डेली न्यूज़ (19 Feb, 2022)



इसरो के प्रक्षेपण यान

प्रिलिम्स के लिये:

प्रक्षेपण यान, उपग्रह।

मेन्स के लिये:

स्पेस टेक्नोलॉजी।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (PSLV) रॉकेट का उपयोग करके दो अन्य छोटे उपग्रहों के साथ एक पृथ्वी अवलोकन उपग्रह (EOS-04) को अंतरिक्ष में लॉन्च किया। यह पीएसएलवी (Polar Satellite Launch Vehicle) की 54वीं उड़ान थी।

प्रक्षेपण यान तथा उपग्रह:

  • प्रक्षेपण यान/राॅकेट में शक्तिशाली प्रणोदन प्रणाली होती है जो भारी मात्रा में ऊर्जा उत्पन्न करती है और उपग्रहों जैसी भारी वस्तुओं को अंतरिक्ष में ले जाने के साथ पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण बल के विपरीत संतुलन स्थापित करती है।
  • उपग्रह को वैज्ञानिक कार्य हेतु एक या एक से अधिक उपकरण के साथ अंतरिक्ष में भेजा जाता है। उनका परिचालनकाल कभी-कभी दशकों तक बढ़ जाता है।
    • लेकिन रॉकेट या प्रक्षेपण यान प्रक्षेपण के बाद उपयोगी नहीं रहते हैं। इनका एकमात्र कार्य उपग्रहों को उनकी कक्षाओं में ले जाना है।
  • रॉकेट में कई वियोज्य ऊर्जा प्रदान करने वाले भाग होते हैं।
    • इनका उपयोग रॉकेट के संचालन के लिये विभिन्न प्रकार के ईंधन जलाने में किया जाता हैं। एक बार जब ईंधन समाप्त हो जाता है, तो वे रॉकेट से अलग होकर गिर जाते हैं, अक्सर वायु-घर्षण के कारण वातावरण में ही जलकर नष्ट हो जाते हैं।
    • मूल रॉकेट का केवल एक छोटा सा हिस्सा ही उपग्रह के इच्छित गंतव्य तक जाता है। एक बार जब उपग्रह को अंत में बाहर निकाल दिया जाता है, तो रॉकेट का यह अंतिम भाग या तो अंतरिक्ष के मलबे का हिस्सा बन जाता है या फिर वायुमंडल में गिरने के बाद जलकर नष्ट हो जाता है।

प्रक्षेपण यान के प्रकार:

  • पृथ्वी की निम्न कक्षाओं के लिये:
    • कई उपग्रहों को केवल पृथ्वी की निम्न कक्षाओं में स्थापित करने की आवश्यकता होती है, जिनकी रेंज पृथ्वी की सतह से लगभग 180 किमी. से शुरू होकर 2,000 किमी. तक होती है। 
      • अधिकांश पृथ्वी-अवलोकन उपग्रह, संचार उपग्रह और यहाँ तक ​​कि अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (अंतरिक्ष में एक पूर्ण प्रयोगशाला जो अंतरिक्ष यात्रियों की मेज़बानी करती है, तथा अंतरिक्ष में स्थायी रूप से उपस्थित होता है)।
    • उपग्रहों को पृथ्वी की निम्न कक्षाओं में ले जाने के लिये कम मात्रा में ऊर्जा की आवश्यकता होती है, और तदनुसार छोटे, कम शक्तिशाली रॉकेट का उपयोग इस उद्देश्य के लिये किया जाता है।
  • उच्च कक्षाओं के लिये:
    • ऐसे और भी उपग्रह हैं जिन्हें अंतरिक्ष में ज़्यादा गहराई तक जाने की ज़रूरत होती है।
    • उदाहरण के लिये, भूस्थैतिक उपग्रहों को उन कक्षाओं में भेजना पड़ता है जो पृथ्वी की सतह से लगभग 36,000 किमी. दूर हैं।
    • ग्रहों के अन्वेषण मिशनों को भी अपने रॉकेटों की आवश्यकता होती है ताकि वे उन्हें अंतरिक्ष में बहुत गहराई तक छोड़ सकें।
    • ऐसे अंतरिक्ष अभियानों के लिये अधिक शक्तिशाली राकेटों का प्रयोग किया जाता है।
      • सामान्य तौर पर उपग्रह के वज़न को लेकर और किस दूरी तक इसे ले जाने की आवश्यकता है, के संबंध में एक दुविधा बनी रहती है। एक ही रॉकेट भारी उपग्रह की तुलना में छोटे उपग्रहों को अंतरिक्ष में अधिक गहराई तक ले जा सकता है।

इसरो द्वारा उपयोग किये जाने वाले प्रक्षेपण यान:

  • सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (SLV):
    • इसरो द्वारा विकसित पहले रॉकेट को केवल SLV या सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल कहा जाता था।
    • इसके बाद संवर्द्धित उपग्रह प्रक्षेपण यान (ASLV) आया।
  • संवर्द्धित सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (ASLV):
    • SLV और ASLV दोनों ही छोटे उपग्रहों, जिनका वज़न 150 किलोग्राम तक होता है, को पृथ्वी की निचली कक्षाओं में ले जा सकते हैं।
    • ASLV का परिचालन पीएसएलवी आने से पहले 1990 के दशक की शुरुआत तक किया जाता था।
  • ध्रुवीय सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (PSLV):
    • PSLV का पहला सफल प्रक्षेपण अक्तूबर 1994 में किया गया था।
      • पीएसएलवी पहला लॉन्च वाहन है जो तरल चरण (Liquid Stages) से सुसज्जित है।
    •  PSLV इसरो द्वारा उपयोग किया जाने वाला अब तक का सबसे विश्वसनीय रॉकेट है, जिसकी 54 में से 52 उड़ानें सफल रही हैं।
      • PSLV का उपयोग भारत के दो सबसे महत्त्वपूर्ण मिशनों (वर्ष 2008 के चंद्रयान-I और वर्ष 2013 के मार्स ऑर्बिटर स्पेसक्राफ्ट) के लिये भी किया गया था। 
      • इसरो वर्तमान में दो लॉन्च वाहनों - PSLV और GSLV (जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल) का उपयोग करता है, इनमें भी कई प्रकार के संस्करण होते हैं।
  • जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (GSLV):
    • जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (GSLV) एक अधिक शक्तिशाली रॉकेट है, जो भारी उपग्रहों को अंतरिक्ष में अधिक ऊँचाई तक ले जाने में सक्षम है। जीएसएलवी रॉकेटों ने अब तक 18 मिशनों को अंजाम दिया है, जिनमें से चार विफल रहे हैं।
    • यह 10,000 किलोग्राम के उपग्रहों को पृथ्वी की निचली कक्षा तक ले जा सकता है।
    • स्वदेश में विकसित क्रायोजेनिक अपर स्टेज (CUS)- ‘GSLV Mk-II’ के तीसरे चरण का निर्माण करता है।
    • Mk-III संस्करणों ने भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो को अपने उपग्रहों को लॉन्च करने हेतु पूरी तरह से आत्मनिर्भर बना दिया है।
      • इससे पहले भारत अपने भारी उपग्रहों को अंतरिक्ष में ले जाने के लिये ‘यूरोपीय एरियन प्रक्षेपण यान’ पर निर्भर था।
  • स्माॅल सेटेलाइट लॉन्च व्हीकल (SSLV):
    • SSLV का लक्ष्य छोटे एवं सूक्ष्म उपग्रहों को लॉन्च करना है, गौरतलब है कि वैश्विक स्तर पर इस प्रकार के उपग्रहों के प्रक्षेपण की मांग तेज़ी से बढ़ रही है। 
    • एसएसएलवी 500 किलोग्राम तक के उपग्रहों के लिये लागत प्रभावी प्रक्षेपण सेवाएँ प्रदान करने में सक्षम है।
    • जल्द ही एक स्वदेशी पृथ्वी अवलोकन उपग्रह EOS-03 को इसके द्वारा अंतरिक्ष में ले जाए जाने की उम्मीद है।
  • पुन: प्रयोज्य रॉकेट:
    • भविष्य में निर्मित रॉकेट प्रायः पुन: प्रयोज्य होंगे। इस प्रकार के मिशन के दौरान रॉकेट का केवल एक छोटा सा हिस्सा ही नष्ट होगा।
    • वहीं इसका अधिकांश भाग पृथ्वी के वायुमंडल में फिर से प्रवेश करेगा और एक हवाई जहाज़ की तरह सतह पर लैंड करेगा तथा भविष्य के मिशनों में इसका उपयोग किया जा सकेगा।
    • पुन: प्रयोज्य रॉकेट निर्माण की लागत एवं ऊर्जा में कटौती करेंगे और अंतरिक्ष मलबे को भी कम करने में मददगार होंगे, जो कि मौजूदा समय में एक गंभीर समस्या बनी हुई है।
    • यद्यपि पूरी तरह से पुन: प्रयोज्य रॉकेट अभी भी विकसित नहीं किये गए हैं, लेकिन आंशिक रूप से पुन: प्रयोज्य लॉन्च वाहन पहले से ही उपयोग में हैं।
    • इसरो ने भी एक आंशिक पुन: प्रयोज्य रॉकेट विकसित किया है, जिसे RLV-TD (पुन: प्रयोज्य लॉन्च व्हीकल टेक्नोलॉजी डिमॉन्स्ट्रेटर) कहा जाता है, इसने वर्ष 2016 में एक सफल परीक्षण उड़ान भरी थी।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान

प्रिलिम्स के लिये:

केंद्र प्रायोजित योजना, राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान।

मेन्स के लिये:

शिक्षा एवं संबंधित योजनाएँ।

चर्चा में क्यों?

सरकार ने ‘राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान’ (RUSA) की योजना को 31 मार्च, 2026 तक या अगली समीक्षा तक (जो भी पहले हो) जारी रखने की मंज़ूरी दे दी है।

  • इस प्रस्ताव में लगभग 12929.16 करोड़ रुपए का परिव्यय शामिल है, जिसमें से केंद्र का हिस्सा 8120.97 करोड़ रुपए और राज्य का हिस्सा 4808.19 करोड़ रुपए होगा। योजना के नए चरण के तहत लगभग 1600 परियोजनाओं को समर्थन देने की परिकल्पना की गई है।

राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान:

  • यह अक्तूबर 2013 में शुरू की गई केंद्र प्रायोजित योजना है, जिसका उद्देश्य पूरे भारत में उच्च शिक्षा संस्थानों को रणनीतिक वित्तपोषण प्रदान करना है।
  • केंद्रीय वित्तपोषण (सामान्य श्रेणी के राज्यों के लिये 60:40 के अनुपात में, विशेष श्रेणी के राज्यों के लिये 90:10 के अनुपात में और केंद्रशासित प्रदेशों के लिये 100%) मानदंड और परिणाम आधारित है।
  • इस कार्यक्रम के तहत वित्तपोषण की राशि विशिष्ट संस्थानों तक पहुँचने से पूर्व राज्य सरकारों/केंद्रशासित प्रदेशों के माध्यम से ‘राज्य उच्च शिक्षा परिषदों’ को प्रदान की जाती है।
    • विभिन्न राज्यों को वित्तपोषण ‘राज्य उच्च शिक्षा योजनाओं’ के मूल्यांकन के आधार पर किया जाएगा, जो उच्च शिक्षा में समानता, पहुँच एवं उत्कृष्टता के मुद्दों को संबोधित करने हेतु प्रत्येक राज्य की रणनीति का वर्णन करेगा।

