैवेंजिंग को समाप्त करना
प्रिलिम्स के लिये:मैनुअल स्कैवेंजिंग, नमस्ते योजना, अनुच्छेद 17, अनुच्छेद 21, मैनुअल स्कैवेंजर्स के रूप में रोज़गार का निषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013, हेपेटाइटिस, टेटनस, राष्ट्रीय गरिमा अभियान, स्वच्छ भारत मिशन, पीएम-दक्ष, मनरेगा। मेन्स के लिये:हाथ से मैला ढोने वालों के समक्ष आने वाली प्रमुख चुनौतियाँ और उनके समाधान के लिये उठाए गए कदम। हाथ से मैला ढोने की प्रथा को समाप्त करनेहेतु अतिरिक्त उपायों की आवश्यकता। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
सामाजिक न्याय मंत्रालय द्वारा किये गए एक अध्ययन में वर्ष 2022–23 के दौरान देश के आठ राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में मैला ढोने (मैनुअल स्कैवेंजर्स) की प्रथा से संबंधित खतरनाक सफाई कार्यों के कारण हुई 150 में से 54 मौतों का विश्लेषण किया गया।
अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष क्या हैं?
- सुरक्षा उपकरणों का अभाव: कुल 54 में से 49 मामलों (लगभग 90%) में सुरक्षा उपकरण उपलब्ध नहीं कराए गए। शेष मामलों में केवल न्यूनतम सुरक्षा उपलब्ध थी, 5 मामलों में दस्ताने और 1 मामले में दस्तानों के साथ गमबूट प्रदान किये गए थे।
- अधिकांश मृत्यु सक्शन पंप या रोबोट क्लीनर जैसे मशीनीकृत उपकरणों के अभाव में हुईं।
- संस्थागत लापरवाही: अधिकांश मामलों में, एजेंसियों के पास उपकरण की तैयारी का अभाव था तथा जागरूकता अभियान या तो अनुपस्थित थे या अपर्याप्त थे, यहाँ तक कि उन स्थानों पर भी जहाँ उन्हें आयोजित किया गया था।
- बिना सूचित सहमति: कई श्रमिक बिना सहमति के सीवर में प्रवेश करते हैं तथा जब लिखित सहमति ली जाती है, तब भी उन्हें इससे जुड़े जोखिमों के बारे में सूचित नहीं किया जाता है।
- शोषणकारी नियुक्ति प्रथाएँ: अधिकांश श्रमिकों को अनौपचारिक रूप से व्यक्तिगत अनुबंधों पर नियुक्त किया गया था, केवल कुछ ही प्रत्यक्ष सरकारी या आउटसोर्स PSU कर्मचारी थे।
मैनुअल स्कैवेंजिंग क्या है तथा इससे संबंधित कानूनी ढाँचा क्या है?
- मैनुअल स्कैवेंजिंग से तात्पर्य मानव मल को हाथ से उठाने या साफ करने की प्रथा से है, जो प्रायः अस्वास्थ्यकर शौचालयों, खुली नालियों, गड्ढों या रेलवे पटरियों से आता है।
- वर्तमान स्थिति: सरकार के अनुसार, मैनुअल स्कैवेंजिंग आधिकारिक तौर पर समाप्त हो गई है, वर्तमान चुनौती सीवर और सेप्टिक टैंकों की खतरनाक सफाई के मुद्दे से संबंधित है।
- नमस्ते योजना के तहत भारत के 36 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में 84,902 सीवर और सेप्टिक टैंक कर्मचारियों की पहचान की गई है।
- मौलिक अधिकारों का उल्लंघन: मैनुअल स्कैवेंजिंग मौलिक अधिकारों, विशेष रूप से अनुच्छेद 17 (अस्पृश्यता का उन्मूलन) और अनुच्छेद 21 (गरिमा के साथ जीवन जीने का अधिकार) का उल्लंघन है।
- कानूनी ढाँचा:
- मैनुअल स्कैवेंजर्स के रूप में रोज़गार का निषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013 (PEMSR): यह अधिनियम किसी भी व्यक्ति को मानव मल को उसके अंतिम निष्पादन तक किसी भी रूप में हाथ से साफ करने की गतिविधि में नियुक्त करने पर प्रतिबंध लगाता है।
- यह प्रथा को अमानवीय और असंवैधानिक घोषित करता है।
- SC/ST (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989: यह मैनुअल स्कैवेंजिंग में अनुसूचित जातियों के रोज़गार को अपराध बनाता है।
- मैनुअल स्कैवेंजर्स के रूप में रोज़गार का निषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013 (PEMSR): यह अधिनियम किसी भी व्यक्ति को मानव मल को उसके अंतिम निष्पादन तक किसी भी रूप में हाथ से साफ करने की गतिविधि में नियुक्त करने पर प्रतिबंध लगाता है।
- सर्वोच्च न्यायालय (SC) के दिशा-निर्देश: डॉ. बलराम सिंह बनाम भारत संघ (2023) मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र और राज्य सरकारों को देश भर में हाथ से मैला ढोने और खतरनाक सफाई को समाप्त करने का निर्देश दिया। सर्वोच्च न्यायालय के दिशा-निर्देशों में शामिल हैं:
- पुनर्वास: मृत्यु होने पर 30 लाख रुपए, विकलांगता होने पर 10-20 लाख रुपए, साथ ही परिजनों को नौकरी और आश्रितों को शिक्षा।
- जवाबदेही: लापरवाही के लिये दंड और अनुबंध रद्द करना।
- नालसा: मुआवजा वितरण की देखरेख करना और मानक मॉडल बनाना।
- पारदर्शिता: मृत्यु, मुआवजा और पुनर्वास पर नज़र रखने के लिये एक पोर्टल का शुभारंभ।
मैनुअल स्कैवेंजर्स के समक्ष आने वाली प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?
- स्वास्थ्य जोखिम: मानव अपशिष्ट और हाइड्रोजन सल्फाइड जैसी जहरीली गैसों के संपर्क में आने से मैनुअल स्कैवेंजर हेपेटाइटिस, टेटनस, हैजा और दम घुटने के प्रति संवेदनशील हो जाते हैं।
- सामाजिक भेदभाव: अछूत माने जाने के कारण उन्हें जाति-आधारित भेदभाव का सामना करना पड़ता है, जिससे सामाजिक बहिष्कार और जाति व्यवस्था मज़बूत होती है
- आर्थिक चुनौतियाँ: इन श्रमिकों को न्यूनतम वेतन से भी कम भुगतान किया जाता है, वे अनौपचारिक या दैनिक वेतन पर कार्य करते हैं, नौकरी की सुरक्षा या सामाजिक सुरक्षा का अभाव होता है, जिससे वे गरीबी के चक्र में फँसे रहते हैं।
- दोहरे शोषण का सामना: महिलाओं को लैंगिक उत्पीड़न, शारीरिक एवं मानसिक शोषण तथा वेतन असमानता जैसी समस्याओं का भी सामना करना पड़ता है।
- मनोवैज्ञानिक समस्याएँ: सामाजिक बहिष्कार और कार्य की दुर्दशा के कारण चिंता, अवसाद और आत्मसम्मान की कमी जैसे मानसिक स्वास्थ्य संबंधी मुद्दे उत्पन्न होते हैं।
- नशीले पदार्थों का सेवन: कई श्रमिक तनाव, अपमान और शारीरिक श्रम की कठिनाइयों से निपटने के लिये नशे के आदि हो जाते हैं, जिससे उनका स्वास्थ्य और अधिक खराब हो जाता है।
हाथ से मैला ढोने (मैनुअल स्कैवेंजिंग) की प्रथा पर अंकुश लगाने हेतु भारत की पहल
- नमस्ते (मशीनीकृत स्वच्छता पारिस्थितिकी तंत्र के लिये राष्ट्रीय कार्रवाई)
- सफाईमित्र सुरक्षा चैलेंज
- स्वच्छता अभियान ऐप
- राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग
- तकनीकी पहल:
- बैंडिकूट रोबोट: यह एक दूरस्थ या स्वचालित यांत्रिक उपकरण है जो सीवर लाइनों की सफाई और जाम हटाने का कार्य करता है, जिससे मानव प्रवेश की आवश्यकता समाप्त होती है।
- एंडोबॉट और स्वस्थ एआई: संदूषण और ओवरफ्लो जैसी पाइपलाइन समस्याओं का पता लगाता है और उन्हें रोकता है।
- एंडोबॉट एवं स्वास्थ AI: ये उन्नत तकनीक आधारित प्रणालियाँ हैं जो पाइपलाइनों में संदूषण, अवरोधन (overflow) जैसे मुद्दों का पूर्व-निदान और रोकथाम करने में सक्षम हैं।
- वैक्यूम ट्रक: ये शक्तिशाली सक्शन मशीनें होती हैं जो सीवेज़ को मशीन द्वारा खींचकर हटाती हैं, जिससे मैनुअल सफाई या श्रमिकों के प्रवेश की आवश्यकता नहीं रहती।
भारत में मैनुअल स्कैवेंजिंग को समाप्त करने के लिये क्या प्रभावी उपाय किये जा सकते हैं?