नए चरण में परिकल्पना:

  • रूसा के नए चरण का लक्ष्य सुविधा से वंचित क्षेत्रों, अपेक्षाकृत कम सुविधा वाले क्षेत्रों, दूरदराज़/ग्रामीण क्षेत्रों, कठिन भौगोलिक स्थिति वाले क्षेत्रों, वामपंथी उग्रवाद (एलडब्ल्यूई) से प्रभावित क्षेत्रों, उत्तर पूर्वी क्षेत्रों (एनईआर), आकांक्षी ज़िलों, द्वितीय श्रेणी (टियर-2) के शहरों, कम जीईआर वाले क्षेत्रों आदि तक पहुँच स्थापित करना और सतत् विकास लक्ष्यों का लाभ प्रदान करना है।
  • इस योजना के नए चरण को नई शिक्षा नीति की उन सिफारिशों और उद्देश्यों को लागू करने के लिये डिज़ाइन किया गया है, जो वर्तमान उच्च शिक्षा प्रणाली में कुछ महत्त्वपूर्ण बदलावों का सुझाव देते हैं ताकि प्रणाली में सुधार लाकर इसे फिर से सक्रिय किया जा सके और समानता एवं समावेशन के साथ गुणवत्तापूर्ण उच्च शिक्षा की सुविधा प्रदान की जा सके।
  • इस योजना के नए चरण के तहत लैंगिक समावेशन, समानता संबंधी पहल, सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी), व्यावसायिक शिक्षा एवं कौशल उन्नयन के माध्यम से रोज़गार बढ़ाने के लिये राज्य सरकारों को सहायता प्रदान की जाएगी।
  • राज्य सरकारों को नए मॉडल डिग्री कॉलेज बनाने के लिये भी सहयोग दिया जाएगा।  
  • बहु-विषयक शिक्षा और अनुसंधान के लिये राज्य के विश्वविद्यालयों को सहायता दी जाएगी।  
  • भारतीय भाषाओं में सिखाने-सीखने सहित विभिन्न गतिविधियों के लिये मान्यता प्राप्त और गैर-मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालयों एवं कॉलेजों को मज़बूती प्रदान करने के उद्देश्य से अनुदान प्रदान किया जाएगा।

उद्देश्य:

  • राज्य संस्थानों की समग्र गुणवत्ता में निर्धारित मानदंडों और मानकों के अनुरूप सुधार करना।
  • एक अनिवार्य गुणवत्ता आश्वासन ढाँचे (योग्यता का प्रमाणन) को अपनाना।
  • राज्य विश्वविद्यालयों में स्वायत्तता को बढ़ावा देना और संस्थानों के शासन में सुधार करना।
  • संबद्धता, शैक्षणिक और परीक्षा प्रणाली में सुधार सुनिश्चित करना।
  • सभी उच्च शिक्षण संस्थानों में गुणवत्ता युक्त संकायों की उपलब्धता और रोज़गार के सभी स्तरों पर क्षमता निर्माण सुनिश्चित करना।
  • उच्च शिक्षा प्रणाली में अनुसंधान के लिये एक सक्षम वातावरण बनाना।
  • उच्च शिक्षा की पहुँच से अछूते क्षेत्रों में संस्थानों की स्थापना कर क्षेत्रीय असंतुलन को समाप्त करना।
  • उच्च शिक्षा के क्षेत्र में वंचितों को पर्याप्त अवसर प्रदान कर इस क्षेत्र में पक्षपात को समाप्त करना।

स्रोत: पी.आई.बी.


भारत-संयुक्त अरब अमीरात वर्चुअल शिखर सम्मेलन

प्रिलिम्स के लिये:

सीईपीए, व्यापक रणनीतिक साझेदारी, कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण, गिफ्ट सिटी, खाड़ी सहयोग परिषद।

मेन्स के लिये:

भारत और उसके पड़ोसी, द्विपक्षीय समूह और समझौते, भारत-यूएई संबंध।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत और संयुक्त अरब अमीरात (UAE) के बीच एक वर्चुअल शिखर सम्मेलन आयोजित किया गया।

Iran

शिखर सम्मेलन के प्रमुख बिंदु:

  • व्यापक रणनीतिक साझेदारी: इस शिखर सम्मेलन के दौरान 'भारत और यूएई समग्र सामरिक गठजोड़ में प्रगति: नए मोर्चे, नया मील का पत्थर' शीर्षक से एक संयुक्त दृष्टि-पत्र भी जारी किया गया।
    • यह बयान भारत और संयुक्त अरब अमीरात के बीच भविष्योन्मुखी साझेदारी का एक खाका तैयार करता है तथा प्रमुख क्षेत्रों एवं परिणामों की पहचान करता है।  
    • इसका साझा उद्देश्य नए कारोबार, निवेश एवं विविध क्षेत्रों में नवोन्मेष को बढ़ावा देना है। 
  • रक्षा एवं सुरक्षा क्षेत्र: क्षेत्र में शांति और सुरक्षा बनाए रखने में योगदान देने वाले समुद्री सहयोग को बढ़ाने पर भी सहमति व्यक्त की गई।
    • क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय दोनों स्तरों पर सीमा पार आतंकवाद के सभी रूपों सहित चरमपंथ एवं आतंकवाद के खिलाफ लड़ने के लिये संयुक्त प्रतिबद्धता की पुष्टि की गई।
  • क्लाइमेट एक्शन एंड रिन्यूएबल्स: एक-दूसरे के स्वच्छ ऊर्जा मिशनों का समर्थन करने और ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन पर विशेष ध्यान देने के साथ दोनों ही प्रौद्योगिकियों को बढ़ाने में मदद करने के लिये एक संयुक्त हाइड्रोजन टास्क फोर्स की स्थापना पर सहमत हुए।
  • उभरती प्रौद्योगिकियाँ: महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों पर सहयोग और ई-व्यवसायों एवं ई-भुगतान समाधानों को पारस्परिक रूप से बढ़ावा देने तथा दोनों देशों के स्टार्ट-अप के विस्तार पर सहमति जताई गई।
  • शिक्षा सहयोग: संयुक्त अरब अमीरात में एक भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान स्थापित करने पर सहमति।
  • स्वास्थ्य सहयोग: टीके के लिये विश्वसनीय आपूर्ति शृंखला, अनुसंधान, उत्पादन और विकास में सहयोग करने तथा भारत में स्वास्थ्य बुनियादी ढांँचे में संयुक्त अरब अमीरात की संस्थाओं द्वारा निवेश बढ़ाने के साथ-साथ वंचित देशों में स्वास्थ्य सेवा हेतु सहयोग प्रदान करने का निर्णय लिया गया।
  • खाद्य सुरक्षा: दोनों देशों द्वारा खाद्य आपूर्ति शृंखलाओं के लचीलेपन और विश्वसनीयता को बढ़ाने की आवश्यकता को स्वीकार किया गया।
    • द्विपक्षीय खाद्य और कृषि व्यापार में वृद्धि के माध्यम से सहयोग बढ़ाने और संयुक्त अरब अमीरात में खेतों को बंदरगाहों से जोड़ने वाले बुनियादी ढांँचे एवं समर्पित रसद सेवाओं को बढ़ावा देने के साथ उन्हें मजबूत करने का भी निर्णय लिया गया।
  • कौशल सहयोग: कौशल विकास में सहयोग बढ़ाने पर सहमति व्यक्त की गई ताकि बाजार की जरूरतों के साथ तालमेल बिठाकर औकार्य को भविष्य की बदलती ज़रूरतों के हिसाब से पूरा किया जा सके।
  • भारत की स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ और संयुक्त अरब अमीरात की स्थापना के 50वें वर्ष के अवसर पर संयुक्त स्मारक डाक टिकट (Joint Commemorative Stamp) का विमोचन किया गया।
  • व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौता (CEPA): विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान देने हेतु दोनों पक्षों ने व्यापार और निवेश संबंधों को और बढ़ावा देने के लिये सीईपीए पर हस्ताक्षर किये।
    • प्लास्टिक, कृषि, खाद्य उत्पाद, ऑटोमोबाइल, इंजीनियरिंग, फार्मास्यूटिकल्स कुछ ऐसे क्षेत्र हैं जिन्हें इस समझौते से बढ़ावा मिलेगा।
    • इस सौदे से देश में युवाओं के लिये 10 लाख नौकरियों के अवसर सर्जित होंगे और भारत के लिये व्यापक अफ्रीकी एवं एशियाई बाज़ारों तक पहुंँचना संभव होगा।
    • दोनों देशों के मध्य CEPA से अगले पाँच वर्षों (2022-27) में द्विपक्षीय व्यापार के 60 अरब अमेरिकी डॉलर के मौजूदा स्तर से बढ़कर 100 अरब अमेरिकी डॉलर तक पँहुचने की उम्मीद है।

व्यापक आर्थिक सहयोग तथा भागीदारी समझौता (CEPA):

  • यह एक प्रकार का मुक्त व्यापार समझौता है जिसमें सेवाओं एवं निवेश के संबंध में व्यापार और आर्थिक साझेदारी के अन्य क्षेत्रों पर बातचीत करना शामिल है। यह व्यापार सुविधा व सीमा शुल्क सहयोग, प्रतिस्पर्द्धा  तथा बौद्धिक संपदा अधिकारों जैसे क्षेत्रों पर बातचीत किये जाने पर भी विचार कर सकता है।
  • साझेदारी या सहयोग समझौते मुक्त व्यापार समझौतों की तुलना में अधिक व्यापक हैं।
  • CEPA व्यापार के नियामक पहलू को भी देखता है और नियामक मुद्दों को कवर करने वाले एक समझौते को शामिल करता है।
  • भारत ने दक्षिण कोरिया और जापान के साथ CEPA पर हस्ताक्षर किये हैं।

भारत-यूएई संबंधों की वर्तमान स्थिति:

  • परिचय:
    • भारत और संयुक्त अरब अमीरात दोनों देशों के बीच सदियों पुराने सांस्कृतिक, धार्मिक और आर्थिक संबंध हैं।
    • वर्ष 1966 में अबू धाबी के शासक के रूप में हिज हाइनेस शेख जायद बिन सुल्तान अल नाहयान की नियुक्ति और बाद में वर्ष 1971 में यूएई फेडरेशन के निर्माण के बाद यह संबंध और अधिक मज़बूत हुआ।
  • राजनीतिक संबंध:
    • वर्ष 2019 में UAE ने दोनों देशों के बीच लंबे समय से चली आ रही दोस्ती और संयुक्त रणनीतिक सहयोग को मज़बूत करने के लिये भारत के प्रधानमंत्री को अपने सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार, जायेद मेडल से सम्मानित किया।
    • अगस्त 2015 में भारतीय प्रधानमंत्री की संयुक्त अरब अमीरात यात्रा ने एक नई और व्यापक व रणनीतिक साझेदारी की शुरुआत की।
  • आर्थिक संबंध:
    •  वर्ष 2019-20 में भारत-यूएई व्यापार लगभग 60 बिलियन अमेरिकी डॉलर का था, जिससे चीन और अमेरिका के बाद यूएई भारत का तीसरा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार बन गया है।
    • संयुक्त अरब अमीरात जो कि अमेरिका के बाद भारत का दूसरा सबसे बड़ा निर्यात गंतव्य भी है, का निर्यात वर्ष 2019-2020 में लगभग 29 बिलियन अमेरिकी डाॅलर था।
    • वर्ष 2019 में संयुक्त अरब अमीरात और भारत के बीच गैर-तेल व्यापार लगभग 41.43 बिलियन अमेरिकी डॉलर का था जो भारत का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार था।
  • सांस्कृतिक संबंध:
    • दोनों राष्ट्र ऐतिहासिक संबंध साझा करते हैं और आधिकारिक व लोकप्रिय दोनों स्तरों पर नियमित सांस्कृतिक आदान-प्रदान बनाए रखते हैं।
    • दोनों देशों ने वर्ष 1975 में एक सांस्कृतिक समझौते पर हस्ताक्षर किये और दोनों देशों के दूतावास सांस्कृतिक संगठनों के साथ सहयोग द्वारा विभिन्न सांस्कृतिक गतिविधियों का आयोजन करते हैं।
  • भारतीय समुदाय:
    • संयुक्त अरब अमीरात में 2.6 मिलियन से अधिक भारतीय प्रवासी हैं, जो संयुक्त अरब अमीरात में सबसे बड़ा प्रवासी समुदाय है, जिसने संयुक्त अरब अमीरात के आर्थिक विकास में एक प्रमुख भूमिका निभाई है।
    • हाल ही में भारत ने खाड़ी सहयोग परिषद (GCC), जिसमें संयुक्त अरब अमीरात भी शामिल है, के सदस्यों से कहा है कि उन भारतीयों को वापसी की सुविधा प्रदान की जाए, जो कोविड-19 से संबंधित प्रतिबंधों में ढील के साथ काम फिर से शुरू करना चाहते हैं।

स्रोत: पी.आई.बी.


शरणार्थियों के लिये कानून

प्रिलिम्स के लिये:

एनएचआरसी, 1951 शरणार्थी सम्मेलन

मेन्स के लिये:

भारत की शरणार्थी नीति, संविधान का अनुच्छेद 21

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (National Human Rights Commission- NHRC) द्वारा "भारत में बसे शरणार्थियों और यहाँ शरण चाहने वालों के बुनियादी मानवाधिकारों के संरक्षण" पर चर्चा की गई है।

शरणार्थी संबंधी भारत की नीति:

  • भारत में शरणार्थियों की समस्या के समाधान के लिये विशिष्ट कानून का अभाव है, इसके बावजूद उनकी संख्या में लगातार वृद्धि हुई है।
  • विदेशी अधिनियम, 1946 शरणार्थियों से संबंधित समस्याओं के समाधान करने में विफल रहता है। यह केंद्र सरकार को किसी भी विदेशी नागरिक को निर्वासित करने के लिये अपार शक्ति भी देता है।
  • इसके अलावा नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA), 2019 से मुसलमानों को बाहर रखा गया है और यह केवल हिंदू, ईसाई, जैन, पारसी, सिख तथा बांग्लादेश, पाकिस्तान एवं अफगानिस्तान से आए बौद्ध प्रवासियों को नागरिकता प्रदान करता है।
  • इसके अलावा भारत वर्ष 1951 के शरणार्थी सम्मेलन और शरणार्थी संरक्षण से संबंधित प्रमुख कानूनी दस्तावेज़ 1967 प्रोटोकॉल का पक्षकार नहीं है।
  • इसके वर्ष 1951 के शरणार्थी सम्मेलन और 1967 प्रोटोकॉल के पक्ष में नहीं होने के बावजूद भारत में शरणार्थियों की बहुत बड़ी संख्या निवास करती है। भारत में विदेशी लोगों और संस्कृति को आत्मसात करने की एक नैतिक परंपरा है।
    • राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग बनाम स्टेट ऑफ अरुणाचल प्रदेश (1996) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि "सभी अधिकार नागरिकों के लिये उपलब्ध हैं, जबकि विदेशी नागरिकों सहित सभी व्यक्तियों को समानता का अधिकार और जीवन का अधिकार उपलब्ध हैं।"
  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद- 21 में शरणार्थियों को उनके मूल देश में वापस नहीं भेजे जाने यानी ‘नॉन-रिफाउलमेंट’ (Non-Refoulement) का अधिकार शामिल है।
    • नॉन-रिफाउलमेंट, अंतर्राष्ट्रीय कानून के अंतर्गत एक सिद्धांत है, जिसके अनुसार, अपने देश से उत्पीड़न के कारण भागने वाले व्यक्ति को उसी देश में वापस जाने के लिये मजबूर नहीं किया जाना चाहिये।

भारत ने अब तक शरणार्थियों पर कानून क्यों नहीं बनाया?

  • शरणार्थी बनाम अप्रवासी: हाल के दिनों में पड़ोसी देशों के कई लोग भारत में राज्य उत्पीड़न के कारण नहीं बल्कि बेहतर आर्थिक अवसरों की तलाश में अवैध रूप से भारत आए हैं।
    • जबकि वास्तविकता यह है कि देश में अधिकतर बहस शरणार्थियों के बजाय अवैध प्रवासियों को लेकर होती है ऐसी स्थिति में सामान्यतः दोनों श्रेणियों को एकीकृत कर दिया जाता है।
  • कानून का दुरुपयोग: देशद्रोहियों, आतंकवादियों और आपराधिक तत्त्वों द्वारा इसका दुरुपयोग किया जा सकता है और इससे देश पर वित्तीय बोझ पड़ेगा।
  • अस्पष्टता: कानून की अनुपस्थिति में भारत के लिये शरणार्थियों के प्रवासन पर निर्णय लेने हेतु तमाम विकल्प खुले हैं। भारत सरकार शरणार्थियों के किसी भी समूह को अवैध आप्रवासी घोषित कर सकती है।
    • उदाहरण के लिये UNHCR के सत्यापन के बावजूद भारत सरकार द्वारा रोहिंग्या शरणार्थियों  (राज्य-विहीन  इंडो-आर्यन जातीय समूह, जो रखाइन राज्य, म्याँमार में रहते हैं) से संबंधित मुद्दों से निपटने के लिये विदेशी अधिनियम या भारतीय पासपोर्ट अधिनियम के प्रयोग का निर्णय लिया गया। 