- कानूनों का सख्ती से पालन: PEMSR अधिनियम, 2013 को सख्ती से लागू करना, उल्लंघनकर्त्ताओं के लिये कठोर दंड का प्रावधान करना, सीवर में होने वाली मौतों को गैर इरादतन हत्या मानें और सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों के अनुसार मुआवज़ा सुनिश्चित करना।
- पूर्ण मशीनीकरण: स्वच्छ भारत मिशन 2.0 के तहत उपकरणों की खरीद के लिये धन मुहैया कराकर और सभी शहरी स्थानीय निकायों को उपकरणों से लैस करके सक्शन पंप, जेटिंग मशीन और रोबोट के साथ 100% मशीनीकृत सफाई सुनिश्चित करना।
- पुनर्वास और वैकल्पिक आजीविका: पीएम-दक्ष के तहत हाथ से मैला ढोने वालों को अपशिष्ट प्रबंधन और मशीन संचालन में प्रशिक्षित, साथ ही मनरेगा के तहत शहरी निकायों में प्राथमिकता के आधार पर नियुक्ति करना चाहिये।
- स्वास्थ्य जाँच: सभी शहरी स्थानीय निकायों (ULB) में सफाई कर्मचारियों के लिये नियमित स्वास्थ्य जाँच आयोजित करना, जिसमें श्वसन और त्वचा संबंधी बीमारियों पर ध्यान केंद्रित किया जाए, साथ ही निर्धारित उपचार और रोकथाम प्रोटोकॉल भी बताए जाएँ।
निष्कर्ष:
कानूनी प्रतिबंधों के बावजूद मैला ढोने की प्रथा आज भी जारी है, जो प्रवर्तन, यंत्रीकरण और पुनर्वास में प्रणालीगत विफलताओं को उजागर करती है। इस अमानवीय प्रथा को पूरी तरह समाप्त करने के लिए आवश्यक है कि संबंधित कानूनों का कठोर क्रियान्वयन सुनिश्चित किया जाए, सीवर सफाई का पूर्ण यंत्रीकरण किया जाए तथा प्रभावित समुदायों के लिए गरिमापूर्ण वैकल्पिक आजीविका के अवसर उपलब्ध कराए जाएँ। राजनीतिक इच्छाशक्ति, तकनीकी नवाचार और सामाजिक मानसिकता में परिवर्तन—इन तीनों का समन्वय ही भारत के संवैधानिक ढांचे के अंतर्गत सफाईकर्मियों के अधिकारों और सम्मान की रक्षा सुनिश्चित कर सकता है।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: Q. मैला ढोने वालों के समक्ष सामाजिक और आर्थिक चुनौतियों का विश्लेषण कीजिये तथा उनके लिये एक सतत् पुनर्वास रोडमैप का सुझाव दीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न: 'राष्ट्रीय गरिमा अभियान' एक राष्ट्रीय अभियान है, जिसका उद्देश्य है: (2016) (a) बेघर एवं निराश्रित व्यक्तियों का पुनर्वास और उन्हें आजीविका के उपयुक्त स्रोत प्रदान करना। उत्तर: (c) मेन्स:प्रश्न. निरंतर उत्पन्न किये जा रहे, फेंके गए ठोस कचरे की विशाल मात्राओं का निस्तारण करने में क्या-क्या बाधाएँ हैं? हम अपने रहने योग्य परिवेश में जमा होते जा रहे ज़हरीले अपशिष्टों को सुरक्षित रूप से किस प्रकार हटा सकते हैं? (2018) प्रश्न. "जल, सफाई एवं स्वच्छता की आवश्यकता को लक्षित करने वाली नीतियों के प्रभावी क्रियान्वयन को सुनिश्चित करने के लिये लाभार्थी वर्गों की पहचान को प्रत्याशित परिणामों के साथ जोड़ना होगा।" 'वाश' योजना के संदर्भ में इस कथन का परीक्षण कीजिये। (2017) |