शरणार्थियों पर कानून की आवश्यकता

  • दीर्घकालिक व्यावहारिक समाधान: भारत अक्सर शरणार्थियों की एक बड़ी संख्या का सामना करता है। इसलिये एक दीर्घकालिक व्यावहारिक समाधान की आवश्यकता है ताकि भारत एक राष्ट्रीय शरणार्थी कानून बनाकर अपने धर्मार्थ दृष्टिकोण से अधिकार-आधारित दृष्टिकोण में बदलाव कर सके।
  • मानवाधिकारों का पालन करना: एक राष्ट्रीय शरणार्थी कानून सभी प्रकार के शरणार्थियों के लिये शरणार्थी-स्थिति निर्धारण प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करेगा और अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत उनके अधिकारों की गारंटी देगा।
  • सुरक्षा चिंताओं को संबोधित करना: यह भारत की सुरक्षा चिंताओं को पर्याप्त रूप से संबोधित कर सकता है, साथ ही यह सुनिश्चित करता है कि राष्ट्रीय-सुरक्षा चिंताओं की आड़ में कोई गैर-कानूनी हिरासत या निर्वासन न किया जाए।
  • शरणार्थियों के उपचार में असंगति: भारत में शरणार्थी आबादी का बड़ा हिस्सा श्रीलंका, तिब्बत, म्याँमार और अफगानिस्तान आए लोगों का है।
    • हालाँकि केवल तिब्बती और श्रीलंकाई शरणार्थियों को सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त है। उन्हें सरकार द्वारा तैयार की गई विशिष्ट नीतियों एवं नियमों के माध्यम से सुरक्षा व सहायता प्रदान की जाती है।

शरणार्थी:

  • एक शरणार्थी वह व्यक्ति है जिसने मानवाधिकारों के उल्लंघन तथा उत्पीड़ित होने के भय से अपने देश से पलायन किया है। 
  • उनकी सुरक्षा और जीवन का ज़ोखिम इतना अधिक बढ़ जाता है कि अपने देश से बाहर जाने और सुरक्षा की तलाश करने के अलावा उन्हें कोई विकल्प नज़र नहीं आता है।
  • ऐसा इसलिये है क्योंकि उनकी अपनी सरकार उन खतरों से उनकी रक्षा नहीं कर सकती है
  • शरणार्थियों को अंतर्राष्ट्रीय संरक्षण का अधिकार है।

शरण तलाशने वाला:

  • शरण चाहने वाला (Asylum-Seeker) वह व्यक्ति होता है जो अपना देश छोड़ चुका है और दूसरे देश में उत्पीड़न एवं गंभीर मानवाधिकारों के उल्लंघन से सुरक्षा की मांग करता है।
    • हालाँकि इन्हें अभी तक कानूनी रूप से शरणार्थी के रूप में मान्यता नहीं मिली है और ये अपने शरण के दावे पर निर्णय की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
  • शरण मांगना मानवाधिकार है।
  • इसका मतलब है कि सभी को शरण लेने के लिये दूसरे देश में प्रवेश करने की अनुमति दी जानी चाहिये।

प्रवासी:

  • प्रवासी की कोई अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत कानूनी परिभाषा नहीं है।
  • प्रवासियों को अपने मूल देश से बाहर रहने वाले लोगों के रूप में समझा जा सकता है, जो शरण चाहने वाले या शरणार्थी नहीं हैं।
  • उदाहरण के लिये कुछ प्रवासी अपना देश छोड़ देते हैं क्योंकि वे कार्य करना, अध्ययन करना या परिवार में शामिल होना चाहते हैं।
  • ये गरीबी, राजनीतिक अशांति, सामूहिक हिंसा, प्राकृतिक आपदाओं या अन्य गंभीर परिस्थितियों के कारण अपना देश नहीं छोड़ते।

आगे की राह

  • विशेषज्ञ समिति द्वारा मॉडल कानूनों में संशोधन: शरण और शरणार्थियों पर मॉडल कानून जो दशकों पहले राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) द्वारा तैयार किये गए लेकिन सरकार द्वारा लागू नहीं किये गए थे, को एक विशेषज्ञ समिति द्वारा संशोधित किया जा सकता है।
    • यदि ऐसे कानून बनाए जाते हैं तो यह मानवाधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए कानूनी संरक्षण और एकरूपता प्रदान करेगा।
  • कानून एक निवारक के रूप में कार्य कर सकता है: यदि भारत में शरणार्थियों के संबंध में घरेलू कानून होता तो यह किसी भी पड़ोसी देश में दमनकारी सरकार को उनकी आबादी को सताने और उन्हें भारत आने से रोक सकता था।

स्रोत: द हिंदू


अंतर-प्रचलित आपराधिक न्याय प्रणाली परियोजना

प्रिलिम्स के लिये:

अंतर-प्रचलित आपराधिक न्याय प्रणाली परियोजना, क्राइम एंड क्रिमिनल ट्रैकिंग एंड नेटवर्क सिस्टम, ई-कोर्ट, कोर्ट के लिये ई-फोरेंसिक, ई-प्रोसिक्यूशन, ई-जेल, नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो, नेशनल इंफॉर्मेटिक्स सेंटर।

मेन्स के लिये:

साइबर सुरक्षा, आंतरिक सुरक्षा चुनौतियों में मीडिया और सोशल नेटवर्किंग वेबसाइटों की भूमिका।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्र सरकार ने गृह मंत्रालय द्वारा ‘अंतर-प्रचलित आपराधिक न्याय प्रणाली परियोजना’ (ICJS) के दूसरे चरण के कार्यान्वयन को मंज़ूरी प्रदान की है।

  • इसे वर्ष 2022-23 से 2025-26 की अवधि के दौरान कुल 3,375 करोड़ रुपए की लागत के साथ स्वीकृत किया गया है।
  • इससे पहले वर्ष 2018 में सर्वोच्च न्यायालय के एक पैनल ने तेलंगाना के वारंगल ज़िले में आपराधिक न्याय वितरण प्रणाली के दो महत्त्वपूर्ण स्तंभों- अदालतों और पुलिस स्टेशनों को एकीकृत करने के लिये एक पायलट परियोजना शुरू की थी।

ICJS क्या है?

  • ICJS देश में आपराधिक न्याय के वितरण के लिये उपयोग की जाने वाली मुख्य आईटी प्रणाली के एकीकरण को सक्षम बनाने के लिये एक राष्ट्रीय मंच है।
  • यह प्रणाली के पाँच स्तंभों जैसे- पुलिस (अपराध तथा आपराधिक ट्रैकिंग एवं नेटवर्क सिस्टम के माध्यम से), फोरेंसिक लैब के लिये ई-फोरेंसिक, न्यायालयों के लिये ई-कोर्ट, लोक अभियोजकों के लिये ई-अभियोजन तथा जेलों के लिये ई-जेल को एकीकृत करने का प्रयास करती है।
  • ICJS प्रणाली को हाई स्पीड कनेक्टिविटी के साथ एक समर्पित और सुरक्षित क्लाउड-आधारित बुनियादी ढांँचे के माध्यम से उपलब्ध कराया जाएगा।
  • राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र (NIC) के सहयोग से परियोजना के कार्यान्वयन हेतु राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) ज़िम्मेदार होगा।
    • इस परियोजना को राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के सहयोग से लागू किया जाएगा।

ICJS के विभिन्न चरण:

  • परियोजना के पहले चरण में व्यक्तिगत आईटी प्रणालियों को लागू करने और उन्हें स्थायी रूप से स्थापित करना है।
  • चरण- II के तहत सिस्टम 'एक डेटा एक प्रविष्टि' (One Data One Entry) के सिद्धांत पर बनाया जा रहा है, जिसके तहत डेटा केवल एक बार एक स्तंभ में दर्ज किया जाता है और फिर वही अन्य सभी स्तंभों में उपलब्ध होता है, प्रत्येक स्तंभ में डेटा को फिर से दर्ज करने की आवश्यकता नहीं होती है।

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो:

  • NCRB की स्थापना केंद्रीय गृह मंत्रालय के अंतर्गत वर्ष 1986 में इस उद्देश्य से की गई थी कि भारतीय पुलिस में कानून व्यवस्था को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिये पुलिस तंत्र को सूचना प्रौद्योगिकी समाधान और आपराधिक गुप्त सूचनाएँ प्रदान करके समर्थ बनाया जा सके।
  • यह राष्ट्रीय पुलिस आयोग (1977-1981) और गृह मंत्रालय के कार्य बल (1985) की सिफारिशों के आधार पर स्थापित किया गया था।
  • NCRB देश भर में अपराध के वार्षिक व्यापक आँकड़े ('भारत में अपराध' रिपोर्ट) एकत्रित करता है।
    • वर्ष 1953 से प्रकाशित होने के बाद यह रिपोर्ट देश भर में कानून और व्यवस्था की स्थिति को समझने में एक महत्त्वपूर्ण उपकरण के रूप में कार्य करती है।
  • NCRB के दूसरे सीसीटीएनएस हैकथॉन और साइबर चैलेंज 2020-21 का उद्घाटन समारोह नई दिल्ली में आयोजित किया गया।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


प्रथम सूचना रिपोर्ट

प्रिलिम्स के लिये:

प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR), ज़ीरो एफआईआर, संज्ञेय अपराध और गैर-संज्ञेय अपराध।

मेन्स के लिये:

प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR), संज्ञेय अपराध और गैर-संज्ञेय अपराध

चर्चा में क्यों?

प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण दस्तावेज़ है क्योंकि यह आपराधिक न्याय की प्रक्रिया को गति प्रदान करती है। थाने में FIR दर्ज होने के बाद ही पुलिस मामले की जाँच शुरू करती है।

प्रथम सूचना रिपोर्ट:

  • प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) एक लिखित दस्तावेज़ है जो पुलिस द्वारा तब तैयार की जाती है जब उसे किसी संज्ञेय अपराध के बारे में सूचना प्राप्त होती है।
  • यह एक सूचना रिपोर्ट है जो समय पर सबसे पहले पुलिस तक पहुँचती है, इसीलिये इसे प्रथम सूचना रिपोर्ट कहा जाता है।
  • यह आमतौर पर एक संज्ञेय अपराध के शिकार व्यक्ति द्वारा या उसकी ओर से किसी व्यक्ति द्वारा पुलिस में दर्ज कराई गई शिकायत होती है। कोई भी व्यक्ति संज्ञेय अपराध की सूचना मौखिक या लिखित रूप में दे सकता है।
  • FIR शब्द भारतीय दंड संहिता (IPC), आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CrPC), 1973 या किसी अन्य कानून में परिभाषित नहीं है।
    • हालाँकि पुलिस नियमों या कानूनों में सीआरपीसी की धारा 154 के तहत दर्ज की गई जानकारी को प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) के रूप में जाना जाता है।
  • FIR के तीन महत्त्वपूर्ण तत्त्व हैं:
    • जानकारी एक संज्ञेय अपराध से संबंधित होनी चाहिये।
    • यह सुचना लिखित या मौखिक रूप में थाने के प्रमुख को दी जानी चाहिये।
    • इसे मुखबिर द्वारा लिखा और हस्ताक्षरित किया जाना चाहिये और इसके प्रमुख बिंदुओं को दैनिक डायरी में दर्ज किया जाना चाहिये।

FIR दर्ज होने के बाद की स्थिति:

  • पुलिस मामले की जाँच करेगी और गवाहों के बयान या अन्य वैज्ञानिक सामग्री के रूप में साक्ष्य एकत्र करेगी।
    • पुलिस कानून के अनुसार कथित व्यक्तियों को गिरफ्तार कर सकती है।
  • यदि शिकायतकर्ता के आरोपों की पुष्टि करने के लिये पर्याप्त सबूत हैं, तो आरोप पत्र दाखिल किया जाएगा। अन्यथा कोई सबूत नहीं मिलने का उल्लेख करते हुए एक अंतिम रिपोर्ट अदालत में प्रस्तुत की जाएगी।
  • यदि यह पाया जाता है कि कोई अपराध नहीं किया गया है, तो रद्दीकरण रिपोर्ट दर्ज की जाएगी।
  • यदि आरोपी व्यक्ति का कोई पता नहीं चलता है, तो एक 'अनट्रेस्ड' रिपोर्ट दर्ज की जाएगी।
  • हालाँकि अगर अदालत जाँच रिपोर्ट से सहमत नहीं है, तो वह आगे की जाँच का आदेश दे सकती है।

एफआईआर दर्ज करने से इनकार किये जाने की स्थिति में:

  • CrPC की धारा 154(3) के तहत यदि कोई व्यक्ति किसी थाने के प्रभारी अधिकारी की ओर से प्राथमिकी दर्ज करने के इनकार किये जाने से व्यथित है तो वह संबंधित पुलिस अधीक्षक/डीसीपी को शिकायत भेज सकता है।
    • यदि पुलिस अधीक्षक/डीसीपी इस बात से संतुष्ट है कि इस तरह की जानकारी से संज्ञेय अपराध का खुलासा होता है, तो वह या तो मामले की जाँच करेगा, या किसी अधीनस्थ पुलिस अधिकारी को जाँच का निर्देश देगा।
  • यदि प्राथमिकी दर्ज नहीं की जाती है, तो पीड़ित व्यक्ति संबंधित न्यायालय के समक्ष CrPC की धारा 156(3) के तहत शिकायत दर्ज कर सकता है और यदि न्यायालय इस बात से संतुष्ट होता है कि शिकायत में संज्ञेय अपराध शामिल है तो वह पुलिस को प्राथमिकी दर्ज करने और कार्रवाई करने का निर्देश दे सकता हैं।

ज़ीरो एफआईआर का अर्थ:

  • जब एक पुलिस स्टेशन को किसी अन्य पुलिस स्टेशन के अधिकार क्षेत्र में किये गए कथित अपराध के विषय में शिकायत प्राप्त होती है, तो यह एक प्राथमिकी दर्ज करता है और फिर आगे की जाँच के लिये उसे संबंधित पुलिस स्टेशन में स्थानांतरित कर देता है।
    • इसी प्रकार की प्राथमिकी को ‘ज़ीरो एफआईआर’ कहा जाता है।
  • इसमें एफआईआर को कोई नियमित नंबर नहीं दिया जाता है। ‘ज़ीरो एफआईआर’ मिलने के बाद संबंधित थाने की पुलिस नई एफआईआर दर्ज कर जाँच शुरू देती है।

संज्ञेय अपराध और गैर-संज्ञेय अपराध:

  • संज्ञेय अपराध: संज्ञेय अपराध वह अपराध है, जिसमें पुलिस किसी व्यक्ति को बिना वारंट के गिरफ्तार कर सकती है।
    • पुलिस स्वयं एक संज्ञेय मामले की जाँच शुरू करने के लिये अधिकृत है और ऐसा करने के लिये न्यायालय से किसी आदेश की आवश्यकता नहीं होती है।
  • गैर-संज्ञेय अपराध: गैर-संज्ञेय अपराध एक ऐसा अपराध है, जिसमें किसी पुलिस अधिकारी को बिना वारंट के गिरफ्तार करने का अधिकार नहीं है।
    • न्यायालय की अनुमति के बिना पुलिस अपराध की जाँच नहीं कर सकती है।
    • गैर-संज्ञेय अपराधों के मामले में  CrPC की धारा 155 के तहत FIR दर्ज की जाती है।
    • शिकायतकर्त्ता आदेश के लिये न्यायालय  का सहारा ले सकता है। उसके बाद न्यायालय पुलिस को शिकायतकर्त्ता की शिकायत पर जांँच का निर्देश दे सकता है।

शिकायत और एफआईआर में अंतर:

  • CrPC एक "शिकायत" (Complaint) को "मौखिक रूप से या लिखित रूप में मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत किसी आरोप" के रूप में परिभाषित करता है। इस संहिता के तहत कार्रवाई करने की दृष्टि से कि ‘’किसी व्यक्ति, चाहे वह ज्ञात हो या अज्ञात, ने अपराध किया है, लेकिन इसमें पुलिस रिपोर्ट शामिल नहीं होती है।"
  • हालांँकि FIR वह दस्तावेज़ है जिसे पुलिस ने शिकायत के तथ्यों की पुष्टि के बाद तैयार किया है। प्राथमिकी में अपराध और कथित अपराधी का विवरण हो सकता है।
  • यदि शिकायत के आधार पर ऐसा प्रतीत होता है कि संज्ञेय अपराध किया गया है, तो CrPC की धारा 154 के तहत FIR दर्ज की जाएगी और पुलिस जांँच शुरू करेगी। यदि कोई अपराध नहीं पाया जाता है, तो पुलिस द्वारा जांँच को बंद कर दिया जाता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस